Thursday, November 13, 2014

Islam Religion (इस्लाम धर्म)


इस्लाम धर्म का जन्म
इस्लाम का अर्थइस्लाम अरबी शब्द है जिसकी धातु सिल्म है। सिल्म का अर्थ सुख, शांति, एवं समृद्धि है। कुरान के अनुसार जो सुख, संपदा और संकट में समान रहते हैं, क्रोध को पी जाते हैं और जिनमें क्षमा करने की ताकत हैं, जो उपकारी है, अल्लाह उन पर रहमत रखता है।शब्दकोश में दिए अर्थ के अनुसार इस्लाम का अर्थ है - अल्लाह के सामने सिर झुकाना, मुसलमानों का धर्म। इस्लाम को अरबी में हुक्म मानना, झुक जाना, आत्म समर्पण, त्याग, एक ईश्वर को मानने वाले और आज्ञा का पालन करने वाला कहा है। इस प्रकार संक्षिप्त में हम कह सकते हैं कि विनम्रता और पवित्र ग्रंथ कुरान में आस्था ही इस्लाम की पहचान है। वास्तव में इस्लाम अरबी भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ है 'शांति में प्रवेश करना होता है। अत: सच्चा मुस्लिम व्यक्ति वह है जो 'परमात्मा और मनुष्य के साथ पूर्ण शांति का संबंध रखता हो। अत: इस्लाम शब्द का लाक्षणिक अर्थ होगा वह धर्म जिसके द्वारा मनुष्य भगवान की शरण लेता है तथा मनुष्यों के प्रति अङ्क्षहसा एवं प्रेम का बर्ताव करता है।

इस्लाम धर्म का उद्भव और विकासइस्लाम धर्म के प्रर्वतक हजरत मुहम्मद साहब थे। इनका जन्म अरब देश के मक्का शहर में सन् 570 ई. में हुआ था। जब हजरत मुहम्मद अरब में इस्लाम का प्रचार कर रहे थे उन दिनों भारत में हर्षवर्धन और पुलकेशी का राज्य था। इस्लाम धर्म के मूल ग्रंथ कुरान, सुन्नत और हदीस हैं। कुरान उस पुस्तक का नाम है जिसमें मुहम्मद के पास ईश्वर के द्वारा भेजे गए संदेश एकत्रित हैं। सुन्नत वह ग्रंथ (पुस्तक) है जिसमें मुहम्मद साहब के कर्मों का उल्लेख है और हदीस वह किताब है जिसमें उनके उपदेशों का संकलन(एकत्रित) हैं।

संस्थापक मुहम्मद साहबमुहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म की स्थापना किसी योजना के तहत नहीं की बल्कि इस धर्म का उन्हें इलहाम (ध्यान समाधि की अवस्था में प्राप्त हुआ) हुआ था। कुरान में उन बातों का संकलन है जो मुहम्मद साहब के मुखों से उस समय निकले जब वे अल्लाह के संपर्क में थे। यह भी मान्यता है कि भगवान कुरान की आयतों को देवदूतों के माध्यम से मुहम्मद साहब के पास भेजते थे। इन्हीं आयतों के संकलन से कुरान तैयार हुई है।

मुहम्मद साहब का आध्यात्मिक जीवनजब से मुहम्मद साहब को धर्म का इलहाम हुआ तभी से लोग उन्हें पैगम्बर, नबी और रसूल कहने लगे। पैगम्बर कहते हैं पैगाम (संदेश) ले जाने वाले को। हजरत मुहम्मद के जरिए भगवान का संदेश पृथ्वी पर पहुंचा। इसलिए वे पैगम्बर कहे जाते हैं। नबी का अर्थ है किसी उपयोगी परम ज्ञान की घोषणा को। मुहम्मद साहब ने चूंकि ऐसी घोषणा की इसलिए वे नबी हुए। तब से नबी का अर्थ वह दूत भी गया जो परमेश्वर और समझदार प्राणी के बीच आता जाता है। मुहम्मद साहब रसूल हैं, क्योंकि परमात्मा और मनुष्यों के बीच उन्होंने धर्मदूत का काम किया।

इस्लाम का मूल मंत्र'ला इलाह इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाह यह इस्लाम का मूल है। जिसका अर्थ है-''अल्लाह के सिवा और कोई पूज्यनीय नहीं है तथा मुहम्मद उसके रसूल है। ऐसी मान्यता हैं, कि केवल अल्लाह को मनाने से कोई आदमी पक्का मुसलमान नहीं हो जाता, उसे यह भी मानना पड़ता है कि मुहम्मद अल्लाह के नबी, रसूल और पैगम्बर हैं।

इस्लाम धर्म के उपदेश
१ अल्लाह है और वह एक है, सबसे बड़ा है।
२ अल्लाह ने मनुष्यों के मार्गदर्शन को नबी भेजें।
३ मोहम्मद साहब आखिरी रसूल हैं।
४ आखरियत सत्य हैं।
५ एक दिन दुनिया मिट जाएगी। फिर खुदा दूसरी दुनिया बनाएगा। जीवन दान देगा।
६ खुदा बंदे के अच्छे बुरे कामों का बदला देगा।
७ धर्म के पाबंद लोग ही जन्नत जाएंगे।
८ धर्म न मानने वाले काफिर जहन्नुम में जाएंगे।
९ नमाज पढऩा व रोजा रखना फर्ज है।
१० कुरान की बात मानना हर मुसलमान का फर्ज है। यह खुदा की किताब है।
११ किसी पर बुरी नजर न रखो, किसी पर जुल्म मत करो, बदचलनी से बचो।
१२ जकात व कुर्बानी मानना हर मुस्लिम का फर्ज है।
१३ अन्याय के शिकार व्यक्ति की आह को अल्लाह कभी भी अनसुना नहीं करता।
१४ ईश्वर की दया काफिर व मोमिन दोनों को समान रूप।

जन्नत का रास्ताइस्लाम धर्म के अनुसार हदीस कहती है कि बंदे तू मुझे छह बातों का विश्वास दिला, मैं तुझे जन्नत बख्श दुंगा। ये छ: बातें हैं:
1. सच बोलो
2. अपना वायदा पूरा करो
3. बदचलनी से बचो
4. अमानत में पूरे उतरो
5. किसी पर बुरी नजर मत डालो
6. किसी पर जुल्म न करोइन छह बातों के अतिरिक्त हदीस का यह भी कहना है कि जिसके पड़ौसी दु:खी हो वह सच्चा मुसलमान नहीं। जो स्वार्थी है, ईश्वर को नहीं मानता, वो मुसलमान नहीं।

इस्लाम धर्म की मान्यताएं एवं परंपराएं
कुरान ही इस्लाम धर्म का प्रमुख ग्रंथ है। कुरान में मुसलमानों के लिए कुछ नियम एवं तौर-तरीके बताए गए हैं। जिनका पालन करना सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य बताया गया है। कुरान हर मुसलमान के लिए पांच धार्मिक कार्य निर्धारित करता है। वे कृत्य हैं :-

१. कलमा पढऩा- कलमा पढऩे का मतलब यह है कि हर मुसलमान को इस आयत को पढऩा चाहिए। अल्लाह एक है और मुहम्मद उसके रसूल है। 'ला इलाह इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलल्लाह इस्लाम का ऐकेश्वरवाद (तोहीद) इसी मंत्र पर आधारित है।
२. नमाज पढऩा- हर मुसलमान के लिए यह नियम है कि वह प्रतिदिन दिन में पांच बार नमाज पढ़े। इसे सलात भी कहा जाता है।
३. रोजा रखना- अर्थात् रमजान के पूरे महीनेभर केवल सूर्यास्त के बाद भोजन करना। वर्षभर में रमजान महीना इसलिए चुना गया कि इसी महीने में पहले-पहल कुरान उतारा था।
४. जकात- इस्लाम धर्म में जकात का बड़ा महत्व है। अरबी भाषा में जकात का अर्थ है- पाक होना, बढऩा, विकसित होना। अपनी वार्षिक आय का चालीसवां हिस्सा (ढाई प्रतिशत) दान में देना।
५. हज- अर्थात् तीर्थों में जाना। इस्लाम धर्म में पहले ये तीर्थ केवल मक्का और मदीने में थे। अब संतों फकीरों की समाधियों को भी मुस्लिम तीर्थ मानते हैं।

इस्लाम के रीति-रिवाज
१. जन्नत- इस्लाम धर्म जन्नत पर यकीन करने वाला धर्म है। जन्नत स्वर्ग को कहते हैं। जहां पर अल्लाह को मानने वाले, सच बोलने वाले, ईमान रखने वाले (ईमानदार) मुसलमान रहेंगे।

२. जिहाद- इस्लाम धर्म में जिहाद से बड़ा महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जिहाद का वास्तविक मतलब है किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी जान की पूरी ताकत लगा देने वाला। जिहाद केवल लडऩा या युद्ध करना नहीं है। जिहाद का वास्तविक तात्पर्य यह है कि हर इंसान, हर घड़ी अपने उद्देश्य की प्राप्ति में पूरे दिलो-दिमाग से लगा रहे। अपनी समस्त क्षमता धन, यश, बुद्धि, वाणी व लेखनी से लगातार अपनी मंजिल को पाने की कोशिश करता रहे, अपने लक्ष्य और उद्देश्य के लिए ही पूरी तरह समर्पित हो जाए। लक्ष्य प्राप्ति तक बिना रुके जुटा रहे यही जिहाद है।

३. कुर्बानी- इस्लाम धर्म में कुर्बानी की बड़ी मान्यता है। मुस्लिम मत के अनुसार हजरत इब्राहिम की यादगार को कुर्बानी कहते हैं। हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे इस्माइल को अल्लाह की प्रसन्नता के लिए कुर्बान करना चाहा। अल्लाह ने हजरत इब्राहीम की ये भेंट दूसरे रूप में स्वीकार की। अल्लाह ने हजरत इब्राहीम को पवित्र काबा में नियुक्त कर दिया। तब से अपनी जान के बदले जानवर की कुर्बानी करने की प्रथा बन गई।

४. आखरियत- इस्लाम धर्म में आखरियत को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। आखरियत का आशय परलोकगामी है और परलौकिक जीवन भी है। ये बात इस्लाम की मौलिक शिक्षाओं में शामिल है। इस्लाम धर्म की मान्यता है कि वर्तमान जीवन अत्यंत सीमित एवं छोटा है।एक समय आएगा जब विश्व की व्यवस्था बिगड़ जाएगी और ईश्वर नए विश्व का निर्माण करेगा जिसके नियम कायदे वर्तमान विश्व से भिन्न होंगे। जो कि वर्तमान में अप्रत्यक्ष है।

ईमान और कुफ्रइस्लाम के समग्र सिद्धांत दो भागों में बांटे जा सकते हैं। एक का नाम 'उसूल' और दूसरे का नाम 'फरु' है। कुरान सिर्फ ईमान और अमल, इन दो शब्दों को उल्लेख करता है। अब ईमान का पर्याय उसूल और अमल का फरु है। उसूल वे धार्मिक सिद्धांत है जिन्हें नबी ने बताया है। फरु उन सिद्धांतों के अनुसार आचरण करने को कहते हैं। अतएव मुहम्मद साहब के उपदेश उसूल अथवा मूल हैं और उन पर अमल करने का नाम 'फरु' अथवा शाखा है।इस्लाम धर्म की मान्यता है कि अल्लाह ही अपने में सभी को समेटे है। उसने सभी को एक समान बनाया है। न कोई छोटा है और न कोई बड़ा । इस्लाम धर्म भी अन्य धर्मों की तरह स्त्रियों को अधिकार देता है। इस्लाम धर्म की मान्यता है कि मनुष्यों की एक जाति है।

मुस्लिम लड़कियों का मॉडलिंग करना वर्जित क्यों
इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो अपने धार्मिक नियम-कायदों का कड़ाई से पालन करने में विश्वास रखता है। इस्लाम धर्म के अनुयाई यानि कि इस्लाम को मानने वाले शरई या शरियत के नियम कायदों को अटल एवं अंतिम मानते हैं। शरियत एक ऐसा कायदानामा है जिसमें प्रत्येक मुस्लिम मर्द और औरत के लिए अनियार्य नियम- कानून होते हैं।शरियत में इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी प्रमुख घटनाओं में जो नियम पालने होते हैं, उनका विस्तार से वर्णन किया गया है।

इस्लाम धर्म की प्रमुख संस्थाएं दारूल उलूम देवबंद , आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और वक्फ दारूल उलूम...आदि सभी ने कुछ कार्यों को मुस्लिम पुरुषों और स्त्रियों के लिये हराम बताया है। गैर मर्दों के साथ आफिसों में काम करना, बुर्का छोड़कर मार्डन कपड़े पहनना तथा लड़कियों का माड़लिंग करना ऐसे ही कुछ वर्जित कार्य हैं।

इस्लामी शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद ने एक फ तवा जारी कर कहा है कि मुस्लिम लड़कियों का मॉडलिंग करना हराम है क्योंकि यह इस्लामिक शरई कानूनों के खिलाफ है। इनके अनुसार इस्लामी कानून में ऐसा करना हराम है।इसमें उन्होंने कहा कि महिलाओं के मॉडलिंग करने तथा उस दौरान भौंड़ेपन और बदन का प्रदर्शन करने वाले लिबास पहनना शरियत कानून के खिलाफ है। इस्लामी कानून में ऐसा करना हराम है।

बुर्का या हिज़ाब क्यों पहनती हैं मुस्लिम युवतियां
हर मुस्लिम महिला या लड़की के लिए हिज़ाब या बुर्का पहनना धार्मिक अनिवार्यता है। इसके पीछे धार्मिक महत्व तो है ही परंतु वैज्ञानिक कारण भी हैं। बुर्का पहनने की पहनने की परंपरा अरब देशों से शुरू हुई मानी जाती है। अरब देशों में गर्मी और रेतीला वातावरण रहता है। लड़कियों की त्वचा कोमल रहती है और वहां अत्यधिक गर्मी की वजह से त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही तेज हवा चलने पर रेत भी हवा के साथ उड़ती है, ऐसे में कोमल त्वचा पर रेत का लगना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। इस बुरे प्रभाव से बचने के लिए हिज़ाब पहनने की परंपरा शुरू की गई। हिज़ाब के और भी कई फायदे हैं जैसे इसे पहनने से बुरी नजर से भी बचाव हो जाता है और लड़कियों की सुरक्षा की दृष्टि से हिज़ाब बहुत कारगर है। इन्हीं सारे फायदों की वजह से अरब देशों से शुरू हुई यह परंपरा धीरे-धीरे सभी जगह प्रचलन में आ गई।

जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है.....
मनीष

No comments:

Post a Comment