सिंदूर और चमेली का तेल चढ़ाएं हनुमानजी को, क्योंकि...
श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी सभी को कष्टों और दुखों को दूर करते हैं। श्रीराम के सभी कार्य संवारने वाले बजरंग बली बहुत ही जल्द भक्तों के दुखों को दूर करते हैं। शास्त्रों के अनुसार पवनपुत्र बजरंग बली को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इन्हीं में से एक सटीक उपाय है प्रति मंगलवार हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करना।
हनुमानजी का श्रंगार में सिंदूर और चमेली के तेल सबसे महत्वपूर्ण सामग्री है। हनुमानजी को सिंदूर क्या चढ़ाया जाता है? इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार माता सीता ने हनुमानजी को बताया था कि सिंदूर लगाने से उनके स्वामी की उम्र लंबी होती है। यह सुनने के बाद बजरंग बली ने श्रीराम का ध्यान करते हुए अपने शरीर पर सिंदूर लगाना प्रारंभ कर दिया।
सिंदूर लगाने से ही हनुमानजी बहुत ही जल्द प्रसन्न होते हैं और श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। सिंदूर अर्पित करने के साथ ही सभी के कल्याण और सुख की प्रार्थना करनी चाहिए। इसके बाद हनुमान चालिसा का पाठ करने पर मन को शांति प्राप्त होती है और मानसिक तनाव दूर हो जाता है। ऐसा नियमित रूप से प्रति मंगलवार किया जाना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार हनुमानजी के भक्तों को शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में अशुभ प्रभाव नहीं झेलना पड़ते हैं।
पितरों का ऋण चुकाने का समय है श्राद्ध पक्ष
आश्विन मास के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृपक्ष के नाम से नाम से जाने जाते हैं। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। इस बार श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ 12 सितंबर, सोमवार से हो रहा है तथा समापन 27 सितंबर, मंगलवार को होगा।
पितृपक्ष श्राद्धों के लिए निश्चित पंद्रह तिथियों का एक समूह है। वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय(श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं।
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। इसलिए प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
क्या करने से आत्माओं को मिलता है नया जन्म?
भागवत में जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया तब उन्होंने कहा कि मृत्युलोक या पृथ्वी पर केवल आत्मा ही अमर है। यहां जन्म लेने वाले व्यक्ति को एक दिन यह नश्वर शरीर छोड़कर जाना ही है। जिस प्रकार हम कपड़े बदलते हैं ठीक उसी प्रकार आत्मा शरीर बदलती है। एक शरीर छोडऩे के बाद आत्मा दूसरा शरीर धारण करती है।
शास्त्रों के अनुसार आत्मा शरीर त्यागने के बाद दूसरा शरीर धारण करती है लेकिन मृत शरीर की आत्मा दूसरा शरीर कैसे धारण करेगी? इस संबंध में एक विधान बताया गया है। जब किसी घर-परिवार से किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तब उस मृत व्यक्ति के निमित्त पिंडदान किया जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है पिंडदान करने के बाद आत्मा को नया शरीर प्राप्त हो जाता है। इसी वजह से मृत व्यक्ति के परिजन पिंडदान करते हैं। श्राद्ध के दिनों में पिंडदान करने का विशेष महत्व है। इस समय किए गए पिंडदान से मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है और उसे नया शरीर प्राप्त होने के योग बनते हैं।
श्राद्ध के दिनों में विधि-विधान से पिंडदान करने पर घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है। पितरों की कृपा सदैव बनी रहती है। पितरों के निमित्त श्राद्ध में धूप-ध्यान करने से उन्हें भोजन प्राप्त होता है और वे तृप्त हो जाते हैं जिससे उनकी विशेष कृपा हमारे घर-परिवार पर होती है।
क्यों पहाड़ों पर होते हैं देवी के मंदिर?
जम्मू में वैष्णव देवी हो या हरिद्वार में मनसा देवी, अधिकतर माता मंदिरों का स्थान पहाड़ ही होते हैं। इसीलिए देवी का एक नाम पहाड़ोंवाली भी है। कई बार हमारे मन में भी यह सवाल उठता है कि आखिर माता के पुराने मंदिर अधिकतर पहाड़ों पर ही क्यों होते हैं? क्या इन पहाड़ों से माता का कोई संबंध है? या पौराणिक काल में कोई परंपरा रही होगी। इसका जवाब बहुत कम लोग जानते हैं कि आखिर माता जमीन पर मैदानी इलाकों की बजाय पहाड़ों पर को विराजित हैं।
वास्तव में इन पहाड़ों और पूरी धरती से माता का संबंध बहुत गहरा है। हमारे वेद-पुराणों में को प्रकृति के पांच कारक तत्व माने गए हैं वे हैं जल, अग्रि, वायु, धरती और आकाश। इन पांचों के एक-एक अधिपति देवता हैं क्रमश: गणेश, सूर्य, शिव, शक्ति और विष्णु। धरती यानी पृथ्वी की अधिपति शक्ति यानी देवी हैं।
शेष चारों प्रमुख देवता हैं। शक्ति यानी दुर्गा को संपूर्ण धरती की अधिष्ठात्री माना गया है। वे शक्ति का रूप हैं। एक तरह से मानें तो वे पृथ्वी की राजा हैं। भारतीय मनीषियों ने पहाड़ों को पृथ्वी का मुकुट और सिंहासन माना है। माता इस संपूर्ण सृष्टि की अधिनायक हैं, इसलिए वे सिंहासन पर विराजित हैं।
जल से हमारी संस्कृति और सभ्यता का आरंभ हुआ जिसे पृथ्वी ने पूर्ण पोषण दिया। पृथ्वी हमारी मां हैं, इसलिए इसकी अधिष्ठाता कोई देव न होकर देवी हैं। यही एक कारण है कि लगभग सभी महत्वपूर्ण और प्राचीन देवी मंदिर पहाड़ों पर ही स्थित हैं।
कब और क्यों आंखें बंद करें? खुल जाते हैं किस्मत के दरवाजे...
हमेशा से ही किस्मत या भाग्य और कर्म के संबंध में अलग-अलग तर्क प्रस्तुत किए जाते रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार हमारे कर्मों से ही प्रारब्ध यानि भाग्य का निर्माण होता है। जबकि कुछ लोग मानते हैं कि भाग्य अधिक बलशाली होता है। शास्त्रों के अनुसार बिगड़े भाग्य को चमकाने के लिए कर्म के साथ-साथ भगवान की भक्ति या आंखे बंद करके भगवान का ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
यदि पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ किए गए कर्म के बाद भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो रहा है तो ऐसे में भगवान की भक्ति ही मन शांति और सफलता प्रदान करती है। भगवान को मनाने के लिए कई प्रकार की पूजन विधियों की परंपराएं प्रचलित हैं। अलग-अलग विधियों में अलग-अलग प्रकार से परमात्मा को प्रसन्न करने की चेष्टा की जाती है।
आजकल के दौर में जहां व्यक्ति के पास पर्याप्त समय का अभाव रहता है ऐसे में अधिकांश लोगों के लिए भगवान की विधि-विधान से पूजन करना या करवाना काफी मुश्किल हो जाता है। तब भगवान को प्रसन्न करने का सबसे सरल और कम समय का उपाय है अपने इष्टदेव का ध्यान।
मात्र भगवान का ध्यान भी हमारे बिगड़े भाग्य को चमकाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ध्यान करते समय आंखें बंद रखी जाती है क्योंकि खुली आंखों से एकाग्रता नहीं बन पाती और हमें भगवान का ध्यान नहीं कर पाते। इसी वजह से ध्यान करते समय आंखों को बंद कर लिया जाना चाहिए। ताकि आसपास के वातावरण में होने वाली हलचल दिखाई न दे और हम पूरी एकाग्रता से मन को स्थिर करके भगवान का याद कर सके। ऐसा हम दिन में कभी भी कर सकते हैं। इस प्रकार भगवान का स्मरण निश्चित ही आपके मन को शांति प्रदान करेगा। आप अपने कार्यों में सफलता पूर्वक संपन्न कर सकेंगे और आपको भाग्य का सहयोग मिलने लगेगा।
श्राद्ध पक्ष में क्या करें, क्या न करें?
पितरों को तृप्त करने वाला श्राद्ध पक्ष का आरंभ हो चुका है। हमारे धर्म शास्त्रों में श्राद्ध पक्ष के दिनों में कई कार्यों पर प्रतिबंध लगाया गया है। इस दौरान कुछ खास कार्य किए जाने चाहिए जिनसे हमारे पितर खुश होते हैं।
ऐसा माना जाता है कि यदि हमारे पितर हमसे संतुष्ट नहीं होंगे तो भगवान भी हमें कोई शुभ फल प्रदान नहीं करते हैं इसलिए पितरों को प्रसन्न रखने के लिए वर्जित कार्यों से दूर रहना चाहिए।
श्राद्ध में वर्जित कार्य
इन दिनों हमें पान नहीं खाना चाहिए। बॉडी मसाज या तेल की मालिश नहीं करना चाहिए। किसी और का खाना नहीं खाना चाहिए। इन दिनों के लिए विशेष रूप से संभोग को वर्जित किया गया है। इन नियमों का पालन न करने पर हमें कई दु:खों को भोगना पड़ता है। इन दिनों खाने में चना, मसूर, काला जीरा, काले उड़द, काला नमक, राई, सरसों आदि वर्जित मानी गई है अत: खाने में इनका प्रयोग ना करें।
श्राद्ध में यह कार्य करें
श्राद्ध के दिनों में तांबे के बर्तनों का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहिए। पितरों का श्राद्ध कर्म या पिण्डदान आदि कार्य करते समय उन्हें कमल, मालती, जूही, चम्पा के पुष्प अर्पित करें। श्राद्धकाल में पितरों के मंत्र (ऊँ पितृभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम: पितामयभ्य: स्वधायीभ्य स्वधा नम: प्रपितामयभ्य स्वधायीभ्य स्वधा नम:) का जप करें। इस मंत्र से पितरों सहित सभी देवी-देवता आपसे प्रसन्न होंगे।
श्राद्ध में क्या दान करने से क्या फल मिलता है?
पितृ पक्ष के सोलह दिनों में श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान आदि कर्म कर पितरों को प्रसन्न किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में दान का भी बहुत महत्व है। मान्यता है कि दान से पितरों की आत्मा को संतुष्टि मिलती है और पितृदोष भी खत्म हो जाते हैं। आईए जानते हैं पितृपक्ष में क्या दान करने से क्या फल मिलता है-
गाय का दान- धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है। लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और ऐश्वर्य देने वाला माना गया है।
तिल का दान- श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।
घी का दान- श्राद्ध में गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
भूमि दान- अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न है तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतति लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।
वस्त्रों का दान- इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।
चाँदी का दान- पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चाँदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।
अनाज का दान- अन्नदान में गेंहू, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।
गुड़ का दान- गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।
सोने का दान- सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।
नमक का दान- पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है।
जानिए, कितने प्रकार के होते हैं श्राद्ध
हिंदू धर्म में श्राद्ध पितरों को प्रसन्न करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। श्राद्ध के द्वारा हम अपने पितरों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए धार्मिक कार्य करते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में श्राद्ध के भी कई प्रकार बताए गए हैं। इन सभी का महत्व भी अलग-अलग है। भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ
श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं-
1- तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने
हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।
2- भोजन व पिण्डदान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्डदान भी किए जाते हैं।
3- वस्त्रदान- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।
4- दक्षिणादान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।
बाथरुम के बाहर खींचे लाल लाइन, दुख-दर्द हो जाएंगे दूर...
ऐसा माना जाता है कि हमें मिलने वाले दुख-दर्द हमारे कर्मों का ही फल है। हम जैसे कर्म करते हैं उसके वैसे ही फल हमें प्राप्त होते हैं। वास्तु के अनुसार कई बार घर में यदि कोई वास्तु दोष हो तो उसके भी बुरे फल हमें झेलना पड़ सकते हैं।
घर में वास्तु दोष होने पर परिवार के सदस्यों को कई प्रकार की परेशानियां सहन करना पड़ती है। ये परेशानियां आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक या शारीरिक हो सकती है। यदि आपके घर में अक्सर कोई न कोई बीमार रहता है तो निश्चित ही आपके घर में कोई वास्तु दोष हो सकता है।
कुछ घर में लेट-बाथ गलत दिशा या स्थान पर बने होते हैं जिसकी वजह से वहां रहने वाले लोगों को अक्सर बीमारियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में या तो लेट-बाथ को सही स्थान पर बनाया जाना चाहिए लेकिन इसमें खर्च अत्यधिक होगा। इस अनावश्यक खर्च से बचने के लिए लेट-बाथ के बाहर एक लाल रंग की लाइन खींच दें। यह लाइन ऑइल पेंट से खींची जा सकती है। ऐसा करने पर लेट-बाथ से निकलने वाली नेगेटिव एनर्जी का अधिक नहीं बढ़ेगा और आपके घर में बीमारियों का दौर कम हो जाएगा।
1 रुपए की सुपारी तिजोरी में ऐसे रख दें, हमेशा भरा रहेगा पैसा
तिजोरी जहां पैसा, ज्वेलरी और अन्य बेशकीमती वस्तुएं रखी जाती है। अत: यह जगह बहुत ही पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर होनी चाहिए। जिससे कि घर में बरकत बनी रह सके और पैसों की कभी कमी न आए। यदि तिजोरी के आसपास कोई नकारात्मक शक्तियां सक्रिय हैं तो उस घर में कभी भी पैसों कमी कभी पूरी नहीं हो सकेगी। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार कुछ उपाय बताए गए हैं।
तिजोरी में हमेशा पैसा ही पैसा भरा रहे, धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा सदैव आप पर बनी रहे, इसके लिए एक छोटा सा उपाय अपनाएं। शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश रिद्धि और सिद्ध के दाता है। कोई भी भक्त नित्य श्रीगणेश का ध्यान करता है तो उसे कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं सताती। श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय हैं। प्रतिदिन गणेशजी की विधिवत पूजा करें और किसी भी शुभ मुहूर्त में विशेष पूजा करें। पूजन में गणेशजी के प्रतीक स्वरूप सुपारी रखी जाती है। बस यही सुपारी पूजा पूर्ण होने के बाद अपनी तिजोरी में रख दें।
पूजा में उपयोग की गई सुपारी में श्रीगणेश का वास होता है। अत: यह तिजोरी में रखने से तिजोरी के आसपास के क्षेत्र में सकारात्मक और पवित्र ऊर्जा सक्रिय रहेगी जो नकारात्मक शक्तियों को दूर रखेगी। पूजा में उपयोग की जाने वाली सुपारी बाजार में मात्र 1 रुपए में ही प्राप्त हो जाती है लेकिन विधिविधान से इसकी पूजा कर दी जाए तो यह चमत्कारी हो जाती है। जिस व्यक्ति के पास सिद्ध सुपारी होती है वह कभी भी पैसों की तंगी नहीं देखता, उसके पास हमेशा पर्याप्त पैसा रहता है।
सोने से पहले ये उपाय अपनाना चाहिए, नहीं आएंगे बुरे विचार...
अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है प्रतिदिन सुकून और शांति की पर्याप्त नींद। यदि किसी व्यक्ति को नींद में बुरे विचार आते हैं, डरावने सपने आते हैं तो वह पर्याप्त नींद नहीं ले सकता। ऐसे में स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे बचना बहुत जरूरी है अन्यथा व्यक्ति के जीवन पर इसके बुरे प्रभाव पड़ते हैं।
नींद में आने वाले बुरे और अशुभ विचारों-सपनों से बचने के लिए सभी लोगों सोने से पहले शास्त्रों के अनुसार बताए गए उपाय अपनाना चाहिए। सोने से पहले जपने के लिए कुछ विशेष मंत्र बताए गए हैं। कई लोग इन मंत्रों जप भी करते हैं। इनके प्रभाव से उन्हें कई स्वास्थ्य संबंधी लाभ प्राप्त होते हैं और साथ ही उनके पुण्यों में वृद्धि होती है, पाप नष्ट होते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में कई अद्भुत और चमत्कारी मंत्र दिए गए हैं। इन मंत्रों के जप मात्र से ही व्यक्ति के कई दुखों और परेशानियों का नाश हो जाता है। रात को अच्छी नींद के लिए इस मंत्र का जप करें-
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तारात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।
इस अद्भुत मंत्र का अर्थ है- हे श्रीराम। आप सभी के हृदय में निवास करते हैं, आप ही सभी की आत्मा हैं। आप मुझ पर कृपा करें। मेरी दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे श्रीराम मुझे अपनी पूर्ण भक्ति दीजिए, मुझ पर कृपा कीजिए। मेरे मन को काम, क्रोध, ईर्ष्या आदि दोषों से मुक्त कीजिए।
रात को भोजन करने के बाद और सोने से पहले मन को एकाग्र करते हुए श्रीराम का ध्यान करं् और इस मंत्र का जप करें। इसके प्रभाव से निश्चित ही आपको लाभ प्राप्त होगा और बुरे विचारों तथा सपनों से मुक्ति मिलेगी। इससे आपके मन को शांति मिलेगी और आपको सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होगी।
इन पांच चीजों का चमत्कारी धुआं, घर में नेगेटिव को बना देगा पॉजीटिव
यदि किसी घर-परिवार में अक्सर परेशानियां बनी रहती हैं। परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा बीमार या अस्वस्थ रहता है। धन संबंधी परेशानियां बनी रहती है। छोटे-छोटे कार्य भी बड़ी कठिनाई से पूर्ण होते हैं। तब संभव है कि उस घर में कोई वास्तु दोष हो, कोई नकारात्मक शक्ति सक्रिय हो। इस प्रकार के अशुभ प्रभावों से मुक्ति पाने के लिए यह उपाय अपनाएं।
वास्तु संबंधी दोषों को दूर करने और घर के वातावरण में फैली नकारात्मक ऊर्जा को प्रभावहीन करने के लिए वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाना चाहिए। इसके लिए सुबह-सुबह घर में लोबान, गुग्गल, कपूर, देशी घी एवं चंदन का चूरा एक साथ मिलाकर गाय के कंडे पर धूनी दें। पूरे घर में इस धूनी का धुआं फैलाएं। इसके प्रभाव से वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां प्रभावहीन हो जाएंगी और सकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ेगा।
यह सभी पांचों सामग्रियां पवित्र मानी गई हैं। पूजन-कर्म में इनका विशेष महत्व होता है। यह सभी वस्तुएं घर के आसपास के क्षेत्र को पूरी तरह पवित्र बना देती हैं। ऐसा करने पर देवी-देवताओं की विशेष कृपा परिवार पर रहती है और सदस्यों के कार्य समय पर पूर्ण होते हैं। धन संबंधी परेशानियों का नाश होता है। साथ ही बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है।
सोमवार को पहनें सफेद ड्रेस, क्रिएटिव हो जाएगा दिमाग...
सोमवार को सफेद रंग के कपड़े पहनना चाहिए, इसके पीछे ज्योतिष के कई कारण मौजूद हैं। ज्योतिष के अनुसार सफेद रंग चंद्र से संबंधित है। चंद्र किसी भी व्यक्ति को रचनात्मक यानि क्रिएटिव दिमाग दे सकता है।
जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में चंद्र अच्छी स्थिति में हो तो सामान्यत: ऐसा इंसान अपने कार्यों को कलात्मक ढंग से करने वाला होता है। चंद्र को मन का स्वामी माना जाता है अत: चंद्र की शुभ-अशुभ स्थिति का सीधा प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ता है। कुंडली में कमजोर या अशुभ स्थिति वाला चंद्र व्यक्ति को बुद्धि संबंधी परेशानियों में डाल देता है।
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र अशुभ है, नीच है, क्रूर या पाप ग्रह की दृष्टि से युक्त है या पाप ग्रह के साथ स्थित है तो चंद्र संबंधी उपचार किए जाने चाहिए। चंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय है सफेद रंग का उपयोग करना।
ज्योतिष के अनुसार सोमवार शिवजी के साथ ही चंद्र की आराधना का भी दिन माना जाता है। अत: इस दिन चंद्र से अच्छे फल प्राप्त करने के लिए सफेद रंग की ड्रेस कम से कम प्रति सोमवार धारण करें। ऐसा करने पर चंद्र से शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। इसके साथ हर सोमवार के दिन शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाएं। इसके साथ सफेद पुष्प अर्पित करें। मिठाई का भोग लगाएं। इस प्रकार आप चंद्र से शुभ फल प्राप्त कर सकते हैं। चंद्र आपके पक्ष में होगा तो आपका दिमाग कार्यों में नए-नए कलात्मक ढंग से करने के लिए प्रेरित करेगा।
ऐसे लोगों को मिलता है जल्दी-जल्दी प्रमोशन, जिनके घर में...
प्रमोशन या उन्नति या तरक्की पाना सभी की इच्छा होती है लेकिन बहुत कम लोग होते हैं जो मनचाही सफलता प्राप्त कर पाते हैं। कुछ लोगों को कम मेहनत में ही ऊंचा प्रमोशन मिल जाता है तो कुछ लोगों को कड़ी मेहनत के बाद भी निराशा हाथ लगती है। इस संबंध में वास्तु शास्त्र में घर के संबंध में कुछ खास बताई गई हैं जिनसे निश्चित ही प्रमोशन की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
वास्तु के अनुसार जिन घरों में सुबह-सुबह सूर्य की भरपूर रोशनी आती है वहां रहने वाले सभी लोगों को जीवन में हर कदम उन्नति और सफलता प्राप्त होती है। ऐसे लोगों इनकी मेहनत का उचित पारिश्रमिक और मान-सम्मान प्राप्त होता है। परिवार और समाज में इन्हें आदर की दृष्टि से देखा जाता है। सुबह के समय घर में सूर्य की रोशनी सीधे आना बहुत शुभ माना जाता है। सूर्य को मान-सम्मान, यश, प्रमोशन, सफलता देने वाला ग्रह माना गया है। अत: सुबह के समय आने वाली इसकी रोशनी घर में सकारात्मक वातावरण का निर्माण कर देती है और वहां रहने वाले लोगों को इसका फायदा मिलता है।
इसके विपरित जिन घरों में सुबह के समय सूर्य की रोशनी ठीक से नहीं आती या नहीं आती है वहां रहने वाले लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन लोगों को कड़ी मेहनत करनी होती है और उचित प्रमोशन प्राप्त नहीं हो पाता। इसके अलावा ऐसे घर में रहने वाली स्त्रियों को स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
आप बन सकते हैं अपार पैसों के मालिक, बस इन देवताओं को खुश कर दो
वेद-पुराणों के अनुसार किसी भी प्रकार के मनोरथ को पूरा करने के लिए देवी-देवताओं की कृपा सबसे पहले जरूरी है। जब तक भगवान प्रसन्न नहीं होंगे कोई व्यक्ति कामयाबी प्राप्त नहीं कर सकता। भगवान को प्रसन्न करने के संबंध में कई बातें बताई गई हैं। जिन्हें अपनाने पर निश्चित ही हमारे जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
देवी-देवताओं की कृपा होने के बाद कोई गरीब व्यक्ति भी बहुत ही धनवान बन सकता है। शास्त्रों के अनुसार किसी भी व्यक्ति को जीवन में सुख प्राप्त करने के लिए सबसे पहले अपने पितर देवताओं को प्रसन्न करना अनिवार्य है। पितर देवताओं की संतुष्टि के बाद ही अन्य देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त की जा सकती है। यदि किसी व्यक्ति के पितर देवता अप्रसन्न या असंतुष्ट हैं तो उसके द्वारा किए गए यज्ञ-अनुष्ठान का उचित फल प्राप्त नहीं हो सकता।
हमारे द्वारा किए जा रहे सद्कर्मों का उचित और श्रेष्ठ प्रतिफल प्राप्त करने के लिए पितर देवताओं की संतुष्टि जरूरी है। पितर हमारे घर-परिवार के ही देवता होते हैं, इन्हें असप्रसन्न रखकर हम जीवन में कभी भी सुख प्राप्त नहीं कर सकते। पितर देवताओं को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध के दिनों में उनके निमित्त उचित धूप-ध्यान करना चाहिए। खीर-पुड़ी आदि अर्पित करना चाहिए। पितर देवताओं की तृप्ति के बाद हमारी पैसों या अन्य क्षेत्रों से जुड़ी सभी परेशानियां स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं।
बुधवार को मिठाई चढ़ाएं और खाएं, कामयाबी चूमेगी कदम
बुधवार का दिन श्रीगणेश की आराधना के लिए खास महत्व रखता है। ज्योतिष के अनुसार बुधवार बुध ग्रह से संबंधित भी माना जाता है। इस दिन भगवान गणेश के दर्शन करने और उन्हें प्रसाद चढ़ाने से हमारी कई परेशानियां दूर हो जाती हैं।
यदि आप बुधवार के दिन किसी खास कार्य के लिए जा रहे हैं तो गणेशजी को मिठाई प्रसाद के रूप में चढ़ाएं और फिर प्रसाद ग्रहण करके लक्ष्य की ओर निकलें। ऐसा करने पर आपके सभी कार्य समय पर पूर्ण होंगे और सफलता प्राप्त होगी।
गणेशजी को घर-परिवार का देवता माना जाता है। घर से जुड़ी किसी भी परेशानियों का निराकरण गजानंद की भक्ति से हो जाता है। भगवान गणपति की प्रसन्नता से ही सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है। जन्मकुंडली के सभी ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं। गणेशजी को बुद्धि का देवता भी माना जाता है अत: इनकी आराधना से हमें विद्या और बुद्धि की प्राप्ति भी होती है। भगवान और पार्वती के पुत्र गणेश की कृपा होने पर धन की देवी महालक्ष्मी भी प्रसन्न हो जाती हैं।
ये पौधा घर के सामने हो तो ना होगी धन की कमी, ना होगा बुरा प्रभाव
पेड़-पौधों का सबसे बड़ा फायदा है कि उनसे हमें ऑक्सीजन गैस प्राप्त होती है। इसके अलावा प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी पेड़-पौधों का सर्वाधिक महत्व है। इनके बिना वातावरण को संतुलित किया ही नहीं जा सकता। हर परिस्थिति में हरियाली हमारे लिए फायदेमंद ही है। इन फायदों के साथ ही शास्त्रों के अनुसार कई धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी बताए गए हैं।
कुछ पेड़-पौधे ऐसे हैं जिनसे हम कई चमत्कारिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हमारे घर या घर के आसपास होने पर ही इनके फायदे प्राप्त होते हैं। इन पेड़ों-पौधों में आंकड़े का पौधा भी शामिल है, यदि यह घर के सामने हो तो बहुत लाभ पहुंचाता है।
शास्त्रों अनुसार आंकड़े के फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। आंकड़े पौधा मुख्यद्वार पर या घर के सामने हो तो बहुत शुभ माना जाता है। इसके फूल सामान्यत: सफेद रंग के होते हैं। विद्वानों के अनुसार कुछ पुराने आंकड़ों की जड़ में श्रीगणेश की प्रतिकृति निर्मित हो जाती है जो कि साधक को चमत्कारी लाभ प्रदान करती है।
ज्योतिष के अनुसार जिस घर के सामने या मुख्यद्वार के समीप आंकड़े का पौधा होता है उस घर पर कभी भी किसी नकारात्मक शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके अलावा वहां रहने वाले लोगों को तांत्रिक बाधाएं कभी नहीं सताती। घर के आसपास सकारात्मक और पवित्र वातावरण बना रहता है जो कि हमें सुख-समृद्धि और धन प्रदान करता है। ऐसे लोगों पर महालक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है और जहां-जहां से लोग कार्य करते हैं वहीं से इन्हें धन लाभ प्राप्त होता है।
हजारों सालों पुराना ये उपाय, आज भी है चमत्कारी
शिवपुराण के अनुसार शिवलिंग पूजन हमेशा ही अक्षय पुण्य प्रदान करने वाला होता है। प्राचीन काल से ही शिवलिंग पूजा की कई विधियां प्रचलित हैं। विधि-विधान से भगवान की पूजा के बाद इंसान की सभी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी हो जाती हैं। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए आज भी पारंपरिक विधियां सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं।
शिवलिंग के पूजन से हमारे सभी प्रकार के दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं। यदि आप भी चाहते हैं कि आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाए तो यह उपाय अपनाएं-
किसी भी शुभ मुहूर्त में पवित्र नदी, पोखर, तालाब, कुएं से मिट्टी लेकर आएं। इस मिट्टी को शुद्ध पानी से पवित्र कर लें। इसके बाद एक मंडप बनाएं। इस मंडप के नीचे बैठकर उस मिट्टी को अच्छे से बारिक पीस लें। इसके बाद अपने हाथों से उस मिट्टी से छोटा सा शिवलिंग बनाएं। शिवलिंग निर्माण के बाद विधि-विधान से शिवलिंग का पूजन करें, पुष्प, फल, मिठाई आदि समर्पित करें। इसके बाद भगवान की आरती करें।
इस शिवलिंग को अपने घर किसी श्रेष्ठ और पवित्र स्थान पर स्थापित करें। प्रतिदिन नियमित रूप से इस शिवलिंग का पूजन करें। कुछ दिनों में सकारात्मक फल प्राप्त होने लगेंगे। आपकी इच्छाएं पूर्ण होंगी। यह विश्वास रखें। अपने मन किसी भी प्रकार का संदेह या शंका न लाएं अन्यथा उपाय का प्रभाव कम हो जाएगा।
इंद्र के स्वर्ग जैसे ऐश-आराम चाहिए तो जरूर करें ये काम...
स्त्री हो या पुरुष जो भी भूखा वह अन्नदान का पात्र है, जिस व्यक्ति के पास कपड़े नहीं है वह कपड़े के दान का पात्र है। शास्त्रों के अनुसार किसी व्यक्ति को जिस वस्तु की आवश्यकता है उसे वह बिना मांगे दे दी जाए तो दानदाता के बहुत शुभ माना जाता है। यदि किसी के मांगने पर कोई दान दिया जाए तो उसका आधा ही फल प्राप्त होता है। इसी वजह से किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति के मांगने से पहले ही उसे आवश्यक वस्तु का दान कर देना चाहिए। इससे दानदाता को पूरा-पूरा पुण्य प्राप्त होता है।
अपने सेवक को दिया हुआ दान एक चौथाई पुण्य देने वाला माना गया है। शिवपुराण के अनुसार धन का दान सभी सुखों को देने वाला माना गया है। जो भी व्यक्ति किसी जरूरतमंद व्यक्ति को धन का दान करता है उसके घर में हमेशा ही सुख-समृद्धि बनी रहती है।
जो व्यक्ति केवल जातिमात्र से ही ब्राह्मण है और वह गरीबी झेल रहा है तो उसे धन का दान करने पर दानदाता को दस वर्षों तक उस पुण्य कर्म का फल प्राप्त होता रहेगा। यदि किसी सच्चे, धार्मिक वेदपाठी ब्राह्मण को धन का दान दिया जाए तो दानदाता को देवताओं के दस वर्षों तक स्वर्गलोक के समान दिव्य सुख की प्राप्ति होगी।
काफी लोग जानते हैं शनिवार का ये उपाय, शनि के बुरे प्रभाव होते हैं दूर
शनि एक ऐसे देवता हैं जिनका डर अधिकांश लोगों के मन में रहता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के सभी ग्रह अच्छे हों और केवल शनि ही अशुभ स्थिति में हो तो पूरी कुंडली बिगड़ सकती है। ग्रहों के शुभ प्रभाव निष्क्रीय हो सकते हैं शनि दोष के कारण। शनि देव को सर्वाधिक महत्वपूर्ण न्यायाधीश का पद प्राप्त है।
शास्त्रों के अनुसार शनि ही हमारे अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रदान करते हैं। अत: यदि किसी व्यक्ति ने कोई अधार्मिक कर्म किया है तो उसके बुरे परिणाम अवश्य ही झेलने पड़ सकते हैं। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का समय सामान्यत: कष्ट देने वाला ही होता है। ऐसे में शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए काफी लोग शनिवार को शनि देव के निमित्त तेल अर्पित करते हैं।
शनि देव को प्रसन्न करने का यह उपाय बहुप्रचलित है। अधिकांश लोग जानते हैं कि शनिवार को तेल चढ़ाने से शनि देव का कोप शांत होता है। प्राचीन काल से ही शनि को तेल चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है।
शनि को तेल क्यों चढ़ाते हैं? इस संबंध में एक कथा बताई गई है। कथा के अनुसार शनि देव ने अपनी शक्ति के मद चूर होकर हनुमानजी को युद्ध के लिए आमंत्रित कर लिया। शनि और हनुमानजी के बीच घमासान युद्ध हुआ। हनुमानजी ने शनि को बुरी तरह पराजित कर दिया। पराजित होने के शनि को पूरे शरीर में असनीय पीड़ा होने लगी। इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए हनुमानजी ने उन्हें तेल लगाने को दिया। तेल लगाते ही शनिदेव की पीड़ा शांत हो गई। तभी से शनि को तेल चढ़ाने की प्रथा प्रचलित हो गई।
जानिए आपके पास जो धन या पैसा है वह कैसा है?
सभी श्रेष्ठ जीवन यापन के लिए कड़ी मेहनत करके पैसा या धन कमाते हैं। धन से ही जीवन की बहुपयोगी वस्तुएं प्राप्त की जा सकती हैं। सभी सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए धन की आवश्यकता होती है। सभी लोग अलग-अलग माध्यम और तरीकों से धन प्राप्त करते हैं। जानिए आपके द्वारा कमाया जा रहा धन किस श्रेणी में आता है?
शास्त्रों के अनुसार समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया था- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वणिक और शुद्र। यदि कोई व्यक्ति ब्राह्मण है या शिक्षक है और उसके द्वारा गुरु दक्षिणा में प्राप्त किया जा रहा अन्न या धन शुद्ध द्रव्य या धन माना गया है। वहीं क्षत्रिय द्वारा शौर्य का प्रयोग कर कमाया गया धन, वैश्यों या वणिक द्वारा व्यापार से कमाया गया धन और शुद्र द्वारा सेवा से कमाया गया धन उत्तम द्रव्य माना गया है। इसके अलावा किसी स्त्री को उसके पिता या पति से प्राप्त धन भी उत्तम द्रव्य ही माना जाता है।
धन कमाने के लिए किसी भी प्रकार से अधार्मिक कृत्य नहीं किए जाने चाहिए। अन्यथा वह पाप की श्रेणी में आ जाता है। जो कि व्यक्ति के पुण्यों को कम कर देता है और दुख का कारण बनता है। अत: ऐसे धन से बचना चाहिए। धन हमेशा धर्म के मार्ग पर चलते हुए ही प्राप्त करना चाहिए। साथ ही समय-समय पर जरूरतमंद लोगों को धन का दान भी करना चाहिए।
जरूर करें शिवजी के तीसरे नैत्र के दर्शन, क्योंकि...
शिवजी, भोलेनाथ, महादेव, कालों के काल महाकाल सभी भक्तों के कष्ट और क्लेश पलभर में दूर कर देते हैं। शिवपुराण के अनुसार इस सृष्टि का निर्माण मात्र शिवजी की इच्छा से ही हुआ है। अत: इस सृष्टि पर रहने वाले सभी जीवों की सभी इच्छाएं शिवजी पूर्ण करने में समर्थ हैं। हमारे जीवन में जब भी दुख आता है तब हम अवश्य ही मंदिर या अन्य देवस्थान जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार शिवजी को भोलेनाथ कहा गया है, क्योंकि इनका स्वभाव बहुत भोला बताया गया है। जो भी व्यक्ति शिवलिंग के दर्शन करता है उसके मन को शांति अवश्य प्राप्त होती है। यदि कोई व्यक्ति भयंकर परेशानियों में घिरा हुआ है और उसे कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है, ऐसे शिवजी के दर्शन सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
शिवजी के दर्शन के समय यदि संभव हो तो शिवजी के तीसरे नैत्र के दर्शन भी अवश्य करें। जब भी शिवलिंग का पूर्ण श्रंगार आदि किया जाता है तब महादेव का तीसरा नैत्र अवश्य दिखाई देता है। ऐसा माना जाता है शिवजी का तीसरा नैत्र खुलते ही पापियों और पाप का नाश हो जाता है। अत: महादेव के तीसरे नैत्र के विशेष दर्शन से हमारे भी सभी कष्ट, पाप, दुख आदि नष्ट हो जाएंगे। ऐसे प्रतिदिन किया जाना चाहिए। कुछ ही दिनों में इस उपाय के चमत्कारिक फल अवश्य प्राप्त होंगे। इस दौरान ध्यान रखें खुद को सभी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से दूर रखें। किसी का भी अनादर न करें और न दुख पहुंचाएं।
अमावस्या: आज गुड़-घी जलते हुए कंडे पर जरूर डाल दें, क्योंकि...
वर्ष 2011 का पितृ पक्ष मंगलवार 27 सितंबर को पूर्ण होने जा रहा है। इस दिन सर्वपितृ अमावस्या है। शास्त्रों के अनुसार इस अमावस्या पर पितरों की तृप्ति के लिए विशेष पूजन किया जाना चाहिए।
पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने, उन्हें तृप्त करने के लिए विशेष पूजन आदि करने का विधान है। ऐसा माना जाता है इस समय पितरों को तृप्त करने से हमें सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं और सभी बिगड़े कार्य बन जाते हैं।
शास्त्रों में बताया गया है कि जब तक हमारे पितर देवता हमसे प्रसन्न और संतुष्ट नहीं होंगे तब तक अन्य देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त नहीं की जा सकती। इसी वजह से पहले पितर देवताओं को प्रसन्न करना अनिवार्य है।
आज सर्वपितृ अमावस्या के दिन में ठीक बारह बजे मुख्य दरवाजे के बाहर सफाई करें। अब दरवाजे के दोनो ओर एक-एक बड़ा दीपक रखें। उसमें कंडें को सुलगाकर उसका पूजन करें। दीपक के पूजन के बाद स्वधा नम: बोलकर गुड़-घी मिश्रित पांच बार कंडे में डाल दें। इससे पितृ तृप्त होते हैं। आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
शाम के समय ऐसा करने से बढ़ती है गरीबी और घटती है उम्र...
दिनभर की थकान और तनाव को झेलने के बाद रात की नींद शरीर को आराम प्रदान करती है। प्रतिदिन पर्याप्त नींद ही हमें स्वस्थ और लंबी उम्र प्रदान करती है। अच्छे स्वास्थ्य के बहुत जरूरी है कि आप सही समय पर सोएं और सही समय पर उठ जाएं।
शास्त्रों और विज्ञान के अनुसार सोने के लिए रात का समय निर्धारित किया गया है। यही समय सर्वश्रेष्ठ भी है अच्छी नींद के लिए। जो लोग रात के समय पर्याप्त नींद लेते हैं वे तो हमेशा स्वस्थ और निरोगी रहते हैं। उन लोगों पर जल्द ही किसी मौसमी बीमारी का प्रभाव भी नहीं होता। जबकि जो लोग किसी भी कारण से रात के समय पर्याप्त नींद नहीं ले पाते वे निश्चित ही स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जुझते हैं।
यदि कोई व्यक्ति रात के समय ठीक से नींद नहीं ले पाता है तो वह दिन के समय नींद पूरी करता है। आजकल के दौर में दिन या शाम को सोना भी काफी लोगों की आदत बन गया है, जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक है और शास्त्रों के अनुसार भी यह निषेध माना गया है।
दिन या शाम के समय सोने से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां जैसे मोटापा होना, आलस्य बना रहना, चेहरे निस्तेज होना आदि आम बीमारियां हो जाती हैं। इसके अलावा प्रतिदिन ऐसा करने पर व्यक्ति की आयु भी घट सकती है यानि ऐसे लोगों का जीवन कम हो जाता है। इसके अलावा इन लोगों को अपच, कब्ज, एसीडीटी आदि की भी समस्याएं बनी रहती है।
शास्त्रों के अनुसार शाम का समय केवल पवित्र कार्य के लिए श्रेष्ठ माना गया है। ऐसा माना जाता है शाम के समय देवी-देवता पृथ्वी के भ्रमण पर निकलते हैं। ऐसे में शाम के समय सोने वाला व्यक्ति देवताओं के कोप का भागी बन जाता है। देवी-देवता उन लोगों को अप्रसन्न हो जाते हैं और उनका क्रोध झेलना पड़ता है। देवी-देवताओं की कृपा के बिना घर में बरकत नहीं रह सकती। किसी भी आर्थिक कार्य में आसानी से लाभ प्राप्त नहीं हो पाता, अक्सर धन हानि की संभावनाएं बनी रहती है। जिस घर में शाम के समय लोग सोते हैं वहां से धन की देवी महालक्ष्मी प्रस्थान कर जाती हैं और गरीबी यानि दरिद्रता उस घर में पैर पसार लेती है। इसी वजह से शाम के समय सोने से मन किया जाता है।
आज अमावास्या की काली रात में चमकाए अपनी किस्मत
27 सितंबर मंगलवार की रात 12 बजे से नवरात्रि का आरंभ हो रहा है। नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा की आराधना का विशेष उत्सव है। इन नौ दिनो में मां की भक्ति करने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी मां के भक्तों को किसी भी प्रकार का भय नहीं सताता है और वे हमेशा सफलता प्राप्त करते हैं।
दुर्गा सप्तशती में उल्लेखित है कि मंगलवार की अमावस्या पर रात 12 बजे जो भक्त मां काली के किसी भी रूप की सात्विक यानि सामान्य पूजा करता है उसे माता धन-धान्य, सुख-संपत्ति से पूर्ण कर देती हैं। उस भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है और वे मां दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त करते हैं।
मंगलवार की अमावस्या की रात को मां बहुत जल्द भक्तों से प्रसन्न हो जाती हैं। अत: इस रात्रि मां से कृपा प्राप्ति का सुनहरा अवसर है। मां काली की सामान्य सी पूजा से आपके घर की आर्थिक तंगी समाप्त होने लगेंगी और आपको धन लाभ होने लगेगा।
ध्यान रखें नवरात्रि के दिनों में व्रत-पूजा आदि के संबंध में कई नियम बताए गए हैं अत: इन सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य है। नियमित रूप से मां दुर्गा की आराधना करें और अपना आचरण पूरी तरह पवित्र बनाए रखें।
यमराज जिससे समाप्त करते हैं हमारा जीवन, उन्होंने वो शस्त्र...
मां दुर्गा स्वरूप का अत्यंत भव्य और मनमोहक दिखाई देता है। मां दुर्गा के हाथों में दिखाई देने वाले अलग-अलग दिव्यास्त्र ही देवी के स्वरूप की शोभा बढ़ाते हैं। जानिए मां दुर्गा को यह दिव्यास्त्र कहां से प्राप्त हुए...
देवी भागवत के अनुसार मां दुर्गा को विभिन्न देवताओं द्वारा वरदान के रूप में यह दिव्यास्त्र प्रदान किए गए हैं। इन्हीं दिव्यास्त्रों की वजह से ही मां दुर्गा को महादेवी कहा जाता है। मुख्य रूप से देवी के नौ अस्त्र-शस्त्र माने गए हैं-
- भगवान विष्णु द्वारा सहस्र अरों वाला तेज संपन्न चक्र प्रदान किया गया।
- शिव द्वारा भगवती को असुरों का संहारक व देवताओं के भय का निवारक त्रिशूल अर्पित किया गया।
- वरुण देव ने वरदान स्वरूप देवी को दिव्यशंख प्रदान किया, जो मांगलिकता एवं उज्ज्वलता का प्रतीक था।
- अग्निदेव ने मन के समान तीव्रगति वाले दैत्यों की विनाशक शक्ति देवी को प्रदान की।
- पवन देव द्वारा भगवती को भयानक गर्जना करने वाले धनुष-वाण भेंट किए गए।
- देवराज इंद्र ने अत्यंत भयंकर वज्र अर्पित किया।
- यमराज ने भगवती को दंड (लाठी) प्रदान किया, जिससे वे अंत समय में प्राणियों का अंत करते थे।
- काल ने भगवती को खडग़ व ढाल भेंट किए।
- त्वष्टा ने सैकड़ों घंटों के समान तीव्र ध्वनि वाली कौमोदकी नामक गदा देवी के चरणों में अर्पित की।
जरूर करें शिवजी के तीसरे नेत्र के दर्शन, क्योंकि...
शिवजी, भोलेनाथ, महादेव, कालों के काल महाकाल सभी भक्तों के कष्ट और क्लेश पलभर में दूर कर देते हैं। शिवपुराण के अनुसार इस सृष्टि का निर्माण मात्र शिवजी की इच्छा से ही हुआ है। अत: इस सृष्टि पर रहने वाले सभी जीवों की सभी इच्छाएं शिवजी पूर्ण करने में समर्थ हैं। हमारे जीवन में जब भी दुख आता है तब हम अवश्य ही मंदिर या अन्य देवस्थान जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार शिवजी को भोलेनाथ कहा गया है, क्योंकि इनका स्वभाव बहुत भोला बताया गया है। जो भी व्यक्ति शिवलिंग के दर्शन करता है उसके मन को शांति अवश्य प्राप्त होती है। यदि कोई व्यक्ति भयंकर परेशानियों में घिरा हुआ है और उसे कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है, ऐसे शिवजी के दर्शन सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
शिवजी के दर्शन के समय यदि संभव हो तो शिवजी के तीसरे नेत्र के दर्शन भी अवश्य करें। जब भी शिवलिंग का पूर्ण श्रंगार आदि किया जाता है तब महादेव का तीसरा नैत्र अवश्य दिखाई देता है। ऐसा माना जाता है शिवजी का तीसरा नैत्र खुलते ही पापियों और पाप का नाश हो जाता है। अत: महादेव के तीसरे नेत्र के विशेष दर्शन से हमारे भी सभी कष्ट, पाप, दुख आदि नष्ट हो जाएंगे। ऐसे प्रतिदिन किया जाना चाहिए। कुछ ही दिनों में इस उपाय के चमत्कारिक फल अवश्य प्राप्त होंगे। इस दौरान ध्यान रखें खुद को सभी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से दूर रखें। किसी का भी अनादर न करें और न दुख पहुंचाएं।
अगर आपको रोड पर दिखाई दे सांप तो समझ लें कि...
सांप एक ऐसा जीव है जिसे अपने सामने देखते ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं। सांप का भय इतना अधिक रहता है कि काफी लोग सांप के नाम से ही घबराते हैं। शास्त्रों के अनुसार सांप को पूजनीय भी बताया गया है। महादेव नाग को आभूषण की तरह अपने गले में धारण करते हैं। सांपों से जुड़े कई शकुन और अपशकुन हमारे समाज में प्रचलित हैं।
यदि आप कहीं जा रहे हैं और रास्ते में आपको सांप दिखाई दे तो इसके कई प्रकार के संकेत बताए गए हैं। ऐसे समय में सांप का दिखाई देना सामान्यत: अपशकुन की श्रेणी में ही आता है। शास्त्रों के अनुसार शकुन और अपशकुन के संबंध में कई प्रकार की अवधारणाएं प्रचलित हैं। किसी भी कार्य की शुरूआत से पहले कई प्रकार की छोटी-छोटी घटनाएं होती हैं। इनमें से कुछ असामान्य सी भी प्रतीत होती हैं। ऐसी ही घटनाओं को शकुन और अपशकुन से जोड़कर देखा जाता है।
शकुन और अपशकुन की छोटी-छोटी घटनाओं में कई प्रकार के संकेत छिपे होते हैं जिन्हें समझने पर भविष्य में होने वाली संभावित घटनाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। आजकल काफी लोग इन मान्यताओं को अंधविश्वास का नाम देते हैं जबकि पुराने समय इनका काफी अधिक महत्व माना जाता था।
जब भी आप किसी शुभ कार्य के लिए जा रहे हैं और रास्ते में कोई सांप दिख जाए तो इस अशुभ संकेत माना जाता है। इसका अर्थ यही है कि आप जिस कार्य के लिए जा रहे हैं उसमें आपको किसी प्रकार की कोई समस्या का सामना करना पड़ सकता है। अत: जब भी ऐसा हो तो कुछ देर रुककर अपने इष्टदेव का स्मरण करके ही कार्य के लिए निकलने चाहिए। यदि संभव हो तो उस समय वह कार्य टाल दिया जाना चाहिए। जरूरी होने पर भगवान को याद करके कार्य करें।
केवल 3-4 मिनिट के छोटे से उपाय से खुश हो जाते हैं हनुमान
आधुनिक युग में सुख-समृद्धि और सुविधाओं की जितनी वस्तुएं बढ़ रही हैं उतनी ही बढ़ रही हैं हमारी समस्याएं। सभी सुविधाओं को जुटाने में इंसान दिन-रात कई प्रकार के प्रयास में लगा हुआ है। काफी कम लोगों को यह सभी सुविधाएं हासिल हो पाती हैं लेकिन जिन लोगों को यह सब नहीं मिल पाता उन्हें निराशा का सामना करना पड़ता है। इस निराशा के साथ जीवन और अधिक बुरा दिखाई देने लगता है। इन सभी नकारात्मक भावनाओं को दूर करने के बाद ही जीवन को खुशियों के साथ जिया जा सकता है। इसके लिए हनुमानजी की भक्ति सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
कलयुग हो या सतयुग बजरंग बली ने हर युग में भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण की हैं। आज भी इन्हें जल्दी ही प्रसन्न होने वाले देवताओं में श्रेणी में माना जाता है। इनकी भक्ति से तुरंत ही शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। यदि सच्चे हृदय से प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो कुछ ही दिनों में आप आश्चर्यजनक फल प्राप्त करने लगेंगे। बस ध्यान रखें कि आपसे किसी का अहित न हो और आप सभी अधार्मिक कृत्यों से खुद को दूर रखें। हनुमानजी की भक्ति में शरीर और मन की पवित्रता का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए अन्यथा भक्ति से शुभ फल विलंब से प्राप्त होते हैं।
हनुमानजी की भक्ति का सर्वोत्तम और सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का जप। प्रतिदिन कुछ समय श्रीरामजी के अनन्य भक्त पवनपुत्र हनुमानजी का ध्यान करने से जीवन खुशियोंभरा हो जाता है। यहां हनुमान चालिसा दी जा रही है जिसका जप आप किसी भी समय कर सकते हैं। मन को शांति मिलेगी।
दोहा- श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
बुध्दिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपिस तिहुँ लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै कांधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लषन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचंद्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुडावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेंइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥
जो सत बर पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
दोहा- पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लषन सीता सहित,हृदय बसहु सुर भूप॥
क्यों और कैसे चढ़ाए माता को शकर जिससे दूर हो पैसों की तंगी
इन दिनों नवरात्रि पर्व के चलते सभी देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। मां दुर्गा के भक्तों के लिए नवरात्रि के दिन काफी महत्वपूर्ण हैं। शास्त्रों के अनुसार इन दिनों देवी मां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
यदि किसी व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक परेशानियां चल रही हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही है तो इन समस्याओं को दूर करने के लिए नवरात्रि का समय सर्वश्रेष्ठ है। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए प्रभावी उपाय बताया गया है। इस उपाय को अपनाने पर भक्त के सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं।
नवरात्रि के दिनों में ब्रह्म मुहूर्त में उठें और सभी नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं। किसी भी माता के मंदिर जाएं और अपने साथ सवा किलो शकर लेकर जाएं। मंदिर में मां दुर्गा को शकर अर्पित करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। अपनी परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करें। प्रार्थना के बाद सवा किलो शकर वहीं मंदिर किसी छोटी कन्या को दे दें। कन्या के चरण स्पर्श करके घर लौट आएं। ऐसा करने पर जल्द ही आपकी परेशानियां कम होने लगेंगी। बिगड़े कार्य बनने लगेंगे।
घर में क्या और क्यों करना चाहिए जिससे ना हो लड़ाई ना हो तलाक
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के जीवन के 16 महत्वपूर्ण संस्कार बताए गए हैं, इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार में से एक है विवाह संस्कार। सामान्यत: बहुत कम लोगों को छोड़कर सभी लोगों का विवाह अवश्य ही होता है। शादी के बाद सामान्य वाद-विवाद तो आम बात है लेकिन कई बार छोटे झगड़े भी तलाक तक पहुंच जाते हैं। इस प्रकार की परिस्थितियों को दूर रखने के लिए ज्योतिषियों और घर के बुजूर्गों द्वारा एक उपाय बताया जाता है।
अक्सर परिवार से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए मां पार्वती की आराधना की बात कही जाती है। शास्त्रों के अनुसार परिवार से जुड़ी किसी भी प्रकार की समस्या के लिए मां पार्वती भक्ति सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। मां पार्वती की प्रसन्नता के साथ ही शिवजी, गणेशजी आदि सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है। अत: सभी प्रकार के ग्रह दोष भी समाप्त हो जाते हैं।
ज्योतिष के अनुसार कुंडली में कुछ विशेष ग्रह दोषों के प्रभाव से वैवाहिक जीवन पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में उन ग्रहों के उचित ज्योतिषीय उपचार के साथ ही मां पार्वती को प्रतिदिन सिंदूर अर्पित करना चाहिए। सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। जो भी व्यक्ति नियमित रूप से देवी मां की पूजा करता है उसके जीवन में कभी भी पारिवारिक क्लेश, झगड़े, मानसिक तनाव की स्थिति निर्मित नहीं होती है।
शनि के बुरे प्रभाव से बचने के लिए क्यों चढ़ाते हैं काली चीजें?
शनिवार, ये दिन है शनि देव का... इस दिन शनि को मनाने के लिए विशेष पूजन कर्म करने का महत्व है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में शनि की स्थिति काफी अधिक खास होती है। शनि की शुभ या अशुभ स्थिति के चलते व्यक्ति का जीवन सुखी या दुखों से पीडि़त हो सकता है। शनि का सर्वाधिक प्रभाव साढ़ेसाती और ढैय्या में ही झेलना पड़ता है। हर व्यक्ति को शनि की साढ़ेसाती अवश्य झेलना पड़ती है, इससे कोई बच नहीं सकता।
यदि शनि के कारण किसी व्यक्ति को अत्यधिक दुखों और असफलताओं का सामना करना पड़ रहा है तो शनिवार के दिन कुछ विशेष पूजन कार्य किए जाने चाहिए। शनि को मनाने के लिए यह सटीक उपाय बताया गया है, इसे प्रति शनिवार अपनाने से बहुत जल्द शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं।
शनि के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए शनिवार के दिन एक काले कपड़े में काले उड़द, काले तिल और लोहे की वस्तु बांध लें। शनिदेव को अर्पित करें और पूजा करें। इसके बाद किसी ब्राह्मण, किसी जरूरतमंद व्यक्ति को काले कपड़े में बंधी तीनों चीजें दान कर दें। ऐसा हर शनिवार को किया जाना चाहिए। कुछ ही दिनों में इसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे।
जब पैसों की तंगी हो तो क्या और क्यों चढ़ाए मां दुर्गा को?
इन दिनों नवरात्रि पर्व के चलते सभी देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। मां दुर्गा के भक्तों के लिए नवरात्रि के दिन काफी महत्वपूर्ण हैं। शास्त्रों के अनुसार इन दिनों देवी मां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
यदि किसी व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक परेशानियां चल रही हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही है तो इन समस्याओं को दूर करने के लिए नवरात्रि का समय सर्वश्रेष्ठ है। देवी मां को प्रसन्न करने के लिए प्रभावी उपाय बताया गया है। इस उपाय को अपनाने पर भक्त के सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं।
नवरात्रि के दिनों में ब्रह्म मुहूर्त में उठें और सभी नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं। किसी भी माता के मंदिर जाएं और अपने साथ सवा किलो शकर लेकर जाएं। मंदिर में मां दुर्गा को शकर अर्पित करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। अपनी परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करें। प्रार्थना के बाद सवा किलो शकर वहीं मंदिर किसी छोटी कन्या को दे दें। कन्या के चरण स्पर्श करके घर लौट आएं। ऐसा करने पर जल्द ही आपकी परेशानियां कम होने लगेंगी। बिगड़े कार्य बनने लगेंगे।
नवरात्रि में अखंड ज्योत जलाने की परंपरा क्यों?
नवरात्र के नौ दिन माता के सामने अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। यह अखंड ज्योत इसलिए भी जलाई जाती है कि जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में भी छोटा का दीपक अपनी लौ से अंधेरे को दूर भगाता रहाता है उसी प्रकार हम भी माता की आस्था का सहारा लेकर अपने जीवन के अंधकार को दूर कर सकते हैं। मान्यता के अनुसार मंत्र महोदधि(मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है
दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।
अर्थात - घी युक्त ज्योति देवी के दाहिनी ओर तथा तेल युक्त ज्योति देवी के बाई ओर रखनी चाहिए। अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाडऩा हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें। यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।
क्यों नवरात्रि में ही किए जाते हैं तांत्रिक अनुष्ठान?
नवरात्रि को देवी आराधना का सर्वोत्तम समय माना जाता है। चैत्र और अश्विन मास की नवरात्रि का हिन्दू त्योहारों में बड़ा महत्व है। अश्विन मास की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि भी कहा जाता है। इसे तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ऐसा क्यों होता है कि तांत्रिक अनुष्ठानों व सिद्धियों के लिए अश्विन नवरात्रि को ही श्रेष्ठ माना जाता है? क्या इस समय में तांत्रिक अनुष्ठान पूरे करने से उनका विशेष फल मिलता है? इसका कारण इस प्रकार है-
-इस नवरात्रि को सिद्धि के लिए विशेष लाभदायी माना गया है। नवरात्रि में की गयी पूजा, जप-तप साधना, यंत्र-सिद्धियां, तांत्रिक अनुष्ठान आदि पूर्ण रूप से सफल एवं प्रभावशाली होते हैं।
- चूंकि मां स्वयं आदि शक्ति का रूप हैं और नवरात्रों में स्वयं मूर्तिमान होकर उपस्थित रहती हैं और उपासकों की उपासना का उचित फल प्रदान करती हैं।
- सृष्टि के पांच मुख्य तत्वों में देवी को भूमि तत्व की अधिपति माना जाता है। तंत्र-मंत्र की सारी सिद्धियां इस धरती पर मौजूद सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से जुड़ी होती हैं।
- नवरात्रि के नौ दिनों में चूंकि चारों ओर पूजा और मंत्रों का उच्चारण होता है, इससे नकारात्मक ऊर्जा कमजोर पड़ जाती है। इन नौ दिनों में सकारात्मक ऊर्जा अपने पूरे प्रभाव में होती है।
- इस कारण जो भी काम किया जाता है उसमें आम दिनों की अपेक्षा बहुत जल्दी सफलता मिलती है। तंत्र-मंत्र के साथ भी यही बात लागू होती है। तंत्र की सिद्धि आम दिनों के मुकाबले बहुत आसानी से और कम समय में मिलती है।
पैसों की तंगी से परेशान हैं, तो वहां गंजा होकर दूर करें गरीबी
भारत में अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न परंपराएं प्रचलित हैं। शास्त्रों के अनुसार परंपराओं के पीछे कई रहस्य छिपे होते हैं। इनका पालन करने वाले इंसान को कई प्रकार से दैवीय कृपा प्राप्त होती है और जीवन सुख तथा समृद्धिशाली बनता है। ऐसी ही भिन्न-भिन्न प्रथाओं में से एक है तिरूपति बालाजी के नाम पर केश दान करना।
तिरूपति बालाजी मंदिर के संबंध में कई तरह प्रथाएं प्रचलित हैं। यहां सिर के सभी बाल कटवाए जाते हैं यानि भक्त पूरी तरह गंजे हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां केश दान करने से भगवान बालाजी की कृपा प्राप्त होती है। बालाजी भगवान विष्णु के रूप माने जाते हैं, इनकी प्रसन्नता के बाद स्वत: महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और धन से जुड़ी सभी समस्याएं समाप्त होती हैं।
तिरूपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में स्थित है। बालाजी को धन और वैभव का भगवान माना जाता है। ऐसा माना जाता है यहां साक्षात् भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी विराजमान हैं। यहां बालाजी की करीब 7 फीट ऊंची श्यामवर्ण की प्रतिमा स्थापित है। वैसे तो यहां कई परंपराओं का चलन है परंतु केशदान की अनूठी प्रथा सर्वाधिक प्रचलित है।
बालाजी मंदिर पर केशदान को लेकर कई मान्यताएं हैं। यहां केश समर्पित करने का अर्थ है कि श्रद्धालु अपना अहंकार, बुराइयां, जाने-अनजाने किए गए पाप को भगवान के चरणों में समर्पित कर बालाजी की नि:स्वार्थ भक्ति हृदय में स्थापित करता है। यहां केशदान करने के बाद भगवान बालाजी के चरणों में श्रद्धालु की भक्ति और अधिक बढ़ जाती है। जिससे भगवान भक्त की सारी मनोकामनाएं पूर्ण कर उसे सुख और समृद्धि का वर प्रदान करते हैं। कई लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने पर भी यहां केशदान करते हैं।
इस संबंध में मान्यता है कि इस प्रकार जो भक्त यहां केशदान करता है वह भगवान विष्णु की कृपा का पात्र बन जाता है और उसके जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो जाती है।
जिस घर में होती है ऐसी खिड़की वहां आता है पैसा ही पैसा, क्योंकि...
सभी के घरों में पैसा या धन, गहने आदि कीमती वस्तुएं रखने की अलग और खास जगह होती है। जहां पैसा आदि रखा रहता है उस स्थान का प्रभाव वहां रहने वाले सभी लोगों पर पड़ता है। यदि धन और गहने शुभ स्थान पर रखे होंगे तो सभी सदस्यों पर इसका शुभ प्रभाव पड़ेगा और यदि अशुभ स्थान पर रखेंगे तो इसका बुरा प्रभाव घर की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है।
घर में पैसा या अन्य कीमती सामान कहां रखना चाहिए? इस संबंध में वास्तु के अनुसार घर में कई स्थान बताए गए हैं जहां हम पैसा आदि रख सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति के घर से बाहर निकलते समय सीधे हाथ की ओर खिड़की हो और जिस कमरे की ये खिड़की है वहां धन, पैसा, ज्वेलरी या अन्य कीमती सामान रखा रहता है तो वहां रहने वाले सभी लोग भाग्यशाली होते हैं। इसके साथ पैसा जहां रखा रहता है उस स्थान पर सूर्य की सीधी किरणें भी आना चाहिए। वास्तु के अनुसार घर में ऐसी स्थिति बहुत शुभ मानी जाती है।
ध्यान से समझें यदि किसी व्यक्ति के घर से आप बाहर आ रहे हैं उस समय आपके सीधे हाथ की ओर कोई खिड़की दिखाई दे और वह खिड़की जिस कमरे की है उस कमरे में धन आदि कीमती सामान रखा रहता है और पैसा जहां रखा रहता है उस स्थान पर सूर्य की सीधी किरणें भी आना चाहिए। वास्तु के अनुसार घर में ऐसी स्थिति बहुत शुभ मानी जाती है। तो वहां रहने वाले सभी लोगों को हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है और वहां सुख-समृद्धि बनी रहती है। वास्तु के अनुसार वहां रहने वाले किसी एक पुत्र का भाग्य बहुत अच्छा रहता है, वह शिक्षा के क्षेत्र में और आय के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त करता है। कुछ परिवारों में बेटियां के लिए घर में इस प्रकार की व्यवस्था फायदेमंद रहती है।
यदि आपके घर में भी ऐसी खिड़की है तो आप भी वहां धन आदि कीमती सामग्री रख सकते हैं। इससे आपके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। ध्यान रहे घर की अन्य स्थितियों पर भी विचार किया जाना आवश्यक है। यदि घर में अन्य कोई बड़े वास्तु दोष हैं तो उनका भी उचित उपचार किया जाना चाहिए। पैसा ऐसे स्थान पर ही रखा जाना चाहिए जहां चोर आदि से हमारा धन सुरक्षित रहे।
काले तिल हमें बचाते है यमराज की भयंकर यातनाओं से
हम जाने-अनजाने कई ऐसे कार्य करते हैं जिन्हें शास्त्रों के अनुसार पाप समझा जाता है। वेद-पुराण में पाप और पुण्य के संबंध में कई परिभाषाएं बताई गई हैं। इनके अनुसार अधिकांश लोग कुछ न कुछ ऐसे कार्य अवश्य करते हैं जिन्हें पाप की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसे कार्यों के विषय में हमें जानकारी नहीं रहती। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद सभी को अपने किए पाप-पुण्य के कर्मों के फल प्राप्त होते हैं।
शास्त्रों के अनुसार जाने-अनजाने के किए ऐसे ही पाप कर्मों के बुरे फल यमराज की भयंकर यातनाओं के रूप में प्राप्त होते हैं। यमराज के संबंध में कई बातें बताई गई हैं। ऐसा माना जाता है कि यमराज का एक अलग लोक है जिसे यमपुरी के नाम से जाना जाता है। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात आत्मा इसी लोक में जाती है। जहां उस आत्मा द्वारा धरती पर जन्म के बाद किए गए पाप और पुण्य कर्मों का फल प्राप्त होता है। यदि कोई व्यक्ति पापी होता है तो उसे कई प्रकार की यातनाएं वहां सहना पड़ती है।
यदि इस प्रकार की सभी यातनाओं से बचना है तो दशहरे के लिए मां काली को काले तिल अर्पित करने से व्यक्ति के पापों में कमी आती है। इसके अलावा पुण्य में वृद्धि होती है। प्रतिवर्ष दशहरे के दिन प्रात: माता दुर्गा का पूजन करके उनको काले तिल अर्पण करना चाहिए। इसके साथ ही संकल्प करें कि सभी बुरी आदतों एवं लतों का त्याग करेंगे। ऐसा करने से यमलोक में मिलने वाली यातना का भय नहीं रहता है। इसके साथ खुद को सभी प्रकार बुरे और अधार्मिक कार्यों से दूर ही रखें।
भाग्य का साथ चाहिए तो इन्हें दूध या पानी में रखें फिर पहनें, क्योंकि...
जीवन में सुख और दुख हमेशा ही चलते रहते हैं। किसी के जीवन में दुख ज्यादा होते हैं तो किसी के जीवन में सुख अधिक रहते हैं। जिन लोगों को अक्सर दुखों का सामना करना पड़ता है वे इनसे निजात पाने के लिए कई प्रकार के प्रयास करते हैं। दुखों को दूर करने के लिए ज्योतिष में कई उपाय बताए गए हैं।
ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति की कुंडली की स्थिति को देखकर मालुम किया जा सकता है कि दुख या परेशानियों किन कारणों से आ रही हैं। अलग-अलग ग्रह दोषों के कारण जीवन में अलग-अलग परेशानियां उत्पन्न होती हैं। इन विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए ज्योतिष में उपाय बताए गए हैं। जिस ग्रह दोष की वजह से आपके जीवन में परेशानियां चल रही हैं उस ग्रह के दोषों को दूर करने के लिए संबंधित नग या रत्न धारण करना चाहिए।
सभी ग्रहों के अलग-अलग रत्न बताए गए हैं। इस संबंध में जीवन मंत्र पर लेख प्रकाशित किया गया है। रत्न धारण करने से पूर्व ध्यान देने योग्य बातें-
जिस दिन रत्न धारण करना हो उसके एक दिन पहले उस रत्न को किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से अभिमंत्रित करा लें। यदि आप ऐसा करने में असमर्थ हैं तो एक दिन पूर्व रत्न को घर के पूजा स्थान में दूध या पवित्र जल में डूबोकर रख दें। इसके बाद रत्न धारण करने वाले दिन दूध या पानी में से रत्न निकालकर कपड़े से साफ कर लें। इसके बाद संबंधित ग्रह के मंत्र का जप करते हुए रत्न को पहन लें या धारण कर लें।
इन तीन बुरी शक्तियों से बचना हो तो क्या और क्यों करें...
कभी-कभी ऐसा होता है कि आपके जीवन में सबकुछ अच्छा चल रहा होता है और अचानक से ही समय एकदम बदल जाता है। जिस काम में आप सफलता प्राप्त कर रहे थे, वहां से आपके काम बिगडऩा शुरू कर देते हैं। घर में अक्सर कोई बीमार रहता हो या इसी प्रकार अन्य कोई परेशानी जो दिखने में तो सामान्य होती है लेकिन इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं।
ज्योतिष और शास्त्रों के अनुसार जब अचानक से आपका अच्छा समय बुरे समय में बदल जाता है तो ऐसी संभावनाएं हो सकती हैं कि आपको या आपके घर को किसी की बुरी नजर लग गई हो। कई बार किसी की सफलता और समृद्धि से जलने वाले लोग उन्हें क्षति पहुंचाने के लिए टोने-टोटके या तंत्र-मंत्र जैसी नकारात्मक शक्तियों का उपयोग करते हैं। इन नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव से एकदम ही सबकुछ गड़बड़ हो जाता है।
इस प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव खत्म करने के लिए एक सटीक उपाय है कि अपने घर में नियमित रूप से गौमूत्र का छिड़काव किया जाए। शास्त्रों के अनुसार गौमूत्र को पवित्र पदार्थ माना गया है और इसमें वातावरण में मौजूद सभी नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करने की शक्ति होती है। ऐसा माना जाता है गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। अत: इससे प्राप्त होने वाली हर चीज बहुत ही पवित्र और पूजनीय है।
किसी भी प्रकार के टोने-टोटके, तंत्र-मंत्र या बुरी नजर के प्रभाव से बचने के लिए गौमूत्र का उपयोग सर्वश्रेष्ठ उपाय है। यदि संभव हो तो प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा गौमूत्र पीने से भी लाभ प्राप्त होते हैं। इसके अलावा अपने आसपास का वातावरण सकारात्मक रखें। किसी प्रकार के नकारात्मक विचारों को अपने से दूर ही रखें और ऐसे लोगों से भी दूर रहें। प्रतिदिन नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करें और प्रति मंगलवार-शनिवार को हनुमान मंदिर जाएं तथा सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें। आप सभी प्रकार के टोने-टोटकों और बुरी नजर के प्रभाव से बचे रहेंगे।
किसी रूहानी ताकत का साथ है तो ऐसा होगा आपके साथ
क्या आपको पता है आपके साथ कोई ताकत या तीसरी दुनिया की कोई शक्ति है। कुछ लोगों को इसका एहसास हो जाता है लेकिन कुछ लोग ये समझ नहीं पाते कि क्या हो रहा है। उनको सपने में ही अपना भविष्य पता चल जाता है। ऐसे लोगों को कुछ पूर्वाभास होने लगते हैं।
जिन लोगों पर किसी शक्ति या उपरी ताकत का हाथ होता है ऐसे लोगों के हर काम आसानी से पूरे होने लगते हैं। किसी भी काम को करने से पहले ही इन लोगों को उसका परिणाम दिखने लगता हैं। जानिए और क्या होता है जब किसी के सर पर किसी शक्ति का हाथ होता है।
- अगर कोई दुर्घटना होने वाली है तो इनको पहले ही पता चल जाता है। इसलिए इन लोगों के साथ दुर्घटनाएं कम ही होती है।
- अगर आपके साथ तीसरी दुनिया की कोई शक्ति है तो आपको पूर्वाभास होने लगेगा और ये पहले से ही पता चल जाएगा कि कल क्या होने वाला है।
- ऐसे लोगों को सपने में तेज चमकती हुई रोशनी या तेज प्रकाश दिखता है।
- अक्सर इन लोगों को किसी के पास होने का एहसास होता है।
- ऐसे लोग कम बोलने वाले होते हैं लेकिन ये जो बोलते हैं वो सच ही होता है।
दशहरे पर क्या और क्यों करें, जिससे यमराज का डर ना रहे...
हम जाने-अनजाने कई ऐसे कार्य करते हैं जिन्हें शास्त्रों के अनुसार पाप समझा जाता है। वेद-पुराण में पाप और पुण्य के संबंध में कई परिभाषाएं बताई गई हैं। इनके अनुसार अधिकांश लोग कुछ न कुछ ऐसे कार्य अवश्य करते हैं जिन्हें पाप की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसे कार्यों के विषय में हमें जानकारी नहीं रहती। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद सभी को अपने किए पाप-पुण्य के कर्मों के फल प्राप्त होते हैं।
शास्त्रों के अनुसार जाने-अनजाने के किए ऐसे ही पाप कर्मों के बुरे फल यमराज की भयंकर यातनाओं के रूप में प्राप्त होते हैं। यमराज के संबंध में कई बातें बताई गई हैं। ऐसा माना जाता है कि यमराज का एक अलग लोक है जिसे यमपुरी के नाम से जाना जाता है। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात आत्मा इसी लोक में जाती है। जहां उस आत्मा द्वारा धरती पर जन्म के बाद किए गए पाप और पुण्य कर्मों का फल प्राप्त होता है। यदि कोई व्यक्ति पापी होता है तो उसे कई प्रकार की यातनाएं वहां सहना पड़ती है।
यदि इस प्रकार की सभी यातनाओं से बचना है तो दशहरे के लिए मां काली को काले तिल अर्पित करने से व्यक्ति के पापों में कमी आती है। इसके अलावा पुण्य में वृद्धि होती है। प्रतिवर्ष दशहरे के दिन प्रात: माता दुर्गा का पूजन करके उनको काले तिल अर्पण करना चाहिए। इसके साथ ही संकल्प करें कि सभी बुरी आदतों एवं लतों का त्याग करेंगे। ऐसा करने से यमलोक में मिलने वाली यातना का भय नहीं रहता है। इसके साथ खुद को सभी प्रकार बुरे और अधार्मिक कार्यों से दूर ही रखें।
भगवान को फूल चढ़ाने से पहले ध्यान रखना चाहिए ये पांच बातें...
भगवान की पूजा-अर्चना में फूल अर्पित करना अति आवश्यक माना गया है। पुष्प के बिना कोई भी पूजन कर्म पूर्ण नहीं हो सकता। ऐसी मान्यता है कि भगवान के प्रिय पुष्प अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनावांछित फल प्रदान करते हैं।
सभी मांगलिक कार्य और पूजन कर्म में फूलों का विशेष स्थान होता है। सभी देवी-देवताओं को अलग-अलग फूल प्रिय हैं। साथ ही इन्हें कुछ फूल नहीं चढ़ाएं जाते। इसी वजह से बड़ी सावधानी से पूजा आदि के लिए फूलों का चयन करना चाहिए।
- शिवजी की पूजा में मालती, कुंद, चमेली, केवड़ा के फूल वर्जित किए गए हैं।
- सूर्य उपासना में अगस्त्य के फूलों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
- सूर्य और श्रीगणेश के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं को बिल्व पत्र चढ़ाएं जा सकते हैं। सूर्य और श्री गणेश को बिल्व पत्र न चढ़ाएं।
- प्रात: काल स्नानादि के बाद भी देवताओं पर चढ़ाने के लिए पुष्प तोड़ें या चयन करें। ऐसा करने पर भगवान प्रसन्न होते हैं।
- बिना नहाए पूजा के लिए फूल कभी ना तोड़े।
कब और क्यों न करें मालिश या मसाज?
वैसे तो स्वस्थ त्वचा के लिए तेल मालिश करना नियमित दिनचर्या है लेकिन सप्ताह में इसे केवल तीन दिन ही करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को तेल मालिश करना चाहिए। जबकि रविवार, मंगलवार और शुक्रवार को तेल मालिश नहीं करनी चाहिए। अगर रोजाना करना ही हो तो फिर कुछ उपाय करने के बाद ही करें। बहरहाल सवाल यह उठता है कि रवि, मंगल और शुक्रवार को तेल से मालिश क्यों न करें? दरअसल इसके पीछे भी विज्ञान है। शास्त्र कहते हैं कि इन दिनों में तेल से मालिश करने पर रोग होने की आशंका रहती है।
तैलाभ्यांगे रवौ ताप: सोमे शोभा कुजे मृति:।
बुधेधनं गुरौ हानि: शुझे दु:ख शनौ सुखम् ॥
अर्थ- रविवार को तेल मालिश से ताप यानी गर्मी संबंधी रोग, सोमवार को शरीर के सौन्दर्य में वृद्धि, मंगलवार को मृत्यु भय, बुधवार को धन की प्राप्ति, गुरुवार को हानि, शुक्रवार को दु:ख और शनिवार को करने से सुख मिलता है।
तीन दिन क्यों नहीं
शास्त्रों के अनुसार रविवार, मंगलवार और शनिवार को तेल से मालिश करना मना है। इसके पीछे भी विज्ञान है। रविवार का दिन सूर्य से संबंधित है। सूर्य से गर्मी उत्पन्न होती है। अत: इस दिन शरीर में पित्त अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक होना स्वाभाविक है। तेल से मालिश करने से भी गर्मी उत्पन्न होती है। इसलिए रविवार को तेल से मालिश करने से रोग होने का भय रहता है। मंगल ग्रह का रंग लाल है। इस ग्रह का प्रभाव हमारे रक्त पर पड़ता है। इस दिन शरीर में रक्त का दबाव अधिक होने से खुजली, फोड़े फुन्सी आदि त्वचा रोग या उनसे मृत्यु होने का डर भी रहता है। इसी तरह शुक्र ग्रह का संबंध वीर्य तत्व से रहता है। इस दिन मालिश करने से वीर्य संबंधी रोग हो सकते हैं। अगर रोजाना मालिश करना हो तो तेल में रविवार को फूल, मंगलवार को मिट्टी और शुक्रवार को गाय का मूत्र डाल लेने से कोई दुष्प्रभाव नहीं होता।
यह है मालिश का विज्ञान
मानव शरीर में असंख्य छिद्र हैं। यदि किसी यन्त्र की सहायता से देखें तो पता लगेगा कि हमारी त्वचा जालीदार है। इन छिद्रों को रोम कहा जाता है। इन छिद्रों से हमारे शरीर की प्रदूषित वायु और गंदगी गैस के रूप में बाहर निकलती है। यह एक महत्वपूर्ण क्रिया है। इसी पर हमारा जीवन आधारित है। यदि ये छिद्र बंद हो जाएं तो शरीर में कई रोग उत्पन्न होने लगते हैं। वास्तव में तेल मालिश इन छिद्रों को साफ करने की एक आसान प्रक्रिया है। तेल की मालिश से शरीर में रक्त का संचारण तेजी से होता है और नई ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है।
एक चुटकी हल्दी का कमाल, लड़का हो या लड़की जल्दी हो जाएगी शादी
शादी को लड़के और लड़की के लिए दूसरा जन्म माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार विवाह एक अनिवार्य संस्कार है। मनुष्य जीवन के 16 मुख्य संस्कार माने गए हैं, इनमें से विवाह सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। वैसे तो काफी लोगों के जीवन में विवाह का समय अवश्य ही आता है लेकिन कुछ लोगों को इसके लिए काफी इंतजार करना पड़ता है।
ज्योतिष के अनुसार विवाह के संबंध में कारक ग्रह गुरु को माना गया है। गुरु की स्थिति के अनुसार व्यक्ति का विवाह जल्दी या देर से होता है। यदि किसी लड़के या लड़की की शादी में विलंब हो रहा है और इसकी वजह कुंडली में गुरु की अशुभ स्थिति है तो यह उपाय अपनाएं।
गुरु के दोषों को दूर करने के लिए लड़का हो या लड़की दोनों को प्रति गुरुवार नहाने के पानी में एक चुटकी हल्दी मिलाकर स्नान करना चाहिए। ऐसा प्रति गुरुवार किया जाना चाहिए। इस उपाय से गुरु के दोष समाप्त होने लगते हैं। गुरु दोष समाप्त होने के बाद जल्दी ही विवाह के योग बनते हैं। रिश्ते आना शुरू हो जाते हैं और जल्दी ही विवाह भी हो जाता है। गुरु ग्रह के दोष दूर करने के लिए हल्दी के उपाय सटीक माने गए हैं।
शनिवार को ऐसे नहाने से दूर होते हैं शनिदोष, क्योंकि...
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि एक मात्र ऐसा ग्रह बताया गया है जो एक साथ पांच राशियों पर सीधा प्रभाव डालता है। एक समय में शनि की तीन राशियों पर साढ़ेसाती और दो राशियों पर ढैय्या चलती है। शनिदेव का स्वभाव क्रूर माना गया है। इसी वजह से अधिकांश लोगों को साढ़ेसाती और ढैय्या में कड़ी मेहनत करना होती है।
जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि अशुभ फल देने वाला होता है उसे किसी भी कार्य में आसानी से सफलता प्राप्त नहीं होती है। इसके साथ राहु-केतु भी बुरा प्रभाव डालते हैं। पिता-पुत्र में अक्सर वाद-विवाद होता रहता है। परिवार में भी अशांति बनी रहती है और इसी वजह से व्यक्ति को मानसिक तनाव झेलना पड़ता है। साढ़ेसाती और ढैय्या के समय इस प्रकार की परेशानियां और अधिक बढ़ जाती हैं।
शनिदेव के बुरे प्रभावों से निजात पाने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। ज्योतिष के अनुसार शनिवार शनिदेव की आराधना के लिए खास दिन माना गया है। इस दिन शनि के निमित्त पूजन-कर्म करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। शनिवार को स्नान के संबंध में खास नियम बताया गया है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद पूरे शरीर पर तेल लगाएं। तेल की मालिश करें। इसके बाद नहाने के पानी में काला तिल मिलाकर स्नान करें।
स्नान के बाद एक कटोरी में तेल लेकर उसमें अपना चेहरा देखें और फिर यह तेल शनिदेव को अर्पित कर दें या किसी ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान कर दें। ऐसा करने पर कुछ ही दिनों में लाभ प्राप्त होने लगेगा। धन संबंधी परेशानियां दूर हो जाएंगी। इसके साथ ही घर-परिवार की समस्याओं से भी आजादी मिल जाएगी।
नोटों से पर्स भरा रखना हो तो ये चीजें तुरंत हटा दे, क्योंकि
रुपए या नोटों को सुरक्षित और व्यवस्थित रखने का कार्य हमारे पर्स बखूबी निभाते हें। हर परिस्थिति में आपके नोट पर्स में सही ढंग से रखे रहते हैं। जिससे उनके कटने या फटने का डर नहीं रहता। पर्स में पैसा रखा जाता है अत: इस संबंध में वास्तु द्वारा कई महत्वपूर्ण टिप्स दी गई हैं। जिन्हें अपनाने पर व्यक्ति को भी धन की कमी का एहसास ही नहीं होता है।
हमारे जीवन से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातों का संबंध वास्तु से है। वास्तु शास्त्र हमारे आसपास फैली सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के सिद्धांतों पर कार्य करता है। जो वस्तु नकारात्मक ऊर्जा फैलाती हैं उन्हें हमारे आसपास से हटा देना चाहिए। क्योंकि इनसे हमारे सुख और कमाई पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आय बढ़ाने या फिजूल खर्चों में कमी करने के लिए पर्स का वास्तु भी ठीक करने की आवश्यकता होती है। पर्स में सिक्के और नोट दोनों को ही अलग-अलग स्थानों पर रखना चाहिए। इसके अलावा पर्स में मृत व्यक्तियों के चित्र रखना भी शुभ नहीं माना जाता है। अत: इस प्रकार के चित्रों को भी पर्स में नोटों के साथ नहीं रखें। पर्स में संत-महात्मा के चित्र रखे जा सकते हैं। यदि कोई संत या महात्मा देह त्याग चुके हैं तब भी उनके चित्र या फोटो पर्स रखे जा सकते हैं क्योंकि शास्त्रों के अनुसार देह त्यागने के बाद भी संत-महात्माओं को मृत नहीं माना जाता है। कुछ लोग पर्स में ही चाबियां भी रखते हैं, चाबियां रखना भी अशुभ ही माना जाता है। इन्हें भी रुपए-पैसों से अलग ही रखना शुभ रहता है। पर्स में नोट या सिक्कों के साथ खाने की चीजें भी नहीं रखना चाहिए।
वास्तु के अनुसार पर्स में ऐसे वस्तुएं हरगिज न रखें जो नकारात्मक ऊर्जा को संचारित करती हैं। पर्स में किसी भी प्रकार के बिल या भुगतान से संबंधित कागज नहीं रखने चाहिए। इसके लिए पर्स में किसी भी प्रकार की अपवित्र वस्तु भी न रखें। जो वस्तुएं फिजूल हैं, जिनका कोई उपयोग नहीं है उन वस्तुएं तुरंत ही पर्स से बाहर कर दें। इनके अतिरिक्त पर्स में धार्मिक और पवित्र वस्तुएं रखें, जिनसे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और जिन्हें देखकर हमारा मन प्रसन्न होता है।
जो करते हैं ये 4 काम, उनके पीछे पड़ जाती हैं बुरी ताकतें क्योंकि...
भूत या बुरी ताकत या बुरी शक्ति ऐसे शब्द है जिसे सुनते ही काफी लोगों को डर लगता है। भूत-प्रेत, बुरी शक्तियां होती हैं या नहीं, इस संबंध में सभी लोगों के अलग-अलग विचार हैं। कुछ लोगों के अनुसार भूत-प्रेत आदि सब अंधविश्वास की बातें हैं तो कुछ लोग मानते हैं कि भूत आदि होते हैं।
कभी-कभी कुछ लोगों द्वारा अजीब-अजीब से हरकतें की जाती हैं जो कि कोई सामान्य इंसान नहीं कर सकता। इन हरकतों को देखकर भूत में विश्वास रखने वाले लोग मानते हैं कि उस व्यक्ति को हवा लग गई या कोई भूत बाधा हो गई है या ऐसे लोगों पर बुरी शक्तियों का प्रभाव हो गया है।
भूत लगने का अर्थ है कि किसी मृत व्यक्ति की आत्मा का जीवित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाना। इन बातों पर विश्वास रखने वाले लोगों के लिए जब कोई बुरी आत्मा जीवित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाती है तो वह सामान्य इंसानों से एकदम अलग हो जाता है। जिसका इलाज पूजा-पाठ, टोने-टोटकों आदि से करने का प्रयास किया जाता है। वहीं कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं और वे आधुनिक दवाइयों का सहारा लेते हैं।
भूत किन लोगों को अपने प्रभाव में लेते हैं? इस संबंध में विद्वानों द्वारा कुछ बातें बताई गई हैं:
- भूत के प्रभाव में वे लोग आते हैं जो प्रतिदिन साफ-सफाई से नहीं रहते।
- सुबह-शाम दांतों की सफाई नहीं करते, झूठे मुंह सोते हैं।
- स्नान नहीं करते, गंदे वस्त्र पहनते हैं।
- पूजन-पाठनादि कार्य नहीं करते और अनियमित दिनचर्या का पालन करते हुए जीवनयापन करते हैं।
अधार्मिक कर्मों में लिप्त लोगों पर ऐसी शक्तियों का प्रभाव बहुत ही जल्द पड़ता है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि भूत-प्रेत नहीं होते हैं, वह लोग मानसिक उंमाद का शिकार होते हैं, उसे ही शरीर में भूत का आना मान लिया जाता है।
शांति में भी सौंदर्य छुपा होता है। सुंदरता की भांति शांति के संपर्क में आते ही मन को सुख व सुकून प्राप्त होता है। शांति मन की चंचलता में ठहराव लाती है। जिससे विचार और कर्म नई ऊर्जा व उमंग से भर जाते हैं। अच्छे-बुरे के बीच फर्क को समझने की विचार शक्ति शांति से संभव है। व्यावहारिक रूप से भी शांत स्थान, वातावरण हो या सहज व संयमित इंसान का साथ मनोबल व आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला होता है।
हिन्दू धर्मगंथ श्रीमद्भगवद्गीता में भी शांत व सहज रहकर सफलता तक का सफर तय करने के बेहतर सूत्र मिलते हैं। अगर आप भी अशांत स्वभाव व व्यवहार के कारण मिले असहयोग, दुर्भाव, उपेक्षा से बार-बार असफलता का सामना कर रहे हैं, तो यहां बताई एक अहम बात पर गौर करें -
लिखा गया है कि -
मुक्तसङ्गोनहंवादी धृत्युत्साहसमन्वित:।
सिद्धयसिद्धयोनिर्विकार: कर्ता सात्विक उच्यते।।
गीता के इस श्लोक में जीवन में सात्विक ता सरल शब्दों में कहें तो कर्म, विचार, स्वभाव में सरलता, पवित्रा, सहजता और शांति को उतारने की अहमियत बताई गई है। अर्थ के मुताबिक जिस इंसान में 4 बातें हो, वह सात्विक माना गया है। इन बातों की जीवन में सफलता में निर्णायक भूमिका होती है। ये हैं -
- संगरहित कर्ता, यानी स्वयं के पुरुषार्थ, गुण व शक्तियों पर विश्वास करने वाला, अपेक्षारहित इंसान। अपेक्षा व उम्मीदें मन को कमजोर कर अशांत करती है।
- अहंकार के बोल न बोलने वाला, यानी जो विनम्र रहे व बोल-बोलकर अपनी श्रेष्ठता का बखान न करता रहे या दूसरों को कमतर समझ उपेक्षा न करे। वहीं अहंकारी स्वभाव सबल होने पर भी अशांति का कारण बनता है।
- उत्साह से भरा, यानी अपने कार्य व लक्ष्य के प्रति कभी भी उदासीन न रहे। हमेशा उसको पाने की चेष्टा करता रहे। इसके विपरीत निराशा इंसान को अशांत व तनावग्रस्त रखती है।
- कार्य में सफलता पर ज्यादा हर्ष या असफलता पर शोक में न डूबने वाला, यानी हर स्थिति में संतुलित, संयमित रहने वाला इंसान। वहीं सफलता का ज्यादा मद या नाकामी पर हताशा होना जीवन की गति में बड़ी बाधा बन सकता है।
क्या सचमुच शरद पूर्णिमा पर अमृत बरसता है?
हिंदू पंचांग के अनुसार पूरे वर्ष में बारह पूर्णिमा आती हैं। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा का अनुपम सौंदर्य देखते ही बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूर्ण चंद्रमा के कारण वर्ष में आने वाली सभी 12 पूर्णिमा पर्व के समान ही हैं लेकिन इन सभी में आश्विन मास में आने वाली पूर्णिमा सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। यह पूर्णिमा शरद ऋतु में आती है इसलिए इसे शरद पूर्णिमा भी कहते हैं। शरद ऋतु की इस पूर्णिमा को पूर्ण चंद्र अश्विनी नक्षत्र से संयोग करता है। अश्विनी जो नक्षत्र क्रम में पहला है और जिसके स्वामी अश्विनीकुमार है।
कथा है च्यवन ऋषि को आरोग्य का पाठ और औषधि का ज्ञान अश्विनीकुमारों ने ही दिया था। यही ज्ञान आज हजारों वर्ष बाद भी परंपरा से हमारे पास धरोहर के रूप में संचित है। अश्विनीकुमार आरोग्य के दाता हैं और पूर्ण चंद्रमा अमृत का स्रोत। यही कारण है कि ऐसा माना जाता है कि इस पूर्णिमा को आसमान से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि को घरों की छतों पर खीर आदि भोज्य पदार्थ रखने का प्रचलन भी है। जिसका सेवन बाद में किया जाता है। मान्यता यह है कि ऐसा करने से चंद्रमा की अमृत की बूंदें भोजन में आ जाती हैं जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां आदि दूर हो जाती हैं।
कैसी भी समस्या हो: ऐसे हनुमानजी को चने और गुड़ चढ़ाएं, क्योंकि...
यदि आपके जीवन में कठिन समय चल रहा है? यदि आपके कार्य पूर्ण नहीं हो पा रहे हैं? यदि आपको कड़ी मेहनत के बाद भी उचित परिणाम प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं? यदि आपके घर-परिवार में तनाव चल रहा है? यदि आपकी पैसों की तंगी दूर नहीं हो पा रही है तो हनुमानजी की पूजा सर्वश्रेष्ठ उपाय है। हनुमानजी की पूजा शीघ्र मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी गई है।
यदि आप कड़ी मेहनत कर रहे हैं और फिर भी उचित परिणाम नहीं मिल रहे हैं या इसी प्रकार की अन्य समस्याएं चल रही हैं तो हर मंगलवार और शनिवार को हनुमानजी को गुड़ और चने का भोग लगाएं। ध्यान रहें हनुमानजी का मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। ऐसे हनुमानजी को गुड़ चने का भोग लगाएं जिनका मुख दक्षिण दिशा की ओर हो। दक्षिण मुखी हनुमानजी को मंगलवार और शनिवार के दिन गुड़-चने का प्रसाद चढ़ाएं तथा दीप-अगरबत्ती लगाएं। इसके बाद हनुमान चालिसा का पाठ करें। यदि संभव हो तो सुंदरकांड का पाठ करें।
इस प्रकार प्रति मंगलवार और शनिवार को हनुमानजी की आराधना करने से जल्द ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे। बिगड़े कार्य बनना शुरू हो जाएंगे। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि दोष हो तो हनुमानजी की पूजा से श्रेष्ठ फल प्राप्त होते हैं। इस दौरान सभी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से खुद को दूर रखें।
पति-पत्नी ऐसे गद्दे पर सोएंगे तो होगा सब अच्छा ही अच्छा, क्योंकि...
घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे इसके लिए शास्त्रों में कई परंपराएं और शकुन-अपशकुन बताए गए हैं। इसके अलावा घर में रखी वस्तुओं की स्थिति का भी हमारे जीवन में गहरा प्रभाव रहता है। घर में किसी प्रकार की समस्या न रहे इसके लिए जरूरी है घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे और नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय न हो सके।
वास्तु और धर्म शास्त्रों के अनुसार वातावरण में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की ऊर्जा सक्रिय रहती है। यदि नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय हो जाए तो जीवन में कई प्रकार की समस्याएं प्रारंभ हो जाती हैं। इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए जरूरी है कि घर में ऐसे वस्तुएं न रखें जो नेगेटिव एनर्जी को बढ़ावा देती है।
चैन की नींद के लिए जरूरी है आरामदायक गद्दे का होना। पति-पत्नी के लिए कैसा गद्दा होना चाहिए... इस संबंध में वास्तु में बताया गया है कि विवाहित दंपत्ति के लिए जरूरी है कि उनके पलंग पर गद्दा एक ही हो। अक्सर ऐसा होता है कि यदि पलंग बड़ा है तो उस पर दो गद्दा बिछाए जाते हैं। वास्तु के अनुसार इस प्रकार पति-पत्नी के लिए दो गद्दों पर सोना अशुभ माना जाता है। इस प्रकार दो अलग-अलग गद्दों पर सोने से नकारात्मक ऊर्जा को बल मिलता है और पति-पत्नी के लिए यह बात नकारात्मक मानी जाती है। इसी वजह से पलंग पर एक ही गद्दा होना शुभ माना जाता है।
पलंग पर दो गद्दे होते है तो पति-पत्नी के बीच तनाव पैदा होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं। गद्दों के बीच दूरी दंपत्ति के रिश्ते में भी दूर बढ़ा सकती है। इसी वजह से वास्तु शास्त्रों अनुसार पति-पत्नी को एक ही गद्दे का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। पलंग चाहे जितना बड़ा हो उसी की लंबाई और चौड़ाई के अनुसार एक ही गद्दा बनवाया जा सकता है। इस टिप्स को अपनाने से पति-पत्नी के मध्य परस्पर प्रेम बना रहेगा और दोनों के वैवाहिक जीवन में सब अच्छा ही अच्छा होगा।
जब कोई बच्चा ज्यादा जिद्दी और गुस्से वाला हो जाए तो क्या और क्यों करें?
सभी माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना चाहते हैं, अपने बच्चों की सभी इच्छाएं पूरी करना चाहते हैं, ऐसे में कई बार बच्चे जिद्दी भी हो जाते हैं। जैसे-जैसे बच्चा बड़े होते जाता है उसकी जिद भी बढ़ती जाती है जो कि कई परेशानियों का कारण भी बन सकती है। वैसे इससे बचने के लिए कई उपाय बताए जाते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार भी एक सटीक उपाय बताया गया है।
कई बार बच्चे छोटी-छोटी बातों को मनवाने के लिए जिद करते हैं और यही आदत धीरे-धीरे बड़ी होती जाती है। ऐसे में अक्सर माता-पिता को काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है। बच्चों को अच्छे से समझने और समझाने से उनकी जिद कम हो सकती है। शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि अगर कोई बच्चा ज्यादा जिद्दी हो, चिडचिड़ा हो, क्रोध अधिक करता हो, माता-पिता या अन्य बड़े लोगों की बातें नहीं सुनता हो, जमीन पर लौट लगाता हो तो उसको हनुमानजी के बांए पैर का सिंदूर हर मंगलवार और शनिवार को लगाएं। सिंदूर मस्तक या माथे पर लगाएं।
ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी के बाएं पैर का सिंदूर माथे पर लगाने से सद्बुद्धि प्राप्त होती है। हनुमानजी को बल और बुद्धि का दाता माना जाता है, इसी वजह से यह उपाय अपनाने वाले लोगों को काफी लाभ प्राप्त होते हैं। जो लोग अधिक जिद करते हैं या गुस्सा करते हैं उनके लिए यह उपाय काफी फायदेमंद है। इससे उनका गुस्सा तो कम होगा ही पुण्य लाभ भी प्राप्त होगा।
क्यों करें कार्तिक में नदी स्नान? यह है कारण
हमारे धर्मशास्त्रों में अशांति, पाप आदि से बचने के कई उपाय बताए गए हैं। उन्हीं में से कार्तिक मास में किए गए स्नान-व्रत भी एक है। स्कंद पुराण आदि अनेक धर्म ग्रंथों में कार्तिकमास के स्नान-व्रत की महिमा बताई गई है। इस बार कार्तिक स्नान का प्रारंभ 12 अक्टूबर, बुधवार से हो रहा है। कार्तिक में पूरे माह ब्रह्ममुहूर्त में किसी नदी, तालाब, नहर या पोखर में स्नानकर भगवान की पूजा किए जाने का विधान है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कलियुग में कार्तिक मास में किए गए व्रत, स्नान व तप को मोक्ष प्राप्ति का बताया गया है।
स्कंद पुराण में उल्लेखित श्लोक के अनुसार-
न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्।
न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगा समम्।।
अर्थात कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नही, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। कार्तिक मास में स्नान का धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है। वर्षा ऋतु के बाद जब आसमान साफ होता है और सूर्य की किरणें सीधे पृथ्वी तक आती है ऐसे में प्रकृति का वातावरण शरीर के अनुकूल होता है। प्रात:काल उठकर नदी में स्नान करने से ताजी हवा शरीर में स्फूर्ति का संचार करती है। इस प्रकार के वातावरण से कई शारीरिक बीमारियां स्वत: ही समाप्त हो जाती है।
अगर चाहते हैं भाग्यशाली और तेज दिमाग वाले हों आपके बच्चे तो....
भाग्यशाली, स्वस्थ और तेज दिमाग वाली संतान हर दपंति की चाहत होती है। हमारे शास्त्रों में भी कुछ ऐसे नियम बनाएं गए हैं जिनका पालन करके आप गुणी संतान प्राप्त कर सकते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार गरुड़ जी ने पूछा भगवान अगर कोई माता-पिता चाहते हैं कि उनके घर पुण्यात्मा का जन्म हो? तब भगवान बोले इसके लिए कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है। ऋतुकाल में चार दिन तक स्त्री का त्याग करें, इन्द्रियों से प्राप्त पाप जब तक उसके शरीर में रहे तब तक उसको न देखें।
चौथे दिन स्त्रियां सचेल स्नान कर शुद्ध होती हैं।
सात दिन में पितृदेव और व्रत करने योग्य होती है। सात दिन के मध्य में जो गर्भाधान होता है वह अच्छा नहीं होता। आठ रात्रि के बाद ही अच्छे पुत्रों की उत्पति होती है। युग्म दिन में पुत्र और अयुग्म में कन्या होती है। इसलिए सात दिन छोड़ युग्मस्थिति में ही गर्भाधान करें। सोलह रात्रि तक स्त्रियों का सामान्यत: ऋतुकाल रहता है। उसमें भी चौदहवी रात्रि में जो गर्भाधान होता है। वह गुणवान, भाग्यवान और धर्मज्ञ्बुद्धिमान सुपुत्र होता है। वह रात्रि अभागे पुरुषों को कभी नहीं मिलती। कड़वी, खारी, तीखी, उष्ण वस्तु को त्यागकर पांच दिन तक स्त्रियों को मीठा भोजन करना चाहिए। स्त्री का उदर औषधी पात्र के समान है। बीज, रूप-पुरूष का वीर्य अमृतरूप है। पान, पुष्प और चंदन लगाकर साथ ही अच्छे वस्त्र धारण कर स्त्री के समीप जाएं। गर्भाधान के समय मनुष्य के मन की जो प्रवृति होती है। उसी प्रवृति की संतान उत्पन्न होती है। तब पुण्यात्मा का जन्म होता है।
बार-बार बिगड़ जाते हैं काम तो एक नारियल पानी में बहा दें, क्योंकि...
क्या आपके कार्य बार-बार बिगड़ जाते हैं? किसी भी कार्य की सफलता में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है? क्या अंतिम पलों में आपके हाथ से सफलता हाथ निकल जाती है? यदि आपको लगता है आपका भाग्य आपका साथ नहीं दे रहा है तो शास्त्रों के अनुसार कई उपाय बताए गए हैं।
शास्त्रों के अनुसार जब देवी-देवता आपसे रुष्ट या असप्रसन्न होते हैं तब आपको कार्यों में सफलता प्राप्त नहीं हो पाती। इसके अलावा कुंडली में यदि कोई ग्रह दोष हो तब भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए कई उपाय बताए गए हैं, जो कि निश्चित रूप से लाभदायक ही हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय ये है कि एक नारियल पानी में बहा दिया जाए।
नारियल पानी में कैसे बहना है? इस संबंध में ध्यान रखें ये बातें-
किसी भी पवित्र बहती नदी के किनारे एक नारियल लेकर जाएं। किनारे पर पहुंचकर अपना नाम और गौत्र बोलें। इसके साथ ही प्रार्थना करें कि आपकी समस्याएं दूर हो जाएं। अब नारियल को नदी में प्रवाहित कर दें। इसके तुरंत बाद वहां से घर लौट आएं। नदी किनारे से लौटते समय ध्यान रखें पीछे पलटकर न देखें। अन्यथा उपाय निष्फल हो जाएगा।
इसप्रकार नारियल नदी में बहाने से निश्चित ही आपको सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे। बिगड़े कार्य बनने लगेंगे। भाग्य का साथ मिलने लगेगा, दुर्भाग्य का नाश होगा। इसके अलावा ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार अधार्मिक कृत्यों से खुद को दूर रखें और किसी का मन न दुखाएं।
जब कोई गरीब या भिखारी आपको खाना खाते देखे तो क्या और क्यों करें?
जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताएं हैं, रोटी, कपड़ा और मकान। इन्हें पूरी करने के लिए ही सभी दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन कुछ लोग इन तीनों जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से काफी लोग जो कुछ भी नहीं कर पाते हैं वे भीख मांगना शुरू कर देते हैं। आज लगभग सभी सार्वजनिक स्थानों पर बड़ी संख्या में भिखारी मौजूद रहते हैं।
अक्सर ऐसा होता है कि आप किसी सार्वजनिक स्थान पर कुछ खा रहे होते हैं ठीक उसी समय कोई भिखारी आपके खाने को देखता रहता है। ऐसे में काफी लोग उसे अनदेखा करके खाना खाते रहते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार ऐसी परिस्थिति में भिखारी को अनदेखा नहीं करना चाहिए। बल्कि हम जो भी खा रहे हो उसमें कुछ अंश निकालकर उसे दे देना चाहिए।
यदि कोई भिखारी लगातार आपके खाने की ओर नजर लगाए खड़ा रहता है तो इससे आपको उसकी बुरी नजर लग सकती है। जिससे खाना ठीक से पचता नहीं है और पेट संबंधी बीमारी होने की संभावना रहती है। इससे बचने के लिए जब भी किसी सार्वजनिक स्थान कुछ खाए तो ध्यान रखें कि कोई भिखारी वहां न हो, या आप पर उसकी सीधी नजर न पड़े। यदि कोई भिक्षुक आपके सामने आ भी जाए तो अपने खाने में से उसे कुछ अंश अवश्य दे देना चाहिए। शास्त्रों में भिक्षुक का भी काफी महत्व बताया गया है। इन्हें खाना दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं मानवता का भी धर्म बताया गया है किसी भुखे व्यक्ति को खाना खिलाना चाहिए।
घर में श्रीराम दरबार का फोटो लगाने से सभी अच्छा सोचने लगते हैं, क्योंकि
घर-परिवार में अक्सर छोटी-छोटी बातों पर बड़े विवाद हो जाते हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। कभी-कभी एक-दूसरे सदस्य के प्रति जलन की भावना पैदा हो जाती है और वहीं से मनमुटाव बढऩे लगता है। जहां संयुक्त परिवार रहते हैं वहां अक्सर सास-बहु, देवरानी-जेठानी और भाईयों के बीच तू-तू, मैं-मैं होती रहती है। इस प्रकार की परिस्थितियां काफी परिवारों में बनती है।
शास्त्रों में परिवार से इस प्रकार की मानसिकता दूर करने के लिए कई उपाय, छोटी-छोटी परंपराएं बताई गई हैं। इनका पालन करने पर परिवार के सभी सदस्यों का आपसी प्रेम बना रहता है और किसी प्रकार का क्लेश नहीं उपजता। परिवार के सभी सदस्यों में परस्पर प्रेम और स्नेह बना रहे इसके लिए घर में श्रीराम दरबार का फोटो लगाना चाहिए।
श्रीराम दरबार का प्रतिदिन दर्शन करें। यह ऐसे स्थान पर लगाना चाहिए जहां सभी सदस्य आसानी से भगवान के दर्शन कर सके। श्रीराम को परिवार का देवता माना गया है। श्रीराम के पूजन और दर्शन मात्र से परिवार के बीच के सभी मनमुटाव और वाद-विवाद समाप्त हो जाते हैं।
श्रीराम के दर्शन से परिवार के सभी सदस्यों की सोच सकारात्मक बनेगी और वे सभी एक-दूसरे के लिए अच्छा ही सोचेंगे। प्रतिदिन दर्शन करने से परिवार पर किसी प्रकार की कोई विपदा भी नहीं आएगी। घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनी रहेगी और पैसों की तंगी नहीं आएगी।
मालामाल बनना है तो महालक्ष्मी के साथ इन दोनों को भी पूजें, क्योंकि...
दीपावली पर धन की देवी महालक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ श्री गणेश और देवी सरस्वती को भी पूजने का विधान है। महालक्ष्मी के आशीर्वाद से भक्त को धन, यश, मान-सम्मान प्राप्त होता है। इस दिन खासतौर पर लक्ष्मी पूजा का महत्व है। मां लक्ष्मी के साथ गणेशजी और सरस्वतीजी की पूजा करने पीछे धार्मिक कारण है।
लक्ष्मी धन की देवी हैं तो श्री गणेश रिद्धि और सिद्धि के देवता हैं। वहीं मां सरस्वति बुद्धि अथवा विद्या की देवी हैं। लक्ष्मी की कृपा मतलब धन की प्राप्ति तभी हो सकती है जब श्रीगणेश और सरस्वति की कृपा भी प्राप्त हो। क्योंकि धन कमाने के लिए बुद्धि की भी आवश्यकता होती है। प्रखर बुद्धि वाले व्यक्ति ही अधिक धन प्राप्त कर सकते हैं। अच्छी विद्या के लिए मां सरस्वति की आराधना की जाती है। इन्हीं के आशीर्वाद से हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है और इस ज्ञान से ही सभी सुख-समृद्धि और मान-सम्मान प्राप्त होता है।
श्री गणेश रिद्धि और सिद्धि के देवता माने जाते हैं। इनकी कृपा से ही हर व्यक्ति के घर में बरकत अर्थात् समृद्धि हमेशा बनी रहती है। हमारे जीवन कभी धन अभाव न हो और सभी सुख प्राप्त होते रहे, इसके लिए श्री गणेश की पूजा की जानी चाहिए। इसी वजह से महालक्ष्मी के साथ-साथ श्री गणेश और सरस्वतिजी की पूजा की जाती है।
कुंवारी लड़कियों की एक चिंता आज हो जाएगी दूर, क्योंकि...
किसी भी अविवाहित कन्या की इच्छा होती है कि उसका विवाह किसी सुयोग्य वर के साथ हो। इसके लिए काफी कन्याएं हमेशा ही भगवान से प्रार्थना भी करती रहती हैं। सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए करवा चौथ का दिन सबसे अच्छा उपाय है। इस लिए सभी सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन के लिए कामना करती हैं वहीं कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर प्राप्ति के लिए यह व्रत कर सकती हैं।
करवा चौथ की प्राचीन परंपरा...
करवा चौथ पर पति के लिए व्रत किया जाता है, यह परंपरा अति प्राचीन काल से ही चली आ रही है। करवा चौथ पति एवं पत्नी दोनों के लिए नवप्रणय, प्रेरम, त्याग की चेतना लेकर आता हैं। इस दिन चंद्रमा का पूजन होता हैं। इसके अलावा सभी स्त्रियों को शिव-पार्वती एवं गणेश-कार्तिकेय का पूजन भी करना चाहिए। इससे अंखड़ सौभाग्य एवं संतान प्राप्ति होती हैं।
कुंआरी कन्याओं भी करें आज व्रत-
जिन कन्याओं के विवाह में बाधाएं आ रही हैं, अच्छा वर प्राप्त नहीं हो रहा हो तो वह भी आज व्रत करके चद्रंमा का दर्शन करें एवं गौरी का पूजन भगवान शंकर के साथ करें। इस प्रकार व्रत और पूजन करने के पश्चात निश्चित रूप से शुभ लक्षणों वाला वर प्राप्त हो जाएगा। ऐसी संभावनाएं बनना शुरू हो जाएंगी और इस व्रत से कन्याओं की सुयोग्य वर संबंधी चिंताएं समाप्त हो जाएंगी।
ऐसे समय चूहा दिख जाए तो क्या समझना चाहिए?
भारतीय संस्कृति और परंपराएं अति प्राचीन बताई गई हैं। सभी परंपराएं किसी खास उद्देश्य के साथ हमारे धर्म से जोड़ी गई हैं। कुछ रीति-रिवाज, शकुन-अपशकुन से संबंधित हैं। सभी के घरों के आसपास सामान्यत: चूहा अक्सर दिखाई देता है। चूहा वैसे तो सामान्य जीव है लेकिन इसके दिखाई देने के समय के अनुसार भी भविष्य में होने वाली घटनाओं की जानकारी प्राप्त हो जाती है। चूहे का भी शकुन और अपशकुन से गहरा संबंध है।
क्या हैं शकुन और अपशकुन?
शास्त्रों के अनुसार किसी भी कार्य की शुरूआत करने से पूर्व कुछ छोटी-छोटी सामान्य या असामान्य सी घटनाएं होती हैं। इन घटनाओं का भविष्य से गहरा संबंध बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इन घटनाओं का अध्ययन करने पर आने वाले कल में होने वाली शुभ-अशुभ बातों का पता लगाया जा सकता है। भविष्य की इशारा करने वाली इन छोटी-छोटी घटनाओं को ही शकुन या अपशकुन कहते हैं।
यदि आप किसी खास कार्य के लिए घर से निकल रहे हैं और ठीक उसी समय आपके सामने से चूहा निकल जाए, चूहा आपका रास्ता काट दे तो इसे शुभ संकेत नहीं समझा जाता है। चूहा अंधेरे में रहने वाला जीव है इसी वजह से इसे अंधेरे का प्रतीक समझा जाता है। अंधेरे में नकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रिय रहती है। किसी कार्य के लिए निकलते समय अंधेरे के प्रतीक चूहे का दिखना यही संकेत देता है कि कार्य में बाधाएं आ सकती हैं। अत: घर से निकलने से पूर्व पानी पीएं और मीठा दही खाकर ही निकलें। इसके साथ ही अपने इष्टदेव का स्मरण करें। इससे बुरा समय टल जाएगा। कार्य करते समय पूरी सावधानी रखें।
घर में कहां कैसा कलर होना चाहिए और क्यों...
घर, जहां आकर हमारा मन बहुत सी परेशानियां होते हुए भी शांत हो जाता है। घर में हमें असीम सुख की प्राप्ति होती हैं। घर का वातावरण ही हमारे मन और विचारों को प्रभावित करता है। जैसा हमारे घर का वातावरण होगा वैसे ही हमारे विचार होंगे। कई घरों में लड़ाई-झगड़े, क्लेश आदि होता है, कई बार इन समस्याओं की वजह वास्तुदोष भी होता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की हर वस्तु हमें पूरी तरह प्रभावित करती है। घर की दिवारों का रंग भी हमारे विचारों और कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है। हमारे घर का जैसा रंग होता है, उसी रंग के स्वभाव जैसा हमारा स्वभाव भी हो जाता है। इसी वजह से घर की दिवारों पर वास्तु के अनुसार बताए गए रंग ही रखना चाहिए।
रंगों का भी रिश्तों पर खासा असर होता है। घर की दीवारों के लिए हल्का गुलाबी, हल्का नीला, ब्राउनिश ग्रे या ग्रेइश येलो रंग का ही प्रयोग करें। ये रंग शांत और प्यार को बढ़ाने वाले हैं।
कहां, कैसे रंग करें-
- ड्राइंग रूम में सफेद, पिंक, क्रीम या ब्राऊन रंग श्रेष्ठ रहता है।
- बेडरूम में आसमानी, पिंक या हल्का हरा रंग करवाना चाहिए।
- डायनिंग रूम में पिंक, आसमानी या हल्का हरा रंग शुभ फल देता है।
- कीचन में सफेद रंग सबसे अच्छा रहता है।
- स्टडी रूम में पिंक, ब्राऊन, आसमानी या हल्का हरा रंग रखें।
- लेटबाथ में सफेद या पिंक रंग रखना चाहिए।
हनुमानजी से कोई मुश्किल काम कराना हो तो क्या और क्यों करें?
कलयुग में बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं हनुमानजी। बजरंग बली श्रीराम के अनन्य भक्त हैं और इनके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है। हमारे जीवन की सभी समस्याओं का निराकरण हनुमानजी की भक्ति से हो जाता है।
जीवन में जब भी कोई अत्यधिक मुश्किल प्रतीत हो रहा हो या लाख कोशिशों के बाद भी वह पूर्ण नहीं हो पा रहा हो या बार-बार बाधाएं उत्पन्न हो रही हों तब हनुमानजी को प्रसन्न कर उन रुकावटों को दूर किया जा सकता है।
वैसे तो बजरंग बली की कृपा प्राप्ति के लिए कई उपाय बताए गए हैं लेकिन सबसे सटीक उपाय है हनुमानजी के सामने रामायण का पाठ करना। जब भी हम किसी भयंकर मुसीबत में फंस जाए और कोई रास्ता न दिखाई दे तो किसी भी हनुमान मंदिर में जाकर वहां रामायण या श्रीरामचरित मानस का पाठ करना चाहिए।
श्रीराम के स्तुति गान से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं और भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यदि संपूर्ण रामायण का पाठ करना संभव न हो तो राम नाम का जप भी किया जा सकता है। बजरंग बली के समक्ष राम नाम का जप करने से भी उनकी कृपा प्राप्त हो जाती है। पवनपुत्र बजरंग बली की कृपा प्राप्ति के बाद कोई भी कार्य मुश्किल नहीं रह जाता है। इस उपाय के साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आपका आचरण पूरी तरह धार्मिक बना रहे। सभी प्रकार के अधार्मिक कार्यों से खुद को दूर रखें।
महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं इन दो सफेद चीजों से, क्योंकि...
बढ़ती महंगाई के प्रभाव से निजात पाने का एकमात्र उपाय है कि हमारी कमाई में बढ़ोतरी हो। आय बढ़ाने के लिए हम सभी कई प्रकार के प्रयास करते हैं लेकिन कुछ ही लोग उचित पारिश्रमिक प्राप्त कर पाते हैं। ज्योतिष के अनुसार कुछ ग्रह दोषों के चलते व्यक्ति को मेहनत का उचित पारिश्रमिक प्राप्त नहीं हो पाता है।
कुंडली के अशुभ ग्रहों का उपचार करने के अतिरिक्त कुछ अन्य उपाय भी बताए गए हैं जिन्हें अपनाने से हमारी धन संबंधी सभी परेशानियों का निवारण हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार धन प्राप्त करने के लिए लक्ष्मीजी की आराधना ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है। महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मीठा दूध, सफेद मिठाई, लाल वस्त्र अर्पित करने चाहिए। किसी भी लक्ष्मी मंदिर जाकर मां लक्ष्मी को मीठे दूध की धारा से स्नान कराएं तथा मीठा सफेद प्रसाद, लाल वस्त्र अर्पित करें। ऐसा करने से धन में वृद्धि होती है। यदि आप लक्ष्मी मंदिर जाने में असमर्थ हैं तो घर पर देवी लक्ष्मी की पीतल की मूर्ति लेकर आएं और यह प्रयोग करें। ऐसा सभी श्रेष्ठ मुहूर्त में किया जाना चाहिए।
जब पैसा आपके यहां आए तो घर के बाहर होना चाहिए ये, क्योंकि...
धन या पैसों का पर्व है दीपावली, इस दिन धन की देवी महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होने पर हमारी सभी समस्याएं स्वत: ही नष्ट हो जाती हैं।
पैसा या धन को लक्ष्मी भी कहा जाता है। जब भी धन रूपी महालक्ष्मी आपके घर आए तब आपके यहां रंगोली बनी होना शुभ रहता है। प्राचीन काल से ही घर के बाहर रंगोली बनाने की प्रथा चली आ रही है। इसके प्रथा के पीछे कई कारण धार्मिक कारण हैं। ऐसी मान्यता है कि देवी-देवताओं के स्वागत लिए रंगोली बनाई जाती है।
रंगोली अर्थात विभिन्न रंगों द्वारा उकेरी गई आकृति। घरों के बाहर हर मांगलिक कार्य पर विभिन्न रंगों से सुंदर आकृतियां बनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि दीपावली के समय देवी महालक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और जिस घर के बाहर उनके स्वागत के लिए सुंदर रंगोली बनी होती है वे वहां अवश्य ही जाती हैं।
साथ ही रंगोली बनाने से हमारे घर के आसपास सक्रिय नकारात्मक ऊर्जा अपना प्रभाव नहीं दिखा पाती है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। विभिन्न रंगों के संयोग से हमारे घरों की सुंदरता भी बढ़ती है और ऐसे घरों पर सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा होती है।
ध्यान रखें कभी भी झाड़ू पर पैर लगा तो बढ़ेगी गरीबी, क्योंकि...
घर में कई वस्तुएं होती हैं कुछ बहुत सामान्य रहती है। इनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। ऐसी चीजों में से एक है झाड़ू। जब भी साफ-सफाई करना हो तभी झाड़ू का काम होता है। अन्यथा इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। शास्त्रों के अनुसार झाड़ू के संबंध कई महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं।
शास्त्रों के अनुसार झाड़ू को धन की देवी महालक्ष्मी का ही प्रतीक रूप माना जाता है। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि झाड़ू ही हमारे घर से गरीबी रूपी कचरे को बाहर निकालती है और साफ-सफाई बनाए रखती है। घर यदि साफ और स्वच्छ रहेगा तो हमारे जीवन में धन संबंधी कई परेशानियां स्वत: ही दूर हो जाती हैं।
प्राचीन परंपराओं को मानने वाले लोग आज भी झाड़ू पर पैर लगने के बाद उसे प्रणाम करते हैं क्योंकि झाड़ू को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। विद्वानों के अनुसार झाड़ू पर पैर लगने से महालक्ष्मी का अनादर होता है। झाड़ू घर का कचरा बाहर करती है और कचरे को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है। जिस घर में पूरी साफ-सफाई रहती है वहां धन, संपत्ति और सुख-शांति रहती है। इसके विपरित जहां गंदगी रहती है वहां दरिद्रता का वास होता है। ऐसे घरों में रहने वाले सभी सदस्यों को कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी कारण घर को पूरी तरह साफ रखने पर जोर दिया जाता है ताकि घर की दरिद्रता दूर हो सके और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके।
घर से दरिद्रता रूपी कचरे को दूर करके झाड़ू यानि महालक्ष्मी हमें धन-धान्य, सुख-संपत्ति प्रदान करती है। जब घर में झाड़ू का कार्य न हो तब उसे ऐसे स्थान पर रखा जाता है जहां किसी की नजर न पड़े। इसके अलावा झाड़ू को अलग रखने से उस पर किसी का पैर नहीं लगेगा जिससे देवी महालक्ष्मी का निरादर नहीं होगा। यदि भुलवश झाड़ू को पैर लग जाए तो महालक्ष्मी से क्षमा की प्रार्थना कर लेना चाहिए।
लक्ष्मी क्यों करती हैं हाथी व उल्लू की सवारी?
दीपावली पर्व पर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू व हाथी को माना गया है। देवी लक्ष्मी का वाहन उल्लू व हाथी क्यों है इसका मनोवैज्ञानिक कारण इस प्रकार है-
माता लक्ष्मी का वाहन सफेद रंग का हाथी होता हैं। हाथी भी एक परिवार के साथ मिल-जुलकर रहने वाला सामाजिक एवं बुद्धिमान प्राणी होता हैं। उनके परिवार में मादाओं को प्राथमिकता दी जाती हैं तथा उनका सम्मान किया जाता हैं। हाथी हिंसक प्राणी नही होता। उसी तरह अपने परिवार वालों को एकता के साथ रखने वालों तथा अपने घर की स्त्रियों को आदर एवं सम्मान देने वालों के साथ लक्ष्मी का निवास होता है।
लक्ष्मी का वाहन उल्लू भी होता हैं। उल्लू सदा क्रियाशील होता हैं। वह अपनी उदर पूर्ति(पेट भरने के लिए) के लिए रात-दिन नही देखता व सदा कार्य करता रहता है। उसी तरह जो लगातार कर्मशील होता है। अपने कार्य को पूरी तन्मयता के साथ पूरा करता है। लक्ष्मी सदा उस पर प्रसन्न होती हैं तथा स्थायी रूप से उसके घर में निवास करती हैं।
प्रसाद खाने के चमत्कारिक तरीके से कल्याण हो जाएगा आपका, क्योंकि
हम जब भी किसी मंदिर जाते हैं वहां भगवान को प्रसाद चढ़ाते हैं, पंडित या पुजारी से प्रसाद लेते हैं फिर खाते हैं। प्रसाद खाने से पहले क्या और क्यों करना चाहिए, इस संबंध में शास्त्रों में महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं।
भगवान का प्रसाद ग्रहण करने से पहले यह बात ध्यान रखें कि जिस भगवान का वह प्रसाद है उनका एक बार स्मरण करें। भगवान का ध्यान करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करना श्रेष्ठ रहता है। इसके कई शुभ फल प्राप्त होते हैं।
प्रसाद ग्रहण करने से कई दैवीय शक्तियों की कृपा प्राप्त होती है और हमारे आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव निष्क्रीय हो जाता है। प्रसाद की शक्तियों को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए भगवान का स्मरण करना चाहिए। यदि संभव हो तो जिस भगवान का प्रसाद आप ग्रहण करने वाले हैं उनके किसी मंत्र का जप भी किया जा सकता है।
वेद-पुराण में बताया गया है कि भगवान का प्रसाद ग्रहण करने हमारे कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्यों में बढ़ोतरी होती है। इसी वजह से प्रसाद ग्रहण करते समय संबंधित भगवान का ध्यान अवश्य करें। इससे आपके सभी बिगड़े कार्य बनने लगेंगे और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी।
सच में ये दो काम करने से नहीं आती है गरीबी, क्योंकि...
पैसा या धन आज के समय में सभी लोगों की पहली आवश्यकता बन गया है। पैसों के लिए ही लोग दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं। बहुत कम लोग होते हैं जिन्हें अपनी मेहनत का उचित पारिश्रमिक प्राप्त हो जाता है। वहीं कुछ लोगों का जीवन कड़ी मेहनत करते हुए ही व्यतीत हो जाता है। पैसा प्राप्त करने के लिए जितनी मेहनत की आवश्यकता होती है उतना ही किस्मत का साथ भी चाहिए होता है।
पैसा और समृद्धि प्राप्त करने के लिए शास्त्रों में कई प्रकार की परंपराएं बताई गई हैं जिनका पालन करने पर घर में हमेशा लक्ष्मी का वास होता है। परिवार के सभी सदस्यों को धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है।
शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी की कृपा ऐसे घर पर ही रहती है जहां पूरी तरह से साफ-सफाई रहती है, पवित्रता रहती है। यदि घर में गंदगी रहती है तो निश्चित ही वहां दरिद्रता का वास हो जाता है। इससे बचने के लिए दो जरूरी कार्य बताए गए हैं। पहला काम है यदि घर में कोई टूटा-फूटा हो तो उसे तुरंत हटा दें। ऐसे सामान को सामने नहीं दिखाना चाहिए। दूसरा काम है यदि घर में कोई टेढ़े आकार का कांच, खंडित मूर्ती अथवा कोई टूटा चित्र, बंद घड़ी हो तो इन्हें भी घर में नहीं रखना चाहिए। इन्हें रखने घर में दरिद्रता बनी रहती है। ये सभी चीजें दरिद्रता की ही प्रतीक मानी जाती हैं। अत: इन्हें तुरंत हटा देना चाहिए।
ये तीन शब्द लिखना भूलें तो आपसे रूठ जाएगा पैसा, क्योंकि...
धन और वैभव का सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा। दीपावली पर मां लक्ष्मी के पूजन से वर्षभर घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दिन की गई पूजा का विशेष महत्व रहता है। अत: शास्त्रों में कुछ प्रथाएं बताई गई हैं जिनका पालन करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार दीपावली पर लक्ष्मी पूजा के दौरान हमारे घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर शुभ-लाभ और स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में ये तीनों शब्द लिखना न भूले। ऐसा माना जाता है शुभ-लाभ लिखने से घर में शुभ और लाभ बना रहता है। हर मांगलिक कार्य में स्वस्तिक बनाया जाता है, इसी के साथ शुभ-लाभ भी लिखा जाता है। सिंदूर या कुमकुम से शुभ और लाभ लिखने के पीछे ऐसी मान्यता है कि इससे महालक्ष्मी सहित श्री गणेश भी प्रसन्न होते हैं।
शास्त्रों अनुसार गणेशजी के दो पुत्र माने गए हैं, एक क्षेम अर्थात शुभ और दूसरे पुत्र का नाम है लाभ। घर के बाहर शुभ-लाभ लिखने का मतलब यही है कि हमारे घर में सुख और समृद्धि सदैव बनी रहे। ऐसी प्रार्थना ईश्वर से की जाती है। शुभ (क्षेम) लिखने का का अर्थ है कि हम प्रार्थना करते हैं कि जिन साधनों, कला या ज्ञान से धन और यश प्राप्त हो रहा है वह सदैव बना रहे।
लाभ लिखने का अर्थ है कि भगवान से हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे घर की आय अथवा धन हमेशा बढ़ता रहे। श्री गणेश की कृपा से हमारा व्यवसाय या आय प्राप्ति स्रोत सदैव बढ़ते रहे। इसके अलावा स्वतिस्त का चिन्ह श्री गणेश का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। अत: महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए घर के बाहर शुभ-लाभ लिखें और स्वस्तिक का चिन्ह अवश्य बनाएं।
स्थाई लक्ष्मी के लिए ये 10 चीजें जरूरी हैं, क्योंकि...
दीपावली-पूजन में प्रयुक्त होने वाली वस्तुएं एवं मांगलिक लक्ष्मी चिह्न सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, शांति और उल्लास लाने वाले माने जाते हैं इनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-
वंदनवार-आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे दीपावली के दिन पूर्वीद्वार पर बांधा जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी-भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं। ऐसी मान्यता है कि दीपावली की वंदनवार पूरे 31 दिनों तक बंधी रखने से घर-परिवार में एकता व शांति बनी रहती हैं।
स्वास्तिक-लोक जीवन में प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व दीवार पर स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाता है। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम इन चारों दिशाओं को दर्शाती स्वास्तिक की चार भुजाएं, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रमों का प्रतीक मानी गई हैं। यह चिह्न केसर, हल्दी, या सिंदूर से बनाया जाता है।
कौड़ी-लक्ष्मी पूजन की सजी थाली में कौड़ी रखने की प्राचीन परंपरा है, क्योंकि यह धन और श्री का पर्याय है। कौड़ी को तिजौरी में रखने से लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।
लच्छा-यह मांगलिक चिह्नï संगठन की शक्ति का प्रतीक है, जिसे पूजा के समय कलाई पर बांधा जाता है।
तिलक-पूजन के समय तिलक लगाया जाता है ताकि मस्तिष्क में बुद्धि, ज्ञान और शांति का प्रसार हो।
पान-चावल-ये भी दीप पर्व के शुभ-मांगलिक चिह्नï हैं। पान घर की शुद्धि करता है तथा चावल घर में कोई काला दाग नहीं लगने देता।
बताशे या गुड़-ये भी ज्योति पर्व के मांगलिक चिह्न हैं। लक्ष्मी-पूजन के बाद गुड़-बताशे का दान करने से धन में वृद्धि होती है।
ईख-लक्ष्मी के ऐरावत हाथी की प्रिय खाद्य-सामग्री ईख है। दीपावली के दिन पूजन में ईख शामिल करने से ऐरावत प्रसन्न रहते हैं और उनकी शक्ति व वाणी की मिठास घर में बनी रहती है।
ज्वार का पोखरा-दीपावली के दिन ज्वार का पोखरा घर में रखने से धन में वृद्धि होती है तथा वर्ष भर किसी भी तरह के अनाज की कमी नहीं आती। लक्ष्मी के पूजन के समय ज्वार के पोखरे की पूजा करने से घर में हीरे-मोती का आगमन होता है।
रंगोली- लक्ष्मी पूजन के स्थान तथा प्रवेश द्वार व आंगन में रंगों के संयोजन के द्वारा धार्मिक चिह्न कमल, स्वास्तिक कलश, फूलपत्ती आदि अंकित कर रंगोली बनाई जाती है। कहते हैं कि लक्ष्मीजी रंगोली की ओर जल्दी आकर्षित होती है।
नरक चतुर्दशी के दिन क्यों करते हैं यमराज की पूजा?
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज के निमित्त पूजा की जाती है। इस बार यह पर्व 25 अक्टूबर, मंगलवार को है। इसकी कथा इस प्रकार है-
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! मैं आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं। यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर मुझे कृतार्थ कीजिए।
तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन? दैत्यराज बलि बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें।
राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके सभी पितर लोग कभी भी नरक में न रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी।
भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।
महालक्ष्मी आएंगी आपके घर में, ऋषियों की विधि से पूजें मां लक्ष्मी को...
कार्तिक की अमावस को दीपावली मनाई जाती है। इसी दिन देवी लक्ष्मी की पूजन का विधान है। लक्ष्मी पूजन की विधि सनतकुमार की संहिता के आधार पर लिखी गई है। यह त्यौहार क्यों मनाया जाता है इस संबंध में एक कथा प्रचलित है।
एक समय ऋषियों ने सब मुनीश्वरों से कहा - हे मुनीश्वरों! अमावस्या के दिन प्रात: काल स्नान कर भक्तिपूर्वक पितृदेव एवं देवताओं का पूजन करें और दही, क्षीर तथा घी से पार्वण श्राद्ध करके यथा विधि ब्राह्मणों को भोजन कराएं। रोगी और बालक के सिवा अन्य किसी व्यक्ति को दिन में भोजन नहीं कराना चाहिए। संध्या के समय प्रदोष काल में लक्ष्मीजी का पूजन करना चाहिए। नाना प्रकार के स्वच्छ और नवीन वस्त्रों से लक्ष्मीजी का मण्डप बनाकर पत्र, ध्वजा, पुष्प, तोरण और पताका आदि से उसको सुसज्जित करें तथा उसमें अनेक देवी देवताओं के सहित भगवती लक्ष्मी का षोडषोपचार पूर्वक पूजन करें। मुनीश्वरों ने पूछा कि हे सनत् कुमार!
लक्ष्मी के साथ-साथ अन्य सभी देवताओं के पूजन का क्या कारण है? तब सनत कुमार ने उत्तर दिया कि राजा बलि के कारागार में लक्ष्मी समस्त देवी-देवताओं के साथ बंधन में थीं। आज के दिन विष्णु भगवान् ने उन सबको कैद से छुड़ाया था। अत: रेशम से बुने हुए सुन्दर पलंग पर कोमल गद्दा बिछाकर उस पर सफेद चादर बिछाएँ। नवीन तकिया और रजाई लगाकर कमलपुष्पों का मण्डप बनाएं क्योंकि लक्ष्मीजी का निवास स्थान कमलपुष्प ही है। हे मुनीश्वरों जो लोग मां लक्ष्मी का इस प्रकार स्वागत करते हैं उनको छोड़कर वह अन्यत्र कहीं नहीं जाती हैं। इसके विरुद्ध जो लोग आलस्य और निद्रा में पड़कर सो जाते हैं श्रद्धापूर्वक लक्ष्मीजी का पूजन नहीं करते वे सदैव दरिद्रता के शिकार बने रहते हैं।
रात्रि के समय लक्ष्मी के पूजन में उनका आवाहन करें और गाय के दूध का खोआ बनाकर उसमें मिश्री, लवंग, इलायची, कपूर आदि डालकर उसके पेड़े बनाकर लक्ष्मी को भोग लगाएं। इसके अतिरिक्त देशकालानुसार भोज्य, लेह्य, पेय, चोष्य चारों प्रकार के पदार्थ तथा फूलादि लक्ष्मी को अर्पण करके तब दीप-दान करें। कुछ दीपकों को सर्वानिष्ट-निवृत्ति के हेतु अपने मस्तक पर घुमाकर चौराहे व श्मशान में रखवा दें। नदी, पर्वत, महल, वृक्षमूल, गौवों के खिड़क (खरका) या चबूतरा आदि स्थानों में भी दीपक रखना चाहिए। यदि सम्भव हो तो घर के ऊपर भी दीपकों का एक वृत्त बनाना चाहिए। ऊपर जो ब्राह्मण भोजन कराना लिखा है, वह भी इसी समय होना चाहिए। अर्धरात्रि के समय राजा को भी नगर की शोभा देखने के लिए निकलना चाहिए।
सालभर मिलता है रहेगा पैसा, ऐसे स्थापित करें मां लक्ष्मी की चौकी
दीपावली के दिन पूजा के लिए मां लक्ष्मी किस प्रकार स्थापित करना है? यह ध्यान रखने वाली बात है। मां लक्ष्मी की चौकी विधि-विधान से सजाई जानी चाहिए।
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी के दाहिनी ओर स्थापित करें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावल पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटे कि नारियल का आगे का भाग दिखाई दे और इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुणदेव का प्रतीक है। अब दो बड़े दीपक रखें। एक घी व दूसरे में तेल का दीपक लगाएं। एक दीपक चौकी के दाहिनी ओर रखें एवं दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
लक्ष्मी की कृपा के लिए कैसे सजाएं छोटी चौकी?
दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के समय एक चौकी पर मां लक्ष्मी और श्रीगणेश आदि प्रतिमाएं स्थापित की जाती है। इसकी जानकारी पूर्व में प्रकाशित की जा चुकी है। इसके अतिरिक्त एक छोटी चौकी भी बनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस चौकी को विधि-विधान से सजाना चाहिए। इस छोटी चौकी को इस प्रकार सजाएं-
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। फिर कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां तीन लाइनों में बनाएं। इसे आप चित्र में (1) चिन्ह से देख सकते हैं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। यह सोलह ढेरियां मातृका (2) की प्रतीक है। जैसा कि चित्र में चिन्ह (2) पर दिखाया गया है। नवग्रह व सोलह मातृका के बीच में स्वस्तिक (3) का चिन्ह बनाएं। इसके बीच में सुपारी (4) रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी रखें। लक्ष्मीजी की ओर श्री का चिन्ह (5) बनाएं। गणेशजी की ओर त्रिशूल (6) बनाएं। एक चावल की ढेरी (7) लगाएं जो कि ब्रह्माजी की प्रतीक है। सबसे नीचे चावल की नौ ढेरियां बनाएं (8) जो मातृक की प्रतीक है। सबसे ऊपर ऊँ (9) का चिन्ह बनाएं। इन सबके अतिरिक्त कलम, दवात, बहीखाते एवं सिक्कों की थैली भी रखें।
इस प्रकार मां लक्ष्मी की चौकी सजाने पर भक्त को साल भर पैसों की कोई कमी नहीं रहती है।
क्यों करते हैं पर्वतराज गोवर्धन की पूजा?
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन पर्वतराज गोवर्धन की पूजा की जाती है। इसकी कथा इस प्रकार है-
एक समय की बात है भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मना रही हैं। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा कि आज मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। तब श्रीकृष्ण बोले- इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है।
हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए। तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन की पूजा करने लगे। यह बात जाकर नारद ने इंद्र को बता दी। यह सुनकर इंद्र को बहुत क्रोध आया। इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय का-सा दृश्य उत्पन्न कर दें। मेघ ब्रज-भूमि पर जाकर मूसलधार बरसने लगे। इससे भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे।गोप-गोपियों की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले- तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो।
वह सब की रक्षा करेंगे। सब गोप-ग्वाले पशुधन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठिïका अंगुली पर उठाकर छाते सा तान दिया। गोप-ग्वाले सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टिï से बच गए। सुदर्शन-चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह चमत्कार देखकर ब्रह्मजी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात जान कर इंद्र देव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा-याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन-पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित है।
पति-पत्नी को पूजा भी एक साथ ही करना चाहिए, क्योंकि...
हमारे जीवन के सभी 16 संस्कारों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह। विवाह के बाद पति-पत्नी दोनों का ही जीवन बदल जाता है। दोनों के ही अलग-अलग कर्तव्य और दायित्व रहते हैं। पति-पत्नी के मुख्य कर्तव्य में से एक है कि सभी पूजन कार्य दोनों एक साथ ही करेंगे। पति या पत्नी अकेले पूजा-अर्चना करते हैं तो उसका अधिक महत्व नहीं माना गया है। शास्त्रों के अनुसार पति-पत्नी एक साथ पूजादि कर्म करते हैं तो उसका पुण्य कई जन्मों तक साथ रहता है और पुराने पापों का नाश होता है।
विवाह के बाद पति-पत्नी को एक-दूसरे का पूरक माना गया है। सभी धार्मिक कार्यों में दोनों का एक साथ होना अनिवार्य है। पत्नी के बिना पति को अधूरा ही माना जाता है। दोनों को एक साथ ही भगवान के निमित्त सभी कार्य करने चाहिए।
पत्नी को पति अद्र्धांगिनी कहा जाता है, इसका मतलब यही है कि पत्नी के बिना पति अधूरा है। पति के हर कार्य में पत्नी हिस्सेदार होती है। शास्त्रों में इसी वजह सभी पूजा कर्म दोनों के लिए एक साथ करने का नियम बनाया गया है।
दोनों एक साथ पूजादि कर्म करते हैं तो इससे पति-पत्नी को पुण्य तो मिलता है साथ ही परस्पर प्रेम भी बढ़ता है। स्त्री को पुरुष की शक्ति माना जाता है इसी वजह से सभी देवी-देवताओं के नाम के पहले उनकी शक्ति का नाम लिया जाता है जैसे सीताराम, राधाकृष्ण। इसी वजह से पत्नी के बिना पति का कोई भी धार्मिक कर्म अधूरा ही माना जाता है।
भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व भाई-दूज
कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इसका महत्व इस प्रकार है-
धर्म ग्रंथों के अनुनसार कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन ही यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर बुलाकर सत्कार करके उसे भोजन कराया था, इसीलिए इस त्योहार को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। तब यमराज ने प्रसन्न होकर उसे यह वर दिया था कि जो व्यक्ति इसदिन यमुना में स्नान करके यम का पूजन करेगा, मृत्यु के पश्चात उसे यमलोक में नहीं जाना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि सूर्य की पुत्री यमुना समस्त कष्टों का निवारण करने वाली देवी स्वरूपा है। उसका सगा भाई मृत्यु का देवता यमराज है।
यम द्वितीया के दिन मथुरा में विश्राम घाट पर स्नान करने और यमुना के किनारे स्नान करके वहीं यमुना और यमराज की पूजा करने का बड़ा माहात्म्य माना जाता है। इस दिन बहन भाई की पूजा कर उसकी दीर्घायु तथा अपने सुहाग की रक्षा के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करती है। स्कंद पुराण में लिखा हुआ है कि इस दिन यमराज को तृप्त और प्रसन्न करने से पूजन करने वालों को मनोवांछित फल मिलता है। धन-धान्य, यश एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
भाई-दूज: बहन के घर भोजन करने से बढ़ती है भाई की आयु
भाई-दूज का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 28 अक्टूबर, शुक्रवार को है। इस दिन यमराज का पूजन किया जाता है। पूजन विधि इस प्रकार है-
पूजन विधि
इस दिन यमुना में स्नान करके यमुना तथा यमराज के पूजन का विशेष विधान है। इसके अलावा भाई-बहन के घर आकर उसके हाथ का बना भोजन करता है और बहन -भाई की पूजा करती है। विवाहिता बहनें अपने भाइयों को अपने घर ससुराल में आमंत्रित करती हैं, जबकि अविवाहिता बहनें अपने पिता के घर पर ही भाइयों को भोजन कराती हैं। जिनकी बहन नहीं होती, वे जिसे मुंहबोली बहन बनाते हैं, उसको इसी विधि से सत्कार करना चाहिए।
इसके पश्चात बहन-भाई दोनों मिलकर यम, चित्रगुप्त और यम के दूतों का पूजन करें तथा सबको अध्र्य दें। बहन भाई की आयु-वृद्धि के लिए यम की प्रतिमा का पूजन करें। प्रार्थना करें कि मार्कण्डेय, हनुमान, बलि, परशुराम, व्यास, विभीषण, कृपाचार्य तथा द्रोणाचार्य इन आठ चिरंजीवियों की तरह मेरे भाई को भी चिरंजीवी कर दें। इस दिन गोधन कूटने की भी प्रथा है। गोबर से बनी मनुष्याकृति बनाकर उसकी छाती पर ईंट रखी जाती है और उस पर स्त्रियां मूसल से प्रहार करती हुई उसे तोड़ती हैं, कथा सुनती हैं।
इसके पश्चात भाई को भोजन कराती हैं। मिष्ठान खाने के बाद भाई यथाशक्ति बहन को भेंट देता है। जिसमें स्वर्ग, आभूषण, वस्त्र आदि प्रमुखता से दिए जाते हैं। लोगों में ऐसा विश्वास भी प्रचलित है कि इस दिन बहन अपने हाथ से भाई को भोजन कराए तो उसकी उम्र बढ़ती है और उसके जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
यमराज ने दिया था यमुना को वचन, इसलिए मनाते हैं भाई-दूज
दीपावली पर्व के पांचवे दिन यानी कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस बार 28 अक्टूबर, शुक्रवार को भाई-दूज का पर्व है। इसकी कथा इस प्रकार है-
सूर्य की पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं। उनमें पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना था। संज्ञा अपने पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को सहन नहीं कर सकने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। इसी से ताप्ती नदी तथा शनिश्चर का जन्म हुआ। इसी छाया से सदा युवा रहने वाले अश्विनी कुमारों का भी जन्म हुआ है, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद संज्ञा (छाया) का यम तथा यमुना के साथ व्यवहार में अंतर आ गया। इससे व्यथित होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई। यमुना अपने भाई यम को यमपुरी में पापियों को दंड देते देख दु:खी होती, इसलिए वह गोलोक चली गई।
समय व्यतीत होता रहा। तब काफी सालों के बाद अचानक एक दिन यम को अपनी बहन यमुना की याद आई। यम ने अपने दूतों को यमुना का पता लगाने के लिए भेजा, लेकिन वह कहीं नहीं मिली। फिर यम स्वयं गोलोक गए जहां यमुनाजी की उनसे भेंट हुई। इतने दिनों बाद यमुना अपने भाई से मिलकर बहुत प्रसन्न हुई। यमुना ने भाई का स्वागत किया और स्वादिष्ट भोजन करवाया। इससे भाई यम ने प्रसन्न होकर बहन से वरदान मांगने के लिए कहा। तब यमुना ने वर मांगा कि- 'हे भैया, मैं चाहती हूं कि जो भी मेरे जल में स्नान करे, वह यमपुरी नहीं जाए।'
यह सुनकर यम चिंतित हो उठे और मन-ही-मन विचार करने लगे कि ऐसे वरदान से तो यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। भाई को चिंतित देख, बहन बोली- भैया आप चिंता न करें, मुझे यह वरदान दें कि जो लोग आज के दिन बहन के यहां भोजन करें तथा मथुरा नगरी स्थित विश्रामघाट पर स्नान करें, वे यमपुरी नहीं जाएं। यमराज ने इसे स्वीकार कर वरदान दे दिया। बहन-भाई मिलन के इस पर्व को अब भाई-दूज के रूप में मनाया जाता है।
सांई मंदिर में दीपक लगाने से सभी इच्छाएं हो जाएंगी पूरी, क्योंकि...
सांई बाबा एक ऐसे फकीर हैं जिन्हें हर धर्म के लोग बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं। सभी जाति और धर्म इनके प्रति पूर्ण विश्वास रखते हैं। सांई बाबा के संबंध में दीपावली की एक कथा प्रचलित है।
कथा के अनुसार दीपावली के पर्व जब सांई बाबा को दीपक जलाने के लिए तेल नहीं मिल पाया तब उन्होंने पानी से दीपक जलाने का चमत्कार किया। अभी दीपावली का पर्व है अत: सांई बाबा के मंदिर में दीपक जलाने से बाबा भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
सांई की आराधना किसी भी विशेष मुहूर्त या वार को किया जा सकती है परंतु गुरुवार को इनकी पूजा का विशेष महत्व माना गया है। गुरुवार को इनकी आराधना का इतना महत्व क्यों हैं? इस संबंध में यही तथ्य है कि गुरुवार गुरु का दिन माना जाता है। सभी धर्मों में गुरु का खास स्थान माना जाता है, गुरु ही हमें आदर्श जीवन जीने के सूत्र बताता है। गुरु ही सही राह पर चलने की प्रेरणा देता है। साईं बाबा ने हमेशा सभी को आदर्श और उच्च जीवन जीने की प्रेरणा दी है। इसी वजह से इन्हें बड़ी संख्या श्रद्धालु अपना गुरु मानते हैं। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इनकी आराधना से जल्द ही हमारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। साईं के मंदिर में सभी धर्मों के लोगों के लिए समभाव रखा जाता है। गुरुवार गुरु का दिन होने की वजह से साईं बाबा को गुरु मानने वाले सभी भक्त इस दिन बाबा के मंदिर जाते हैं।
साईं बाबा के मंत्र सबका मालिक एक यही बताता है कि परमात्मा एक है और वही हम सभी का पालन-पोषण करता है। इसी मंत्र की वजह से वे सर्वधर्म के लोगों के लिए भगवान और गुरु के समान ही हैं।
सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा 1 को
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान सूर्य की पूजा की जाती है इसे छठ पूजा व सूर्य षष्टी व्रत भी कहते हैं। इस बार यह व्रत 1 नवंबर, मंगलवार को है।
वैसे तो यह त्योहार संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है लेकिन बिहार और उत्तरप्रदेश के पूर्वी क्षेत्रों में यह पर्व बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। लोगों को इस पर्व का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। मूलत: यह भगवान सूर्य देव की पूजा-आराधना का पर्व है। सूर्य अर्थात् रोशनी, जीवन एवं ऊष्मा के प्रतीक छठ के रूप में उन्हीं की पूजा-आराधना की जाती है। धर्म शास्त्रों में यह पर्व सुख-शांति, समृद्धि का वरदान तथा मनोवांछित फल देने वाला बताया गया है। बहुत ही साफ-सफाई और निष्ठा के साथ इसे पूरा किया जाता है।
मान्यता ऐसी भी है कि मन में कोई खोट अथवा विकार होने पर इसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है। इस पर्व को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। बिहार का तो यह सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जबसे सृष्टि बनी, तभी से सूर्य वरदान के रूप में हमारे सामने हैं और तभी से उनका पूजन होता आ रहा है।
बड़ी मुश्किल है तो शनिवार से हनुमानजी को चढ़ाएं 11 उड़द के दाने, क्योंकि...
प्राचीन काल से ही सभी को धन का मोह रहा है। इसके अभाव में सुखी और खुशहाल जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज भी पैसा इंसान की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है। जैसे-जैसे आधुनिक सुख-सुविधाओं में बढ़ोतरी हो रही है, इंसान इन्हें प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। इस तरह की विलासिता की सुविधाएं सभी को प्राप्त नहीं हो पाती है। इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन ज्योतिष के अनुसार यदि कोई अशुभ ग्रह योग हो तो पूरी मेहनत के बाद भी पर्याप्त धन प्राप्त नहीं होता है।
ज्योतिष शास्त्र में अशुभ ग्रहों के प्रभावों को दूर करने के लिए कई अचूक उपाय बताए गए हैं। धन संबंधी परेशानियों को खत्म करने के लिए निम्न उपाय अपनाएं-
हर मंगलवार और शनिवार को किसी भी हनुमान मंदिर में 11 काले उड़द के दाने, सिंदूर, चमेली का तेल, फूल, प्रसाद अर्पित करें। साथ ही सुंदरकांड का पाठ करें या समय अभाव हो तो हनुमान चालिसा का पाठ करें। मंगलवार-शनिवार को हनुमानजी का विधिवत पूजन करने से सभी प्रकार के कष्ट और क्लेश नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव भी दूर हो जाते हैं। इस उपाय को अपनाने से कुछ ही दिनों में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे। ध्यान रखें पवित्रता का पूरा ध्यान रखें। किसी भी प्रकार के अधार्मिक कर्मों से दूर रहें। किसी भी स्थिति में घर के बड़े-बुजूर्गों सहित अन्य वृद्धजनों का सम्मान करें, उनका दिल ना दुखाए।
भगवान की मदद चाहिए तो रोज ध्यान रखें इन 6 बातों का...
देवी-देवताओं की पूजा में आरती सबसे महत्वपूर्ण कर्म है। आरती के साथ ही पूजा-अर्चना पूर्ण होती है। पूजा में आरती के महत्व को देखते हुए दीपक तैयार करते समय कई सावधानियां रखनी अनिवार्य है। विधि-विधान से तैयार किए गए दीपक से देवी-देवताओं की कृपा जल्दी ही प्राप्त होती है-
- देवताओं को घी का दीपक अपनी बायीं ओर तथा तेल का दीपक दायीं ओर लगाना चाहिए।
- देवी-देवताओं को लगाया गया दीपक पूजन कार्य के बीच बुझना नहीं चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें।
- दीपक हमेशा भगवान के सामने ही लगाएं।
- घी के दीपक के लिए सफेद रुई की बत्ती लगाएं।
- तेल के दीपक के लिए लाल बत्ती का उपयोग किया जाना चाहिए।
- दीपक कहीं से खंडित या टूटा नहीं होना चाहिए।
आप भी शादी से पहले ध्यान रखें ये बात, क्योंकि...
हिंदू धर्म शास्त्रों में हमारे सोलह संस्कार बताए गए हैं। इन संस्कारों में काफी महत्वपूर्ण विवाह संस्कार। शादी को व्यक्ति को दूसरा जन्म भी माना जाता है क्योंकि इसके बाद वर-वधू सहित दोनों के परिवारों का जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इसलिए विवाह के संबंध में कई महत्वपूर्ण सावधानियां रखना जरूरी है। विवाह के बाद वर-वधू का जीवन सुखी और खुशियोंभरा हो यही कामना की जाती है।
वर-वधू का जीवन सुखी बना रहे इसके लिए विवाह पूर्व लड़के और लड़की की कुंडली का मिलान कराया जाता है। किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी द्वारा भावी दंपत्ति की कुंडलियों से दोनों के गुण और दोष मिलाए जाते हैं। साथ ही दोनों की पत्रिका में ग्रहों की स्थिति को देखते हुए इनका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा? यह भी सटिक अंदाजा लगाया जाता है। यदि दोनों की कुंडलियां के आधार इनका जीवन सुखी प्रतीत होता है तभी ज्योतिषी विवाह करने की बात कहता है।
कुंडली मिलान से दोनों ही परिवार वर-वधू के बारे काफी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। यदि दोनों में से किसी की भी कुंडली में कोई दोष हो और इस वजह से इनका जीवन सुख-शांति वाला नहीं रहेगा, ऐसा प्रतीत होता है तो ऐसा विवाह नहीं कराया जाना चाहिए।
कुंडली के सही अध्ययन से किसी भी व्यक्ति के सभी गुण-दोष जाने जा सकते हैं। कुंडली में स्थित ग्रहों के आधार पर ही हमारा व्यवहार, आचार-विचार आदि निर्मित होते हैं। उनके भविष्य से जुड़ी बातों की जानकारी प्राप्त की जाती है। कुंडली से ही पता लगाया जाता है कि वर-वधू दोनों भविष्य में एक-दूसरे की सफलता के लिए सहयोगी सिद्ध या नहीं। वर-वधू की कुंडली मिलाने से दोनों के एक साथ भविष्य की संभावित जानकारी प्राप्त हो जाती है इसलिए विवाह से पहले कुंडली मिलान किया जाता है।
खाते समय ये काम काफी लोग करते हैं लेकिन नहीं करना चाहिए...
अच्छा और स्वादिस्ट खाना सभी की पसंद होता है और जीवित रहने के लिए सबसे अधिक जरूरी चीजों में से एक यही है। खाने के बिना हमारे शरीर को ऊर्जा प्राप्त नहीं हो सकती और फिर जीना मुश्किल हो सकता है। इसी वजह से हमें प्रतिदिन कम से कम दो बार भोजन अवश्य करना चाहिए ताकि हम स्वस्थ और ऊर्जावान रह सके।
भोजन के संबंध में कई प्रकार के धार्मिक नियम भी बताए गए हैं। इन नियमों का पालन पर भोजन से संतुष्टि और देवी-देवताओं से कृपा प्राप्त होती है। अच्छा और स्वादिष्ट खाना सभी को पसंद होता है लेकिन कई खाने में कोई कमी रह जाती है तब कुछ भोजन की बुराई शुरू कर देते हैं। शास्त्रों के अनुसार किसी भी परिस्थिति में खाने की बुराई करना अच्छा नहीं माना जाता है। ऐसा करने वाले से मां अन्नपूर्णा नाराज हो जाती हैं और फिर व्यक्ति को कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
खाने की बुराई करना पाप ही माना जाता है। खाने में कमियां निकालना अच्छा नहीं माना गया है। अन्न को भी देवता के समान ही माना जाता है अत: खाने में कमियां निकालने से देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त नहीं हो पाती है। भोजन से संतुष्टि प्राप्त नहीं हो पाती है और स्वास्थ्य के लिए भी यह हानिकारक है।
जानिए कौन हैं हमारे 33 करोड़ देवी-देवता...
भगवान, परमात्मा या ईश्वर एक है फिर भी शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं की अनेक रूप बताए गए हैं। हिंदू धर्म के अनुसार 33 करोड़ देवी-देवता हैं, ऐसा माना जाता है। प्राचीन काल से असंख्य देवी-देवताओं को पूजने की परंपराएं चलन में है। इस संबंध में सामान्यत: सभी की जिज्ञासा रहती है कि क्या वाकई में हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं।
दरअसल वेद-पुराणों के अनुसार 33 कोटि देवता बताए गए हैं। यहां कोटि शब्द ही बोलचाल की भाषा में करोड़ में बदल गया। अत: ऐसा माना जाने लगा कि हिंदूओं के 33 करोड़ देवी-देवता हैं, जबकि वास्तव में 33 कोटि देवी-देवता हैं। 33 कोटि में आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल है। जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्विनी कुमार का नाम लिया जाता है।
आठ वसुओं में आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष, प्रभाष शामिल हैं।
ग्यारह रुद्र इस प्रकार हैं- मनु, मन्यु, शिव, महत, ऋतुध्वज, महिनस, उम्रतेरस, काल, वामदेव, भव और धृत-ध्वज।
बारह आदित्य इस प्रकार हैं- अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत और विष्णु।
चमकेगी किस्मत अगर आपको रोड पर हाथी दिखे तो, क्योंकि...
कभी-कभी कहीं जाते समय हमें रास्ते में हाथी दिख जाता है। हाथी का दिखना शुभ संकेत माना जाता है। हिंदू धर्म में प्रचलित शकुन-अपशकुन में हाथी का दिखना शुभ शकुन बताया गया है।
प्राचीन काल से शास्त्रों के अनुसार बताए गए कई शकुन-अपशकुन की मान्यताएं प्रचलित हैं। ऐसी कई परंपराएं का चलन हैं जिन्हें आज भी काफी लोग मानते हैं। शकुन-अपशकुन को कुछ लोग अंधविश्वास भी मानते हैं लेकिन शास्त्रों के अनुसार इनका काफी गहरा महत्व बताया गया है। जब भी हम किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए कहीं जा रहे होते हैं तो कभी-कभी कुछ छोटी-छोटी असामान्य या सामान्य घटनाएं दिखाई देती हैं। इन्हीं घटनाओं में सफलता और असफलता के इशारे छिपे होते हैं जिन्हें समझना होता है।
जब भी आप किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जा रहे हों और रास्ते में हाथी दिखाई दे तो समझ लें कि आपकी आज की सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाएंगी। जरूरी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी और दिन अच्छा बितेगा। हाथी का दिखना शुभ माना जाता है। इसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि हाथी का सीधा संबंध प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश से है। गणपति का मुख हाथी के जैसा ही है, इसी वजह से गजराज को भी पूजनीय और पवित्र माना जाता है।
पंचक: कब से कब तक, क्या करें क्या न करें?
भारतीय ज्योतिष के अनुसार जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर रहता है तब उस समय को पंचक कहते हैं। यानी घनिष्ठा से रेवती तक जो पांच नक्षत्र (धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उतरा भाद्रपद एवं रेवती) होते है उन्हे पंचक कहा जाता है। कुछ विद्वानों ने इन नक्षत्रों को अशुभ माना है इसलिए पंचक में कुछ कार्य विशेष नहीं किए जाते हैं। इस बार पंचक का प्रारंभ 3 नवंबर, गुरुवार शाम 4 बजकर 46 मिनट से हो रहा है जो 8 नवंबर, मंगलवार रात 1 बजकर 49 मिनट तक रहेगा।
नक्षत्रों का प्रभाव
धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है।
शतभिषा नक्षत्र में कलह होने के योग बनते हैं।
पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र होता है।
उतराभाद्रपद में धन के रूप में दण्ड होता है।
रेवती नक्षत्र में धन हानि की संभावना होती है।
पंचक में यह पांच कार्य न करें-
1-घनिष्ठा नक्षत्र में घास लकड़ी आदि ईंधन इक_ा नही करना चाहिए इससे अग्नि का भय रहता है।
2- दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
3- रेवती नक्षत्र में घर की छत डालना धन हानि और क्लेश कराने वाला होता है।
4- चारपाई नही बनवाना चाहिए।
5- पंचक में शव का अंतिम संस्कार नही करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पंचक में शव का अन्तिम संस्कार करने से उस कुटुंब में पांच मृत्यु और हो जाती है।
यदि परिस्थितीवश किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक अवधि में हो जाती है तो शव के साथ पांच पुतले आटे या कुश से बनाकर अर्थी पर रखें और इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार करें तो परिवार में इस दोष से और किसी की मृत्यु नही होती एवं पंचक दोष समाप्त हो जाता है।
ये है विवाहित स्त्री की खास निशानी, क्योंकि...
हिंदू धर्म में कई प्रथाएं प्रचलित हैं जिनमें कुछ प्रथाएं विवाह से पूर्व महत्वपूर्ण होती हैं तो विवाह के बाद। स्त्रियों के संबंध में विवाह के बाद सबसे महत्वपूर्ण परंपरा है मंगलसुत्र धारण करना। मंगलसुत्र ही किसी भी विवाहित स्त्री की खास निशानी होती है। यह मात्र श्रंगार का आभूषण नहीं है इसके साथ कई धार्मिक महत्व भी जुड़े हुए हैं।
मंगलसुत्र धारण करने के पीछे कई धार्मिक, मनौवैज्ञानिक कारण छिपे हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि मंगलसूत्र धारण करने से स्त्री के पति की आयु में वृद्धि होती है, यह धार्मिक मान्यता है। यह सुहागन स्त्री के सुहाग की निशानी है। मंगलसुत्र खोना या टूटना अशुभ माना जाता है, इसी वजह से इसे बहुत संभालकर रखा जाता है।
मंगलसुत्र धागे में पिरोए काले मोती और सोने के पेंडिल से बना होता है। इसे धारण करना विवाहित स्त्री के अनिवार्य बताया गया है। यह अन्य सभी आभूषणों से बहुत अधिक महत्व रखता है। मंगलसुत्र से ही स्त्री के पति के अच्छे स्वास्थ्य और कुशलता को भी जोड़ा गया है। इसी वजह से विवाहित महिलाओं के लिए मंगलसूत्र पहनना अनिवार्य माना गया है।
विवाह के पश्चात् स्त्री को सभी प्रकार के नकारात्मक विचारों से बचाने में मंगलसूत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके काले मोतियों की पवित्रता के प्रभाव से स्त्री के आसपास बुरी शक्तियां सक्रिय नहीं हो पाती हैं। इसके अलावा मंगलसुत्र में पिरोया हुआ सोना भी स्त्री को ऊर्जावान और सक्रिय बनाता है। इस सोने के प्रभाव से स्त्री के चेहरे पर चमक बनी रहती है।
सोना, शराब, वैश्यालय, झूठ में रहता है कलियुग क्योंकि...
शास्त्रों के अनुसार चार युग बताए गए हैं। ये चार युग हैं सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग। अभी तक तीन युग समाप्त हो चुके हैं और अब कलियुग चल रहा है। ऐसी मान्यता है कि कलियुग के अंतिम समय में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा। इसके बाद ही सृष्टि का विनाश होगा।
श्रीमद्भागवत के अनुसार जब पांडवों द्वारा स्वर्ग की यात्रा प्रारंभ की गई तब वे समस्त राज्य और प्रजा के भरण-पोषण और सुरक्षा का भार परिक्षित को सौंप गए। राजा परिक्षित के जीवन में ही द्वापर युग की समाप्ति हुई और कलियुग का प्रारंभ हुआ। कथा के अनुसार जब कलियुग का आगमन हुआ तब चारों ओर पाप, अत्याचार और अधर्म बढऩे लगा। इस प्रकार बढ़ते कलियुग के प्रभाव को समाप्त करने के लिए राजा परिक्षित कलियुग को नष्ट करने के लिए धनुष पर बाण चढ़ा लिया। जब कलियुग को ऐसा प्रतीत हुआ कि राजा परिक्षित से जीतना संभव नहीं है। अत: उसने राजा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और खुद के निवास करने के लिए स्थान मांगा। इस प्रकार अपनी शरण में कलियुग को परिक्षित ने पांच स्थान बताए जहां कलियुग को निवास करना था। ये स्थान हैं- झूठ, मद, काम, वैर और रजोगुण।
इन पांच स्थानों का अर्थ यही है कि जहां-जहां झूठ होगा, नशा होगा, वैश्यावृत्ति होगी, वैर-क्रोध होगा, सोना या धन होगा वहीं कलियुग निवास करता है। अत: इन पांचों से हमें दूर रहना चाहिए। जो भी व्यक्ति इनके मोह में फंस जाता है उसका नाश होना निश्चित है। यह सभी पाप को बढ़ाने वाले ही है। इनके प्रभाव में आने के बाद व्यक्ति के परिवार और पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं।
हजारों साल पुरानी परंपरा: 5 प्रकार से प्रसन्न होते हैं सभी देवी-देवता
शास्त्रों के अनुसार भगवान को प्रसन्न करने की कई अलग-अलग विधियां और पूजन पद्धितियां बताई गई हैं। सभी विधियों का अपना अलग महत्व है। शिव पुराण के अनुसार मुख्य रूप से पांच प्रकार से ईश्वर की आराधना की जा सकती है।
देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए सृष्टि के प्रारंभ से ही कई प्रकार की विधियों का चलन है। हमारे जीवन से जुड़ी सभी समस्याओं का निराकरण देवी-देवताओं की प्रसन्नता से हो जाता है। किसी भी देवता की कृपा प्राप्त करने के लिए ये पांच विधियां सर्वश्रेष्ठ बताई गई हैं। शिव पुराण के अनुसार पूजा की पांच विधियां सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं-
पहली विधि है जिस देवता के निमित्त पूजा करनी हैं उन देवी-देवताओं के मंत्र का जप करना। दूसरी विधि है होम या यज्ञ करना। तीसरी विधि है संबंधित देवता के नाम पर दान करना। चौथी विधि है तप करना। अंतिम पांचवी विधि है देवी-देवताओं की प्रतिमा या चित्र पर सोलह उपचारों से उनकी पूजा करना, आराधना करना।
यह सभी पांचों विधियां हजारों साल पुरानी हैं और आज भी इसी प्रकार भगवान को प्रसन्न करने की परंपरा प्रचलित है।
घी-मिश्री से आप भी जी सकते हैं 100 सालों तक, जानिए क्यों और कैसे?
जीवन और मृत्यु का चक्र हमेशा चलता ही रहता है। श्रीकृष्ण ने गीता यही बताया है कि जिस आत्मा ने धरती पर शरीर धारण किया उसे निश्चित अवधि के बाद इस देह का त्याग करना होता है। देह त्याग के बाद पुन: आत्मा को नया जन्म लेना होता है। इन बातों के बाद भी इंसान मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयास करता रहा है लेकिन आज तक मौत को कोई जीत नहीं सका है।
मृत्यु एक अटल सत्य है और यह निर्धारित समय पर अवश्य ही आएगी। शास्त्रों के अनुसार इंसान यदि देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त कर ले तो उसकी उम्र में वृद्धि अवश्य हो सकती है। शिव पुराण के अनुसार आयु के संबंध में बृहस्पति देव की पूजा करनी चाहिए। आयु बढ़ाने के लिए प्राचीन काल में भी भगवान बृहस्पति को प्रसन्न करने की परंपराएं प्रचलित थीं।
देव गुरु बृहस्पति की कृपा प्राप्त करने के लिए उनके वार गुरुवार को विशेष पूजन करना चाहिए। गुरुवार का दिन भगवान बृहस्पति का दिन माना जाता है। इस दिन बृहस्पति के साथ ही अन्य देव-देवताओं और इष्टदेव के निमित्त वस्त्रों का दान किसी जरूरतमंद व्यक्ति को करना चाहिए। इसके अलावा वस्त्र, यज्ञोपवित के साथ ही घी और मिश्री से बनी खीर देवी-देवताओं को अर्पित करें। इसमें मुख्य रूप से घी और मिश्री से खीर का प्रसाद भी ग्रहण करना चाहिए।
इस प्रकार गुरुवार के दिन पूजन करने से व्यक्ति को दीर्घायु प्राप्त होती है और सभी सुख प्राप्त होते हैं।
6 नवंबर को नींद से जागेंगे भगवान विष्णु
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी को भगवान विष्णु नींद से जागते हैं, ऐसा धर्म ग्रंथों में लिखा है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। इस बार देवप्रबोधिनी एकादशी का पर्व 6 नवंबर को है। इसकी कथा इस प्रकार है-
धर्म ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास(भादौ) की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। शंखासुर बहुत पराक्रमी दैत्य था। इस वजह से लंबे समय तक भगवान विष्णु का युद्ध उससे चलता रहा। अंतत: घमासन युद्ध के बाद शंखासुर मारा गया। इस युद्ध से भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में आकर सो गए। वे वहां चार महिनों तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवी-देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत-उपवास करने का विधान है।
आपने सांप को मारा या मारते हुए देखा तो हो सकती है अनहोनी, क्योंकि...
सांप एक ऐसा जीव है जिससे लगभग हर व्यक्ति डरता है। इसकी वजह से सांप का विष या जहर। अगर सांप किसी को डंस ले तो उस व्यक्ति के प्राणों का संकट खड़ा सकता है। सामन्यत: ये जीव किसी भी स्थान पर कब और कैसे आ जाए कोई नहीं जानता। यदि भूलवश आपने कभी सांप को मारा है या किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा मारते हुए देखा है तो इसके कई बुरे परिणाम आपको झेलना पड़ सकते हैं।
शास्त्रों के अनुसार सांप को नाग देवता माना जाता है। नाग का संबंध भगवान शिव से है, भोलेनाथ इस जीव को आभूषण की तरह धारण किए हुए हैं। इसी वजह से नाग को पूजनीय और पवित्र देवता माना गया है। भगवान शंकर के अतिरिक्त सृष्टि के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु भी शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं।
ध्यान रहें सांप कभी भी अनावश्यक रूप से किसी को नहीं डंसता है। जब तक सांप को छेड़ा नहीं जाता वह कुछ नहीं करता लेकिन भूलवश ही यदि उसे छेड़ दिया जाए तो वह खुद के प्राण बचाने के लिए हम पर हमला कर सकता है। कई बार जाने-अनजाने कुछ लोगों से सांप की हत्या हो जाती है। वहीं कुछ लोग अन्य लोगों द्वारा अनावश्यक रूप से सांप को मारते हुए देखते रहते हैं तो यह शास्त्रों के अनुसार पाप की श्रेणी में ही आता है।
वेद-पुराण के अनुसार किसी भी जीव की हत्या करना या देखना पाप ही है। सांप की हत्या करने वाले या सांप को मारते हुए देखने वाले को भी कई प्रकार के कष्ट उठाने पड़ सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति के साथ ऐसी घटनाएं हुई हैं तो संभव है कि उसके जीवन में कुछ परेशानियां सामने आती हैं। ज्योतिष में कालसर्प योग बताया गया है, इस योग के बुरे प्रभाव से व्यक्ति को मृत्यु के समान कष्ट भोगने पड़ सकते हैं। ठीक ऐसी ही परेशानियों सांप को अनावश्यक रूप से मारने या उसकी हत्या होते हुए देखने से भी झेलना पड़ सकती है।
यदि भूलवश किसी व्यक्ति के द्वारा ऐसा हो जाता है तो उसे भगवान शिव से क्षमा याचना करते हुए प्रति सोमवार शिवलिंग पर दूध चढ़ाना चाहिए और नाग की मृत्यु से लगे दोष का उचित उपचार करवाना चाहिए।
आनंद और ऐश्वर्य चाहिए तो पत्नी को दें साड़ी, क्योंकि...
जीवन में सुख और खुशी प्राप्त करने के लिए शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं। घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनाए रखनें के लिए जरूरी है कि सभी देवी-देवताओं को प्रसन्न रखा जाए। इसके अलावा ज्योतिष के अनुसार बताए गए हैं सभी ग्रहों को बुरे प्रभावों को दूर करने के लिए कई सामान्य ज्योतिषीय उपचार हैं।
घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है कि पति-पत्नी एक-दूसरे से हमेशा खुश रहें। वैवाहिक जीवन का कारक ग्रह शुक्र को भी माना जाता है। शुक्र ग्रह की प्रसन्नता से वैवाहिक जीवन सुखमय और आनंददायक बना रहता है। शिव पुराण में शुक्र देव को प्रसन्न करने के लिए ये तीन उपाय बताए गए हैं-
- शुक्र को प्रसन्न करने के लिए शुक्रवार के दिन शुक्र ग्रह की पूजा करें।
- ब्राह्मणों और जरूरतमंद लोगों को शुक्र ग्रह की वस्तुएं दान में दें।
- तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण उपाय है शुक्रवार के दिन अपनी पत्नी को साडिय़ां या अन्य कोई वस्त्र उपहार में दें।
तीसरे उपाय से पत्नी को प्रसन्न होगी साथ ही शुक्र देव की भी भरपूर कृपा प्राप्त होती है। शिव पुराण के अनुसार शुक्र देव को भोग और ऐश्वर्य का दाता माना गया है अत: इनकी प्रसन्नता के बाद व्यक्ति सभी प्रकार की सुविधाएं और आनंददायक वस्तुएं प्राप्त हो जाती हैं।
उस समय जिंदा पत्नी को बैठा देते थे मृत पति की जलती चिता पर, क्योंकि...
भारत में प्राचीन काल से ही कई प्रथाएं चली आ रही हैं। कुछ परंपराएं हमारे कल्याण, सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी करती हैं, ऐसी परंपराएं आज भी प्रचलित हैं जबकि कुछ कुरीतियां समझी जाने वाली प्रथाएं बंद करा दी गई।
प्राचीन भारत में एक कुप्रथा प्रचलित थी कि पति की मृत्यु के बाद पत्नी को भी पति के शव के साथ दाहसंस्कार में जिंदा ही बैठा दिया जाता था। इस प्रकार विधवा स्त्री को अपने प्राण देना पड़ते थे। इस परंपरा को सती प्रथा के नाम से जाना जाता है। उस समय जीवित विधवा स्त्री को समाज में मान-सम्मान प्राप्त नहीं होता था।
शास्त्रों के अनुसार जब माता सती अपने पिता प्रजापति के दक्ष के यहां हवन कुंड में कूदकर अपनी प्राण न्यौछावर कर दिए थे। क्योंकि दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किया गया था और माता सती उस अपमान को नहीं सह सकी और आग में कूदकर प्राण त्याग दिए। माता सती के नाम से ही सती प्रथा जुड़ी हुई थी। आज भी सती शब्द का उपयोग पविव्रता स्त्री के लिए किया जाता है।
इस कुप्रथा के चलते लंबे समय तक बड़ी संख्या में विधवा स्त्रियों द्वारा पति के अंतिम संस्कार के समय प्राण त्याग दिए। इस कुरीति को बंद कराने के लिए राजा राममोहन राय ने पहल की। राममोहन राय ने इस अमानवीय प्रथा को बंद कराने के लिए आंदोलन चलाए। यह आंदोलन समाचार पत्रों और जनमंचों के माध्यम से देशभर में चलाया गया। प्रारंभ में राममोहन राय को प्रथा के समर्थकों का क्रोध भी झेलना पड़ा लेकिन अंतत: यह कुप्रथा बंद करा दी गई।
मरने के बाद भी कोई बार-बार सपनों में आता हैं, क्योंकि...
यदि आपके परिवार में से किसी सदस्य या किसी खास मित्र या रिश्तेदार की मृत्यु हो गई है और वह बार-बार आपके सपनों में आता है तो यह एक इशारा है। किसी मृत व्यक्ति का बार-बार सपने में आना अपशकुन समझा जाता है। भारतीय परंपराओं में शकुन और अपशकुन का काफी महत्व बताया गया है। अत: यदि किसी व्यक्ति के साथ इस प्रकार का अपशकुन होता है तो उसे शास्त्रों के अनुसार बताए गए उपाय अपनाना चाहिए।
किसी अपने खास व्यक्ति के निधन के बाद वह सपनों में आता है तो समझना चाहिए कि वह आत्मा किसी बात से दुखी है या असंतुष्ट है। किसी कारण से उसे शांति नहीं मिल पा रही है। ऐसे में उस व्यक्ति के निमित्त श्रीमद्भागवत गीता का पाठ किया जाना चाहिए। किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण द्वारा गया में विधि विधान से श्राद्ध करवाना चाहिए। इसके साथ ही गरीब बच्चों को समय-समय पर मिठाई खिलाना चाहिए।
जब कोई मृत व्यक्ति बार-बार सपनों में आता है तो शास्त्रों के अनुसार इसकी कई वजह बताई गई हैं। जैसे कि यदि उस व्यक्ति का कोई ऋण किसी व्यक्ति के ऊपर है तो मृत व्यक्ति की आत्मा अशांत रह सकती है और बार-बार सपनों में आकर उस ऋण को चुकाने की याद दिलाती है। इसके अलावा यदि उस व्यक्ति का कोई कार्य अपूर्ण रह गया है तो उसे पूर्ण करवाने के लिए वह आत्मा किसी व्यक्ति के सपनों में दिखाई देती है। अत: यदि किसी व्यक्ति को इस प्रकार के सपने दिखाई देते हैं तो उसे उपरोक्त उपाय अपनाना चाहिए।
इस पेड़ को काटने या काटते हुए देखने से शुरू हो जाता है शनि का संकट, क्योंकि...
पेड़-पौधे वातावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। इन्हीं से हमें प्राण वायु ऑक्सीजन भी प्राप्त होती हैं। विज्ञान में तो पेड़-पौधों का काफी अधिक महत्व है लेकिन ज्योतिष शास्त्र में भी इनका महत्व बताया गया है। सभी ग्रहों के अलग-अलग वृक्ष बताए गए हैं। इन वृक्षों को जल चढ़ाने से संबंधित ग्रह के दोषों का निवारण हो जाता है।
ऐसी परंपरा है कि प्रतिदिन पीपल के पेड़ को जल चढ़ाना चाहिए। पीपल का पेड़ अन्य पेड़ों की तुलना सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में पीपल के पेड़ को दैवीय वृक्ष माना है। इस वृक्ष में कई देवी-देवताओं का वास होता है। इसी वजह से पीपल को सबसे पवित्र और पूजनीय वृक्ष माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार पीपल के वृक्ष पर नियमित रूप से जल चढ़ाने से व्यक्ति के समस्त शनि दोषों का निवारण होता है। शनि देव इस वृक्ष पर जल चढ़ाने वाले भक्तों से अति प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।
शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए पीपल का वृक्ष सर्वश्रेष्ठ उपाय है। यदि कोई व्यक्ति पीपल के वृक्ष को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाता है तो उसे शनि का कोप झेलना पड़ सकता है। जाने-अनजाने भूलवश पीपल काट दिया जाए तो शनि दोष अवश्य ही व्यक्ति का जीवन प्रभावित करेगा। इसके अलावा यदि को व्यक्ति इस वृक्ष को कटते हुए भी देखता है तो उसे भी शनि से परेशानियां प्राप्त हो सकती हैं। यदि किसी व्यक्ति के साथ ऐसा हो जाए तो उसे प्रति दिन किसी पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाना चाहिए। प्रति शनिवार स्वयं का चेहरा तेल में देखकर उस तेल का दान करना चाहिए। यदि संभव हो तो एक पीपल का वृक्ष भी लगाएं और उसके बड़ा होने तक उसकी देखभाल करें। इस प्रकार करने से ही शनि दोष शांत हो सकता है।
क्रमश:...
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK