यंत्र
आर्य सभ्यता में वेदों के मंत्र, शास्त्रों-श्रुतियों के मन्त्र एवं सर्व शक्तिमान ॐकार अपना एक अलग स्थान रखते है एवं मन्त्रों की शक्ति को प्रकट करते है। जिस प्रकार मंत्र और तंत्र में ऊर्जा शक्ति कार्य करती है, उसी प्रकार यंत्र भी ऊर्जा शक्ति का ही एक रूप है। जिस प्रकार पश्चिम सभ्यता में क्रिश्टल एवं फ़ैंगशुई द्वारा बनाई गई विभिन्न वस्तुओं में ऊर्जा होती है एवं उन वस्तुओं को यदि घर में रख लिया जाये तो वे आप के घर की ॠणात्मक (नेगेटिव) ऊर्जा को धनात्मक (पोजीटिव) ऊर्जा में बदल देते हैं। उसी प्रकार यन्त्र भी कार्य करते है। यदि सही तरीके से यन्त्र का निर्माण किया जाये और उसे अपने घर या कार्य क्षेत्र में स्थापित किया जाये, तो वह वहाँ की ॠणात्मक (नेगेटिव) ऊर्जा को धनात्मक (पोजीटिव) ऊर्जा में बदल देगा। आम व्यक्ति के मन में यह धारणा होती है कि यन्त्र के साथ किसी भी प्रकार की यदि गलती हो गई तो वह आप को नुक्सान देगा या आप का बुरा करेगा, किन्तु ऐसा नहीं है। किसी भी यन्त्र को धूप या दीपक आदि जलाना सिर्फ़ श्रद्धा का ही प्रतीक है। इसलिऐ यन्त्रों से किसी भी प्रकार डरने की या घबराने की आवश्यकता नहीं है। यन्त्र किसी भी प्रकार से आपको नुक्सान नहीं देते। यह सिर्फ़ आपकी सोच है, कि यंत्रों से किसी भी प्रकार का नुक्सान होता है। अन्तर केवल हमारी समझ का है, फ़ैन्गशुई आदि में जिस प्रकार वस्तुओं के अन्दर या प्रतीक चिन्हों के अन्दर, जैसे कि मेंढ़क, ड्रैगन आदि रखना तो पसन्द करते है, किन्तु यन्त्र को रखने से डरते है।
धीरे-धीरे हम पश्चिमी सभ्यता के गुलाम बनते जा रहे है और अपनी मूल सभ्यता को छोड़ते जा रहे है। किन्तु इस के मूल में भी जो कारण दिखाई पड़ता है, वह यह है कि हिन्दू धर्म के अन्दर आम व्यक्ति को यन्त्रों की सही जानकारी का न होना। अगर हमें यन्त्रों की सही जानकारी है या हम किसी के भी सही मार्ग निर्देशन में यदि अपने घर के अन्दर यन्त्र की स्थापना करें, तो वह पश्चिमी सभ्यता के यन्त्रों कि तुलना में अधिक लाभ पहुँचायेगा। आवश्यकता है सही राह दिखाने वाले की। किन्तु धीरे-धीरे सही राह दिखाने वाले ही समाप्त होते जा रहे है। यदि हम विधान से तैयार किये हुऐ यन्त्र को अपने घर में स्थापित करे तो ऐसा सम्भव नहीं है कि हमें हमारे उद्देश्य कि प्राप्ति न हो। ध्यान-पूर्वक अध्ययन करने पर हमें पता चलता है कि चाहे वह यन्त्र हो या फ़ैंग-शुई आदि द्वारा निर्मित कोई वस्तु। सभी के मूल में मन्त्र शक्ति एवं विधि-विधान ही है। बिना विधि-विधान एवं मन्त्र के किसी भी यन्त्र या वस्तु के अन्दर ऊर्जा शक्ति इकट्ठी नहीं हो सकती। जो व्यक्ति यह कहते है कि फ़ैंगशुई आदि वस्तुओं के अन्दर कल्पना शक्ति होती है, तो यह भ्रम मात्र है। अगर कोई व्यक्ति अपनी कल्पना शक्ति के द्वारा किसी भी वस्तु के अन्दर ऊर्जा इकट्ठी करता है, तो वह बहुत कम समय के लिऐ होती है। किन्तु यदि मन्त्र-विधान से किसी भी वस्तु के अन्दर ऊर्जा शक्ति इकट्ठी की जाये तो वह लम्बें समय तक या यों कहें कि सालों तक कार्य करती है। आज के समय में जो आम व्यक्ति का ध्यान या विश्वास यन्त्रों के ऊपर से हट गया है, उस के मूल में यही कारण है कि सही विधि-विधान के बिना यन्त्र को तैयार करना।
पश्चिमी देशों के साधक जो भी वस्तु तैयार करते है या किसी भी वस्तु के अन्दर ऊर्जा इकट्ठी करते है उसके मूल में मन्त्र और विधान ही काम करता है। यह व्यक्ति जिस भी वस्तु को तैयार करते है, सर्व-प्रथम उसको बना कर अनेकों पिरामिडों के बीच में रखते है और 11 या 21 दिनों तक उस वस्तु को पिरामिडों के बीच रखे रहनें देते है और साथ ही वहाँ पर अपने नियम के अनुसार प्रार्थना करते रहते है। तब जाकर उस वस्तु के अन्दर ऊर्जा इकट्ठी होती है। उसी प्रकार हिन्दू धर्म में भी यन्त्र को बना कर 11,21 दिनों तक पूजा-अनुष्ठान करके यन्त्र के अन्दर ऊर्जा इकट्ठी करते है। जो व्यक्ति ऐसा विधान नहीं करते द्वारा निर्मित किसी भी प्रकार की कोई भी वस्तु या कोई भी यन्त्र काम नहीं करते। क्योकि बिना विधि-विधान के किसी भी वस्तु या किसी भी यन्त्र के अन्दर ऊर्जा शक्ति एकत्रित नहीं होती। आज अनेकों ही व्यक्ति अनेकों प्रतीक चिन्ह और यन्त्र आदि बेच रहे हैं। किन्तु वह प्रतीक या यन्त्र विधि-विधान से तैयार है या नहीं, किसी को कुछ भी नहीं मालूम। आम व्यक्ति अपना पैसा और समय बचाने के लिये प्रतीक चिन्हों व यन्त्रों को खरीद कर अपने घर लाता है और फ़ायदा न होने पर दुकानदार को या उस सामान को बुरा कहता है या फ़िर अपने भाग्य को कोसता है। सही मायने में अपका भाग्य खराब नहीं है, बल्कि आपकी सोच खराब है। क्योंकि समय और पैसा बचाने के लिये एक प्रतीक या यन्त्र आप बाजार से खरीद लाये। ऊर्जा शक्ति बिकाऊ नहीं है, यह किसी बाजार में नहीं बिकती। अगर आप सही मायने में ऊर्जा शक्ति प्राप्त करना चाहते है, तो अपने सामने ही प्रतीक-चिन्ह या यन्त्र तैयार करवायें या स्वयं करें।
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
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