अहंकार से इतना बदल जाता है इंसान
शक्ति के जागरण का उत्सव है नवरात्रि पर्व। नवरात्रि में मातृशक्ति की उपासना के साथ-साथ भगवान राम को भी स्मरण किया जाता है। उत्सव की नौ रातों को शक्ति साधना कर शक्ति संचय के भाव लेकर दशहरे पर प्रतीक रुप में रावण को मारा जाता है। पौराणिक मान्यताओं में इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध कर संदेश दिया कि अहंकार के अंत से ही सुख संभव है।
इसलिए नवरात्रि के इस विशेष काल में जानते हैं अहंकार का रुप और व्यावहारिक जीवन में कैसे अहंकार जीवन में प्रवेश कर जाता है। जिसे जानकर आप अपने जीवन में अनचाहे दु:खों से बच सकते हैं -
सरल शब्दों में जब भी व्यक्ति के मन में स्वयं का महत्व सबसे ऊपर हो जाता है और अपनी बात, विचार और कामों के साथ ही वह स्वयं को ही बड़ा मानने लगता है। तब यह स्थिति ही अहंकार की होती है। अनेक बार एक व्यक्ति को दूसरे का अहंकार दिखाई देता है पर स्वयं का नहीं। जबकि सच यह है कि अहंकार कभी न कभी किसी में आता है या यूं कहें कि यह सभी में रहता है।
सभी जानते हैं कि अहंकार करना एक बुराई है पर इसे पहचानना भी कठिन है। किंतु इसकी पहचान स्वभाव और व्यवहार से संभव है।
जब मन में यह विचार आये कि मैंने यह किया या वह किया तब समझ लीजिये कि वह हमारे अंदर बैठा अहंकार बोल रहा है। फिर इससे आगे यह भी होता है कि जब हम किसी का कार्य करते हैं और उसके बदले कोई भौतिक लाभ नहीं मिलता तब भारी निराशा घेर लेती है। व्यक्ति ऐसी स्थिति में अपनी सोच और काम को ही सही मानता है। इसके बाद भी वह लोगों से हर तरह के सहयोग की अपेक्षा भी रखता है।
अहंकारी का स्वभाव उग्र हो जाता है, ताकि सभी उसकी बात स्वीकार करें। अहंकार में व्यक्ति को अपनी बुराई या विरोध या आलोचना नापसंद होती है। अपने मन-मुताबिक बातें और अपनी प्रशंसा से प्रसन्न होता है। जबकि वह स्वयं दूसरों की आलोचना करने से नहीं चूकता।
व्यक्ति में संयम और धीरज की कमी दिखाई देता है। उसका मन बैचेन रहता है। अहंकार से मन अशांत रहता है। विचार और चिन्तन में सन्तुलन नहीं रहता। किसी भी विषय को लेकर गलत नजरिया पैदा हो जाता है। छोटी बात को भी बढ़ा-चढ़ाकर व्यर्थ के विवाद पैदा कर देता है। इस प्रकार अहंकार एक प्रकार की बीमारी बन जाती है। फिर भी व्यक्ति को इस स्थिति का एहसास नहीं होता। अहंकार जितना बढ़ता है, व्यक्ति अपने ही विरोधियों की संख्या बढ़ाता है।
हिन्दू धर्म के पांच प्रमुख देवताओं में सूर्य और शक्ति का विशेष महत्व है। सूर्य ऊर्जा और स्वास्थ्य देने वाले देवता माने जाते है। व्यावहारिक रुप से भी सूर्य की रोशनी और ऊर्जा के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है। इसी प्रकार शक्ति पूजा भी तन, मन और धन से सबल और मजबूत बनाती है। नवरात्रि भी शक्ति आराधना और जागरण का विशेष काल है। दुनिया में ताकतवर, निरोगी और बुद्धिमान इंसान ही शोहरत और सफलता पाता है।
ज्योतिष की नजर से सूर्य क्रूर ग्रह माना जाता है। कुण्डली में अन्य ग्रहों के साथ सूर्य का योग व्यक्ति पर अच्छे-बुरे असर डालता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 16 सितंबर से सूर्य कन्या राशि में प्रवेश किया है, जहां उसकी युति शनि ग्रह से बनी है। सूर्य-शनि का यह योग पूरी नवरात्रि में रहेगा और 18 अक्टूबर को समाप्त होगा।
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