गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो गुरौ निष्ठा परं तपः। गुरोः परतरं नास्ति त्रिवारं कथयामि ते ।। भगवान शिवजी कहते हैं - "गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम तप है। गुरु से अधिक और कुछ नहीं है। यह मैं तीन बार कहता हूँ।" (श्री गुरुगीता श्लोक 152)........... हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम ! कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा !! "इस ब्लॉग में जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू ब्रह्मलीन स्वामी कल्याण देव जी का प्रसाद है, और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है" मनीष कौशल
Friday, October 21, 2011
Gayatri Mantra(गायत्री मंत्र)
वो मंत्र जो आपकी जिंदगी बदल सकता है
जो मन के तंत्र पर अधिकार रखता है, वही मंत्र है। मन का तंत्र यानि कि मन का सिस्टम। मंत्र एक एसा रिमोट कंट्रोल है जो मन और उसकी अप्रत्याशित शक्तियों को नियंत्रित ही नहीं बल्कि अपनी सुविधानुसार संचालित भी कर सकता है। ध्वनि विज्ञान ही मंत्र का आधार है। ध्वनि की अद्भुत शक्ति के साथ, साधक का मनोबल और एकाग्रता की शक्ति मिलकर एक ऐसी अजेय शक्ति बन जाती है, जिसके लिये कुछ भी असंभव नहीं रहता। इस अजेय शक्ति को साधक जब किसी निर्धारित लक्ष्य पर प्रेषित करता है तो विधि का गुप्त विधान इसके अनुकूल हो जाता है।
एक नई दुनियां- मंत्र विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया भर में आज तक जितने भी मंत्र खोजे या बनाए गए हैं, उनमेंगायत्री मंत्र को सर्वोच्च शक्तिशाली व सर्व समर्थ मंत्र होने का दर्जा प्राप्त है। ब्रह्मऋषि विश्वामित्र ने एक सवर्था नवीन सृष्टि रचने का जो अभिनव चमत्कार किया था, वह इस गायत्री मंत्र से प्राप्त शक्ति के आधार पर ही किया था। यह तो एक उदाहरण मात्र है, ऐसे अनेकानेक चमत्कार गायत्री मंत्र के बल पर हो चुके हैं। वेद, उपनिषद्, पुराण आदि तमाम ग्रंथ गायत्री मंत्र के अद्भुत व आश्चर्यजनक चमत्कारों से भरे पड़े हैं। आज भी यदि कोई पूरे विधि-विधान से गायत्री मंत्र की साधना करे, तो भौतिक या आध्यात्मिक लक्ष्य कोई भी हो हर हाल में उसे प्राप्त किया जा सकता है।
सुबह-शाम कहां, कब और कैसे गायत्री मंत्र बोलना होता है असरदार?
वेदमाता गायत्री आदिशक्ति है। ज्ञान शक्ति रूप माता गायत्री का स्मरण सांसारिक जीवन की हर परेशानियों से बाहर आने और मनोरथ पूरे करने के लक्ष्य से बहुत अहमियत है। यही कारण है कि गायत्री के ध्यान और उपासना के लिए गायत्री मंत्र का जप बहुत ही असरदार माना गया है।
मंत्र, श्लोक या स्त्रोत के जप का शुभ फल तभी संभव है, जब उनके लिए नियत समय, नियम और मर्यादा का पालन किया जाए। गायत्री मंत्र जप के लिए भी ऐसा ही नियत वक्त और नियम शास्त्रों में बताए गए हैं। जानिए, गायत्री मंत्र का जप कब से कब तक करना चाहिए -
- यथासंभव गायत्री मंत्र का जप किसी नदी या तीर्थ के किनारे, घर के बाहर एकान्त जगह या शांत वन में बहुत प्रभावी होता है।
- गायत्री मंत्र जप और संध्या का महत्व सूर्योदय से पहले है। इसलिए सूर्य उदय होने से पहले उठकर जब तक आसमान में तारे दिखाई दे, संध्याकर्म के साथ गायत्री मंत्र का जप करें।
- इसी तरह शाम के समय सूर्य अस्त होने से पहले संध्या कर्म और गायत्री मंत्र का जप शुरू करें और तारे दिखाई देने तक करें।
- धार्मिक दृष्टि से सुबह के समय खड़े होकर किया गया संध्याकर्म और गायत्री जप रात के पाप और दोषों को दूर करते हैं।
- वहीं शाम को बैठकर किया गया संध्या कर्म और गायत्री जप दिन में हुए दोष और पाप नष्ट करते हैं।
दुनिया के सारे धर्म हैं, गायत्री में.....
जो धर्म प्रेम, मानवता और भाईचारे का संदेश देने के लिए बना था आज उसी के नाम पर हिंसा और कटुता बढ़ाई जा रही है। इसलिये आज एक ऐसे विश्व धर्म की आवश्यकता महसूस की जा रही है, जो दिलों को जोडऩे वाला हो। हर धर्म में ऐसी बातें और प्रार्थनाएं हैं जो सभी धर्मों को रिप्रजेंट करती हैं। हिन्दुओं में गायत्री मंत्र के रूप में ऐसी ही प्रार्थना है, जो हर धर्म का सार है। तो आइये देखें:-
हिन्दू - ईश्वर प्राणाधार, दु:खनाशक तथा सुख स्वरूप है। हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें। जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर बढ़ाने के लिए पवित्र प्रेरणा दें।
ईसाई - हे पिता, हमें परीक्षा में न डाल, परन्तु बुराई से बचा क्योंकि राज्य, पराक्रम तथा महिमा सदा तेरी ही है।
इस्लाम - हे अल्लाह, हम तेरी ही वन्दना करते तथा तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सीधा मार्ग दिखा, उन लोगों का मार्ग, जो तेरे कृपापात्र बने, न कि उनका, जो तेरे कोपभाजन बने तथा पथभ्रष्ट हुए।
सिख - ओंकार (ईश्वर) एक है। उसका नाम सत्य है वह सृष्टिकर्ता, समर्थ पुरुष, निर्भय, र्निवैर, जन्मरहित तथा स्वयंभू है । वह गुरु की कृपा से जाना जाता है।
यहूदी - हे जेहोवा (परमेश्वर) अपने धर्म के मार्ग में मेरा पथ-प्रदर्शन कर, मेरे आगे अपने सीधे मार्ग को दिखा।
शिंतो - हे परमेश्वर, हमारे नेत्र भले ही अभद्र वस्तु देखें परन्तु हमारे हृदय में अभद्र भाव उत्पन्न न हों । हमारे कान चाहे अपवित्र बातें सुनें, तो भी हमारे में अभद्र बातों का अनुभव न हो।
पारसी - वह परमगुरु (अहुरमज्द-परमेश्वर) अपने ऋत तथा सत्य के भंडार के कारण, राजा के समान महान् है। ईश्वर के नाम पर किये गये परोपकारों से मनुष्य प्रभु प्रेम का पात्र बनता है।
दाओ (ताओ) - दाओ (ब्रह्म) चिन्तन तथा पकड़ से परे है। केवल उसी के अनुसार आचरण ही उत्तम धर्म है।
जैन - अर्हन्तों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार तथा सब साधुओं को नमस्कार ।
बौद्ध धर्म - मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण में जाता हूँ।
कनफ्यूशस - दूसरों के प्रति वैसा व्यवहार न करो, जैसा कि तुम उनसे अपने प्रति नहीं चाहते।
बहाई - हे मेरे ईश्वर, मैं साक्षी देता हूँ कि तुझे पहचानने तथा तेरी ही पूजा करने के लिए तूने मुझे उत्पन्न किया है। तेरे अतिरिक्त अन्य कोई परमात्मा नहीं है। तू ही है भयानक संकटों से तारनहार तथा स्व निर्भर।
चौबीस अक्षरों में समाया ब्रह्माण्ड
गायत्री मंत्र की महानता, शक्ति और प्रभाव अनंत है। वेद, पुराण, सभी धर्म शास्त्र, ऋषि-मुनि, गृहस्थ-वैरागी, स्त्री-पुरुष आदि समान रूप से गायत्री की महानता को स्वीकार करते हैं। आखिर ऐसा क्या रहस्य है इस चौबीस अक्षरों के छोटे से मंत्र में? गायत्री के 24 अक्षरों में अनंत ज्ञान भरा पड़ा है। जो ज्ञान गायत्री के गर्भ में छिपा है, उसे यदि मनुष्य अच्छी तरह से समझ ले और उसका अपने जीवन में व्यवहार करे, तो उसके लोक-परलोक दोनों सुख-शांति से भर जाएं। सर्वेश्वर परमात्मा 'ऊँ' है। 'भू:' प्राण तत्व है,
जो समस्त प्रणियों में ईश्वर का अंश है।
संसार में समस्त दुखों का नाश ही 'भुव:' कहलाता है। 'स्व:' शब्द से मन की स्थिरता का बोध होता है। 'तत्' शब्द से जीवन-मरण के रहस्य को जाना जाता है। 'सवितु' मनुष्य को सूर्य के समान बलवान बनाता है। 'वरेण्यं' मनुष्य को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। 'भर्गो' मनुष्य को निष्पाप करता है। 'देवस्य' बताता है कि मरणधर्मा मनुष्य भी देवत्व प्राप्त करके अमर हो सकता है।
'धीमिहि' मनुष्य को पवित्र शक्तियों को धारण करना सिखाता है। 'धियो' का संकेत है कि शुद्ध बुद्धि से ही सत्य को जाना जा सकता है। 'योन:' मनुष्य की आवश्यकता के अनुसार अपनी न्यूनतम शक्तियों का प्रयोग करने की प्रेरणा देता है और शेष को छोडऩे की शक्ति देता है। 'प्रचोदयात्' मनुष्य को स्वयं तथा दूसरों को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है
गायत्री के पांच मुखों का रहस्य
धार्मिक पुस्तकों में ऐसे कई प्रसंग या वृतांत पढऩे में आते हैं, जो बहुत ही आश्चर्यजनक हैं। लाखों-करोड़ों देवी-देवता, स्वर्ग-नर्क, आकाश-पाताल, कल्पवृक्ष, कामधेनु गाय, इन्द्रलोक....और भी न जाने क्या-क्या। इन आश्चर्यजनक बातों का यदि हम शाब्दिक अर्थ निकालें तो शायद ही किसी निर्णय पर पहुंच सकते हैं। अधिकांस घटनाओं का वर्णन प्रतीकात्मक शैली में किया गया है। गायत्री के पांच मुखों का आश्चर्यजनक और रहस्यात्मक प्रसंग भी कुछ इसी तरह का है। यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है। ये पांच तत्व ही गायत्री के पांच मुख हैं। मनुष्य के शरीर में इन्हें पांच कोश कहा गया है। इन पांच कोशों का उचित क्रम इस प्रकार है:-
- अन्नमय कोश
- प्राणमय कोश
- मनोमय कोश
- विज्ञानमय कोश
- आनन्दमय कोश
ये पांच कोश यानि कि भंडार, अनंत ऋद्धि-सिद्धियों के अक्षय भंडार हैं। इन्हें पाकर कोई भी इंसान या जीव सर्वसमर्थ हो सकता है। योग साधना से इन्हें जाना जा सकता है, पहचाना जा सकता है। इन्हें सिद्ध करके यानि कि जाग्रत करके जीव संसार के समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है। जन्म-मृत्यु के चक्र से छूट जाता है। जीव का 'शरीर' अन्न से, 'प्राण' तेज से, 'मन' नियंत्रण से, 'ज्ञान' विज्ञान से और कला से 'आनन्द की श्रीवृद्धि होती है। गायत्री के पांच मुख इन्हीं तत्वों के प्रतीक हैं।
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
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very nice post....keep going
ReplyDeleteThank u sir
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