महाभारत की दस वे 'गुप्त' बातें जो सिर्फ चंद लोगों को हैं पता
महाभारत ऐसा महाकाव्य है, जिसके बारे में जानते तो दुनिया भर के लोग हैं, लेकिन ऐसे लोगों की
संख्या बहुत कम है, जिन्होंने उसे पूरा पढ़ा हो। कौरवों और पांडवों के बीच दुश्मनी की इस महागाथा महाभारत के बारे में
तमाम ऐसी बातें हैं , जिनसे लोग आमतौर पर
अपरिचित हैं।
28वें वेदव्यास ने लिखी महाभारत ज्यादातर लोगों को लगता है कि महाभारत वेदव्यास
ने लिखी थी। यह पूरा सच नहीं है। वेदव्यास कोई नाम नहीं, बल्कि एक उपाधि थी, जो वेदों का ज्ञान रखने
वाले लोगों को दी जाती थी। कृष्णद्वैपायन से पहले 27 वेदव्यास हो चुके थे, जबकि वह खुद 28वें वेदव्यास थे। उनका
नाम कृष्णद्वैपायन इसलिए रखा गया, क्योंकि उनका रंग सांवला (कृष्ण) था और वह एक द्वीप पर
जन्मे थे।
गीता सिर्फ एक नहीं माना जाता है कि श्रीमद्भगवद्गीता ही अकेली गीता है,
जिसमें कृष्ण
द्वारा दिए गए ज्ञान का वर्णन है। यह सच है कि श्रीमद्भगवद्गीता ही संपूर्ण और
प्रामाणिक गीता है, लेकिन इसके अलावा कम से कम 10 गीता और भी हैं। व्याध गीता, अष्टावक्र गीता और पाराशर गीता
उन्हीं में से हैं।
द्रौपदी के लिए दुर्योधन के इशारे का मतलब मौलिक महाभारत में यह प्रसंग आता है
कि चौसर के खेल में युधिष्ठिर से जीतने के बाद दुर्योधन ने द्रौपदी को अपनी बाईं
जांघ पर बैठने के लिए कहा था। ज्यादातर लोगों की नजर में इस वजह से भी दुर्योंधन
खलनायक है। उसमें तमाम बुराइयां जरूर थीं, लेकिन उस समय की परंपरा के मुताबिक यह द्रौपदी का
अपमान नहीं था। दरअसल, उस जमाने में बाईं जंघा पर या बाईं ओर पत्नी को और दाईं
जंघा पर या दाईं ओर पुत्री को बैठाया जाता था। यही वजह है कि धार्मिक पोस्टरों या
कैलेंडरों में देवियों को बाईं तरफ स्थान दिया जाता है। हिंदू रीति-रिवाजों में
शादी के समय भी पत्नी, पति के बाईं ओरखड़ी होती है।
धर्म की कोई एक परिभाषा नहीं तमाम लोगों को लगता होगा कि महाभारत धर्म का पाठ
सिखाती है। कुछ लोग महाभारत को सत्य और असत्य से भी जोड़ते हैं, लेकिन यह पूरी तरह सही
नहीं है। मौलिक महाभारत में ऐसा कोई प्रसंग नहीं आता, जिसमें सही और गलत की सटीक
परिभाषा दी गई हो। दरअसल, सही और गलत परिप्रेक्ष्य तथा परिस्थिति के हिसाब से बदलता
है। जैसे कि एक ही परिस्थिति में भीष्म और अजरुन ने अलग-अलग निर्णय लिए और दोनों
को सही माना गया।
भीष्म ने अंबा से विवाह करने से मना कर दिया क्योंकि उन्होंने
अपने पिता के समक्ष जीवन पर्यन्त ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने की प्रतिज्ञा ली
थी। उनके लिए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन ही सही था। अजरुन के सामने ऐसी ही परिस्थिति
आई, जब
उलुपी ने उनसे विवाह करने की इच्छा जाहिर की और प्रस्ताव अस्वीकार होने पर
आत्महत्या करने की बात कह डाली। अजरुन भी उस समय ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहे
थे, लेकिन
उनके लिए उलुपी का जीवन ज्यादा महत्वपूर्ण था।
इसीलिए, अजरुन ने उसकी रक्षा करने को
प्राथमिकता दी और ब्रह्मचर्य व्रत तोड़ने के अपने निर्णय को सही ठहराया। महाभारत
में सही और गलत का ऐसा ही एक और प्रसंग आता है। ज्यादातर लोग मानते हैं कि
द्रोणाचार्य ने न्याय नहीं किया जब उन्होंने एकलव्य से अंगूठा मांगकर, अजरुन को आगे किया। यह
पूरा सच नहीं है। महाभारत के अनुसार, एक बार तालाब में स्नान करते समय जब मगरमच्छ ने
द्रोणाचार्य को जकड़ लिया था, तब अजरुन ने उनकी जान बचाई थी। उसी समय द्रोणाचार्य ने
अजरुन को वचन दिया था कि वह उसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ योद्धा बनाएंगे। अजरुन को
दिए गए इस वचन को निभाने के लिए ही उन्होंने गुरु-दक्षिणा के तौर पर एकलव्य से
अंगूठा मांगा। इससे स्पष्ट है कि सही और गलत की कोई सटीक परिभाषा नहीं गढ़ी जा
सकती।
राशियां नहीं थीं ज्योतिष का आधार महाभारत के दौर में राशियां नहीं हुआ करती
थीं। ज्योतिष 27 नक्षत्रों पर आधारित था, न कि 12 राशियों पर। नक्षत्रों में पहले स्थान पर रोहिणी था,
न कि अश्विनी।
जैसे-जैसे समय गुजरा, विभिन्न सभ्यताओं ने ज्योतिष में प्रयोग किए और चंद्रमा और सूर्य के आधार पर
राशियां बनाईं।
चार पटल वाला पासा शकुनि ने जिस पासे से पांडवों को चौसर का खेल हराया था,
कहते हैं उसके 4
पटल थे। आमतौर पर
लोगों को 6 पटल वाले पासे के बारे में ही पता है। हालांकि, महाभारत में उस चार पटल वाले
पासे की सटीक आकृति का जिक्र नहीं आता। यह भी नहीं बताया गया है कि वह किस धातु या
पदार्थ का बना था। महाभारत के मुताबिक, उस पासे का हर एक पटल एक-एक युग का प्रतीक था। चार
बिंदु वाले पटल का अर्थ सतयुग, तीन बिंदु वाले पटल का अर्थ त्रेतायुग, दो बिंदु वाले पटल का
द्वापरयुग और एक बिंदु वाले पटल का अर्थ कलियुग था।
मंत्र से बन जाते थे ब्रह्मास्त्र ज्यादातर लोगों के बीच यही मान्यता प्रचलित
है कि ब्रह्मास्त्र दैवीय अस्त्र थे, जो देवताओं की तपस्या के बाद हासिल होते थे। लेकिन,
यह भी पूरा सच
नहीं है। कुछ ब्रह्मास्त्र साफ-साफ नजर आते थे, लेकिन कुछ ऐसे भी थे, जिन्हें मंत्रों की
शक्ति से संहारक अस्त्र बना दिया था। जैसे, रथ के पहिए को चक्र बना देना।
मंत्रोच्चरण के साथ ही ब्रह्मास्त्र दुश्मन का सिर काट दिया करते थे। लेकिन,
एक खास बात यह भी
थी कि मंत्रों के जरिए उन्हें बेअसर भी किया जा सकता था और ये उन्हीं पर इस्तेमाल
होता था, जिनके
पास वही शक्तियां हों।
विदेशी भी शामिल हुए थे लड़ाई में भारतीय युद्धों में विदेशियों के शामिल होने
का इतिहास बहुत पुराना है। महाभारत की लड़ाई में भी विदेशी सेनाएं शामिल हुई थीं।
यह अलग बात है कि ज्यादातर लोगों को लगता है कि महाभारत की लड़ाई सिर्फ कौरवों और
पांडवों की सेनाओं के बीच लड़ी गई थी। लेकिन ऐसा नहीं है। मौलिक महाभारत में ग्रीक
और रोमन या मेसिडोनियन योद्धाओं के लड़ाई में शामिल होने का प्रसंग आता है।
दुशासन के पुत्र ने मारा अभिमन्यु को भले ही यह माना जाता हो कि अभिमन्यु की
हत्या चक्रव्यूह में सात महारथियों द्वारा की गई थी। लेकिन यह पूरा सच नहीं है।
मौलिक महाभारत के मुताबिक, अभिमन्यु ने बहादुरी से लड़ते हुए चक्रव्यूह में मौजूद सात
में से एक महारथी (दुर्योधन के बेटे) को मार गिराया था। इससे नाराज होकर दुशासन के
बेटे ने अभिमन्यु की हत्या कर दी थी।
तीन चरणों में लिखी महाभारत वेदव्यास की महाभारत को बेशक मौलिक माना जाता है,
लेकिन वह तीन
चरणों में लिखी गई। पहले चरण में 8,800 श्लोक, दूसरे चरण में 24 हजार और तीसरे चरण में एक लाख
श्लोक लिखे गए। वेदव्यास की महाभारत के अलावा भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट,
पुणो की संस्कृत
महाभारत सबसे प्रामाणिक मानी जाती है।
अंग्रेजी में संपूर्ण महाभारत दो बार अनूदित की गई थी। पहला अनुवाद, 1883-1896 के बीच किसारी मोहन गांगुली ने किया था और दूसरा मनमंथनाथ दत्त ने 1895 से 1905 के बीच। 100 साल बाद डॉ. देबरॉय तीसरी बार संपूर्ण महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं।
अंग्रेजी में संपूर्ण महाभारत दो बार अनूदित की गई थी। पहला अनुवाद, 1883-1896 के बीच किसारी मोहन गांगुली ने किया था और दूसरा मनमंथनाथ दत्त ने 1895 से 1905 के बीच। 100 साल बाद डॉ. देबरॉय तीसरी बार संपूर्ण महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं।
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
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