Tuesday, September 7, 2010

Some mysterious things secret(कुछ गूढ रहस्य की बातें)

कुछ गूढ रहस्य की बातें.
तब श्री महाराज जी ने बताया । कोस कोस पर बदले पानी । चार कोस पर वानी । यानी सन 01 से पहले
भाषा कुछ और थी । ईसा नाम के जो ग्यानी हुये । उन्होने ईसवी की शुरूआत की । अब जैसा कि महाराज
जी ने बताया । जो मैंने पिछले लेख में लिखा है । कि कलियुग को अभी 5 000 और कुछ सैकडा वर्ष ही हुये
है । जिनमें 2010 तक का विधिवत लेखा जोखा लगभग मौजूद है । ईसा पूर्व से भी लगभग 1 000 वर्ष
तक का अस्पष्ट इतिहास और जानकारी मिल ही जाती है ।

फ़िर भी थोडी देर को इसे 2010 तक का ही मान लेते है । और अभी कलियुग को 5 500 का हुआ मान लेते हैं । यानी लगभग 3 500 वर्ष पूर्व द्वापर युग का अंत समय था । मैं हमेशा की तरह कभी ये दबाब नहीं देता । कि आप इन आंकडो को । इस तय की गयी समयावधि को ही पूरी तरह सत्य मान लें । पर जैसा कि शास्त्रो में युगों की आयु लाखों वर्ष की बतायी गयी है । और इस समय अन्तराल को ध्यान करते ही किसी भी शोध के बारे में सोचने पर हमारे छक्के ही छूट जाते हैं । और हम हतोत्साहित होकर इस झमेले को बैग्यानिको के लिये छोडकर इस पर कोई विचार ही नहीं करते । उस दृष्टि से किसी संत के द्वारा बताया हुआ युग आयु का ये रहस्य हमें नये सिरे से सोचने पर विवश करता है । और तभी मैंने कहा । कि हम इस बात को मानें । ये उतना जरूरी नही है । पर कोई धार्मिक शोधार्थी । कोई ज्योतिष गणना करने वाला । युगों के बैग्यानिक तथ्य खोजने वाला एक नये सिरे से अवश्य सोच सकता है ।

जब भी दो युग मिलते हैं । यानी एक का आना और दूसरे का जाना । तब इस कालखन्ड में कुछ ऐसा घटित होता है कि पुरानी सभ्यता नष्ट हो जाती है । और उसके चिह्न मात्र शेष रह जाते हैं । फ़िर इन्हीं चिह्नों के आधार पर धीरे धीरे प्राचीन अर्वाचीन का मिलाप होता है । और एक बार फ़िर सभ्यता का इतिहास लिखा जाता है । खैर । इस समय मैं श्री महाराज जी से प्राप्त रहस्यों के बारे में बता रहा हूं । जब मैं युगों के बारे में चर्चा कर रहा था । तब महाराज जी ने कहा । युगों के बारे में एक दूसरा सत्य ये भी है कि ग्यान दृष्टि से एक ही समय में चारों युग साथ साथ चलते हैं । घोर कलियुग में भी एक व्यक्ति अपने स्वभाव और विचारों से सतयुग में जीता है ।

सतयुग जैसा आचरण करता है । घोर कलियुग में भी कोई पहुंचा हुआ संत किसी स्थान या गांव आदि को सतयुग के समान बना देता है । ऐसे सैकडों गांव और स्थान मेरे अनुभव में भी आये हैं । जो कलियुग के प्रभाव से अछूते हैं । पहाडी क्षेत्रों और मैदानी क्षेत्रों की सभ्यता मे अभी भी जमीन आसमान का अंतर है । इसके कुछ ही समय बाद महाराज जी ने दस मिनट आंखे बन्द करते हुये लगभग ध्यान की अवस्था से बाहर आते हुये कहा । ये आश्चर्य है कि सतयुग आने के लक्षण दिखाई दे रहे हैं । ये मेरे लिये विस्फ़ोट होने जैसा था । क्योंकि यदि कलियुग को अभी लगभग 5 500 वर्ष ही हुये हैं । तो स्वयं महाराज जी के अनुसार ही अभी कलियुग की आयु 22 500 वर्ष शेष है ।

इसका वास्तविक रहस्य मैंने कई बार पूछने की कोशिश की । जिसको महाराज जी ने कहा । अभी इसके उत्तर का उचित समय नहीं हैं । ये फ़िर कभी बतायेंगे । इसके बाद महाराज जी ने 0 शून्य सत्ता और इसमें 1 यानी परमात्मा को जोडने का रहस्य बताया । मतलब 0 एक बार लिखा हो या करोडों बार उसका मान यानी value 0 शून्य ही रहता है । लेकिन इसी 0 में 1 यानी एक परमात्मा को जोडते ही जितने भी 0 हों उनकी value उतनी ही बड जाती है । मान लीजिये । एक लाख की संख्या दर्शाने वाले 0 अंक लिखे थे । पर वह सब 0 ही थे । यानी उनकी कोई value नहीं थी । लेकिन इसमें 1 जोडते ही value हो गयी । उम्मीद से ज्यादा हो गयी । इसके बाद महाराज जी ने दूध और घी के उदाहरण से जीव ( दूध ) और घी ( परमात्मा ) से बडा रोचक तरीका बताया ।

इसके बाद सूर्य का उदाहरण आत्मा से देते हुये बताया कि आत्मा किस तरह हर समय निर्लिप्त होता है । इसके बाद कुछ लोग आ गये । और चर्चा स्वाभाविक ही अन्य बातों पर मुड गयी । एक जिग्यासु द्वारा ये पूछ्ने पर । परमात्मा क्यों नहीं मिलता ? महाराज जी ने कहा । कहीं वस्तु रखी । कहीं खोजो । तो वस्तु न आवे हाथ । वस्तु तभी पाईये । जब भेदी होवे साथ । अर्थात परमात्मा को जानने वाले संत ही परमात्म प्राप्ति करा सकते हैं और किसी में ये सामर्थ्य नहीं होती । दूसरे जिग्यासु द्वारा पूछने पर कि महाराज जी । हम बहुत पूजा करते हैं पर कोई लाभ नहीं होता । महाराज जी ने कहा । आप डाक्टर डाक्टर ( भगवान भगवान ) करते हैं । दवा ( पूजा का सही तरीका ) नहीं खाते । इसलिये कोई लाभ नही होता ।

एक और जिग्यासु ने कहा । महाराज जी । बहुत दुख में रहता हूं । शान्ति भी नहीं है । महाराज जी ने कहा । संसार की वस्तुओं को अपना मान लेने से ही समस्त दुख होता है । मानों तो भी । न मानों तो भी । ये वस्तुये तुम्हारी सदा के लिये नहीं होंगी । बस इसी बात का दुख है


जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है....मनीष

4 comments:

  1. आपने अपना अनुभव लिख कर बहुत ही नेक कार्य किया है .....महापुरुषों की बातें परम रहस्य लिए हुए होती हैं .....मैंने अनेक पुराणों का अध्ययन किया है ....आज के युग में पतन की पराकाष्ठा देख कर सब जगह उपाय ..तत्व रहस्य ..और भविष्य के सूत्र तलाशता रहता हूँ ...आपकी ये पोस्ट निःसंदेह बहुत उपयोगी रहेगी ....धन्यवाद

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद

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  2. आपने अपने अच्छे विचार शेयर किये। इस के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।

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    1. आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं ।आपका हार्दिक धन्यवाद ...

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