Thursday, September 2, 2010

Chapter 18 of Gita.(गीता के अट्ठारह अध्याय )

श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू मापन प्रणाली
भगवद्‌गीता हिन्दू धर्म की पवित्रतम ग्रन्थों में से एक है । श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था । यह एक महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद है । इसमें एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है। इसमें देह से अतीत आत्मा का निरूपण किया गया है।

श्रीमद्भगवद्‌गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्घ है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और उसके पश्चात जीवन के समरांगण से पलायन करने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत का महानायक है अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गया है, अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी-कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से उद्विग्न होकर कर्तव्य विमुख हो जाते हैं। भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है ही, अपितु बुद्धि की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता है। उसी औपनिषदीय ज्ञान को महर्षि वेदव्यास ने सामान्य जनों के लिए गीता में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है। वेदव्यास की महानता ही है, जो कि ११ उपनिषदों के ज्ञान को एक पुस्तक में बाँध सके और मानवता को एक आसान युक्ति से परमात्म ज्ञान का दर्शन करा सके।

गीता के अट्ठारह अध्याय
१-अर्जुनविषादयोग
इस अध्याय में अर्जुन द्वारा अपने सम्बंधियों को युद्ध में शत्रु दल में अपने सामने खड़ा देख युद्ध से विमुख हो जाने का वर्णन है, जब श्रीकृष्ण अर्जुन के कहने पर रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाते है, तो वहाँ अपने पितामह भीष्म, गुरु द्रोण, कृपाचार्य तथा अन्य मित्रों तथा भाईयों को देखकर उसका मन विचलित हो जाता है और वह युद्ध से विमुख होकर रथ के पिछले भाग में जाकर बेठ जाता है।

२-सांख्ययोग

३-कर्मयोग

४-ज्ञानकर्मसंन्यासयोग

५-कर्मसंन्यासयोग

६-आत्मसंयमयोग

७-ज्ञानविज्ञानयोग

८-अक्षरब्रह्मयोग

९-राजविद्याराजगुह्ययोग

१०-विभूतियोग

११-विश्वरूपदर्शनयोग

१२-भक्तियोग

१३-क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग

१४-गुणत्रयविभागयोग

१५-पुरुषोत्तमयोग

१६-दैवासुरसम्पद्विभागयोग

१७-श्रद्धात्रयविभागयोग

१८-मोक्षसंन्यासयोग

जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK

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