दुनिया के सात पाप
यह सवाल हमेशा कौंधता रहा है कि पाप क्या है और पुण्य क्या है? इससे भी बढ़कर कि पापों में भी महापाप क्या हैं। हर धर्म ने इसकी अपनी व्याख्या की है।
जब से मनुष्य ने होश संभाला है तभी से उसमें पाप-पुण्य, भलाई-बुराई, नैतिक-अनैतिक पर मंथन करते आध्यात्मिक विचार मौजूद हैं। सारे धर्म और हर क्षेत्र में इन पर व्यापक चर्चा होती है। आइए जानें, कि पश्चिमी सभ्यता और क्रिश्चियनिटी में सेवन डेडली सिन्स कहे जाने वाले दुनिया के सात महापापों में किन किन बातों को शामिल किया गया है। गौर करके देखें तो इन सारे महापाप की, हर जगह भरमार है और हम में से हर एक इसमें से किसी न किसी पाप से ग्रसित है।
अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध नाटककार क्रिस्टोफर मारलो ने भी अपने नाटक 'डॉ फॉस्टस ’ में इन सारे पापों का व्यक्तियों के रूप में चित्रण किया है। ये सात महापाप हैं कामुकता, पेटूपन, लालच, आलस्य, क्रोध, ईष्या और घमंड।
कामुकता : उत्कुंठा, लालसा, कामुकता, कामवासना यह मनुष्य को दंडनीय अपराध की ओर ले जाते हैं और इनसे समाज में कई प्रकार की बुराईयां फलती है।
पेटूपन : पेटूपन को भी सात महापापों में रखा गया है। हर जमाने में पेटूपन की निंदा हुई है और इसका मजाक उड़ाया गया है। ठूंस कर खाने को महापाप में इस लिए रखा गया है कि इसमें अधिक खाने की लालसा होती है और दूसरी तरफ कई जरूरतमंदों को खाना नहीं मिल पाता।
लालच : यह भी एक तरह से लालसा और पेटूपन की तरह ही है। इसमें अत्यधिक प्रलोभन होता है। चर्च ने इसे सात महापाप की सूची में अलग से इसलिए रखा है कि इस से धन दौलत की लालच शामिल है।
आलस्य : पहले स्लौथ का अर्थ होता था उदासी। इस प्रवृत्ति में खुदा की दी हुई चीज से परहेज किया जाता है। इस की वजह से आदमी अपनी योग्यता और क्षमता का प्रयोग नहीं करता है।
क्रोध : इसे नफरत और गुस्से का मिला-जुला रूप कहा जा सकता है। जिस में आकर कोई कुछ भी कर सकता है। यह सात महापाप में अकेला पाप है जिसमें हो सकता है कि आपका अपना स्वार्थ शामिल न हो।
ईष्र्या : इसमें डाह, जलन भी शामिल है। यह महापाप इस लिए है कि इसमें किसी के गुण या अच्छी चीज को व्यक्ति सहन न कर पाता है। ईष्र्या से मन में संतोष नहीं रहता है।
घमंड : अभिमान को सातों महापाप में सबसे बुरा पाप समझा जाता है। हर धर्म में इसकी कठोर निंदा और भत्र्सना की गई है। इसे सारे पाप की जड़ समझा जाता है क्योंकि सारे पाप इसी पेट से निकलते हैं। इसमें खुद को सबसे महान समझना और खुद से अत्यधिक प्रेम शामिल है।
जरा सात महापुण्य भी देख लें। ये इस प्रकार हैं-पवित्रता, आत्म संयम, उदारता, परिश्रमी, क्षमा, दया और नम्रता।
भगवान बुद्ध का पंचशील
बुद्ध ने बनारस के एक धनी व्यापारी यश को शील, सदाचाप के बारे में बताया। जब उसका मन शांत हो गया तो भगवान ने उसे पंचशील का उपदेश दिया।
बुद्ध ने कहा था-
प्राणी हिंसा से विरत रहो।
चोरी मत करो।
अनैतिक व्यवहार मत करो।
व्यभिचार, मिथ्याविचार से विरत रहो।
प्रमादकारी पदार्थों और नशीली चीजों के सेवन से बचो।
कौशल
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
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