जप योग
जप का अर्थ है - ‘ज’ का अर्थ है जन्म का रूक जाना। ‘प’ का अर्थ है पाप का नाश होना। इसीलिए पाप को मिटाने वाले और पुनर्जन्म प्रक्रिया रोकने वाले को जप कहा गया है।“गीता मे श्री कृष्ण जी ने कहा है कि- यज्ञों में जप-यज्ञ मैं हूँ।”
शब्द की शक्ति के बारे में भारद्वाज-गायत्री-व्याख्यान नामक ग्रंथ में कहा गया है कि- समस्त यज्ञों में जप यज्ञ अधिक श्रेष्ठ है। अन्य यज्ञों में तो हिंसा होती है, किन्तु जप यज्ञ हिंसा से नहीं होता। जितने भी कर्म, यज्ञ, दान तप है, वे समस्त जप की 16वीं कला के समान भी नहीं होते। जप द्वारा स्तुति किये गये देवता प्रसन्न हो कर बड़े-बड़े भोगों को तथा अक्षय शक्ति को प्रदान करते है। जप करने वाले द्विज को दूर से देखते ही राक्षस, बेताल, भूत, प्रेत, पिशाच आदि भय से भयभीत होकर भाग जाते है। इस कारण समस्त पुण्य साधनों में जप सर्व-श्रेष्ठ है। इस प्रकार जान कर साधक को सर्वथा जप-परायण होना चाहिये।
किसी भी शब्द के जाप का प्रभाव आपके ऊपर अवश्य आयेगा। अगर आप सात्त्विक-मन्त्र का जाप करते है, तो धीरे-धीरे आपके बुरे विचार, भाव, स्वभाव घटने लगते है और सत्य, प्रेम, न्याय, इमानदारी, सन्तोष, शान्ति, पवित्रता, नम्रता, संयम, सेवा, दया और उदारता जैसे सद्गुण बढ़ने लगते है। इसके विपरीत अगर आप तामसिक-मन्त्र का जाप करते है तो आपका स्वभाव भी उस मन्त्र के अनुसार ही तामसिक हो जाऐगा। आप ने अधिकतर देखा होगा की, काली और भैरव के मन्त्रों का जाप करने वाले या इनकी उपासना करने वाले साधकों के अंदर क्रोध अधिक होता है। तामसिक मन्त्रों के जाप के प्रभाव से, इन साधकों का स्वभाव उग्र हो जाता है। हजारों में से कोई एक रामकृष्ण-परमहंस जैसा बन पाता है। जो कि काली की उपासना करने के उपरान्त भी शान्त चित्त होता है। काली की साधना के समय अगर आप के अन्दर मातृ-भाव है, तो आप का स्वभाव अवश्य ही शान्त होगा। प्रत्येक मंत्र का वही प्रभाव होगा जैसा की आपके मन का भाव होगा। अगर आपके मन में दास-भाव है, तो शब्द की शक्ति मालिक के रूप में प्रकट होगी, अगर आपके मन में प्रेम भाव है, तो वह शक्ति प्रेमी के रूप में प्रकट होगी, अगर आपके मन में सुदामा की तरह सखा भाव है, तो वह शब्द शक्ति एक मित्र की तरह आप के ऊपर कृपा करेगी।
जाप एवं आयु
शब्द के जाप के द्वारा आयु की वृद्धि के लाभों की वैज्ञानिक व्याख्या भी विद्वानों ने की है। 24 घंटे में प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति 21,600 साँस लेता है अर्थात् 1 मिन्ट में 15 बार, एक स्वस्थ व्यक्ति साँस लेता है। यदि किसी तरह इन साँसों की संख्या को कम किया जा सके तो आयु वृद्धि सुनिश्चित है। जिन व्यक्तियों को कोई भी बीमारी है, खासकर जिन को उच्च रक्तदाब (हाई ब्लड़प्रेशर) है। ऐसे व्यक्ति 1 मिन्ट में 15 से अधिक साँस लेते है। जिससे उनकी आयु का क्षय होता है, अर्थात् आयु कम होती है। इसके अलावा जो व्यक्ति अधिक क्रोध करते है, या जिन में अत्यधिक कामुक्ता है या जो अत्यधिक सम्भोग करते है, उनकी भी आयु कम होने लगती है। क्योंकि क्रोध के वक्त एवं सम्भोग के वक्त, एक स्वस्थ व्यक्ति 15 से अधिक साँस लेता है। इसलिऐ अगर आप अपने क्रोध और कामवासना पर काबू रखते है, तो आप अपनी आयु को बढ़ा सकते है। आयु को बढ़ाने में प्राणायाम – योग की ऐसी सशक्त क्रिया है, जिसके द्वारा साँसों पर काबू पाया जा सकता है।
जाप से भी ऐसा ही होता है। अगर आप ध्यान-पूर्वक जाप करेंगे, तो देखेगें की जाप के दौरान आपके साँसों की संख्या एक मिनट में 15 के स्थान पर 7 या 8 रह गई है। यदि आप एक घन्टा प्रतिदिन जाप करते है, तो लगभग 500 साँसो की वृद्धि आपकी आयु में हो जाती है। इस तरह यदि आप प्रतिदिन एक घन्टा जाप करें, तो आपकी आयु में कई सालों की वृद्धि हो सकती है। जाप के द्वारा ही आप का ध्यान लगता है। जप के वक्त शब्द-शक्ति प्रकट होती है। जिससे आपकी धारणा परिपक्व होती है। धारणा के परिपक्व होने पर ही समाधी की प्राप्ति सम्भव हो सकेगी।
जप के लिये जिन चीजों की मूल आवश्यकता है वह है– साधक के पहनने के वस्त्र, साधक का आसन, साधक का पूजा स्थल एवं साधक की माला। साधक जिस भी विद्या क्षेत्र से दीक्षित हो उसी के अनुसार साधक के वस्त्र, आसन एवं माला हो। साधक का साधना स्थल स्वच्छ एवं पवित्र हो। साधना स्थल में साधक शुद्ध घी का दीपक एवं धूप या अगरबती जलाऐं। गुरू की आज्ञा अनुसार अपने इष्ट का आवाहान, ध्यान, जप, समर्पण व विसर्जन करें, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार बिना पंचांग पूजा के सिद्धि सम्भव नहीं है। शास्त्रों में आवाहान, ध्यान, जप, समर्पण व विसर्जन को ही पंचांग पूजा कहा गया है। इसलिये हर साधक को पंचांग पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिये। सही मायने में पंचांग पूजा ही पंच तत्त्व की पूजा है। शास्त्रों में पंचोपचार व षोड़शोपचार पूजा का विधान भी है। अधिकतर साधक पंचोपचार व षोड़शोपचार पूजा को ही जानतें हैं। बहुत ही कम साधक पंचांग पूजा को जानते हैं, किन्तु जो साधक पंचांग पूजा को जानते हैं, सिद्धि उनसे कभी भी दूर नहीं रह सकती। पंचांग पूजा का अर्थ है– 1 अपने इष्ट का आवाहन करना, 2 अपने इष्ट का ध्यान करना, 3 अपने इष्ट के मूल मंत्र का यथा शक्ति जाप करना, 4 आपने जो भी जाप किया है, उस जाप को इष्ट के चरणों में समर्पित करना, 5 अपने इष्ट का विसर्जन करना। किन्तु गायत्री का आवाहन और विसर्जन नहीं होता क्योकि गायत्री-तंत्र के अनुसार- गायत्री ही जीव-आत्मा है और जीव-आत्मा हम स्वयं हैं। इसलिये जीव अपनी आत्मा का आवाहन और विसर्जन नहीं कर सकता।
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
जप का अर्थ है - ‘ज’ का अर्थ है जन्म का रूक जाना। ‘प’ का अर्थ है पाप का नाश होना। इसीलिए पाप को मिटाने वाले और पुनर्जन्म प्रक्रिया रोकने वाले को जप कहा गया है।“गीता मे श्री कृष्ण जी ने कहा है कि- यज्ञों में जप-यज्ञ मैं हूँ।”
शब्द की शक्ति के बारे में भारद्वाज-गायत्री-व्याख्यान नामक ग्रंथ में कहा गया है कि- समस्त यज्ञों में जप यज्ञ अधिक श्रेष्ठ है। अन्य यज्ञों में तो हिंसा होती है, किन्तु जप यज्ञ हिंसा से नहीं होता। जितने भी कर्म, यज्ञ, दान तप है, वे समस्त जप की 16वीं कला के समान भी नहीं होते। जप द्वारा स्तुति किये गये देवता प्रसन्न हो कर बड़े-बड़े भोगों को तथा अक्षय शक्ति को प्रदान करते है। जप करने वाले द्विज को दूर से देखते ही राक्षस, बेताल, भूत, प्रेत, पिशाच आदि भय से भयभीत होकर भाग जाते है। इस कारण समस्त पुण्य साधनों में जप सर्व-श्रेष्ठ है। इस प्रकार जान कर साधक को सर्वथा जप-परायण होना चाहिये।
किसी भी शब्द के जाप का प्रभाव आपके ऊपर अवश्य आयेगा। अगर आप सात्त्विक-मन्त्र का जाप करते है, तो धीरे-धीरे आपके बुरे विचार, भाव, स्वभाव घटने लगते है और सत्य, प्रेम, न्याय, इमानदारी, सन्तोष, शान्ति, पवित्रता, नम्रता, संयम, सेवा, दया और उदारता जैसे सद्गुण बढ़ने लगते है। इसके विपरीत अगर आप तामसिक-मन्त्र का जाप करते है तो आपका स्वभाव भी उस मन्त्र के अनुसार ही तामसिक हो जाऐगा। आप ने अधिकतर देखा होगा की, काली और भैरव के मन्त्रों का जाप करने वाले या इनकी उपासना करने वाले साधकों के अंदर क्रोध अधिक होता है। तामसिक मन्त्रों के जाप के प्रभाव से, इन साधकों का स्वभाव उग्र हो जाता है। हजारों में से कोई एक रामकृष्ण-परमहंस जैसा बन पाता है। जो कि काली की उपासना करने के उपरान्त भी शान्त चित्त होता है। काली की साधना के समय अगर आप के अन्दर मातृ-भाव है, तो आप का स्वभाव अवश्य ही शान्त होगा। प्रत्येक मंत्र का वही प्रभाव होगा जैसा की आपके मन का भाव होगा। अगर आपके मन में दास-भाव है, तो शब्द की शक्ति मालिक के रूप में प्रकट होगी, अगर आपके मन में प्रेम भाव है, तो वह शक्ति प्रेमी के रूप में प्रकट होगी, अगर आपके मन में सुदामा की तरह सखा भाव है, तो वह शब्द शक्ति एक मित्र की तरह आप के ऊपर कृपा करेगी।
जाप एवं आयु
शब्द के जाप के द्वारा आयु की वृद्धि के लाभों की वैज्ञानिक व्याख्या भी विद्वानों ने की है। 24 घंटे में प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति 21,600 साँस लेता है अर्थात् 1 मिन्ट में 15 बार, एक स्वस्थ व्यक्ति साँस लेता है। यदि किसी तरह इन साँसों की संख्या को कम किया जा सके तो आयु वृद्धि सुनिश्चित है। जिन व्यक्तियों को कोई भी बीमारी है, खासकर जिन को उच्च रक्तदाब (हाई ब्लड़प्रेशर) है। ऐसे व्यक्ति 1 मिन्ट में 15 से अधिक साँस लेते है। जिससे उनकी आयु का क्षय होता है, अर्थात् आयु कम होती है। इसके अलावा जो व्यक्ति अधिक क्रोध करते है, या जिन में अत्यधिक कामुक्ता है या जो अत्यधिक सम्भोग करते है, उनकी भी आयु कम होने लगती है। क्योंकि क्रोध के वक्त एवं सम्भोग के वक्त, एक स्वस्थ व्यक्ति 15 से अधिक साँस लेता है। इसलिऐ अगर आप अपने क्रोध और कामवासना पर काबू रखते है, तो आप अपनी आयु को बढ़ा सकते है। आयु को बढ़ाने में प्राणायाम – योग की ऐसी सशक्त क्रिया है, जिसके द्वारा साँसों पर काबू पाया जा सकता है।
जाप से भी ऐसा ही होता है। अगर आप ध्यान-पूर्वक जाप करेंगे, तो देखेगें की जाप के दौरान आपके साँसों की संख्या एक मिनट में 15 के स्थान पर 7 या 8 रह गई है। यदि आप एक घन्टा प्रतिदिन जाप करते है, तो लगभग 500 साँसो की वृद्धि आपकी आयु में हो जाती है। इस तरह यदि आप प्रतिदिन एक घन्टा जाप करें, तो आपकी आयु में कई सालों की वृद्धि हो सकती है। जाप के द्वारा ही आप का ध्यान लगता है। जप के वक्त शब्द-शक्ति प्रकट होती है। जिससे आपकी धारणा परिपक्व होती है। धारणा के परिपक्व होने पर ही समाधी की प्राप्ति सम्भव हो सकेगी।
जप के लिये जिन चीजों की मूल आवश्यकता है वह है– साधक के पहनने के वस्त्र, साधक का आसन, साधक का पूजा स्थल एवं साधक की माला। साधक जिस भी विद्या क्षेत्र से दीक्षित हो उसी के अनुसार साधक के वस्त्र, आसन एवं माला हो। साधक का साधना स्थल स्वच्छ एवं पवित्र हो। साधना स्थल में साधक शुद्ध घी का दीपक एवं धूप या अगरबती जलाऐं। गुरू की आज्ञा अनुसार अपने इष्ट का आवाहान, ध्यान, जप, समर्पण व विसर्जन करें, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार बिना पंचांग पूजा के सिद्धि सम्भव नहीं है। शास्त्रों में आवाहान, ध्यान, जप, समर्पण व विसर्जन को ही पंचांग पूजा कहा गया है। इसलिये हर साधक को पंचांग पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिये। सही मायने में पंचांग पूजा ही पंच तत्त्व की पूजा है। शास्त्रों में पंचोपचार व षोड़शोपचार पूजा का विधान भी है। अधिकतर साधक पंचोपचार व षोड़शोपचार पूजा को ही जानतें हैं। बहुत ही कम साधक पंचांग पूजा को जानते हैं, किन्तु जो साधक पंचांग पूजा को जानते हैं, सिद्धि उनसे कभी भी दूर नहीं रह सकती। पंचांग पूजा का अर्थ है– 1 अपने इष्ट का आवाहन करना, 2 अपने इष्ट का ध्यान करना, 3 अपने इष्ट के मूल मंत्र का यथा शक्ति जाप करना, 4 आपने जो भी जाप किया है, उस जाप को इष्ट के चरणों में समर्पित करना, 5 अपने इष्ट का विसर्जन करना। किन्तु गायत्री का आवाहन और विसर्जन नहीं होता क्योकि गायत्री-तंत्र के अनुसार- गायत्री ही जीव-आत्मा है और जीव-आत्मा हम स्वयं हैं। इसलिये जीव अपनी आत्मा का आवाहन और विसर्जन नहीं कर सकता।
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
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