ऐसे पड़ी ईसाई धर्म की नींव
ईसाई धर्म का प्रवर्तन ईसा मसीह (जीसस क्राइस्ट) ने किया था। ईसा मसीह यहूदी थे। ईसाई धर्म के प्रमुख ग्रंथों बाइबिल और 'न्यू टेस्टामेंट के आधार पर ईसा मसीह के प्रारंभिक जीवन की जानकारी प्राप्त होती है। इन ग्रंथों के अनुसार ईसा मसीह बचपन से ही धार्मिक स्वभाव के थे। धार्मिक ग्रंथों की टीकाएं एवं भाष्य पढऩा उनकी प्रमुख रुचियों में शामिल था। सत्य की खोज, ईश्वर की प्राप्ति एवं जीवन के उद्देश्य आदि विषयों में उनकी जिज्ञासा प्रारंभ से ही थी। अवसर मिलने पर जंगल में चले जाना और एकांत में चिंतन मनन करना, विद्वानों के साथ विचार-विमर्श करना इनकी आदतों में शामिल था।
ईशू का जन्मईसाई धर्म को मानने वालों की मान्यता के अनुसार जीसस का जन्म बेथलेहम (जोर्डन) में कुंवारी मरीयम (वर्जिन मरीयम) के गर्भ से हुआ था। उनके पिता का नाम युसुफ था जो पेशे से बढ़ई थे। स्वयं ईसा मसीह ने भी 30 वर्ष की आयु तक अपना पारिवारिक बढ़ई का व्यवसाय किया। पूरा समाज उनकी ईमानदारी और सद्व्यवहार, सभ्यता से प्रभावित था। सभी उन पर भरोसा करते थे।
उपदेशक ईसा30 वर्ष की आयु से ही ईसा मसीह ने लोगों को क्षमा, शांति, दया, करूणा, परोपकार, अहिंसा, सद्व्यवहार एवं पवित्र आचरण का उपदेश देना प्रारंभ कर दिया था। उनके इन्हीं सद्गुणों के कारण लोग उन्हें शांति दूत, क्षमा मूर्ति और महात्मा कहकर पुकारने लगे थे। इससे संबंधित जानकारी 'बाइबिल के प्रथम-भाग से प्राप्त होती है। ईसा की दिनों-दिन बढ़ती ख्याति से तत्कालीन राजसत्ता ईष्र्या करने लगी थी। उन्हें प्रताडि़त करने की योजनाएं राजसत्ता द्वारा बनने लगी थी।
ईसा के जीवन में मोड़यहूदी विद्वान यहुन्ना से भेंट होना ईसा के जीवन की महत्वपूर्ण घटना थी। यहुन्ना जोर्डन नदी के तट पर रहते थे। ईसा ने सर्वप्रथम जोर्डन नदी का जल ग्रहण किया और फिर यहुन्ना से दीक्षा ली। यही दीक्षा के पश्चात् ही उनका आध्यात्मिक जीवन शुरू हुआ। अपने सुधारवादी एवं क्रांतिकारी विचारों के कारण यहुन्ना को तत्कालीन राजसत्ता द्वारा कैद कर लिया कर लिया गया । यहुन्ना के कैद हो जाने के बाद बहुत समय तक ईसा मृत सागर और जोर्डन नदी के आस-पास के क्षेत्रों में उपदेश देते रहे। स्वर्ग के राज्य की कल्पना एवं मान्यता यहूदियों में पहले से ही थी किंतु ईसा ने उसे एक नए और सहज रूप में लोगों के सामने प्रस्तुत किया।
यह सिखाता है ईसाई धर्म- कभी भी हिंसा और हत्या को जीवन में मत अपनाओं।- ईष्र्या, द्वेष से सदैव दूर रहो।- सदैव नैतिक नियमों का पालन करों और पवित्र जीवन जीयो।- संकल्प सोच-समझ कर करो।- जो तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे उसकी ओर दूसरा भी फेर दो। हिंसा न करो।- जब दान करो चुपचाप करो, तारीफ से बचो।- कभी किसी पर दोष न लगाओ।- ज्यादा धन इकट्ठा न करो।- गरीबों की मदद करो।- विवाह करना वासना में दग्ध रहने से अच्छा है।- कोढिय़ों की सेवा करो। किसी से मुफ्त मत लो।- अपने प्राण बचाने की जगह दूसरों के प्राण बचाओ।
ईसा के जीवन की प्रमुख घटनाएं
अंतिम भोज'अंतिम भोज' के नाम से प्रसिद्ध घटना के समय भोजन के बाद वे अपने तीन शिष्यों - पतरस, याकूब और सोहन के साथ जैतन पहाड़ के'गेथ सेमनी' बाग में गए। मन की बैचेनी बढ़ते देख वे उन्हें छोड़कर एकांत में चले गए तथा एक खुरदुरी चट्टान पर मुंह के बल गिरकर प्रार्थना करने लगे। उन्होंने प्रार्थना में ईश्वर से कहा-'' दु:ख उठाना और मरना मनुष्य के लिए दु:खदायी है किंतु हे पिता यदि तेरी यही इच्छा हो तो ऐसा ही हो।''
ईसा की गिरफ्तारीईसा ने अपने शिष्यों से कहा- ''वह समय आ गया है जब एक विश्वासघाती मुझे शत्रुओं के हाथों सौंप देगा। इतना कहना था कि (द्भह्वस्रड्डह्य) नामक शिष्य उनकी गिरफ्तारी के लिए सशस्त्र सिपाहियों के साथ आता दिखाई दिया। जैसा कि ईसा मसीह ने पहले की कह दिया था उनको गिरफ्तार कर लिया गया। अंत में न्यायालय में उन पर कई झूठे दोष लगाए गए। यहां तक की उन पर ईश्वर की निंदा करने का आरोप लगाकर उन्हें प्राणदंड देने के लिए जोर दिया गया। यूदस ने विश्वासघाती होने के कारण आत्महत्या कर ली। सुबह होते ही उन्हें अंतिम निर्णय के लिए न्यायालय में भेजा गया। न्यायालय के बाहर शत्रुओं ने लोगों की भीड़ इकट्ठी की और उनसे कहा कि वे पुकार-पुकार कर ईसा को प्राणदंड देने की मांग करें। ठीक ऐसा ही हुआ।
हत्यारों के लिए क्षमा प्रार्थनान्यायाधीश ने लोगों से पूछा इसने कौन सा अपराध किया है? मुझे तो इसमें कोई दोष नजर नहीं आता। किंतु गुमराह किए हुए और बिके हुए लोगों ने कहा'' उसे सूली दो। अंतत: उन्हें सूली पर लटका कर कीलों से ठोक दिया गया। हाथ पैरों में ठुकी कीलें आग की तरह जल रही थी। ऐसी अवस्था में भी ईसा मसीह ने परमेश्वर को याद करते हुए प्रार्थना कि-'' हे मेरे ईश्वर तुने मुझे क्यों अकेला छोड़ दिया। इन्हें माफ कर देना, क्योंकि ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं?
फिर लौटे ईसाकुछ घंटों ईसा मसीह शरीर क्रूस पर झूलता रहा। अंत में उनका सिर नीचे की ओर लटक गया और इस तरह आत्मा ने शरीर से विदा ले ली। ईसा की मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि मृत्यु के तीसरे दिन एक चमत्कार हुआ और ईसा पुन: जीवित हो उठे। मृत्यु के उपरांत पुन: जीवित हो जाना उनकी दिव्य शक्तियों एवं क्षमताओं का प्रतीक था।
ईसाई धर्म के प्रमुख ग्रंथ
ईसाई धर्म के सर्वमान्य प्रमुख ग्रंथ दो ही हैं-१.पुरानी बाइबिल२.नई बाइबिल
पुरानी बाइबिल- पुरानी बाइबिल में हजरत मूसा के आने व हजरत नूह व उनके पुत्रों द्वारा ईसाई धर्म फैलाने का जिक्र है। यह मानती हैं कि नूह के पुत्र हेम के वंशज ही अरब यहूदी और मिश्री ईसाईयों का समूह था जो सामी परंपरा कहलाया। पुरानी बाइबिल में हजरत मूसा का कार्य-कलाप व उपदेशों का वर्णन है।
नई बाइबिल- नई बाइबिल हजरत ईसा मसीह प्रभु यीशु पर आधारित है। यह प्रभु ईसा मसीह को कुंवारी मरियम से जन्मे मानती है। कुंवारी मरीयम को पवित्र आत्मा से गर्भवती हुआ बताया गया है। इसमें बताया गया है कि आकाशवाणी ने बताया कि कुंवारी लड़की गर्भवती हागी और एक पुत्र को जन्म देगी। उसका इम्मानुएला रखा जाएगा। वह बालक बड़ा होकर लोगों को राह दिखाएगा,सब पाप मिल जाएंगे। वह सबको रोशनी देगा, इजऱाइल की रखवाली करेगा। वह प्रभू यीशु होगा, खुदा का बेटा कहलाएगा।
बाइबिल का पूर्वाद्र्धईसाई धर्म के प्रमुख ग्रंथ 'बाइबिल में कहीं भी ईश्वर के स्वरूप का दार्शनिक विवेचन नहीं मिलता। बाइबिल में मनुष्य के साथ ईश्वर के व्यवहार का जो इतिहास मिलता है, उससे ईश्वर के अस्तित्व और स्वरूप के बारे में भी जानकारी मिलती है। 'बाइबिल के पूर्वाद्र्ध में वर्णित ईश्वर संबंधी धारणा से यह अवश्य स्पष्ट होता है कि ईश्वर एक है और वह अनादि, अनंत और सर्वशक्तिमान है। ईसाई धर्म के अनुसार कोई भी स्थूल मूर्ति उस ईश्वर का वास्तविक स्वरूप व्यक्त करने में असमर्थ है। ईश्वर मनुष्य को पवित्र बनाने, ईश्वरीय आराधना करने तथा ईश्वर के नियमों के अनुसार जीवन बिताने का आदेश देता है।
बाइबिल का उत्तराद्र्ध'बाइबिल के उत्तराद्र्ध से पता चलता है कि ईसा ने ईश्वर के बारे में एक नया विचार दिया कि एक ही ईश्वर में तीन व्यक्ति हैं- पिता पुत्र और पवित्र आत्मा। तीनों ही महान एवं शक्तिमान है। तीनों समान रूप से अनादि, अनंत और सर्वशक्तिमान हैं, क्योंकि वे एक रूप के अंश है। इसीलिए ईसाई धर्म 'परस्पर प्रेम भावना पर अधिक बल देता है। ईसाई धर्म के अनुयायियों के अनुसार ' ईश्वर-पुत्र ईसा क्रू स पर मरकर मानव-जाति के सभी पापों का प्रायश्चित किया था।
बाइबिल दिखाती है प्रेम और प्रार्थना का मार्ग
परमेश्वरउनकेलिएमित्रकीतरहहैजोउसकेबताएमार्गपरचलतेहैं। जीवनपरमेश्वरकादियाबेशकीमतीवरदानहै।इसेजानें, समझें, खोजें, संवारेंऔरकद्रकरें। क्रोध, हिंसाऔरहत्यासेसदैवबचें। किसीकेप्रतिद्वेषयाघ्रणाकेभावलाकरअपनेतन, मनमेंजहरनघोले। स्त्रियोंकाआदरऔरसम्मानकरें।स्त्रियोंकोनिम्नदृष्टिसेनदेखें।पवित्रतासेदेखेंऔरपवित्रबनें। दोषियोंकोक्षमाकरें।क्षमासेहीकिसीकास्थाईसुधारसंभवहै।बात-बातमेंसंकल्पनलें।अतिआवश्यकहोतोहीसंकल्पलेंऔरहरकीमतपरअपनेवचनकोनिभाएँ। अपनीमेहनतकीकमाईकाकुछहिस्साजरूरतमंदोंकोअवश्यदें। दूसरोंकीगलतियाँ, कमियांऔरदोषनदेखेंक्योंकिकुछअलगतरहकीकमियांऔरदोषतुममेंभीहै।उन्हेंदूरकरनेमेंसमयलगाओं। धनसंपत्तिकेसंग्रहमेंहीजीवननखपाओं।जीवनमेंऔरभीकईमहत्वपूर्णकार्यहैकरनेकेलिए।विवाहकरनावासनामेंजलतेरहनेसेतोअच्छाहीहै। किसीकोछोटा, नीच, घ्रणित, पापी, आदिनसमझो।इन्हेंपरिस्थितिऔरअज्ञानतानेइसअवस्थामेंलापटकतेहैं।होसकेतोऊपरउठनेमेंइनकीमददकरों। अपनेप्राणगंवाकरभीकिसीकीरक्षाकरसकोतोअवश्यकरों।
बाइबिल: प्रेम से भरा एक ग्रंथ
बाइबिल ईसाइयों का पवित्रतम धर्म ग्रंथ है।
ऐसा धर्म ग्रंथ जो ईसाई धर्म की आधार शिला है।
पे्रम और परमेश्वर से सराबोर एक अमूल्य पुस्तक।
इसकी रचना 1400 ई.पू. से 900ई. तक हुई ऐसी मान्यता है।
बाइबिल में कुल मिलाकर 72 ग्रंथों का संकलन है। पूर्व विधान में 45 तथा नव विधान में 27 ग्रंथ हैं।
बाइबिल दो भागों में विभक्त है। पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टामेंट) और नव विधान (न्यू टेस्टामेंट)
बाइबिल का पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टामेंट) ही यहूदियों का भी धर्म ग्रंथ है।
माना जाता है कि बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा (इंस्पायर्ड) से रचित गं्रथ है। किंतु उसे अपोरुषेय नहीं कहा जाता है।
बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा तथा मानवीय परिश्रम दोनों का सम्मिलित परिणाम है।
बाइबिल बड़ी ही सहज है इससे गूढ़ दार्शनिक सत्यों का संकलन नहीं है।
बाइबिल यह बताती है कि ईश्वर ने मानव जाति की मुक्ति का क्या प्रबंध किया है।
इंसान को प्रेम, उदारता और आत्म व्यवहार का पाठ पढ़ाती है बाइबिल।
बाइबिल में लौकिक ज्ञान एवं विज्ञान संबंधी जानकारी भी मिलती है।
बाइबिल के पूर्व विधान में यहूदी धर्म और यहूदी लोगों की गाथाएं, पौराणिक कहानियां आदि का वर्णन है।
बाइबिल के पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टोमेंट) की भाषा इब्रानी है।
बाइबिल के नव विधान को ईसा ने लिखा। इनमें ईसा की जीवन, उपदेश और शिष्यों के कार्य लिखे हैं।
नव विधान की मूल भाषा अरामी और प्राचीन ग्रीक है।
नव विधान में चार शुभ संदेश हैं जो ईसा की जीवनी का उनके चार शिष्यों द्वारा वर्णन है।
ईसा के चार प्रमुख शिष्य: मत्ती, लूका, युहन्ना और आकुसथे।
हजरत मूसा बाइबिल के सर्वाधिक प्राचीन लेखक हैं जिन्होंने 1100 ई.पू. में पूर्व विधान का कुछ अंश लिखा था।
नव विधान की रचना 50 वर्ष की अवधि में हुई यानि सन 50 ई से. 100 ई. के बीच।
बाइबिल में लोक कथाएं, काव्य और भजन, उपदेश, नीति कथाएं आदि अनेक प्रकार के साहित्यिक रूप पाए जाते हैं।
ईसाई धर्म : सिद्धांत और उपदेश
ईसा बहुधा ईश्वर के राज्य (किंग्डम ऑफ गॉड) की चर्चा करते थे। इसका अर्थ यह था कि पृथ्वी पर ईश्वर की सत्ता ही सबसे अधिक बलवती है। ईसा का कहना था कि पृथ्वी पर ईश्वर के राज्य की स्थापना शीघ्र ही होने वाली है। उनका कहना था कि मनुष्य, ईश्वर प्रेम से पवित्र होकर, ईश्वर में पूर्ण आस्था रखकर, ईश्वर राज्य की स्थापना कर सकता है। वे ईश्वर को पिता और स्वयं को ईश्वर का पुत्र कहते थे।
ईसाई धर्म के प्रमुख संप्रदाय एंव शाखाएंईसाई धर्म में बहुत संप्रदाय है। जिनमें से कुछ प्रमुख संप्रदाय इस प्रकार है:१.ऐवोनिया२.मार सियोनी३.मानी कबीर४.रोमन कैथोलिक५.यौनी टैरिपन६.यूटल केन७.बलकानियां८.प्रोट्रेस्टेन
ईस्टर का त्योहारप्रतिवर्ष इसी घटना की स्मृति में ईसाई धर्म के अनुयायी ईस्टर का त्योहार मनाते हैं। 'गुड फ्रायडे वह दिन समझा जाता है जिस दिन ईसा की मृत्यु हुई थी। मृत्यु के तीसरे दिन पुन: जीवित होने के बाद वे 40 दिनों तक अपने शिष्यों एवं मित्रों के साथ रहे, और अंत में स्वर्ग चले गए।
ईसाई-धर्म और जिंदगी के अनसुलझे सवाल
कई ऐसे मुद्दे हैं जो इंसान और उसकी जिंदगी के साथ प्रारंभ से ही जुड़े हुए हैं। जैसे कि ईश्वर कौन, कहां और कैसा है?, जिंदगी का मकसद क्या है? हम जन्म से पहले कहां थे और मौत के बाद कहां होगे? इन मुद्दों पर दुनिया के विभिन्न धर्मों और हिस्सों में अलग-अलग मान्यताएं हैं। इन महत्वपूर्ण विषयों में ईसाई धर्म क्या कहता और मानता है, आइये देखते हैं-
- कौन है ईश्वर: एक सत्ता है पर उसके तीन रूप है। पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा।
- इंसान का पतन कैसे : ईश्वर ने मानव को पूर्ण बनाया किंतु आदम ने ईश्वर
का आदेश न मानने का अपराध किया। इस कारण मानव जाति ईश्वर से दूर
हो गई और उसका पतन हुआ। (पुरानी बाइबिल)
- अवतार क्या है: मनुष्य औ ईश्वर के पुनर्मिलन को पुन: स्थापित करने के लिए
ईश्वर ईशू के रूप में मनुष्य बनकर धरती पर अवतरित हुआ। (नई बाइबिल)
- कुंवारी से जन्मे यीशू: ईश्वर ने ईशू के रूप में चमत्कार पूर्वक कुंवारी मरीयम
की कोख (गर्भ) से जन्म लिया।
- यीशू के दो रूप: ईशू एक ही समय में ईश्वर भी था और मनुष्य भी।
- प्रायश्चित क्यों: ईश्वर ने ईशू के रूप में कष्ट सहा, मनुष्य बनकर बलिदान दिया।
- पुररुत्थान कैसे : ईश्वर ने ईशू की कब्र से उठकर विश्वास वालों को अमरता
प्रदान की।
- चर्च का देवी आधार: ईश्वर ने ईशू रूप में मनुष्य और ईश्वर के साम्राज्य को
स्थापित पद्धति के रूप में चर्च (संघ) का निर्माण किया।
- कृपा कब और क्यों: ईश्वर अपने प्रेम द्वारा मनुष्य को पाप से बचाने के लिए
सहायता देता है।
- पुरागमन : ईश्वर ईशू के रूप में फिर आएगा। भले लोग कब्र से उठ खड़े होंगे।
पुण्यात्मओं की मुक्ति होगी। पापी सदा के लिए नरक में जाएंगे।
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है....MMK
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