काल्पनिक नहीं है राधा
भगवान श्रीकृष्ण की शाश्वत शक्ति स्वरूपा राधा अथवा राधिका को काल्पनिक निरूपित करने की अवधारणा के प्रतिपादकों में ऐसी भ्रांति है कि राधा नाम तो केवल कविताओं में है। हिंदी के भक्तिकालीन कवियों ने राधाकृष्ण पर एक से बढ़ कर एक उत्कृष्ट कविता लिखी है, जो हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। मगर इन कविताओं को सराहने वाले भी उक्त अवधारणा के प्रभाव में आकर राधा को काल्पनिक चरित्र ही मान बैठते हैं। इस अवधारणा के विरोध में पहला तर्क तो यही है कि इतने सारे कृष्णभक्त कवि, जिनमें सूरदास, मीराबाई, बिहारीलाल तथा रसखान प्रमुख हैं। एक ही साझे काल्पनिक चरित्र पर इतनी सारी कविताएं क्यों लिखते!
दरअसल, इस अवधारणा का आधार है:- श्रीकृष्ण के जीवन चरित से संबंधित प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथ श्रीमद्भागवत महापुराण में राधा नाम का उल्लेख नहीं होना। किंवदंती है कि राधाजी ने श्रीमद्भागवत महापुराण के समकालीन रचनाकार महर्षि वेदव्यास से अनुरोध किया था कि वह इस ग्रंथ में उनका नामोल्लेख कहीं न करें और यह पूरी तरह से श्रीकृष्ण को समर्पित हो। इससे भी बड़ी बात यह है कि हमारा प्राचीन ज्ञान ज्यादातर गुरु-शिष्य परंपरा से श्रुति-स्मृति पद्धति से आगे बढ़ता रहा है। पुस्तकें तो बहुत बाद में आई। पहले तो श्रुति-स्मृति पद्धति ही ज्ञानांतरण की एक मात्र विधा थी। संचार क्रांति के वर्तमान कंप्यूटर युग में भी यह परंपरा सीमित आयाम में ही सही, बदस्तूर जारी है। विभिन्न गुरु-शिष्य समूहों के सुनने तथा उसे याद करने के बीच जो अंतर रह जाता है, उसके भी दृष्टांत हैं। कई प्राचीन ग्रंथों के विभिन्न संस्करणों में पाठांतर होना यही दर्शाता है। अनेक प्राचीन वास्तविक घटनाएं प्रसंग आज भी श्रुति-स्मृति विधा में ही जीवित है।
धार्मिक कथाओं में राधाजी के साथ ही उनकी आठ सखियों का भी उल्लेख आता है। इनके नाम है-ललिता, विशाखा, चित्रा, इंदुलेखा, चंपकलता, रंगदेवी, तुंगविद्या और सुदेवी। वृंदावन में इन सखियों को समर्पित प्रसिद्ध अष्टसखी मंदिर भी है। जब सखियां हैं तो राधाजी भी अवश्य होंगी, इसलिए यह सब मात्र कल्पना बिल्कुल नहीं हो सकता। भागवत में राधा नाम का प्रत्यक्ष उल्लेख भले ही न हो लेकिन परोक्ष रूप से जगह-जगह राधा नाम छुपा हुआ है। राधा नाम कम से कम एक भागवेत्तर प्राचीन रचना में अवश्य है। जिस प्रकार विभिन्न देवी-देवताओं के कवच पाठ होते हैं, उसी प्रकार राधाजी का भी कवच उपलब्ध है। यह कवच प्राचीन श्रीनारदपंचरात्र में है, जो यह सिद्ध करता है कि राधानाम भक्तिकालीन कवियों से बहुत पहले भी था।
दक्षिण के संत श्री विल्बमंगलाचार्य ने तो श्री गोविंददामोदर स्रोत जैसी राधाकृष्ण आराधना की उत्कृष्ट रचना में कई जगह राधा नाम का उल्लेख किया है। वृंदावन में रासलीला करते हुए जब भगवान अचानक अंतध्र्यान हो गए तो गोपियां व्याकुल होकर उन्हें खोजने लगीं। मार्ग में उन्हें श्रीकृष्ण के साथ ही एक ब्रजबाला के भी पदचिह्न दिखाई दिए। भागवत में कहा गया है- अनया आराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वर:।
यन्नो विहाय गोविंद: प्रीतोयामनयद्रह:।।
अर्थात गोपियां आपस में कहती हैं- अवश्य ही सर्व शक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की यह आराधिका होगी, इसीलिए इस पर प्रसन्न होकर हमारे प्राणप्यारे श्यामसुंदर ने हमें छोड़ दिया है और इसे एकांत में ले गए हैं।
जाहिर है कि यह गोपी और कोई और नहीं बल्कि राधा ही थी। श्लोक के आराधितो शब्द में राधा का नाम भी छुपा हुआ है।
श्री नारदपंचरात्र में शिव-पार्वती संवाद के रूप में प्रस्तुत श्री राधा कवचम् के प्रारंभ में श्री राधिकायै नम: लिखा हुआ है।
मनीष
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
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