Wednesday, January 12, 2011

Concept,Attention or Trance(धारणा, ध्यान और समाधि)

धारणा,ध्यान और समाधि

धारणा:-
अष्टांग योग का छटा चरण
धारणा अष्टांग योग का छठा चरण है। इससे पहले पांच चरण यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार हैं जो योग में बाहरी साधन माने गए हैं। इसके बाद सातवें चरण में ध्यान और आठवें में समाधि की अवस्था प्राप्त होती है। धारणा का अर्थधारणा शब्द 'धृ' धातु से बना है। इसका अर्थ होता है संभालना, थामना या सहारा देना। योग दर्शन के अनुसार-देशबन्धश्चित्तस्य धारणा। -3/1अर्थात- किसी स्थान (मन के भीतर या बाहर) विशेष पर चित्त को स्थिर करने का नाम धारणा है।आशय यह है कि यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार द्वारा इंद्रियों को उनके विषयों से हटाकर चित्त में स्थिर किया जाता है। स्थिर हुए चित्त को एक 'स्थान पर रोक लेना ही धारणा है।

कहां की जाती है धारणा
धारणा में चित्त को स्थिर होने के लिए एक स्थान दिया जाता है। योगी मुख्यत: हृदय के बीच में, मस्तिष्क में और सुषुम्ना नाड़ी के विभिन्न चक्रों पर मन की धारणा करता है।
हृदय में धारणा:- योगी अपने हृदय में एक उज्‍जवल आलोक की भावना कर चित्त को वहां स्थित करते हैं।
मस्तिष्क में धारणा:- कुछ योगी मस्तिष्क में सहस्र (हजार) दल के कमल पर धारणा करते हैं।
सुषुम्ना नाड़ी के विभिन्न चक्रों पर धारणा:- योग शास्त्र के अनुसार मेरुदंड के मूल में मूलाधार से मस्तिष्क के बीच में सहस्रार तक सुषुम्ना नाड़ी होती है। इसके भीतर स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा जैसे ऐसे चक्र होते हैं। योगी सुषुम्ना नाड़ी पर चक्र के देखते हुए चित्त को लगाता है।


अपने भीतर उतरने की क्रिया धारणाधारणा अष्टांग योग का छठा चरण है। इससे पहले पांच चरण यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार हैं जो योग में बाहरी साधन माने गए हैं। इसके बाद सातवें चरण में ध्यान और आठवें में समाधि की अवस्था प्राप्त होती है।

धारणा का अर्थ
धारणा शब्द ‘धृ’ धातु से बना है। इसका अर्थ होता है संभालना, थामना या सहारा देना। योग दर्शन के अनुसार-
देशबन्धश्चित्तस्य धारणा। -3/1

अर्थात- किसी स्थान (मन के भीतर या बाहर) विशेष पर चित्त को स्थिर करने का नाम धारणा है।
आशय यह है कि यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार द्वारा इंद्रियों को उनके विषयों से हटाकर चित्त में स्थिर किया जाता है। स्थिर हुए चित्त को एक ‘स्थान’ पर रोक लेना ही धारणा है।


ये हैं धारणा के लाभ
धारणा धैर्य की स्थिति है। स्वामी विवेकानंद इसकी उपमा प्रचलित किंवदंती से देते हैं। सीप स्वाति नक्षत्र के जल की बूंद धारण कर गहरे समुद्र में चली जाती है और परिणामस्वरूप मोती बनता है।
धारणा सिद्ध होने पर योगी को कई लक्षण प्रकट होने लगते हैं-
1. देह स्वस्थ होती है।
2. गले का स्वर मधुर होता है।
3. योगी की हिंसा भावना नष्ट हो जाती है।
4. योगी को मानसिक शांति और विवेक प्राप्त होता है।
5. आध्यात्मिक अनुभूतियां जैसे प्रकाश दिखता, घंटे की ध्वनि सुनाई देना आरंभ होता है।

ध्यान:-
अष्टांग योग का सातवां चरण
ध्यानयोग साधना का सातवां चरण है ध्यान। योगी प्रत्याहार से इंद्रियों को चित्त में स्थिर करता है और धारणा द्वारा उसे एक स्थान पर बांध लेता है। इसके बाद ध्यान की स्थिति आती है। धारणा की निरंतरता ही ध्यान है।क्या है ध्यानध्यान की उपमा तेल की धारा से की गई है। जब वृत्ति समान रूप से अविच्छिन्न प्रवाहित हो यानि बीच में कोई दूसरी वृत्ति ना आए उस स्थिति को ध्यान कहते हैं। पांतजलि योग सूत्र द्वारा इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं-तत्र प्रत्ययैकतानसा ध्यानम्। - विभूति पाद-2अर्थात- चित्त (वस्तु विषयक ज्ञान) निरंतर रूप से प्रवाहित होते रहने पर उसे ध्यान कहते हैं।समाधि की पूर्व स्थिति है ध्यानअष्टांग योग में ध्यान एक खास जीवन शैली का अंग है। आज के प्रचलित तरीकों से अलग यह ध्यान एक लंबी साधना पद्धति की चरम अनुभूति का अंग है। यह मन की सूक्ष्म स्थिति है, जहां जाग्रतिपूर्वक एक वृत्ति को प्रवाह में रहना होता है। धारण और ध्यान से प्राप्त एकाग्रता चेतना को अहंकार से मुक्त करती है। सर्वत्र चेतनता का पूर्ण बोध समाधि बन जाती है।

खुद के भीतर झांकने की क्रिया है ध्यान
एक विषय विशेष पर चित्त स्थिर करना ध्यान कहलाता है। पूजा पद्धति का यह एक अंग है। ध्यान में हम एक आसन पर बैठकर किसी स्वरूप का चिंतन करते है। पूजन के बाद या सवेरे जल्दी उठकर ध्यान करने का बड़ा महत्व है। मंदिर में दर्शन के बाद थोड़ी देर बैठने का जो नियम है वह ध्यान के लिए ही होता है।ध्यान अपनी-अपनी रुचि के अनुसार किसी का भी किया जा सकता है। जैसे दीपक की लौ, कोई बिंदू, ईश्वर के रूप आदि।महत्व - सभी धर्मों की पूजा पद्धतियों और धर्म ग्रंथों में ध्यान को बहुत महत्व दिया गया है। ध्यान से मन, बुद्धि, चित्त, स्थिर होता है, तथा शरीर में ऊर्जा का निर्माण होता है। दिमाग की सारी शक्ति एक लक्ष्य पर केंद्रित हो जाती है, तथा दिनभर ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने लक्ष्य से नहीं भटकता। योग साधना में भी ध्यान का सातवां स्थान है।

ध्यान का वैज्ञानिक महत्व - विचार शक्ति मनुष्य के पास एक अत्यंत महत्वपूर्ण शक्ति है। यदि मनुष्य अपने विचारों पर नियंत्रण कर सके तो वह असंभव को भी संभव में बदल सकता है। मनुष्य अपनी विचार शक्ति का अधिकांश भाग व्यर्थ की अनावश्यक कल्पनाओं में खर्च करता रहता है। यदि मनुष्य ध्यान के माध्यम से विचारों पर नियंत्रण कर उसे अपने सार्थक और निश्चित लक्ष्य पर लगाए तो उसका हर कार्य सुगमता पूर्वक संपन्न हो जाता है। अत: ध्यान एक ऐसी अद्भूत वैज्ञानिक विधा है। जो मनुष्य को विचार शक्ति का सदुपयोग करना एवं एकाग्रता सिखाता है।

खुद में शांति की तलाश का मार्ग : ध्यान
योग साधना का सातवां चरण है ध्यान। योगी प्रत्याहार से इंद्रियों को चित्त में स्थिर करता है और धारणा द्वारा उसे एक स्थान पर बांध लेता है। इसके बाद ध्यान की स्थिति आती है। धारणा की निरंतरता ही ध्यान है।
ध्यान की उपमा तेल की धारा से की गई है। जब वृत्ति समान रूप से अविच्छिन्न प्रवाहित हो यानि बीच में कोई दूसरी वृत्ति ना आए उस स्थिति को ध्यान कहते हैं। पांतजलि योग सूत्र द्वारा इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
तत्र प्रत्ययैकतानसा ध्यानम्। - विभूति पाद-2
अर्थात- चित्त (वस्तु विषयक ज्ञान) निरंतर रूप से प्रवाहित होते रहने पर उसे ध्यान कहते हैं |

समाधि की पूर्व स्थिति है ध्यान
अष्टांग योग में ध्यान एक खास जीवन शैली का अंग है। आज के प्रचलित तरीकों से अलग यह ध्यान एक लंबी साधना पद्धति की चरम अनुभूति का अंग है। यह मन की सूक्ष्म स्थिति है, जहां जाग्रतिपूर्वक एक वृत्ति को प्रवाह में रहना होता है। धारण और ध्यान से प्राप्त एकाग्रता चेतना को अहंकार से मुक्त करती है। सर्वत्र चेतनता का पूर्ण बोध समाधि बन जाती है।

कैसे करें ध्यान?
मन की शांति के लिए उन चीजों को मन से बाहर निकालना होगा जो दु:ख बन गई हैं। यह आसान नहीं है। उन चीजों को बाहर निकालें कैसे? दु:ख का कारण बनने वाली चीजों को बाहर निकालने की विधा ही ध्यान है। ध्यान कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है किंतु यह इतनी साधारण भी है कि आम आदमी भी इसे सहज संकल्प के साथ अपने जीवन में उतार सकता है। सुख के लिए मन में शांति चाहिए। इसके लिए मन को एकाग्र करने की जरूरत होती है। मन की एकाग्रता से आने वाली शांति को पाने का मार्ग ही ध्यान है। यही ध्यान अष्टांग योग के अंतिम चरण में समाधि की अवस्था पा लेता है।
पहले अपने दु:ख के कारणों की सूची बना लें। फिर मन को एकाग्र कर उन्हें बाहर निकालने का प्रयत्न करें। इसके लिए जरूरी है कि यह प्रक्रिया निश्चित समय पर और नियमित हो। कुश या ऊन के आसन पर शुद्ध वातावरण में बैठकर अभ्यास करना चाहिए। प्रात:काल का समय इसके लिए सवरेत्तम है।
आसन पर बैठकर पहले कुछ देर प्राणायाम करें। इससे श्वास स्थिर होगी। फिर अपने इष्टदेव का ध्यान करें। इस दौरान मन स्थिर नहीं होगा। इधर-उधर की तमाम बातें मन में आएंगी किंतु प्रयास करें कि मन अपने इष्टदेव पर स्थिर हो। दूसरी बातें आएं तो उन्हें मन से बाहर निकालें। धीरे-धीरे अभ्यास करें। पहले कुछ क्षण मन एकाग्र होगा फिर कुछ अवधि बढ़ेगी। जिस दिन मन एक मिनट तक एकाग्र हो गया, समझ लो ध्यान का रास्ता खुल गया। आज के युग में दस मिनट का ध्यान लगा लेने वाला योगी कहलाने योग्य है। यदि पाप वासनाएं और कामनाएं सदा के लिए चली जाएं तो समझो आप परमयोगी हैं।

ध्यान साधना है। यह जीवनभर शिविरों में अभ्यास के बाद भी नहीं आ सकता और एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन से क्षणभर में आ सकता है। ध्यान का जीवन में घटना हमारी इच्छाशक्ति पर निर्भर है। इसके लिए ऐसे योग्य गुरु का मार्गदर्शन जरूरी है, जो ध्यान का आनंद ले रहे हों। शिविरों और ऐसे ही दिखावटी आयोजनों में ध्यान का नाटक हो सकता है। ध्यान लगाया नहीं जा सकता। ध्यान लगाने वाले बार-बार समय देखते हैं। अपने मार्गदर्शक से समय सीमा पूछते हैं। सच तो यह है, जब जीवन में ध्यान घटता है तो समय की सीमा रह ही नहीं जाती। बीता समय क्षण मात्र लगता है। ध्यान असीम आनंद है।

ध्यान से हैं कई फायदे
ध्यान से सबसे बड़ी चीज मिलती है सकारात्मक सोच।
- जब हम एकाग्र होते हैं तो ज्यादा ऊर्जा से लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। ध्यान हमें इसी दिशा में ले जाता है।
- कहते हैं ध्यान से मनचाही चीज मिल सकती है। आम लोग सांसारिक वस्तुओं की कामना करते हैं तो योगी परमात्मा की।
- ध्यान से सामान्यजन की कार्यक्षमता (वर्किग केपेसिटी)और सृजनात्मकता (क्रिएटिविटी) बढ़ती है।
- आम आदमी को शांति चाहिए तो योगी को परमात्मा। ध्यान दोनों की कामना पूरी करता है।
- ध्यान घटने में पल भी लग सकता है और कई जन्म भी। पल में ध्यान को उपलब्ध होना और शांति पाना हो तो मन को जीतना पड़ेगा। यह संकल्प से ही संभव है।

कौन सा समय श्रेष्ठ है ध्यान के लिए?
मेडिटेशन यानी ध्यान के लिए यूं तो कोई बंध नहीं है लेकिन फिर भी श्रेष्ठ परिणाम के लिए समय तय किया जाए तो बेहतर होता है। ध्यान के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है शांति और एकाग्रता। ये दोनों जब सुलभ हों, वह समय ध्यान के लिए सबसे अच्छा होता है।
योगी के लिए समय का कोई बंधन नहीं है किंतु नए साधक (अभ्यासकर्ता) के लिए समय की मर्यादा तय की गई है। यह अभ्यास को मजबूत करने के लिए है। निश्चित समय पर ध्यान का अभ्यास करने से न सिर्फ संकल्प शक्ति दृढ़ होती है बल्कि सफलता भी आसान होती है।
ध्यान के लिए प्रात:, मध्याह्न्, सायं और मध्यरात्रि का समय उचित बताया गया है। इन्हें संधिकाल कहते हैं। संधिकाल यानी जब दो प्रहर मिलते हैं। जैसे प्रात:काल में रात्रि और सूर्योदय, मध्याह्न् में सुबह और दोपहर मिलती है। सबसे उत्तम समय ब्रrा मुहूर्त (सूर्योदय से पहले का समय) का है। मान्यता है इस समय ध्यान करने से विशेष लाभ मिलता है। कारण कि रात में नींद पूरी होने से हमारे मन के विकार भी शांत हो चुके होते हैं। नींद से जागते ही ध्यान में बैठने से एकाग्रता बनती है।

समाधि:-
अष्टांग योग अंतिम चरण
अष्टांग योग अंतिम चरणसमाधिअष्टांग योग की उच्चतम सोपान समाधि है। यह चेतना का वह स्तर है, जहां मनुष्य पूर्ण मुक्ति का अनुभव करता है। क्या है समाधियोग शास्त्र के अनुसार ध्यान की सिद्धि होना ही समाधि है। पातंजलि योगसूत्र में कहा गया है-तदेवार्थमात्र निर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधि:। 3-3अर्थ- वह ध्यान ही समाधि है जब उसमें ध्येय अर्थमात्र से भासित होता है और ध्यान का स्वरूप शून्य जैसा हो जाता है।यानि ध्याता (योगी), ध्यान (प्रक्रिया) तथा ध्येय (ध्यान का लक्ष्य) इन तीनों में एकता-सी होती है। समाधि अनुभूति की अवस्था है वह शब्द, विचार व दर्शन सबसे परे है।कैसी होती है समाधिसमाधि युक्ति-तर्क से परे एक अतिचेतन का अनुभव है। इस स्थिति में मन उन गूढ़ विषयों का भी ज्ञान प्राप्त कर लेता है, जो साधारण अवस्था में बुद्धि द्वारा प्राप्त नहीं होते। समाधि और नींद में हमें एक जैसी अवस्था प्रतीत होती है, दोनों में हमारा (बाह्य) स्वरूप सुप्त हो जाता है लेकिन स्वामी विवेकानंद स्पष्ट करते हैं 'जब कोई गहरी नींद में सोया रहता है, तब वह ज्ञान या चेतन की निम्न भूमि में चला जाता है। नींद से उठने पर वह पहले जैसे ही रहता है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। किंतु जब मनुष्य समाधिस्थ होता है तो समाधि प्राप्त करने के पहले यदि वह महामूर्ख रहा हो, अज्ञानी रहा हो तो समाधि से वह महाज्ञानी होकर व्युत्थित होता है।

परमसुख की प्राप्ति यानी समाधि
अष्टांग योग की उच्चतम सोपान समाधि है। यह चेतना का वह स्तर है, जहां मनुष्य पूर्ण मुक्ति का अनुभव करता है।योग शास्त्र के अनुसार ध्यान की सिद्धि होना ही समाधि है। पातंजलि योगसूत्र में कहा गया है-
तदेवार्थमात्र निर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधि:। 3-3
अर्थ- वह ध्यान ही समाधि है जब उसमें ध्येय अर्थमात्र से भासित होता है और ध्यान का स्वरूप शून्य जैसा हो जाता है।
यानि ध्याता (योगी), ध्यान (प्रक्रिया) तथा ध्येय (ध्यान का लक्ष्य) इन तीनों में एकता-सी होती है। समाधि अनुभूति की अवस्था है वह शब्द, विचार व दर्शन सबसे परे है।

कैसी होती है समाधि
समाधि युक्ति-तर्क से परे एक अतिचेतन का अनुभव है। इस स्थिति में मन उन गूढ़ विषयों का भी ज्ञान प्राप्त कर लेता है, जो साधारण अवस्था में बुद्धि द्वारा प्राप्त नहीं होते। समाधि और नींद में हमें एक जैसी अवस्था प्रतीत होती है, दोनों में हमारा (बाह्य) स्वरूप सुप्त हो जाता है लेकिन स्वामी विवेकानंद स्पष्ट करते हैं ‘जब कोई गहरी नींद में सोया रहता है, तब वह ज्ञान या चेतन की निम्न भूमि में चला जाता है। नींद से उठने पर वह पहले जैसे ही रहता है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। किंतु जब मनुष्य समाधिस्थ होता है तो समाधि प्राप्त करने के पहले यदि वह महामूर्ख रहा हो, अज्ञानी रहा हो तो समाधि से वह महाज्ञानी होकर व्युत्थित होता है।’


जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है..MMK

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