Monday, July 22, 2013

Guru Purnima (गुरु पूर्णिमा)

















गुरु पूर्णिमा 22 को, करें गुरु का सम्मान व पूजा

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। हिंदू धर्म में इस पूर्णिमा का विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के अवतार वेद व्यासजी का जन्म हुआ था। इन्होंने महाभारत आदि कई महान ग्रंथों की रचना की। कौरव, पाण्डव आदि सभी इन्हें गुरु मानते थे इसलिए आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा व व्यास पूर्णिमा कहा जाता है। इस बार गुरु पूर्णिमा  22 जुलाई, सोमवार को है।



इस दिन गुरु की पूजा कर सम्मान करने की परंपरा प्रचलित है। हिंदू धर्म में गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि गुरु ही अपने शिष्यों को सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है तथा जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार करता है इसलिए यह कहा गया है-



गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वर:।

गुरु: साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:।।



अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।



गुरु पूर्णिमा अर्थात सद्गुरु के पूजन का पर्व। गुरु की पूजा, गुरु का आदर किसी व्यक्ति की पूजा नहीं है अपितु गुरु के देह के अंदर जो विदेही आत्मा है, परब्रह्म परमात्मा है उसका आदर है, ज्ञान का आदर है, ज्ञान का पूजन है, ब्रह्मज्ञान का पूजन है।



गुरु की कृपा पाने का दिन है गुरु पूर्णिमा

हिंदू धर्म में सदैव गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है क्योंकि गुरु ही अपने शिष्यों को नवजीवन प्रदान करता है उन्हें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु के महात्मय को समझने के लिए ही प्रतिवर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार गुरु पूर्णिमा का पर्व 22 जुलाई, सोमवार को है।



गुरु शब्द में ही गुरु का महिमा का वर्णन है। गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है प्रकाश। इसलिए गुरु का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला यानी गुरु ही शिष्य को जीवन में सफलता के लिए उचित मार्गदर्शन करता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो व्यक्ति गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करता है उसका जीवन सफल हो जाता है। महर्षि वेदव्यास ने भविष्योत्तर पुराण में गुरु पूर्णिमा के बारे में लिखा है, उसके अनुसार -



मम जन्मदिने सम्यक् पूजनीय: प्रयत्नत:। 
आषाढ़ शुक्ल पक्षेतु पूर्णिमायां गुरौ तथा।।

पूजनीयो विशेषण वस्त्राभरणधेनुभि:। 
फलपुष्पादिना सम्यगरत्नकांचन भोजनै:।।

दक्षिणाभि: सुपुष्टाभिर्मत्स्वरूप प्रपूजयेत। 
एवं कृते त्वया विप्र मत्स्वरूपस्य दर्शनम्।।



अर्थात- आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मेरा जन्म दिवस है। इसे गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन पूरी श्रृद्धा के साथ गुरु को सुंदर वस्त्र, आभूषण, गाय, फल, पुष्प, रत्न, स्वर्ण मुद्रा आदि समर्पित कर उनका पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से गुरुदेव में मेरे ही स्वरूप के दर्शन होते हैं।



जीवन को सुखी बनाने के लिए गुरु पूर्णिमा (22 जुलाई) पर क्या खास करें

जीवन को दिव्य बनानेवाली पूनम गुरुपूनम का अन्य सभी पूनमों से ज्यादा महत्त्व है क्योंकि इसमें तप, श्रद्धा के साथ ज्ञान की विशेषता है। समाज जिधर मुड़ता है उस चीज का विशेष प्रचार होता है। फिल्मों की तरफ समाज मुड़ा तो बच्चे-बच्चियाँ अभिनेता-अभिनेत्रियाँ बनने की धुन में लगे हैं। धन का आदर बढ़ा तो लोग छल-कपट करके धनवान होने की होड़ में शामिल हो गये परंतु समाज की वास्तविक उन्नति तो ब्रह्मविद्या का आदर होने से ही होती है, उसीसे समाज को सही दिशा मिलती है।



जैसे बिना आँख के सारी मिल्कियत, सारा वैभव व्यर्थ हो जाता है, ऐसे ही बिना ज्ञान के आत्मवैभव व्यर्थ न हो जाय इसलिए ज्ञानसंयुक्त तपवाली जो यह गुरुपूनम है यह सभी पूनमों से महत्त्वपूर्ण है, बड़ी है। ज्ञानमय तप की प्रेरणा देनेवाली, जीवन में निखार लानेवाली, सर्वांगीण विकास करानेवाली जो पूर्णिमा है उसे ही गुरुपूर्णिमा अथवा व्यासपूर्णिमा कहते हैं।



इस पूनम से संन्यासी, तपस्वी चतुर्मास का आरंभ करते हैं। साधक संकल्प करते हैं कि ‘इस चतुर्मास में अनुष्ठान करूँगा और अपनी शक्तियों को विकसित करूँगा। ऐसा नहीं कि हमें भोगी लोग निचोड़कर फेंक दें और हम लाचार हो जायें, साधना के मार्ग से विचलित हो जायें। नहीं, हम अपने जीवन की ज्योत को जगायें, जिस स्वरूप में गुरुदेव जगे हैं उस ‘सोऽहं’ स्वरूप को जगायें। अंधकार को मिटाकर आत्मप्रकाश कराने में उत्साहित कर प्रेरणा और मार्गदर्शन देनेवाली पूनम का नाम है गुरुपूनम।



गुरु शब्द का अर्थ होता है ‘बहुत बड़ा’। बड़े-में-बड़े परब्रह्म परमात्मा के ज्ञान से जो सम्पन्न हैं, ऐसे व्यासतुल्य ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों का सान्निध्य दिलाती है गुरुपूनम। बाह्य सान्निध्य के साथ-साथ जब हम उनसे श्रद्धा-भक्ति से जुड़ते हैं तो हमारा भी अंतःकरण बदलता है।



यह कहावत तो प्रसिद्ध है कि ‘खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।’ ऐसे ही गुरु को देखकर शिष्य का भी रंग बदलने लगता है, वह उन्नत होने लगता है। अभिनेता-अभिनेत्री को देखकर मनुष्य उस भाव में बहने लगता है, हीन वृत्तियों में जीनेवाले शराबी-कबाबी का संग करने से उसका रंग चढ़ता है लेकि न जब संतों का, गुरु का संग होता है तो गुरु के प्यारों का भी दिल बदलता है।



जहाँ स्वार्थ होता है वहाँ निःस्वार्थता और जहाँ अहं होता है वहाँ सज्जनता, सरलता आती है। जहाँ विकारी आकर्षण होता है वहाँ निर्विकारी नारायण का आकर्षण उभरने लगता है। जहाँ नश्वर की माँग रहती है वहाँ शाश्वत की तरफ झुकाव होने लगता है।



व्यासपूनम व्यापक आध्यात्मिक प्रसाद बाँटने में बड़ी सहायता करती है, इसलिए सारे व्रत-उत्सवों से भी यह बढ़कर है। इसका आदर मनुष्य तो करते ही हैं, देवता भी करते हैं। जीवन को दिव्य बनानेवाली, सनातन सत्य से जुड़ने में सहायता करनेवाली यह पूनम है। जैसे पूनम का चाँद पूर्ण कलाओं से विकसित होता है ऐसे ही जीवन को पूर्ण ढंग से विकसित करने के लिए यह पर्व बहुत सहायक सिद्ध होता है। ईश्वर में तदाकार होने के लिए यह पर्व मनाया जाता है।



जो तेरे दीदार के आशिक हैं वे समझाये नहीं जाते।

कदम रखते हैं आगे तो फिर लौटाये नहीं जाते।



कैसे करें सुबह की शुरुआत गुरुपूनम के दिन?

इस दिन सुबह बिस्तर पर तुम प्रार्थना करना - ‘‘हे महान पूर्णिमा! हे गुरुपूर्णिमा! अब हम अपनी आवश्यकता की ओर चलेंगे। इस देह की सम्पूर्ण आवश्यकताएँ कभी किसीकी पूरी नहीं हुईं। हुईं भी तो संतुष्टि नहीं मिली। अपनी असली आवश्यकता की तरफ हम आज से कदम रख रहे हैं।’’



उसी समय ध्यान करना। शरीर बिस्तर छोड़े उसके पहले अपने प्रियतम को मिलना। गुरुदेव का मानसिक पूजन करना। वे तुम्हारे मन की दशा देख भीतर-ही-भीतर संतुष्ट होकर अपनी अनुभूति की झलक से तुम्हें आलोकित कर देंगे। उनके पास उधार नहीं है, वे तो नगदधर्मा हैं।



जानिए, जीवन में गुरु का होना क्यों जरुरी है



हिन्दू धर्म में आषाढ़ पूर्णिमा ( इस वर्ष 22 जुलाई, सोमवार) गुरु भक्ति को समर्पित गुरु पूर्णिमा का पवित्र दिन भी है। भारतीय सनातन संस्कृति में गुरु को सर्वोपरि माना है। वास्तव में यह दिन गुरु के रुप में ज्ञान की पूजा का है। गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है, जितना माता-पिता का।



माता-पिता के कारण इस संसार में हमारा अस्तित्व होता है। किंतु जन्म के बाद एक सद्गुरु ही व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व सिखाता है, जिससे व्यक्ति अपने सद्कर्मों और सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है। यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। सद्गुरु ने ही भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया इसलिए गुरुपूर्णिमा को अनुशासन पर्व के रुप में भी मनाया जाता है।



इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास गुरु ही करता है। जिससे जीवन की कठिन राह को आसान हो जाती है। सार यह है कि गुरु शिष्य के बुरे गुणों को नष्ट कर उसके चरित्र, व्यवहार और जीवन को ऐसे सद्गुणों से भर देता है। जिससे शिष्य का जीवन संसार के लिए एक आदर्श बन जाता है। ऐसे गुरु को ही साक्षात ईश्वर कहा गया है इसलिए जीवन में गुरु का होना जरुरी है।



गुरु पूर्णिमा पर 1 आसान गुरु मंत्र बोल करें तमाम मुश्किलों का सफाया

हिन्दू पंचांग के आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि (22 जुलाई) गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा खासतौर पर गुरु भक्ति का पुण्य काल है। दरअसल, जिस ज्ञान, बुद्धि, बल के द्वारा इंसान जीवन को सफल बनाता है, वह गुरु की ही देन होती है।



जीवन यात्रा में यह जरूरी नहीं कि यह गुरु मात्र धर्म, अध्यात्म क्षेत्र या पहनावे से जुड़ा हो या कोई एक ही व्यक्तित्व हो, बल्कि हर वह इंसान, जो दु:ख के दलदल से दूर रख खुशहाली की राह बताने का ज्ञान, कौशल, सीख और भरोसा दे, गुरु माना गया है



धर्मशास्त्रों में गुरु भक्ति के लिए ही एक आसान किंतु अपार गुरु और देव कृपा देने वाला मंत्र बताया गया है। इसमें गुरु को साक्षात् ईश्वर बताया गया है। गुरु को त्रिदेव रूपी 3 शक्तियों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का ही स्वरूप माना गया है और उजागर किया गया है कि गुरु का ज्ञान बल त्रिदेवों की रचना, पालन व संहार शक्तियों के समान ही होता है। इस मंत्र के स्मरण से शिष्य या गुरु भक्त श्री, यश, प्रतिष्ठा, सुख और वैभव पाता है। इस मंत्र का इष्ट देव, धार्मिक या आध्यात्मिक गुरु की पूजा के वक्त स्मरण करें।



जानिए गुरु पूजा का आसान तरीका और यह खास मंत्र –

गुरु पूर्णिमा के दिन पहले खासतौर पर इष्टदेव की प्रतिमा पूजा चंदन, अक्षत, फूल, वस्त्र, श्रीफल यानी नारियल और वस्त्र समर्पित कर करें और आगे बताए जा रहे सरल मंत्र का ध्यान करें। भोग लगाकर धूप, दीप से आरती कर मंगल कामना करें। - धार्मिक या आध्यात्मिक गुरु की पूजा में गुरुदेव को मस्तक व चरणों में नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए अष्टगंध या केसर चंदन लगाएं।



गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।



जानिए गुरु मंत्र स्मरण के बाद गुरु भक्ति या सेवा के लिए और क्या करें- गुरु मंत्र स्मरण के बाद इस तरह गुरु पूजा करें - - अक्षत व सुगंधित फूल या फूलों की माला अर्पित करें। - वस्त्र, शाल, दुपट्टा व नारियल व यथाशक्ति दक्षिणा भेंट करें। - मिठाई, फल आदि नैवेद्य समर्पित करें। - गुरु की कर्पूर या दीप आरती करें। गुरु के श्री चरणों में वंदन करें सुखी, शांत और सफल जीवन की कामना करें।



गुरु पूर्णिमा, इन उपायों से चमकाएं किस्मत

22 जुलाई, सोमवार को गुरु पूर्णिमा है। हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन सभी लोग अपने-अपने गुरु की पूजा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गुरु की कृपा के बिना कहीं भी सफलता नहीं मिलती। ज्योतिष के अनुसार भी गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। जिन लोगों की कुंडली में गुरु प्रतिकूल स्थान पर होता है, उनके जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते है। वे लोग यदि गुरु पूर्णिमा के दिन नीचे लिखे उपाय करें तो उन्हें इससे काफी लाभ होता है। यह उपाय इस प्रकार हैं-



1- भोजन में केसर का प्रयोग करें और स्नान के बाद नाभि तथा मस्तक पर केसर का तिलक लगाएं।

2- साधु, ब्राह्मण एवं पीपल के वृक्ष की पूजा करें।

3- गुरु पूर्णिमा के दिन स्नान के जल में नागरमोथा नामक वनस्पति डालकर स्नान करें।

4- पीले रंग के फूलों के पौधे अपने घर में लगाएं और पीला रंग उपहार में दें।

5- केले के दो पौधे विष्णु भगवान के मंदिर में लगाएं।

6- गुरु पूर्णिमा के दिन साबूत मूंग मंदिर में दान करें और 12 वर्ष से छोटी कन्याओं के चरण स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद लें।

7- शुभ मुहूर्त में चांदी का बर्तन अपने घर की भूमि में दबाएं और साधु संतों का अपमान नहीं करें।

8- जिस पलंग पर आप सोते हैं, उसके चारों कोनों में सोने की कील अथवा सोने का तार लगाएं।



ऐसे मनाएं गुरू पूर्णिमा का त्योहार

गुरु के पूजन का दिन है - गुरुपूर्णिमा परंतु गुरुपूजा क्या है? गुरु बनने से पहले गुरु के जीवन में भी कई उतार-चढ़ाव आये होंगे, अनेक अनुकूलताएं-प्रतिकूलताएं आयी होंगी, उनको सहते हुए भी वे साधना में रत रहे, ‘स्व’ में स्थित रहे, समता में स्थित रहे।



वैसे ही हम भी उनके संकेतों को पाकर उनके आदर्शों पर चलने का, ईश्वर के रास्ते पर चलने का दृढ़ संकल्प करके तदनुसार आचरण करें तो यही बढ़िया गुरुपूजन होगा। हम भी अपने हृदय में गुरुतत्त्व को प्रकट करने के लिए तत्पर हो जाएं- यही बढ़िया गुरुपूजा होगी। 



जिनके जीवन में सद्गुरु का प्रकाश हुआ है वास्तव में उन्हीं का जीवन जीवन है, बाकी सब तो मर ही रहे हैं। मरनेवाले शरीर को जीवन मानकर मौत की तरफ घसीटे जा रहे हैं। धनभागी तो वह हैं जिनको जीते-जी जीवन मुक्त सद्गुरु मिल गये... जिनको जीवन मुक्त सद्गुरु का सान्निध्य मिल गया, आत्मारामी संतों का संग मिल गया, वे बड़भागी हैं।



ऐसे शिष्यों के पास चाहे ऐहिक सुख-सुविधाओं के ढेर हों, चाहे अनेकों प्रतिकूलताएं हों फिर भी वह मोक्ष मार्ग में जाते हैं। गुरु और शिष्य के बीच जो दैवी संबंध होता है उसे दुनियादार क्या जानें? सच्चे शिष्य सद्गुरु के चरणों में मिट जाते हैं और सच्चे सद्गुरु निगाहों से ही शिष्य के हृदय में बरस जाते हैं।



गुरुपूर्णिमा का पर्व गुरु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का पर्व है। शिष्य को गुरु से जो ज्ञान मिलता है वह शाश्वत होता है, उसके बदले में वह गुरु को क्या दे सकता है? लेकिन वह कहीं कृतघ्न न हो जाय इसलिए अपने सद्गुरुदेव का मानसिक पूजन करके गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुचरणों में शीश नवाते हुए प्रार्थना करता है:



‘गुरुदेव! हम आपको और तो क्या दे सकते हैं। इतनी प्रार्थना अवश्य करते हैं कि आप स्वस्थ और दीर्घजीवी हों। आपका ज्ञानधन बढ़ता रहेआपका प्रेमधन बढ़ता रहे। हम जैसों का मंगल होता रहे और हम आपके दैवी कार्यों में भागीदार होते रहें।,



गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ कहते हैं, क्यों?

गुरु गोविंद दोऊ खड़ेकाके लागूं पाय।

बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताए।।



कबीर द्वारा रचित उक्त पंक्तियों में गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है तथा गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ बताया गया है। हिंदू धर्म में गुरु का स्थान प्रारंभ से श्रेष्ठ है। धार्मिक ग्रंथों में गुरु की महिमा का वर्णन कई बार पढऩे में आता है। भविष्यपुराण के ब्राह्मपर्व में भी गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है।



उसके अनुसार गुरु के सम्मुख हाथ जोड़कर खड़े रहें, गुरु की आज्ञा हो तो बैठे परंतु आसन पर नहीं। वाहन पर हों तो गुरु का अभिवादन न करें, वाहन से उतर कर प्रणाम करें। शरीर त्याग पर्यंत जो गुरु की सेवा करता है, वह श्रेष्ठ ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है। गुरु को ईश्वर से भी श्रेष्ठ दर्शाने के पीछे तर्क है कि आध्यात्मिक ज्ञान सिर्फ गुरु के माध्यम से ही प्राप्त हो सकता है। यह ईश्वरीय ज्ञान है जो गुरु के माध्यम से पृथ्वी पर उतरा है।



सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं इस्लाम में भी गुरु की महिमा का वर्णन है इसीलिए गुरु को पैगंबर कहा गया है। भारत का संपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान गुरु-शिष्य सम्वाद के रूप में ही है जैसे- कृष्ण-अर्जुन संवाद, यम-नचिकेता संवाद, जनक-अष्टावक्र संवाद, जनक-याज्ञवल्क्य संवाद आदि। गुरु वह होता है जिसने पूर्णत्व को प्राप्त कर लिया है। धर्म के गोपनीय गुर वही बता सकता है। ऐसे गुरु को ही ज्ञानी कहते हैं।



गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं। आज गुरु पूर्णिमा यानी गुरु के पूजन का पर्व है। गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति का सबसे पुरातन पहलू है। भारतीय वैदिक परंपरा का तो आधार ही गुरु-शिष्य थे। वेदों को श्रुति कहा जाता है, यानी जो गुरु के मुख से सुन कर शिष्यों ने आत्मसात किया और पीढ़ी दर पीढ़ी उसे आगे बढ़ाया। लिहाजा गुरु पर्व का भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है। आज भी आध्यात्मिक गुरु-शिष्य परंपरा बड़े पैमाने पर हमारे यहां प्रचलित है। गुरुपूर्णिमा के दिन पूरे भारत में लोगो अपने गुरु की आराधना करते हैं। संतों के आश्रमों में शिष्यों का तांता लग जाता है। दान, स्नान और पूजापाठ का इस दिन विशेष महत्व बताया गया है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है।



गुरुपूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शाति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।



हिन्दू पंचाग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने की परंपरा को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व आत्मस्वरूप का ज्ञान पाने के अपने कर्तव्य की याद दिलाने वाला, मन में दैवी गुणों से विभूषित करनेवाला, सद्गुरु के प्रेम और ज्ञान की गंगा में बारंबार डूबकी लगाने हेतु प्रोत्साहन देने वाला है। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भगवान वेद व्यास ने पंचम वेद महाभारत की रचना इसी पूर्णिमा के दिन की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्य ग्रन्थ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया। तब देवताओं ने वेद व्यास जी का पूजन किया और तभी से व्यास पूर्णिमा मनाई जा रही है।



आज भी है उतना ही महत्व

भारत भर में गुरुपूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरु को सम्मानित करने का होता है। मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं, जगह जगह भंडारे होते हैं और मेले लगते हैं।



गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हर धर्मावलंबी अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और आस्था प्रगट करता है। जीवन में सफलता के लिए हर व्यक्ति गुरु के रुप में श्रेष्ठ मार्गदर्शक, सलाहकार, समर्थक और गुणी व्यक्ति के संग की चाहत रखता है। इसलिए वह गुरु के रुप में किसी संत, अध्यात्मिक व्यक्तित्व या किसी कार्य विशेष में दक्ष और गुणी व्यक्ति को चुनना चाहता है। किंतु इस धारणा के विपरीत पुराणों में आए प्रसंग यह संदेश देते है कि अगर मन में लगन हो, इच्छा शक्ति हो, कुछ जानने, सीखने का दृढ संकल्प हो तो कोई भी व्यक्ति गुरु को कहीं भी पा सकता है। क्योंकि गुरु की महिमा ही ऐसी है कि ईश्वर की तरह गुरु हर जगह मौजूद है। सिर्फ चाहत और दृष्टि चाहिए गुरु को पाने और देखने की।



जगत की हर रचना में गुरु मौजूद है

जगद्गुरु दत्तात्रेय ऐसे ही शिष्य के रुप में भी प्रसिद्ध हैं। जिनके अनेक गुरु हुए। जबकि उन्होनें किसी से गुरु दीक्षा नहीं पाई थी। आखिर यह कैसे संभव हुआ। बात वही थी-ज्ञान पाने की ललक। गुरु दत्तात्रेय ने समस्त जगत में मौजूद हर वनस्पति, प्राणियों, ग्रह-नक्षत्रों को अपना गुरु माना। जिनकी प्रकृति और गुणों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इनकी संख्या 24 थी। इनमें प्रमुख रुप से पृथ्वी, आकाश, वायु, जल, सूर्य, चंद्र, कबूतर, मधुमक्खी, हाथी, अजगर, पतंगा, हिरण, मछली, गरुड़, मकड़ी, बालक, वेश्या, कन्या, बाण प्रमुख थे। जिनसे उन्होंने कोई गुरु मंत्र और शिक्षा नहीं ली। मात्र इनकी गति, प्रकृतिगुणों को देखकर अपनी दृष्टि और विचार से शिक्षा पाई और आत्म ज्ञान पा लिया। इससे ही श्री दत्तात्रेय जगद्गुरु बन गए। गुरु दत्तात्रेय ने जगत को बताया कि मात्र देहधारी कोई मनुष्य या देवता ही गुरु नहीं होता। बल्कि पूरे जगत की हर रचना में गुरु मौजूद है। यहा तक कि स्वयं के अंदर भी। जिनको देखना और जानना बहुत जरुरी है।



श्री हनुमान को गुरु बना सीखें सफलता के ये 6 गुरू मंत्र

हिन्दू संस्कृति रिश्तों और जीवन मूल्यों के प्रति विश्वास , समर्पण व सम्मान का जज्बा बनाए रखने वाले सूत्रों और महान आदर्शों का खजाना है। इसी खजाने का एक अनमोल सूत्र है - गुरु पूर्णिमा उत्सव। गुरु भक्ति और वंदना से गुरु कृपा पाकर जीवन को शांत, सुखी और सफल बनाने के मकसद से गुरु पूर्णिमा बहुत शुभ घड़ी मानी गई है।



गुरु और शिष्य का संबंध तमाम सांसारिक रिश्तों में श्रेष्ठ और ऊपर माना गया है। क्योंकि धर्म, अध्यात्म या व्यावहारिक जीवन, किसी भी रूप में गुरु की ज्ञान शक्ति की ऊर्जा व रोशनी शिष्य के चरित्र, व्यक्तित्व और व्यवहार को उजाला बनाकर जीवन के तमाम दोष, दुर्गण और विकार रूपी अंधकार को मिटाती है।



भौतिक सुख-सुविधाओं से भरे आज के माहौल में अनेक लोग अंदर और बाहरी द्वंद्व या संघर्ष से आहत हो सुख की राह पाने के लिये जूझते हैं। ऐसी मानसिक और व्यावहारिक मुश्किलों में एक श्रेष्ठ गुरु मिलना मुश्किल हो जाता है। अगर आप भी संकटमोचक गुरु की आस रखते हैं तो गुरु पूर्णिमा की शुभ घड़ी में यहां बताए जा रहे सूत्र से आप एक श्रेष्ठ गुरु पा सकते हैं।



यह अनमोल सूत्र है - संकटमोचक श्री हनुमान को इष्ट बनाकर गुरु के समान सेवा, भक्ति। पूर्णिमा तिथि पर श्री हनुमान उपासना शुभ मानी जाती है। क्योंकि श्री हनुमान का जन्म भी पूर्णिमा तिथि पर माना गया है। श्री हनुमान को गुरु मानकर उनके चरित्र का स्मरण सफल जीवन के लिए मार्गदर्शन ही नहीं करता है, बल्कि संकटमोचक भी साबित होता है। सीखें श्री हनुमान के चरित्र से कामयाबी के कुछ खास गुरु मंत्र  -



गोस्वामी तुलसीदास द्वारा श्री हनुमान भक्ति के रची गई श्री हनुमान चालीसा की शुरुआत गुरु स्मरण से ही होती है। जिसमें श्री हनुमान के प्रति भी गुरु भक्ति का भाव छुपा है। ऐसे ही गुरु भाव से श्री हनुमान का स्मरण कर



विनम्रता - गुणी और ताकतवर होने पर भी हनुमान घमण्ड से दूर रहे। सीख है कि किसी भी रूप में अहं (Ego) को जगह न दें। हमेशा नम्रता और सीखने का भाव मन में कायम रखें।



मान और समर्पण - श्री हनुमान ने हर रिश्तों को मान दिया और उसके प्रति समर्पित रहे, फिर चाहे वह माता हो, वानर राज सुग्रीव या अपने इष्ट भगवान राम । संदेश है कि परिवार और अपने क्षेत्र से जुड़े हर संबंध में मिठास बनाए रखें। क्योंकि इन रिश्तों के प्रेम, सहयोग और विश्वास से मिली ऊर्जा, उत्साह और दुआएं आपकी सफलता तय कर देती है।



धैर्य और निर्भयता - श्री हनुमान से धैर्य और निडरता का सूत्र जीवन की तमाम मुश्किल हालातों में भी मनोबल देता है। इसके बूते ही लंका में जाकर हनुमान ने रावण राज के अंत का बिगुल बजाया।



कृतज्ञता - जीवन में दंभ रहित या आत्म प्रशंसा का भाव पतन का कारण होती है। श्री हनुमान से कृतज्ञता के भाव सीख जीवन में उतारे। अपनी हर सफलता में परिजनों, इष्टजनों और बड़ों का योगदान न भूलें। जैसे हनुमान ने अपनी तमाम सफलता का कारण श्रीराम को ही बताया।



विवेक और निर्णय क्षमता - श्री हनुमान ने सीता खोज में समुद्र पार करते वक्त सुरसा, सिंहिका, मेनाक पर्वत जैसी अनेक बाधाओं का सामना किया। किंतु लालसाओं में न उलझ बुद्धि व विवेक से सही फैसला लेकर बगैर डावांडोल हुए अपने लक्ष्य की ओर बढें। आप भी जीवन में सही और गलत की पहचान कर अपने मकसद से कभी न भटकें।



तालमेल की क्षमता - श्री हनुमान ने अपने स्वभाव व व्यवहार से हर स्थिति, काल और अवसर से तालमेल बैठाया। इससे ही वे हर युग और काल में सबके प्रिय बने रहे। हनुमान के इस सूत्र से आप भी अपने बोल, व्यवहार और स्वभाव में सेवा व प्रेम के रूप में मिठास घोलें। इन सूत्रों से आप सभी का भरोसा और दिल जीतकर सफलता की ऊंचाइयों को पा सकते हैं, ठीक श्री हनुमान की तरह।



भगवान से अगर कुछ मांगना ही है तो श्रेष्ठ गुरु मांगिए

वे सौभाग्यशाली होते हैं , जिनके जीवन में गुरु आ जाते हैं। सभी लोग अपनी पूजा में परमात्मा से कुछ न कुछ मांगते हैं। भगवान से मांगें या न मांगें ये एक अलग विषय है, लेकिन यदि कुछ मांगना है तो गुरु मांगिए, क्योंकि हम लोग बाजार के युग के प्रोडक्ट हैं।



हर चीज वारंटी और गारंटी से लाते हैं, लेन-देन हिसाब से करते हैं, इसीलिए गुरु भी ठोंक-बजाकर बनाते हैं। सोमवार को हम गुरुजी बनाते हैं, मंगलवार को उनमें खोट ढूंढ़ना शुरू कर देते हैं, बुधवार को गुरुजी रवाना कर दिए जाते हैं और गुरुवार से फिर नए गुरु की तलाश शुरू हो जाती है। इस चक्कर में गुरु नहीं मिल पाते। हम गुरु बनाएंगे तो अपनी पसंद खाली कर देंगे और यदि भगवान से मांगा और उन्होंने दिया तो आप पाएंगे कि एक दिन चलकर कोई गुरु आपके द्वार, आपके जीवन में आ जाएगा। परमात्मा तक सीधे छलांग लग भी नहीं पाती।



गुरु के झरोखे से ही ईश्वर में झांका जा सकता है। तुलसीदासजी ने श्रीहनुमानचालीसा में चौपाई लिखकर यह घोषणा कर दी कि यदि कोई गुरु न मिले तो हनुमानजी को गुरु बना लें - जै जै जै हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरुदेव की नाईं। अब देखिए गुरु क्या करते हैं। सुंदरकांड में रावण ने हनुमानजी की पूंछ जलाने की आज्ञा दे दी थी। हनुमानजी लंका जला चुके थे, लेकिन विभीषण का घर बच गया था। हनुमानजी ने एक ही क्षण में सारा नगर जला डाला। एक विभीषण का घर नहीं जलाया। गुरु जीवन में होते हैं तो चाहे सारी दुनिया में विपरीत स्थिति हो, हम सुरक्षित रहेंगे विभीषण की तरह। विभीषण के जीवन में हनुमानजी गुरु ही बनकर आए थे।



गुरु कृपा बिन सब सून

यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकाड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे। शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानाजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।



मोक्ष का मूल गुरु की कृपा

एक गुरु के पास आपको न केवल आपके जीवन के कष्टों से अपितु स्वयं से भी परे ले जाने की अद्भुत क्षमता होती है। वैदिक ज्ञान के अनुसार गुरुशक्ति को सर्वोच्च स्थान और आदर दिया गया है। गुरु का अस्तित्व भौतिक शरीर तक सिमटा नहीं है, बल्कि वह एक शक्ति है जिसे दिव्य चेतना परब्रह्म से भी उच्च माना गया है।



प्रथम गुरु अथवा आदिगुरु स्वयं भगवान शिव हैं। वह शक्ति सभी विद्यमान स्वरुपों के विघटन व परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है। एक साधक के लिए गुरु भगवान का रूप है। गुरु की शक्ति सीमित नहीं है। यह शक्ति अनंत है, अखंड है। शिष्य को गुरु द्वारा बोले शब्द को मंत्र समझना चाहिए।



प्राचीन ऋषियों ने कहा भी है कि गुरु की छवि वह मूल है जहां से ध्यान आता है, साधक के द्वारा की गई पूजा अथवा किसी भी प्रकार का तप गुरु के चरण कमल से आते हैं, मंत्र का मूल गुरु के द्वारा कहे गए शब्द हैं और मोक्ष का मूल केवल गुरु की कृपा ही है।



केवल सौभाग्यशाली व्यक्ति ही सीमित इंद्रियों के अंहकारी अनुभव के परे देख सकते हैं और इस शक्ति तक पहुंचने के लिए अपने मस्तिष्क का प्रयोग नहीं करते क्योंकि जो असीम है उसे सीमित दिमाग से नहीं समझा जा सकता।


ईश्वर को पाने के लिए प्यास बढ़ाओ 
एक बार की बात है जब हृदय भावों से भर गया और प्रेम उमड़ पड़ा, मैंने गुरुजी के पैर पकड़कर कहा: ‘‘गुरुजी! मुझे कुछ सेवा करने की आज्ञा दीजिये।’’ गुरुजी: ‘‘सेवा करेगा? जो कहूँगा वह करेगा?’’ मैंने कहा: ‘‘हाँ गुरुजी! आज्ञा कीजिये, आज्ञा कीजिये।’’ गुरुजी: ‘‘जो माँगूँ वह देगा?’’ मैंने कहा: ‘‘हाँ गुरुजी! जरूर दूँगा।’’
गुरुजी शांत हो गये। कुछ क्षणों बाद गुरुजी ने पुनः कहा: ‘‘जो माँगूँ वह देगा?’’ मैंने कहा: ‘‘हाँ गुरुजी!’’

गुरुजी: ‘‘तू आत्मज्ञान पाकर मुक्त हो जा और दूसरों को भी मुक्त करते रहना, इतना ही दे दे।’’ सद्गुरु की कितनी महिमावंत दृष्टि होती है! हम लोगों को मन में होता है कि गुरुजी शायद यह न माँग लें, वह न माँग लें...अरे, सब कुछ देने के बाद भी अगर सद्गुरु-तत्त्व हजम होता है तो सौदा सस्ता है।

न जाने कितनी बार किन-किन चीजों के लिए हमारा सिर चला गया! एक बार और सही। ...और वे सद्गुरु यह पंचभौतिक सिर नहीं लेते, वे तो हमारी मान्यताओं का, कल्पनाओं का सिर ही ले लेते हैं ताकि हम भी परमात्मा के दिव्य आनंद का, प्रेम का, माधुर्य का अनुभव कर सकें।

गुरुजी ने नाम रखा है- मोनू । हम आपकी हजार-हजार बातें इसी आस से मानते आये हैं, हजार-हजार अंगड़ाइयाँ इसी आस से सह रहे हैं कि आप भी कभी-न-कभी हमारी बात मान लोगे। और मेरी बात यही है कि तत्त्वमसि- तुम वही हो।सदैव रहनेवाला तो एक चैतन्य आत्मा ही है। वही तुम्हारा अपना-आपा है, उसी में जाग जाओ। मेरी यह बात मानने के लिए तुम भी राजी हो जाओ।

बाहर से देखो तो लगेगा कि आहाहा... मोनूजी को कितनी मौज है! कितनी फूलमालाएं! लाखों लोगों के सिर झुक रहे हैं... हजारों-हजारों मिठाइयां आ रही हैं... मोनूजी को तो मौज होगी!ना-ना... इन चीजों के लिए हम मोनूजी नहीं हुए हैं, इन चीजों के लिए हम हिमालय का एकांत छोड़कर बस्ती में नहीं आये हैं।

फिर भी तुम्हारा दिल रखने के लिए... तुमको जो आनंद हुआ है, जो लाभ हुआ है उसकी अभिव्यक्ति तुम करते हो, जो कुछ तुम देते हो, वह देते-देते तुम अपना अहंभी दे डालो इस आशा से हम तुम्हारे फल-फूल आदि स्वीकार करते हैं।

तुम गुरुद्वार पर आते हो तो गुरु की बात भी तो माननी पड़ेगी। गुरु की बात यही है कि तुम्हारी जो जात-पात है वह हमको दे दो, तुम फलाने नाम के भाई या माई हो वह दे दो और मेरे गुरुदेव का प्रसाद ब्रह्मभावतुम ले लो। फिर देखो, तुम विश्वनियंता के साथ एकाकार होते हो कि नहीं।

जिसको सच्ची प्यास होती है वह प्याऊ खोज ही लेता है, फिर उसके लिए मजहब, मत-पंथ, वाद-सम्प्रदाय नहीं बचता है। प्यासे को पानी चाहिए। ऐसे ही यदि तुम्हें परमात्मा की प्यास है और तुम जिस मजहब, मत-पंथ में हो, उसमें यदि प्यास नहीं बुझती है तो उस बाड़े को तोड़कर किन्हीं ब्रह्मज्ञानी महापुरुष तक पहँच जाओ। शर्त यही है कि प्यास ईमानदारीपूर्ण होनी चाहिए, ईमानदारीपूर्ण पुकार होनी चाहिए।

तुम्हें जितनी प्यास होगी, काम उतना जल्दी होगा। यदि प्यास नहीं होगी तो प्यास जगाने के लिए संतों को परिश्रम करना पड़ेगा और संतों का परिश्रम तुम्हारी प्यास जगाने में हो, इसकी अपेक्षा जगी हुई प्यास को तृप्ति प्रदान करने में हो तो काम जल्दी होगा। इसीलिए तुम अपने भीतर झांक-झांककर अपनी प्यास जगाओ ताकि वे ज्ञानामृत पिलाने का काम जल्दी से शुरू कर दें। वक्त बीता जा रहा है। न जाने कब, कहाँ, कौन चल दे कोई पता नहीं।

तुमको शायद लगता होगा कि तुम्हारी उम्र अभी दस साल और शेष है लेकिन मुझे पता नहीं कि कल के दिन मैं जिऊंगा कि नहीं। मुझे इस देह का भरोसा नहीं है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि इस देह के द्वारा गुरु का कार्य जितना हो जाय, अच्छा है। गुरु का प्रसाद जितना बंट जाय, अच्छा है और मैं बाँटने को तत्पर भी रहता हूँ। रात्रि को साढ़े बारह-एक बजे तक भी आप लोगों के बीच होता हूँ। सुबह तीन-चार बजे भी बाहर निकलता हूँ, घूमता हूँ।

तुम सोचते होगे कि मोनू थक गये हैं।ना, मैं नहीं थकता हूँ। मैं देखता हूँ कि तुम्हारे अंदर कुछ जगमगा रहा है। मैं निहारता हूँ कि तुम्हारे अंदर ईश्वरीय नूर झलक रहा है। उसको देखकर ही मेरी थकान उतर जाती है। फिर भी कभी थकान लगती है तो आत्मा में गोता मार लेता हूँ।

फिर तुमको श्रद्धा और तत्परता से युक्त पाता हूँ तो मैं ताजा हो जाता हूँ। कभी सुबह सात बजे से रात्रि के बारह-एक बजे तक तुम्हारे बीच होता हूँ और ताजे-का-ताजा दिखता हूँ... केवल इसी आशा से कि ताजे-में-ताजा जो परमात्मा है, जिसको कभी थकान नहीं लगती है, उस चैतन्यस्वरूप आत्मा में तुम भी जाग जाओ।

व्यास जयंती गुरु पूजा मनाने का मुख्य लक्ष्य है
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मुनियों में व्यास मुनि मैं हूं। भगवान वेद व्यास जी भगवान श्री हरि विष्णु जी के अंशावतार हैं तथा भगवान के 24 अवतारों में उनकी गणना होती है। अष्ट चिरंजीवियों में शामिल भगवान वेद व्यास जी ने समस्त वैदिक सनातन साहित्य का संकलन किया। इनका प्राकट्य आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ। इनके पिता ऋषि पराशर तथा माता सत्यवती थीं।

सृष्टि के आदिकाल में एक ही वेद था। महर्षि वेद व्यास जी ने इनके चार भाग ऋक्,यजु, साम तथा अथर्ववेद किए तथा वेदों का व्यास करने से वेद व्यास कहलाए। ब्रह्मा जी द्वारा रचित पुराण जोकि भगवान की दिव्य लीलाओं का संग्रह है तथा जिसके शत कोटि मंत्र हैं, भगवान वेद व्यास जी ने उस पुराण को 18 पुराणों में विभक्त कर भगवान के दिव्य लीला संग्रह को समस्त  प्राणी मात्र के लिए सुलभ कराया जिनमें श्रीमद्भागवत महापुराण तथा शिव पुराण मुख्य हैं। इन 18 पुराणों के 4 लाख मंत्र हैं। भगवान वेद व्यास जी ने ब्रह्म सूत्र काव्य तथा वेदांत सूत्र की रचना की।

भगवान वेद व्यास जी ने वेदार्थ को अपने प्रसिद्ध काव्य ग्रंथ महाभारत के माध्यम से सम्पूर्ण प्राणीमात्र को सुलभ कराया जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला है। जिसे स्वयं योगीन्द्रों के महागुरु गौरीनंदन, प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी ने कलमबद्ध किया। भगवान वेद व्यास जी बोलते गए तथा गणेश जी लिखते गए। इस महान ग्रंथ में सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सारभूत ज्ञान श्रीमद् भागवद् गीता जी है जो महाभारत के भीष्म पर्व में परात्पर ब्रह्म भगवान श्री कृष्ण जी ने स्वयं युद्धभूमि में अपने कर्तव्य मार्ग से भ्रमित हुए महान धनुर्धारी अर्जुन को दिया।

भगवान वेद व्यास जी का नाम कृष्ण द्वैपायन था। श्याम वर्ण होने के कारण इनका नाम कृष्ण तथा एक द्वीप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कृष्ण द्वैपायन पड़ा। वैदिक सनातन धर्म के विशद् साहित्य को संकलन करने का तथा एक सूत्र में पिरोने का जो महान कार्य भगवान वेद व्यास जी ने किया उसके लिए भक्ति प्रधान भारतीय समाज उन्हें शत्-शत् नमन करता है इसीलिए गुरुओं में प्रथम पूज्य भगवान वेद व्यास जी को माना गया। तभी उनकी जयंती को गुरु-पूजा के नाम से मनाया जाता है।

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।।’’

अर्थात : भगवान नारायण, उनके सखा नर, देवी सरस्वती तथा भगवान वेद व्यास जी का स्मरण कर ही धर्म ग्रंथों का अध्ययन प्रारंभ करना चाहिए।

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
ज्ञान के समान पवित्र करने वाला अन्य कोई नहीं।

देव, द्विज, गुरु, प्राज्ञ पूजनं, सात्विक तप उच्यते।देवता, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानीजनों का पूजन सात्विक तप कहलाता है। मानव शरीर को प्राप्त कर, स्वयं का उद्धार करना ही जीव का मुख्य लक्ष्य है। इस हेतु गुरु ही हमें ज्ञान प्रदान कर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।

तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्रेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्व दर्शिन :।।

उस तत्व ज्ञान की प्राप्ति हेतु हमें ज्ञानी जनों, गुरुजनों को प्रणाम कर, कपट भाव छोड़ उनसे प्रश्र पूछने चाहिएं तथा उनकी सेवा करनी चाहिए। तब वे तत्वदर्शी, ज्ञानीजन, मानवजीवन से उद्धार कराने वाले तत्व ज्ञान का उपदेश करेंगे, यही व्यास जयंती गुरु पूजा मनाने का मुख्य लक्ष्य है। अध्यात्म जगत में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले श्रीमद्भागवत के प्रवक्ता महामुनि शुकदेव जी व्यास मुनि जी के पुत्र हैं।
  

व्यास जी की कृपा से दिव्य दृष्टि प्राप्त कर ही संजय ने महाभारत के युद्ध का वृत्तांत दृष्टिहीन धृतराष्ट्र को सुनाया। हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य की विधवा पत्नियों अम्बिका, अम्बालिका ने व्यास मुनि की कृपा दृष्टि प्राप्त कर ही धृतराष्ट्र तथा पांडु  को जन्म दिया। भगवान वेद व्यास जी ने सनातन धर्म के ज्ञान को आधार प्रदान किया।


जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,

और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है....MMK

7 comments:

  1. प्रिय अंकुश हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं यहां आकार आपके भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार स्नेह बनाये रखे….

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  2. सतगुरु हमसे रीझकर कहकर कहा एक प्रसंग
    छाया बादल प्रेम का,भीज गया हर अंग...

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  3. Teacher Is Lamp Of Nation.

    Teacher Only One Person Who Serve Society In Real Manner.

    Salute All Teachers Of Nation.

    Happy Teachers Day

    T-Talent
    E-Education
    A-Attitude
    C-Character
    H-Harmony
    E-Efficient
    R-Relation

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    1. जितेंद्र यादव जी हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार ..

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  4. हार्दिक धन्यवाद...

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