Tuesday, November 23, 2010

Forgiveness and Anger(क्षमा और क्रोध)

क्षमा करने से बचता है समय...

जब कोई हमारा किसी प्रकार से कुछ अहित कर देता है, तब हमें उस व्यक्ति पर बहुत क्रोध आता है। अहित करने वाले का हम भी अहित करने के लिए सोचना शुरू कर देते हैं। फिर इसी तरह दोनों के बीच दूरी बढ़ती जाती है और एक दिन दोनों आपस में दुश्मन की तरह व्यवहार शुरू कर देते हैं और हम हमारा बहुत सा समय दूसरों का अहित करने में ही बिगाड़ देते हैं।

कई बार किसी से अनजाने में हमारा बुरा हो जाता है, धन का नुकसान हो जाता है या अन्य किसी प्रकार से हमें कष्ट पहुंचा देता है और वह पलट कर क्षमा याचना करता है। परंतु हम हमारे नुकसान से इतने बौखलाए हुए रहते है कि हम उसे भला-बुरा सुना देते हैं। जवाब में सामने वाला भी चुप नहीं रहता और बस फिर तू-तू, मैं-मैं शुरू हो जाती है। इतनी बात बढ़ाने से अच्छा है किसी भी क्षमा मांगने वाले को तुरंत ही क्षमा कर दिया जाए। इससे हमारे समय की बचत होगी और हमारा मन भी शांत रहेगा। किसी को क्षमा किया जाए जो पूरी तरह मन से क्षमा कर देना चाहिए। ऐसा ना हो कि ऊपर से तो हम उसे क्षमा कर रहे हैं और अंदर ही अंदर उस व्यक्ति से बैर पाल के बैठ जाए और समय आने पर उसका अहित कर दे।

शास्त्रों के अनुसार भी क्षमा करने को एक महान कार्य बताया गया है। अत: कोशिश करें कि किसी की छोटी-छोटी बातों में न उलझकर अपना समय बचाएं और मन शांत रखें।

क्षमा करों, स्वस्थ रहों...

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि आपका मन शांत हो। मन तभी शांत रहेगा जब आप किसी के लिए द्वेष भाव नहीं रहेंगे।
हमारे जीवन में कई बार दूसरों द्वारा कुछ गलतियां हो जाती है जो कि हमारे लिए अच्छी नहीं होती। ऐसे में हमारे मन में कुंठा पैदा हो जाती है उस व्यक्ति के लिए। अधिकांशत: गलती करने वाला मॉफी मांग लेता है परंतु हम उसे मॉफ नहीं कर पाते और इसकारण लगातार उसी के बारे सोचने से हमारे मन की शांति भंग हो जाती है। जिसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। मन शांत नहीं रहेगा तो कई गंभीर बीमारियां हो सकती है। जैसे डीप्रेशन, मानसिक थकान, नींद की पूर्ति ना होना, आलस्य, किसी कार्य को करने की इच्छा ना होना, ठीक से भोजन नहीं करना इत्यादि। इतनी बीमारियों से बचना है तो सबसे सरल उपाय यही है कि क्षमा करने की आदत डाली जाए और किसी के मन में कोई बैर पैदा ही ना होने दें।

मानसिक शांति चाहिए, क्रोध को दूर भगाइए

जब कोई मन की बात पूरी नहीं होती या कोई हमारी बात नहीं मानता तब क्या होता है? आवेश, क्रोध, गुस्सा स्वत: हम पर हावी हो जाता है और हम अपना विवेक खो बैठते हैं। क्रोध वैसे तो एक सामान्य मनोभाव है परंतु अधिकांशत: इसके परिणाम काफी बुरे ही होते हैं। क्रोध हमारे दिमाग की सोचने और समझने की क्षमता का हरण कर लेता है और वो कर बैठते हैं जिसके लिए बाद में पछताना पड़ता है।अच्छा यही है कि हम अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें वैसे यह अत्यंत मुश्किल कार्य हैं हर किसी के बस में नहीं होता क्रोध पर काबू पाना। और जो अपने क्रोध पर काबू पा लेता है उसकी जीवन नितनए आयाम तक पहुंचता है, मान-सम्मान, इज्जत, खुशी और मानसिक शांति सहज उसे प्राप्त हो जाती है।श्रीकृष्ण ने अर्जुन को क्रोध के संबंध में कहा था कि क्रोध अविवेक और मोह का जन्मदाता है। मोह और अविवेक से हमारी सोचने-समझने की क्षमता पूरी तरह नष्ट हो जाती है। परिणामस्वरूप हमें मान-सम्मान और यश की हानि उठानी पड़ती है। अत: युद्ध में विजय के लिए क्रोध पर विजय करना अति महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण की यह बात आज हमारे जीवन पर भी सटिक बैठती है। हमारी जिंदगी में क्रोध इतनी सरलता से हम पर हावी हो जाता है कि हम समझ भी नहीं पाते और गड़बड़ कर बैठते हैं।

कैसे करे क्रोध पर नियंत्रण
- क्रोध आने पर अपना ध्यान कहीं ओर लगाने का प्रयत्न करें।
- ठंडा पानी पीएं या जो ठंडी चीज उपलब्ध हो खाएं।
- कुछ देर लंबी-लंबी सांसे लें।
- कुछ देर के लिए मौन धारण कर लें।
- ऐसे समय किसी भी प्रकार की बहस से बचें।
क्रोध पर नियंत्रण करें फिर देखिए जिंदगी कितनी सरल और शांति देने वाली हो जाएगी। विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि क्रोध हमारे शरीर के लिए भी हानिकारक है। अत: क्रोध से बचें।

क्रोध में अंधा कैसे हो जाता है इंसान ?
धार्मिक पुस्तकों में क्रोध को मनुष्य की चुनिंदा पशुप्रवृत्तियों में महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है। क्रोध को अधिकांश प्रसंगों निंदनीय ही बताया गया है। यदि थोड़ा गहराई से सोचें तो पाएंगे कि क्रोध को निंदनीय बताना उचित ही है। क्योंकि सो में से निन्यानवे घटनाओं में क्रोध का कोई जायज कारण होता ही नहीं है। किसी की बूंद भर गलती या भूल पर क्रोधित होना तथा अपनी भरी बाल्टी से भी ज्यादा गलतियों को आदत, परिस्थिती अथवा मजबूरी का नाम देकर नज़रअंदाज करना इंसान की फितरत में शामिल है।

कहावत है कि क्रोध में आदमी अंधा हो जाता है। रही बात कारण की तो वह कुछ भी हो सकता है। मन माफिक काम न होना, आशा के विपरीत परिणाम आना , किसी का अपेक्षाओं पर खरा न उतरना, किसी के कारण अपमान, शर्मिंदगी या नुकसान होना ये कुछ प्रमुख कारण हैं जिनसे कोई इंसान क्रोध यानि कि गुस्से से भर जाता है। जब इंसान क्रोध से भरा होता है तो वह एक प्रकार के नशे में होता है। ऐसी हालत में इंसान असामान्य अथवा कहें कि असहज हो जाता है। उसके व्यक्तित्व के अन्य हिस्से ऐसी हालत में ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाते हैं। क्रोधी इंसान का मानसिक संतुलन सबसे ज्यादा प्रभावित होता है जिससे वह,सही-गलत अथवा उचित-अनुचित में फर्क करने की अपनी सहज क्षमता खो बैठता है। जो विवेक-ज्ञान इंसान को सही-गलत की समझ देता है, वही क्रोध में सबसे पहले नष्ट हो जाता है। विवेक को ही इंसान की तीसरी और असली आंख कहा गया है, जब वही नष्ट हो जाए तो उसका अंधा होना तो स्वाभाविक ही है। उसके अंधे होने की दुखद घटना का सबूत वह स्वयं ही बनता है जबकि उसे पछतावा होता है


जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK

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