क्या है इच्छाशक्ति का मूल?
इस दुनिया में विद्युत की प्रकृति अभी तक एक रहस्य है, किंतु मनुष्य ने उससे लाभ उठाने के हजारों मार्ग खोज लिए हैं। विद्युत प्रकृति में सर्वत्र पाई जाती है, किंतु इसे प्राप्त कर एकत्र करना, उसका भंडारण करना तथा उपयोग करना मनुष्य द्वारा अभिकल्पित एवं निर्मित यंत्रों के माध्यम से ही संभव है।
आध्यात्मिक आत्मशक्ति भी सर्वत्र है। शरीर में भी उसका भंडार है तथा सूक्ष्म तारों अर्थात शरीर के सूक्ष्म नाड़ी एवं स्नायु तंत्रों के माध्यम से वितरित होकर प्रकाश प्रदान करती है तथा समस्त गतिविधियों का निर्देशन करती है।
इन सब गतिविधियों को वास्तविक आनंद की ओर अभिमुख होना चाहिए, न कि अस्थिर, क्षणिक सुख-भोगों की ओर। जीवन सिद्धांत, जो बुद्धि के रूप में प्रत्येक कोशिका और नाड़ी तंत्र में प्रवाहित है, आत्मा का ही प्रक्षेपण है।
जिसका जन्म होता है, वह मरता है। आने में जाना निहित है। जिसका जन्म नहीं होता, उसकी मृत्यु भी नहीं होती। आत्मा का न जन्म है और न ही मृत्यु। आप यह भी नहीं कह सकते कि आत्मा फैलती या बढ़ती है अथवा क्षीण होती है।
इसका कोई इतिहास नहीं है। ‘यह है’, बस इतना ही इसके संदर्भ में कहा जा सकता है। यह सर्वदा ज्ञान है, सर्वदा आनंद है। किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए इच्छा प्रेरित करती है।
इसे इच्छाशक्ति कहते हैं, किंतु यह भी आत्मशक्ति से निकली है। यही आपमें निहित देवत्व है। इसे इस रूप से अनुभव करो, समझो तथा क्षुद्र पदार्थो की इच्छा करके ‘इच्छाशक्ति’ की प्रतिष्ठा को मत गिराओ।
इस प्रेरणा से ओतप्रोत इच्छा प्रेम का आधार होती है। यह ईश्वर की ओर निर्देशित वृक्ष फल है। फल के कड़वे छिलके (माया) और उसके अंदर के कठोर बीजों (भेदभावों के संज्ञान) को हटाकर मधुरता का आस्वादन करो। यह मधुरता आत्मा द्वारा प्रदत्त आनंद है।
मनीष
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
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