Thursday, September 2, 2010

Goddess worship Rules.(देवी पूजा के नियम)

देवी पूजा के नियम
दका अर्थ है-जो स्थिर है और गका अर्थ है- जिसमें गति है। उका अर्थ है स्थिर और गतिमान के बीच का संतुलन और अका अर्थ है अजन्मे ईश्वर की शक्ति। यानी दुर्गा का अर्थ हुआ, परमात्मा की वह शक्ति, जो स्थिर और गतिमान है, लेकिन संतुलित भी है।
किसी भी प्रकार की साधना के लिए शक्ति का होना जरूरी है और शक्ति की साधना का पथ अत्यंत गूढ और रहस्यपूर्ण है। हम नवरात्रमें व्रत इसलिए करते हैं, ताकि अपने भीतर की शक्ति, संयम और नियम से सुरक्षित हो सकें, उसका अनावश्यक अपव्यय न हो। संपूर्ण सृष्टि में जो ऊर्जा का प्रवाह है, उसे अपने भीतर रखने के लिए स्वयं की पात्रता तथा इस पात्र की स्वच्छता भी जरूरी है। देवी दुर्गा की उपासना करने से पहले हमें कुछ नियमों का भी ध्यान रखना चाहिए।
1.पूजा-पाठ, साधना के समय साधक को साज-श्रृंगार, शौक-मौज और कामुक विचारों से अलग रहना चाहिए।
2.मंत्र जप प्रतिदिन नियमित संख्या में करना चाहिए। कभी ज्यादा या कभी कम मंत्र जाप नहीं करना चाहिए।
3.किसी भी पदार्थ का सेवन करने से पूर्व उसे अपने आराध्य देव को अर्पित करें। उसके बाद ही स्वयं ग्रहण करें।
4.मंत्र जाप के समय शरीर के किसी भी अंग को नहीं हिलाएं।
5.दुर्गा की उपासना में मंत्र जप के लिए चंदन की माला को श्रेष्ठ माना जाता है।
6.माता लक्ष्मी की उपासना के लिए स्फटिक माला या कमलगट्टेकी माला का उपयोग करना चाहिए।
7.बैठने के लिए ऊन या कंबल के आसन का उपयोग करना चाहिए।
8.काली की आराधना में काले रंग की वस्तुओं का विशेष महत्व होता है। काले वस्त्र एवं काले रंग के आसन का प्रयोग करना चाहिए।
9.दुर्गा आराधना के समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।
10.आप किसी भी देवी की आराधना करते हों, लेकिन नवरात्रमें व्रत भी करना चाहिए।
11.घर में शक्ति की तीन मूर्तियां वर्जित हैं, अर्थात घर या पूजाघर में देवी की तीन मूर्तियां नहीं होनी चाहिए।
12.देवी के जिस स्वरूप की आराधना आप कर रहे हैं, उसका ध्यान मन ही मन करते रहना चाहिए।


जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK

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