जानिए आपके प्रिय देवी-देवता की कितनी परिक्रमा करें?
क्रमश:...
भगवान की भक्ति में एक महत्वपूर्ण क्रिया है प्रतिमा की परिक्रमा। वैसे तो
भक्तों द्वारा सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु
शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या
निर्धारित की गई है।
ज्योतिषाचार्य पं. मनीष के अनुसार आरती और पूजा-अर्चना आदि के बाद भगवान की
मूर्ति के आसपास सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है, इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए
परिक्रमा की जाती है। पं.मनीष के अनुसार सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा की अलग-अलग
संख्या है।
किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा:
- शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है।
- देवी मां की तीन परिक्रमा की जानी चाहिए।
- भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए।
- श्रीगणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है।
परिक्रमा के संबंध में नियम:
पं. मनीष के अनुसार परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए।
साथ परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी। ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच
में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती। परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना
करें। जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें। इस प्रकार परिक्रमा करने से
पूर्ण लाभ की प्राप्ती होती है।
क्या आप जानते हैं नवरात्रि में क्यों जलाते हैं अखंड ज्योत?
चैत्र तथा आश्विन दोनों नवरात्रि में माता दुर्गा के समक्ष नौ दिन तक अखंड
ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक
स्वरूप होती है। यह अखंड ज्योत इसलिए भी जलाई जाती है कि जिस प्रकार विपरीत
परिस्थितियों में भी छोटा का दीपक अपनी लौ से अंधेरे को दूर भगाता रहाता है उसी
प्रकार हम भी माता की आस्था का सहारा लेकर अपने जीवन के अंधकार को दूर कर सकते
हैं। मान्यता के अनुसार मंत्र महोदधि(मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक
या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है
दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।
अर्थात - घी युक्त ज्योति देवी के दाहिनी ओर तथा तेल युक्त ज्योति देवी के बाई
ओर रखनी चाहिए। अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे
दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल
झाडऩा हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें। यदि अखंड दीपक को ठीक
करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुन: जलाई जा सकती
है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।
हनुमान चालीसा का पाठ क्यों करें?
कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई
है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले
लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और
किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं।
हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ।
हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद
की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है।
इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और
पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।
यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई
समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ
की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह
नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन
को शांति और कई समस्याओं के हल स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही हनुमान
चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं किया गया है। भक्त कभी भी
शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है।
काफी लोग गले या हाथ पर क्यों बांधते हैं ये खास चीज?
कई लोग गले में काले रंग के धागे में किसी धातु या लाल-काले कपड़ा का टुकड़ा
पहनते हैं। यही
ताविज कहलाता है। वहीं कुछ लोग इसे हाथ पर भी बांधते हैं। सामान्यत: सभी छोटे
बच्चों को तो
अनिवार्य रूप से ताविज बांधा जाता है। कई लोग ताविज बांधने को अंधविश्वास
मानते हैं तो कुछ
लोग इसे शुभ मानते हैं। इसके स्वास्थ्य संबंधी कई फायदे भी होते हैं।
ताविज या ताविज जैसी चीजे बांधने या रखने की परंपरा लगभग हर धर्म में मानी गई
है। यह प्राचीनकालीन प्रथा है। जिसे आज भी अधिकांश लोग मानते हैं। ताविज बांधने से
बुरी नजर नहीं लगती है। वहीं कई लोग मंत्रों से सिद्ध किए ताविज धारण करते हैं।
मंत्रों की शक्ति से सभी भलीभांति परिचत हैं। किसी सिद्ध संत या महात्मा द्वारा
अपनी मंत्र शक्ति से ताविज बनाकर दिए जाते हैं। यह ताविज बीमारियों से निजात पाने
के लिए बनवाए जाते हैं। साथ ही ऐसी मान्यता भी है कि इन ताविजों के माध्यम से
व्यक्ति का बुरा समय दूर हो जाता है और धन संबंधी परेशानियों से निजात मिलती है।
ताविज में एक काला धागा होता है। इस धागे में किसी कपड़े में या धातु की छोटी
सी डिबिया होती है। इस कपड़े या डिबिया में कोई मंत्र लिखा भोज पत्र, भभूती, सिंदूर के साथ कई लोग
इसमें तांत्रिक वस्तुएं भी रखते हैं।
मान्यता है कि ताविज के प्रभाव से वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां हमें
प्रभावित नहीं कर पाती। साथ ही ताविज का धागा हमें दूसरों की बुरी नजर से बचाता
है। ताविज का मंत्र लिखा भोज पत्र या भगवान की भभूति या सिंदूर आदि मंत्रों के बल
सिद्ध किए होते हैं जो धारण करने वाले व्यक्ति के लिए शुभ रहते हैं। इसके शुभ
प्रभावों से व्यक्ति सभी प्रकार दुखों से मुक्त हो जाता है, ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं।
याद रखें, इन पांच देवी-देवताओं की पूजा रोज करनी चाहिए...
हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करने की शक्ति केवल भगवान के पास ही है। कई बार
कड़ी मेहनत के बाद भी किसी-किसी को उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता है। ऐसे में
धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और घर-परिवार में तनाव बढ़ता जाता
है। शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार की समस्याओं से निजात पाने के लिए कई प्रकार की
परंपराएं बनाई गई हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है प्रतिदिन प्रात: काल पंच
देवी-देवताओं की पूजा करना।
वेद-पुराण के अनुसार पांच प्रमुख देवी-देवता बताए गए हैं। किसी भी कार्य की
सिद्धि और पूर्णता के लिए इन पांचों देवताओं का पूजन किया जाना अनिवार्य है। इनकी
पूजा के कार्य में आने वाली सभी बाधाएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं और सफलता प्राप्त
होती है। इन पंच देवी-देवताओं में शामिल हैं- प्रथम पूज्य श्रीगणेश, भगवान श्री विष्णु,
महादेव, सूर्यदेव और देवी मां।
इन पांचों की नित्य पूजा करने वाले व्यक्ति को जीवन में कभी भी परेशानियों का
सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसे लोग हर परिस्थिति में समभाव ही रहते हैं। इन पर
किसी भी दुख और दर्द का प्रभाव नहीं हो पाता।
इन पांचों देवताओं को हमारे शरीर से ही जोड़ा गया है। मानव का शरीर पंच तत्वों
से बना है। ये पंच तत्व हैं- जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि, आकाश। ये ही पांच तत्व इन पंच देवों के प्रतीक माने गए हैं।
व्यक्ति के शरीर निर्माण में सर्वप्रथम जल की आवश्यकता होती है, यही जल तत्व का
प्रतिनिधित्व करते हैं प्रथम पूज्य श्रीगणेश। इसके बाद वायु तत्व के प्रतिनिधि हैं
भगवान श्रीहरि। वायु के बाद आवश्यकता होती है पृथ्वी तत्व की, इसकी पूर्ति करते हैं
भगवान शिव। अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं देवी मां। अंत में आकाश तत्व की
पूर्ति करते हैं सूर्य देव। इस प्रकार व्यक्ति यदि इन पंच देवों की पूजा करता है
तो व्यक्ति के सभी दुख और दर्द नष्ट हो जाते हैं।
किस मनोकामना के लिए कौन से भगवान को पूजना चाहिए?
हमारी सभी आवश्यकताओं और मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए भगवान की भक्ति से
अच्छा कोई और उपाय नहीं है। कहा जाता है कि सच्चे से भगवान से प्रार्थना की जाए तो
सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण हो जाती हैं। वैसे तो सभी देवी-देवता हमारी सभी
इच्छाएं पूर्ण करने में समर्थ माने गए हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग
मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग देवी-देवताओं को पूजने का विधान भी बताया गया है।
शादी या विवाहित जीवन से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए शिव-पार्वती,
लक्ष्मी-विष्णु,
सीता-राम, राधा-कृष्ण, श्रीगणेश की पूजा करनी
चाहिए।
धन संबंधी समस्याओं के लिए देवी महालक्ष्मी, कुबेर देव, भगवान विष्णु से
प्रार्थना करनी चाहिए।
पूरी मेहनत के बाद भी यदि आपको कार्यों में असफलता मिलती है तो किसी भी कार्य
की शुरूआत श्रीगणेश के पूजन के साथ ही करें।
यदि आपको किसी प्रकार का भय या भूत-प्रेत आदि का डर सताता है तो पवनपुत्र श्री
हनुमान का ध्यान करें।
पति-पत्नी बिछड़ गए हैं और काफी प्रयत्नों के बाद भी वापस मिलने का योग नहीं
बन पा रहा हो तो ऐसे में श्रीराम भक्त बजरंग बली की पूजा करें। सीता और राम का
मिलन भी हनुमानजी द्वारा ही कराया गया, अत: इनकी पूजा से विवाहित जीवन की सभी समस्याएं भी
दूर हो जाती हैं।
पढ़ाई से संबंधित परेशानियों को दूर करने के लिए मां सरस्वति का ध्यान करें
एवं बल, बुद्धि,
विद्या के दाता
हनुमानजी और श्रीगणेश का पूजन करें।
यदि किसी गरीब व्यक्ति की वजह से कोई परेशानी हो रही हो तो शनिदेव, राहु और केतु की वस्तुओं
का दान करें, उनकी पूजा करें।
भूमि संबंधी परेशानियों को दूर करने के लिए मंगलदेव को पूजें।
विवाह में विलंब हो रहा हो तो ज्योतिष के अनुसार विवाह के कारक ग्रह ब्रहस्पति
बताए गए हैं अत: इनकी पूजा करनी चाहिए।
केवल ऐसे शिवलिंग की पूजा हो सकती है अन्य मूर्तियों की नहीं, क्योंकि...
शिवजी का पूजन लिगं रूप में ही सबसे ज्यादा फलदायक माना गया है। महादेव का
मूर्तिपूजन भी श्रेष्ठ है लेकिन लिंग पूजन सर्वश्रेष्ठ है। सामान्यत: सभी
देवी-देवताओं की मूर्तियां कहीं से टूट जाने पर उनकी प्रतिमाओं को खंडित माना जाता
है लेकिन शिवलिंग किसी भी परिस्थिति में खंडित नहीं माना जाता है। जबकि अन्य
देवी-देवताओं की मूर्तियां यदि खंडित हो जाती हैं तो उनकी पूजा करना शास्त्रों
द्वारा निषेध किया गया है।
शास्त्रों के अनुसार शिवजी का प्रतीक शिवलिंग कहीं से टूट जाने पर भी खंडित
नहीं माना जाता। जबकि अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा खंडित होने पर उनका पूजन निषेध
किया गया है। जबकि शिवलिंग कहीं से टूट जाने पर भी पवित्र और पूजनीय माना गया है।
ऐसा इसलिए है कि भगवान शिव ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल अर्थात निराकार कहे गए
हैं। भोलेनाथ का कोई रूप नहीं है उनका कोई आकार नहीं है वे निराकार हैं। महादेव का
ना तो आदि है और ना ही अंत। लिंग को शिवजी का निराकार रूप ही माना जाता है। केवल
शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते है। इस रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन
हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। शिवलिंग बहुत ज्यादा
टूट जाने पर भी पूजनीय है। अत: हर परिस्थिति में शिवलिंग का पूजन सभी मनोकामनाओं
को पूरा करने वाला जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग का पूजन किसी भी दिशा से
किया जा सकता है लेकिन पूजन करते वक्त भक्त का मुंह उत्तर दिशा की ओर हो तो वह
सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में काले कपड़े का दान क्यों करते हैं?
शनि एक ऐसा ग्रह या देवता है जिसके कुप्रभाव से सभी भली भांति परिचित हैं। शनि
देव को प्रसन्न करने के लिए सामान्यत: सभी कई प्रकार के प्रयत्न करते हैं। मूल रूप
से ऐसा माना जाता है शनिवार के लिए शनिदेव को तेल चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं।
इसके अलावा ज्योतिष में कई और उपाय भी बताए गए हैं शनि को मनाने के। शनि को
प्रसन्न करने के लिए काले कपड़ों का दान भी किया जाता है।
ज्योतिष के अनुसार शनि को न्याय का देवता माना जाता है। जाने-अनजाने में हमारे
द्वारा किए गए सभी पापों का फल शनि देव हमें अवश्य देते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं
है। बुरे कर्मों का फल शनि द्वारा साढ़े साती और ढैय्या में दिया जाता है। जिसके
प्रभाव से व्यक्ति को कई दुख और कष्ट भोगने पड़ते हैं। इन कष्टों और दुखों के
प्रभाव को कम करने के लिए शनि देव की पूजा की करने के साथ ही कई प्रकार के दान
करने होते हैं।
शनि को प्रसन्न करने के लिए काले कपड़ों का दान किसी जरूरतमंद गरीब व्यक्ति को
किया जाता है। शनि श्याम वर्ण हैं और उन्हें काला रंग अति प्रिय है। उनका वेश भी
काला ही है। उन्हें काले रंग की हर वस्तु विशेष प्रिय है। अत: उनके निमित्त काले
वस्त्रों का दान किया जाता है। शनि देव गरीब लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इसलिए किसी गरीब व्यक्ति को ही काले कपड़ों का दान दिया जाता है।
ऐसे हनुमानजी की पूजा करने से बन जाते हैं भाग्यशाली, क्योंकि...
प्राचीन काल से ही हर युग में हनुमानजी की पूजा-भक्ति करने वाले भक्तों की
मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती रही हैं। शास्त्रों के अनुसार तीन युग बीत चुके हैं सतयुग,
त्रेता युग और
द्वापर युग। अभी कलयुग चल रहा है। ग्रंथों में ऐसा बताया गया है कि कलयुग में
मात्र भगवान का नाम लेने से ही व्यक्ति के कई जन्मों के पाप स्वत: नष्ट हो जाते
हैं। इसी वजह से सामान्य पूजा से भी देवी-देवता प्रसन्न हो जाते हैं।
शीघ्र कृपा करने वाले देवी-देवताओं में हनुमानजी प्रमुख देव माने गए हैं। जिस
भक्त से बजरंगबली प्रसन्न हो जाते हैं उन्हें सभी सुख-संपत्ति और सुविधाएं प्रदान
करते हैं। हनुमानजी की कई प्रकार की प्रतिमाएं और फोटो उपलब्ध हैं। शास्त्रों के
अनुसार सभी प्रतिमाओं और फोटो की पूजा का अलग-अलग महत्व बताया गया है। जिस प्रकार
के फोटो की पूजा हम करते हैं वैसे ही फल हमें प्राप्त होते हैं।
यदि किसी व्यक्ति को धन या पैसों से जुड़ी समस्याओं से निजात पाना है, दुर्भाग्य को दूर करना
है तो हनुमानजी के ऐसे फोटो की पूजा करनी चाहिए जिसमें वे स्वयं श्रीराम, लक्ष्मण और सीता माता की
आराधना कर रहे हैं। पवनपुत्र के भक्ति भाव वाली प्रतिमा या फोटो की पूजा करने से
उनकी कृपा तो प्राप्त होती है साथ ही श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता की कृपा भी
प्राप्त होती है। इन देवी-देवताओं की प्रसन्नता के बाद दुर्भाग्य भी सौभाग्य में
परिवर्तित हो जाता है।
हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़ाते हैं, क्योंकि...
श्रीराम के परमभक्त हनुमानजी आज सभी श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र हैं।
हनुमानजी को माता सीता द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त है। ऐसा कहा जाता है कि जहां
भी सुंदरकांड का पाठ विधि-विधान से किया जाता है वहां श्री हनुमान अवश्य पधारते
हैं। वे जल्द ही अपने भक्तों की सभी परेशानियों का हरण कर लेते हैं। जब भक्त की
परेशानियों दूर हो जाती है तब कई श्रद्धालु हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़वाते
हैं।
हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़ाने की परंपरा काफी प्राचीन समय से चली आ रही
है। इस प्रथा के पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि पवन पुत्र को सिंदूर अर्पित करने
से वे अति प्रसन्न होते हैं। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है कि एक दिन हनुमानजी
ने माता सीता को मांग में सिंदूर लगाते देखा। हनुमानजी ने माता सीता से पूछा कि वे
मांग में सिंदूर क्यों लगाती हैं? इस पर देवी जानकी ने बताया कि इससे मेरे स्वामी श्रीराम की
उम्र और सौभाग्य बढ़ता है। यह सुनकर हनुमानजी ने सोचा कि यदि इतने सिंदूर से
श्रीराम की उम्र और सौभाग्य बढ़ता है ता मैं पूरे शरीर पर सिंदूर लगाऊंगा तो
श्रीराम हमेशा के अमर हो जाएंगे और इनकी कृपा सदैव मुझ पर बनी रहेगी। इस विचार के
बाद हनुमानजी अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाने लगे।
हनुमानजी की प्रतिमा को सिंदूर का चोला चढ़ाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है।
हनुमानजी को सिंदूर लगाने से प्रतिमा का संरक्षण होता है। इससे प्रतिमा किसी
प्रकार से खंडित नहीं होती और लंबे समय तक सुरक्षित रहती है। साथ ही चोला चढ़ाने
से प्रतिमा की सुंदरता बढ़ती है, हनुमानजी का प्रतिबिंब साफ-साफ दिखाई देता है। जिससे भक्तों
की आस्था और अधिक बढ़ती है तथा हनुमानजी का ध्यान लगाने में किसी भी श्रद्धालु को
परेशानी नहीं होती।
1 रुपया ही सही पर, आपकी हर जेब में होने चाहिए पैसे, क्योंकि...
हर युग में धन को भगवान की तरह पूजा जाता है और इसके अभाव में जीवन का सुख
प्राप्त नहीं किया जा सकता। आजकल बढ़ती भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने के लिए
अधिकांश लोग दिन-रात मेहनत करते हैं लेकिन सारी कोशिशें असफल हो जाती हैं। बहुत कम
लोग ऐसे हैं जिनके पास सुख-सुविधाएं उपलब्ध हैं। पैसों से जुड़ी विपरित
परिस्थितियों से निपटने के लिए प्राचीन काल से ही कुछ उपाय बताए गए हैं। इन्हीं
उपायों में से एक है धन को आकर्षित करना।
धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति पर रहती है वही धनवान हो सकता है
अन्यथा लाख कोशिशों के बाद भी पैसा प्राप्त नहीं किया जा सकता। ऐसा माना जाता है
कि पैसा ही पैसों को खिंचता है। जिन लोगों के पास बहुत पैसा है उन्हीं के पास और
धन आता है जबकि जो लोग गरीब हैं उन्हें दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से
प्राप्त हो पाती है।
किसी भी प्रकार की पैसों की तंगी से निपटने के लिए जरूरी है कि पैसों को अपनी
ओर आकर्षित किया जाए ताकि आपके पास पैसा स्वयं चलकर आए। इसके जरूरी है कि आपकी हर
जेब में पैसे होने चाहिए। यदि आप ज्यादा पैसा रखने में अक्षम हैं तो कम से कम
जितना हो सके उतना पैसा अवश्य अपनी सभी जेबों में रखें। कोई भी जेब खाली नहीं होनी
चाहिए। खाली जेब होना दरिद्रता को दर्शाता है और व्यक्ति पर इसका नकारात्मक प्रभाव
पड़ता है। यदि सभी जेबों में पैसा होगा तो आपसे भी पैसा आकर्षित होगा और आपको धन
संबंधी कार्यों में सफलता प्राप्त होने लगेगी। संभव है कि आपके पास पैसा आने में
कम या ज्यादा समय लगे लेकिन सभी जेबों में पैसा रखना शुभ शकुन माना जाता है।
खाना खड़े होकर नहीं बल्कि बैठकर खाना चाहिए, क्योंकि...
जीने के लिए सबसे अधिक जरूरी क्रियाओं में से एक है खाना। खाना ही हमारे शरीर
को जीने की शक्ति प्रदान करता है। समय के साथ-साथ हमारी दिनचर्या में कई बड़े-बड़े
परिवर्तन आ गए हैं। हमारी सभी क्रियाएं और उनका तरीका बदल गया है। आधुनिकता की
दौड़ में हमारा खाना खाने का तरीका भी पूरी तरह प्रभावित हुआ है। आज अधिकांश लोग
खाना डायनिंग टेबल पर बैठकर खाते हैं। जबकि पुराने समय में जमीन पर आसन लगाकर खाना
खाने की परंपरा थी। प्राचीन काल से ही बैठकर खाना खाने की परंपरा चली आ रही है,
इसके कई लाभ हैं।
डायनिंग टेबल पर बैठकर खाने से कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां स्वत: ही हमें
घेर लेती हैं परंतु जो लोग जमीन पर बैठकर पारंपरिक तरीके से खाने खाते हैं उनसे कई
छोटी-छोटी बीमारियां दूर ही रहती है।
जमीन पर बैठकर खाना खाने के लाभ
जमीन पर बैठकर खाना खाते समय हम एक विशेष योगासन की अवस्था में बैठते हैं,
जिसे सुखासन कहा
जाता है। सुखासन पद्मासन का एक रूप है। सुखासन से स्वास्थ्य संबंधी वे सभी लाभ
प्राप्त होते हैं जो पद्मासन से प्राप्त होते हैं।
बैठकर खाना खाने से हम अच्छे से खाना खा सकते हैं। इस आसन से मन की एकाग्रता
बढ़ती है। सुखासन से पूरे शरीर में रक्त-संचार समान रूप से होने लगता है। जिससे
शरीर अधिक ऊर्जावान हो जाता है। इस आसन से मानसिक तनाव कम होता है और मन में
सकारात्मक विचारों का प्रभाव बढ़ता है। इससे हमारी छाती और पैर मजबूत बनते हैं।
सुखासन वीर्य रक्षा में भी मदद करता है। इस तरह खाना खाने से मोटापा, अपच, कब्ज, एसीडीटी आदि पेट संबंधी
बीमारियों में भी राहत मिलती है। आज की भागती-दौड़ती जिंदगी ने हमारे स्वास्थ्य के
संबंध में सोचने का समय तक छीन लिया है। ऐसे में जमीन पर सुखासन अवस्था में बैठकर
खाने से वे कई स्वास्थ्य संबंधी लाभ प्राप्त कर शरीर को ऊर्जावान और स्फूर्तिवान
बना सकते हैं।
ऐसे समय पर पीछे से कोई आवाज लगा दे तो क्या करना चाहिए...
काफी लोगों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे घर से किसी खास कार्य के लिए निकल
रहे होते हैं और ठीक उसी पीछे से कोई आवाज लगा देता है। ऐसे में व्यक्ति को थोड़ी
रुक जाना चाहिए फिर अपने कार्य की ओर निकलना चाहिए। ऐसी प्राचीन मान्यता है।
पुराने समय से ही हमारे दैनिक जीवन से जुड़ी कई प्रकार की पंरपराएं प्रचलित
हैं, जिनका
आज भी कई लोग पालन करते हैं। वहीं कुछ लोग इन परंपराओं को अंधविश्वास का नाम देते
हैं। जबकि घर से वृद्धजन इन्हें गहराई से लेते हैं और सभी को इन परंपराओं का
निर्वाह करने की बात भी कहते हैं। इस प्रकार प्रथाएं शकुन और अपशकुन की मान्यताओं
पर आधारित हैं। शकुन यानि शुभ संकेत और अपशकुन यानि बुरा संकेत।
यदि कोई व्यक्ति किसी खास कार्य के लिए निकल रहा है और उसे पीछे से आवाज लगा
दी जाए तो इसे अपशकुन माना जाता है। इस संबंध में ऐसा माना जाता है कि किसी को
पीछे से आवाज लगाना या टोंकना अशुभ है। ऐसा होने का यही मतलब लगाया जाता है कि
व्यक्ति जिस खास कार्य के लिए जा रहा है उसके पूर्ण होने में बाधाएं आ सकती हैं।
यह एक संकेत के समान ही है। यदि किसी व्यक्ति के साथ ऐसा होता है तो उसे घर पर
थोड़ी रुककर निकलना चाहिए।
गांधर्व विवाह की प्रथा: राजा दुष्यंत और शकुंतला ने किया था ऐसा विवाह...
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन के सोलह प्रमुख संस्कार बताए गए हैं, जिनमें से सर्वाधिक
महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह। विवाह आठ प्रकार के बताए गए हैं। इनमें से चार विवाह
श्रेष्ठ माने गए हैं और अन्य चार प्रकार के विवाह अनैतिक माने गए हैं। इनमें चार
श्रेष्ठ विवाह हैं देव विवाह, ब्रह्म विवाह, आणु विवाह और प्राजन्य विवाह। चार अनैतिक विवाह के
प्रकार गांधर्व विवाह, राक्षस विवाह, असुर विवाह और पिशाच विवाह। ऐसे विवाह को सभ्य समाज
में कोई मान्यता नहीं दी गई है।
सभी विवाह की अलग-अलग रीतियां हैं। इनमें गांधर्व विवाह काफी चर्चित विवाह का
प्रकार है। गांधर्व विवाह किसे कहते हैं? इस संबंध में वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत में एक
प्रसंग बताया गया है।
प्रसंग है राजा दुष्यंत और शकुंतला का। राजा दुष्यंत उस भारत वर्ष के राजा थे।
एक दिन जब वे शिकार पर गए तब वन में ऋषि कण्व के आश्रम पहुंचे। आश्रम में शकुंतला
नाम की कन्या थीं जिस कण्व ऋषि ने पुत्री माना था। शकुंतला की सुंदरता देखकर राजा
दुष्यंत इतने अधिक मोहित हो गए कि वे उसी क्षण विवाह करने की बात कही। इसके बाद शकुंतला
ने भी राजा की बात मान ली। इसके बाद विवाह संबंधी रीति-रिवाज के बिना ही गांधर्व
विधि से राजा दुष्यंत ने शकुंतला का पाणिग्रहण कर लिया। इस विवाह से शकुंतला को
भरत नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जो कि आगे चलकर भारत का राजा बना। इसी के नाम पर
हमारे देश का नाम भारत रखा गया है।
घर में भगवान को चढ़ाए हुए फूल-प्रसाद का दो-तीन दिन बाद क्या करें?
देवी-देवताओं पूजा के संबंध में कई महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं। इन नियमों का
पालन करना सभी श्रद्धालुओं के लिए अनिवार्य माना गया है। विधिवत पूजन के साथ ही
भक्त को देवी-देवताओं की कृपा तुरंत प्राप्त हो जाती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती
हैं। मंदिर हो या घर भगवान को प्रसन्न करने के लिए फूल-प्रसादी चढ़ाई जाती है।
घर में भगवान को फूल-फल आदि चढ़ाए जाते हैं, ये चीजें दो-तीन बाद खराब हो
जाती हैं अत: ऐसे समय पर इनका क्या करना चाहिए? इस संबंध में कुछ नियम बताए गए
हैं। सामान्यत: भगवान को चढ़ाए गए फूल जब मुरझा जाए तो उन्हें उतारकर बहती नदी के
प्रवाहित कर दिया जाता है जो कि अनुचित है। विद्वानों के अनुसार जल को दूषित करना
पाप माना जाता है। ऐसे में इन हार-फूल को भगवान की प्रतिमा से उतारकर अपने माथे
लगाना चाहिए, इसके बाद इन्हें किसी ऐसे स्थान पर डाल देना चाहिए जहां ये किसी के पैरों में
आए और इन फूलों का अपमान न हो। हार-फूल आदि को किसी पेड़ की जड़ों में डाला जा
सकता है जिससे इनका उपयोग खाद के रूप हो जाए और उस पेड़ को लाभ प्राप्त हो। भगवान
को अर्पित की गई सभी वस्तुएं पवित्र हो जाती हैं और किसी भी प्रकार इनका अपमान
किया जाना, सीधे-सीधे भगवान का ही अनादर करने के समान है। प्रसाद आदि अधिक समय तक नहीं
रखना चाहिए, इसे अन्य भक्तों में वितरित कर देना चाहिए। फिर भी यदि प्रसाद बच जाता है तो
इसे किसी गाय या कुत्ते को खिला देना चाहिए।
रुकिए, गलत दिन किया ये काम तो बढ़ेगी गरीबी, क्योंकि...
गरीबी एक अभिशाप की तरह ही है। कोई व्यक्ति नहीं चाहता कि वह गरीबी का सामना
करें। धन अभाव में जीवन किसी नर्क के समान ही होता है। यदि कोई व्यक्ति पूरी
ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है फिर भी उसे प्रतिफल के रूप में उचित
धन प्राप्त नहीं हो पा रहा है तो वह कई प्रकार के धार्मिक उपाय भी करता है। इन्हीं
उपायों में से एक है पीपल के वृक्ष की पूजा करना, उसकी परिक्रमा करना।
शास्त्रों के अनुसार पीपल का वृक्ष पवित्र एवं पूजनीय माना गया है। ऐसा वर्णित
है कि इसमें कई देवी-देवताओं का वास रहता है। इसी वजह से इसकी पूजा करने वाले
भक्तों को सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। ध्यान रखने वाली बात यह है कि
पीपल की पूजा और परिक्रमा कब की जानी चाहिए, इस संबंध में कई नियम बताए गए
हैं।
ज्योतिषाचार्य पं. शर्मा के अनुसार पीपल की परिक्रमा करने और स्पर्श के लिए
केवल शनिवार निर्धारित किया गया है। शेष दिनों में पीपल को स्पर्श तक नहीं करना
चाहिए। शनिवार के अतिरिक्त पीपल में दरिद्रता का वास रहता है अत: जो भी व्यक्ति
ऐसे समय में इस वृक्ष को स्पर्श करता है उसे दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता है।
ऐसा माना गया है कि शनिवार के दिन पीपल में लक्ष्मी-नारायण का वास रहता है और इस
दिन पीपल की परिक्रमा करने पर भक्त को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि संबंधी दोषों के निवारण के लिए भी शनिवार के दिन ही
पीपल की सात परिक्रमा करने पर शनि दोषों का प्रभाव कम होता है। इसके साथ कई अन्य
दोषों के समाधान के लिए भी पीपल की पूजा की जाती है। पीपल को जल किसी भी दिन
अर्पित किया जा सकता है। इस संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं है।
अचानक घर में भगवान की मूर्ति या फोटो टूट जाए तो क्या करना चाहिए?
भगवान, ईश्वर या परमात्मा एक ऐसी शक्ति है जिसकी आराधना सभी करते हैं। मनुष्य जीवन की
तमाम परेशानियों को खत्म करने की क्षमता भगवान के पास ही है। देवी-देवताओं को
प्रसन्न करने के लिए काफी लोग मंदिर जाते हैं, इष्टदेव के दर्शन करते हैं। जो
लोग मंदिर नहीं जा पाते हैं उनमें अधिकांश लोग घर पर भी पूजा-अर्चना करते हैं।
अधिकांश लोगों के घरों में छोटा सा मंदिर होता है जिसमें अलग-अलग देवी-देवताओं
की मूर्तियां या फोटो रखे होते हैं। शास्त्रों के अनुसार मूर्तियां बहुत संवेदनशील
मानी गई हैं। अत: इनकी पूजा आदि धर्म कर्म में काफी सावधानी रखनी चाहिए। प्रतिमाओं
और चित्रों के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये कहीं से भी खंडित नहीं
होना चाहिए। खंडित मूर्ति या फोटो की पूजा अशुभ मानी जाती है।
कभी-कभी परिवार के सदस्यों की लापरवाही या अन्य किसी कारण के चलते भगवान की
मूर्ति टूट जाती है या फोटो फट जाते हैं, खराब हो जाते हैं। विद्वानों के अनुसार ऐसा होना
अपशकुन माना जाता है। यदि ऐसा होता है तो इष्टदेव से जाने-अनजाने हुई भूल के लिए
क्षमा याचना करना चाहिए। हनुमान चालिसा का पाठ करना चाहिए। इसके साथ ही टूटी
मूर्ति या खराब फोटो को उस समय किसी ऐसे स्थान पर रख देना चाहिए जहां उन पर किसी
की पैर न लगे। इस प्रकार की मूर्ति या फोटो को घर में या पूजन स्थान में नहीं रखना
चाहिए।
खाने के तुरंत बाद नहीं करना चाहिए ये काम, क्योंकि...
सुखी जीवन के लिए जरूरी है व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ रहे, निरोगी रहे। यदि किसी
इंसान के पास काफी धन है, सभी सुविधाएं हैं लेकिन यदि वह शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं
है तो उसका जीवन सुखी नहीं हो सकता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त भोजन सही
समय लेना अतिआवश्यक है। भोजन की महत्ता को देखते हुए शास्त्रों में कुछ बहुत खास
नियम बताए गए हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य है।
वेद-पुराण और विद्वानों के अनुसार भोजन के समय ध्यान रखना चाहिए कि हम किसी
अन्य व्यक्ति को अपना जूठा खाना न दें। यदि किसी व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी कोई
परेशानी है तो उसका जूठा भोजन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही ध्यान रखें कि यदि कोई
व्यक्ति भोजन कर रहा हो तो हमें उसके साथ बीच में खाना नहीं खाना चाहिए। ये बात
शिष्टाचार से नियमों के विरुद्ध है।
भोजन इतना ही खाना चाहिए जितना हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक रहे। न तो
ज्यादा भोजन करें और ना ही कम। जरूरत से कम या अधिक भोजन करने पर पेट संबंधी
बीमारियां होने की संभावनाएं रहती हैं। अधिक भोजन से आलस्य बढ़ता है। कम भोजन से
हमारे शरीर को पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त नहीं हो पाती है। खाना वहीं खाएं जो आपके
स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाता है।
इस संबंध में सबसे जरूरी बात यह है कि भोजन करने के तुरंत बाद व्यक्ति को बिना
मुंह और हाथ साफ किए कहीं इधर-उधर जाना नहीं चाहिए। जूठे मुंह और हाथों से घर में
घुमना अशुभ माना जाता है। घर में खाने के बाद ऐसा करते हैं तो इससे हमारे हाथों
में लगी जूठन कहीं गिर सकती है, जो कि घर को अपवित्र बनाती है। इस प्रकार की अपवित्रता का
अशुभ प्रभाव घर में रहने वाले सभी सदस्यों पर पड़ता है। इसीलिए ध्यान रखें कि भोजन
के तुरंत बाद सबसे पहले शुद्ध पानी से हाथ और मुंह अच्छे साफ कर लेना चाहिए।
खास बात
आजकल बाजार में कुछ न कुछ खाने-पीने का चलन काफी बढ़ गया है, ऐसे में कुछ लोग ऐसी
खाने के बाद हाथ-मुंह साफ नहीं करते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह अनुचित है। कुछ भी
खाने के बाद हमें हाथ-मुंह अच्छे पानी से अवश्य साफ करना चाहिए। जूठे मुंह-हाथ लिए
इधर-उधर घुमना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना
करना पड़ सकता है।
जब भी किसी मंदिर के सामने से निकले तो ये काम करें, क्योंकि...
मंदिर एक ऐसा स्थान है जहां सामान्यत: सभी लोग अपनी-अपनी मनोकामनाओं को पूरी
कराने के उद्देश्य से जाते हैं। भगवान की भक्ति के लिए मंदिर से अच्छा दूसरा कोई
स्थान नहीं है। मंदिर का वातावरण भी मन को लुभाने वाला होता है, मन को शांति मिलती है।
इन्हीं बातों की वजह से सभी मंदिर जाने की इच्छा रखते हैं लेकिन कुछ लोग समय अभाव
या अन्य किसी कारण से मंदिर नहीं जा पाते। ऐसे में वास्तु के अनुसार घर में मंदिर
बनवाएं।
यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन भगवान के दर्शन करने नहीं जा पाता है तो ऐसे में
जहां भी किसी मंदिर का शिखर दिखाई दे वहां से भगवान को याद करके शिखर दर्शन कर
लेना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार मंदिर के शिखर दर्शन को भी भगवान के दर्शन के
बराबर ही पुण्य देने वाला बताया गया है।
मंदिर का शिखर भी उतना ही महत्व है जितना भगवान की प्रतिमा या मूर्ति का होता
है। शास्त्रों में कहा गया है कि शिखर दर्शनम् पाप नाशम्। अर्थात शिखर के दर्शन
करने से भी हमारे सभी पापों का नाश हो जाता है।
शिखर दर्शन करने का भी समय नहीं मिलता है तो वास्तु के अनुसार बताए गए नियमों
के आधार पर घर में मंदिर बनवाएं। प्रतिदिन विधि-विधान से पूजन करें। जो पुण्य
मंदिर जाने से मिलता है वहीं पुण्य घर पर विधि-विधान से किए गए पूजन से भी प्राप्त
हो जाता है। वास्तु के अनुसार किस प्रकार मंदिर बनवाना चाहिए यह पूर्व में
प्रकाशित किया जा चुका है।
ये 10
काम कभी ना करें क्योंकि ये हैं महापाप...
जब से सृष्टि की रचना हुई है तभी पाप और पुण्य की अवधारणाएं चली आ रही हैं।
पाप औ पुण्य के आधार पर ही व्यक्ति का प्रारब्ध या भाग्य बनता है। शास्त्रों के
अनुसार कर्मों के फल व्यक्ति को अवश्य ही प्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति जैसे काम
करता है उसे वैसे ही फल प्राप्त होते हैं। अत: व्यक्ति यदि अच्छा भविष्य चाहता है
तो उसे शास्त्रों के अनुसार बताए गए इन पाप कर्मों से दूर रहना चाहिए-
- दूसरों का धन हड़पना या हड़पने की
इच्छा: किसी भी स्थिति में अन्य लोगों के धन को धोखे से हड़प लेना पाप है।
- यदि आपका मन किसी गलत कार्य को करने से मना कर रहा है, फिर आप करते हैं तो यह पाप है।
ये कर्म निषिद्ध कर्म (मन जिन्हें करने से मना करें) माने गए हैं।
- जो लोग सिर्फ सुंदर देह को ही सबकुछ मानते हैं, किसी के अच्छे व्यवहार और
धार्मिक आचरण को महत्व नहीं देते हैं तो यह भी पाप है।
- किसी भी व्यक्ति से कठोर वचन बोलना पाप माना गया है।
- झूठ बोलना या सच को छुपाना भी पाप है।
- दूसरों की बुराई या निंदा करना भी पाप है।
- बकवास करना (बिना कारण बोलते रहना) भी पाप है।
- किसी भी स्थिति में चोरी करना पाप ही है।
- तन, मन,
कर्म से किसी को
दु:ख देना, किसी को आहत करना, किसी के कार्य बिगाडऩा पाप है।
- यदि कोई स्त्री पति के अतिरिक्त किसी पर पुरुष से शारीरिक संबंध रखती है तो यह
महापाप है। ठीक इसी प्रकार कोई पुरुष पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री से
शारीरिक संबंध रखता है तो यह महापाप है।
इन पाप कर्मों को करने वाला व्यक्ति नर्क की यातनाएं भोगता है। ऐसा शास्त्रों
में वर्णित है।
रात को सोने से पहले ध्यान रखें ये जरुरी बात, क्योंकि...
कैसी भी थकान हो या कैसी भी बीमारी हो, पर्याप्त नींद इन समस्याओं का
सबसे अच्छा उपाय है। स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है प्रतिदिन पर्याप्त नींद ली जाए।
यदि नींद पूरी नहीं हो पाती है तो ये आलस्य को बढ़ाती है और कई बीमारियों का
न्यौता देती है। हमें अच्छे से नींद के लाभ मिल सके इसके लिए शास्त्रों में कई
प्रकार के नियम बताए गए हैं। इन नियमों का पालन पर व्यक्ति को आरामदायक नींद आती
है।
नींद के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि हम लेटे कैसे? हमारा सिर और पैर किस
दिशा में होना चाहिए? यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए तो व्यक्ति को गहरी और अच्छी नींद प्राप्त होती
है। सोने की सही अवस्था व्यक्ति को काफी ऊर्जा प्रदान करती है। गलत अवस्था में
सोने पर कई प्रकार की बीमारियां होने की संभावनाएं रहती हैं।
वास्तु या फेंगशुई और शास्त्रों के अनुसार में इंसान की सोने की अवस्था भी ऊर्जा को प्रभावित करती है। सोते समय हमारा
सिर पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। इन दिशाओं के विपरित सोना अशुभ माना
गया है।
पूर्व या दक्षिण दिशा में सिर रखकर सोने से दीर्घ आयु एवं अच्छा स्वास्थ्य
प्राप्त होता है। जबकि पश्चिम या उत्तर दिशा में सिर रखकर सोने पर स्वास्थ्य
संबंधी परेशानियां हो सकती हैं और इसे अशुभ भी माना जाता है।
विज्ञान के दृष्टिकोण से देखा जाए तो पृथ्वी के दोनों ध्रुवों उत्तरी और
दक्षिणी ध्रुव में चुम्बकीय प्रवाह विद्यमान है। उत्तर दिशा की ओर धनात्मक प्रवाह
रहता है और दक्षिण दिशा की ओर ऋणात्मक प्रवाह रहता है। इसी के आधार पर चुम्बक में
भी दो पॉल साउथ (उत्तर) पॉल और नॉर्थ (दक्षिण) पॉल रहते हैं। यदि दो चुंबक के साउथ
पॉल को मिलाया जाए तो वे चिपकते नहीं हैं बल्कि एक-दूसरे से दूर भागते हैं। जबकि
अपोजिट पॉल्स मिलाए जाए तो चुंबक चिपक जाती है। यही सिद्धांत सोने के संबंध में
हमारे शरीर पर भी लागू होता है। हमारे सिर की ओर धनात्मक ऊर्जा और पैर की ओर
ऋणात्मक ऊर्जा रहती है। यदि हम उत्तर दिशा की ओर सिर रखकर सोते हैं तो उत्तर दिशा
का धनात्मक तरंगे और हमारे सिर की धनात्मक तरंगे एक-दूसरे को दूर भगाती हैं जिससे
मस्तिष्क हलचल बढ़ जाती है और ठीक से नींद नहीं आ पाती है। जबकि दक्षिण दिशा की ओर
सिर रखने पर पैरों की ऋणात्मक तरंगे वातावरण की धनात्मक तरंगों को आकर्षित करती
हैं और सिर की धनात्मक तरंगे वातावरण की ऋणात्मक तरंगों को आकर्षित करती हैं जिससे
हमारे मस्तिष्क में कोई हलचल नहीं होती है। इससे नींद अच्छी आती है। अत: उत्तर की
ओर सिर रखकर नहीं सोना चाहिए।
पश्चिम दिशा में सिर रखकर सोते हैं तो हमारे पैर पूर्व दिशा की ओर होंगे जो कि
शास्त्रों के अनुसार अशुभ माना गया है। क्योंकि पूर्व दिशा से सूर्योदय होता है और
हम उस दिशा में पैर रखें तो यह सूर्य देव के अपमान के समान ही है। ऐसे सोने पर व्यक्ति बुद्धि संबंधी परेशानियां झेलता है।
समाज में मान-सम्मान प्राप्त नहीं कर पाता।
घर में नहीं रखना चाहिए भगवान की ऐसी चीजें, क्योंकि...
सामान्यत: ऐसा माना जाता है कि भगवान से जुड़ी हर वस्तु या चीज पूज्य और
पवित्र होती है। इसी वजह से उन चीजों को घर में संभालकर रखा जाता है। लेकिन विशेष
परिस्थितियों में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें घर में नहीं रखना चाहिए। ये
चीजें हैं भगवान की टूटी-फूटी तस्वीर और मूर्तियां।
घर में कभी भी कोई टूटी-फूटी तस्वीर अथवा मूर्ति न लगाएं। अगर कोई मूर्ति या
तस्वीर टूट जाए तो उसे तुरंत घर से हटा देना चाहिए। बेकार तस्वीरें या फोटो घर के
वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इस वजह से घर के सदस्यों की सोच प्रभावित
होती है। शास्त्रों के अनुसार ऐसे फोटो या मूर्तियां घर में नहीं रखना चाहिए।
विद्वानों के अनुसार घर की हर चीज का प्रभाव हमारी सोच-विचार पर पड़ता है। ऐसे
में घर में वहीं वस्तुएं रखना चाहिए जिनसे घर के सदस्यों के विचार शुद्ध रहे और
सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हो। बेकार और टूटी-फूटी तस्वीर या मूर्तियां नकारात्मक
ऊर्जा को आकर्षित करती है जिससे घर का वातावरण भी वैसा ही हो जाता है। सदस्यों का
मन अशांत रहता है और घर में परेशानियां पैदा होती हैं। परिवार में क्लेश, पति-पत्नी के रिश्ते में
तनाव भी उत्पन्न हो जाता है। साथ ही घर में धन के प्रवाह में रुकावट आती है।
पुरानी टूटी, बेकार तस्वीरों से घर की सुंदरता भी खत्म हो जाती है। इससे बाहर से आने वाले
लोगों के सामने हमारे घर के लिए अच्छी सोच नहीं बनती है। इन्हीं सब कारणों के चलते
घर में बेकार, पुरानी तस्वीर-फोटो या मूर्तियां हटा देनी चाहिए। पूजन कर्म में यदि खंडित
मूर्तियां रखी जाती हैं तो इसे अशुभ माना जाता है। ऐसी मूर्तियों की पूजा निषेध की
गई।
कभी आपके घर आए कोई भिखारी तो क्या करें?
सभी धर्मों में गरीबों की मदद करना हमारा कर्तव्य बताया गया है। जो भी व्यक्ति
दान करने में समर्थ है उसे हमेशा जरूरतमंदों को सहयोग करना चाहिए। इसी वजह से
अधिकांश घरों के लोग घर आए भिखारी को कभी खाली हाथ नहीं जाने देते।
हिंदु धर्म में भिखारी को भी नारायण ही माना गया है। इन्हें दरिद्र नारायण कहा
जाता है। शास्त्रों अनुसार भगवान हमारी समय-समय पर परीक्षा लेते हैं। पुराने समय
में भी कई ऐसे प्रसंग मिलते हैं जहां भगवान भिक्षुक बनकर भक्त की परीक्षा लेने
पहुंचे। भगवान हमेशा ही भक्तों की श्रद्धा को परखने के लिए नए वेश धारण करते हैं।
कहा जाता है कि भगवान कब, कहां, किस रूप में आपके सामने आ जाए, यह समझना आम मनुष्य की बुद्धि से
परे ही है। इसे समझ पाना अति मुश्किल है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्राचीन
ऋषिमुनियों ने यह नियम बनाया कि आपके घर में कोई भिक्षुक आए उसे कभी खाली हाथ न
जाने दें। ऐसा हो सकता है कि स्वयं भगवान ही आपकी परीक्षा लेने आए हो।
मानवता के नाते भी किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करना सभी का धर्म है। यदि
कोई धन अर्जित करने में असमर्थ है या शारीरिक रूप से अक्षम है तो उसकी मदद करना
सभी परम कर्तव्य है। हमारी मदद से उसके घर के सदस्यों को खाना मिलता है। शास्त्रों
के अनुसार ऐसे जरूरतमंदों की दुआओं का अच्छा प्रभाव बताया गया है। गरीबों की दुआएं
हमें बुरे समय से बचाती है। साथ ही हमारे पुण्यों में बढ़ोतरी करती है जिसके
प्रभाव से हमारे कई रुके हुए कार्य पूर्ण हो जाते हैं। घर के सदस्यों पर यदि को
विपदा आने वाली हो तो वह भी इन दुआओं से टल जाती है। इन्हीं कारणों के चलते कभी भी
भिखारी को खाली हाथ नहीं जाने देना चाहिए।
घर में हर रोज 2 बार जरुर करें ये 1 काम, क्योंकि...
किसी भी परिवार की सुख और समृद्धि इस बात पर निर्भर करती है कि घर का वातावरण
कैसा है? यदि
घर में पवित्रता और स्वच्छता नहीं होगी तो वहां रहने वाले लोगों को कई प्रकार की
परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यदि घर में कचरा और गंदगी रहेगी तो परिवार के सदस्यों को कई प्रकार के रोगों
का सामना करना पड़ सकता है। अत: घर को सुबह और शाम दोनों समय अच्छी तरह साफ किया
जाना चाहिए। किसी कोने में भी धूल या मिट्टी नहीं होना चाहिए। ये तो है एक सामान्य
सी बात लेकिन घर की साफ-सफाई का संबंध परिवार की आर्थिक स्थिति से भी है। जिस घर
में स्वच्छता नहीं होती है वहां दरिद्रता पैर पसार लेती है।
शास्त्रों के अनुसार धन संबंधी सफलता और सुख के लिए जरूरी है कि महालक्ष्मी की
कृपा प्राप्त की जाए। यदि किसी व्यक्ति के कार्यों या व्यवहार से महालक्ष्मी
प्रसन्न नहीं है तो उसे पैसों की तंगी झेलना पड़ती है और उसके जीवन में दुख बने
रहते हैं। महालक्ष्मी को प्रसन्न रखने के लिए सबसे जरूरी बात है कि आपका घर एकदम
साफ और स्वच्छ हो। क्योंकि साफ एवं पवित्र स्थान पर महालक्ष्मी निवास करती है।
गंदगी में दरिद्रता का वास होता है। अत: घर साफ रखें। प्रतिदिन सुबह और शाम को घर
की सफाई करें।
घर की गंदगी वास्तुदोष उत्पन्न करती है। इस वजह से परिवार के सदस्यों को कई
प्रकार के नकारात्मक विचारों का सामना करना पडता है। वास्तु दोष नेगेटिव एनर्जी को
बढ़ाते हैं जबकि साफ-सफाई पॉजीटिव एनर्जी को बढ़ाती है।
कभी भी दरवाजे की ओर पैर करके मत सोना, क्योंकि...
अच्छे और स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है चैन की नींद। नींद का संबंध न केवल
हमारे स्वास्थ्य है बल्कि इसका प्रभाव घर की आर्थिक और धार्मिक स्थिति पर भी पड़ता
है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए शास्त्रों में कई प्रकार के नियम बताए गए हैं। इन
नियमों का पालन करना अतिअनिवार्य है अन्यथा कोई भयंकर परिणाम तक झेलना पड़ सकता
है।
गलत दिशा में सोना कई प्रकार से अशुभ है। पूर्व में जीवनमंत्र पर बताया गया है
कि हमें दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर सिर रखकर सोना चाहिए। इस संबंध में धार्मिक,
वैज्ञानिक प्रभाव
भी बताए गए हैं। इसके साथ ही एक बात और ध्यान रखना चाहिए कि सोते समय हमारे पैर
दरवाजे के सामने न हो। ऐसे सोना शास्त्रों के अनुसार अच्छा नहीं माना जाता है।
विद्वानों के अनुसार दरवाजे की ओर पैर करके सोना मृत्यु का सूचक माना जाता है।
किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके मृत शरीर को इसी अवस्था में रखा जाता है। अत:
इस प्रकार जीवित व्यक्ति नहीं सोना चाहिए। दरवाजे की ओर पैर रखकर केवल मृत शरीर को
रखा जाता है। जीवित के लिए यह स्थिति अत्यधिक हानिकारक है। इसलिए इस अवस्था में न
सोएं।
ऐसे सोने पर घर के वातावरण में नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढऩे लगता है।
जिससे परिवार के सदस्यों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। आर्थिक कार्यों
में भी नुकसान की संभावनाएं निर्मित होती हैं।
भगवान की पूजा में दीपक बुझ जाए तो समझना चाहिए कि...
आरती के संबंध में कई नियम बताए गए हैं। शास्त्रों के अनुसार आरती करते समय
दीपक का बुझना अपशकुन माना जाता है। इसी वजह से इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है
कि पूजा आदि कर्म जब तक पूर्ण ना हो जाए दीपक जलता रहना चाहिए। यदि किसी भी कारण
से दीपक बुझ जाता है तो ऐसा माना जाता है कि जिस मनोकामना के लिए पूजा की जा रही
है उसमें अवश्य ही कोई बाधा उत्पन्न हो सकती है।
शास्त्रों में भगवान को प्रसन्न करने के लिए कई मार्ग बताए गए हैं। यह अलग-अलग
विधियां भगवान की प्रसन्नता दिलाती है जिससे हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती
हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए सबसे अधिक प्रचलित उपाय है भगवान की आरती।
आरती करते समय यदि दीपक बुझ जाता है तो भगवान से क्षमा याचना करते हुए पुन:
दीपक जलाकर आरती करना चाहिए। साथ ही जिस कार्य के लिए पूजा की जा रही है उस कार्य
को करते समय पूरी सावधानी रखनी चाहिए। अन्यथा सफलता प्राप्त करना काफी मुश्किल हो
सकता है। आरती के लिए दीपक तैयार करते समय ध्यान रखें की दीपक में पर्याप्त तेल या
घी भरा जाए। दीपक की बत्ती जो कि रुई की बनाई जाती है वह भी अच्छे से बनाना चाहिए।
साथ ही पूजा-अर्चना करते समय उस क्षेत्र में पंखा या कूलर आदि भी नहीं चलाना चाहिए
जिसकी हवा से दीपक बुझ सकता है। पूजन कार्य में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
भगवान की आराधना से पहले खुद को अच्छे पवित्र कर लेना चाहिए।
जानिए कौन-कौन से काम करने से दूर होती हैं महालक्ष्मी...
पैसा, धन, रुपए
आज सभी की सबसे पहली जरूरत बन गया है। इसके लिए कई प्रकार के जतन किए जाते हैं।
फिर भी कई लोगों के साथ काफी ऐसा होता है कि अत्यधिक मेहनत के बाद भी पर्याप्त
पैसा नहीं मिल पाता। कुछ लोगों की आय तो बहुत अच्छी होती है लेकिन बचत नहीं हो
पाती। ज्योतिष के अनुसार ऐसा होने के पीछे कई कारण मौजूद हैं।
धन की प्राप्ति और बचत के लिए जरूरी है कि आप देवी महालक्ष्मी की कृपा रहे।
महालक्ष्मी की कृपा के बिना कोई भी व्यक्ति धन के संबंध में संतुष्ट हो ही नहीं
सकता। धर्म शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी उन्हीं लोगों से प्रसन्न होती हैं जो
निम्न कर्मों से दूर रहते हैं-
सूर्योदय के बाद सोना, सूर्यास्त के समय सोना, दिन में सोने वाले लोगों से मां
लक्ष्मी अप्रसन्न रहती हैं।
रात में दही तथा दिन में दूध का सेवन करने से लक्ष्मी का नाश होता है।
जिस घर में या प्रतिष्ठान में गंदगी या बदबू रहती है वहां महालक्ष्मी का निवास
नहीं होता है।
किसी भी दिन विशेषकर गुरुवार को ज्यादा ऊंची आवाज में बोलने या लडऩे से पैसा
समाप्त होता है।
जिस घर में पति-पत्नी में झगड़ा होता हो वहां महालक्ष्मी कृपा नहीं करती हैं।
जिस घर में रात के समय झूठे बरतन रहते हो वहां देवी लक्ष्मी नहीं रहती हैं।
इन बातों का ध्यान रखने पर धन की देवी महालक्ष्मी सदैव आपके घर पर निवास
करेंगी और पैसा से जुड़ी समस्याएं आपसे
दूर ही रहेंगी।
जानिए, किस काम के लिए कौन से देवी-देवता को पूजना चाहिए?
हमारी सभी आवश्यकताओं और मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए भगवान की भक्ति से
अच्छा कोई और उपाय नहीं है। कहा जाता है कि सच्चे से भगवान से प्रार्थना की जाए तो
सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूर्ण हो जाती हैं। वैसे तो सभी देवी-देवता हमारी सभी
इच्छाएं पूर्ण करने में समर्थ माने गए हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग
मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग देवी-देवताओं को पूजने का विधान भी बताया गया है।
शादी या विवाहित जीवन से जुड़ी समस्याओं के निराकरण के लिए शिव-पार्वती,
लक्ष्मी-विष्णु,
सीता-राम, राधा-कृष्ण, श्रीगणेश की पूजा करनी
चाहिए।
धन संबंधी समस्याओं के लिए देवी महालक्ष्मी, कुबेर देव, भगवान विष्णु से
प्रार्थना करनी चाहिए।
पूरी मेहनत के बाद भी यदि आपको कार्यों में असफलता मिलती है तो किसी भी कार्य
की शुरूआत श्रीगणेश के पूजन के साथ ही करें।
यदि आपको किसी प्रकार का भय या भूत-प्रेत आदि का डर सताता है तो पवनपुत्र श्री
हनुमान का ध्यान करें।
पति-पत्नी बिछड़ गए हैं और काफी प्रयत्नों के बाद भी वापस मिलने का योग नहीं
बन पा रहा हो तो ऐसे में श्रीराम भक्त बजरंग बली की पूजा करें। सीता और राम का
मिलन भी हनुमानजी द्वारा ही कराया गया, अत: इनकी पूजा से विवाहित जीवन की सभी समस्याएं भी
दूर हो जाती हैं।
पढ़ाई से संबंधित परेशानियों को दूर करने के लिए मां सरस्वति का ध्यान करें
एवं बल, बुद्धि,
विद्या के दाता
हनुमानजी और श्रीगणेश का पूजन करें।
यदि किसी गरीब व्यक्ति की वजह से कोई परेशानी हो रही हो तो शनिदेव, राहु और केतु की वस्तुओं
का दान करें, उनकी पूजा करें।
भूमि संबंधी परेशानियों को दूर करने के लिए मंगलदेव को पूजें।
विवाह में विलंब हो रहा हो तो ज्योतिष के अनुसार विवाह के कारक ग्रह ब्रहस्पति
बताए गए हैं अत: इनकी पूजा करनी चाहिए।
घर में छिड़काव करें इस चमत्कारी चीज का, क्योंकि...
हिंदू धर्म में गाय को पवित्र और पूजनीय माना गया है। शास्त्रों में गौ को
माता का दर्जा दिया गया है। साथ ही गाय की पूजा को सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली
बताया गया है। वास्तु के अनुसार गौमूत्र से घर के सभी वास्तु दोष समाप्त हो जाते
हैं और परेशानियां दूर हो जाती हैं।
वैसे तो गाय की पूजा से ही हमारे कई जन्मों के पाप स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं
लेकिन गौमूत्र का काफी महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार गाय में तेतीस
करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है इसी वजह से गौ को पूजनीय और पवित्र माना गया
है। गाय से मिलने वाली हर चीज का धार्मिक महत्व है। गौमूत्र को आयुर्वेद और धर्म
में काफी गुणकारी बताया गया है।
आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का कई बीमारियों में दवा के रूप में उपयोग किया
जाता है। वहीं धर्म के अनुसार इससे घर की पवित्रता बनी रहती है। यदि हमारे घर में
किसी प्रकार का कोई वास्तु दोष हो तो प्रतिदिन घर में गौमूत्र का छिड़कने से वे
सभी दोष दूर हो जाते हैं। घर में सुख-शांति बनी रहती है। परिवार के सदस्यों में
परस्पर प्रेम बढ़ता है और वातावरण भी सूक्ष्म कीटाणुओं से मुक्त हो जाता है।
घर के वातावरण में मौजूद कई प्रकार के हानिकारक सूक्ष्म कीटाणु गौमूत्र के
प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। इससे परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य संबंधी लाभ
प्राप्त होता है। जिस घर में प्रतिदिन गौमूत्र का छिड़का जाता है वहां सभी
देवी-देवताओं की कृपा बरसती है। जिससे वहां कभी धन या धान्य की किसी प्रकार की कोई
कमी नहीं रहती।
ऐसे समय में घर में पूजा न करें, क्योंकि...
हम सुखी और खुशहाल जिंदगी के लिए सभी भगवान, परमात्मा, परमेश्वर, देवी-देवताओं का पूजन करते हैं।
भगवान का पूजन मंदिरों में भी किया जाता है और घरों में भी। शास्त्रों के अनुसार
घर में भगवान प्रतिमा रखने के संबंध में कई जरूरी सावधानियां बताई गई हैं। इनका
पालन करने पर निश्चित ही हमारे सुख, वैभव, यश, धन में वृद्धि होती है।
यदि घर में रखी भगवान की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की गई है तो ऐसी
मूर्तियों में सूतक लगता है। अत: यदि परिवार में किसी भी तरह का सूतक लगता है
(जैसे परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद का समय) तो इन मूर्तियों की पूजा
परिवार के किसी भी सदस्य को नहीं करना चाहिए बल्कि किसी ब्राह्मण, बहन या बेटी से ही पूजन
कराना चाहिए।
जिस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की गई हैं, उन मूर्तियों में सूतक नहीं
लगता। प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होने की दशा में भगवान की मूर्तियां घर के सदस्य की
तरह ही होती हैं। घर के मंदिर भगवान की जो मूर्ति रखी गई है उनकी फोटो अपने साथ
रखना चाहिए। घर से बाहर रहने पर उस फोटो के दर्शन करने चाहिए। घर में भगवान की
खंडित प्रतिमा कतई ना रखें।
घर के बाहर बांधनी चाहिए नींबू और हरी मिर्ची, क्योंकि...
कुछ लोगों के परिवार और जीवन में सब कुछ अच्छा चलता रहता है और अचानक ही
परेशानियां प्रारंभ हो जाती है। परिवार में किसी सदस्य की तबीयत खराब हो जाती है
जिससे मानसिक तनाव बना रहता है। ऐसे में आर्थिक कार्यों में भी काफी समस्याएं
उत्पन्न हो जाती हैं। संभव है ऐसी घटनाओं के पीछे किसी की बुरी नजर हो। बुरी नजर
लग सकती है लेकिन आजकल काफी लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं।
बुरी नजर के कारण जीवन में सब कुछ अच्छा चलता हुआ एकदम बिगड़ जाता है। कई बार
हमारी उन्नति और सुखी जीवन को देखते हुए कुछ लोगों में जलन का भाव उत्पन्न हो जाता
है। जिसके चलते वे हमारे लिए बुरा सोचते हैं। कुछ लोग एकटक हमारी ओर या हमारे घर
की ओर लगातार देखते रहते हैं जिससे बुरी नजर लग सकती है। ऐसे होने के बाद काफी कुछ
बिगड़ सा जाता है। इन अशुभ प्रभावों से बचने के लिए कई उपाय बताए गए हैं।
बुरी नजर के प्रभावों से बचने के लिए घर के बाहर नींबू और हरी मिर्ची एक धागे
में पिरोकर लटका देना चाहिए। ऐसा करने पर इस प्रकार की परेशानियों पर विराम लगेगा।
नींबू और हरी मिर्च लटकाने के पीछे एक कारण यह भी है कि इससे घर के आसपास
नकारात्मक ऊर्जा सक्रीय नहीं हो पाएगी और सकारात्मक ऊर्जा को बल मिलता है।
यदि कोई व्यक्ति एकटक हमारे घर की ओर देखता भी है तो नींबू और मिर्ची पर नजर
पड़ते ही उसका ध्यान भंग हो जाता है और हमारे घर की बुरी नजर से रक्षा हो जाती है।
किसी व्यक्ति के सामने नींबू या मिर्ची रखते ही उसे नींबू की खटाई और मिर्ची का
तीखापन याद आ जाता है और उसका ध्यान हट जाता है।
महादेव ने मस्तक पर चंद्र धारण किया है, क्योंकि...
शिव, शंकर,
भोलेनाथ, महादेव, महाकाल आदि असंख्य नामों
से पूजे जाते हैं भोलेभंडारी। इनका एक नाम शशिधर भी है। शिवजी अपने मस्तक पर चंद्र
को धारण किया है इसी वजह से इन्हें शशिधर के नाम से भी जाना जाता है। भोलेनाथ ने
मस्तक पर चंद्र को क्यों धारण कर रखा है? इस संबंध में शिव पुराण में उल्लेख है कि जब देवताओं
और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया, तब 14 रत्नों के मंथन से प्रकट हुए। इस मंथन में सबसे विष निकला।
विष इतना भयंकर था कि इसका प्रभाव पूरी सृष्टि पर फैलता जा रहा था परंतु इसे रोक
पाना किसी भी देवी-देवता या असुर के बस में नहीं था। इस समय सृष्टि को बचाने के
उद्देश्य से शिव ने वह अति जहरीला विष पी लिया। इसके बाद शिवजी का शरीर विष प्रभाव
से अत्यधिक गर्म होने लगा। शिवजी के शरीर को शीतलता मिले इस वजह से उन्होंने चंद्र
को धारण किया।
चंद्र को धारण कर क्या संदेश देते हैं शिव?
शिवजी को अति क्रोधित स्वभाव का बताया गया है। कहते हैं कि जब शिवजी अति
क्रोधित होते हैं तो उनका तीसरा नेत्र खुल जाता हैं तो पूरी सृष्टि पर इसका बुरा
प्रभाव पड़ता है। साथ ही विषपान के बाद शिवजी का शरीर और अधिक गर्म हो गया जिसे
शीतल करने के लिए उन्होंने चंद्र आदि को धारण किया। चंद्र को धारण करके शिवजी यही
संदेश देते हैं कि आपका मन हमेशा शांत रहना चाहिए। आपका स्वभाव चाहे जितना क्रोधित
हो परंतु आपका मन हमेशा ही चंद्र की तरह ठंडक देने वाला रहना चाहिए। जिस तरह चांद
सूर्य से उष्मा लेकर भी हमें शीतलता ही प्रदान करता है उसी तरह हमें भी हमारा
स्वभाव बनाना चाहिए।
यदि रोड पर रुपए, पैसे पड़े मिलें तो क्या करना चाहिए?
काफी लोगों के साथ ऐसा हुआ होगा कि रास्ते पर सिक्के, रुपए आदि पड़े हुए दिखाई दिए हो,
तब काफी लोग यह
पैसे उठाकर अपने पास रख लेते हैं। कुछ लोग इन्हें खर्च कर देते हैं तो कुछ लोग
संभालकर रख लेते हैं। इस संबंध में ज्योतिष कुछ ध्यान देने योग्य बातें बताई गई
हैं।
जब आप कहीं जा रहे हो और सड़क पर नोट या सिक्के पड़े दिखाई दे तो उन्हें उठाकर
किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान कर देना चाहिए। क्योंकि वह पैसा भी किसी जरूरतमंद
व्यक्ति का हो सकता हैं जिससे पैसा खोने के बाद उसका मन दुखी होता है।
ऐसे में उन खोए हुए रुपए के साथ उस व्यक्ति का दुख जुड़ा होता है अत: ऐसा पैसा
मिलने पर इसे अपने साथ नहीं रखना चाहिए। इस पैसे के साथ नकारात्मक भावनाएं जुड़ी
होती हैं जिससे यह पैसा लाभ नहीं पहुंचाता है बल्कि कुछ हानि अवश्य करवा सकता है।
रास्ते पर यदि पैसा मिले तो सबसे पहले यह देख लेना चाहिए कि जिसके यह रुपए हैं
वह व्यक्ति कहीं आसपास हो तो उसे यह पैसा लौटा देना चाहिए।
जब पर्याप्त खोज के बाद के भी पैसों का मालिक न मिले तो इसे किसी जरूरतमंद
व्यक्ति को दान कर दें या किसी धार्मिक संस्थान में गोपनीय दान कर देना चाहिए। ऐसा
करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और आपके ऊपर से कई प्रकार की बाधाओं का
साया स्वत: ही नष्ट हो जाता है।
सिर्फ सीधे हाथ से करना चाहिए ये खास काम, क्योंकि...
शास्त्रों के अनुसार सभी समस्याओं का एक सटिक समाधान है दान करना। दान से ही
व्यक्ति के पुराने अशुभ कर्मों का प्रभाव समाप्त होता है और पुण्य में वृद्धि होती
है। समस्याएं या परेशानियां या धन अभाव ये सभी पिछले कर्मों के आधार पर प्राप्त
होते हैं। इस प्रकार के बुरे प्रभावों का नष्ट करता है दान।
दान के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है कि दान हमेशा सीधे हाथ से ही
किया जाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि सीधे हाथ से किए गए दान से परमात्मा तुरंत ही
प्रसन्न होते हैं और दानी की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार
भगवान के लिए किए जाने वाले सभी पूजा कर्म सीधे हाथ से ही किए जाना चाहिए।
दान करने से हमारे मोह और अहम का नाश होता है। दान से हमारे मन का विषय वस्तु
के लिए मोह खत्म होता है। यदि किसी व्यक्ति के पास बहुत सारा धन है तब भी जब तक धन
के प्रति मोह का त्याग नहीं करेगा तब तक वह दान नहीं कर सकता। इसी प्रकार दान से
अहम भी दूर होता है। इसके साथ ही दान से मन को शांति भी मिलती है।
सभी धार्मिक कार्य में सीधे हाथ का विशेष महत्व है क्योंकि धर्म शास्त्रों के
अनुसार ऐसा माना जाता है कि हमारे शरीर का बायां भाग स्त्रियों का प्रतिनिधित्व
करता है और दायां भाग पुरुषों का। इस बात की पुष्टि शिवजी के अद्र्धनारीश्वर
स्वरूप से की जा सकती है। शिवजी के इस रूप में दाएं भाग में स्वयं शिवजी और बाएं
भाग में माता पार्वती को दर्शाया जाता है। धर्म से संबंधित सभी कार्य पुरुषों से
कराए जाने की मान्यताएं प्राचीन काल से चली आ रही है। दान सीधे हाथ से करना चाहिए
इस बात के लिए एक और तर्क यह है कि हम पवित्र कार्य के लिए सदैव सीधे हाथ का ही
उपयोग करते हैं। इसी वजह से बाएं हाथ का धार्मिक कार्यों में उपयोग नहीं किया
जाता।
ऐसे लोगों के घर कभी नहीं जाना चाहिए, क्योंकि...
सुख और शांतिपूर्ण जीवन के लिए शास्त्रों में कई मार्ग बताए गए हैं। कुछ ऐसे
नियम भी बनाए हैं जिनका पालन पर व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान के साथ ही सभी
सुख-सुविधाएं भी प्राप्त हो जाती हैं। समाज और घर-परिवार में अक्सर एक-दूसरे के घर
जाने का काम पड़ता है। ऐसे में हमें किन लोगों के घर नहीं जाना चाहिए, इस संबंध में गोस्वामी
तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में नियम बताया गया है-
जदपि मित्र प्रभु पितु गुर गेहा। जाइअ बिनु बोलेहं न संदेहा॥
तदपि बिरोध मान जहं कोई । तहां गएं
कल्यानु न होई ॥
-श्रीरामचरितमानस १/६२/
इसका सामान्य अर्थ यही है कि यद्यपि इसमें संदेह नहीं कि मित्र, स्वामी, पिता और गुरु के घर बिना
बुलाए भी जाना चाहिए लेकिन जहां कोई विरोध मानता हो या आपका सम्मान न करता हो,
उसके घर जाने से
कल्याण नहीं होता।
श्रीरामचरित मानस में शिवजी माता उमा को संबोधित करते हुए बताते हैं कि कभी भी
ऐसे लोगों के घर नहीं जाना चाहिए जो तुमसे विरोध या द्वेष भाव रखता हो। फिर चाहे
वह पिता, गुरु,
स्वामी या मित्र
का ही घर क्यों न हो। इसका कारण यह है कि वहां जाने से अपमान के सिवाय कुछ और
प्राप्त नहीं होता। कोई भी व्यक्ति अपमान पसंद नहीं करता। अत: अपमान से बचना हो तो
ऐसे लोगों के घर नहीं जाना चाहिए।
शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए शंख से जल, क्योंकि...
पूजन कार्य में शंख का उपयोग महत्वपूर्ण माना गया है। वैसे तो लगभग सभी
देवी-देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है लेकिन शिवलिंग पर शंख से जल चढ़ाना
वर्जित किया गया है। शंख से शिवजी को जल क्यों अर्पित नहीं करते हैं? इस संबंध में शिवपुराण
में एक कथा बताई गई है।
शिवपुराण के अनुसार शंखचूड नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड दैत्यराम दंभ
का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तब उसने
भगवान विष्णु के लिए कठिन तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए।
विष्णुजी ने वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने तीनों लोको के लिए अजेय एक
महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। श्रीहरि तथास्तु बोलकर अंतध्र्यान हो गए। तब दंभ
के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ पड़ा। शंखचुड ने पुष्कर में
ब्रह्माजी के निमित्त घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने वर
मांगने के लिए कहा तब शंखचूड ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए।
ब्रह्माजी ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्णकवच दिया। साथ ही ब्रह्मा ने शंखचूड को
धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। फिर वे अंतध्र्यान हो गए।
ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया। ब्रह्मा और विष्णु के
वरदान के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर
लिया। देवताओं ने त्रस्त होकर विष्णु से मदद मांगी परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे
पुत्र का वरदान दिया था अत: उन्होंने शिव से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के
दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के
पातिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे तब
विष्णु से ब्राह्मण रूप बनाकर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया।
इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया। अब शिव ने शंखचूड़
को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि
शंखचूड़ विष्णु भक्त था अत: लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी
देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अत:
शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। इसी वजह से शिवजी को शंख से जल नहीं चढ़ाया
जाता है।
हर शाम लाइट जलाने के साथ ही करना चाहिए ये काम भी, क्योंकि...
इष्टदेव या देवी-देवता का नाम जपने मात्र से भी हमें पुण्य की प्राप्ति होती
है। वैसे तो सुबह-सुबह का समय भगवान की आराधना के लिए श्रेष्ठ माना गया है लेकिन
शाम के समय भी पूजन का विशेष महत्व है। शाम को धर्म लाभ अर्जित करने के लिए कुछ
नियम बताए गए हैं।
शाम के समय अंधेरा होने से थोड़ी पहले हमें घर में रोशनी कर लेना चाहिए। रोशनी
होने के बाद परिवार के सदस्यों को अपने इष्टदेव के मंत्र का जप करना चाहिए या
भगवान का नाम लेना चाहिए। इस समय आंख बंद रखनी चाहिए। इसप्रकार प्रतिदिन किया जाना
चाहिए।
सामान्यत: अधिकांश लोग प्रतिदिन शाम को इस प्रकार भगवान को याद अवश्य करते
हैं। यह काफी पुराने समय से चली आ रही परंपरा है। इस पंरपरा के निर्वाह से कई
धार्मिक और सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ऐसा माना जाता है शाम के समय भी धन
की देवी महालक्ष्मी सहित सभी देवी-देवता पृथ्वी का भ्रमण करते हैं और इस समय यदि
उनका नाम लिया जाए वे अतिप्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामनएं पूर्ण करते हैं।
घर के वातावरण में फैली नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने के लिए यह परंपरा काफी
कारगर है। शाम को रोशनी होते ही भगवान का नाम लेने से सकारात्मक ऊर्जा को अधिक बल
मिलता है और अंधेरे में शक्तिशाली रहने वाली नेगेटिव एनर्जी समाप्त हो जाती है।
जब किसी की शवयात्रा दिखे तो क्या करना चाहिए?
जीवन का अंतिम अटल सत्य है मृत्यु। भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है कि
जीवन के इस अटल सत्य को कोई टाल नहीं सकता है। जिस व्यक्ति का जन्म हुआ है वह
अवश्य ही एक दिन मृत्यु को प्राप्त होगा। अमर केवल आत्मा होती है जो शरीर बदलती
है। जिस प्रकार हम कपड़े बदलते हैं ठीक उसी प्रकार आत्मा अलग-अलग शरीर धारण करती
है और निश्चित समय के लिए। इसके बाद पूर्व निर्धारित समय पर आत्मा शरीर छोड़ देती
है। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद हिंदू धर्म के अनुसार मृत शरीर का दहन किया
जाता है।
किसी भी इंसान की मृत्यु के बाद शवयात्रा निकाली जाती है और इस संबंध में भी
शास्त्रों में कई नियम बताए गए हैं। जिन्हें अपनाने से धर्म लाभ तो प्राप्त होता
है साथ ही इससे मृत आत्मा को शांति भी मिलती है। यदि हम कहीं जा रहे हैं और रास्ते
में शवयात्रा दिखाई दे तो उस समय थोड़ी देर ठहर जाना चाहिए।
ऐसा माना जाता है कि यदि शवयात्रा निकलती दिखाई देती है तो कुछ देर ठहरकर
परमात्मा से मृत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। मृतक को
प्रणाम करके आगे बढऩा चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र में शवयात्रा के संबंध में बताया गया है कि यदि आप किसी जरूरी
कार्य के लिए जा रहे हैं और रास्ते में कोई शवयात्रा दिख जाए तो इसका मतलब है कि
आपको इच्छित कार्य में सफलता मिलेगी। आपके सोचे हुए कार्य पूर्ण हो जाएंगे और
परेशानियां दूर हो जाएंगी।
जूते-चप्पल चोरी होना या गुम होना बहुत अच्छी बात है, क्योंकि...
हम ऐसा कभी भी नहीं चाहते हैं कि हमारी कोई चीज चोरी या गुम हो जाए। किसी भी
प्रकार की चोरी को अशुभ माना जाता है लेकिन ज्योतिष के अनुसार जूते-चप्पल चोरी
होना शुभ माना गया है। और अगर शनिवार के दिन ऐसा होता है तो इससे शनि के दोषों में
राहत मिलती है।
वैसे तो चोरी होना आपके धन की हानि को दर्शाता है लेकिन जूते-चप्पल की चोरी को
शुभ माना जाता है। खासतौर पर यदि शनिवार के दिन चमड़े के जूते चोरी होते हैं तो
इसे बहुत अच्छा समझना चाहिए। जो लोग जूते-चप्पल चोरी होने के ज्योतिषीय लाभ जानते
हैं वे शनि मंदिरों में जूते-चप्पल स्वयं छोड़ आते हैं।
आखिर शनिवार को जूते चोरी हो जाने से क्या लाभ होता है? ऐसा क्यों माना जाता है कि चमड़े
के जूते चोरी हो जाएं तो सारी परेशानी उसके साथ चली जाती हैं? वास्तव में यह मान्यता
ज्योतिषीय आधार पर प्रचलित है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को क्रूर और कठोर ग्रह
माना गया है। शनि जब किसी व्यक्ति को विपरित फल देता है तो उससे कड़ी मेहनत करवाता
है और नाम मात्र का प्रतिफल प्रदान करता है। जिन लोगों की कुंडली में साढ़ेसाती या
ढैय्या हो, या जिसकी राशि में शनि अच्छे स्थान पर न हो, उन्हें कई परेशानियों का सामना
करना पड़ता है। शनिवार शनि का दिन माना जाता है। हमारे शरीर के अंग भी ग्रहों से
प्रभावित होते हैं। त्वचा (चमड़ी) और पैरों में शनि का वास माना गया है। पैर और
त्वचा से संबंधित चीजें शनि के निमित्त दान की जाए तो कई शुभ फल प्राप्त होते हैं
और पैर तथा त्वचा से संबंधित बीमारियों में भी राहत मिलती है।
हमारी त्वचा और पैर का कारक ग्रह शनि है। अत: चमड़े के जूते अगर शनिवार को
चोरी होते हैं तो मानना चाहिए कि हमारी परेशानी कम हो जाएगी। शनि अब ज्यादा परेशान
नहीं करेगा। शनिवार को शनि मंदिरों में जूते भी छोडऩे से शनि के कष्ट कम हो जाते
हैं।
जब आपको रास्ते में कहीं हाथी दिखे तो क्या करना चाहिए?
शास्त्रों के अनुसार किसी भी कार्य की शुरूआत भगवान श्रीगणेश के नाम के साथ की
जाना चाहिए। गणपति के पूजन के बाद कार्य बिना किसी परेशानी के पूर्ण हो जाता है।
गणेशजी के दर्शन मात्र से ही हमारे कई जन्मों के पाप स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं और
पुण्य में बढ़ोतरी हो जाती है। कई बार रास्ते में हमें गणेशजी का प्रतीक हाथी
दिखाई देता है तो जानिए ऐसे समय हमें क्या करना चाहिए...
जब हम किसी खास कार्य के लिए कहीं जा रहे हों और रास्ते में हाथी दिख जाए तो
इसे बहुत शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में प्रचलित शकुन-अपशकुन में हाथी का दिखना
शुभ शकुन बताया गया है।
प्राचीन काल से शकुन-अपशकुन की कई मान्यताएं प्रचलित हैं। ऐसी कई परंपराओं का
चलन हैं जिन्हें आज भी काफी लोग मानते हैं। शकुन-अपशकुन को कुछ लोग अंधविश्वास भी
मानते हैं लेकिन ऋषि-मुनियों द्वारा इनका काफी गहरा महत्व बताया गया है। अक्सर
हमारे आसपास कुछ छोटी-छोटी असामान्य या सामान्य घटनाएं घटित होती हैं। इन्हीं
घटनाओं में सफलता और असफलता के इशारे छिपे होते हैं जिन्हें समझना होता है। हाथी
का दिखना भी एक शुभ संकेत है।
किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय हाथी दिखाई दे तो समझ लेना चाहिए कि
आपको जरूरी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी और दिन अच्छा बितेगा। गजराज के दिखने
पर भगवान श्रीगणेश का ध्यान करते हुए गणेश मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। इससे
गणपति की साक्षात् पूजा हो जाती है। इस प्रकार के पूजन से व्यक्ति के कई कष्टों और
पापों का नाश हो जाता है। धार्मिक मान्यता है कि हाथी का सीधा संबंध प्रथम पूज्य
भगवान श्रीगणेश से है। गणपति का मुख हाथी के जैसा ही है, इसी वजह से गजराज यानि हाथी को
भी पूजनीय और पवित्र माना जाता है।
खाना खाते समय नहीं करना चाहिए ये काम, क्योंकि...
खाना खाने के दौरान कुछ छोटी-छोटी बातें हैं जिनका हमें ध्यान रखना चाहिए।
खाना हमारे जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। शरीर को ऊर्जा भी और इसी से मिलती है।
इसी बात को देखते हुए ऋषि-मुनियों और विद्वानों द्वारा भोजन के लिए कई नियम बनाए
गए हैं। इनका पालन करने पर शारीरिक ऊर्जा के साथ ही आत्मिक बल भी प्राप्त होता है।
खाना खाते समय बात ना करें,चुपचाप शांति से भोजन करें। हालांकि आज के दौर में इस बात
ध्यान रख पाना बहुत मुश्किल हो गया है।
आजकल ज्यादातर लोगों के पास मोबाइल है लेकिन यही मोबाइल जब खाना खाते समय बज
उठता है तो ध्यान खाने से हटकर मोबाइल में चला जाता है। व्यक्ति खाना छोड़कर
मोबाइल पर बात करने लगता है,ऐसा करना स्वास्थ्य
की दृष्टि से गलत है। ऐसा करने पर ना तो हम खाना ठीक से खा पाते हैं और ना ही
हमारा पाचन तंत्र भोजन को उचित ढंग से पचा पाता है। इसी वजह से पूरे समय आलस्य बना
रहता है, ठीक
से नींद नहीं आती है और पेट भी साफ नहीं रह पता है।
ये सभी बातें सीधे-सीधे बड़ी बीमारियों को निमंत्रण देने जैसा ही है। इसलिए
भोजन करने के दौरान अगर मोबाइल बजता है और कॉल जरुरी न हो तो पहले पहले खाना खाएं, इसके बाद ही फोन पर या किसी अन्य
व्यक्ति से बात करें। जहां तक संभव हो भोजन के समय मौन रहें ।
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार भी खाना खाते समय बात करना अशुभ माना जाता है।
भोजन के समय मौन न रहने से मां अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्त नहीं हो पाती है। अन्न
को भी देवता ही माना जाता है,भोजन करने के दौरान
बात करना अन्न देवता के अपमान के सामान है। ऐसा करने पर दरिद्रता का सामना
करना पड़ सकता है।
दूल्हा-दूल्हन को हल्दी क्यों लगाते हैं...
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन के 16 महत्वपूर्ण संस्कार बताए गए हैं। इन संस्कारों का
निर्वहन करना सभी इंसानों के लिए अतिआवश्यक है। इन्हीं संस्कारों में से एक है
विवाह संस्कार। पुराने समय में विवाह में अपनाए जाने वाली प्राचीन परम्पराओं ,
रीति-रिवाजों आदि
का पालन आज भी किया जाता है । कुछ नियम और परंपराएं वर और वधू दोनों के लिए समान
रूप से लागू होती हैं। ऐसी ही एक परंपरा है दूल्हा-दुल्हन को हल्दी लगाना।
वर और वधू को हल्दी क्यों लगाई जाती है इसके पीछे धार्मिक और स्वास्थ्य संबंधी
कारण बताए गए हैं। शास्त्रों के अनुसार हल्दी का उपयोग सभी प्रकार के पूजन-कार्य
में आवश्यक रूप से किया जाता है। इसके बिना कई प्रकार के पूजन कर्म पूर्ण नहीं
माने जाते हैं। इसी वजह से पूजन सामग्री में हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। हल्दी
की पवित्रता के कारण ही वर-वधु के शरीर पर इसका लेप लगाया जाता है ताकि विवाह से
पूर्व ये दोनों भी शास्त्रों के अनुसार पूरी तरह पवित्र हो सके।
हल्दी एक औषधि भी है। इससे उपयोग से कई प्रकार की बीमारियों का त्वरित इलाज हो
जाता है। त्वचा संबंधी रोगों के लिए हल्दी सर्वश्रेष्ठ उपाय है। विवाह पूर्व
वर-वधु के शरीर पर हल्दी का लेप लगाया जाता है ताकि यदि इन्हें कोई त्वचा संबंधी
रोग हो या इंफेक्शन हो या अन्य कोई बीमारी हो तो उसका उपचार हो सके। हल्दी लगाने
से त्वचा पर जमी हुई धूल आदि भी शत-प्रतिशत साफ हो जाती है। जिससे त्वचा में चमक
बढ़ जाती है। चेहरे का आकर्षण बढ़ जाता है। इन सभी कारणों के चलते अनिवार्य रूप से
आज भी दूल्हा-दुल्हन को विवाह से पूर्व हल्दी अवश्य लगाई जाती है।
बैठे-बैठे पैर नहीं हिलाना चाहिए, क्योंकि...
प्राचीन समय से ही कुछ परंपराएं एवं नियम बनाए गए हैं जिनका पालन करना हमारी
सेहत और आर्थिक स्थिति दोनों के लिए ही फायदेमंद रहता है। सभी परंपराओं के पीछे
धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व हैं। प्रतिदिन हम कई छोटे-बड़े सामान्य कार्य करते हैं
जिनमें से कुछ कर्म वर्जित किए गए हैं, जिनका संबंध हमारी सुख-समृद्धि से होता है।
अक्सर घर के वृद्धजनों द्वारा मना किया जाता है कि बैठे-बैठे पैर नहीं हिलाना
चाहिए। वैसे तो यह सामान्य सी बात है लेकिन इसके पीछे धार्मिक कारण है। स्वभाव और
आदतों का प्रभाव हमारे भाग्य पर भी पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति
पूजन कर्म या अन्य किसी धार्मिक कार्य में बैठा है तो उसे पैर नहीं हिलाना चाहिए।
ऐसा करने पर पूजन कर्म का पूरा पुण्य नहीं मिल पाता है।
अधिकांश लोगों की आदत होती है कि वे जब कहीं बैठे होते हैं तो पैर हिलाते रहते
हैं। इस संबंध में शास्त्रों के जानकार के अनुसार पैर हिलाने से धन का नाश होता
है। धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है। शास्त्रों में इसे अशुभ
कर्म माना गया है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह आदत हानिकारक है। बैठे-बैठे पैर
हिलाने से जोड़ों के दर्द की समस्या हो सकती है। पैरों की नसों पर विपरित प्रभाव
पड़ता है। पैरों में दर्द हो सकता है। इसका बुरा प्रभाव हृदय पर भी पड़ सकता है।
इन कारणों के चलते इस आदत का त्याग करना चाहिए।
यदि किसी पूजन कार्य में या शाम के समय बैठे-बैठे पैर हिलाते हैं तो
महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है। धन संबंधी कार्यों में विलंब होता है।
पैसों की तंगी बढ़ती है। वेद-पुराण के अनुसार शाम के समय धन की देवी महालक्ष्मी
पृथ्वी भ्रमण पर रहती हैं, ऐसे में यदि कोई व्यक्ति बैठे-बैठे पैर हिलाता है तो देवी
उससे नाराज हो जाती हैं। लक्ष्मी की नाराजगी के बाद धन से जुड़ी परेशानियां झेलना
पड़ती हैं। अत: बैठते समय इस बात का ध्यान रखें।
इस खास कपड़े को पहनकर ही पूजा करनी चाहिए, क्योंकि...
हिंदू धर्म में किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना के वक्त श्रद्धालुओं को धोती
पहनना अनिवार्य किया गया है। वैसे आजकल धोती पहनने का चलन बहुत कम हो गया है और यह
ब्राह्मणों तक ही सीमित रह गया है।
आधुनिक फैशन के इस दौर में पूजा कार्य में भी बहुत ही कम भक्त धोती पहनते हैं।
प्राचीनकाल में धोती पहने बिना पूजादि कर्मकांड पूर्ण नहीं माने जाते थे। इसी वजह
से धोती का पवित्र माना जाता है। धोती पहनने की अनिवार्यता के पीछे वैज्ञानिक
महत्व भी है।
पूजा-अर्चना जैसे कार्यों में काफी देर तक एक विशेष अवस्था में श्रद्धालु को
बैठे रहना पड़ता है, उस दशा में धोती से अच्छा कोई और परिधान नहीं हो सकता है। आजकल लोग जींस,
पेंट आदि पहनकर ही
पूजा कार्य करते हैं जिससे बैठने-उठने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
शरीर के रोमछिद्रों से हमें शुद्ध प्राणवायु मिलती है। तंग कपड़े न सिर्फ इसमें
बाधा डालते हैं बल्कि रक्तप्रवाह पर भी बुरा असर डालते हैं। इसलिए स्वास्थ्य की
दृष्टिï से
भी धोती लाभदायक है। धोती बारिक सूती कपड़े से बनी होती है जो हवादार और सुविधाजनक
होती है।
रात को दरवाजे के एकदम पास नहीं सोना चाहिए, क्योंकि...
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में रखी प्रत्येक वस्तु का प्रभाव हमारे जीवन पर
पड़ता है। वास्तु में बताए गए नियमों का पालन करने पर सुख-समृद्धि प्राप्त होती है
साथ ही दुख और परेशानियां दूर रहती हैं।
घर में कोई वस्तु गलत दिशा या स्थान पर रखी है तो इससे वहां रहने वाले लोगों
को कई प्रकार के वास्तु दोषों का सामना करना पड़ सकता है। वास्तु दोष के कारण
मानसिक अशांति बढ़ती है। यदि घर में दरवाजे के पास पलंग रखा हो तो उस पर सोने वाले
व्यक्ति का मन हमेशा अशांत रहता है। वह व्यक्ति किसी भी कार्य में ठीक से एकाग्रता
बनाए नहीं रख पाता है। दरवाजे के पास सोने से ठीक से नींद भी नहीं आती है और सपने
भी ऐसे आते हैं जिससे चित्त अशांत होता है। इसी वजह से दरवाजे के पास पलंग नहीं
रखना चाहिए।
जिन घरों में वास्तु के नियमों का पालन होता है वहां रहने वाले लोगों को
मानसिक तनाव का सामना नहीं करना पड़ता। जिससे वे लोग किसी भी कार्य को पूरी
एकाग्रता से पूर्ण कर पाते हैं। कार्य की पूर्णता से आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं,
सुख-समृद्धि बनी
रहती है।
महिलाओं और लड़कियों क्यों लगाती हैं बिंदी...
किसी भी स्त्री की सुंदरता में चार चांद तब लग जाते हैं जब वह पूर्ण श्रंगार
के साथ ही माथे पर बिंदी भी लगाएं। वैसे तो बिंदी को श्रंगार का एक आवश्यक अंग ही
माना जाता है और इसी वजह से काफी महिलाएं और लड़कियां बिंदी लगाती हैं। शास्त्रों
में सुंदरता बढ़ाने के साथ ही बिंदी लगाने के कई अन्य लाभ भी बताए गए हैं।
शास्त्रों के अनुसार स्त्री के महत्वपूर्ण सोलह श्रंगार बताए गए हैं जिनमें से
बिंदी लगाना भी एक है। विवाह से पूर्व लड़कियां बिंदी केवल सौंदर्य में वृद्धि
करने के उद्देश्य से लगाती हैं लेकिन विवाह के बाद बिंदी लगाना सुहाग की निशानी
माना जाता है। शादी के बाद विवाहित स्त्री लाल रंग की बिंदी लगाती है। इसे
अनिवार्य परंपरा माना जाता है।
योग विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो बिंदी का संबंध हमारे मन से जुड़ा हुआ
है। जहां बिंदी लगाई जाती है वहीं हमारा आज्ञा चक्र स्थित होता है। यह चक्र हमारे
मन को नियंत्रित करता है। जब भी हम ध्यान लगाते हैं तब हमारा ध्यान यहीं केंद्रित
होता है। चूंकि यह स्थान हमारे मन को नियंत्रित करता है अत: यह स्थान काफी
महत्वपूर्ण है। मन को एकाग्र करने के लिए इसी चक्र पर दबाव दिया जाता है और यहीं
पर लड़कियां बिंदी लगाती है।
आज्ञा चक्र पर बिंदी लगाने से स्त्रियों का मन नियंत्रित रहता है। इधर-उधर
भटकता नहीं है। सभी जानते हैं कि महिलाओं
का मन अति चंचल होता है। इसी वजह से किसी भी स्त्री का मन बदलने में पलभर का ही
समय लगता है। वे एक समय एक साथ कई विषयों पर चिंतन करती रहती हैं। अत: उनके मन को
नियंत्रित और स्थिर रखने के लिए यह बिंदी बहुत कारगर उपाय है। इससे उनका मन शांत
और एकाग्र बना रहता है। शायद इन्हीं फायदों को देखते हुए प्राचीन ऋषि-मुनिया
द्वारा बिंदी लगाने की अनिवार्य परंपरा प्रारंभ की गई है।
बिंदी लगाने के हैं ये 3 खास फायदें-
- बिंदी लगाने से सौंदर्य में वृद्धि होती है।
- विवाहित स्त्री के सुहाग का प्रतीक है।
- मन को स्थिर रखने में बहुत ही कारगर उपाय है।
मालदार बनना है तो इन पांचों को खिलाते रहे खाना, क्योंकि...
जीवन से हर समस्या का समाधान शास्त्रों में बताया गया है। एक उपाय तो ये है कि
हम अपनी मेहनत से और स्वयं की समझदारी इन समस्याओं को दूर करने का प्रयास करें और
दूसरा उपाय है धार्मिक कार्य करें। हमें प्राप्त होने वाले सुख-दुख हमारे कर्मों
का प्रतिफल ही है। पुण्य कर्म किए जाए तो दुख का समय जल्दी निकल जाता है।
शास्त्रों के अनुसार गाय, पक्षी, कुत्ता, चींटियां और मछली से हमारे जीवन की सभी समस्याएं दूर हो
सकती हैं। यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से गाय को रोटी खिलाएं तो उसके ज्योतिषीय
ग्रह दोष नष्ट हो जाते हैं। गाय को पूज्य और पवित्र माना जाता है, इसी वजह से इसकी सेवा
करने वाले व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं। इसी प्रकार पक्षियों को दाना
डालने पर आर्थिक मामलों में लाभ प्राप्त
होता है। व्यवसाय करने वाले लोगों को विशेष रूप से प्रतिदिन पक्षियों को दाना
अवश्य डालना चाहिए।
यदि कोई व्यक्ति दुश्मनों से परेशान हैं और उनका भय हमेशा ही सताता रहता है तो
कुत्ते को रोटी खिलाना चाहिए। नियमित रूप से जो कुत्ते को रोटी खिलाते हैं उन्हें
दुश्मनों का भय नहीं सताता है। कर्ज से परेशान से लोग चींटियों को शक्कर और आटे
डालें। ऐसा करने पर कर्ज की समाप्ति जल्दी हो जाती है।
जिन लोगों की पुरानी संपत्ति उनके हाथ से निकल गई है या कई मूल्यवान वस्तु खो
गई है तो ऐसे लोग यदि प्रतिदिन मछली को आटे की गोलियां खिलाते हैं तो उन्हें लाभ
प्राप्त होता है। मछलियों को आटे की गोलियां देने पर पुरानी संपत्ति पुन: प्राप्त
होने के योग बनते हैं।
इन पांचों को जो भी व्यक्ति खाना खिलाते हैं उनके सभी दुख-दर्द दूर हो जाते
हैं और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
इन दो बड़े देवताओं के दर्शन पीछे से नहीं करना चाहिए, क्योंकि
शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से हमारे सभी पाप अक्षय
पुण्य में बदल जाते हैं। इस बात के महत्व को देखते हुए ऋषि-मुनियों द्वारा कई नियम
बनाए गए हैं। वैसे तो सभी देवी-देवताओं के दर्शन कहीं से भी कर सकते हैं लेकिन
श्रीगणेश और भगवान विष्णु की पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए।
गणेशजी और भगवान विष्णु दोनों ही देवों के दर्शन पीछे से नहीं करना चाहिए। ऐसा
करने पर पुण्य की प्राप्ति नहीं होती है। ये दोनों ही देव सभी सुखों को देने वाले
माने गए हैं। अपने भक्तों के सभी दुखों को दूर करते हैं और उनकी शत्रुओं से रक्षा
करते हैं। इनके नित्य दर्शन से हमारा मन शांत रहता है और सभी कार्य सफल होते हैं।
गणेशजी को रिद्धि-सिद्धि का दाता माना गया है। इनकी पीठ के दर्शन करना वर्जित
किया गया है। गणेशजी के शरीर पर जीवन और ब्रह्मांड से जुड़े अंग निवास करते हैं।
गणेशजी की सूंड पर धर्म विद्यमान है तो कानों पर ऋचाएं, दाएं हाथ में वर, बाएं हाथ में अन्न,
पेट में समृद्धि,
नाभी में
ब्रह्मांड, आंखों में लक्ष्य, पैरों में सातों लोक और मस्तक में ब्रह्मलोक विद्यमान है।
गणेशजी के सामने से दर्शन करने पर उपरोक्त सभी सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त हो
जाती है। ऐसा माना जाता है इनकी पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। गणेशजी की पीठ
के दर्शन करने वाला व्यक्ति यदि बहुत धनवान भी हो तो उसके घर पर दरिद्रता का
प्रभाव बढ़ जाता है। इसी वजह से इनकी पीठ नहीं देखना चाहिए। जाने-अनजाने पीठ देख
ले तो श्री गणेश से क्षमा याचना कर उनका पूजन करें। तब बुरा प्रभाव नष्ट होगा।
भगवान विष्णु की पीठ पर अधर्म का वास माना जाता है। शास्त्रों में लिखा है जो
व्यक्ति इनकी पीठ के दर्शन करता है उसके पुण्य खत्म होते जाते हैं और अधर्म बढ़ता
जाता है। इन्हीं कारणों से श्री गणेश और विष्णु की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए।
2012 के अंत में नहीं होगा पृथ्वी पर प्रलय?
अभी तक कई ज्योतिषशास्त्रियों और विद्याओं के अनुसार पृथ्वी पर प्रलय की
भविष्यवाणियां की गई हैं। इनमें अधिकांश भविष्यवाणियां असत्य साबित हुई। अब 2012 के अंतिम माह दिसंबर का
इंतजार है। दिसंबर-12 में प्रलय होगा, ऐसी भी कई भविष्यवाणियां की गई हैं। इस संबंध में कई विद्वानों के अनुसार माया
कैलेंडर में भी इस बात का संकेत है।
अब तक माया कैलेंडर से जुड़ी प्रलय की भविष्यवाणी की जाती रही है वह भी असत्य
ही है। क्योंकि कुछ तथ्य मिले हैं जिनसे यह बात सामने आई है। ग्वाटेमाला के जंगलों
में मिले माया कैलेंडर के अब तक के सबसे पुराने संस्करण से साफ हो गया है कि अभी पृथ्वी पर प्रलय की कोई
संभावनाएं नहीं है। कम से कम कुछ लाखों साल तक तो मानव सभ्यता के अंत का कारण बनने
वाली कोई भी प्रलयकारी आपदा नहीं आएगी।
इस संबंध में खोज कर रहे पुरातत्वविदों ने ग्वाटेमाला में माया सभ्यता के
प्राचीन शहर शूलतुन में एक घर की दीवारों पर बने चित्र ढूंढ निकाले हैं। ये
तस्वीरें न केवल गणितीय और ऐतिहासिक रूप से अहम है बल्कि इससे माया सभ्यता के जीवन
की एक अनूठी झलक मिलती है। इस शोधकार्य को अंजाम देने वाले पुरातत्वविदों ने कहा
कि माया सभ्यता के लोग ब्रह्मांड के समय को समझने का प्रयास कर रहे थे और यही वह
जगह है जहां वे इन गणनाओं को अंजाम दिया करते होंगे।
इस शोध में प्राप्त पेंटिंग्स में लगभग आधे वर्ग मीटर आकार का एक कैलेंडर मिला
है। इसे अब तक मिला सबसे पुराना माया कैलेंडर माना जा रहा है। इस कैलेंडर में कई
वर्षों के लिए समय की गणना की गई है और यह कम से कम 7000 साल आगे तक जाता है। जाहिर है 2012 का प्रलय इन
मायावासियों के दिमाग में नहीं था। साथ ही इन गणनाओं के आधार पर लाखों-करोड़ों
वर्ष आगे तक की भविष्यवाणियां की जा सकती हैं। यह नया कैलेंडर पत्थर की एक दीवार
में तराशा हुआ है जबकि 2012 में दुनिया के अंत की भविष्यवाणी करने वाले सभी माया
कैलेंडर पुरानी पांडुलिपियों में मिलते हैं। दुनिया के अंत की घोषणा करने वाले सभी
कैलेंडर इस पाषाण कैलेंडर से कई सौ वर्ष बाद तैयार किये गए थे।
जब भी किसी मंदिर जाएं तो जरूर करें ये एक काम, क्योंकि...
शास्त्रों में देवी-देवताओं की पूजा से संबंधित कई नियम बताए गए हैं। जिनका
पालन करने पर पूर्ण पुण्य लाभ अर्जित होता है। नियमों का पालन न करने पर श्रद्धालु
को भगवान की कृपा शीघ्र प्राप्त नहीं हो पाती है। किसी भी देवी-देवता की पूजा के
दौरान उनकी परिक्रमा करनी चाहिए। ऐसा करने पर ही पूजन कर्म पूर्ण माना जाता है।
सामान्यत: यह बात सभी जानते हैं कि भगवान की आरती, पूजा आदि कर्मों में परिक्रमा का
विशेष महत्व है। जानिए हम देवी-देवताओं की परिक्रमा क्यों करते हैं...
हिन्दू धर्म के शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय
पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप नष्ट होते हैं। सभी देवताओं की
परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं।
आरती के बाद मंदिर के क्षेत्र में काफी सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है जो
वहां मौजूद श्रद्धालुओं पर चमत्कारिक प्रभाव डालती है। सभी का मन शांत और चिंताओं
से मुक्त जो जाता है। ईश्वर के होने का अहसास होता है और उनकी भक्ति में ध्यान लग
जाता है।
मंदिर के केंद्र में भगवान की प्रतिमा स्थित होती है अत: सकारात्मक ऊर्जा अथवा
दैवीय शक्ति उसी प्रतिमा के आसपास सबसे अधिक एकत्र होती है। आरती के बाद उस शक्ति
को ग्रहण करने के लिए परिक्रमा की परंपरा बनाई गई है। जिससे भक्तों की सोच भी
सकारात्मक बने और बुरे विचारों से वे मुक्त हो सके। प्रतिमा की परिक्रमा करने से
हमारे मन को अचानक ही शांति मिलती है और उन क्षणों में हमारे मन को भटकाने वाली
सोच समाप्त हो जाती है, भगवान में मन लगता है।
हस्ताक्षर करने के बाद नीचे पूरी लाइन खींचना चाहिए, क्योंकि...
आज अधिकांश लोग दिन-रात मेहनत करके धन तो खूब कमा रहे हैं परंतु बचत नहीं हो
पाती और जब पैसों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तब कई परेशानियों का सामना करना
पड़ता है। क्या आप जानते हैं धन संबंधी मामलों में आपके हस्ताक्षर भी काफी
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं...
सामान्यत: सभी लोग धन संबंधी कार्यों में हस्ताक्षर अवश्य करते हैं। यदि
हस्ताक्षर सही हैं यानि ज्योतिष के अनुसार शुभ हैं तो आपको पैसों के संबंध में
उन्नति प्राप्त होती है। जबकि गलत और दोषपूर्ण हस्ताक्षर करने पर पैसों की तंगी का
सामना करना पड़ सकता है।
पैसों की तंगी से बचने के लिए ज्योतिष शास्त्र में हस्ताक्षर के संबंध में कुछ
ध्यान रखने योग्य बातें बताई गईं हैं। इन बातों को अपनाने से कुछ दिनों में धन
संबंधी परेशानियों को कम किया जा सकता है।
आप बहुत धन कमाते है और फिर भी बचत नहीं होती है तो अपने हस्ताक्षर के नीचे की
ओर पूरी लाईन खीचें तथा उसके नीचे दो बिंदू बना दें, इन बिंदुओं को धन बढऩे के
साथ-साथ बढ़ाते रहें। याद रखें अधिकतम छ: बिंदू लगाने जा सकते हैं। इसके साथ ही
प्रतिदिन माता-पिता से पैर छूकर आशीर्वाद लें। सभी का सम्मान करें।
हस्ताक्षर आपके व्यक्तित्व को प्रदर्शित करते हैं। इसी वजह से इस संबंध में
पूरी सावधानी रखनी चाहिए। धन बढ़ाने के लिए ऊपर बताई गई बातों को अपनाएंगे तो लाभ
अवश्य होगा। कुछ ही समय में आप सकारात्मक परिणाम अवश्य प्राप्त करेंगे।
घर में ऐसा मंदिर होगा तो चमकेगी आपकी किस्मत, क्योंकि...
घर में मंदिर की जैसी स्थिति होती है, वहां रहने वाले सदस्यों का जीवन भी वैसा ही होता है।
जिन लोगों के घर में मंदिर का आकार दोष पूर्ण होता है उन्हें कई प्रकार के कष्टों
के साथ मानसिक अशांति एवं धन की कमी का सामना करना पड़ता है। मंदिर से अच्छे और
शुभ फल प्राप्त करना हो तो मंदिर का आकार पिरामिड जैसा होना चाहिए। प्राचीन काल से
ही मंदिरों का शिखर पिरामिड के आकार का ही बनाया जाता है और इससे कई प्रकार के लाभ
प्राप्त होते हैं।
भगवान की भक्ति के लिए सभी के घरों में देवस्थान या मंदिर अवश्य ही होते हैं।
मंदिर का शिखर पिरामिड के आकार होना बहुत शुभ माना जाता है। इसी वजह से बड़े-बड़े
मंदिरों के शिखर भी पिरामिड के आकार के ही होते हैं।
घर में पिरामिड के आकार का शिखर वाला मंदिर होने से परिवार के सभी सदस्यों की
चिंताएं दूर हो जाती हैं, मन की सारी अंशाति, आत्मिक शांति में बदल जाती है। पिरामिड की बनावट ऐसी
होती है कि यह वातावरण से सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करता है। जहां पिरामिड होता है
वहां नकारात्मक ऊर्जा यानि बुरी शक्तियां अपना प्रभाव नहीं दिखा पाती।
वास्तु के अनुसार पिरामिड का शाब्दिक अर्थ है अग्नि शिखा। अग्नि शिखा का मतलब
है कि एक ऐसी अदृश्य ऊर्जा जो आग के समान होती है। यह शक्ति पिरामिड के प्रभाव में
घर में रहने वाले लोगों को मिलती है। पिरामिड प्रकृति से ऊर्जा एकत्रित करता है।
पिरामिड की छोटी-छोटी प्रतिकृतियां अंदर से खाली होती हैं जो कि विद्युत चुंबकीय
वर्ग आदि की ऊर्जा निर्मित करती है। इसी वजह से मंदिरों के शिखर पिरामिड की तरह
बनाए जाते हैं जिससे वहां आने वाले व्यक्तियों को ऊर्जा मिलती रहे। यदि किसी
व्यक्ति के घर में पिरामिड के आकार का मंदिर रखना संभव न हो तो वास्तु के अनुसार
बताए गए पिरामिड को घर में रख सकते हैं। यह भी काफी सकारात्मक परिणाम देता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी घर के मंदिर का शिखर पिरामिड जैसा बनाने से घर
के वास्तु दोष और कई प्रकार के ग्रह दोष भी स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। ग्रह दोष
समाप्त होने पर बुरा समय टल जाता है और धन संबंधी समस्याएं भी समाप्त हो जाती हैं।
दुर्भाग्य नष्ट होता है और भाग्य बनता है। ऐसे मंदिर के समक्ष प्रार्थना करने पर
हमारी इच्छाएं जल्द ही पूर्ण हो जाती हैं। ऐसे में मंत्र जप का भी चमत्कारिक
प्रभाव पड़ता है।
ऐसे बर्तन में बनाना चाहिए खाना, क्योंकि...
आज इंसान जितना आधुनिक हो रहा है उतना ही वह सुख सुविधाओं का आदि होता जा रहा
है। यही वजह है कि हमें आज कई नई-नई बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। हमारी
औसत उम्र भी घटती जा रही है। और ऐसा असंतुलित खानपान के कारण हो रहा है। खाने-पीने
की चीजों में लापरवाही बरते जाने से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव
पड़ता है। यदि नियमित रूप से सब्जियों और दालों में मौजूद पोषक तत्व हमारे शरीर को
प्राप्त होते रहे तो कई स्वास्थ्य संबंधी लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
कम समय में खाना पकाने के लिए बाजार में कई प्रकार के आधुनिक बर्तन उपलब्ध
हैं। ये खाना तो कम समय में बना देते हैं लेकिन सब्जियों और दालों के पोषक तत्वों
को भी नष्ट कर देते हैं। इसी वजह से व्यक्ति का स्वास्थ्य बहुत ही संवेदनशील हो
जाता है। छोटी सी बीमारी भी शरीर को बढ़ा नुकसान पहुंचा देती है। ये समस्या आधुनिक
लोगों को अधिक परेशान करती है, जबकि पुराने समय में मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाया जाता
था,उनसे
खाने की पौष्टिकता नष्ट नहीं होती थी। आज भी पुराने रीति-रिवाजों का पालन करने
वाले और गांवों में रहने वाले लोग मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते हैं। वैसे तो
इन बर्तनों में खाना पकाने में समय अधिक लगता है लेकिन सब्जियों और दालों के साथ
ही भोजन की पौष्टिकता बरकरार रहती है।
मिट्टी के बर्तनों में पका खाना स्वादिष्ट होता है, साथ ही वह पूर्ण पौष्टिक भी होता
है। ये हमें बीमारियों से लडऩे और उनकी रोकथाम करने में सहायता भी प्रदान करते हैं
। आज भी ऐसे बर्तन आसानी से बाजार में मिल जाते हैं। ये सस्ते होने के साथ ही आपके
स्वास्थ्य के रक्षक भी हैं। अत: ऐसे बर्तनों में खाना पकाया जाए तो स्वास्थ्य
संबंधी कई लाभ प्राप्त होंगे।
हनुमानजी की पूजा में ध्यान रखें ये छोटी सी बात
हमेशा से ही हनुमानजी भक्तों की मनोकामनाएं शीघ्रता से पूर्ण करने वाले देवता
माने जाते हैं। हर युग में श्रीराम के अनन्य भक्त बजरंग बली श्रद्धालुओं के दुखों
को दूर करके उन्हें सुखी और समृद्धिशाली बनाते हैं। इसी कारण आज इनके भक्तों की
संख्या काफी अधिक है। मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमानजी के मंदिरों में भक्तों की
भीड़ लगी रहती है। शास्त्रों के अनुसार कुछ नियम बताए गए हैं जिनका पालन हमें
हनुमानजी के दर्शन करते समय और पूजन में करना चाहिए।
सभी देवी-देवताओं की तरह हनुमानजी के पूजन के बाद उनकी परिक्रमा करने की प्रथा
है। इस संबंध में शास्त्रों में बताया गया है कि हनुमानजी की कितनी परिक्रमा करनी
चाहिए।
प्राचीन ऋषि-मुनियों के अनुसार आरती और पूजा-अर्चना आदि के बाद भगवान की
मूर्ति के आसपास सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है, इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए
परिक्रमा की जाती है। सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा की अलग-अलग संख्या है। श्रीराम
के परम भक्त पवनपुत्र श्री हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है। भक्तों को
इनकी तीन परिक्रमा ही करनी चाहिए। ऐसा करने पर हनुमानजी की कृपा जल्दी ही प्राप्त
हो जाती है।
मछलियों को खिलाना चाहिए आटे की गोलियां, क्योंकि...
जीवन के दो पहलु बताए गए हैं सुख और दुख। हर व्यक्ति को इन दोनों पहलुओं से
रुबरु होना पड़ता है। किसी के जीवन में दुख अधिक होते हैं तो किसी के जीवन में
सुख। शास्त्रों के अनुसार कर्मों के अनुसार ही हमें सुख या दुख प्राप्त होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्मों में किए गए कर्मों के आधार पर ही व्यक्ति को
नया जन्म मिलता है। यदि किसी व्यक्ति को जीवन में काफी अधिक कष्ट भोगने पड़ रहे
हैं तो उसे पुण्य कर्म करने चाहिए। जिससे कि पुराने पापों का नाश होता है और पुण्य
की बढ़ोतरी होती है। ऐसा करने पर दुख के प्रभाव में कमी आती है तो सुख प्राप्त
होने लगते हैं।
शास्त्रों के अनुसार सभी के कष्टों को दूर करने का एक सटीक उपाय बताया गया है
मछलियों को आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खिलाना। यदि आपकी कुंडली में कोई दोष
या ग्रह बाधा हो तो इस उपाय काफी कारगर सिद्ध होता है। मछलियों को खाना खिलाने
बहुत शुभ कर्म माना जाता है। इससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु
ने मत्स्य अवतार लिया था इससे मछलियों का महत्व काफी अधिक बढ़ जाता है। इसके अलावा
सभी देवी-देवताओं और ग्रहों की कृपा प्राप्ति के लिए भी यह श्रेष्ठ उपाय है।
प्रतिदिन मछलियों को आटे की छोटी-छोटी गोलियां खिलाने पर मन को असीम शांति की
प्राप्ति होती है। हमेशा खुश और शांत रहने के लिए भी यह उपाय करना चाहिए।
रात के समय नहीं करना चाहिए ये काम, क्योंकि...
घर में किसी भी प्रकार की धूल-मिट्टी, गंदगी का होना स्वास्थ्य की दृष्टि से तो हानिकारक
है साथ ही शास्त्र के अनुसार भी यह अशुभ माना जाता है। घर की साफ-सफाई से हमारा मन
हमेशा प्रसन्न और खुश रहता है। यदि घर में गंदगी रहेगी तो धन संबंधी परेशानियों का
सामना करना पड़ता है।
शास्त्रों के अनुसार रात्रि के समय कचरा घर से बाहर नहीं फेंकना चाहिए। ऐसा
माना जाता है कि रात के समय कचरा बाहर फेंकने से धन संबंधी परेशानियों का सामना
करना पड़ सकता है। इसी वजह से रात के समय साफ-सफाई करना वर्जित किया गया है।
रोज ही अपने घर की साफ-सफाई की जाती है। शास्त्रों के अनुसार शाम या रात्रि के
समय घर की साफ-सफाई निषेध की गई है। सुबह सफाई करने के बाद घर के सभी सदस्य नहा
लेते हैं जिससे शरीर पर लगे बीमारी के कीटाणु साफ हो जाते हैं और उन कीटाणुओं से
बीमार होने की संभावना समाप्त हो जाती है। यदि रात्रि के समय सफाई करेंगे तो वह
सारे कीटाणु घर के सदस्यों के शरीर पर चिपक जाएंगे। रात्रि के समय सभी सदस्य नहाते
भी नहीं है, ऐसे में उन कीटाणुओं से हमारे स्वास्थ्य को खतरा रहता है। इस खतरे से हमें
बचाने के लिए रात्रि के समय साफ-सफाई नहीं करना चाहिए।
जन्म से मृत्यु तक ये 16 काम करना है बहुत जरूरी, क्योंकि...
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन के लिए कुछ आवश्यक नियम बनाए गए हैं जिनका
पालन करना हमारे लिए आवश्यक माना गया है। मनुष्य जीवन में हर व्यक्ति को अनिवार्य
रूप से सोलह संस्कारों का पालन करना चाहिए। यह संस्कार व्यक्ति के जन्म से मृत्यु
तक अलग-अलग समय पर किए जाते हैं।
प्राचीन काल से इन सोलह संस्कारों के निर्वहन की परंपरा चली आ रही है। हर
संस्कार का अपना अलग महत्व है। जो व्यक्ति इन सोलह संस्कारों का निर्वहन नहीं करता
है उसका जीवन अधूरा ही माना जाता है।
ये सोलह संस्कार क्या-क्या हैं -
गर्भाधान संस्कार- यह ऐसा संस्कार है जिससे हमें योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त
होती है। शास्त्रों में मनचाही संतान प्राप्त के लिए गर्भधारण संस्कार किया जाता
है। इसी संस्कार से वंश वृद्धि होती है।
पुंसवन संस्कार- गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक और मानसिक विकास के लिए यह संस्कार
किया जाता है। पुंसवन संस्कार के प्रमुख लाभ ये है कि इससे स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान की
प्राप्ति होती है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार- यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया
जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे
गुण, स्वभाव
और कर्म का ज्ञान आए, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है।
जातकर्म संस्कार- बालक का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से शिशु के कई
प्रकार के दोष दूर होते हैं। इसके अंतर्गत शिशु को शहद और घी चटाया जाता है साथ ही
वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है ताकि बच्चा स्वस्थ और दीर्घायु हो।
नामकरण संस्कार- शिशु के जन्म के बाद 11वें दिन नामकरण संस्कार किया
जाता है। ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बच्चे का नाम तय किया जाता
है।
निष्क्रमण संस्कार- निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। जन्म के चौथे महीने
में यह संस्कार किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा
जाता है, से
बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं। साथ ही
कामना करते हैं कि शिशु दीर्घायु रहे और स्वस्थ रहे।
अन्नप्राशन संस्कार- यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात 6-7 महीने की उम्र में किया
जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है।
मुंडन संस्कार- जब शिशु की आयु एक वर्ष हो जाती है तब या तीन वर्ष की आयु में
या पांचवे या सातवे वर्ष की आयु में बच्चे के बाल उतारे जाते हैं जिसे मुंडन
संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार से बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज
होती है। साथ ही शिशु के बालों में चिपके कीटाणु नष्ट होते हैं जिससे शिशु को
स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
विद्या आरंभ संस्कार- इस संस्कार के माध्यम से शिशु को उचित शिक्षा दी जाती
है। शिशु को शिक्षा के प्रारंभिक स्तर से परिचित कराया जाता है।
कर्णवेध संस्कार- इसका अर्थ है- कान छेदना। परंपरा में कान और नाक छेदे जाते
थे। इसके दो कारण हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर
होता है। इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है। इससे
श्रवण शक्ति बढ़ती है और कई रोगों की रोकथाम हो जाती है।
उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार- उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। गुरु के पास ले
जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। आज भी यह परंपरा है। जनेऊ यानि यज्ञोपवित में तीन
सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं। इस संस्कार से शिशु को बल,
ऊर्जा और तेज
प्राप्त होता है।
वेदारंभ संस्कार: इसके अंतर्गत व्यक्ति को वेदों का ज्ञान दिया जाता है।
केशांत संस्कार- केशांत संस्कार अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना, उन्हें समाप्त करना।
विद्या अध्ययन से पूर्व भी केशांत किया जाता है। मान्यता है गर्भ से बाहर आने के
बाद बालक के सिर पर माता-पिता के दिए बाल ही रहते हैं। इन्हें काटने से शुद्धि
होती है। शिक्षा प्राप्ति के पहले शुद्धि जरूरी है, ताकि मस्तिष्क ठीक दिशा में काम
करें। पुराने में गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद केशांत संस्कार किया जाता था।
समावर्तन संस्कार- समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना। आश्रम या गुरुकुल
से शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति को फिर से समाज में लाने के लिए यह संस्कार
किया जाता था। इसका आशय है ब्रह्मचारी व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के
संघर्षों के लिए तैयार किया जाना।
विवाह संस्कार- यह धर्म का साधन है। विवाह संस्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण
संस्कार माना जाता है। इसके अंतर्गत वर और वधू दोनों साथ रहकर धर्म के पालन का
संकल्प लेते हुए विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया
जाता है। इसी संस्कार से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है।
अंत्येष्टी संस्कार- अंत्येष्टि संस्कार इसका अर्थ है अंतिम संस्कार।
शास्त्रों के अनुसार इंसान की मृत्यु यानि देह त्याग के बाद मृत शरीर अग्नि को
समर्पित किया जाता है। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है।
इसी से चिता जलाई जाती है। आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई
थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है।
किसी को कुछ देने से पहले ध्यान रखें ये बातें, क्योंकि...
शास्त्रों में दान के कई नियम और तरीके बताए गए हैं। मनुस्मृति के अनुसार जो
मनुष्य परिजन, सहारे की आशा रखने वाले करीबी रिश्तेदार तथा स्वयं पर आश्रित लोगों की
दुख-तकलीफों को नजरअंदाज कर, दान-पुण्य करता है, वह दान जीते जी और मृत्युपरांत भी उसके लिए दुखदाई
ही होता है।
दान के संबंध में कई महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं। -
दान देने वाला पूर्व दिशा की ओर मुख कर दान दे और लेने वाला उत्तर दिशा की ओर
मुख कर ग्रहण करे, तो दानदाता की आयु में वृद्धि होती है तथा लेने वाली की आयु कम नहीं होती।
तिल, अक्षत,
कुश और जल हाथ में
लेकर ही दान देना चाहिए। पितरों के निमित्त दान करते समय तिल एवं देवताओं के लिए
अक्षत अवश्य होना चाहिए। जल एवं कुश हर स्थिति में जरूरी है।
जिसे दान देना है, उसके पास स्वयं जाकर देना उत्तम माना गया है, अपने यहां बुलाकर दिया
गया दान मध्यम तथा मांगने पर दिया गया दान अधम माना गया है।
किसी से सेवा कराने के बाद दिया गया दान निष्फल होता है।
रात के समय दान नहीं देना चाहिए, किंतु चंद्र-सूर्यग्रहण के समय, विवाह, खलिहान-यज्ञ, जन्म एवं मृतक कर्म का
दान रात में भी कर सकते हैं।
दक्षिणा, विद्या, कन्या, दीपक, अन्न तथा आश्रय दान भी रात में कर सकते हैं।
गौ, सोना,
चांदी, रत्न, विद्या, तिल, कन्या, हाथी, अश्व, शैया, वस्त्र, भूमि, अन्न, दूध, छत्र तथा गृह इन सोलह
वस्तुओं के दान को महादान कहते हैं।
भगवान को चावल चढ़ाने से दूर होती हैं पैसों की समस्या, क्योंकि...
चावल को अक्षत भी कहा जाता है और अक्षत का अर्थ होता है जो टूटा न हो। इसका
रंग सफेद होता है। पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है। किसी भी पूजन के समय
गुलाल, हल्दी,
अबीर और कुंकुम
अर्पित करने के बाद अक्षत चढ़ाए जाते हैं। अक्षत न हो तो पूजा पूर्ण नहीं मानी
जाती।
शास्त्रों के अनुसार पूजन कर्म में चावल का काफी महत्व रहता है। देवी-देवता को
तो इसे समर्पित किया ही जाता है साथ ही किसी व्यक्ति को जब तिलक लगाया जाता है तब
भी अक्षत का उपयोग किया जाता है। भोजन में भी चावल का उपयोग किया जाता है।
कुंकुम, गुलाल, अबीर और हल्दी की तरह चावल में कोई विशिष्ट सुगंध नहीं होती और न ही इसका
विशेष रंग होता है। अत: मन में यह जिज्ञासा उठती है कि पूजन में अक्षत का उपयोग
क्यों किया जाता है?
दरअसल अक्षत पूर्णता का प्रतीक है। अर्थात यह टूटा हुआ नहीं होता है। इसलिए
पूजा में अक्षत चढ़ाने का अभिप्राय यह है कि हमारा पूजन अक्षत की तरह पूर्ण हो।
अन्न में श्रेष्ठ होने के कारण भगवान को चढ़ाते समय यह भाव रहता है कि जो कुछ भी
अन्न हमें प्राप्त होता है वह भगवान की कृपा से ही मिलता है। अत: हमारे अंदर यह
भावना भी बनी रहे। इसका सफेद रंग शांति का प्रतीक है। अत: हमारे प्रत्येक कार्य की
पूर्णता ऐसी हो कि उसका फल हमें शांति प्रदान करे। इसीलिए पूजन में अक्षत एक
अनिवार्य सामग्री है ताकि ये भाव हमारे अंदर हमेशा बने रहें।
विदेशी परंपरा: बारिश न हो तो, अपनाते हैं ऐसे अजीब उपाय...
सामान्यत: ऐसा माना जाता है कि भारत में ही टोटके होते हैं लेकिन ऐसा नहीं है,
विदेश में भी कई
प्रकार की ऐसी ही परंपराएं प्रचलित हैं। कई देशों में बारिश के लिए अलग-अलग टोटके
किए जाते हैं।
बारिश कराने के लिए पूर्वी द्वीप समूह के लोग सिर के सारे बाल कटवा देते हैं,
गंजे हो जाते हैं।
इसके बाद वे लोग किसी ऊंची पहाड़ी पर पत्थर फेंकते हैं। वहां ऐसी मान्यता है कि इस
टोटके से आसमान के आंसू बहने लगते हैं यानि बारिश शुरू हो जाती है।
जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़े देश चीन में भी बारिश के लिए कई
प्रकार के टोटके प्रचलित हैं। यहां के लोग वर्षा न होने पर एक बड़ा पुतला बनाकर
किसी मैदान में खड़ा करते हैं। इसके बाद तीन दिन तक इस पुतले की पूजा-अर्चना की
जाती है। वहां ऐसा मान्यता है कि इस उपाय से वर्षा हो जाती है। यदि वर्षा नहीं
होती तो तीन दिन बाद उस पुतले में आग लगा दी जाती है।
वर्षा के लिए अफ्रीका के अरबी लोग एक पुतला बनाते हैं और उसे सजाकर एक गांव से
दूसरे गांव की यात्रा निकालते हैं। यात्रा के साथ ही वे वर्षा होने की प्रार्थना
ईश्वर से करते हैं। यहां ऐसा माना जाता है कि इस यात्रा के प्रभाव से वर्षा के
देवता प्रसन्न होते हैं और वर्षा करवाते हैं।
उत्तरी अमेरिका में एक आदिवासी क्षेत्र तुलसा है। इस क्षेत्र में वर्षा बुलाने
के लिए रोचक उपाय अपनाया जाता है। यहां के लोग किसी मैदान में दो पहलवानों की कुश्ती
करवाते हैं। एक पहलवान कहता है 'वर्षा होगी।'। दूसरा कहता है- वर्षा नहीं होगी। उनके बीच तब तक कुश्ती
होती है, जब
तक कि 'वर्षा
नहीं होगी' कहने वाला चित्त नहीं हो जाता। हारे हुए पहलवान को 'नकारो' नामक देवता के मंदिर पर ले जाते
हैं। मंदिर में देवता से प्रार्थना करते हैं। इसके बाद हारे हुए पहलवान को मन्दिर
के दरवाजे पर बांध दिया जाता है। यह पहलवान तब तक बंधा रहता है, जब तक वर्षा नहीं हो
जाती। ऐसा करने पर जल्दी ही बारिश हो जाती है। ऐसी मान्यता यहां प्रचलित है।
इन 5 देवताओं
की पूजा बहुत जरूरी है, क्योंकि...
शास्त्रो में पंच देव के नित्य पूजन का विधान बताया गया है। इन पांच देवताओं
की आराधना के बाद व्यक्ति को सभी सुख और इच्छित वस्तुएं प्राप्त हो जाती हैं। इसके
साथ जो लोग इनकी पूजा नियमित रूप से करते हैं उन्हें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती
है।
आज के व्यस्त जीवन में काफी लोग ऐसे हैं जो इन देवताओं की पूजा नहीं कर पाते
हैं। साथ ही बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें पंच देव कौन हैं? यह जानकारी भी नहीं है। इन पंच
देवताओं में कौन-कौन शामिल हैं, जानिए...
सभी जानते है कि हमारा शरीर पंच तत्वों से निर्मित है और इन पांचो तत्वों के
अलग-अलग कारक देवता माने गए हैं। यह पांचों तत्व और उनके देवता इस प्रकार हैं-
श्री गणेश- जल तत्व हैं।
श्री विष्णु- वायु तत्व हैं।
श्री शंकर- पृथ्वि तत्व हैं।
श्री देवी - अग्रि तत्व हैं।
श्री सूर्य- आकाश तत्व हैं।
जीवन के लिए सर्वप्रथम जल की आवश्यकता होती है। इसलिए प्रथम पूज्य गणेश जल
के अधिष्ठात्र देवता है। वायु साक्षात विष्णु देवता से संबधित तत्व है। शंकर
पृथ्वि तत्व, देवी अग्नि तत्व तथा सूर्य आकाश तत्व के देवता है। इस प्रकार इन पांचों का
पूजन कर हम अपने आप का की पूजन करते हैं। ऐसा माना जाता है।
घर में नहीं रखना चाहिए ऐसे फोटो और मूर्तियां, क्योंकि...
घर में कभी भी टूटी-फूटी तस्वीर अथवा मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। अगर कोई मूर्ति
या तस्वीर टूट जाए तो उसे तुरंत घर से हटा दें। बेकार तस्वीरें या फोटो घर के
वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। इसी वजह से घर के सदस्यों की सोच प्रभावित
होती है। वास्तु के अनुसार भी ऐसे फोटो या मूर्तियां घर में नहीं रखनी चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की हर चीज का प्रभाव हमारे सोच-विचार पर पड़ता
है। ऐसे में घर में वहीं वस्तुएं रखनी चाहिए जिनसे घर के सदस्यों के विचार शुद्ध
रहे और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हो।
टूटी-फूटी और बेकार तस्वीर या मूर्तियां नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है
जिससे घर का वातावरण भी वैसा ही हो जाता है। सदस्यों का मन अशांत रहता है और घर
में परेशानियां पैदा होती हैं। परिवार में क्लेश, पति-पत्नी के रिश्ते में तनाव भी
उत्पन्न हो जाता है। साथ ही घर में धन के प्रवाह में रुकावट आती है।
पुरानी और खंडित तस्वीरों से घर की सुंदरता भी खत्म हो जाती है। इससे बाहर से
आने वाले लोगों के सामने हमारे घर की अच्छी सोच नहीं बनती है। इन्हीं सब कारणों के
चलते घर में बेकार और पुरानी तस्वीर-फोटो या मूर्तियां हटा देनी चाहिए।
इन चार स्थितियों में नहाना नहीं चाहिए, क्योंकि...
अच्छे स्वास्थ्य के लिए नहाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य हैं। प्रतिदिन स्नान
करने से कई बीमारियों की रोकथाम हो जाती है। साथ ही सुबह-सुबह स्नान करने से दिनभर
ताजगी बनी रहती है और हम कार्य ठीक से कर पाते हैं। प्रतिदिन स्नान करने के असंख्य
लाभ हैं लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं जब हमें स्नान नहीं करना चाहिए-
सुबह-सुबह दौडऩा स्वास्थ्य के बहुत ही अच्छा रहता है लेकिन कुछ लोग दौड़कर आने
के तुरंत बाद स्नान कर लेते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। दौडऩे से
हमारे शरीर गर्म हो जाता है और ऐसे में नहाना स्वास्थ्य के लिए नुकसान दायक रहता
है। दौड़कर आने के बाद तब तक नहीं नहाना चाहिए जब तक शरीर का तापमान सामान्य न हो
जाए।
यदि पसीना निकल रहा है तो ऐसे में नहाना नहीं चाहिए। पसीना निकलते समय नहाने
से भी हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जब पसीना निकलना बंद हो जाए
तो उससे थोड़ी देर बाद स्नान किया जा सकता है।
खाना खाने से तुरंत पहले या बाद में भी नहीं नहाना चाहिए। भोजन की ऊर्जा ग्रहण
करने में शरीर को थोड़ा समय लगता है। भोजन के तुरंत बाद कुछ ऐसा कार्य नहीं करना
चाहिए जिससे शरीर को अतिरिक्त शक्ति का प्रयोग करना पड़े। इसी वजह से भोजन के बाद
कुछ आराम से बैठने की सलाह दी जाती है ताकि भोजन आसानी से पच सके। नहाने से हमारे
शरीर के तापमान पर फर्क पड़ता है और भोजन के बाद भी शरीर का तापमान प्रभावित होता
है। अत: इस परिस्थिति में भी स्नान करना स्वास्थ्य के हानिकारक है।
यदि ऐसी कोई बीमारी हो गई जिसमें नहाने से और अधिक बीमार होने की संभावनाएं
रहती हैं तो स्नान नहीं करना चाहिए। यदि किसी इंसान को बार-बार दस्त लग रहे हैं तो
उसे भी नहाना नहीं चाहिए। सामान्यत: बुखार से समय नहाने से मना किया जाता है।
बुखार में नहाने से बीमारी बढऩे का खतरा बना रहता है।
पूजा में कौन सी धातु के बर्तनों का उपयोग न करें?
भगवान की पूजा में कई प्रकार के बर्तनों का भी उपयोग किया जाता है। ये बर्तन
किस धातु के होने चाहिए और कौन सी धातु नहीं, इस संबंध में कई नियम बताए गए
हैं। जिन धातुओं को पूजा वर्जित किया गया है उनका उपयोग पूजन कर्म में नहीं करना
चाहिए। अन्यथा धर्म कर्म का पूर्ण पुण्य फल प्राप्त नहीं हो पाता है।
भगवान की पूजा एक ऐसा उपाय है जिससे जीवन की बड़ी-बड़ी समस्याएं हल हो जाती
हैं। पूजा में बर्तनों का भी काफी गहरा महत्व है। शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग
धातु अलग-अलग फल देती है। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी है।
सोना, चांदी,
पीतल, तांबे की बर्तनों का
उपयोग शुभ माना गया है। वहीं दूसरी ओर पूजन में लोहा और एल्युमीनियम धातु से
निर्मित बर्तन वर्जित किए गए हैं।
पूजा और धार्मिक क्रियाओं में लोहा, स्टील और एल्यूमीनियम को अपवित्र धातु माना गया है।
इन धातुओं की मूर्तियां भी नहीं बनाई जाती। लोहे में हवा, पानी से जंग लग जाता है।
एल्यूमीनियम से भी कालिख निकलती है। पूजन में कई बार मूर्तियों को हाथों से स्नान
कराया जाता है, उस समय इन मूर्तियों रगड़ा भी जाता है। ऐसे में लोहे और एल्युमिनियम से निकलने
वाली जंग और कालिख का हमारी त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए लोहा, एल्युमीनियम को पूजा में
निषेध माना गया है। पूजा में सोने, चांदी, पीतल, तांबे के बर्तनों का उपयोग करना चाहिए। इन धातुओं को रगडऩा
हमारी त्वचा के लिए लाभदायक रहता है।
भड़ली नवमी 28 को, ये
है विवाह का अबूझ मुहूर्त
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को भड़ली या भडल्या नवमी भी कहते हैं। इस
वर्ष भड़ली नवमी 28 जून, गुरुवार को है। उत्तर भारत में इस तिथि को विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त माना
जाता है।
हिंदू धर्म में कुछ विवाह के लिए कुछ अबूझ मुहूर्त बताए गए हैं, भड़ली नवमी भी उन्हीं
में से एक है। भड़ली नवमी का पर्व विशेष तौर पर उत्तर भारत में मनाया जाता है।
भारत के अन्य हिस्सों में इसे दूसरों रूपों में मनाया जाता है। इस दिन को विवाह
आदि शुभ कार्यों के लिए अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इसका अर्थ है कि जिन लोगों के
विवाह के लिए कोई मुहूर्त नहीं निकलता उनका विवाह इस दिन किया जाए तो उनके वैवाहिक
जीवन में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं होता। चूंकि इस दिन गुप्त नवरात्र का समापन
होता है इसलिए इस दिन का विशेष महत्व है।
देवशयनी एकादशी 30 को, चार महीने पाताल में रहेंगे भगवान विष्णु
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस दिन से
चातुर्मास भी प्रारंभ हो जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार ये समय भगवान की भक्ति
करने का है। इस दौरान कोई मांगलिक कार्य भी नहीं किया जाता। इस बार देवशयनी एकादशी
30 जून,
शनिवार को है।
इससे जुड़ी एक कथा इस प्रकार है-
धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने वामन रूप में दैत्यराज बलि से तीन
पग भूमि दान के रूप में मांगी। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को
ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप
को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से प्रसन्न होकर
भगवान ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और कहा वर मांगो।
बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। तब भगवान ने
बलि की भक्ति को देखते हुए चार मास तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक
मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक पाताल
में बलि के महल में निवास करते हैं।
जानिए, क्या फल मिलता है देवशयनी एकादशी व्रत से
इस बार देवशयनी एकादशी व्रत 30 जून, शनिवार को है। इस व्रत की कथा धर्म शास्त्रों में बताई गई
है। उसके अनुसार-
एक बार देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से देवशयनी एकादशी का महत्व जानना चाहा। तब
ब्रह्माजी ने उन्हें बताया- सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा था। उनके
राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। एक बार उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से
चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई। राजा
मांधाता यह देखकर बहुत दु:खी हुए। इस समस्या का निदान जानने के उद्देश्य से राजा
सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।
वहां वे एक दिन ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। अंगिरा
ऋषि ने उनके जंगल में घुमने का कारण पूछा तो राजा ने अपनी समस्या बताई। तब महर्षि
अंगिरा ने कहा कि सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा
भयंकर दंड मिलता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार
नहीं है जबकि आपके राज्य में एक अन्य जाति का व्यक्ति तप कर रहा है इसीलिए आपके
राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक उसका अंत नहीं होगा तब तक यह अकाल समाप्त
नहीं होगा।
किंतु राजा का हृदय एक निरपराध तपस्वी को मारने को तैयार नहीं हुआ। तब महर्षि
अंगिरा ने राजा को आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा।
राजा के साथ ही सभी नागरिकों ने भी देवशयनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। व्रत
के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से
परिपूर्ण हो गया।
देवशयनी एकादशी, इस आसान विधि से करें व्रत
30 जून, शनिवार को देवशयनी एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत किया जाता
है। व्रत की विधि इस प्रकार है-
देवशयनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें। इसके बाद घर की साफ-सफाई करें तथा
नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं। स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें। घर के
पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल की
मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें। इसके बाद
भगवान विष्णु को पीतांबर(पीला कपड़ा) आदि से विभूषित करें। तत्पश्चात व्रत कथा
सुनें।
इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें। अपने सामथ्र्य के अनुसार ब्राह्मणों को
भोजन कराएं तथा दक्षिणा देकर विदा करें। अंत में सफेद चादर से ढँके गद्दे-तकिए
वाले पलंग पर श्री विष्णु को शयन कराएं तथा स्वयं धरती पर सोएं। धर्म शास्त्रों के
अनुसार यदि व्रती(व्रत रखने वाला) चातुर्मास नियमों का पालन करें तो उसे देवशयनी
एकादशी व्रत का संपूर्ण फल मिलता है।
शनिवार को करें शनि पाताल क्रिया, पाएं शनि दोष से मुक्ति
शनि पाताल क्रिया एक ऐसा उपाय है जो हमेशा के लिए शनि दोष से मुक्ति दिला सकता
है। शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए यह एक दुर्लभ प्रयोग है। शनिवार को यह प्रयोग
इस प्रकार करें-
किसी शुभ मुहूर्त में शनि देव की लोहे की प्रतिमा बनवाएं। इसके बाद इस प्रतिमा
का विधिपूर्वक पूजन एवं प्राण प्रतिष्ठा करें फिर इस प्रतिमा के सामने यथा संभव
नीचे लिखे मंत्र का जप करें-
ऊँ शं न देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तुन:।।
इसके बाद दशांश हवन करें और फिर ऐसे स्थान पर गड्ढा खोदें जहां से आपका फिर
कभी निकलना न हो। इस गड्ढे में शनि देव की प्रतिमा को उल्टी सुला दें अर्थात शनि
देव का मुख पाताल की ओर रहे। अब इस गड्ढे के ऊपर मिट्टी डालकर इसे समतल कर दें और
शनि देव से प्रार्थना करें कि जीवन का हर दु:ख दूर हो जाए।
यह उपाय सच्ची श्रद्धा से किया जाए तो शनि दोषों से हमेशा के लिए छुटकारा संभव
है।
शवयात्रा से लौटने के बाद तुरंत क्यों नहाना चाहिए?
किसी भी शवयात्रा में जाना और मृत शरीर को कंधा
देना बड़ा ही पुण्य कार्य माना गया है। धर्म शास्त्रों के अनुसार शवयात्रा में
शामिल होने और अंतिम संस्कार के मौके पर उपस्थित रहने से इंसान को कुछ देर के लिए
ही सही लेकिन जिंदगी की सच्चाई का आभास होता है और मन में वैराग्य होता है। शमशान
जाने के आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। शमशान से आकर तुरंत नहाना भी चाहिए। इस
संबंध में कई कारण बताए गए हैं।
दरअसल इसका कारण यह है कि शव के अंतिम संस्कार के समय वातावरण में कई प्रकार
के सूक्ष्म एवं संक्रामक कीटाणु फैले रहते हैं। अत: इन कीटाणुओं से वहां उपस्थित
इंसानों पर किसी संक्रामक रोग का असर होने की संभावना बनी रहती है। इस प्रकार की संभावनाओं
से निटपटने के लिए नहाना श्रेष्ठ उपाय है।
इसके साथ ही एक अन्य कारण भी तंत्र-शास्त्रों में बताया जाता है। शमशान भूमि
पर लगातार ऐसे ही कार्य होते रहते हैं, जिससे वहां एक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह
बना रहता है जो कमजोर मनोबल के इंसान को नुकसान पहुंचा सकता है। दाह संस्कार के
पश्चात भी मृतआत्मा का सूक्ष्म शरीर कुछ समय तक वहां उपस्थित होता है जो अपनी
प्रकृति के अनुसार कोई हानिकारक प्रभाव भी डाल सकता है। इन प्रभावों से बचने के
लिए भी वहां से आने के बाद तुरंत नहा लेना चाहिए।
गणेशजी और विष्णुजी की पूजा में ध्यान रखनी चाहिए ये बात
हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि देवी-देवताओं के दर्शन मात्र से हमारे
सभी पाप अक्षय पुण्य में बदल जाते हैं। फिर भी श्री गणेश और विष्णु की पीठ के
दर्शन वर्जित किए गए हैं।
गणेशजी और भगवान विष्णु दोनों ही सभी सुखों को देने वाले माने गए हैं। अपने
भक्तों के सभी दुखों को दूर करते हैं और उनकी शत्रुओं से रक्षा करते हैं। इनके
नित्य दर्शन से हमारा मन शांत रहता है और सभी कार्य सफल होते हैं।
गणेशजी को रिद्धि-सिद्धि का दाता माना गया है। इनकी पीठ के दर्शन करना वर्जित
किया गया है। गणेशजी के शरीर पर जीवन और ब्रह्मांड से जुड़े अंग निवास करते हैं।
गणेशजी की सूंड पर धर्म विद्यमान है तो कानों पर ऋचाएं, दाएं हाथ में वर, बाएं हाथ में अन्न,
पेट में समृद्धि,
नाभी में
ब्रह्मांड, आंखों में लक्ष्य, पैरों में सातों लोक और
मस्तक में ब्रह्मलोक विद्यमान है। गणेशजी के सामने से दर्शन करने पर
उपरोक्त सभी सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त हो जाती है। ऐसा माना जाता है श्रीगणेश
की पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। गणेशजी की पीठ के दर्शन करने वाला व्यक्ति
यदि बहुत धनवान भी हो तो उसके घर पर दरिद्रता का प्रभाव बढ़ जाता है। इसी वजह से
इनकी पीठ नहीं देखना चाहिए। जाने-अनजाने पीठ देख ले तो श्री गणेश से क्षमा याचना
कर उनका पूजन करें। तब बुरा प्रभाव नष्ट होगा।
वहीं भगवान विष्णु की पीठ पर अधर्म का वास माना जाता है। शास्त्रों में लिखा
है जो व्यक्ति इनकी पीठ के दर्शन करता है उसके पुण्य खत्म होते जाते हैं और धर्म
बढ़ता जाता है।
इन्हीं कारणों से श्रीगणेश और श्रीविष्णु की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए।
सिंदूर क्यों लगाते हैं हनुमानजी को?
वैसे तो सिंदूर सुहाग का प्रतीक है और इसे सभी सुहागन स्त्रियों द्वारा मांग
में लगाने की परंपरा है। सिंदूर का पूजन-पाठ में भी गहरा महत्व है। बहुत से
देवी-देवताओं को सिंदूर अर्पित किया जाता है। श्री गणेश, माताजी, भैरव महाराज के अतिरिक्त मुख्य
रूप से हनुमानजी को सिंदूर चढ़ाया जाता है।
हनुमानजी का पूरा श्रंगार ही सिंदूर से किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार हर
युग में बजरंग बली की आराधना सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाली मानी गई है।
हनुमानजी श्रीराम के अनन्य भक्त हैं और जो भी इन पर आस्था रखता है उनके सभी कष्टों
को ये दूर करते हैं। हनुमानजी को सिंदूर क्यों लगाया जाता है? इस संबंध में शास्त्रों
में एक प्रसंग बताया गया है।
रामचरित मानस के अनुसार हनुमानजी ने माता सीता को मांग में सिंदूर लगाते हुए
देखा। तब उनके मन में जिज्ञासा जागी कि माता मांग में सिंदूर क्यों लगाती है?
यह प्रश्न
उन्होंने माता सीता से पूछा। इसके जवाब में सीता ने कहा कि वे अपने स्वामी,
पति श्रीराम की
लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए मांग में सिंदूर लगाती हैं। शास्त्रों
के अनुसार सुहागन स्त्री मांग में सिंदूर लगाती है तो उसके पति की आयु में वृद्धि
होती है और वह हमेशा स्वस्थ रहते हैं।
माता सीता का उत्तर सुनकर हनुमानजी ने सोचा कि जब थोड़े सा सिंदूर लगाने का
इतना लाभ है तो वे पूरे शरीर पर सिंदूर लगाएंगे तो उनके स्वामी श्रीराम हमेशा के
लिए अमर हो जाएंगे। यही सोचकर उन्होंने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाना प्रारंभ कर
दिया। तभी से बजरंग बली को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
वैसे तो सभी के जीवन में समस्याएं सदैव बनी रहती हैं लेकिन यदि किसी व्यक्ति
के जीवन में अत्यधिक परेशानियां उत्पन्न हो गई है और उसे कोई रास्ता नहीं मिल रहा
हो तब हनुमानजी की सच्ची भक्ति से उसके सारे बिगड़े कार्य बन जाएंगे। दुर्भाग्य
सौभाग्य में बदल जाएगा। प्रतिदिन हनुमान के चरणों का सिंदूर अपने सिर या मस्तक पर
लगाने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और विचार सकारात्मक बनते हैं। जीवन की
परेशानियां दूर हो जाती हैं।
मृत्यु के बाद पुत्र ही क्यों देता है मुखाग्नि?
भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यही संदेश दिया है कि मृत्यु एक अटल सत्य
है। जिसने जन्म लिया है उसे मृत्यु अवश्य प्राप्त होगी। आत्मा अमर है और वह
निश्चित समय के अलग-अलग शरीर धारण करती है। जब जिस शरीर का समय पूर्ण हो जाता है
आत्मा उसका त्याग कर देती है। इसे ही मृत्यु कहा जाता है। हिंदू धर्म में मृत्यु
के संबंध में एक महत्वपूर्ण नियम या परंपरा यह है कि मृत शरीर को मुखाग्नि पुत्र
ही देता है। यदि मृत व्यक्ति का पुत्र है तो मुखाग्नि उसे ही देना है, ऐसा विधान है।
मृतक चाहे स्त्री हो या पुरुष अंतिम क्रिया पुत्र की संपन्न करता है। इस संबंध
में हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि पुत्र पुत नामक नर्क से बचाता है अर्थात्
पुत्र के हाथों से मुखाग्नि मिलने के बाद मृतक को स्वर्ग प्राप्त होता है। इसी
मान्यता के आधार पर पुत्र होना कई जन्मों के पुण्यों का फल बताया जाता है।
पुत्र माता-पिता का अंश होता है। इसी वजह से पुत्र का यह कर्तव्य है कि वह
अपने माता-पिता की मृत्यु उपरांत उन्हें मुखाग्नि दे। इसे पुत्र के लिए ऋण भी कहा
गया है।
घर से तुरंत साफ कर देना चाहिए मकड़ी के जाले
वैसे तो सभी जानते हैं कि घर की साफ-सफाई करने से स्वास्थ्य संबंधी लाभ
प्राप्त होते हैं लेकिन साफ-सफाई का संबंध धर्म और देवी-देवताओं से भी है। जिस घर
में स्वच्छता रहती है वहीं देवी-देवताओं का वास होता है। आमतौर पर घर के निचले
हिस्सों की तो सफाई हो जाती है लेकिन छत या ऊपरी हिस्सों की ठीक से सफाई नहीं हो
पाती। ऐसे में वहां मकड़ी द्वारा जाले बना लिए जाते हैं। घर में ये जाले होना अशुभ
माना जाता है।
अक्सर वृद्धजन और विद्वान लोग कहते हैं कि घर में मकड़ी के जाले नहीं होना
चाहिए। ये अशुभ होते हैं। ये अंधविश्वास नहीं है बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक और
धार्मिक कारण मौजूद हैं। मकड़ी के जालों की संरचना कुछ ऐसी होती है कि उसमें
नकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है। इसलिए घर के जिस भी कोने में मकड़ी के जाले
होते हैं, वह कोना या हिस्सा नकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। इस कारण घर में कलह,
बीमारियां व अन्य
कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
साथ ही मकड़ी के एक जाले में असंख्य सूक्ष्मजीव रहते हैं जो कि हमारे
स्वास्थ्य को नुकसान पंहुचाते हैं। इसलिए कहा जाता हैं कि अगर घर में मकड़ी के
जाले होते हैं तो घर की सुख-समृद्धि का नाश होने लगता है क्योंकि नकारात्मक ऊर्जा
के कारण घर का माहौल इतना अशांत हो जाता है कि व्यक्ति चाहकर भी अपने काम को मन
लगाकर नहीं कर पाता है। इसलिए मकड़ी के जालों को अशुभ माना जाता है।
घर में कुबेर देव की फोटो कहां लगानी चाहिए?
जीवन में धन, सुख और समृद्धि बढ़ाने के लिए धर्म शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं।
जिन्हें अपनाने से निश्चित ही शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं। इन्हीं उपायों में
से एक उपाय यह है कि घर में कुबेर देव की मूर्ति या फोटो अवश्य रखना चाहिए। कुबेर
देव को सुख-समृद्धि और धन देने वाले देवता हैं।
शास्त्रों के अनुसार धन प्राप्ति के लिए देवी महालक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए
लेकिन इसके साथ धन के देवता कुबेर को पूजन से भी पैसा से जुड़ी तमाम समस्याएं दूर
रहती हैं। कुबेर देव को देवताओं का कोषाध्यक्ष माना गया है। इसी वजह से कुबेर देव
की मूर्ति या फोटो घर में लगाने से इनकी कृपा सदैव परिवार के सदस्यों पर बनी रहती
है और धन से जुड़े कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
कुबेर देव की बड़ी महिमा बताई गई है इसी वजह से इनकी फोटो या मूर्ति घर में
कहां रखें? इस संबंध विशेष सावधानी रखने आवश्यकता है। कुबेर देव का निवास उत्तर दिशा की
ओर माना गया है। अत: इनका फोटो घर में उत्तर दिशा की ओर ही लगाना श्रेष्ठ रहता है।
साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि जहां इनका चित्र लगाया जाए वह स्थान पवित्र हो।
वहां किसी प्रकार का पुराना सामान या कबाड़ा न हो। उस जगह की साफ-सफाई का विशेष
ध्यान दिया जाना चाहिए।
सिक्ख धर्म में सिर ढंककर रखना जरूरी है क्योंकि...
सिक्ख धर्म को मानने वाले सभी अनुयायियों के लिए सिर ढंककर रखने की अनिवार्य
परंपरा बनाई गई है।इस संबंध में विद्वानों की ऐसी मान्यता है कि हमारे शरीर में 10 द्वार होते हैं,
दो नासिका,
दो आंख, दो कान, एक मुंह, दो गुप्तांग और दशवां
द्वार होता है सिर के मध्य भाग में जिसे दशम द्वार कहा जाता है। सभी 10 द्वारों में दशम द्वार
काफी महत्वपूर्ण है। दशम द्वार के माध्यम से ही हम परमात्मा की शक्तियों से जुड़
कर पाते हैं। इसी द्वार से शिशु के शरीर में आत्मा प्रवेश करती है। किसी भी नवजात
शिशु के सिर पर हाथ रखकर दशम द्वार का अनुभव किया जा सकता है। नवजात शिशु के सिर
पर एक भाग अत्यंत कोमल रहता है, वही दशम द्वार है जो बच्चों की उम्र के साथ कठोर होता जाता
है।
परमात्मा की भक्ति में दशम द्वार महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। दशम द्वार का
संबंध सीधे मन से होता है। मन बहुत ही चंचल स्वभाव का होता है और इसी वजह से
मनुष्य परमात्मा में ध्यान आसानी से नहीं लगा पाता। मन को नियंत्रित करने के लिए
ही दशम द्वार ढंककर रखा जाता है ताकि हमारा मन अन्यत्र ना भटके और भगवान में ध्यान
लग सके।
क्या आप जानते हैं, क्यों दिखाई क्यों नहीं देते भूत-प्रेत?
भूत-प्रेत का नाम सुनते ही अचानक ही एक भयानक आकृति हमारे दिमाग में उभरने
लगती है और मन में डर समाने लगता है। हमारे दैनिक जीवन में कहीं न कहीं हम
भूत-प्रेत का नाम अवश्य सुनते हैं। कुछ लोग भूतों को देखने का दावा भी करते हैं
जबकि कुछ इसे कोरी अफवाह मानते हैं।
विभिन्न धर्म ग्रंथों में भी भूत-प्रेतों के बारे में बताया गया है। सवाल यह
उठता है कि अगर वाकई में भूत-प्रेत होते हैं तो दिखाई क्यों नहीं देते। धर्म
ग्रंथों के अनुसार जीवित मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना होता है-पृथ्वी,
जल, वायु, आकाश व अग्नि। मानव शरीर
में सबसे अधिक मात्रा पृथ्वी तत्व की होती है और यह तत्व ठोस होता है इसलिए मानव
शरीर आसानी से दिखाई देता है।
जबकि भूत-प्रेतों का शरीर में वायु तत्व की अधिकता होती है। वायु तत्व को
देखना मनुष्य के लिए संभव नहीं है क्योंकि वह गैस रूप में होता है इसलिए इसे केवल
आभास किया जा सकता है देखा नहीं जा सकता। यह तभी संभव है जब किसी व्यक्ति के
राक्षण गण हो या फिर उसकी कुंडली में किसी प्रकार का दोष हो। मानसिक रूप से कमजोर
लोगों को भी भूत-प्रेत दिखाई देते हैं जबकि अन्य लोग इन्हें नहीं देख पाते।
जानिए क्यों और कैसे मिलते हैं ये 7 सुख
हम जीवन में हमेशा सुख की तलाश में ही भटकते रहते हैं। सुख-दुख एक ही सिक्के
के दो पहलु हैं, जिनसे हमारा जीवन चलता है। शास्त्रों के अनुसार सुख सात प्रकार के बताए गए
हैं। जीवन के सात सुख इस प्रकार है, साथ ही इनकी प्राप्ति कैसे होगी यह भी जानिए...
पहला सुख है निरोगी काया- यदि आपके पास बहुत धन-संपदा है परंतु शरीर स्वस्थ
नहीं है तो सब व्यर्थ है। आप इन सभी सुविधाओं को भोग ही नहीं सकते हैं। निरोगी
काया प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन श्री गणेश का पूजन करें। भगवान धनवंतरि का पूजन
करें। प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और पूजा करें।
दूसरा सुख धन प्राप्ति- आज के समय में अर्थ बिना सब व्यर्थ है। इस दुनिया में
बिना धन के नहीं जिया जा सकता है। अत: निरंतर धन प्राप्ति के लिए महालक्ष्मी का
पूजन करें। पूर्ण धार्मिक आचरण रखें। शिवजी की प्रतिदिन विधि-विधान से पूजा करें।
गरीबों को दान करें।
तीसरा सुख सर्वगुण संपन्न जीवनसाथी- अच्छा जीवन साथी आपके घर को स्वर्ग जैसा
बना सकता है। हर किसी की सोच होती है कि उसे सभी गुणों वाला अच्छा जीवन साथी मिले।
इस सुख की प्राप्ति के लिए शिव-पार्वती या सीता-राम या राधा-कृष्ण या
लक्ष्मी-विष्णु का प्रतिदिन विधि विधान पूजन करें। प्रतिदिन मां पार्वती की आराधना
करें।
चौथा सुख मान-सम्मान, यश- व्यक्ति के हर सुख-सुविधा हो परंतु मान-सम्मान, समाज में इज्जत ना हो तो
वह कभी सुखी नहीं रह सकता है। उसे हर जगह अपमान मिलेगा तो उसका जीवन व्यर्थ ही है।
मान-सम्मान प्राप्ति के लिए प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाएं। पीपल के वृक्ष की पूजा
कर जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा प्रतिदिन करें। श्री हनुमान चालिसा का पाठ प्रतिदिन
करें।
पांचवा सुख आज्ञाकारी संतान- आपके पास स्वस्थ शरीर भी है और बहुत धन भी है
परंतु यदि आपकी संतान दुगुर्ण वाली है तो सारे सुख, दुख में बदल जाएंगे। आज्ञाकारी
और गुणवान संतान की प्राप्ति के लिए पारद शिवलिंग का पूजन करें। सोमवार का व्रत
रखें। महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। प्रतिदिन श्री गणेश को दूर्वा चढ़ाएं।
छठा सुख शत्रु पर विजय- समाज में हमारे कई मित्र और स्नेहीजन होते हैं जो
हमेशा हमारा भला ही सोचते हैं। कई बार बढ़ती ख्याति और धन के जल कर हमारे कुछ लोग
हमारे शत्रु भी हो जाते हैं। इन शत्रुओं पर विजय के लिए प्रतिदिन शत्रुओं पर विजय
प्राप्त करने वाले परम राम भक्त श्री हनुमान चालिसा का पाठ करें। श्रीराम या
श्रीकृष्ण का पूजन करें।
सातवां सुख ईश्वर की भक्ति- सातवें सुख से जीवन के सभी सुखों की सहज ही
प्राप्ति हो जाती है। ईश्वर की नि:स्वार्थ भक्ति करने वाले व्यक्ति भगवान हर सुख
प्रदान करते हैं। परंतु भगवान के सच्चे भक्त को इन सभी सांसारिक सुख-सुविधाओं का
मोह नहीं रह जाता, वह तो बस भगवान के ध्यान में ही मग्न रहता है।
ये 3 काम शरीर से होने वाले महापाप हैं
महाभारत में एक बार युधिष्ठिर ने
पितामह भीष्म से पूछा कि मनुष्य को कौन-कौन से कार्य करना चाहिए? कौन से कार्य नहीं करना चाहिए? और हमारा स्वभाव कैसा होना चाहिए?
जानिए ये महापाप कौन-कौन से हैं..
महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार
इस प्रश्न के उत्तर में पितामह भीष्म ने बताया कि शरीर से तीन, वाणी से चार और मन से तीन बुरे कार्यों का त्याग करना चाहिए।
इस प्रकार दस कर्म महापाप बताए गए हैं।
शरीर से होने वाले 3 महापाप: शरीर से होने वाले 3 महापाप बताए गए हैं। इनमें से पहला पाप है हिंसा करना। किसी भी परिस्थिति
में अनावश्यक रूप से हिंसा करना पाप माना गया है।
शरीर से होने वाला दूसरा पाप है
चोरी। चोरी करना भी महापाप माना गया है। व्यक्ति को खुद की मेहनत से धन आदि
प्राप्त करना चाहिए। अन्य इंसानों की वस्तुएं चुराना पाप है।
पुरुषों के लिए शरीर से होने वाला
तीसरा भयंकर महापाप है परस्त्रीगमन और स्त्रियों के अनुसार परपुरुषगमन करना। किसी
भी परिस्थिति में ये कर्म महापाप माना गया है। पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति
ईमानदार रहते हुए वैवाहिक जीवन के नियमों का पालन करना चाहिए। एक-दूसरे के विश्वास
को तोडऩा महापाप है।
महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार
वाणी से होने वाले चार पाप बताए गए हैं। व्यर्थ की बात करना यानी बकवास करना भी एक
पाप है। निष्ठुर यानी कठोर वचन बोलना भी पाप की श्रेणी में आता है।
व्यक्ति को कभी भी किसी की चुगली
नहीं करना चाहिए। कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। ये भी वाणी से होने वाले पाप हैं।
अनुशासन पर्व के अनुसार मन से होने
वाले तीन पाप इस प्रकार हैं- पहला पाप है दूसरों के धन का लालच करना और उसे हड़पने
की सोचना। किसी भी व्यक्ति के धन को हड़पना और ऐसा सोचना भी पाप
कभी भी दूसरे लोगों से वैर का भाव
नहीं रखना चाहिए। सभी प्राणियों से प्रेम का भाव रखना ही हमारा धर्म है।
मन से होने वाला तीसरा पाप है कर्म
के फल पर विश्वास न करना। यदि हमें विधाता द्वारा दिए गए कर्म के फल पर विश्वास
नहीं करते हैं तो यह भी एक पाप ही है।
जो लोग इन दस महापापों को या इनमें
से किसी एक पाप को भी करते हैं तो उन्हें भयंकर परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। अत: इस
कार्यों से बचना चाहिए।
भगवान को एक हाथ से न करें प्रणाम! जानिए पूजा से जुड़ी ऐसी ही जरूरी बातें
धर्म और अध्यात्म के रास्ते सुखी जीवन की चाहत पूरी करने के लिए हर रोज देव
स्मरण भी सरल उपाय माना गया है। यह देव भक्ति से कामना व कार्यसिद्धि द्वारा शक्ति
व सुख संपन्न बनने का जरिया मात्र नहीं है, बल्कि सुख-समृद्धि के साथ ही
शांति की चाहत भी पूरी करने वाला होता है।
वैसे भक्ति में भावना प्रधान होती है। भावों से भरी भक्ति देव दोष से मुक्त
होती है। किंतु शास्त्रों में विधि-विधान से की जाने वाली पूजा में जाने-अनजाने
देव दोष से बचने के लिए कुछ खास बातों का ख्याल रखना भी जरूरी बताया गया है।
जानिए, अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा के दौरान किन जरूरी बातों का ध्यान रखें?
- देवताओ को फूल जिस स्थिति में वह खिलते हैं, वैसे ही अर्पित करें।
- कुश के अगले हिस्से से देवताओं पर जल न छिड़कें।
- गणेश को तुलसी, दुर्गा को दूर्वा और सूर्य को बिल्वपत्र न चढ़ाएं।
- भगवान विष्णु को धतूरा, देवी को आंकड़ा या मदार, सूर्य को तगर और शंकर को
केवड़े का फूल न चढ़ाएं।
- तांबे के पात्र में रखा चंदन अपवित्र माना जाता है।
- धोती या शरीर पर पहने वस्त्रों में रखे फूल या जल में डुबोया फूल देवताओं को
अर्पित करना वर्जित माना गया है।
- देवताओं के निमित्त जलाया दीपक बुझाना नहीं चाहिए।
- एक हाथ से प्रणाम करना पुण्य नाश करने वाला माना गया है।
- शंकर की पूजा में बिल्वपत्र अधोमुख यानी उल्टा कर चढ़ाएं।
अस्थमा आयुर्वेद चिकित्सा
बढ़ते प्रदूषण से दमा के मरीजों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। दमा एक
गंभीर बीमारी है,जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है। दमा यानी अस्थमा के दौरान खांसी,
नाक बंद होना या
बहना, छाती
का कड़ा होना, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ इत्यादि समस्याएं होती है। हालांकि
आयुर्वेद में दमा का इलाज संभव है लेकिन दमा के मरीजों को जड़ी-बूटी चिकित्सा से
भी बहुत ज्या्दा आराम नहीं मिलता। आइए जानें अस्थमा का आयुर्वेद में इलाज के बारे
में।
दमा का कोई स्थायी इलाज नहीं है लेकिन इस पर नियंत्रण जरूर किया जा सकता है।
दमे के रोगी का दमे का दौरा पड़ने से जान का जोखिम भी रहता है जिसमें उसकी
श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद
हो सकती है।
दमा जानलेवा बीमारी है इसीलिए दमे के रोगी को निरंतर अपनी दवाईयां लेते रहना
चाहिए और अपने पास इनहेलर जरूर रखना चाहिए।
अस्थमा को कम करने के उपाय:-
एक पके केले को छिलके सहित सेंककर बाद में उसका छिलका हटाकर केले के टुकड़ो
में पिसी काली मिर्च डालकर गर्म-गर्म दमे रोगी को देनी चाहिए। इससे रोगी को राहत
मिलेगी।
तुलसी के पत्तों को अच्छी तरह से साफ कर उनमें पिसी कालीमिर्च डालकर खाने के
साथ देने से दमा नियंत्रण में रहता है।
दमे का दौरा बार-बार न पड़े इसके लिए हल्दी और शहद मिलाकर चांटना चाहिए।
तुलसी दमे को नियंत्रित करने में लाभकरी है। तुलसी को पानी के साथ पीसकर
उसमें शहद डालकर चाटने से दमे से राहत मिलती है।
दमे आमतौर पर एलर्जी के कारण भी होता है। ऐसे में एलर्जी को नियंत्रित करने
के लिए दूध में हल्दी डालकर पीनी चाहिए।
शहद की गंध को दमे रोगी को सुधांने से भी आराम मिलता है।
नींबू पानी दमे के दौरे को नियंत्रित करता है। खाने के साथ प्रतिदिन दमे रोगी
को नींबू पानी देना चाहिए।
आंवला खाना भी ऐसे में अच्छा रहता है। आंवले को शहद के साथ खाना तो और भी
अच्छा है।
गर्म पानी में अजवाइन डालकर स्टीम लेने से भी दमे को नियंत्रित करने में राहत
मिलती है।
अस्थमा रोगी को लहसून की चाय या फिर दूध में लहसून उबालकर पीना भी लाभदायक है।
सरसों के तेल को गर्म कर छाती पर मालिश करने से दमे के दौरे के दौरान आराम
मिलता है।
मेथी के बीजों को पानी में पकाकर पानी जब काढ़ा बन जाए तो उसे पीना दमें में
लाभकारी होता है।
लौंग को गर्म पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर उसमें शहद डालकर पीने से दमे को
नियंत्रित करने में आसानी होती है।
इन टिप्स को अपनाकर निश्चित तौर पर आप दमे को नियंत्रित कर सकते हैं। लेकिन
इसके साथ ही जरूरी है कि रोगी को घूल मिट्टी, घुएं इत्यादि से खासतौर पर दूर
रखना चाहिए।
हनुमान चालीसा इस एक लाइन के चमत्कार जानेंगे तो आप भी रटेंगे इसे
त्रेता युग हो या द्वापर युग हो या कलियुग हो, हर युग में हनुमानजी असंभव काम
को भी संभव कर देते हैं। जो भी व्यक्ति इनकी पूजा करता है, ध्यान करता है उसके जीवन में सभी
समस्याएं निश्चित ही समाप्त हो जाती हैं। हनुमानजी को प्रसन्न को करने का सर्वाधिक
लोकप्रिय उपाय है हनुमान चालीसा का पाठ। यहां जानिए हनुमान चालीसा की एक पंक्ति या
लाइन के चमत्कारी प्रभाव से जुड़ी खास बातें...
हनुमान चालीसा में चालीसा दोहे होते हैं और इन दोहों की हर एक पंक्ति का
चमत्कारी असर होता है। इन चालीस पंक्तियों में सबसे अधिक लोकप्रिय पंक्ति है:
भूतपिशाच निकट नहीं आवे। महाबीर जब नाम सुनावे। इस पंक्ति के जप से भक्त के सभी
प्रकार के डर दूर हो जाते हैं और मन को शांति मिलती है। इसके साथ ही इस पंक्ति के
जप से कई अन्य लाभ भी प्राप्त होते हैं।
भूतपिशाच निकट नहीं आवे। महाबीर जब नाम सुनावे। इस पंक्ति का अर्थ इस प्रकार
है- जो व्यक्ति महावीर (हनुमान) का नाम जपता है तो उसके आसपास भूत-पिशाच नहीं
भटकते। मुख्य रूप से यही माना जाता है कि इस पंक्ति से भूत बाधा और बुरी नजर के
दोष दूर होते हैं।
यह हनुमान चालीसा की एक लोकप्रिय पंक्ति है। लोग वर्षों से लोग इसे मंत्र के
रूप में जपते हैं। बच्चों को तो विशेषकर ये पंक्तियां सिखाई जाती हैं। गोस्वामी
तुलसीदासजी ने ये पंक्तियां इसलिए लिखी थीं कि मनुष्य निर्भय हो जाए। आज भी जब हम
इस पंक्ति को जपते हैं तो हमारे सभी प्रकार के डर दूर हो जाते हैं।
इस पंक्ति में भूत और पिशाच का अर्थ है पाश्विक वृत्तियां। पाश्विक वृत्तियों
का आशय है कि सभी प्रकार के गलत विचार, हमारी अनुचित धारणाएं। दुर्गुण,
बुराइयां, भूत और पिशाच की तरह मनुष्य से चिपक जाते हैं।
हनुमानजी का स्मरण करने पर मनुष्य दुर्गुणों से दूर रहता है।
हनुमानजी की भक्त करने वाले व्यक्ति को श्रीराम की भी विशेष कृपा प्राप्त हो
जाती है। श्रीराम अपने अनन्य भक्त हनुमानजी के भक्तों के भी दुख दूर करते हैं।
ज्योतिष के अनुसार शनि देव भी हनुमानजी के भक्तों पर दुष्प्रभाव नहीं डालते हैं।
इसके साथ ही हनुमानजी को शिवजी का अवतार माना जाता है अत: जो भी व्यक्ति बजरंग बली
की भक्ती करता है उसे शिवजी की कृपा भी प्राप्त हो जाती है।
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
Good explained
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