Sunday, December 25, 2011

Aisha-Kyun (ऐसा क्यूँ) Part (5)

मंदिर जाए तो जरूर ध्यान रखें इस छोटी सी बात का, क्योंकि...
भगवान या परमात्मा एक ऐसी शक्ति हैं जिनके लिए किसी भी समस्या या इच्छा पूर्ति असंभव नहीं है। देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से ही हमारे पापों का नाश हो जाता है और पुण्यों में बढ़ोतरी होती है। इस प्रकार पुण्य लाभ प्राप्त करने के लिए हम मंदिर या देव स्थान जाते हैं। मंदिर या देवी-देवताओं के स्थानों पर जाने के लिए कई प्रकार के नियम बनाए गए हैं। इन्हीं नियमों में से एक है कि मंदिर में नंगे पैर जाना चाहिए।

मंदिर में नंगे पैर जाना चाहिए यह एक अनिवार्य परंपरा है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा जैनालयों आदि देवस्थानों के अंदर सभी श्रद्धालु जूते-चप्पल बाहर उतारकर ही प्रवेश करते हैं। मंदिरों में नंगे पैर प्रवेश करने के पीछे कई कारण हैं। जैसे- देवस्थानों का निर्माण कुछ इस प्रकार से किया जाता है कि उस स्थान पर काफी सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित होती रहती है। नंगे पैर जाने से वह ऊर्जा पैरों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती है। जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक रहती है।

नंगे पैर चलना एक्यूप्रेशर थैरेपी ही है और एक्यूप्रेशर के फायदे सभी जानते हैं। हम देवस्थानों में जाने से पूर्व कुछ देर ही सही पर जूते-चप्पल रूपी भौतिक सुविधा का त्याग करते हैं। इस त्याग को तपस्या के रूप में भी देखा जाता है। जूते-चप्पल में लगी गंदगी से मंदिर की पवित्रता भंग ना हो, इस वजह से हम उन्हें बाहर ही उतारकर देवस्थानों में नंगे पैर जाते हैं।

जानिए कब है मकर संक्रांति, 14 या 15 जनवरी को?
इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी, रविवार को मनाया जाएगा, ऐसा ज्योतिषियों का कहना है। ज्योतिष के अनुसार जब सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। अधिकांश ज्योतिषियों का यही कहना है कि मकर संक्राति पर किए जाने वाले स्नान, दान आदि धार्मिक कर्मकाण्ड 15 जनवरी को ही करना श्रेष्ठ रहेगा।

ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य 14 जनवरी की रात 12 बजकर 58 मिनिट (पंचांग भेद के कारण समय में भिन्नता आ सकती है) पर मकर राशि में प्रवेश करेगा इसलिए उसका पुण्यकाल 15 जनवरी को माना जाएगा। इस दृष्टि से मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को ही मनाया जाएगा। स्नान व दान-दक्षिणा का महत्व भी इस दिन माना जाएगा।

इस बार क्यों खास है मकर संक्रांति?
जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन माना गया है। इस दिन विशेष रूप से सूर्य की पूजा की जाती है। इस बार मकर संक्रांति के पर्व पर सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि के योग के साथ भानु सप्तमी होने से सूर्य की उपासना कर स्नान-दान पुण्य करने से सौगुना अधिक फल मिलेगा।

क्यों है मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का महत्व?
भारत में समय-समय पर हर पर्व को श्रृद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है। मकर संक्रांति पर्व के संबंध में गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में लिखा है-

माघ मकरगत रबि जब होई।

तीरथपतिहिं आव सब कोई।।

(रा.च.मा. 1/44/3)

ऐसा कहा जाता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर संक्रांति पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए वहां मकर-संक्रांति पर्व के दिन स्नान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है।

उत्तर भारत में गंगा-यमुना के किनारे बसे गांवों व नगरों में मेलों का अयोजन होता है। भारत में मकर संक्रांति के पर्व पर सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में गंगासागर में लगता है। गंगासागर के मेले के पीछे पौराणिक कथा है कि मकर संक्रांति के दिन गंगाजी स्वर्ग के उतरकर भगीरथ के पीछे -पीछे चलकर कपिलमुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई। गंगा के पावन जल से ही राजा सगर के साठ हजार श्रापित पुत्रों का उद्धार हुआ था।

भगवान का प्रसाद खाते समय ध्यान रखना चाहिए ये बात, क्योंकि...
हम जब भी किसी मंदिर जाते हैं वहां भगवान को प्रसाद चढ़ाते हैं, पंडित या पुजारी से प्रसाद लेते हैं फिर खाते हैं। प्रसाद खाने से पहले क्या और क्यों करना चाहिए, इस संबंध में शास्त्रों में महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं।

भगवान का प्रसाद ग्रहण करने से पहले यह बात ध्यान रखें कि जिस भगवान का वह प्रसाद है उनका एक बार स्मरण करें। भगवान का ध्यान करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करना श्रेष्ठ रहता है। इसके कई शुभ फल प्राप्त होते हैं।

प्रसाद ग्रहण करने से कई दैवीय शक्तियों की कृपा प्राप्त होती है और हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव निष्क्रीय हो जाता है। प्रसाद की शक्तियों को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए भगवान का स्मरण करना चाहिए। यदि संभव हो तो जिस भगवान का प्रसाद आप ग्रहण करने वाले हैं उनके किसी मंत्र का जप भी किया जा सकता है।

वेद-पुराण में बताया गया है कि भगवान का प्रसाद ग्रहण करने हमारे कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्यों में बढ़ोतरी होती है। इसी वजह से प्रसाद ग्रहण करते समय संबंधित भगवान का ध्यान अवश्य करें। इससे आपके सभी बिगड़े कार्य बनने लगेंगे और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी।

भगवान को स्पर्श करने से पहले ध्यान रखना चाहिए ये बात, क्योंकि...
शास्त्रों में कई ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें करने पर देवी-देवताओं का क्रोध झेलना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति से भगवान क्रोधित हो जाते हैं तो उसे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। देवी-देवताओं में धन की देवी महालक्ष्मी का महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति जीवन में सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता है।

महालक्ष्मी के रुठ जाने पर व्यक्ति को पैसों की तंगी झेलना पड़ती है। ऐसे में लाख मेहनत करने के बाद भी उचित धन प्राप्त नहीं हो पाता है। यदि व्यक्ति पहले से ही धनी हो और उससे लक्ष्मीजी रुठ जाए तो उसका समस्त धन भी नष्ट हो सकता है। अत: शास्त्रों द्वारा वर्जित कार्य हमें नहीं करना चाहिए।

महालक्ष्मी को क्रोधित करने वाले कार्यों में प्रमुख है झूठे हाथों से देवी-देवताओं की प्रतिमा या चित्रों को छूना। यदि कोई व्यक्ति कुछ खाने के बाद झूठे हाथों से ही भगवान को स्पर्श करता है तो उसे देवी-देवताओं का कोप सहना पड़ता है। घर की बरकत चली जाती है। कड़ी मेहनत के बाद भी व्यक्ति के पास पैसा नहीं आता। इसके अलावा पर्स में रखा पैसा भी अनावश्यक कार्यों में तुरंत ही खर्च होने लगता। अत: इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में झूठे हाथों से भगवान को स्पर्श न करें। भगवान के सामने जाने से पहले पूरी तरह पवित्र होकर ही जाना चाहिए। प्रसाद ग्रहण करने के बाद तुरंत हाथ धो लेना चाहिए।

सर्दी के दिनों में नहीं करना चाहिए ये चार काम, क्योंकि...
साल में तीन ऋतुएं प्रमुख मानी गई हैं। वर्षा ऋतु, ग्रीष्म ऋतु और शीत ऋतु। इन तीनों में ऋतुओं में से शीत ऋतु स्वास्थ्य की दृष्टि की काफी महत्वपूर्ण है। ठंड के दिनों स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन किया जाए तो वर्षभर व्यक्ति स्फूर्तिवान और ऊर्जावान बने रह सकता है।

इसी वजह से इन दिनों कुछ ऐसे कार्य बताए गए हैं जो हमें नहीं करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए ठंड के दिनों में जल्दी सो जाना चाहिए। इस समय में देर रात तक जागने से सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अत: देर रात नहीं जागना चाहिए।

जल्दी सोने के बाद सुबह जल्दी उठ भी जाना चाहिए। सूर्योदय के बाद उठने से दिनभर आलस्य बने रहता है। यदि सुबह जल्दी उठने की आदत रहेगी तो आपके जीवन से आलस्य हट जाएगा। हमेशा तरोताजा दिखाई देंगे। काफी लोगों को आदत होती है कि वे दिन में भी सोते हैं।

शीत ऋतु में दिन के समय सोना वर्जित किया गया है। इससे आलस्य में बढ़ोतरी होती है साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा नहीं है। दिन में सोने से मोटापे की समस्या हो सकती है।

ऐसा माना जाता है कि शीत ऋतु में स्वास्थ्य पर सही ध्यान दिया जाए तो पूरे सालभर पर उसका अच्छा प्रभाव दिखाई देता है। इसी वजह से ठंड के दिनों सेहत बनाने पर अधिक जोर दिया जाता है।

15 से उत्तरायण होगा सूर्य, शुरु होगा देवताओं का दिन
मकर संक्रांति यानी 15 जनवरी, रविवार से सूर्य उत्तरायण होगा। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करता है किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना गया है। यह प्रवेश क्रिया छ:-छ: माह के अंतराल पर होती है।

भारत उत्तरी गोलाद्र्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलाद्र्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है, किंतु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलाद्र्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होता है तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार।

अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्यशक्ति में वृद्धि होती है। ऐसा जानकर संपूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

जीवन में सक्रिय बने रहने का संदेश देता है उत्तरायण
मकर संक्रांति (इस बार 15 जनवरी) मुख्य रूप से सूर्य की उपासना का पर्व है। इस दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है इसे ही उत्तरायण भी कहते हैं। इसके पूर्व सूर्य दक्षिणायन होता है। धर्मग्रंथों में उत्तरायण को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है।

दक्षिणायन में चंद्रमा का प्रभाव अधिक होता है और उत्तरायण में सूर्य का। सृष्टि पर जीवन के लिए सबसे अधिक आवश्यकता सूर्य की है। इस प्रकार उत्तरायण पर्व सूर्य के महत्व को भी उजागर करता है। सूर्य की गति से संबंधित होने के कारण यह पर्व हमारे जीवन में गति, नव चेतना, नव उत्साह और नव स्फूर्ति का प्रतीक है। इस समय से दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी।

दिन बड़े होने का अर्थ जीवन में अधिक सक्रियता है। फिर इससे हमें सूर्य का प्रकाश भी अधिक समय तक मिलने लगता है, जो हमारी फसलों के लिए अत्यंत आवश्यक है। उत्तरायण का महत्व इसी तथ्य से स्पष्ट होता है कि हमारे ऋषिमुनियों ने इस अवसर को अत्यंत शुभ और पवित्र माना है। उपनिषदों में इस पर्व को 'देवदान' भी कहा गया है।

जानिए क्या है तिल चतुर्थी की कथा व महत्व
माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को तिल चतुर्थी का व्रत किया जाता है इसे संकटा गणेश चतुर्थी भी कहते हैं। इस बार यह व्रत 12 जनवरी, गुरुवार को है। इस व्रत से संबंधित एक कथा भी है जो इस प्रकार है-

एक बार देवता अनेक विपदाओं में घिरे थे। तब वे मदद के लिए भगवान शिव के पास आए। उस समय भगवान शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी थे। देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।

यह सुनते ही कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गये। गणेशजी सोच में पड़ गये कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो उन्हें बहुत समय लग जायेगा। तभी उन्हें एक उपाय सुझा वे अपने स्थान से उठकर सात बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।

तब गणेश जी बोले कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चन्द्रमा को अध्र्य देगा उसके तीनों ताप - दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होगें। उस व्यक्ति को सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलेगी। उसे सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी व सुख तथा समृद्धि में वृद्धि होगी।

जानिए मकर संक्रांति पर क्यों खाते हैं तिल-गुड़ के लड्डू
भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। त्योहारों की बात हो और मिठाई न हो ऐसा तो हो नहीं सकता। हर त्योहार पर विशेष पकवान बनाने व खाने की परंपराएं भी हमारे यहां प्रचलित हैं।

मकर संक्रांति के अवसर पर विशेष रूप से तिल व गुड़ के पकवान बनाने व खाने की परंपरा है। कहीं तिल व गुड़ के स्वादिष्ट लड्डू बनाए जाते हैं तो कहीं चक्की बनाकर तिल व गुड़ का इनका सेवन किया जाता है। तिल व गुड़ की गजक भी लोगों को खूब भाती है। मकर संक्रांति के पर्व पर तिल व गुड़ का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक आधार है।

सर्दी के मौसम में जब शरीर को गर्मी की आवश्यकता होती है तब तिल व गुड़ के व्यंजन यह काम बखूबी करते हैं। तिल में तेल की प्रचुरता रहती है जिसका सेवन करने से हमारे शरीर में पर्याप्त मात्रा में तेल पहुंचता है जो हमारे शरीर को गर्माहट देता है। इसी प्रकार गुड़ की तासीर भी गर्म होती है। तिल व गुड़ को मिलाकर जो व्यंजन बनाए जाते हैं वह सर्दी के मौसम में हमारे शरीर में आवश्यक गर्मी पहुंचाते हैं। यही कारण है कि मकर संक्रांति के अवसर पर तिल व गुड़ के व्यंजन प्रमुखता से खाए जाते हैं।

लोहड़ी 13 को, उमंग व उल्लास का पर्व
पंजाब एवं जम्मू कश्मीर में 'लोहड़ी' नाम से मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार लोहड़ी मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाई जाती है। इस बार लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी, शुक्रवार को है। संक्रांति के एक दिन पूर्व जब सूरज ढल जाता है तब घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। जनवरी की तीखी सर्दी में जलते हुए अलाव अत्यन्त सुखदायी व मनोहारी लगते हैं।

स्त्री तथा पुरुष सज-धजकर अलाव के चारों ओर एकत्रित होकर भांगड़ा नृत्य करते हैं। चूंकि अग्नि ही इस पर्व के प्रमुख देवता हैं, इसलिए चिवड़ा, तिल, मेवा, गजक आदि की आहूति भी अलाव में चढ़ायी जाती है। नगाड़ों की ध्वनि के बीच यह नृत्य एक लड़ी की भाँति देर रात तक चलता रहता है।

इसके बाद सभी एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हैं तथा आपस में भेंट बाँटते हैं और प्रसाद वितरण भी होता है। प्रसाद में पाँच मुख्य वस्तुएँ होती हैं - तिल, गजक, गुड़, मूँगफली तथा मक्का के दाने। आधुनिक समय में लोहड़ी का पर्व लोगों को अपनी व्यस्तता से बाहर खींच लाता है। लोग एक-दूसरे से मिलकर अपना सुख-दु:ख बाँटते हैं। यही इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य भी है।

कपड़े पहनते समय सिक्के गिरना है बहुत अच्छा, क्योंकि...
काफी लोगों के साथ ऐसा होता है कि कहीं जाते वक्त या कपड़े पहनते समय पैसे गिर जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार इसे शकुन माना जाता है और निकट भविष्य में इसके शुभ फल प्राप्त होते हैं।

शकुन और अपशकुन को ज्योतिष में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को करने से पहले कुछ ना कुछ शकुन या अपशकुन अवश्य होते हैं उन्हें समझना पड़ता है। इन्हीं छोटी-छोटी घटनाओं में कार्य की सफलता या असफलता के संकेत छुपे होते हैं। आजकल ऐसी बातों को अंधविश्वास भी माना जाता है लेकिन ज्योतिष एक विज्ञान ही है और इसके अनुसार ऐसी घटनाओं का संबंध हमारे भविष्य से जुड़ा होता है।

अगर आप कहीं जा रहे हैं या आप कपड़े पहन रहे हैं और जेब से पैसे गिरें तो इसे शुभ संकेत मानना चाहिए। ऐसा होने पर निकट भविष्य में आपको धन प्राप्ति के योग बनते हैं। इसी प्रकार यदि किसी लेन-देन के समय आपके हाथ से पैसा छूट जाए तो भी इसे शुभ माना जाता है। साथ ही यदि कपड़े बदलते वक्त भी ऐसा हो तो शुभ होता है। इन घटनाओं का फल कितने समय में मिलेगा इसका कोई निश्चित दिन नहीं है लेकिन शुभ फल अवश्य ही प्राप्त होता है।

तो इसलिए उड़ाते हैं मकर संक्रांति पर पतंग!
मकर संक्रांति की याद आते ही लोगों के मन में सहज ही पतंग उड़ाने की याद ताजा हो जाती है। वैसे मकर संक्रांति मुख्य रूप से भगवान सूर्य की उपासना तथा स्नान, दान का पर्व है लेकिन इस त्योहार के साथ पतंगबाजी की परंपरा भी जुड़ गई है। लोग दिन भर अपनी छतों पर पतंग उड़ाकर इस उत्सव का मजा लेते हैं। अनेक स्थानों पर विशेष रूप से पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

मकर संक्रांति पर्व पर पतंग उड़ाने के पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं अपितु मनोवैज्ञानिक पक्ष है। पौष मास की सर्दी के कारण हमारा शरीर कई बीमारियों से ग्रसित हो जाता है जिसका हमें पता ही नहीं चलता। इस मौसम में त्वचा भी रुखी हो जाती है। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब इसकी किरणें हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करती है। पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आ जाता है जिससे अनेक शारीरिक रोग स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं।

महाभारत में भी लिखा है उत्तरायण का महत्व
15 जनवरी, रविवार को मकर संक्रांति का पर्व है। हमारे देश में मकर संक्रांति का पर्व कई नामों से मनाया जाता है। गुजरात में इसे उत्तरायण के नाम से मनाते हैं। उत्तरायण को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र समय माना गया है। महाभारत में भी कई बार उत्तरायण शब्द का उल्लेख आया है।

सूर्य के उत्तरायण होने का महत्व इसी कथा से स्पष्ट है कि बाणों की शैया पर पड़े भीष्म पितामह अपनी मृत्यु को उस समय तक टालते रहे, जब तक कि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण नहीं हो गया। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनर्जन्म लेना पड़ता है।

भगवान के इस फोटो के रोज दर्शन करना चाहिए, क्योंकि...
घर-परिवार में अक्सर छोटी-छोटी बातों पर बड़े विवाद हो जाते हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। कभी-कभी एक-दूसरे सदस्य के प्रति जलन की भावना पैदा हो जाती है और वहीं से मनमुटाव बढऩे लगता है। जहां संयुक्त परिवार रहते हैं वहां अक्सर सास-बहु, देवरानी-जेठानी और भाईयों के बीच तू-तू, मैं-मैं होती रहती है। इस प्रकार की परिस्थितियां काफी परिवारों में बनती है।

शास्त्रों में परिवार से इस प्रकार की मानसिकता दूर करने के लिए कई उपाय, छोटी-छोटी परंपराएं बताई गई हैं। इनका पालन करने पर परिवार के सभी सदस्यों का आपसी प्रेम बना रहता है और किसी प्रकार का क्लेश नहीं उपजता। परिवार के सभी सदस्यों में परस्पर प्रेम और स्नेह बना रहे इसके लिए घर में श्रीराम दरबार का फोटो लगाना चाहिए।

श्रीराम दरबार का प्रतिदिन दर्शन करें। यह ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जहां सभी सदस्य आसानी से भगवान के दर्शन कर सके। श्रीराम को परिवार का देवता माना गया है। श्रीराम के पूजन और दर्शन मात्र से परिवार के बीच के सभी मनमुटाव और वाद-विवाद समाप्त हो जाते हैं।

श्रीराम के दर्शन से परिवार के सभी सदस्यों की सोच सकारात्मक बनेगी और वे सभी एक-दूसरे के लिए अच्छा ही सोचेंगे। प्रतिदिन दर्शन करने से परिवार पर किसी प्रकार की कोई विपदा भी नहीं आएगी। घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनी रहेगी और पैसों की तंगी नहीं आएगी।

देवी-देवताओं को फूल चढ़ाने से पहले ध्यान रखें ये 5 बातें, क्योंकि...
भगवान की पूजा-अर्चना में फूल अर्पित करना अति आवश्यक माना गया है। पुष्प के बिना कोई भी पूजन कर्म पूर्ण नहीं हो सकता। ऐसी मान्यता है कि भगवान के प्रिय पुष्प अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनावांछित फल प्रदान करते हैं।

सभी मांगलिक कार्य और पूजन कर्म में फूलों का विशेष स्थान होता है। सभी देवी-देवताओं को अलग-अलग फूल प्रिय हैं। साथ ही इन्हें कुछ फूल नहीं चढ़ाएं जाते। इसी वजह से बड़ी सावधानी से पूजा आदि के लिए फूलों का चयन करना चाहिए।

- शिवजी की पूजा में मालती, कुंद, चमेली, केवड़ा के फूल वर्जित किए गए हैं।

- सूर्य उपासना में अगस्त्य के फूलों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

- सूर्य और श्रीगणेश के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं को बिल्व पत्र चढ़ाएं जा सकते हैं। सूर्य और श्री गणेश को बिल्व पत्र न चढ़ाएं।

- प्रात: काल स्नानादि के बाद भी देवताओं पर चढ़ाने के लिए पुष्प तोड़ें या चयन करें। ऐसा करने पर भगवान प्रसन्न होते हैं।

- बिना नहाए पूजा के लिए फूल कभी ना तोड़े।

पर्स में रखना चाहिए ऐसी फोटो, क्योंकि...
घरों में देवी-देवताओं का मंदिर अवश्य ही होता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन नियमित रूप से घर के मंदिर में पूजा-पाठ करता है उसे सभी सुखों की प्राप्ति होती है। हर सुबह इनकी पूजा करनी चाहिए लेकिन यदि आप घर से कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर जाते हैं तो घर के देवी-देवताओं का पूजन और दर्शन नहीं कर पाते हैं।

यदि आप कहीं बाहर जाते हैं तब घर के मंदिर में रखी देवी-देवीताओं की मूर्तियों की पूजन और दर्शन नहीं हो पाता है। ऐसे में आपको अपने पर्स में मंदिर में रखें देवी-देवताओं की फोटो रखनी चाहिए। पर्स में फोटो रखेंगे तो बाहर रहने पर भी आप घर के भगवान के दर्शन अवश्य कर सकेंगे। ऐसा करने से भगवान की कृपा सदैव आप पर बनी रहेगी।

पर्स में घर के देवी-देवताओं की फोटो रखने से आपके साथ हमेशा ही सकारात्मक और दैवीय ऊर्जा रहेगी। जिससे आपको सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। पैसों की समस्या नहीं रहेगी। इसके साथ वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा या शक्तियां आप पर बुरा प्रभाव नहीं डाल सकेंगी।

ध्यान रखें पर्स में देवी-देवताओं की फोटो रखें तो खुद को अपवित्र स्थानों से दूर रखें और अधार्मिक कर्मों से बचें। पर्स में किसी भी प्रकार की अपवित्र वस्तु न रखें।

जूठे मुंह नहीं सोना चाहिए और नहीं करना चाहिए ये 3 काम, क्योंकि...
भूत या बुरी ताकत या बुरी शक्ति ऐसे शब्द है जिसे सुनते ही काफी लोगों को डर लगता है। भूत-प्रेत, बुरी शक्तियां होती हैं या नहीं, इस संबंध में सभी लोगों के अलग-अलग विचार हैं। कुछ लोगों के अनुसार भूत-प्रेत आदि सब अंधविश्वास की बातें हैं तो कुछ लोग मानते हैं कि भूत आदि होते हैं।

कभी-कभी कुछ लोगों द्वारा अजीब-अजीब से हरकतें की जाती हैं जो कि कोई सामान्य इंसान नहीं कर सकता। इन हरकतों को देखकर भूत में विश्वास रखने वाले लोग मानते हैं कि उस व्यक्ति को हवा लग गई या कोई भूत बाधा हो गई है या ऐसे लोगों पर बुरी शक्तियों का प्रभाव हो गया है।

भूत लगने का अर्थ है कि किसी मृत व्यक्ति की आत्मा का जीवित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाना। इन बातों पर विश्वास रखने वाले लोगों के लिए जब कोई बुरी आत्मा जीवित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाती है तो वह सामान्य इंसानों से एकदम अलग हो जाता है। जिसका इलाज पूजा-पाठ, टोने-टोटकों आदि से करने का प्रयास किया जाता है। वहीं कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं और वे आधुनिक दवाइयों का सहारा लेते हैं।

भूत किन लोगों को अपने प्रभाव में लेते हैं? इस संबंध में विद्वानों द्वारा कुछ बातें बताई गई हैं:

- भूत के प्रभाव में वे लोग आते हैं जो प्रतिदिन साफ-सफाई से नहीं रहते।

- सुबह-शाम दांतों की सफाई नहीं करते, झूठे मुंह सोते हैं।

- स्नान नहीं करते, गंदे वस्त्र पहनते हैं।

- पूजन-पाठनादि कार्य नहीं करते और अनियमित दिनचर्या का पालन करते हुए जीवनयापन करते हैं।

अधार्मिक कर्मों में लिप्त लोगों पर ऐसी शक्तियों का प्रभाव बहुत ही जल्द पड़ता है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि भूत-प्रेत नहीं होते हैं, वह लोग मानसिक उंमाद का शिकार होते हैं, उसे ही शरीर में भूत का आना मान लिया जाता है।

इन दो समय में कुछ देर चुप रहना चाहिए, क्योंकि...
हिंदू संस्कृति में कई ऐसे नियम बताए गए हैं जिनका पालन करने पर हमें स्वास्थ्य लाभ होता है साथ ही धर्म लाभ भी प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार बताए गए इन कार्यों को दिनचर्या में शामिल करने वाले व्यक्ति को जीवन में कई परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है।

हमारी काफी ऊर्जा बोलने में नष्ट हो जाती है, इस ऊर्जा को बचाने के लिए प्रतिदिन कुछ समय मौन रहना चाहिए। वैदिक काल से ही ऋषिमुनियों और विद्वानों द्वारा मौन रहने के फायदे बताए गए हैं। सुबह और शाम को कुछ समय मौन रहने से हमारा मानसिक तनाव तो कम होता है साथ ही स्वास्थ्य को भी लाभ प्राप्त होता है।

शास्त्रों के अनुसार प्रात:काल और सायंकाल व्यक्ति को जितनी देर संभव हो सके मौन रहना चाहिए। दिनभर के कई जरूरी काम मौन रहकर भी किए जा सकते हैं। मन शांत मिलती है जिससे ध्यान, पूजा, स्वाध्याय आदि से मानसिक शक्ति मिलती है। सुबह-सुबह मौन रहने से हमारा मन एकाग्र रहता है और प्रतिदिन के खास कार्यों को हम ठीक से कर पाते हैं। इसके बाद शाम के समय मौन रहने से दिनभर के कार्य से जो मानसिक तनाव उत्पन्न होता से उससे मुक्ति मिलती है। जिससे पारिवारिक जीवन पर बाहरी तनाव का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। इसी वजह से प्रतिदिन सुबह और शाम के समय कुछ समय मौन रहकर मन को एकाग्र करना चाहिए।

कल जल के साथ तिल से भी करें स्नान, आखिर क्यों?
माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन तिल का उपयोग करने का विशेष महत्व है। इस बार यह एकादशी 19 जनवरी, गुरुवार को है। इस दिन तिल का उबटन लगाने, भोजन के रूप में ग्रहण करने, तिल मिश्रित जल पीने, तिल मिश्रित जल से नहाने तथा तिल से हवन करने का महत्व तो शास्त्रों में लिखा है।

इस दिन तिल का उपयोग का उपयोग करने के पीछे का कारण सिर्फ धार्मिक ही नहीं अपितु वैज्ञानिक भी है। माघ मास से पहले पौष मास आता है जो बहुत ठंड़ा होता है, जिसके कारण शरीर की त्वचा सिकुड़ जाती है तथा शरीर का तापमान भी अपेक्षाकृत कम हो जाता है। माघ मास में धीरे-धीरे तापमान बढ़ता शुरू होता है। इस परिवर्तन के कारण शरीर में रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।

इस समय जब तिल का उपयोग नहाने व खाने आदि उपयोग में किया जाता है तो तिल का तेल त्वचा की खुश्की कम कर देता है और त्वचा फिर से चमकने लगती है। तिल का तासीर भी गर्म होती है जो इस ऋतु परिवर्तन के समय में हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ा देती है। यही कारण है षटतिला एकादशी व्रत में विभिन्न प्रकार से तिल का उपयोग किया जाता है।

अपने घर का दरवाजा ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि...
हमारे घर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं दरवाजे। क्या आप जानते हैं दरवाजे किस्मत चमका भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं। जी हां किसी भी घर के लिए यह जरूरी है कि दरवाजे किसी भी प्रकार से टूटे हुए नहीं होना चाहिए।

घर के दरवाजे सुंदर और आकर्षक होने चाहिए। इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों की कारण मौजूद हैं। दरवाजे ही हमारे घर की वास्तविक स्थिति बता देते हैं। यदि किसी व्यक्ति के घर के दरवाजे टूटे हुए हैं तो अधिकांश परिस्थितियों में ऐसा होता है कि उस घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं रहती है। टूटे दरवाजे नकारात्मक ऊर्जा को अधिक सक्रिय कर देते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह रोक देते हैं। ऐसे घर में रहने वाले लोगों के विचार भी नेगेटिव ही रहते हैं।

ऐसे दरवाजे की वजह से किसी भी कार्य को करने से पहले उस कार्य में असफलता का ख्याल पहले हमारे दिमाग में आता है। जिससे आत्मविश्वास में कमी आती है और कार्य बिगडऩे की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। वास्तु के अनुसार भी टूटे दरवाजे वास्तु दोष उत्पन्न करते हैं। धर्म के अनुसार देखा जाए तो महालक्ष्मी उसी घर में सदैव निवास करती हैं जिस घर में साफ-सफाई, स्वच्छता के साथ ही सुंदरता भी हो। यदि घर में प्रवेश कराने वाला दरवाजा ही टूटा हुआ होगा तो ऐसे घर में महालक्ष्मी की कृपा की कमी रहती है। इन्हीं कारणों के चलते हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि घर के सभी दरवाजे सुंदर और व्यवस्थित रहें।

जल के साथ तिल से भी करें स्नान, क्योंकि...
माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन तिल का उपयोग करने का विशेष महत्व है। इस बार यह एकादशी 19 जनवरी, गुरुवार को है। इस दिन तिल का उबटन लगाने, भोजन के रूप में ग्रहण करने, तिल मिश्रित जल पीने, तिल मिश्रित जल से नहाने तथा तिल से हवन करने का महत्व तो शास्त्रों में लिखा है।

इस दिन तिल का उपयोग का उपयोग करने के पीछे का कारण सिर्फ धार्मिक ही नहीं अपितु वैज्ञानिक भी है। माघ मास से पहले पौष मास आता है जो बहुत ठंड़ा होता है, जिसके कारण शरीर की त्वचा सिकुड़ जाती है तथा शरीर का तापमान भी अपेक्षाकृत कम हो जाता है। माघ मास में धीरे-धीरे तापमान बढ़ता शुरू होता है। इस परिवर्तन के कारण शरीर में रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।

इस समय जब तिल का उपयोग नहाने व खाने आदि उपयोग में किया जाता है तो तिल का तेल त्वचा की खुश्की कम कर देता है और त्वचा फिर से चमकने लगती है। तिल का तासीर भी गर्म होती है जो इस ऋतु परिवर्तन के समय में हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ा देती है। यही कारण है षटतिला एकादशी व्रत में विभिन्न प्रकार से तिल का उपयोग किया जाता है।

भगवान की कैसी मूर्तियों की पूजा नहीं करना चाहिए?
शास्त्रों के अनुसार कण-कण में परमात्मा विद्यमान है। फिर भी भगवान की आराधना में हमारा ध्यान या मन पूरी तरह से लगा रहे इसके लिए मूर्तियों की पूजा की जाती है। मूर्तियों की पूजा के संबंध में एक बात ध्यान रखने योग्य है कि यदि कोई मूर्ति किसी प्रकार से खंडित हो जाए तो उसकी पूजा नहीं करना चाहिए।

ईश्वर की भक्ति में भगवान की मूर्ति का अत्यधिक महत्व है। प्रभु की मूर्ति देखते ही भक्त के मन में श्रद्धा और भक्ति के भाव स्वत: ही उत्पन्न हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान की प्रतिमा पूर्ण होना चाहिए कहीं से खंडित होने पर प्रतिमा पूजा योग्य नहीं मानी जाती है। खंडित मूर्ति की पूजा को अपशकुन माना गया है। प्रतिमा की पूजा करते समय भक्त का पूर्ण ध्यान भगवान और उनके स्वरूप की ओर ही होता है। अत: ऐसे में यदि प्रतिमा खंडित होगी तो भक्त का सारा ध्यान उस मूर्ति के उस खंडित हिस्से पर चले जाएगा और वह पूजा में मन नहीं लगा सकेगा। जब पूजा में मन नहीं लगेगा तो व्यक्ति की भगवान की ठीक से भक्ति नहीं कर सकेगा और वह अपने आराध्य देव से दूर होता जाएगा। इसी बात को समझते हुए प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों ने खंडित मूर्ति की पूजा को अपशकुन बताते हुए उसकी पूजा निष्फल ठहराई गई है।

घर की छत पर ऐसी चीजें नहीं होना चाहिए, क्योंकि...
अक्सर घर के अंदर और बाहर की साफ-सफाई पर तो ध्यान दिया जाता है लेकिन छत पर गंदगी पड़ी रहती है। वास्तु के अनुसार घर की छत पर पड़ी गंदगी का भी पैसों की तंगी को बढ़ा सकती है। परिवार की बरकत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

यह जरूरी है कि घर की साफ-सफाई अंदर और बाहर अच्छी तरह से ही की जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि घर की छत पर फालतू सामान, गंदगी पड़ी रहती है तो इसके दुष्प्रभाव परिवार की आर्थिक स्थिति पर पड़ते हैं। इसके साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक ही है। किसी भी प्रकार की गंदगी का हमारे जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।

जिन लोगों के घरों की छत पर ऐसे अनुपयोगी सामान रखे होते हैं वहां नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं। उस घर में रहने वाले लोगों के विचार नेगेटिव अधिक रहते हैं। वे किसी भी कार्य में सकारात्मक रूप से सोच भी नहीं पाते हैं। इसी वजह से कार्यों में सफलता और तनाव मिलता है। परिवार में भी मन-मुटाव की स्थितियां निर्मित होती हैं।

शास्त्रों के अनुसार धन की देवी महालक्ष्मी का वास ऐसे ही घरों में होता है जहां पूरी तरह से साफ-सफाई और स्वच्छता बनी रहती है। जहां गंदगी होती है वहां से लक्ष्मी चली जाती है और दरिद्रता का वास हो जाता है।

घर की छत पर ऐसी चीजें नहीं होना चाहिए, क्योंकि...
अक्सर घर के अंदर और बाहर की साफ-सफाई पर तो ध्यान दिया जाता है लेकिन छत पर गंदगी पड़ी रहती है। वास्तु के अनुसार घर की छत पर पड़ी गंदगी का भी पैसों की तंगी को बढ़ा सकती है। परिवार की बरकत पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

यह जरूरी है कि घर की साफ-सफाई अंदर और बाहर अच्छी तरह से ही की जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि घर की छत पर फालतू सामान, गंदगी पड़ी रहती है तो इसके दुष्प्रभाव परिवार की आर्थिक स्थिति पर पड़ते हैं। इसके साथ ही स्वास्थ्य की दृष्टि से भी हानिकारक ही है। किसी भी प्रकार की गंदगी का हमारे जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।

जिन लोगों के घरों की छत पर ऐसे अनुपयोगी सामान रखे होते हैं वहां नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं। उस घर में रहने वाले लोगों के विचार नेगेटिव अधिक रहते हैं। वे किसी भी कार्य में सकारात्मक रूप से सोच भी नहीं पाते हैं। इसी वजह से कार्यों में सफलता और तनाव मिलता है। परिवार में भी मन-मुटाव की स्थितियां निर्मित होती हैं।

शास्त्रों के अनुसार धन की देवी महालक्ष्मी का वास ऐसे ही घरों में होता है जहां पूरी तरह से साफ-सफाई और स्वच्छता बनी रहती है। जहां गंदगी होती है वहां से लक्ष्मी चली जाती है और दरिद्रता का वास हो जाता है।

मोर पंख घर में रखने से दूर हो जाता हैं सांप का डर, क्योंकि...
सांप एक ऐसा जीव है जिसे सामने देखते ही साहसी इंसानों के भी पसीना आ जाता है। सांप का विष पलभर में ही किसी की भी जीवन लीला समाप्त कर देता है। इनके आने-जाने पर प्रतिबंध लगा पाना किसी के लिए भी काफी मुश्किल है। सांप आसानी से किसी के घर में प्रवेश कर सकते हैं। इनसे बचने के लिए शास्त्रों में ही सटीक उपाय बताया गया है।

सांपों के डर को समाप्त करने के लिए सबसे अच्छा और सरल उपाय है घर में मोर पंख रखा जाए। मोर पंख घर में ऐसे स्थान पर रखें जहां से आसानी से दिखाई दे। मोर पंख की सुंदरता आपके घर की सजावट बढ़ाने का काम भी करेगी। इससे आपके घर में सांप नहीं आएंगे। मोर पंख सांपों को हमारे घर से दूर रखता है। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में इसके कई अन्य महत्व भी बताए गए हैं। मोर पंख का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से भी है।

श्रीकृष्ण के चित्रों में देखा जा सकता है कि उनके मस्तष्क पर मोर पंख लगा रहता है। मोर पंख की उपयोगिता और पवित्रता इसी बात से बढ़ जाती है कि वह भगवान के मस्तष्क पर भी स्थान पाता है। घर में मोर पंख लगाने के बहुत सारे अन्य लाभ भी है। इसे घर में रखने से वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं और सकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय हो जाती है। इससे हमारी सोच पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।

सांप मोर पंख से डरते हैं क्योंकि मोर ही इसे मार कर खा जाता है। अत: सांप उस क्षेत्र में जाता है ही नहीं है जहां मोर या मोर पंख दिखाई देता है।

घर में नहीं होना चाहिए ऐसे सामान और कांच, क्योंकि...
पैसा या धन आज के समय में सभी लोगों की पहली आवश्यकता बन गया है। पैसों के लिए ही लोग दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं। बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें अपनी मेहनत का उचित पारिश्रमिक प्राप्त हो जाता है। वहीं कुछ लोगों का जीवन कड़ी मेहनत करते हुए ही व्यतीत हो जाता है। पैसा प्राप्त करने के लिए जितनी मेहनत की आवश्यकता होती है उतना ही किस्मत का साथ भी चाहिए होता है।

पैसा और समृद्धि प्राप्त करने के लिए शास्त्रों में कई प्रकार की परंपराएं बताई गई हैं जिनका पालन करने पर घर में हमेशा लक्ष्मी का वास होता है। परिवार के सभी सदस्यों को धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है।

शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी की कृपा ऐसे घर पर ही रहती है जहां पूरी तरह से साफ-सफाई रहती है, पवित्रता रहती है। यदि घर में गंदगी रहती है तो निश्चित ही वहां दरिद्रता का वास हो जाता है। इससे बचने के लिए दो जरूरी कार्य बताए गए हैं। पहला काम है यदि घर में कोई टूटा-फूटा सामान हो तो उसे तुरंत हटा दें। ऐसे सामान को सामने नहीं दिखाना चाहिए। दूसरा काम है यदि घर में कोई टेढ़े आकार का कांच, खंडित मूर्ती अथवा कोई टूटा चित्र, बंद घड़ी हो तो इन्हें भी घर में नहीं रखना चाहिए। इन्हें रखने घर में दरिद्रता बनी रहती है। ये सभी चीजें दरिद्रता की ही प्रतीक मानी जाती हैं। अत: इन्हें तुरंत हटा देना चाहिए।

ऐसे समय में जब कोई गरीब या भिखारी आ जाए तो क्या और क्यों करें?
जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताएं हैं, रोटी, कपड़ा और मकान। इन्हें पूरी करने के लिए ही सभी दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन कुछ लोग इन तीनों जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से काफी लोग जो कुछ भी नहीं कर पाते हैं वे भीख मांगना शुरू कर देते हैं। आज लगभग सभी सार्वजनिक स्थानों पर बड़ी संख्या में भिखारी मौजूद रहते हैं।

अक्सर ऐसा होता है कि आप किसी सार्वजनिक स्थान पर कुछ खा रहे होते हैं ठीक उसी समय कोई भिखारी आपके खाने को देखता रहता है। ऐसे में काफी लोग उसे अनदेखा करके खाना खाते रहते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार ऐसी परिस्थिति में भिखारी को अनदेखा नहीं करना चाहिए। बल्कि हम जो भी खा रहे हो उसमें कुछ अंश निकालकर उसे दे देना चाहिए।

यदि कोई भिखारी लगातार आपके खाने की ओर नजर लगाए खड़ा रहता है तो इससे आपको उसकी बुरी नजर लग सकती है। जिससे खाना ठीक से पचता नहीं है और पेट संबंधी बीमारी होने की संभावना रहती है। इससे बचने के लिए जब भी किसी सार्वजनिक स्थान कुछ खाए तो ध्यान रखें कि कोई भिखारी वहां न हो, या आप पर उसकी सीधी नजर न पड़े। यदि कोई भिक्षुक आपके सामने आ भी जाए तो अपने खाने में से उसे कुछ अंश अवश्य दे देना चाहिए। शास्त्रों में भिक्षुक का भी काफी महत्व बताया गया है। इन्हें खाना दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं मानवता का भी धर्म बताया गया है किसी भुखे व्यक्ति को खाना खिलाना चाहिए।

मां सरस्वती का पूजन वसंत पंचमी पर ही क्यों?
वसंत पंचमी (इस बार 28 जनवरी, शनिवार) पर विशेष रूप से माता सरस्वती की पूजा की जाती है। इसके पीछे कई धार्मिक किवदंतियां हैं उनमें से एक इस प्रकार है-

कहते हैं जब ब्रह्मा ने विष्णु की आज्ञा से सृष्टी की रचना की विशेषकर मनुष्यों की रचना के बाद जब ब्रह्मा ने अपनी रचना को देखा तो उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों और मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर उन्होने एक चर्तुभुजी स्त्री की रचना की जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में जैसे चेतना आ गई। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।

सरस्वती को भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन किया गया है। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी। वसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है इसीलिए इस दिन उनकी आराधना की जाती है।

28 जनवरी को चावल का भोग लगाएं इन देवी को, क्योंकि...
28 जनवरी को वसंत पंचमी है और यह दिन मां सरस्वती के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। साथ ही ज्योतिष के अनुसार इस दिन को अबूझ मुहूर्त के नाम से भी जाना जाता है। वसंत पंचमी के दिन कोई भी नया कार्य प्रारम्भ करना शुभ माना गया है। इसी कारण ऋषियों द्वारा वसन्त पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की प्रथा प्रारंभ की गई है। किसी भी कला और संगीत की शिक्षा प्रारम्भ करने से पूर्व माता सरस्वती का पूजन करना शुभ होता है।

जो छात्र मेहनत के साथ माता सरस्वती की आराधना करते हैं, उन्हें ज्ञान के साथ साथ सम्मान की प्राप्ति भी होती है। वसंत पंचमी के दिन सबसे पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है। गणेश पूजन के बाद मां सरस्वती का पूजन किया जाता है। शिक्षा, चतुरता के ऊपर विवेक का अंकुश लगाती है। वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के भोग में विशेष रूप से चावल का भोग लगाने की परंपरा है।

माता सरस्वती को चावल का भोग क्या लगाया जाता है, इसका कारण यह है कि मां सरस्वती को श्वेत रंग बहुत प्रिय है साथ ही चावल को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि चावल का भोग लगाने से घर के सभी सदस्यों को मां सरस्वती के आर्शीवाद के साथ सकारात्मक बुद्धि की भी प्राप्ति होती है। साथ ही चावल को अक्षत भी कहा जाता है। अक्षत यानि जो अखंडित है, पूर्ण है, किसी भी देवी-देवता को अक्षत चढ़ाने से अक्षत पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी दुखों का नाश हो जाता है।

इस प्रकार करें अचला सप्तमी व्रत
माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अचला सप्तमी व्रत किया जाता है। इस व्रत की विधि स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई है। इस बार यह व्रत 30 जनवरी, सोमवार को है।

व्रत विधि
माघ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को एक समय भोजन सूर्यनारायण का पूजन करें। सप्तमी को सुबह जल्दी उठकर नदी या सरोवर पर जाकर स्नान करें। सोने, चांदी अथवा तांबे के पात्र में कुसुंभ की रंगी हुई बत्ती और तिल का तेल डालकर दीपक जलाएं। दीपक को सिर पर रखकर ह्रदय में भगवान सूर्य का इस प्रकार ध्यान करें-

नमस्ते रुद्ररूपाय रसानाम्पतये नम:।

वरुणाय नमस्तेस्तु हरिवास नमोस्तु ते।।

यावज्जन्म कृतं पापं मया जन्मसु सप्तसु।

तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी।

जननी सर्वभूतानां सप्तमी सप्तसप्तिके।

सर्वव्याधिहरे देवि नमस्ते रविमण्डले।।

(उत्तरपर्व 53/33-35)

इसके बाद दीपक को नदी में बहा दें फिर स्नानकर देवताओं व पितरों का तर्पण करें और चंदन से कर्णिकासहित अष्टदल कमल बनाएं। उस कमल के मध्य में शिव-पार्वती की स्थापना कर प्रणव-मंत्र से पूजा करें और पूर्वादि आठ दलों में क्रम से भानु, रवि, विवस्वान्, भास्कर, सविता, अर्क, सहस्त्रकिरण तता सर्वात्मा का पूजन करें। इन नामों के आदि में ऊँ कार, चतुर्थी विभक्ति तथा अंत में नम: पद लगाएं। इसके बाद ऊँ भानवे नम:, ऊँ रवये नम: इत्यादि।

इस प्रकार पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य तथा वस्त्र आदि उपचारों से विधिपूर्वक भगवान सूर्य की पूजा कर- स्वस्थानं गम्यताम्- यह कहकर विसर्जित कर दें। बाद में तांबें अथवा मिट्टी के पात्र में गुड़ और घी सहित तिल का चूर्ण तथा सोने का तालपत्राकार एक कान का आभूषण बनाकर बर्तन में रख दें। इसके बाद लाल कपड़े से ढंककर पुष्प-धूप आदि से पूजन करें और वह बर्तन योग्य ब्राह्मण को दान कर दें। फिर सपुत्रपशुभृत्याय मेर्कोयं प्रीयताम् (पुत्र, पशु, भृत्य समन्वित मेरे ऊपर भगवान सूर्य मेरे ऊपर प्रसन्न हो जाएं) ऐसी प्रार्थना करें।

फिर गुरु को वस्त्र, तिल, गो और दक्षिणा देकर तथा शक्ति के अनुसार अन्य ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का समापन करें।

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी अचला सप्तमी की कथा
30 जनवरी, सोमवार को अचला सप्तमी का व्रत है। इस व्रत के संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जो इस प्रकार है-

एक बार राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- भगवान आपने माघ स्नान का महत्व तथा उसका फल तो बताया लेकिन यदि कोई मनुष्य यह कर पाने में असमर्थ हो तो वह क्या करे? तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया- यदि कोई माघ स्नान करने में असमर्थ हो तो वह अचला सप्तमी का व्रत तथा स्नान कर उत्तम फल प्राप्त कर सकता है। इस संबंध में कथा इस प्रकार है-

मगध देश में इन्दुमती नाम की एक वैश्या रहती थी। एक दिन उसने सोचा कि यह संसार तो नश्वर है फिर किस प्रकार यहां रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है? यह सोच कर वह वेश्या महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में चली गई और उनसे कहा- मैंने अपने जीवन में कभी कोई दान, तप, जप, उपवास आदि नहीं किए हैं। आप मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाएं जिससे मेरा उद्धार हो सके। तब वशिष्ठजी ने उसे अचला सप्तमी स्नान व व्रत की विधि बतलाई। वैश्या ने विधि-विधान पूर्वक अचला सप्तमी का व्रत व स्नान किया, जिसके प्रभाव से वह वैश्या बहुत दिनों तक सांसारिक सुखों का उपभोग करती हुई वह देहत्याग के पश्चात देवराज इंद्र की सभी अप्सराओं में प्रधान नायिका बनी।

आपका पलंग हमेशा होना चाहिए एकदम साफ, क्योंकि...
आजकल काफी लोगों के घरों में यह एक आम बात है कि बेड के अंदर फालतू, खराब सामान रख दिया जाता है। वैसे तो यह एक सामान्य बात है लेकिन शास्त्रों के अनुसार इसके कई बुरे प्रभाव प्राप्त हो सकते हैं।

जो लोग अपने बेड के अंदर पुराने कपड़े, पुराने बिस्तर आदि ऐसे सामान रखते हैं जिनका उपयोग नहीं होता है तो इसके कई अशुभ प्रभाव झेलना पड़ सकते हैं। इसी वजह से बेड के अंदर इस प्रकार के सामान नहीं रखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि फिजूल सामान को बेड में रखने से जो व्यक्ति उस पर सोता है उसे कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। यदि कोई बीमार व्यक्ति ऐसे बेड पर सोता है तो उसका जल्दी स्वस्थ होना बहुत मुश्किल होता है। इसके अलावा ऐसे लोगों को धन संबंधी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। वास्तु के अनुसार भी ऐसी स्थिति परेशानियां पैदा करने वाली ही होती हैं। बेड के अंदर फालतू और अनुपयोगी सामान भरने से घर में नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम होता जाता है।

यदि आपने भी अपने बेड के अंदर अनुपयोगी सामान भर रखा है तो उसे तुरंत हटा दें। इन सभी बातों को देखते हुए पुराना बेकार सामान आपके लिए हानिकारक हो सकता है।

घर में सामान बिखरा हुआ नही होना चाहिए, क्योंकि...
जिस व्यक्ति के घर का सामान हमेशा बिखरा रहता है उसे कई प्रकार के मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक तनाव, परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी वजह से फेंगशुई और वास्तु की मान्यता है कि घर का सामान हमेशा व्यवस्थित और साफ-स्वच्छ होना चाहिए।

वास्तु के अनुसार कमरे में बिखरी वस्तुएं सबसे अधिक नेगेटिव प्रभाव देती है। बिखरा सामान घर की सभी पॉजीटिव एनर्जी को नष्ट कर देता है। बुरे प्रभाव को बढ़ा देता है। इसका प्रभाव घर में रहने वाले सभी सदस्यों के रिश्ते पर भी पड़ता है। बिखरे सामान की तरह रिश्ते भी बिखर जाते हैं, सभी को मानसिक तनाव झेलना पड़ता है। मन-मुटाव बढ़ जाता है। साथ ही परिवार में धन संबंधी परेशानियां भी खड़ी हो जाती हैं। जिस घर का सामान व्यवस्थित नहीं होता वहां से धन की देवी महालक्ष्मी चली जाती है और दरिद्रता अपने पैर पसार लेती है। ऐसे घर में निर्धनता बढ़ती है। इससे हमारे स्वास्थ्य को भी कई के दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ता है। घर में धूल-मिट्टी और गंदगी बढ़ जाती है।

वास्तु के अनुसार कमरे में रखी गयी सभी चीजें अच्छे से रखना चाहिए जिससे घर की सुंदरता बढ़े। जहां घर को अच्छे से सजाकर रखा जाता है वहां सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। धन संबंधी समस्याएं भी वहां नहीं आती। परिवार के सभी सदस्यों के रिश्तों में प्रेम बढ़ता है।

उत्तम संतान चाहिए तो करें भीष्म अष्टमी व्रत
माघ मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं। इस तिथि को व्रत करने का बड़ा महत्व है। यह बार यह व्रत 31 जनवरी, मंगलवार को है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन बाल ब्रह्मचारी भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे। उनकी स्मृति में यह व्रत किया जाता है।

इस दिन प्रत्येक हिंदू को भीष्म पितामह के निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए, चाहे उसका माता-पिता जीवित ही क्यों न हों। इस व्रत के करने से मनुष्य सुंदर और गुणवान संतान प्राप्त करता है-

माघे मासि सिताष्टम्यां सतिलं भीष्मतर्पणम्।

श्राद्धं च ये नरा: कुर्युस्ते स्यु: सन्ततिभागिन:।।

(हेमाद्रि)

महाभारत के अनुसार जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण, जलदान आदि करता है, उसके वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं-

शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम्।

संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।।

मंदिर में नहीं लेकर जाना चाहिए ऐसे पर्स और बेल्ट, क्योंकि...
आज तेजी से बदलते समय में सुख और शांति अनुभव करने के लिए काफी लोग देवी-देवताओं के स्थानों पर जाना पसंद करते हैं। एक ओर जहां हमारे आसपास हमेशा ही शोर और अशांति फैली रहती हैं वहीं दूसरी ओर किसी मंदिर में असीम आनंद और शांति मिल जाती है। इसी वजह से बड़ी संख्या में लोग जब भी समय होता है तब देवी-देवताओं के स्थानों पर अवश्य जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान के सामने जाने से पहले कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना चाहिए।

भगवान के प्रति सच्ची आस्था और भक्ति होने पर व्यक्ति की सभी इच्छाएं जल्द ही पूर्ण हो जाती हैं और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। भगवान की भक्ति में तभी पूरा आनंद प्राप्त होता है जब शास्त्रों में बताए गए नियमों का पालन भी किया जाए। शास्त्रों के अनुसार भक्त को मंदिर में जाते समय जानवरों के चमड़े से बनी वस्तुएं बाहर ही रख देना चाहिए। आजकल लेदर के पर्स और लेदर के बेल्ट आदि का फेशन खासा प्रचलित है। लगभग हर व्यक्ति चमड़े से बनी वस्तुओं का उपयोग करता है। ऐसे में मंदिर में प्रवेश करने से पहले इन चीजों को बाहर ही रख देना चाहिए। इन्हें धर्म ग्रंथों के अनुसार अपवित्र माना गया है।

जानवरों के चमड़े से बनी ये चीजें अशुद्ध मानी जाती हैं, इन्हें पहनकर या अपने पास रखकर भगवान के सामने नहीं जाना चाहिए। इसके नियम के पीछे कई कारण हैं, जैसे लेदर की वस्तुएं जानवरों की खाल से बनाई जाती हैं। कई बार इसके लिए जीवित जीवों को मार भी दिया जाता है। किसी भी जीव की हत्या करना शास्त्रों के अनुसार गंभीर पाप माना गया है। अत: ऐसे कृत्य के बाद बनी वस्तुएं भी अपवित्र और अशुद्ध होती हैं। इनका उपयोग नहीं करना चाहिए। इन चीजों के अधिक उपयोग के कारण ही कई जीवों को असमय मृत्यु का संकट झेलना पड़ता है।

इसके साथ चमड़े से बनी वस्तुएं कई बार स्वास्थ्य संबंधी विसंगतियों को भी जन्म देती है। इनके स्पर्श से त्वचा संबंधी बीमारियां होने की भी पूरी संभावनाएं रहती हैं। अत: कम से कम मंदिर में जाते समय इनका उपयोग नहीं करना चाहिए।

सोने से पहले पैर नहीं हिलाना चाहिए, क्योंकि...
सभी लोगों की अलग-अलग आदतें होती हैं। कुछ आदतें तो अच्छी हैं लेकिन कुछ बुरी होती हैं। शास्त्रों के अनुसार कुछ आदतें ऐसी हैं जिन्हें अशुभ माना जाता है। सोने से पहले कई लोगों की पैर हिलाने की आदत होती है। इसे अशुभ माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार जो अशुभ आदतें हैं उन्हें छोड़ देना चाहिए। अन्यथा इनकी वजह से भविष्य में और बुरे प्रभाव झेलना पड़ सकते हैं। सोने से पहले या सोते समय पैर हिलाना अच्छे लक्षण नहीं। इसका यही अर्थ है कि आप चिंतित हैं। आप स्वयं से ज्यादा परिजनों के बारे में सोचते हैं। इसके अलावा इससे व्यक्ति के नकारात्मक विचारों को शक्ति मिलती है। सकारात्मक सोच पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसा होने पर व्यक्ति अपने कार्यों के संबंध में व्यक्ति को निराशा हो सकती है। ये आदत व्यक्ति की चिंताओं में वृद्धि करती है और मानसिक बढ़ता है। इसी वजह से सोते समय पैर नहीं हिलाना चाहिए।

जो व्यक्ति अधिक चिंतित रहता है उसे इस प्रकार की आदत हो सकती है। इसके अलावा अधिकांश लोग जिन्हें अपने घर-परिवार की अधिक चिंता रहती है वह भी सोते समय पैर हिलाते हैं।

इन लकडिय़ों के फर्नीचर घर में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि...
घर की साज-सज्जा बाहरी हो या अंदर की वह हमारी बुद्धि, मन और शरीर के साथ-साथ घर की सुख-शांति को भी प्रभावित करती है। घर में यदि वस्तुएं वास्तु अनुसार सुसज्जित न हो तो वास्तु और ग्रह रश्मियों की विषमता के कारण घर में क्लेश, अशांति का जन्म होता है। घर के बाहर की साज-सज्जा बाहरी लोगों को एवं आंतरिक श्रृंगार हमारे अंत: करण को सौंदर्य प्रदान करता है। जिससे सुख-शांति सौम्यता प्राप्त होती है। घर की आंतरिक सुंदरता में फर्नीचर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

घर में फर्नीचर बनवाने के लिए बहेड़ा, पीपल, वटवृक्ष, पाकर, कैथ, करंज, गुलर आदि लकडिय़ों का प्रयोग न करें। ऐसा करने पर सुख का नाश होता है। पलंग के सिराहने पर अशुभ आकृति न हो इसका ध्यान रखें जैसे सिंह, गिद्द, बाज या अन्य हिंसक पशु ऐसा होने पर वह मानसिक विकार उत्पन्न करती है। जो कलह का कारण होता है।

फर्नीचर में शीशम, महुआ, अर्जून, बबूल, खैर, नागकेशर वृक्ष की लकड़ी काम में ले सकते हैं। इन लकडिय़ों का फर्नीचर घर का वातावरण शांत और समृद्धि बढ़ाने वाला बना रहता है।

घर में रुपए-पैसे कहां और कैसे रखने चाहिए...
पैसा या धन रखने के लिए सभी के घरों में कोई स्थान होता ही है। कुछ लोग पैसा तिजोरी में रखते है तो कुछ अलमारी में, वहीं कुछ लोग अन्य सुरक्षित स्थान पर। चोरों से बचाने के लिए पैसा किसी विशेष जगह पर ही रखा जाता है। वास्तु अनुसार बताए गए स्थान पर पैसा रखने से आपका धन सुरक्षित तो रहेगा साथ ही उसमें बरकत भी होगी। आय के स्रोतों में बढ़ोतरी होगी।

उत्तर दिशा को वास्तु शास्त्र के अनुसार धन के देवता कुबेर का स्थान माना जाता है। उत्तर दिशा का प्रभाव गृहस्वामी के धन की सुरक्षा और समृद्धि देने वाला माना जाता है। मतलब वास्तु शास्त्र के अनुसार गृहस्वामी को अपने नकद धन को उत्तर दिशा में रखना चाहिए। नकद धन के लिए अलग से कमरा बनाना आज के जमाने में तो संभव नहीं है। यह तो सिर्फ पुराने जमाने में राजे रजवाड़ो के लिए संभव था। इसलिए गृहस्थ को अपना धन उत्तर दिशा के बेडरुम में रखना चाहिये। नकद, गहनों एवं अन्य कीमती चीजों को उत्तर दिशा में किसी स्थान पर रखना बहुत शुभ फल देने वाला होता हैं लेकिन उत्तर दिशा के पूजा स्थान के आसपास मे इसका स्थान उत्तम होता है धन को इस स्थान पर रखने से धन में तेजी से वृद्धि होने लगती है।

इसमें एक अलग मत और भी है कुछ वास्तुशास्त्रियों के अनुसार नकद धन को उत्तर में रखना चाहिए और रत्न, आभूषण आदि दक्षिण में रखना चाहिए। ऐसा इसलिए माना जाता है क्योंकि नकद धन आदि हल्के होते है इसलिए इन्हे उत्तर दिशा में रखना वृद्धिदायक माना जाता है। रत्न आभूषण में वजन होता है इसलिए उन्हे कहीं भी नहीं रखा जा सकता है। इसके लिए तिजोरी या अलमारी की आवश्यकता होती है और ये काफी भारी होती है। इसलिए दक्षिण दिशा में रख उसमें आभूषण आदि रखने को उतम माना जाता है।

श्रीकृष्ण का ये फोटो कहां और क्यों लगाएं?
विष्णु अवतार श्रीकृष्ण का नाम ही प्राणियों के पापों को नष्ट करने वाला है। मात्र श्रीकृष्ण के स्मरण से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान कृष्णा सभी सुखों को प्रदान करने वाले हैं। इनकी भक्ति से हमारे सभी कष्ट, क्लेश, बाधाएं दूर हो जाती हैं और जीवन में खुशहाली फैल जाती है। इनके दर्शन से हमारे कई जन्मों के पाप स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं। इसी वजह से अधिकांश घरों में भगवान की श्रीकृष्ण की तस्वीर या मूर्ति अवश्य ही रहती है। कुछ लोग श्रीकृष्ण की रासलीला के चित्र में भी रखते हैं।

श्रीकृष्ण को सभी 64 कलाओं से युक्त माना गया है। इनका व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि गोकुल में सभी गोपियां इनके रूप को देखकर मोहित थीं। सभी श्रीकृष्ण से नि:स्वार्थ प्रेम करती थीं। शास्त्रों में उल्लेख है कि इन सभी गोपियों के साथ श्रीकृष्ण ने रासलीला की। रासलीला का मूल भाव नि:स्वार्थ प्रेम ही है। जो कि इनके चित्रों में भी साफ झलकता है। ये चित्र इतने सुंदर और आकर्षक होते हैं कि सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इसी वजह से इन चित्रों को घर में लगाना सभी पसंद करते हैं।

घर में श्रीकृष्ण की रासलीला के चित्र लगाने के लिए पूर्व दिशा श्रेष्ठ स्थान है। घर की पूर्व दिशा की किसी भी दीवार पर यह चित्र लगाया जा सकता है। इसके प्रभाव से घर में खुशनुमा वातावरण निर्मित होगा और नकारात्मक ऊर्जा निष्क्रीय हो जाएगी। सभी सदस्यों पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ेगा। भगवान के नित्य दर्शनों से सभी मुश्किलें दूर होती जाएंगी।

मनोकामना पूर्ति के लिए किस देवता को कौन सा फूल चढ़ाएं, जानिए
हिंदू धर्म में विभिन्न धार्मिक कर्म-कांडों में फूलों का विशेष महत्व है। धार्मिक अनुष्ठान, पूजन, आरती आदि कार्य बिना पुष्प के अधूरे ही माने जाते हैं। कुछ फूल होते हैं जो देवताओं को विशेष प्रिय होते हैं। कौन से भगवान की पूजा किस फूल से करें, इसके बारे में यहां संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है। इन फूलों को चढ़ाने से आपकी हर मनोकामना शीघ्र ही पूरी हो जाती है-

श्रीगणेश- आचार भूषण ग्रंथानुसार भगवान श्रीगणेश को तुलसीदल को छोड़कर सभी प्रकार के फूल चढ़ाए जा सकते हैं।

शंकरजी- भगवान शंकर को धतूरे के पुष्प, हरसिंगार, व नागकेसर के सफेद पुष्प, सूखे कमल गट्टे, कनेर, कुसुम, आक, कुश आदि के पुष्प चढ़ाने का विधान है।

सूर्य नारायण- इनकी उपासना कुटज के पुष्पों से की जाती है। इसके अलावा कनेर, कमल, चंपा, पलाश, आक, अशोक आदि के पुष्प भी प्रिय हैं।

भगवती गौरी- शंकर भगवान को चढऩे वाले पुष्प मां भगवती को भी प्रिय हैं। इसके अलावा बेला, सफेद कमल, पलाश, चंपा के फूल भी चढ़ाए जा सकते हैं।

श्रीकृष्ण- अपने प्रिय पुष्पों का उल्लेख महाभारत में युधिष्ठिर से करते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं- मुझे कुमुद, करवरी, चणक, मालती, नंदिक, पलाश व वनमाला के फूल प्रिय हैं।

लक्ष्मीजी- इनका सबसे अधिक प्रिय पुष्प कमल है।

विष्णुजी- इन्हें कमल, मौलसिरी, जूही, कदम्ब, केवड़ा, चमेली, अशोक, मालती, वासंती, चंपा, वैजयंती के पुष्प विशेष प्रिय हैं।

किसी भी देवता के पूजन में केतकी के पुष्प नहीं चढ़ाए जाते।

घर में ऐसे जूते-चप्पल नहीं पहनना चाहिए, क्योंकि...
परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि घर में पूरी तरह साफ-सफाई रहे, गंदगी न हो, धुल-मिट्टी न हो। गंदगी के कारण हमारे स्वास्थ्य को तो नुकसान है साथ ही इससे हमारी आर्थिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

शास्त्र के अनुसार जिस घर में गंदगी रहती है वहां कई प्रकार की आर्थिक हानि होती हैं और हमेशा पैसों की तंगी बनी रहती है। जब भी हम कहीं बाहर जाते हैं तब हमारे जूते-चप्पलों में गंदगी लग जाती है जिसे लेकर हम घर आ जाते हैं। काफी लोग घर में जूते-चप्पल पहनते हैं जबकि शास्त्रों के अनुसार घर में नंगे पैर ही रहना चाहिए क्योंकि घर में कई स्थान देवी-देवताओं से संबंधित होते हैं उनके आसपास जूते-चप्पल लेकर जाना शुभ नहीं माना जाता है।

जूते-चप्पल घर के बाहर या घर के अंदर ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां से गंदगी पूरे घर में न फैले। घर के बाहर भी जूते-चप्पलों को व्यवस्थित ढंग से ही रखा जाना चाहिए। बेतरतीब रखे गए जूते-चप्पल वास्तु दोष उत्पन्न करते हैं। अत: इससे बचना चाहिए। यदि घर में चप्पल पहनना ही पड़े तो घर के अंदर की चप्पल दूसरी रखें, जिसे बाहर पहनकर न जाएं।

जया एकादशी 3 को, प्रेत योनि से मुक्ति दिलाता है ये व्रत
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया, अजा तथा भीष्म एकादशी भी कहते हैं। इस बार यह एकादशी व्रत 3 फरवरी, शुक्रवार को है।

जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। जया एकादशी के विषय में जो कथा प्रचलित है उसके अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से निवेदन कर जया एकादशी का महात्म्य, कथा तथा व्रत विधि के बारे में पूछा था। तब श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि जया एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है। इस एकादशी का व्रत विधि-विधान करने से तथा ब्राह्मण को भोजन कराने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को जया एकादशी से संबंधित कथा भी सुनाई थी।

जया एकादशी इस प्रकार करें व्रत
माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत किया जाता है। यह एकादशी 3 फरवरी, शुक्रवार को है। इसकी व्रत विधि इस प्रकार है-

व्रत विधि
जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। जो श्रद्धालु भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि को एक समय आहार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि आहार सात्विक हो। एकादशी के दिन भगवान श्रीविष्णु का ध्यान करके संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से उनकी पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें।

अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें। इस प्रकार नियमपूर्वक जया एकादशी का व्रत करने से महान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार जो जया एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें पिशाच योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता।

कैसे माल्यवान और पुष्पवती को पिशाच योनि से मुक्ति मिली?
माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया, अजा व भीष्म एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 3 फरवरी, शुक्रवार को है। इस एकादशी के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई थी, जो इस प्रकार है-

नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष उपस्थित थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक गंधर्व गा रहा था और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या नृत्य कर रही थी। नृत्य के दौरान ही पुष्पवती माल्यवान पर मोहित हो गई और सभा की मर्यादा को माल्यवान को आकर्षित करने के लिए नृत्य करने लगी। पुष्पवती का नृत्य देखकर माल्यवान सुध-बुध खो बैठा और अपनी सुर-ताल से भटक गया।

यह देखकर इंद्र को बहुत क्रोध आया और उसने उन दोनों को स्वर्ग से वंचित होने व पृथ्वी पर पिशाच योनि में निवास करने का श्राप दे दिया। श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों अत्यंत दु:खी थे उस दिन उन्होंने केवल फलाहार किया। रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंड लग रही थी अत: दोनों रात भर साथ बैठ कर जागते रहे। ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गयी और अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। अब माल्यवान और पुष्पवती पहले से भी सुन्दर हो गए और स्वर्ग लोक में उन्हें स्थान मिल गया।

इंद्र ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गया और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा? माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप भगवान विष्णु के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए भी आदरणीय है। आप दोनों स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।

ऐसे पूजा करने से रुठ जाती हैं महालक्ष्मी, क्योंकि...
शास्त्रों में कई ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें करने पर देवी-देवताओं का क्रोध झेलना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति से भगवान क्रोधित हो जाते हैं तो उसे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। देवी-देवताओं में धन की देवी महालक्ष्मी का महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति जीवन में सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता है।

महालक्ष्मी के रुठ जाने पर व्यक्ति को पैसों की तंगी झेलना पड़ती है। ऐसे में लाख मेहनत करने के बाद भी उचित धन प्राप्त नहीं हो पाता है। यदि व्यक्ति पहले से ही धनी हो और उससे लक्ष्मीजी रुठ जाए तो उसका समस्त धन भी नष्ट हो सकता है। अत: शास्त्रों द्वारा वर्जित कार्य हमें नहीं करना चाहिए।

महालक्ष्मी को क्रोधित करने वाले कार्यों में प्रमुख है झूठे हाथों से देवी-देवताओं की प्रतिमा या चित्रों को छूना। यदि कोई व्यक्ति कुछ खाने के बाद झूठे हाथों से ही भगवान को स्पर्श करता है तो उसे देवी-देवताओं का कोप सहना पड़ता है। घर की बरकत चली जाती है। कड़ी मेहनत के बाद भी व्यक्ति के पास पैसा नहीं आता। इसके अलावा पर्स में रखा पैसा भी अनावश्यक कार्यों में तुरंत ही खर्च होने लगता। अत: इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में झूठे हाथों से भगवान को स्पर्श न करें। भगवान के सामने जाने से पहले पूरी तरह पवित्र होकर ही जाना चाहिए। प्रसाद ग्रहण करने के बाद तुरंत हाथ धो लेना चाहिए।

मालामाल होना है तो सुबह-सुबह ही कर लें ये जरूरी काम, क्योंकि...
शास्त्रों के अनुसार कई ऐसे दैनिक कार्य बताए गए हैं जिनका सीधा संबंध महालक्ष्मी की कृपा से है। जिस घर में वे कार्य सही तरीके से किए जाते हैं वहां धन का अभाव नहीं रहता है। उस घर में हमेशा धन की देवी महालक्ष्मी का निवास रहता है और सुख-समृद्धि बनी रहती है।

प्राचीन काल से ही लोगों को धन का मोह सबसे अधिक रहा है। इसके लिए कठिन परिश्रम किया जाता रहा है। आज भी धन प्राप्ति के लिए सभी कई प्रकार के जतन करते हैं लेकिन कुछ ही लोगों को अपनी मेहनत का पर्याप्त फल प्राप्त हो पाता है। इसके साथ ही घर में यदि पर्याप्त साफ-सफाई न हो तब भी दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार प्रतिदिन सुबह-सुबह ही पूरे घर की साफ-सफाई हो जाना चाहिए। यदि सुबह देर से झाड़ू लगाई जाती है तो यह शुभ नहीं माना जाता है।

झाड़ू को महालक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है और इससे दरिद्रता रूपी गंदगी को बाहर किया जाता है। जिस घर में सुबह जल्दी साफ-सफाई हो जाती है तो वहां रहने वाले सभी लोगों को उनकी मेहनत का उचित फल अवश्य ही प्राप्त होता है। कार्यों में रुकावट नहीं आती है। घर का वातावरण सकारात्मक बना रहता है। जिससे परिवार के सभी सदस्यों की सोच भी सकारात्मक होती है।

ज्योतिष के अनुसार कई प्रकार के ग्रह दोष बताए गए हैं जिनकी वजह से पैसों की तंगी बनी रहती है। इन अशुभ ग्रहों के प्रभावों को कम किया जा सकता है जिससे पैसों के संबंध में होने वाली परेशानियों भी कम हो जाती है।

हनुमान को चढ़ाना चाहिए गुड़ और चने, क्योंकि...
यदि आपके जीवन में कठिन समय चल रहा है? यदि आपके कार्य पूर्ण नहीं हो पा रहे हैं? यदि आपको कड़ी मेहनत के बाद भी उचित परिणाम प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं? यदि आपके घर-परिवार में तनाव चल रहा है? यदि आपकी पैसों की तंगी दूर नहीं हो पा रही है तो हनुमानजी की पूजा सर्वश्रेष्ठ उपाय है। हनुमानजी की पूजा शीघ्र मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी गई है।

यदि आप कड़ी मेहनत कर रहे हैं और फिर भी उचित परिणाम नहीं मिल रहे हैं या इसी प्रकार की अन्य समस्याएं चल रही हैं तो हर मंगलवार और शनिवार को हनुमानजी को गुड़ और चने का भोग लगाएं। ध्यान रहें हनुमानजी का मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। ऐसे हनुमानजी को गुड़ चने का भोग लगाएं जिनका मुख दक्षिण दिशा की ओर हो। दक्षिण मुखी हनुमानजी को मंगलवार और शनिवार के दिन गुड़-चने का प्रसाद चढ़ाएं तथा दीप-अगरबत्ती लगाएं। इसके बाद हनुमान चालिसा का पाठ करें। यदि संभव हो तो सुंदरकांड का पाठ करें।

इस प्रकार प्रति मंगलवार और शनिवार को हनुमानजी की आराधना करने से जल्द ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे। बिगड़े कार्य बनना शुरू हो जाएंगे। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि दोष हो तो हनुमानजी की पूजा से श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं। इस दौरान सभी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से खुद को दूर रखें।

भीष्म द्वादशी 4 को, पापों का नाश करता है यह व्रत
माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं। इस दिन व्रत किया जाता है। इस बार यह व्रत 4 फरवरी, शनिवार को है। इसका महत्व इस प्रकार है-

धर्म ग्रंथों के अनुसार इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा सुख व समृद्धि की प्राप्ति होती है। भीष्म द्वादशी व्रत सब प्रकार का सुख वैभव देने वाला होता है। इस दिन उपवास करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस व्रत में ब्राह्मण को दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ, आदि करने से अमोघ फल प्राप्त होता है।

माघ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के ठीक दूसरे दिन भीष्म द्वादशी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को भगवान श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामाह को बताया था और उन्होंने इस व्रत का पालन किया जिससे इसका नाम भीष्म द्वादशी पड़ा। इस व्रत में ऊँ नमो नारायणाय नम: आदि नामों से भगवान नारायण की पूजा अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

इस तरह करें भीष्म द्वादशी व्रत
माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं। इस दिन व्रत किया जाता है। इस बार यह व्रत 4 फरवरी, शनिवार को है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-

भीष्म द्वादशी के दिन सुबह नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान के बाद संध्यावंदन करने के पश्चात् षोड़शोपचार विधि से लक्ष्मीनारायण भगवान की पूजा करें। भगवान की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुंकुम, दूर्वा का उपयोग करें। पूजा के लिए दूध, शहद केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार कर प्रसाद बनाएं व इसका भोग भगवान को लगाएं।

इसके बाद भीष्म द्वादशी की कथा सुनें पश्चात भगवान का पूजन करें। देवी लक्ष्मी समेत अन्य देवों की स्तुती भी करें तथा पूजा समाप्त होने पर चरणामृत एवं प्रसाद का वितरण करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं व दक्षिणा दें। इस दिन स्नान-दान करने से सुख-सौभाग्य, धन-संतान की प्राप्ति होती है। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें और सम्पूर्ण घर-परिवार सहित अपने कल्याण धर्म, अर्थ, मोक्ष की कामना करें।

रविवार-प्रदोष का संयोग..इस चमत्कारी शिव मंत्र से दूर करें सारी परेशानियां
हिन्दू धर्म मान्यताओं में पंचदेव पूजा का महत्व है। पंचदेव यानी एक ही ईश्वर के पांच स्वरूप, जो भगवान गणेश, शिव, सूर्य, दुर्गा और विष्णु के रूप में पूजनीय है, जो अलग-अलग शक्तियों के रूप में जगत रचना, पालन और संहार का नियंत्रण करते हैं।

शिव पुराण में भी सूर्य को शिव का स्वरूप ही बताया गया है, जो एक ही ईश्वरीय सत्ता का प्रमाण है। सूर्य और शिव की उपासना जीवन में सुख, स्वास्थ्य, काल भय से मुक्ति और शांति देने वाली मानी गई है।

सूर्य की उपासना रविवार को बहुत शुभ मानी जाती है। वहीं प्रदोष तिथि भी शिव भक्ति का पुण्य काल है। लिहाजा कल रविवार-प्रदोष तिथि के बने संयोग में एक ही ईश्वरीय शक्ति में आस्था के साथ शास्त्रों में बताया गया शिव मंत्र सुबह सूर्य की ओर मुख करके व शाम को शिव उपासना में बोलना सारे दु:खों, अभाव व कष्टों को मिटाने वाला माना गया है।

यह शिव मंत्र पौराणिक महामृत्युञ्जय मंत्र भी कहलाता है, जो काल व हर दु:ख के नाश का रामबाण उपाय भी है -

- सूर्योदय के पहले जागकर स्नान के बाद जल भरे तांबे के पात्र में लाल फूल, लाल चंदन डालकर सूर्य की ओर मुख करके अर्घ्य दें और इस शिव मंत्र का स्मरण करें -

मृत्युञ्जयायरुद्राय नीलकण्ठाय शम्भवे।

अमृतेशायशर्वाय महादेवायते नम:।।

- बाद में घर के देवालय में ही सूर्य और शाम को दिन ढलते वक्त प्रदोष काल में शिव की पंचोपचार पूजा यानी गंध, अक्षत, धूप, दीप व नैवेद्य की विधि अपनाकर करें।

- पूजा, मंत्र जप के बाद शिव व सूर्य की धूप, दीप आरती कर सारे कष्टों से रक्षा व छुटकारे की कामना करें।

रवि प्रदोष 5 को, जानें इस व्रत की कथा व महत्व
5 फरवरी को रवि प्रदोष व्रत है। इस व्रत के प्रभाव से लंबी आयु और बेहतर स्वास्थ्य मिलता है। इस व्रत की कथा इस प्रकार है-
एक गांव में एक दीन-हीन ब्राह्मण रहता था। उसकी धर्मनिष्ठ पत्नी प्रदोष व्रत करती थी। उनका एक पुत्र था। एक बार वह पुत्र गंगा स्नान को गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में उसे चोरों ने घेर लिया और डराकर उससे पूछने लगे कि उसके पिता का गुप्त धन कहां रखा है। बालक ने दीनतापूर्वक बताया कि वे अत्यन्त निर्धन और दु:खी हैं। उनके पास गुप्त धन कहां से आया। चोरों ने उसकी हालत पर तरस खाकर उसे छोड़ दिया। बालक अपनी राह हो लिया।

चलते-चलते वह थककर चूर हो गया और बरगद के एक वृक्ष के नीचे सो गया। तभी उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उसी ओर आ निकले। उन्होंने ब्राह्मण बालक को चोर समझकर बन्दी बना लिया और राजा के सामने उपस्थित किया। राजा ने उसकी बात सुने बगैर उसे कारागार में डलवा दिया। उधर बालक की माता प्रदोष व्रत कर रही थी। उसी रात्रि राजा को स्वप्न आया कि वह बालक निर्दोष है यदि उसे नहीं छोड़ा गया तो तुम्हारा राज्य और वैभव नष्ट हो जाएगा।

सुबह जागते ही राजा ने बालक को बुलवाया। बालक ने राजा को सच्चाई बताई। राजा ने उसके माता-पिता को दरबार में बुलवाया। उन्हें भयभीत देख राजा ने मुस्कुराते हुए कहा- तुम्हारा बालक निर्दोष और निडर है। तुम्हारी दरिद्रता के कारण हम तुम्हें पांच गांव दान में देते हैं। इस तरह ब्राह्मण आनन्द से रहने लगा। शिव जी की दया से उसकी दरिद्रता दूर हो गई।

घर में नहीं रखना चाहिए ऐसी बंद या खराब चीज, क्योंकि...
कई बार हम पूरी मेहनत के बाद भी असफल हो जाते हैं। कुछ लोगों के घर-परिवार में सब कुछ अच्छा होते हुए भी सुख नहीं मिल पाता ऐसे में संभवत: उस घर में कोई दोष हो सकता है। इस दोष की वजह से ही परिवार को खुशियां प्राप्त नहीं हो पाती है।

कुछ सामान्य सी ऐसी बातें हैं जिन पर ध्यान नहीं दिया जाता लेकिन इनके दुष्परिणाम काफी अधिक रहते हैं। घर में रखी हर वस्तु का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। यदि कोई वस्तु नकारात्मक विचार को अधिक बल प्रदान करने वाली होती है तो उसकी वजह से कार्यों में असफलता मिलती है। इसी वजह से ऐसी वस्तुओं को घर से दूर ही रखना चाहिए।

घर में नेगेटिव ऊर्जा को सक्रिय करने वाली चीजों में बंद ताला भी शामिल है। जिस घर में कोई खराब बंद ताला होता है वहां पॉजीटिव विचारों में कमी आती है। परिवार के सदस्यों को नकारात्मकता का सामना करना पड़ता है। किसी भी कार्य में पहले असफलता ही नजर आती है। आत्मविश्वास की कमी हो जाती है। ऐसा माना जाता है कि बंद ताले से व्यक्ति की किस्मत के दरवाजे भी बंद हो जाते हैं। अत: यदि आपके घर में कोई खराब बंद ताला हो तो उसे तुरंत ही हटा दें। अन्यथा बुरे परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।

सामाजिक एकता के प्रतीक संत रविदास की जयंती
हमारे देश में समय-समय पर कई महान संत हुए जिन्होंने समाज को एक नई दिशा दी तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर किया। संत रविदास भी उन्हीं में से एक थे। संत रविदास को ही रैदास के नाम से भी जाना जाता है। इस बार संत रविदास जयंती 7 फरवरी, मंगलवार को है।

संत रविदास ने साधु-सन्तों की संगति से व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा पाई। जूते बनाने का काम उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। प्रारम्भ से ही रैदास बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव था।

साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। उन्होंने समाज में फैली छुआ-छूत, ऊँच-नीच आदि सामाजिक बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। संत रविदास की भक्ति से प्रभावित भक्तों की एक लंबी श्रृंखला है। संत रविदास के आदर्शों और उपदेशों को मानने वाले 'रैदास पंथी' कहलाते हैं। रविदास के पद, नारद भक्ति सूत्र और रविदास की बानी उनके प्रमुख संग्रह हैं।

सोमवार को पहनना चाहिए सफेद शर्ट, क्योंकि...
सोमवार को सफेद रंग के कपड़े पहनना चाहिए, इसके पीछे ज्योतिष के कई कारण हैं। ज्योतिष के अनुसार सफेद रंग चंद्र से संबंधित है। चंद्र किसी भी व्यक्ति को रचनात्मक यानि क्रिएटिव दिमाग दे सकता है।

जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में चंद्र अच्छी स्थिति में हो तो सामान्यत: ऐसा इंसान अपने कार्यों को कलात्मक ढंग से करने वाला होता है। चंद्र को मन का स्वामी माना जाता है अत: चंद्र की शुभ-अशुभ स्थिति का सीधा प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ता है। कुंडली में कमजोर या अशुभ स्थिति वाला चंद्र व्यक्ति को बुद्धि संबंधी परेशानियों में डाल देता है।

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र अशुभ है, नीच है, क्रूर या पाप ग्रह की दृष्टि से युक्त है या पाप ग्रह के साथ स्थित है तो चंद्र संबंधी उपचार किए जाने चाहिए। चंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय है सफेद रंग का उपयोग करना।

ज्योतिष के अनुसार सोमवार शिवजी के साथ ही चंद्र की आराधना का भी दिन माना जाता है। अत: इस दिन चंद्र से अच्छे फल प्राप्त करने के लिए सफेद रंग की ड्रेस कम से कम प्रति सोमवार धारण करें। ऐसा करने पर चंद्र से शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। इसके साथ हर सोमवार के दिन शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाएं। इसके साथ सफेद पुष्प अर्पित करें। मिठाई का भोग लगाएं। इस प्रकार आप चंद्र से शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं। चंद्र आपके पक्ष में होगा तो आपका दिमाग कार्यों में नए-नए कलात्मक ढंग से करने के लिए प्रेरित करेगा।

हर पूर्णिमा तिथि पर रखें ये 3 सावधानियां
हिन्दू पंचांग के हर माह की पूर्णिमा तिथि यानी जब चंद्रमा पूर्ण कलाओ के साथ प्रकट होता है, पर भगवान विष्णु की पूजा, स्नान व दान सभी सांसारिक कामनाओं को पूरा करने के साथ-साथ पापों का नाश करने वाला माना गया है। खासतौर पर साल की सभी पूर्णिमा तिथियों में माघ माह की पूर्णिमा तिथि सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु स्वयं क्षीरसागर में निवास करते हैं।

शास्त्रों में गंगा को क्षीरसागर भी पुकारा गया है। इसलिए इस पुण्य तिथि पर गंगा स्नान कर दान, पूजा विष्णु कृपा से भरपूर सुख-वैभव देने वाली होती है। किंतु शास्त्रों में सुख-शांति की ऐसी कामनापूर्ति के लिए विष्णु या देव पूजा करने पर कुछ जरूरी सावधानियां रखना भी जरूरी माना गया है, जिनका पालन न करना पूजा विधान के प्रतिकूल और फल प्राप्ति में बाधक माना गया है।

जानिए, शुभ फलों के लिये किन 3 सावधानियां रखें -

- स्नान के बाद अग्रि की गर्माहट या ताप न लें।

- शास्त्रों में पितरों को विष्णु का ही स्वरूप माना गया है। इसलिए इस दिन विष्णु व पितृ पूजा में मूली का चढ़ावा निषेध माना गया है।

- व्रत-उपवास करने या न करने पर भी भोजन में मूली का आहार न लें।

इन बातों का व्यावहारिक पक्ष समझें तो यह माघी पूर्णिमा का काल मौसम के बदलाव से भी जुड़ा होता है, जिनमें वात, पित्त, कफ में दोष से बचने व मौसमी संक्रमण से बचने के लिए इन वातकारक पदार्थों व शीत-गर्मी के विपरीत प्रभावों से बचने के लिए इस तरह की सावधानियों पर धर्म-कर्मों के जरिए जोर दिया गया है।

खाना खाने से पहले जरूर करें ये एक काम, क्योंकि...
भोजन या खाना हमें जीवित रखता है, ऊर्जावान बनाए रखता है, स्वस्थ रखता है लेकिन भोजन दूषित हो तो इसके कई बुरे प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं। इसी वजह से हमें कैसा भोजन खाना चाहिए और कैसा नहीं? और खाना खाते समय क्या-क्या करना चाहिए? इस संबंध में कई नियम बताए गए हैं। खाना खाते समय बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार भोजन को भी पूजनीय माना गया है इसी वजह से खाने से पहले भोजन को प्रणाम किया जाता है। फिर अन्न देवता से प्रार्थना करनी चाहिए। अपने इष्टदेव का ध्यान करते हुए पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए उन्हें धन्यवाद देना चाहिए। इसके साथ किसी दिव्य मंत्र का जप करना चाहिए।

वैसे तो शास्त्रों में कई भोजन मंत्र बताए गए हैं जिन्हें खाना खाने से पहले बोला जाता है। इनके अतिरिक्त हम गायत्री मंत्र, ऊँ नम: शिवाय जैसे सामान्य मंत्र भी बोलकर भोजन कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन मंत्रों के प्रभाव से हमें हमेशा ही भोजन मिलता रहता है और देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है।

मंत्रों की शक्ति से हम सभी भलीभांति परिचित हैं। भोजन से पहले मंत्र बोलने पर व्यक्ति को भूख अच्छे से लगती है, खाना पचने में कोई समस्या नहीं होती है। साथ ही मंत्रों की शक्ति से भोजन से असीम ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

तुलसी का ऐसा पौधा घर में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि...
अधिकांश हिंदू घरों में तुलसी का पौधा अवश्य ही होता है। तुलसी घर के आंगन में लगाने की प्रथा हजारों साल पुरानी है। तुलसी को देवी का रूप माना जाता है। साथ ही मान्यता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती और अन्य बुराइयां भी घर और घरवालों से दूर ही रहती है।

तुलसी का पौधा होने से घर का वातावरण पूरी तरह पवित्र और कीटाणुओं से मुक्त रहता है। कभी-कभी किसी कारण से यह पौध सूख भी जाता है ऐसे में इसे घर में नहीं रखना चाहिए बल्कि इसे किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करके दूसरा तुलसी का पौधा लगा लेना चाहिए। सुखा हुआ तुलसी का पौधा घर में रखना कई परिस्थितियों में अशुभ माना जाता है। इससे विपरित परिणाम भी प्राप्त हो सकते हैं। घर की बरकत पर बुरा असर पड़ सकता है। इसी वजह से घर में हमेशा पूरी तरह स्वस्थ तुलसी का पौधा ही लगाया जाना चाहिए।

तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बुटि के समान माना जाता है। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। तुलसी का पौधा घर में रहने से उसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है और हवा में मौजूद बीमारी के बैक्टेरिया आदि को नष्ट कर देती है। तुलसी की सुंगध हमें श्वास संबंधी कई रोगों से बचाती है। साथ ही तुलसी की एक पत्ती रोज सेवन करने से हमें कभी बुखार नहीं आएगा और इस तरह के सभी रोग हमसे सदा दूर रहते हैं। तुलसी की पत्ती खाने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है।

ये परंपरा थी सबसे दर्दनाक, जिंदा पत्नी को पति के शव के साथ जला देते थे...
भारत में प्राचीन काल से ही कई प्रथाएं चली आ रही हैं। कुछ परंपराएं हमारे कल्याण, सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी करती हैं, ऐसी परंपराएं आज भी प्रचलित हैं जबकि कुछ कुरीतियां समझी जाने वाली प्रथाएं बंद करा दी गई।

प्राचीन भारत में एक कुप्रथा प्रचलित थी कि पति की मृत्यु के बाद पत्नी को भी पति के शव के साथ दाहसंस्कार में जिंदा ही बैठा दिया जाता था। इस प्रकार विधवा स्त्री को अपने प्राण देना पड़ते थे। इस परंपरा को सती प्रथा के नाम से जाना जाता है। उस समय जीवित विधवा स्त्री को समाज में मान-सम्मान प्राप्त नहीं होता था।

शास्त्रों के अनुसार जब माता सती अपने पिता प्रजापति के दक्ष के यहां हवन कुंड में कूदकर अपनी प्राण न्यौछावर कर दिए थे। क्योंकि दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किया गया था और माता सती उस अपमान को नहीं सह सकी और आग में कूदकर प्राण त्याग दिए। माता सती के नाम से ही सती प्रथा जुड़ी हुई थी। आज भी सती शब्द का उपयोग पविव्रता स्त्री के लिए किया जाता है।

इस कुप्रथा के चलते लंबे समय तक बड़ी संख्या में विधवा स्त्रियों द्वारा पति के अंतिम संस्कार के समय प्राण त्याग दिए। इस कुरीति को बंद कराने के लिए राजा राममोहन राय ने पहल की। राममोहन राय ने इस अमानवीय प्रथा को बंद कराने के लिए आंदोलन चलाए। यह आंदोलन समाचार पत्रों और जनमंचों के माध्यम से देशभर में चलाया गया। प्रारंभ में राममोहन राय को प्रथा के समर्थकों का क्रोध भी झेलना पड़ा लेकिन अंतत: यह कुप्रथा बंद करा दी गई।

महाशिवरात्रि: जानिए, क्या है शिव के अर्द्ध नारीश्वर स्वरूप का रहस्य
भगवान शंकर ने जगत कल्याण के लिए कई अवतार लिए। उन्हीं में से एक अवतार है अर्द्ध नारीश्वर का। इस अवतार में भगवान शंकर का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा पुरुष का है। भगवान के इस रूप के पीछे वैज्ञानिक कारण भी निहित है।

जीव विज्ञान के अनुसार मनुष्य में 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं। गर्भाधान के समय पुरुष के आधे क्रोमोजोम्स(23) तथा स्त्री के आधे क्रोमोजोम्स(23) मिलकर संतान की उत्पत्ति करते हैं। इन 23-23 क्रोमोजोम्स के मिलन से ही संतान उत्पन्न होती है। अर्थात मनुष्य के शरीर में आधा हिस्सा पुरुष(पिता) तथा आधा स्त्री(माता) का होता है।

हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य स्त्री के बिना पूर्ण नहीं माना जाता क्योंकि वह उसका आधा अंग है। अकेला पुरुष अधूरा है, स्त्री यानी पत्नी के बिना वह संपूर्ण नहीं हो सकता। इसी कारण स्त्री को अर्द्धांगी कहा जाता है। यही शिव के अर्द्ध नारीश्वर स्वरूप का मूल सार है।

घर में रखनी चाहिए बांसुरी, क्योंकि...
घर में सुख-समृद्धि बनी रहे इसके लिए सभी कई प्रकार के उपाय करते हैं। कुछ उपाय धर्म से संबंधित होते हैं तो कुछ ज्योतिष के और कुछ वास्तु से संबंधित। इन सभी उपायों को अपनाने से संभवत: घर से नेगेटिव ऊर्जा दूर हो जाती है। यदि आपके घर में कुछ नेगेटिव हो रहा है तो यह परंपरागत उपाय अपनाएं।

पुराने समय से ही घर में सुख-समृद्धि और धन की पूर्ति बनाए रखने के लिए एक सटीक परंपरागत उपाय अपनाया जाता रहा है। यह उपाय है घर में बांसूरी रखना। जिस घर में बांसुरी रखी होती है वहां के लोगों में परस्पर तो बना रहता है साथ ही श्रीकृष्ण की कृपा से सभी दुख और पैसों की तंगी भी दूर हो जाती है।

शास्त्रों के अनुसार बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। वे सदा ही इसे अपने साथ ही रखते हैं। इसी वजह से इसे बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना जाता है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण जब भी बांसुरी बजाते तो सभी गोपियां प्रेम वश प्रभु के समक्ष जा पहुंचती थीं। बांसुरी से निकलने वाला स्वर प्रेम बरसाने वाला ही है। इसी वजह से जिस घर में बांसुरी रखी होती है वहां प्रेम और धन की कोई कमी नहीं रहती है।

सामान्यत: घर में बांस की हुई बांसुरी ही रखना चाहिए। वास्तु के अनुसार इस बांसूरी से घर के वातावरण में मौजूद समस्त नेगेटिव एनर्जी समाप्त हो जाती है और सकारात्मक ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। परिवार के सदस्यों के विचार सकारात्मक होते हैं जिससे उन्हें सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

क्यों हैं भगवान शंकर की तीन आंखें?
भगवान शिव अपने कर्मों से तो अद्भुत हैं ही; अपने स्वरूप से भी रहस्यमय हैं। भक्त से प्रसन्न हो जाएं तो अपना धाम उसे दे दें और यदि गुस्सा हो जाएं तो उससे उसका धाम छीन लें। शिव अनोखेपन और विचित्रताओं का भंडार हैं। शिव की तीसरी आंख भी ऐसी ही है। धर्म शास्त्रों के अनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं पर शिव की तीन आंखें हैं।

दरअसल शिव की तीसरी आंख प्रतीकात्मक नेत्र है। आंखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में पढऩे वाली मुसीबतों से सावधान करना। जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं; जिन्हें हम अपनी दोनों आंखों से भी नहीं देख पाते। ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराता है।

यह विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस जरुरत है उसे जगाने की। भगवान शिव का तीसरा नेत्र आज्ञाचक्र का स्थान है। यह आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है।

जब घर के आसपास बिल्ली रोते हुए दिखे तो क्या करना चाहिए...
यदि आप किसी जरूरी कार्य के लिए घर से निकल रहे हैं और उसी समय कोई काली बिल्ली रोते हुए दिख जाए तो सावधान हो जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार कई प्रकार के शकुन और अपशकुन बताए गए हैं। सभी का महत्व भविष्य से जुड़ा हुआ है।

प्राचीन काल से ही कई छोटी-छोटी घटनाओं को भविष्य में होने वाली घटनाओं से जोड़ कर देखा जाता रहा है। ये सभी घटनाएं इशारा करती हैं कि आने वाले कल में क्या होने वाला है, कैसा रहेगा हमारा आने वाला कल? इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर शकुन और अपशकुन में छिपे हुए रहते हैं। जिन्हें समझने की आवश्यकता होती है।

शास्त्रों में बिल्ली से जुड़े कई अपशुकन बताए गए हैं। सामान्यत: हमारे घर के आसपास काली बिल्ली नहीं दिखाई देती है लेकिन यह बिल्ली आपको रोते हुए दिख जाए तो यह इशारा है कि आपके साथ कुछ गड़बड़ हो सकती है। अत: सावधान हो जाना चाहिए। यदि घर से निकल रहे हों तो कुछ देर घर में रुके, पानी पीएं और फिर कार्य के लिए निकलना चाहिए।

आजकल शकुन-अपशकुन के संबंध में काफी लोगों का मानना है कि ये बातें केवल अंधविश्वास ही है। वहीं पुराने समय में इन सभी बातों का काफी अधिक महत्व माना जाता था। इसी वजह से वे लोग हर कार्य इन बातों का ध्यान रखते हुए करते थे।

पूजा में ध्यान रखें, शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए हल्दी क्योंकि...
शिवलिंग शिवजी का ही साक्षात रूप माना जाता है। विधि-विधान से शिवलिंग का पूजन करने से शिवजी प्रसन्न होते हैं और साथ ही सभी देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है। सामान्यत: देवी-देवताओं के विधिवत पूजन आदि कार्यों में बहुत सी सामग्रियां शामिल की जाती हैं। इन सामग्रियों में हल्दी भी शामिल की जाती है। हल्दी एक औषधि भी है और हम इसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन में भी किया जाता हैं। धार्मिक कार्यों में भी हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। कई पूजन कार्य हल्दी के बिना पूर्ण नहीं माने जाते।

पूजन में हल्दी गंध और औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। हल्दी शिवजी के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है।
हल्दी का स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी इसीलिए नहीं चढ़ाई जाती है।जलाधारी पर चढ़ाते हैं हल्दी शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए परंतु जलाधारी पर चढ़ाई जानी चाहिए। शिवलिंग दो भागों से मिलकर बनी होती है। एक भाग शिवजी का प्रतीक है और दूसरा हिस्सा माता पार्वती का। शिवलिंग चूंकि पुरुषत्व का प्रतिनिधित्व करता है अत: इस पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। हल्दी स्त्री सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री है और जलाधारी मां पार्वती से संबंधित है अत: इस पर हल्दी जाती है।

शादी से पहले कुंडली मिलान जरुर करें, क्योंकि...
हिंदू धर्म शास्त्रों में हमारे सोलह संस्कार बताए गए हैं। इन संस्कारों में काफी महत्वपूर्ण विवाह संस्कार। शादी को व्यक्ति को दूसरा जन्म भी माना जाता है क्योंकि इसके बाद वर-वधू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इसलिए विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण सावधानियां रखना जरूरी है। विवाह के बाद वर-वधू का जीवन सुखी और खुशियोंभरा हो यही कामना की जाती है।

वर-वधू का जीवन सुखी बना रहे इसके लिए विवाह पूर्व लड़के और लड़की की कुंडली का मिलान कराया जाता है। किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी द्वारा भावी दंपत्ति की कुंडलियों से दोनों के गुण और दोष मिलाए जाते हैं। साथ ही दोनों की पत्रिका में ग्रहों की स्थिति को देखते हुए इनका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा? यह भी सटिक अंदाजा लगाया जाता है। यदि दोनों की कुंडलियां के आधार इनका जीवन सुखी प्रतीत होता है तभी ज्योतिषी विवाह करने की बात कहता है।

कुंडली मिलान से दोनों ही परिवार वर-वधू के बारे काफी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। यदि दोनों में से किसी की भी कुंडली में कोई दोष हो और इस वजह से इनका जीवन सुख-शांति वाला नहीं रहेगा, ऐसा प्रतीत होता है तो ऐसा विवाह नहीं कराया जाना चाहिए।

कुंडली के सही अध्ययन से किसी भी व्यक्ति के सभी गुण-दोष जाने जा सकते हैं। कुंडली में स्थित ग्रहों के आधार पर ही हमारा व्यवहार, आचार-विचार आदि निर्मित होते हैं। उनके भविष्य से जुड़ी बातों की जानकारी प्राप्त की जाती है। कुंडली से ही पता लगाया जाता है कि वर-वधू दोनों भविष्य में एक-दूसरे की सफलता के लिए सहयोगी सिद्ध या नहीं। वर-वधू की कुंडली मिलाने से दोनों के एक साथ भविष्य की संभावित जानकारी प्राप्त हो जाती है इसलिए विवाह से पहले कुंडली मिलान किया जाता है।

विजया एकादशी 17 को, हर संकट पर विजय दिलाता है ये व्रत
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। प्रत्येक एकादशी का अपना एक अलग महत्व है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यह एकादशी अपने अपने नाम के अनुसार ही विजय प्रदान करने वाली है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस बार विजया एकादशी व्रत 17 फरवरी, शुक्रवार को है।

भयंकर शत्रुओं से जब आप घिरे हों और पराजय सामने खड़ी हो उस विकट स्थिति में विजया नामक एकादशी आपको विजय दिलाने की क्षमता रखती है। इस एकादशी के संबंध में पद्म पुराण और स्कन्द पुराण मे अति सुन्दर वर्णन मिलता है । इस एकादशी के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अर्जुन को बताया था। शास्त्रों के अनुसार जब भगवान राम माता सीता की खोज में लंका जा रहे थे तभी मार्ग में सागर के आ जाने के कारण समस्या आ खड़ी हुई। तब भगवान राम सहित पूरी सेना ने विजया एकादशी का व्रत किया था। उसी व्रत के फलस्वरूप उन्होंने सागर पर पुल बनाया और रावण का वध किया।

किसी के भी घर में मुख्य दरवाजे से ही अंदर जाना चाहिए, क्योंकि...
किसी भी परिवार की खुशियां और सुख काफी हद तक घर की वस्तुओं की स्थिति पर निर्भर करता है। वास्तु के अनुसार घर में रखी हर चीज का अपना अलग प्रभाव होता है। साथ ही घर के कमरे, खिड़की और दरवाजे आदि भी अच्छा-बुरा प्रभाव छोड़ते हैं।

घर का मुख्य दरवाजा सही स्थिति में हो तो परिवार के सभी सदस्यों को इसका फायदा मिलता है। सभी के कार्य समय पर पूर्ण होते हैं और पारिवारिक तालमेल बना रहता है। कुछ लोगों के घरों में मुख्य दरवाजे के अतिरिक्त अन्य दरवाजे भी होते हैं जहां से घर में प्रवेश किया जा सकता है। वास्तु के अनुसार ऐसे दरवाजों से किसी व्यक्ति के घर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। घर में प्रवेश हमेशा मुख्य दरवाजे से ही किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर सकारात्मक विचारों का संचार होता है और हमारे बुरे विचार दूर हो जाते हैं।

शास्त्रों के अनुसार सबके घर में प्रवेश का द्वार होता है। अपने या अन्य किसी के घर में प्रवेश सदा प्रवेश द्वार से ही करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि अन्य किसी जगह से प्रवेश करने से गौत्र का नाश होता है। साथ ही जो लोग मुख्य द्वार के अतिरिक्त किसी और द्वार से घर में प्रवेश करते हैं उनकी आर्थिक उन्नति होने में काफी परेशानियां रहती हैं। संतान की वृद्धि उस घर में नहीं होती तथा सदा परेशानी बनी रहती है।

रोज रात को भी लगाना चाहिए मंदिर में दीपक, क्योंकि...
वेद-पुराणों के अनुसार इस सृष्टि का निर्माण भगवान शिव की इच्छा मात्र से ही हुआ है। अत: इनकी भक्ति करने वाले व्यक्ति को संसार की सभी वस्तुएं आसानी से प्राप्त हो जाती हैं। शिवजी अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पलभर में ही पूरी कर देते हैं। नियमित रूप से शिवलिंग का पूजन करने वाले व्यक्ति के जीवन में दुख कम ही महसूस होते हैं।

शिवजी के पूजन से श्रद्धालुओं की धन संबंधी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। शास्त्रों में एक सटीक उपाय बताया गया है जिसे नियमित रूप से अपनाने वाले व्यक्ति अपार धन-संपत्ति प्राप्त हो सकती है। इस उपाय के संबंध में शिवपुराण में एक कथा दी गई है। कथा के अनुसार अतिप्राचीन काल काल में गुणनिधि नामक व्यक्ति बहुत गरीब था और वह भोजन की खोज में लगा हुआ था। इस रात हो गई और वह एक शिव मंदिर में पहुंच गया। गुणनिधि ने सोचा कि उसे रात्रि विश्राम इसी मंदिर में कर लेना चाहिए। रात के समय अत्यधिक अंधेरा वहां हो गया। इस अंधकार को दूर करने के लिए उसने शिव मंदिर में अपनी कमीज जलायी थी। रात्रि के समय भगवान शिव के समक्ष प्रकाश करने के फलस्वरूप से उस व्यक्ति को अगले जन्म में देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव का पद प्राप्त हुआ।

इस कथा के अनुसार ही शाम के समय शिव मंदिर में दीपक लगाने वाले व्यक्ति को अपार धन-संपत्ति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं। अत: नियमित रूप से रात्रि के समय किसी भी शिवलिंग के समक्ष दीपक लगाना चाहिए।

इसलिए वसंत को कहते हैं ऋतुओं का राजा
मौसम प्रकृति के बदलाव का अहसास दिलाता है। हर बदलती हुई ऋतु अपने साथ एक संदेश लेकर आती है। भारत की प्रकृति के अनुसार हमारे यहां छ: ऋतुएं प्रमुख रूप से मानी गई है। हेमंत, शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा व शरद ऋतु। इनमें वसंत को सबका राजा कहा गया है।

वसंत को ऋतुओं को राजा कहने के पीछे कई कारण हैं जैसे- फसल तैयार रहने से उल्लास और खुशी के त्यौहार, मंगल कार्य, विवाह , सुहाना मौसम, आम की मोहनी खुशबू, कोयल की कूक, शीतल मन्द सुरभित हवा, खिलते फूल, मतवाला माहौल, सुहानी शाम, फागुन के मदमस्त करने वाले गीत सब मिलकर अनुकूल समां बाधते है। यही कारण है कि वसंत को ऋतुराज की संज्ञा दी गई है। वसंत की उत्पत्ति के संबंध में धर्मग्रंथों में एक कथा भी है जो इस प्रकार है-

अंधकासुर नाम के राक्षस का वध सिर्फ भगवान शंकर के पुत्र से ही संभव था। तो शिवपुत्र कैसे पैदा हो? इसके लिए शिवजी को कौन तैयार करे? तब कामदेव के कहने पर ब्रह्माजी की योजना के अनुसार वसंत को उत्पन्न किया गया था। कालिका पुराण में वसंत का व्यक्तीकरण करते हुए इसे सुदर्शन, अति आकर्षक, सन्तुलित शरीर वाला, आकर्षक नैन-नक्श वाला, अनेक फूलों से सजा, आम की मंजरियों को हाथ में पकड़े रहने वाला, मतवाले हाथी जैसी चाल वाला आदि सारे ऐसे गुणों से भरपूर बताया है।

पर्स में क्या-क्या नहीं रखना चाहिए...
रुपए या नोटों को सुरक्षित और व्यवस्थित रखने का कार्य हमारे पर्स बखूबी निभाते हें। हर परिस्थिति में आपके नोट पर्स में सही ढंग से रखे रहते हैं। जिससे उनके कटने या फटने का डर नहीं रहता। पर्स में पैसा रखा जाता है अत: इस संबंध में वास्तु द्वारा कई महत्वपूर्ण टिप्स दी गई हैं। जिन्हें अपनाने पर व्यक्ति को भी धन की कमी का एहसास ही नहीं होता है।

हमारे जीवन से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातों का संबंध वास्तु से है। वास्तु शास्त्र हमारे आसपास फैली सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के सिद्धांतों पर कार्य करता है। जो वस्तु नकारात्मक ऊर्जा फैलाती हैं उन्हें हमारे आसपास से हटा देना चाहिए। क्योंकि इनसे हमारे सुख और कमाई पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आय बढ़ाने या फिजूल खर्चों में कमी करने के लिए पर्स का वास्तु भी ठीक करने की आवश्यकता होती है। पर्स में सिक्के और नोट दोनों को ही अलग-अलग स्थानों पर रखना चाहिए। इसके अलावा पर्स में मृत व्यक्तियों के चित्र रखना भी शुभ नहीं माना जाता है। अत: इस प्रकार के चित्रों को भी पर्स में नोटों के साथ नहीं रखें। पर्स में संत-महात्मा के चित्र रखे जा सकते हैं। यदि कोई संत या महात्मा देह त्याग चुके हैं तब भी उनके चित्र या फोटो पर्स रखे जा सकते हैं क्योंकि शास्त्रों के अनुसार देह त्यागने के बाद भी संत-महात्माओं को मृत नहीं माना जाता है। कुछ लोग पर्स में ही चाबियां भी रखते हैं, चाबियां रखना भी अशुभ ही माना जाता है। इन्हें भी रुपए-पैसों से अलग ही रखना शुभ रहता है। पर्स में नोट या सिक्कों के साथ खाने की चीजें भी नहीं रखना चाहिए।

वास्तु के अनुसार पर्स में ऐसे वस्तुएं हरगिज न रखें जो नकारात्मक ऊर्जा को संचारित करती हैं। पर्स में किसी भी प्रकार के बिल या भुगतान से संबंधित कागज नहीं रखने चाहिए। इसके लिए पर्स में किसी भी प्रकार की अपवित्र वस्तु भी न रखें। जो वस्तुएं फिजूल हैं, जिनका कोई उपयोग नहीं है उन वस्तुएं तुरंत ही पर्स से बाहर कर दें। इनके अतिरिक्त पर्स में धार्मिक और पवित्र वस्तुएं रखें, जिनसे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और जिन्हें देखकर हमारा मन प्रसन्न होता है।

महीने में दो दिन कब और क्यों बिना खाना खाए रहना चाहिए?
क्या आप जानते हैं हमारे जीवन का पहला सुख क्या है? शास्त्रों और विद्वानों के अनुसार पहला सुख निरोगी काया को बताया गया है। निरोगी काया का अर्थ है स्वस्थ शरीर। यदि किसी व्यक्ति का शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो वह दुनिया के किसी भी सुख को नहीं भोग सकता। हमारे जीवन के समस्त सुखों का आनंद प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि हमारा शरीर पूरी तरह से निरोगी रहे। शास्त्रों के अनुसार शरीर को बीमारियों से दूर रखने के लिए कई उपाय बताए गए हैं इन्हीं उपायों में से एक है व्रत-उपवास।

अधिकांश बीमारियां खाने-पीने की वस्तुओं और पेट से संबंधित होती है, अत: इन बातों की विशेष ध्यान देने आवश्कता होती है। यदि हमारा पाचन तंत्र व्यस्थित और स्वस्थ रहेगा तो काफी हद तक हम बीमारियों पर रोक लगा सकते हैं। पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है कि हम एक महीने में कम से कम दो बिना खाना खाए रहें। इसी बात का ध्यान रखते हुए प्राचीन काल से ही व्रत-उपवास रखने की परंपरा बनाई गई है। ताकि व्यक्ति व्रत-उपवास के नाम पर शरीर के पाचन तंत्र को आराम दे।

व्रत-उपवास का धार्मिक महत्व भी है। व्रत का अर्थ है संकल्प या दृढ़ निश्चय तथा उपवास का अर्थ ईश्वर या इष्टदेव के समीप बैठना भारतीय संस्कृति में व्रत तथा उपवास का इतना अधिक महत्व है कि हर दिन कोई न कोई उपवास या व्रत होता ही है। सभी धर्मों में व्रत उपवास की आवश्यकता बताई गई है। इसलिए हर व्यक्ति अपने धर्म परंपरा के अनुसार उपवास या व्रत करता ही है। वास्तव में व्रत उपवास का संबंध हमारे शारीरिक एवं मानसिक शुद्धिकरण से है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ रहता है।

कब करें व्रत-उपवास- हर महीने दो एकादशी रहती हैं, शास्त्रों के अनुसार एकादशी का व्रत अक्षय पुण्य प्रदान करता है। अत: हर माह में दोनों ही एकादशी का व्रत करना चाहिए। अर्थात् इन दो दिनों में बिना खाना खाए रहना चाहिए। फलाहार किया जा सकता है। इसके अलावा प्रति रविवार को बिना नमक का खाना खाएंगे तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी रहेगा। किसी-किसी दिन दूध और फलाहार करके भी रहना चाहिए।

व्रत उपवास से शरीर स्वस्थ रहता है। निराहार रहने, एक समय भोजन लेने अथवा केवल फलाहार से पाचनतंत्र को आराम मिलता है। इससे कब्ज, गैस, एसिडीटी अजीर्ण, अरूचि, सिरदर्द, बुखार, आदि रोगों का नाश होता है। आध्यत्मिक शक्ति बढ़ती है। ज्ञान, विचार, पवित्रता बुद्धि का विकास होता है। इसी कारण उपवास व्रत को पूजा पद्धति को शामिल किया गया है।

किन लोगों को व्रत-उपवास नहीं करना चाहिए- सन्यासी, बालक, रोगी, गर्भवती स्त्री, वृद्धों को उपवास करने पर छूट प्राप्त है।

रात में घर के मंदिर को ढंक कर रखना चाहिए, क्योंकि...
सुबह-सुबह घर के मंदिर में विराजित भगवान के दर्शन मात्र से हमारा दिन शुभ हो जाता है। साथ ही दिनभर सकारात्मक विचारों का प्रवाह बना रहता है। कार्यों में आ रही बाधाएं स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार मंदिर के आसपास का वातावरण बहुत ही संवेदनशील होता है। मंदिर में स्थित भगवान घर में होने वाली हर छोटी-बड़ी घटना को प्रभावित करते हैं। इसी वजह से जाने-अनजाने हमारे द्वारा यदि कोई गलत कार्य हो जाता है तो हमें उसके बुरे प्रभाव झेलना पड़ते हैं।

ऐसा माना जाता है भगवान हर पल जागृत अवस्था में ही रहते हैं लेकिन रात के समय उन्हें प्रतिकात्मक रूप से विश्राम कराया जाना चाहिए। इसके लिए कुछ नियम बताए गए हैं। जिस प्रकार दिनभर के कार्य के बाद हमें थकान होती है और रात में विश्राम करने के बाद अगले दिन फिर से तरोताजा हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार प्रतिकात्मक रूप से रात के समय भगवान को विश्राम कराया जाना चाहिए। इसके लिए रात के समय घर के मंदिर को पर्दे से ढंक देना चाहिए।

वैसे तो घर में भगवान का कक्ष या मंदिर अलग ही होना चाहिए लेकिन कुछ घरों में पर्याप्त जगह न होने के कारण भगवान को कमरे में या कीचन में ही विराजित किया जाता है। ऐसे में रात के समय मंदिर को ढंक देने से भगवान भी विश्राम की अवस्था में आ जाते हैं। ऐसा माना जाता है। इस संबंध में ध्यान रखने वाली बात यह है कि पति-पत्नी के कमरे में भगवान को विराजित नहीं करना चाहिए। यह अशुभ माना जाता है। बेडरूम में श्रीकृष्ण और राधा का चित्र अवश्य लगाया जा सकता है।

हनुमान चालीसा में चालीस दोहे ही क्यों हैं?
श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी हमेशा से ही सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि हनुमान चालिसा में चालीस ही दोहे क्यों हैं?

केवल हनुमान चालीसा ही नहीं सभी देवी-देवताओं की प्रमुख स्तुतियों में चालिस ही दोहे होते हैं? विद्वानों के अनुसार चालीसा यानि चालीस, संख्या चालीस, हमारे देवी-देवीताओं की स्तुतियों में चालीस स्तुतियां ही सम्मिलित की जाती है। जैसे श्री हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा आदि। इन स्तुतियों में चालीस दोहे ही क्यों होती है? इसका धार्मिक दृष्टिकोण है। इन चालीस स्तुतियों में संबंधित देवता के चरित्र, शक्ति, कार्य एवं महिमा का वर्णन होता है। चालीस चौपाइयां हमारे जीवन की संपूर्णता का प्रतीक हैं, इनकी संख्या चालीस इसलिए निर्धारित की गई है क्योंकि मनुष्य जीवन 24 तत्वों से निर्मित है और संपूर्ण जीवनकाल में इसके लिए कुल 16 संस्कार निर्धारित किए गए हैं। इन दोनों का योग 40 होता है। इन 24 तत्वों में 5 ज्ञानेंद्रिय, 5 कर्मेंद्रिय, 5 महाभूत, 5 तन्मात्रा, 4 अन्त:करण शामिल है।

सोलह संस्कार इस प्रकार है-
1. गर्भाधान संस्कार

2. पुंसवन संस्कार

3. सीमन्तोन्नयन संस्कार

4. जातकर्म संस्कार

5. नामकरण संस्कार

6. निष्क्रमण संस्कार

7. अन्नप्राशन संस्कार

8. चूड़ाकर्म संस्कार

9. विद्यारम्भ संस्कार

10. कर्णवेध संस्कार

11. यज्ञोपवीत संस्कार

12. वेदारम्भ संस्कार

13. केशान्त संस्कार

14. समावर्तन संस्कार

15. पाणिग्रहण संस्कार

16. अन्त्येष्टि संस्कार

भगवान की इन स्तुतियों में हम उनसे इन तत्वों और संस्कारों का बखान तो करते ही हैं, साथ ही चालीसा स्तुति से जीवन में हुए दोषों की क्षमायाचना भी करते हैं। इन चालीस चौपाइयों में सोलह संस्कार एवं 24 तत्वों का भी समावेश होता है। जिसकी वजह से जीवन की उत्पत्ति है।

घर में हमेशा ध्यना रखना चाहिए ये जरुरी बात, क्योंकि...
आज के समय में ज्यादा से पैसा या धन कमाने की इच्छा सामान्यत: सभी की है। इसी वजह से लोग कड़ी मेहनत करते हैं। ज्यादा पैसा कमाने के लिए जहां मेहनत और भाग्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं वहीं आपके घर का वास्तु भी कार्य करता है। यदि घर में कोई वास्तु दोष है तो अधिक पैसा कमाने बनाने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि घर में नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय रहेगी तो वहां रहने वाले लोगों को मानसिक तनाव के साथ ही धन संबंधी परेशानियां झेलना पड़ती है। नेगेटिव एनर्जी से हमारे विचार और सोच भी नकारात्मक हो जाती है। जिससे कार्यों में सफलता प्राप्त होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती है। ऐसे में जरूरी है कि हमारे आसपास फैली नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा को सक्रिय किया जाए। घर में पॉजिटिव माहौल बनाने के लिए सबसे अच्छा ऊपाय है घर को सुगंधित बनाया जाए। घर में ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे कमरे, कीचन, हॉल आदि का वातावरण महकने लगे। इसके लिए आप अगरबत्ती, इत्र, परफ्यूम आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं।

यदि आपके घर में शीत की वजह से अथवा अन्य किसी कारण से बदबू आती है तो इस संबंध तुरंत कोई उपाय करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जिस स्थान पर गंदगी या दुर्गंध रहती है उस स्थान धन की देवी महालक्ष्मी, सहित सभी देवी-देवता छोड़ देते हैं। वहां दरिद्रता और बुरी शक्तियां सक्रिय हो जाती है। इसी वजह से घर में सफाई रखनी चाहिए और वातावरण सुगंधित होना चाहिए। जहां सुगंध होती है वहां सकारात्मक ऊर्जा रहती है और वहीं महालक्ष्मी का वास होता है।

चमत्कारी हैं ये इस पेड़ के पत्ते, ध्यान रखें इसे तोडऩे से पहले ये बातें...
शास्त्रों के अनुसार तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सर्वश्रेष्ठ महेश अर्थात् शिव को कई प्रकार की पूजन सामग्री अर्पित की जाती हैं। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामग्रियों में फूल और पत्तियां भी शामिल हैं। भोलेनाथ को बिल्व पत्र चढ़ाने का विधान है। ऐसा माना जाता है मात्र बिल्व के पेड़ पत्तियां चढ़ाने से महादेव भक्त से प्रसन्न हो जाते हैं। इसी वजह से इन बिल्व पत्रों को चमत्कारिक माना जाता है।

भोलेनाथ को प्रतिदिन बिल्व चढ़ाने से भक्त को सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। बिल्व पत्र अर्पण करने से शिव का सामिप्य प्राप्त होता है। अर्थात् भक्त शिव निकट पहुंच जाता है। इन पत्तों का इतना अधिक महत्व होने के कारण ही शास्त्रों में इसके लिए कई प्रकार के नियम बनाए गए हैं। कुछ दिन और तिथियां बताई गई हैं जब इन पत्तों को नहीं तोडऩा चाहिए।

किसी भी माह की अष्टमी, चर्तुदशी, अमावस्या, पूर्णिमा तिथि पर बिल्व पत्र नहीं तोडऩा चाहिए। इसके अलावा सोमवार को बिल्व पत्र नहीं तोडऩा चाहिए। सोमवार शिव का प्रिय दिवस होता हैं। इन तिथियों और दिन पर बिल्व के पत्ते नहीं तोड़े जाने चाहिए अत: एक दिन पहले ही तोड़े हुए बिल्व पत्र पूजन में उपयोग लेना चाहिए। किसी भी दिन और तिथि पर खरीदकर लाया हुआ बिल्वपत्र हमेशा ही पूजन में शामिल किया जा सकता है।

कौन सा चमत्कारी रुद्राक्ष क्यों और कैसे धारण करना चाहिए?
शिव पुराण के अनुसार शिवजी ने ही इस सृष्टि का निर्माण ब्रह्माजी द्वारा करवाया है। इसी वजह से हर युग में सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए शिवजी का पूजन सर्वश्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है। इसके साथ शिवजी के प्रतीक रुद्राक्ष को मात्र धारण करने से ही भक्त के सभी दुख दूर हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

रुद्राक्ष कई प्रकार के रहते हैं। सभी का अलग-अलग महत्व होता है। अधिकांश भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं। इन्हें धारण करने के लिए कई प्रकार के नियम बताए गए हैं, नियमों का पालन करते हुए रुद्राक्ष धारण करने पर बहुत जल्द सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगते हैं। रुद्राक्ष धारण करने से पूर्व इनका विधिवत पूजन किया जाना चाहिए इसके बाद मंत्र जप करते हुए इन्हें धारण किया जा सकता है।

एक मुखी रुद्राक्ष, दोमुखी रुद्राक्ष, तीन मुखी रुद्राक्ष, चार मुखी रुद्राक्ष या पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। सामान्यतया पंचमुखी रुद्राक्ष आसानी से उपलब्ध हो जाता है। जानिए कौन सा रुद्राक्ष क्यों और किस मंत्र के साथ धारण करें-

एक मुखी रुद्राक्ष- जिन लोगों को लक्ष्मी कृपा चाहिए और सभी सुख-सुविधाएं चालिए उन्हें ये रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। इस रुद्राक्ष का मंत्र -ऊँ ह्रीं नम:।।

दो मुखी- सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति के इसे धारण करना चाहिए। इसका मंत्र है। -ऊँ नम:।।

तीन मुखी- जिन लोगों को विद्या प्राप्ति की अभिलाषा है उन्हें मंत्र (ऊँ क्लीं नम:) के साथ तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

चार मुखी- इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले भक्त को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसका मंत्र-ऊँ ह्रीं नम:।।

पांच मुखी- जिन भक्तों को सभी परेशानियों से मुक्ति चाहिए और मनोवांछित फल प्राप्त करने की इच्छा है उन्हें पंच मुखी धारण करना चाहिए। इसका मंत्र है - ऊँ ह्रीं नम:।।

होली से जुड़ी हैं दुर्लभ परंपराएं और कथाएं...
होलिका दहन पर्व के कई मत, मतांतर हैं। इसे मुख्य रूप से हिरण्य कश्यप की बहन होलिका के दहन का दिन माना जाता है, वहीं शास्त्रों में कई तरह के मत दिए गए हैं। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक आठ दिन होलाष्टक के बाद होलिका दहन की परंपरा है। प्राचीन समय से पंरपरा है कि खेत से नव अन्न को यज्ञ हवन किया जाता है, यह परंपरा गांवों में अभी भी प्रचलित है।

सामान्यत: रंगों को इस त्यौहार के संबंध में भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन की कथा प्रचलित है। इसके साथ ही होली से कई मान्यताएं प्रचलित हैं-

शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दौरान मानव मन-मस्तिष्क में काम भाव रहता है। भगवान शंकर द्वारा क्रोधाग्नि से काम दहन किया गया था, तभी से होलिका दहन की शुरुआत होना भी माना गया है।

एक अन्य कथा के अनुसार होलिका दहन पर्व को राजा हिरण्य कश्यप की बहन होलिका की याद में भी मनाया जाता है। होलिका को अग्नि स्नान कर सकने का वरदान था, जिसने भक्त प्रहलाद को गोद में बैठाकर अग्नि स्नान किया था। इसमें प्रहलाद का बचना और होलिका का जलना एक पर्व का रूप बन गया।

होली इस पर्व के पीछे वैज्ञानिक कारण भी मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है कि अभी सर्दी जाने और गर्मी आने के दिन हैं। ऐसे में सर्द गर्म (शीत ज्वर) से अधिकाधिक लोगों के स्वास्थ्य खराब होते हैं। इसी के निवारणार्थ वातावरण में गर्मी लाने के लिए होलिका दहन किए जाते हैं।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन आम्र मंजरी, चंदन का लेप लगाने व उसका पान करने, गोविंद पुरुषोत्तम के हिंडोलने में दर्शन करने से वैकुंठ में स्थान मिलना माना गया है। भविष्य पुराण में बताया गया कि नारद ने युधिष्ठिर से कहा कि इस दिन अभय दान देने व होलिका दहन करने से अनिष्ठ दूर होते हैं।

इस तंत्र क्रिया से कोई भी बन सकता है आपका गुलाम!
तंत्र शास्त्र के अतंर्गत कई क्रियाएं की जाती हैं जिसके माध्यम से असंभव कार्य भी संभव हो सकते हैं। जैसे- आकर्षण कर्म, पुष्टि कर्म, शांति कर्म, स्तंभन कर्म, मारण कर्म आदि। इन सभी तांत्रिक क्रियाओं का उद्देश्य भिन्न-भिन्न होता है तथा तरीका भी।

तंत्र शास्त्र के ही अतंर्गत जृंभण कर्म भी किया जाता है। यह वह तंत्र क्रिया है जिसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति का अपना मानसिक दास बनाया जा सकता है। जिस व्यक्ति पर यह क्रिया की जाती है वह साधक की इच्छानुसार काम करता है। यहां तक कि अपने घर का धन भी वह व्यक्ति साधक को अर्पित कर सकता है। वैसे इस क्रिया का मुख्य उद्देश्य धन-वैभव पाना नहीं है अपितु अपने काम करवाने के लिए किसी व्यक्ति को अपना दास बनाना होता है।

जिस किसी पर भी जृंभण कर्म किया जाता है वह अपने आप को भुलकर सिर्फ साधक की इच्छा के अनुसार कार्य करता है। इस अवस्था में उसे अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित, संभव-असंभव, पीड़ा, दु:ख या अच्छे-बुरे का भी भान नहीं रहता। उसमें आज्ञा पालन की इच्छा बहुत प्रबल होती है। तंत्र शास्त्र में इस क्रिया को बहुत ही घृणित माना गया है।

भगवान को सोना क्यों चढ़ाया जाता हैं?
सामान्यत: भगवान के कई ऐसे भक्त हैं जो उन्हें सोने के आभूषण अर्पित करते हैं। यह परंपरा काफी प्राचीन समय से चली आ रही है। शास्त्रों के अनुसार इसके पीछे भी कई धार्मिक कारण हैं।

वेद-पुराण में बताया गया है कि देवी-देवता पर आभूषण चढ़ाए जाने का विशेष महत्व है। पूजा में स्वर्ण आभूषण ही चढ़ाए जाना चाहिए। यह धन, संपदा तथा सौंदर्य का प्रतीक है। ऐसा क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर यही है कि स्वर्ण को आत्मा का प्रतीक माना गया है। जिस तरह आत्मा अजर-अमर शुद्ध है, उसी प्रकार स्वर्ण हर काल में शुद्ध है। अत: इस प्रथा के पीछे भाव यही है कि हम आभूषण के रूप में अपनी आत्मा को देवता के चरणों में समर्पित कर रहे हैं। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। स्वर्ण को पहनने एवं छूने से शरीर में तेज की वृद्धि होती है, चर्म रोग नहीं होते तथा शरीर में चमक बनी रहती है। स्वर्ण धाक, स्वर्णभस्म, शक्तिवर्धक टॉनिक एवं औषधियों में प्रयोग होती है। श्वास, कफ, नपुसंकता, शीघ्र वीर्यपात, टीबी, आदि रोगों को दूर करने में यह प्रयोग होती है।

ऐसी मान्यता है कि जिस घर में स्वर्ण होता है। वहां लक्ष्मी का वास होता है। धन, धान्य का अभाव नहीं रहता। स्वर्णाभूषण पहनने वाली महिला के पास दरिद्रता नहीं आती। जिस तरह स्वर्ण मूल्यवान है। हमारा शरीर भी मूल्यवान है। स्वर्ण की तरह मूल्यवान हमारा यह शरीर भगवान को समर्पित हो यही भावना रहती है। स्वर्ण को छूते ही शरीर में सुरक्षा तेज स्वास्थ्य की वृद्धि होती है।

आमलकी एकादशी 4 को, करें आंवला वृक्ष का पूजन
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली है। इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। इस दिन विशेष रूप से आंवला वृक्ष की पूजा की जाती है। इस बार यह एकादशी 4 मार्च, रविवार को है।

आमलकी यानी आंवला को हिंदू धर्म शास्त्रों में उसी प्रकार श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है जैसा नदियों में गंगा को प्राप्त है और देवों में भगवान विष्णु को। मान्यता के अनुसार विष्णुजी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। आमलकी एकादशी के दिन आंवला वृक्ष का स्पर्श करने से दुगुना व इसके फल खाने से तिगुना पुण्य प्राप्त होता है। आंवला वृक्ष के मूल भाग में विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, तने में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुदगण और फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं।

भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है।

आमलकी एकादशी: इस विधि से करें व्रत
फाल्गुन माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी 4 मार्च, रविवार को है। आमलकी एकादशी का व्रत इस प्रकार करें-

व्रती (व्रत रखने वाला) को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए तथा आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें। नीचे लिखे मंत्र से संकल्प लेना चाहिए-

मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपपातकदुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीति कामनायै आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये।

संकल्प के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की पूजा करें। भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें। सबसे पहले वृक्ष के चारों की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें। पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें। इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें। कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें। इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप जलाकर रखें।

कलश पर श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।

अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुरामजी की पूजा करें। रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें। द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें। इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें।

अमीर होना है तो हर शनिवार घर में जरूर करें ये खास काम, क्योंकि...
शास्त्रों के अनुसार हमारे घर में कई ऐसे कार्य हैं जिनका प्रभाव सीधे-सीधे परिवार की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है। निर्धारित नियमों के अनुसार वे कार्य किए जाए तो घर में सदैव महालक्ष्मी का वास रहता है। परिवार के सदस्यों को पैसों की कमी नहीं रहती है और सभी सुख सुविधाएं प्राप्त होती हैं। ऐसे ही कार्यों में से एक कार्य है साफ-सफाई।

वैसे तो प्रतिदिन घरों में साफ-सफाई अवश्य की जानी चाहिए। घर में किसी भी प्रकार की गंदगी का हमारी सेहत पर तो बुरा प्रभाव पड़ता है साथ ही इससे वास्तु दोष भी उत्पन्न होता है। अत: घर हमेशा एकदम साफ रखना चाहिए। यदि प्रतिदिन पूरे घर की ठीक से साफ-सफाई न हो सके तो कम से कम हर शनिवार को घर का कोना-कोना गंदगी, धूल-मिट्टी मुक्त हो जाना चाहिए।

शनिवार के दिन घर की साफ-सफाई होने के विशेष फल प्राप्त होते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनिवार शनि देव का दिन माना गया है। शनि की प्रसन्नता के लिए ये बात भी बहुत जरूरी है कि घर एकदम साफ रखा जाए। शनिवार को घर से दरिद्रता रूपी गंदगी को बाहर किया जाए तो महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। महालक्ष्मी ऐसे घर में कभी निवास नहीं करती हैं जहां किसी भी प्रकार की गंदगी हो, धूल-मिट्टी हो या नियमित रूप से साफ-सफाई न होती हो।

प्रदोष व्रत में करें शिव का पूजन, सफल हो जाएगा जीवन
भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। जब त्रयोदशी सोमवार को आती है तो सोम प्रदोष व्रत किया जाता है। सोमवार तथा त्रयोदशी तिथि का संयोग बहुत ही विशेष फलदाई होता है। अनेक धर्मग्रंथों में इसकी महिमा का वर्णन किया गया है।

पंचांग भेद के कारण इस बार सोम प्रदोष (5 मार्च) तथा मंगल प्रदोष(6 मार्च) का योग बन रहा है। भक्त इन दोनों में से किसी भी दिन प्रदोष व्रत कर सकते हैं। इसकी विधि एक समान रहेगी। प्रदोष व्रत के पालन के लिए शास्त्रोक्त विधान इस प्रकार है। किसी विद्वान ब्राह्मण से यह कार्य कराना श्रेष्ठ होता है।

विधि

- प्रदोष व्रत में बिना जल पीए व्रत रखना होता है। सुबह स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची भगवान को चढ़ाए जाते हैं।

- शाम के समय फिर से स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करना चाहिए। शिवजी का षोडशोपचार पूजा करें। जिसमें भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजा की जाती है।

- भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं।

- आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। आठ बार दीपक रखते समय प्रणाम करें। शिव आरती करें। शिव स्त्रोत, मंत्र जप करें ।

- रात्रि में जागरण करें।

इस प्रकार समस्त मनोरथ पूर्ति और कष्टों से मुक्ति के लिए व्रती को प्रदोष व्रत के धार्मिक विधान का नियम और संयम से पालन करना चाहिए।

कथा: सोम प्रदोष व्रत करने से हर मनोकामना पूरी होती है
भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत करने के विधान हमारे धर्म ग्रंथों में है। विभिन्न वारों के साथ यह व्रत विभिन्न योग भी बनाता है। इन सभी में सोम प्रदोष व्रत का महत्व सर्वाधिक है क्योंकि शास्त्रों में सोमवार को भगवान शंकर का दिन माना गया है। 5 मार्च को सोम प्रदोष है। श्रृद्धालुओं के लिए यह बहुत ही उचित अवसर है जब यह व्रत कर भगवान शंकर की कृपा प्राप्त की जा सकती है। इस व्रत से जुड़ी कथा इस प्रकार है-

एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका एक छोटा बेटा था। अपना व अपने बेटे के जीवन-यापन के लिए वह सुबह होते ही अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला । ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था।

शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बन्दी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था, इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार उस ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।

ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, सोम प्रदोष व्रत करने से भगवान शंकर अपने अन्य भक्तों की मनोकामना भी पूरी करते हैं।

कौन हैं पांच प्रमुख देवता और इनकी पूजा क्यों करते हैं?
शास्त्रों के अनुसार पांच प्रमुख देवता माने गए हैं। किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत और पूर्णता के लिए इनकी पूजा करना अनिवार्य मानी गई है। इन पंच देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करने से कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाता है।

हमारे शास्त्रो में पंच देव के नित्य पूजन का विधान बताया गया है। इन पंच देव में भगवान गणेशजी, विष्णुजी, शिवजी, देवी मां और सूर्य देव शामिल हैं। ऐसा माना जाता है कि हमारा शरीर पांच तत्वों से निर्मित माना गया है और इन्हीं तत्वों में पांचों देवी-देवता विद्यमान रहते हैं।

गणेशजी जल तत्व माने गए हैं अत: इनका वास जल में माना गया है। श्री विष्णु- वायु तत्व हैं, शिवजी- पृथ्वी तत्व हैं, श्री देवी- अग्रि तत्व हैं और श्री सूर्य- आकाश तत्व माने गए हैं। हमारे जीवन के लिए सर्वप्रथम जल की ही आवश्यकता होती है। इसलिए प्रथम पूज्य श्रीगणेश माने गए हैं जो कि जल के देवता है। वायु साक्षात विष्णु देवता से संबधित तत्व है। भगवान शंकर पृथ्वी तत्व, देवी अग्नि तत्व तथा सूर्य आकाश तत्व के देवता है। यह सभी तत्व हमारे शरीर में विद्यमान रहते हैं अत: इस प्रकार इन पांचों देवी-देवताओं का पूजन करने पर हम अपने आप का ही पूजन करते है। ऐसा मान्यता है।

बुधवार की रात पीपल के नीचे लगाएं घी दीपक, क्योंकि...
बुधवार को है रंगों का त्यौहार होली। होली के दिन चारों ओर हर्षोल्लास का माहौल होता है। साथ ही शास्त्रों में इस पर्व का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन कुछ नियमों का पालन किया जाए तो व्यक्ति के जीवन से समस्याओं दूर हो सकती हैं।

होली की मध्य रात्रि के बाद पीपल के नीचे शुद्ध घी का दीपक लगाया जाना चाहिए। साथ ही हाथ में सफेद तिल लेकर पीपल की सात परिक्रमा करें। तिल धीरे-धीरे छोडते जाएं। इसके बाद पीछे देखे बिना ही वापस घर आ जाएं। ध्यान रहे पीपल को छुना नहीं है। यह छोटा सा उपाय काफी लाभदायक है। बिना त्रुटि से किए जाने पर कुछ ही दिनों में श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं।

होली की रात किसी भी पूजन कार्य के लिए काफी सिद्ध मानी गई है। थोड़े ही विधि विधान के बाद ही मनोवांछित कार्य पूर्ण होने के योग बन सकते हैं। इसी वजह से इस रात को अधिकांश ज्योतिषीय उपाय किए जाते हैं।

हजारों साल पुरानी है इस त्योहार की दुर्लभ परंपरा
होली... बसंत उत्सव... फाग... फागुन... एक ऐसा त्यौहार जिसमें सभी रिश्तों, दोस्ती आदि के मतभेद, मनमुटाव, गिले-शिकवे, दूरियां मिट जाती हैं... और मजबूत होती है रिश्तों की नाजुक डोर। होली को लेकर यह बात आधुनिक समाज में ही नहीं प्रचलित है अपितु पुरातन काल से ही होली का त्यौहार मिलन का प्रतिक माना गया है। होली को सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। होली की शुरूआत कब हुई इसकी ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। परंतु पुराण आदि धर्म ग्रंथों में होली संबंधी अनेक कथाएं मिलती है। उन्हीं में से कुछ प्रमुख दंत कथाएं इस प्रकार है:

प्रहलाद और होलिका:-
होली का प्रारंभ प्रहलाद और होलिका के जीवन से जुड़ा है। प्रहलाद और होलिका की कथा विष्णु पुराण में उल्लेखित है। हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर वरदान प्राप्त कर लिया। अब वह न तो पृथ्वी पर मर सकता था न आकाश में, न दिन में, न रात में, न घर में, न बाहर, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न मानव से मर सकता था न पशु से। वरदान के बल से उसने देवताओं-मानव आदि लोकों को जीत लिया और विष्णु पूजा बंद करा दी। परंतु पुत्र प्रहलाद को नारायण की भक्ति से विमुख नहीं कर सका। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बहुत सी यातनाएँ दीं। पंरतु पुत्र ने विष्णु भक्ति नहीं छोड़ी। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अत: दैत्यराज ने होलिका को विष्णु भक्त पुत्र का अंत करने के लिए प्रहलाद सहित आग में प्रवेश करा दिया। परंतु होलिका का वरदान निष्फल सिद्ध हुआ और वह स्वयं उस आग में जल कर मर गई। बस प्रहलाद की इसी जीत की खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।

शिव पार्वती और कामदेव:-
शिव पुराण के अनुसार हिमालय की पुत्री पार्वती शिव से विवाह हेतु कठोर तप कर रही थी और शिव भी तपस्या में लीन थे। इंद्र का भी शिव-पार्वती विवाह में स्वार्थ छिपा था कि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र द्वारा होना था। इसी वजह से इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने भेजा, परंतु शिव ने क्रोधित हो कामदेव को भस्म कर दिया। शिव की तपस्या भंग होने के बाद देवताओं ने शिव को पार्वती से विवाह के राजी कर लिया। इस कथा के आधार पर होली में काम की भावना को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

पूतनावध:-
कंस को जब आकाशवाणी द्वारा पता चला कि वासुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसका विनाशक होगा। तो कंस ने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया। कारागार में जन्में देवकी के सात पुत्रों को कंस ने मार दिया। आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। वासुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेते आए। कंस उस कन्या को मार नहीं सका। तब आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले तो गोकुल में जन्म ले चुका है। अब कंस ने उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को सौंपा। वह सुंदर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को विष का स्तनपान कराने गई। लेकिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अत: पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।

राधा और श्रीकृष्ण:-
होली का त्यौहार राधा और श्रीकृष्ण की पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है। वसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना श्रीकृष्ण की लीला का ही एक अंग माना गया है। मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है। बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो जगप्रसिद्ध है। होली पर होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर-द्वेष की, ईष्र्या की, संशय की और प्राप्त किया जाता है विशुद्ध प्रेम।

राक्षसी ढुंढी की मृत्यु:-
राजा पृथु के समय में एक राक्षसी थी ढुंढी। वह नवजात शिशुओं को खा जाती थी। राक्षसी को वर प्राप्त था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा। लेकिन शिव के एक शाप के कारण बच्चों की शरारतों से मुक्त नहीं थी। राजा पृथु को ढुंढी को खत्म करने के लिए राजपुरोहित ने एक उपाय बताया कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी क्षेत्र के सभी बच्चे एक-एक लकड़ी एक जगह पर रखें और जलाए, मंत्र पढ़ें और अग्नि की परिक्रमा करें तो राक्षसी मर जाएगी। हुआ भी ऐसा ही इतने बच्चे एक साथ देखकर राक्षसी ढुंढी अग्नि के नजदीक आई तो उसका मंत्रों के प्रभाव से वहीं विनाश हो गया। तब से इसी तरह मौज मस्ती के साथ होली मनाई जाने लगी।

सांई बाबा की विशेष पूजा कब और क्यों करना चाहिए?
सांई बाबा की आराधना के लिए गुरुवार का विशेष महत्व है। गुरुवार के दिन सांई मंदिरों में भक्तों की खासी भीड़ रहती है। शास्त्रों के अनुसार गुरुवार गुरु की पूजा करने का दिन है। इसी वजह से जो लोग सांई बाबा को अपना गुरु मानते हैं उनके लिए गुरुवार काफी महत्वपूर्ण दिन होता है।

सांई बाबा का पूरा जीवन सभी की परेशानियां दूर करने और सभी की मनोकामनाओं को पूरा करने में ही बीता है। बाबा आज भी अपने भक्तों को सभी दुखों से निजात दिलाते हैं और सभी की इच्छाओं को पूरा करते हैं। सबका मालिक एक, इसी सूत्र के कारण सभी धर्मों के कई लोग सांई बाबा के प्रति अटूट आस्था रखते हैं। गुरुवार के दिन इनके दर्शन और विशेष पूजा से अक्षय पुण्य लाभ प्राप्त होता है।

शिर्डी के सांई बाबा के भक्त दुनियाभर में फैले हैं। उनके फकीर स्वभाव और चमत्कारों की कई कथाएं है। सांई बाबा के भक्तों की संख्या काफी अधिक है। सभी भक्त बाबा के चित्र या मूर्ति अपने घरों में अवश्य ही रखते हैं। सांई ने अपना पूरा जीवन जनसेवा में ही व्यतीत किया। वे हर पल दूसरों के दुख दर्द दूर करते रहे। बाबा के जन्म के संबंध में कोई सटीक उल्लेख नहीं मिलता है। सांई के सारे चमत्कारों का रहस्य उनके सिद्धांतों में मिलता है, उन्होंने कुछ ऐसे सूत्र दिए हैं जिन्हें जीवन में उतारकर सफल हुआ जा सकता है। हमें उन सूत्रों को केवल गहराई से समझना होगा।

सांई बाबा के जीवन पर एक नजर डाली जाए तो समझ में आता है कि उनका पूरा जीवन लोककल्याण के लिए समर्पित था। खुद शक्ति सम्पन्न होते हुए भी उन्होंने कभी अपने लिए शक्ति का उपयोग नहीं किया। सभी साधनों को जुटाने की क्षमता होते हुए भी वे हमेशा सादा जीवन जीते रहे और यही शिक्षा उन्होंने संसार को भी दी। सांई बाबा शिर्डी में एक सामान्य इंसान की भांति रहते थे। उनका पूरा जीवन ही हमें हमारे लिए आदर्श है, उनकी शिक्षाएं हमें एक ऐसा जीवन जीने की प्रेरणा देती है जिससे समाज में एकरूपता और शांति प्राप्त हो सकती है।

होली पर क्यों चढ़ाते हैं पूजन सामग्री?
होली का त्योहार भारत सहित अन्य देशों में भी बड़े उत्साह व उमंग से मनाया जाता है। हिंदू महिलाएं होली का पूजन करती है तथा विभिन्न पूजन सामग्री होली को अर्पित करती है जैसे उंबी, गोबर से बने बड़बोलिए, श्रीफल व नाड़ा आदि। यह परंपरा सदियों पुरानी है। परंपरागत रूप से होली पर चढ़ाई जाने वाली सामग्री के पीछे भी कुछ भाव छिपे हैं, जो इस प्रकार हैं-

उंबी - यह नए धान्य का प्रतीक है। भारतीय परंपरा में इसे विधान के साथ उपभोग में लिया जाता है इसलिए अग्नि को भोग लगाते हैं और प्रसाद के रूप में अन्न उपयोग में लेते हैं।

गोबर के बड़बोलिया की माला- अग्नि और इंद्र वसंत की पूर्णिमा के देवता माने गए हैं। ये अग्नि को गहने पहनाने के प्रतीक रूप में चढ़ाए जाते हैं। इन्हें 10 दिन पहले बालिकाएं बनाती हैं।

नाड़ा- यह वस्त्र को प्रतीक है। होलिका को श्रृंगारित करने का भाव इसमें निहित है।

नारियल- यह श्रीफल माना गया है। फल के रूप में इसका अर्पण करते हैं। इसे चढ़ाकर वापस लाते हैं और प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं।

होली: इस दिन कामदेव को भस्म किया था शिव ने
होली से जुड़ी कई कथाएं पुरातन ग्रंथों में मिलती है। इन कथाओं के पीछे जीवन के सूत्र भी छिपे हैं। होली से जुड़ी एक कथा यह भी है-

इंद्र भगवान शिव की तपस्या भंग करना चाहते थे। उन्होंने कामदेव को इस कार्य पर लगाया वह दिन वसंत पंचमी का था। कामदेव ने उसी समय वसंत को याद किया और अपनी माया से वसंत का प्रभाव फैलाया इससे सारे जगत के प्राणी काममोहित हो गए। कामदेव का शिव को मोहित करने का यह प्रयास होली तक चला इसलिए इन दो माह में वसंत पर्व मनाया जाता है। होली के दिन शिव की तपस्या भंग हुई।

उन्होंने रोष से भरकर कामदेव को भस्म कर दिया तथा यह संदेश दिया कि होली पर काम (मोह, इच्छा, लालच, धन, मद) इनको अपने पर हावी न होने दें। तब से ही होली पर वसंत उत्सव एवं होली जलाने की परंपरा प्रारंभ हुई। इस घटना के बाद शिव ने पार्वती से विवाह की सम्मति दी। जिससे सभी देवी-देवताओं, शिवगणों, मनुष्यों में हर्षोल्लास फैल गया। उन्होंने एक-दूसरे पर रंग गुलाल उड़ाकर आपस में गले मिलकर जोरदार उत्सव मनाया। जो आज धुलेंडी के रूप में घर-घर मनता है।

होली में क्यों डाले जाते हैं गेहूं और चावल?
होली यानी रंगों का त्यौहार हमारे देश की सबसे अनोखी परंपराओं में से एक है। जिन्दगी को रंगों से भर देने वाले इस त्यौहार का हमारे देश में धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। इस दिन से जुड़ी हमारे यहां अनेक लोक परंपराएं है। ऐसी ही एक परंपरा है होलिका का पूजन कर जलती होली में अन्न या धान डालने की।

दरअसल इस परंपरा का कारण हमारे देश का कृषि प्रधान होना है। होलिका के समय खेतों में गेहूं और चने की फसल आती है। ऐसा माना जाता है कि इस फसल के धान के कुछ भाग को होलिका में अर्पित करने पर यह धान सीधा नैवैद्य के रूप में भगवान तक पहुंचता है। होलिका में भगवान को याद करके डाली गई हर एक आहूति को हवन में अर्पित की गई आहूति के समान माना जाता है।
साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस तरह से नई फसल के धान को भगवान को नैवैद्य रूप में चढ़ा कर और फिर उसे घर में लाने से घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता है। इसलिए होलिका में धान डालने की परंपरा बनाई गई। आज भी हमारे देश के कई क्षेत्रों में इस परंपरा का अनिवार्य रूप से निर्वाह किया जाता है।

पूजन में शहद का उपयोग क्यों किया जाता है?
शिव का अभिषेक हो या किसी और देवता की पूजा, पूजन सामग्री में शहद का उपयोग पंचामृत के एक हिस्से के रूप में किया जाता है। विशेषतौर पर भगवान शिव के अभिषेक में इसका उपयोग सबसे ज्यादा होता है। शहद में ऐसे कौन से गुण होते हैं जिनके कारण यह इतना खास माना गया है?

वास्तव में शहद को उसके गुणों के कारण ही पूजा में उपयोग किया जाता है। शहद तरह होकर भी पानी में नहीं घुलता है। जैसे संसार में रहकर भी अलग रहने के भाव का प्रतीक है। यह घी या तेल की तरह पानी में बिखरता भी नहीं है। यह पंच तत्वों में आकाश तत्व का प्रतीक भी माना गया है। शहद में कई औषधीय गुण भी होते हैं। इसे आयुर्वेद में भी स्थान दिया गया है। शहद ऐसा पदार्थ होता है जिसे पेट और शारीरिक कमजोरी संबंधी सभी बीमारियों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी तासिर ठंडी होती है।

एकदार्शनिक कारण यह भी है कि शहद ही ऐसा तत्व है जो जिसके लिए इंसान को प्रकृति पर निर्भर रहना पड़ता है, इसे कृत्रिम रूप से नहीं बनाया जा सकता। मधुमक्खियों द्वारा तैयार किया गया एकदम शुद्ध पदार्थ होता है। जिसके निर्माण में कोई मिलावट नहीं हो सकती। शहद को भगवान को इसी भाव से चढ़ाया जाता है कि हमारे जीवन में भी शहद की तरह ही पवित्र और पुण्य कर्म हों। चरित्र और व्यवहार में शहद जैसा ही गुण हो, जो संसार में रहकर भी उसमें घुले मिले नहीं, उसमें रहे भी और उससे अलग भी हो।

मल मास 14 से, भगवान पुरुषोत्तम को प्रिय है यह मास
भगवान सूर्य संपूर्ण ज्योतिष शास्त्र के अधिपति हैं। सूर्य का मेष आदि 12 राशियों पर जब संक्रमण(संचार) होता है, तब संवत्सर बनता है जो एक वर्ष कहलाता है। जिस मास में सूर्य किसी राशि पर संक्रमण नहीं करता वह मल मास कहलाता है। इस बात की पुष्टि इस श्लोक से होती है-

यस्मिन् मासे न संक्रान्ति: संक्रान्तिद्वयमेव वा।

मलमास: स विज्ञेयो मासे त्रिंशत्तमे भवेत्।।

(ब्रह्मसिद्धांत)

इसे पुरुषोत्तम मास व खरमास भी कहते हैं। इस बार मल मास का प्रारंभ 14 मार्च, बुधवार से हो रहा है, जो 13 अप्रैल, शुक्रवार को समाप्त होगा। इस मास की मलमास की दृष्टि से जितनी निंदा है, पुरुषोत्तम मास की दृष्टि से उससे कहीं श्रेष्ठ महिमा भी है।

भगवान पुरुषोत्तम ने इस मास को अपना नाम देकर कहा है कि अब मैं इस मास का स्वामी हो गया हूं और इसके नाम से सारा जगत पवित्र होगा तथा मेरी सादृश्यता को प्राप्त करके यह मास अन्य सब मासों का अधिपति होगा। यह जगतपूज्य और जगत का वंदनीय होगा और यह पूजा करने वाले सब लोगों के दारिद्रय का नाश करने वाला होगा।

अहमेवास्य संजात: स्वामी च मधुसूदन:। एतन्नान्मा जगत्सर्वं पवित्रं च भविष्यति।।

मत्सादृश्यमुपागम्य मासानामधिपो भवेत्। जगत्पूज्यो जगद्वन्द्यो मासोयं तु भविष्यति।।

पूजकानां सर्वेषां दु:खदारिद्रयखण्डन:।।

घर में रखना चाहिए ऐसी महालक्ष्मी की मूर्ति, क्योंकि...
शास्त्रों के अनुसार धन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए महालक्ष्मी की प्रसन्नता जरूरी है। जिन भक्तों पर महालक्ष्मी की कृपा रहती है उन्हें जीवन में कभी भी धन संबंधी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता। महादेवी को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन इनका विधिवत पूजा किया जाना चाहिए। इसके साथ ही जिन घरों में महालक्ष्मी की सोने या चांदी से बनी मूर्ति रहती हैं वहां भी गरीबी का वास नहीं होता है।

पैसों से जुड़ी परेशानियों को दूर करने के लिए महालक्ष्मी के साथ भगवान श्रीहरि का पूजन करना श्रेष्ठ उपाय है। वेद-पुराण के अनुसार देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु की पत्नी हैं और इसी वजह से श्रीहरि की पूजा करने भक्तों पर भी धन की देवी की विशेष कृपा रहती है। घर से गरीबी भगाने और घर में धन बढ़ाने के लिए बताया गया है कि व्यक्ति को घर के मंदिर में महालक्ष्मी की सोने या चांदी से निर्मित मूर्ति रखना चाहिए।

जिस घर में सोने या चांदी से निर्मित महालक्ष्मी की मूर्ति होती है वहां देवी लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है। साथ ही भक्त को प्रतिदिन विधि-विधान से उस चांदी या सोने की मूर्ति का पूजन करना चाहिए।

सोना सुख-समृद्धि का प्रतीक है और चांदी महालक्ष्मी की प्रिय धातु मानी गई है। अत: इनसे निर्मित मूर्ति की पूजा करने वाला श्रद्धालु कभी भी दरिद्रता का सामना नहीं करता है।

आप भी रखें एकादशी या ग्यारस का व्रत, क्योंकि...
शास्त्रों के अनुसार हिन्दू वर्ष के बारह माह बताए गए हैं और हर माह में दो एकादशी आती हैं क्योंकि प्रत्येक माह में दो पक्ष बताए गए हैं। एक है कृष्ण पक्ष और दूसरा है शुक्ल पक्ष। दोनों ही पक्षों में एकादशी व्रत का गहरा धार्मिक महत्व है।

मूलत: एकादशी व्रत भगवान श्रीहरि को समर्पित है। जो भक्त यह व्रत रखता है उसे भगवान विष्णु की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है। ऐसे लोगों को जीवन के दुख-दर्द नहीं सताते हैं। साथ ही व्यक्ति सदैव निरोगी और स्वस्थ रहता है।

एकादशी व्रत का धार्मिक महत्व है साथ ही यह मानसिक एवं शारीरिक पवित्रता के लिए भी महत्वपूर्ण है। निरोग रहने में यह व्रत श्रेष्ठ उपाय है। यह मन को संयम का भाव सिखाता है। शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है।

प्रतिदिन चन्द्रमा के घटने और बढऩे का सीधा प्रभाव सभी जीवों और वनस्पतियों पर पड़ता है। हिन्दू पंचांग तिथियों पर आधारित होता है। इन तिथियों और चन्द्रमा क स्थितियों में गहरा संबंध है। उसका असर भी शरीर पर वैसा ही पडता है। हर मास में दो एकादशी होती है और इन दोनों तिथियों पर आहार संयम रखा जाए तो यह हमारी पाचन क्रिया को बल प्रदान करता है। शरीर निरोगी बना रहता है।

हनुमानजी को अर्पित करना चाहिए ये दो चीजें, क्योंकि...
देवी-देवताओं की पूजा मन को शांति तो प्रदान करती है साथ ही मनोकामनाओं को पूर्ण भी करती है। शास्त्रों के अनुसार भगवान की भक्ति और आराधना के संबंध में कई प्रकार के नियम बताए गए हैं। इन नियमों का पालन करने वाला व्यक्ति जल्दी ही भगवान की कृपा प्राप्त कर लेता है और सभी दुखों से स्वयं को दूर कर लेता है। वैसे तो सभी देवी-देवता जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन कलयुग में हनुमानजी शीघ्र कृपा करने वाले देवता माने गए हैं।

यदि कोई व्यक्ति सप्ताह में केवल दो दिन मंगलवार और शनिवार को ही हनुमानजी का विधिवत पूजन करें तब भी उसके जीवन की कई समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएंगी। बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए सुंदरकांड या हनुमान चालिसा का पाठ या श्रीराम मंत्र का जप करना श्रेष्ठ उपाय है। इसके साथ ही श्रीराम के अनन्य भक्त पवनपुत्र हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करना चाहिए। सिंदूर हनुमानजी को अत्यंत प्रिय है। जो भक्त उन्हें सिंदूर अर्पित करता है उससे भगवान प्रसन्न होते हैं और सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं।

हनुमानजी को सिंदूर क्यों अर्पित किया जाता है इस संबंध में शास्त्रों में कई कथाएं बताई गई हैं, इन्हीं में बहुप्रचलित एक कथा इस प्रकार है। रावण वध पश्चात जब श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान एवं अन्य सहित अयोध्या आए। जहां श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ। इसके पश्चात एक दिन हनुमानजी ने देखा कि माता सीता मांग में सिंदूर लगा रही हैं। उत्सुकता वश बजरंगबली में माता से सिंदूर लगाने का कारण पूछा। तब माता सीता ने बताया कि इस प्रकार सिंदूर लगाने से मेरे स्वामी श्रीराम को स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन की प्राप्ति होगी। यह सुनकर हनुमानजी ने सोचा कि यदि वे अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाएंगे तो उनके स्वामी श्रीराम की पूर्ण भक्ति प्राप्त हो जाएगी। यही सोचकर उन्होंने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया। इसी घटना के कारण भगवान हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाने की प्रथा प्रारंभ हुई। ऐसी मान्यता है।

शीतला सप्तमी, शीतला माता का व्रत करें
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतल सप्तमी कहते हैं। इस दिन शीतला माता के निमित्त व्रत करने का विधान है। इस बार यह व्रत 14 मार्च, बुधवार को है। कुछ स्थानों पर शीतला अष्टमी का व्रत करने का भी विधान है, जो 15 मार्च गुरुवार को है।

यह व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं तथा जो यह व्रत करता है उसके परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के समस्त रोग तथा ठंड के कारण होने वाले रोग नहीं होते। शीतला देवी के स्वरूप का शीतलास्तोत्र में इस प्रकार वर्णन किया गया है-

वन्देहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालड्कृतमस्तकाम्।।

इस व्रत की विशेषता है कि इसमें शीतला देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पूर्व ही बना लिए जाते हैं और दूसरे दिन इनका भोग शीतला माता को लगाया जाता है। इसीलिए इस व्रत को बसोरा भी कहते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन घरों में चूल्हा भी नहीं जलाया जाता यानी सभी को एक दिन बासी भोजन ही करना पड़ता है।

मंगलवार के दिन हनुमानजी की विशेष पूजा क्यों की जाती है?
श्री हनुमान को संकट मोचन कहा गया है। वे पलभर में ही भक्तों के बड़े-बड़े संकट समाप्त कर देते हैं। हनुमानजी सीताराम के आर्शीवाद से अष्टचिरंजिव में शामिल है। अत: वे भगवान शिव की तरह ही तुरंत प्रसन्न होने वाले और भक्तों पर सर्वस्व न्यौछावर करने वाले हैं। ऐसी मान्यता है कि हनुमानजी का जन्म मंगलवार को हुआ। अत: मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है।

जहां-जहां श्रीराम का नाम पूरी श्रद्धा से लिया जाता है हनुमानजी वहां किसी ना किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। ऐसी कई कथाएं हैं जहां हनुमान ने श्रीराम के भक्तों का पूर्ण कल्याण किया है। हनुमान के नाम मात्र से ही भूत पिशाच निकट नहीं आते। सारी समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

हनुमानजी ही ऐसे भक्त और भगवान हैं जो हमारे सभी दुख और परेशानियों का समाधान कुछ ही क्षण में कर सकते हैं। बस आवश्यकता है तो सभी अधार्मिक कार्यों और कुसंगति को छोड़कर श्रीराम की श्रद्धा और भक्ति में मन लगाने की।

मंगलवार के दिन हनुमानजी की पूजा से सभी मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि पवनपुत्र की पूजा के लिए कोई विशेष मुहूर्त या दिन नहीं है। हम कभी भी सच्चे मन से हनुमानजी का स्मरण, पूजन-अर्चन कर सकते हैं।

सभी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए हनुमान चालिसा का पाठ सबसे सरल और सुलभ उपाय है। प्रतिदिन हनुमान चालिसा का पाठ करने वाले भक्तों को सभी सुख और धन की प्राप्ति होती है। ऐसे लोगों को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती।

किसी किन्नर से एक सिक्का लेकर अपने पर्स में रखें, क्योंकि...
जिस इंसान के जीवन में धन या पैसों की कमी होती है वह हमेशा ही कई परेशानियों का सामना करता रहता है। प्राचीन काल से धन का महत्व काफी अधिक बताया गया है। धन संबंधी सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को कड़ी मेहनत करना पड़ती है साथ ही धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा की भी आवश्यकता होती है।

शास्त्रों के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कितना धन मिलेगा, उसका भाग्य कैसा होगा? इन प्रश्नों के उत्तर व्यक्ति के पूर्व जन्मों से जुड़े हुए हैं। इंसान के जैसे कर्म पिछले जन्म में होते हैं ठीक वैसा ही प्रारब्ध या भाग्य नए जन्म में होता है। कई बार व्यक्ति पैसों की तंगी के कारण अत्यधिक परेशानियों का सामना करता है। इससे निपटने के लिए ज्योतिष में कुछ उपाय बताए गए हैं।

व्यक्ति की कुंडली में यदि कोई ग्रह विपरित फल प्रदान करने वाला है तो उससे संबंधित ज्योतिषीय उपचार किया जाना चाहिए। धन से जुड़ी परेशानियों को दूर करने के लिए एक सटीक उपाय बताया गया है किन्नर से पैसे लेकर पर्स में या तिजोरी में रखें।

ऐसी मान्यता है कि किन्नर को किया गया दान अक्षय पुण्य प्रदान करता है। इनकी दुआएं व्यक्ति को हर विपत्ति से बचा लेती है। किन्नर को धन का दान दिया जाता है। यदि आप पैसों की समस्याओं से मुक्ति चाहते हैं तो किसी किन्नर से एक रुपए का सिक्का वापस ले लें। यदि किन्नर अपनी खुशी से आपको सिक्का दे देता है तो उसे हरे कपड़े में लपेट कर अपने पर्स में रखें या तिजोरी में रखें। ऐसा करने आपकी धन संबंधी परेशानियां दूर होने लगेंगी।

सांई बाबा को क्या और क्यों चढ़ाना चाहिए?
ऊँ सांई राम... शास्त्रों के अनुसार भगवान और संत-महात्माओं को प्रसन्न करने के लिए उन्हें कई प्रकार की भेंट अर्पित करने का विधान बताया गया है। सामान्यत: सभी देवी-देवताओं को चढ़ाई जाने वाली पूजन सामग्री समान ही होती है। पूजन कर्म में अर्पित की जाने वाली सामग्री में कुमकुम, अक्षत, अबीर, गुलाल, फल-फूल, मिठाई आदि शामिल है। फल चढ़ाने और फल का प्रसाद अन्य लोगों को वितरित करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

आज के समय में शिर्डी के सांई बाबा के भक्तों की संख्या काफी अधिक है। अत: जो लोग सांई बाबा के प्रति गहरी आस्था रखते हैं उन्हें गुरुवार के दिन बाबा का विशेष पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही सांई को फल अर्पित करना चाहिए। तत्पश्चात मंदिर परिसर में ही फल का प्रसाद अन्य भक्तों को वितरित करें। ऐसा माना जाता है कि फल वितरित करने पर भक्त स्वस्थ और निरोगी बना रहता है। उसकी समस्त शारीरिक बीमारियों का निराकरण होने लगता है। जो लोग नियमित रूप से फल वितरित करते हैं वे सदैव ही स्वस्थ बने रह सकते हैं।

किसी भी देवी-देवता के निमित्त फल अर्पित करने पर इसी प्रकार के शुभ फल प्राप्त होते हैं। भक्त निरोगी और प्रसन्न रहता है। गुरुवार का दिन गुरु की पूजा का खास दिन माना गया है, अत: जो लोग शिर्डी के सांई बाबा को गुरु मानते हैं वे गुरुवार को बाबा को फल आदि अर्पित करें और अन्य भक्तों में वितरित करें। ऊँ सांई राम...

पापमोचिनी एकादशी, पापों का नाश करती है ये एकादशी
पुराणों के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहते हैं। यह एकादशी सभी पापों का नाश करने वाली है। इस बार यह एकादशी 18 मार्च, रविवार को है। इसकी कथा इस प्रकार है-

राजा मान्धाता ने एक बार लोमश ऋषि से पूछा कि मनुष्य जो जाने-अनजाने में पाप करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है? तब लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नजऱ अप्सरा पर गई और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने प्रयास में सफल हुई और ऋषि की तपस्या भंग हो गई।

ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जागी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरक्त हो चुके हैं उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी।

मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी (पापमोचिनी एकादशी) का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ तब वह पुन: स्वर्ग चली गई।

जानिए, क्या है गुड़ी पड़वा व इसका महत्व
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा व वर्ष प्रतिपदा कहते हैं। इस दिन हिन्दू नव वर्ष का आरम्भ होता है। इस बार यह पर्व 23 मार्च, शुक्रवार को है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका होती है। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी शुरु होता है। अत: इस तिथि को 'नवसंवत्सर' भी कहते हैं।

चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है। कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुडिय़ां) फहराए। आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है इसीलिए इस दिन को गुड़ीपड़वा नाम दिया गया।

महाराष्ट्र में इस दिन पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं वे हैं--गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती है।

गुड़ी पड़वा 23 को, शुभ और मीठा बोलने का पर्व है ये
महाराष्ट्र में हिंदू नव वर्ष गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 23 मार्च, शुक्रवार को है। इस दिन लोग सुबह स्नान कर सोला (रेशमी) वस्त्र पहनकर अपने घर में छत पर या फिर आंगन में एक पांच से छ: फीट ऊंचा डंडा खड़ा करते हैं। उसे वस्त्र से लेपटते हैं। उसके ऊपर कटोरी, गिलास या लोटा उलटाकर लगा देते हैं एवं काजल से आंख, नाक, कान व मुंह की आकृति बनाते हैं। इसके बाद इसकी पूजा की जाती है व भगवान से पूरा साल अच्छा बीतने की प्रार्थना की जाती है।

इस दिन महाराष्ट्रीयन परिवारों में विशेष रूप से गोड़ भात या केशरी भात(मीठा चावल) व पोरण पोली बनाई व खिलाई जाती है। शाम को लोग एक-दूसरे के घर जाकर नव वर्ष की बधाई देते हैं। मेहमानों को मिठाई खिलाकर, गुलाब जल छिड़ककर कथा इत्र लगाकर उनका सम्मान किया जाता है। गुड़ी पड़वा एक तरह से वर्ष भर की शुभकामनाएं देने का पर्व है। इस पर्व से जुड़ा एक दोहा इस प्रकार है-
आज आहे गुडीपाड़वा गोड़ बोल गाढ़वा।

अर्थात आज गुड़ी पड़वा है, आज मीठे शब्दों का प्रयोग कीजिए।

हिंदू नव वर्ष 23 से, जानिए किस धर्म में कब मनाया जाता है नव वर्ष
विक्रम संवत् 2069 यानी हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ इस बार 23 मार्च, शुक्रवार से हो रहा है। हिंदू धर्म की तरह ही हर धर्म में नया साल मनाया जाता है। लेकिन इसका समय भिन्न-भिन्न होता है तथा तरीका भी। किसी धर्म में नाच-गाकर नए साल का स्वागत किया जाता है तो कहीं पूजा-पाठ व ईश्वर की आराधना कर। आप भी जानिए किस धर्म में नया साल कब मनाया जाता है-

हिंदू नव वर्ष
हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा (इस बार 23 मार्च) से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल का आरंभ भी होता है। इसे गुड़ी पड़वा, उगादि आदि नामों से भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है।

इस्लामी नव वर्ष
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को मुसलमानों का नया साल हिजरी शुरू होता है। इस्लामी या हिजरी कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है, जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में इस्तेमाल होता है बल्कि दुनियाभर के मुसलमान भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए इसी का इस्तेमाल करते हैं।

ईसाई नव वर्ष
ईसाई धर्मावलंबी 1 जनवरी को नव वर्ष मनाते है। करीब 4000 वर्ष पहले बेबीलोन में नया वर्ष 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी । तब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। तब से आज तक ईसाई धर्म के लोग इसी दिन नया साल मनाते हैं। यह सबसे ज्यादा प्रचलित नव वर्ष है।

सिंधी नव वर्ष
सिंधी नव वर्ष चेटीचंड उत्सव से शुरु होता है, जो चैत्र शुक्ल दिवतीया को मनाया जाता है। सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरुणदेव के अवतार थे।

सिक्ख नव वर्ष
पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अप्रैल में आती है। सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) नया साल होता है।

जैन नव वर्ष
ज़ैन नववर्ष दीपावली से अगले दिन होता है। भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन यह शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं।

पारसी नव वर्ष
पारसी धर्म का नया वर्ष नवरोज के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव पारसी लोग मनाते हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की। नव अर्थात् नया और रोज यानि दिन।

हिब्रू नव वर्ष
हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे । इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है । यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है ।


भगवान को प्रसाद चढ़ाने से पहले ध्यान रखें ये छोटी सी बात
हमारी मनोकामनाएं की पूर्ति के भगवान की भक्ति ही सबसे सरल और सहज मार्ग है। भक्त की श्रद्धा से भगवान प्रसन्न हो जाए तो व्यक्ति को सभी इच्छित फल प्राप्त हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान को प्रसन्न करने के कई उपाय बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक है देवी-देवताओं को प्रसाद चढ़ाना।

भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें प्रिय भोग अर्पित करना चाहिए। सभी देवताओं को अलग-अलग प्रिय प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस संबंध में शास्त्रों में बताया गया है कि तुलसी दल के बिना भोग अधूरा ही माना जाता है। तुलसी को प्राचीन काल से ही भोग में रखा जाता है। इसका कारण तुलसी का औषधीय गुण है। एकमात्र तुलसी में यह खूबी है कि इसका पत्ता रोगप्रतिरोधक होता है। यानि कि एंटीबायोटिक।

प्रसाद में तुलसी के पत्ते रखने से प्रसाद में भी इसके औषधिय गुण आ जाते हैं जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होते हैं। प्रसाद के बहाने ही सही लोग दिन में कम से कम एक पत्ता ग्रहण करें ताकि उनका स्वास्थ्य ठीक रहे। इस तरह तुलसी स्वास्थ्य देने वाली है। तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। सभी जानते हैं कि तुलसी के पत्ते यदि पीने के पानी में डाल दिए जाए तो उससे कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी ब्रह्मचर्य की भी रक्षा करता है। रक्तविकार, वायु, खांसी आदि की निवारक है तथा हृदय के लिए हितकारी है। इन्हीं लाभों को देखते हुए प्राचीन काल से ही प्रसाद में तुलसी के पत्ते डालने की प्रथा आरंभ की गई है। इसके साथ ही धर्म ग्रंथों के अनुसार तुलसी को पवित्र और पुजनीय माना गया है। प्रसाद में इसका प्रयोग करने पर भक्त को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

घर से निकलने से पहले सीधा पैर ही पहले बाहर रखें, क्योंकि...
अक्सर घर के बड़े-बुजुर्ग घर निकलते वक्त सीधा पैर पहले बाहर रखने की बात कहते हैं। ऐसा माना है इससे हमारा दिन शुभ होता है और कार्य सफल होते हैं।

जब भी हम घर से किसी खास कार्य को लक्ष्य बनाकर निकलते हैं उस वक्त सीधा पैर पहले बाहर रखने से निश्चित ही आपको कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। यह परंपरा काफी पुरानी है जिसे हमारे घर के बुजूर्ग समय-समय पर बताते रहते हैं। इस प्रथा के पीछे मनोवैज्ञानिक और धार्मिक कारण दोनों ही हैं।

धर्म शास्त्रों के अनुसार सीधा पैर पहले बाहर रखना शुभ माना जाता है। सभी धर्मों में दाएं अंग को खास महत्व दिया गया है। सीधे हाथ से किए जाने वाले शुभ कार्य ही देवी-देवताओं द्वारा मान्य किए जाते हैं। देवी-देवताओं की कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। इसी कारण सभी पूजन कार्य सीधे हाथ से ही किए जाते हैं। जब भी घर से बाहर जाते हैं तो सीधा पैर ही पहले बाहर रखते हैं ताकि कार्य की ओर पहला कदम शुभ रहेगा तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी।

इस परंपरा के पीछे एक तथ्य और है कि इसका हम पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। सीधा पैर पहले बाहर रखने से हमें सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है और मन प्रसन्न रहता है। इस बात का हम पर दिनभर प्रभाव रहता है। बाएं पैर को पहले बाहर निकालने पर हमारे विचार नकारात्मक बनते हैं।

मरने पर बेटा ही क्यों देता है मुखाग्नि?
मृत्यु एक अटल सत्य है। जिसने जन्म मिला है उसे मृत्यु अवश्य प्राप्त होगी। हिंदू धर्म में मृत्यु के संबंध में कई महत्वपूर्ण नियम बनाए गए हैं। जैसे सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद शव को मुखाग्नि पुत्र ही देता है। यदि मृत व्यक्ति का पुत्र है तो मुखाग्नि उसे ही देना है, ऐसा विधान है।

शास्त्रों के अनुसार बारह प्रकार के पुत्र बताए गए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-औरस पुत्र, गोद लिया पुत्र, भाई का पुत्र, पुत्री का पुत्र, पुत्र का पुत्र, खरीदा हुआ पुत्र, कृत्रिम पुत्र, दत्त आत्मा आदि। यदि किसी मृतक का खुद का पुत्र ना हो तो इन 12 प्रकार के पुत्रों में से कोई पुत्र मृतक को मुखाग्नि दे सकता है।

यदि किसी मृतक की पुत्री मुखाग्नि देती है तो यह शास्त्रों के अनुसार अनुचित बताया है। किसी कन्या या महिला को शमशान में आने का भी अधिकार नहीं दिया गया है। अत: मृतक कोई महिला या कन्या मुखाग्नि नहीं दे सकती है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।

मृतक चाहे माता हो या पिता अंतिम क्रिया पुत्र ही संपन्न करता है। इस संबंध में हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि पुत्र पु नामक नर्क से बचाता है अर्थात् पुत्र के हाथों से मुखाग्नि मिलने के बाद मृतक को स्वर्ग प्राप्त होता है। इसी मान्यता के आधार पर पुत्र होना कई जन्मों के पुण्यों का फल बताया जाता है।

पुत्र माता-पिता का अंश होता है। इसी वजह से पुत्र का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता की मृत्यु उपरांत उन्हें मुखाग्नि दे। इसे पुत्र के लिए ऋण भी कहा गया है।

जब किसी की मृत्यु आ जाए तो क्या-क्या करें...
जीवन का एक अटल सत्य है मौत। जिसने जन्म लिया है उसे एक दिन अवश्य ही मरना है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा आत्मा अमर है और यह शरीर नश्वर है। जिस प्रकार हम कपड़े बदलते हैं ठीक उसी तरह आत्मा शरीर बदलती है। आत्मा एक निश्चित समय के लिए अलग-अलग शरीर धारण करती है। इसी बात से सिद्ध है कि मृत्यु को रोका नहीं जा सकता है। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु का सटिक समय भी कोई बता नहीं सकता। शास्त्रों में मृत्यु के संबंध में कुछ आवश्यक बातें बताई गई हैं-

- यदि कोई रोगी व्यक्ति के मरने जैसी स्थिति में है तो उसके मस्तक पर चंदन का तिलक लगा दिया जाए और वह तिलक जल्दी सुख जाए तो ऐसा माना जाता है कि वह व्यक्ति जल्दी नहीं मरेगा। इसके विपरित यदि चंदन का तिलक काफी देर तक ना सुखे तो इसका मतलब यही है कि वह व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो सकता है। क्योंकि मरने वाले व्यक्ति के मस्तक की गर्मी चले जाती है और उसका मस्तक ठंडा हो जाता है। इसी वजह से चंदन का तिलक जल्दी नहीं सुखता।

- यदि किसी व्यक्ति की स्थिति मरने जैसी हो गई है तो उसके सिर के पास गीताजी रखना चाहिए। इससे उसे मृत्यु के समय किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। भगवान श्रीहरि की कृपा बनी रहती है।

- दाह संस्कार के समय गीताजी को गंगाजी या किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए।

- शव के दाह संस्कार के समय मृतक के गले में यदि तुलसी की माला हो तो वह नहीं निकालना चाहिए।

- यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु विदेश में हो गई है तो उस समय की भारत में जो तिथि होती है उसी तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाना चाहिए।

जब भी मंदिर जाए तो सबसे पहले घंटी जरुर बजाएं, क्योंकि...
जीवन से जुड़ी से किसी भी परेशानी को दूर करने या मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। शास्त्रों के अनुसार भगवान की कृपा शीघ्र प्राप्त करने के लिए कई प्रकार के नियम बनाए गए हैं। इन नियमों का पालन पर देवी-देवता जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की परेशानियों का निराकरण कर देते हैं।

मंदिरों से हमेशा घंटी की आवाज आती रहती है। सामान्यत: सभी श्रद्धालु मंदिरों में लगी घंटी अवश्य बजाते हैं। घंटी की आवाज हमें ईश्वर की अनुभूति तो कराती है साथ ही हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। घंटी आवाज से जो कंपन होता है उससे हमारे शरीर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घंटी की आवाज से हमारा दिमाग बुरे विचारों से हट जाता है और विचार शुद्ध बनते हैं।

पुरातन काल से ही मंदिरों में घंटियां से लगाई जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि जिस मंदिर से घंटी बजने की आवाज नियमित आती है, उसे जागृत देव मंदिर कहते हैं। उल्लेखनीय है कि सुबह-शाम मंदिरों में जब पूजा-आरती की जाती है तो छोटी घंटियों, घंटों के अलाव घडिय़ाल भी बजाए जाते हैं। इन्हें विशेष ताल और गति से बजाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि घंटी बजाने से मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति के देवता भी चैतन्य हो जाते हैं, जिससे उनकी पूजा प्रभावशाली तथा शीघ्र फल देने वाली होती है।

पुराणों के अनुसार मंदिर में घंटी बजाने से हमारे कई पाप नष्ट हो जाते हैं। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद (आवाज) था, वहीं स्वर घंटी की आवाज से निकलती है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। धर्म शास्त्रियों के अनुसार जब प्रलय काल आएगा तब भी इसी प्रकार का नाद प्रकट होगा।

मंदिरों में घंटी बजाने का वैज्ञानिक कारण भी है। जब घंटी बजाई जाती है तो उससे वातावरण में कंपन उत्पन्न होता है जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन की सीमा में आने वाले जीवाणु, विषाणु आदि सुक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं तथा मंदिर का तथा उसके आस-पास का वातावरण शुद्ध बना रहता है। साथ ही इस कंपन का हमारे शरीर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। घंटी की आवाज से हमारा दिमाग बुरे विचारों से हट जाता है और विचार शुद्ध बनते हैं। नकारात्मक सोच खत्म होती है। इसी वजह से हम जब भी मंदिर जाए तो मंदिर की घंटी जरूर बजानी चाहिए।


क्यों दिखाई क्यों नहीं देते भूत-प्रेत, क्या आप जानते हैं?
भूत-प्रेत का नाम सुनते ही अचानक ही एक भयानक आकृति हमारे दिमाग में उभरने लगती है और मन में डर समाने लगता है। हमारे दैनिक जीवन में कहीं न कहीं हम भूत-प्रेत का नाम अवश्य सुनते हैं। कुछ लोग भूतों को देखने का दावा भी करते हैं जबकि कुछ इसे कोरी अफवाह मानते हैं।

विभिन्न धर्म ग्रंथों में भी भूत-प्रेतों के बारे में बताया गया है। सवाल यह उठका है कि अगर वाकई में भूत-प्रेत होते हैं तो दिखाई क्यों नहीं देते। धर्म ग्रंथों के अनुसार जीवित मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना होता है-पृथ्वी, जल, वायु, आकाश व अग्नि। मानव शरीर में सबसे अधिक मात्रा पृथ्वी तत्व की होती है और यह तत्व ठोस होता है इसलिए मानव शरीर आसानी से दिखाई देता है।

जबकि भूत-प्रेतों का शरीर में वायु तत्व की अधिकता होती है। वायु तत्व को देखना मनुष्य के लिए संभव नहीं है क्योंकि वह गैस रूप में होता है इसलिए इसे केवल आभास किया जा सकता है देखा नहीं जा सकता। यह तभी संभव है जब किसी व्यक्ति के राक्षण गण हो या फिर उसकी कुंडली में किसी प्रकार का दोष हो। मानसिक रूप से कमजोर लोगों को भी भूत-प्रेत दिखाई देते हैं जबकि अन्य लोग इन्हें नहीं देख पाते।

पूजा के बाद क्यों जरूरी है आरती ?
घर हो या मंदिर, भगवान की पूजा के बाद घड़ी, घंटा और शंख ध्वनि के साथ आरती की जाती है। बिना आरती के कोई भी पूजा अपूर्ण मानी जाती है। इसलिए पूजा शुरू करने से पहले लोग आरती की थाल सजाकर बैठते हैं। पूजा में आरती का इतना महत्व क्यों हैं इसका उत्तर स्कंद पुराण में मिलता है। इस पुराण में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता लेकिन आरती कर लेता है तो भगवान उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं।

आरती का धार्मिक महत्व होने के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है। याद कीजिए आरती की थाल में कौन कौन सी वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। आपके जेहन में रुई, घी, कपूर, फूल, चंदन जरूर आ गया होगा। रुई शुद्घ कपास होता है इसमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती है। इसी प्रकार घी भी दूध का मूल तत्व होता है। कपूर और चंदन भी शुद्घ और सात्विक पदार्थ है।

जब रुई के साथ घी और कपूर की बाती जलाई जाती है तो एक अद्भुत सुगंध वातावरण में फैल जाती है। इससे आस-पास के वातावरण में मौजूद नकारत्मक उर्जा भाग जाती है और सकारात्मक उर्जा का संचार होने लगता है।


आरती में बजने वाले शंख और घड़ी-घंटी के स्वर के साथ जिस किसी देवता को ध्यान करके गायन किया जाता है उसके प्रति मन केन्द्रित होता है जिससे मन में चल रहे द्वंद का अंत होता है। हमारे शरीर में सोई आत्मा जागृत होती है जिससे मन और शरीर उर्जावान हो उठता है। और महसूस होता है कि ईश्वर की कृपा मिल रही है।

क्रमश:...


जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK