Thursday, September 2, 2010

Guru & philosophy.(गुरु और तत्वज्ञान)

गुरु और तत्वज्ञान
मैं एक आध्यात्मिक गुरु, जिनको निष्चित रूप से सभी लोग जानते हैं, उनके जिज्ञासु शिष्य द्वारा पत्र भेज कर पूंछे गए प्रश्न तथा गुरुजी द्वारा दिए गए उत्तर के सन्दर्भ में आप सभी से विचार आदान-प्रदान करना चाहूंगा :
जिज्ञासु का पत्र : ज्ञान मिला तो नाचने लगे, घर पहुंचे तो नाचते हुए आनंदित, घर वाले घबडा गए, समझे पागल हो गए हैं बड़े ज्ञान की बात करते हैं, पकड़ लिया और अस्पताल में भरती करा दिया, सदा हंसता रहता हूँ, लोग समझते है मैं काम से गया.गुरूजी द्वारा उत्तर दिया गया था : ऐसा स्वाभाविक है मेरी कुछ अनुत्तरित जिज्ञासा :यदि उपरोक्त स्थिति स्वाभाविक है तो अगर सबको ज्ञान मिल गया तो क्या होगा, तथा परमपिता के उस उद्देश्य का क्या होगा जिसके लिए हमारी रचना हुई !आध्यात्म में हमेशा चर्चा का विषय रहा है कि हमें जिसने बनाया है वो कौन है, कहाँ है और हम उसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं !जबकि चर्चा का यह विषय होना चाहिए कि हम क्यों है, हमारे रचनाकार का हमें रचित करने का उद्देश्य क्या है और क्या हम उसे पूरा कर रहे हैं

 हमारे द्वारा निर्मित बल्ब उजाला न देकर यदि हमें ही जानने में लग जाय तो हम उसे फ्यूज घोषित कर देते है ! इसी तरह यदि हम सिर्फ उजाला कर रौशनी दें अपने रचनाकार को जाने या न जाने कोई फर्क नहीं पड़ता, न रचनाकार को न हमको उद्देश्य विहीन ज्ञान पागल पन है बेकार है क्या जनक जैसे ब्रम्हवेत्ता, कृष्ण जैसे तत्वज्ञानी या विवेकानंद जैसे बुद्धिमान एवं परमात्मप्राप्त उपरोक्त वर्णित स्वाभाविक स्थिति में थे


जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK

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