सिद्ध गोरक्षनाथ को प्रणाम
सिद्धों की भोग-प्रधान योग-साधना की प्रतिक्रिया के रूप में आदिकाल में नाथपंथियों की हठयोग साधना आरम्भ हुई। इस पंथ को चलाने वाले मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) तथा गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) माने जाते हैं। इस पंथ के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है। कहा यह भी जाता है कि सिद्धमत और नाथमत एक ही हैं।
गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्मकाल 845 ई. की 13वीं सदी का मानते हैं। नाथ परम्परा की शुरुआत बहुत प्राचीन रही है, किंतु गोरखनाथ से इस परम्परा को सुव्यवस्थित विस्तार मिला। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे। दोनों को चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है।
गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर है। गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखपंथी साहित्य के अनुसार आदिनाथ स्वयं भगवान शिव को माना जाता है। शिव की परम्परा को सही रूप में आगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ हुए। ऐसा नाथ सम्प्रदाय में माना जाता है।
गोरखनाथ से पहले अनेक सम्प्रदाय थे, जिनका नाथ सम्प्रदाय में विलय हो गया। शैव एवं शाक्तों के अतिरिक्त बौद्ध, जैन तथा वैष्णव योग मार्गी भी उनके सम्प्रदाय में आ मिले थे।
गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे।
जनश्रुति अनुसार उन्होंने कई कठिन (आड़े-तिरछे) आसनों का आविष्कार भी किया। उनके अजूबे आसनों को देख लोग अचम्भित हो जाते थे। आगे चलकर कई कहावतें प्रचलन में आईं। जब भी कोई उल्टे-सीधे कार्य करता है तो कहा जाता है कि 'यह क्या गोरखधंधा लगा रखा है।'
गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।
सिद्ध योगी : गोरखनाथ के हठयोग की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले सिद्ध योगियों में प्रमुख हैं :- चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि। 13वीं सदी में इन्होंने गोरख वाणी का प्रचार-प्रसार किया था। यह एकेश्वरवाद पर बल देते थे, ब्रह्मवादी थे तथा ईश्वर के साकार रूप के सिवाय शिव के अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं मानते थे।
नाथ सम्प्रदाय गुरु गोरखनाथ से भी पुराना है। गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। पूर्व में इस समप्रदाय का विस्तार असम और उसके आसपास के इलाकों में ही ज्यादा रहा, बाद में समूचे प्राचीन भारत में इनके योग मठ स्थापित हुए। आगे चलकर यह सम्प्रदाय भी कई भागों में विभक्त होता चला गया।
महायोगी गुरु गोरखनाथ
महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग (11वीं शताब्दी अनुमानित) के एक विशिष्ट महापुरुष थे। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे। इन दोनों ने नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर इसका विस्तार किया। इस सम्प्रदाय के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है।
गुरु गोरखनाथ हठयोग के आचार्य थे। कहा जाता है कि एक बार गोरखनाथ समाधि में लीन थे। इन्हें गहन समाधि में देखकर माँ पार्वती ने भगवान शिव से उनके बारे में पूछा। शिवजी बोले, लोगों को योग शिक्षा देने के लिए ही उन्होंने गोरखनाथ के रूप में अवतार लिया है। इसलिए गोरखनाथ को शिव का अवतार भी माना जाता है। इन्हें चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। इनके उपदेशों में योग और शैव तंत्रों का सामंजस्य है। ये नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखनाथ की लिखी गद्य-पद्य की चालीस रचनाओं का परिचय प्राप्त है।
इनकी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात् तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को अधिक महत्व दिया है। गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात् समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।
गोरखनाथ के जीवन से सम्बंधित एक रोचक कथा इस प्रकार है- एक राजा की प्रिय रानी का स्वर्गवास हो गया। शोक के मारे राजा का बुरा हाल था। जीने की उसकी इच्छा ही समाप्त हो गई। वह भी रानी की चिता में जलने की तैयारी करने लगा। लोग समझा-बुझाकर थक गए पर वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था। इतने में वहां गुरु गोरखनाथ आए। आते ही उन्होंने अपनी हांडी नीचे पटक दी और जोर-जोर से रोने लग गए। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि वह तो अपनी रानी के लिए रो रहा है, पर गोरखनाथ जी क्यों रो रहे हैं। उसने गोरखनाथ के पास आकर पूछा, 'महाराज, आप क्यों रो रहे हैं?' गोरखनाथ ने उसी तरह रोते हुए कहा, 'क्या करूं? मेरा सर्वनाश हो गया। मेरी हांडी टूट गई है। मैं इसी में भिक्षा मांगकर खाता था। हांडी रे हांडी।' इस पर राजा ने कहा, 'हांडी टूट गई तो इसमें रोने की क्या बात है? ये तो मिट्टी के बर्तन हैं। साधु होकर आप इसकी इतनी चिंता करते हैं।' गोरखनाथ बोले, 'तुम मुझे समझा रहे हो। मैं तो रोकर काम चला रहा हूं तुम तो मरने के लिए तैयार बैठे हो।' गोरखनाथ की बात का आशय समझकर राजा ने जान देने का विचार त्याग दिया।
कहा जाता है कि राजकुमार बप्पा रावल जब किशोर अवस्था में अपने साथियों के साथ राजस्थान के जंगलों में शिकार करने के लिए गए थे, तब उन्होंने जंगल में संत गुरू गोरखनाथ को ध्यान में बैठे हुए पाया। बप्पा रावल ने संत के नजदीक ही रहना शुरू कर दिया और उनकी सेवा करते रहे। गोरखनाथ जी जब ध्यान से जागे तो बप्पा की सेवा से खुश होकर उन्हें एक तलवार दी जिसके बल पर ही चित्तौड़ राज्य की स्थापना हुई।
गोरखनाथ जी ने नेपाल और पाकिस्तान में भी योग साधना की। पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित गोरख पर्वत का विकास एक पर्यटन स्थल के रूप में किया जा रहा है। इसके निकट ही झेलम नदी के किनारे राँझा ने गोरखनाथ से योग दीक्षा ली थी। नेपाल में भी गोरखनाथ से सम्बंधित कई तीर्थ स्थल हैं। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर शहर का नाम गोरखनाथ जी के नाम पर ही पड़ा है। यहाँ पर स्थित गोरखनाथ जी का मंदिर दर्शनीय है।
गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ 'गोगामेडी' के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा। गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा बने। गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया। यहाँ सभी धर्मो के भक्तगण गोगा मजार के दर्शनों हेतु भादौं (भाद्रपद) मास में उमड़ पडते हैं।
गोरखनाथ जी की जानकारी
Om Siva Goraksa Yogi
गोरक्षनाथ जी
नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक गोरक्षनाथ जी के बारे में लिखित उल्लेख हमारे पुराणों में भी मिलते है। विभिन्न पुराणों में इससे संबंधित कथाएँ मिलती हैं। इसके साथ ही साथ बहुत सी पारंपरिक कथाएँ और किंवदंतियाँ भी समाज में प्रसारित है। उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, बंगाल, पश्चिमी भारत, सिंध तथा पंजाब में और भारत के बाहर नेपाल में भी ये कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसे ही कुछ आख्यानों का वर्णन यहाँ किया जा रहा हैं।
1. गोरक्षनाथ जी के आध्यात्मिक जीवन की शुरूआत से संबंधित कथाएँ विभिन्न स्थानों में पाई जाती हैं। इनके गुरू के संबंध में विभिन्न मान्यताएँ हैं। परंतु सभी मान्यताएँ उनके दो गुरूऑ के होने के बारे में एकमत हैं। ये थे-आदिनाथ और मत्स्येंद्रनाथ। चूंकि गोरक्षनाथ जी के अनुयायी इन्हें एक दैवी पुरूष मानते थे, इसीलिये उन्होनें इनके जन्म स्थान तथा समय के बारे में जानकारी देने से हमेशा इन्कार किया। किंतु गोरक्षनाथ जी के भ्रमण से संबंधित बहुत से कथन उपलब्ध हैं। नेपालवासियों का मानना हैं कि काठमांडु में गोरक्षनाथ का आगमन पंजाब से या कम से कम नेपाल की सीमा के बाहर से ही हुआ था। ऐसी भी मान्यता है कि काठमांडु में पशुपतिनाथ के मंदिर के पास ही उनका निवास था। कहीं-कहीं इन्हें अवध का संत भी माना गया है।
2. नाथ संप्रदाय के कुछ संतो का ये भी मानना है कि संसार के अस्तित्व में आने से पहले उनका संप्रदाय अस्तित्व में था।इस मान्यता के अनुसार संसार की उत्पत्ति होते समय जब विष्णु कमल से प्रकट हुए थे, तब गोरक्षनाथ जी पटल में थे। भगवान विष्णु जम के विनाश से भयभीत हुए और पटल पर गये और गोरक्षनाथ जी से सहायता मांगी। गोरक्षनाथ जी ने कृपा की और अपनी धूनी में से मुट्ठी भर भभूत देते हुए कहा कि जल के ऊपर इस भभूति का छिड़काव करें, इससे वह संसार की रचना करने में समर्थ होंगे। गोरक्षनाथ जी ने जैसा कहा, वैस ही हुआ और इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और महेश श्री गोर-नाथ जी के प्रथम शिष्य बने।
3. एक मानव-उपदेशक से भी ज्यादा श्री गोरक्षनाथ जी को काल के साधारण नियमों से परे एक ऐसे अवतार के रूप में देखा गया जो विभिन्न कालों में धरती के विभिन्न स्थानों पर प्रकट हुए।
सतयुग में वो लाहौर पार पंजाब के पेशावर में रहे, त्रेतायुग में गोरखपुर में निवास किया, द्वापरयुग में द्वारिका के पार हरभुज में और कलियुग में गोरखपुर के पश्चिमी काठियावाड़ के गोरखमढ़ी(गोरखमंडी) में तीन महीने तक यात्रा की।
4.वर्तमान मान्यता के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को श्री गोरक्षनाथ जी का गुरू कहा जाता है। कबीर गोरक्षनाथ की 'गोरक्षनाथ जी की गोष्ठी ' में उन्होनें अपने आपको मत्स्येंद्रनाथ से पूर्ववर्ती योगी थे, किन्तु अब उन्हें और शिव को एक ही माना जाता है और इस नाम का प्रयोग भगवान शिव अर्थात् सर्वश्रेष्ठ योगी के संप्रदाय को उद्गम के संधान की कोशिश के अंतर्गत किया जाता है।
5. गोरक्षनाथ के करीबी माने जाने वाले मत्स्येंद्रनाथ में मनुष्यों की दिलचस्पी ज्यादा रही हैं। उन्हें नेपाल के शासकों का अधिष्ठाता कुल गुरू माना जाता हैं। उन्हें बौद्ध संत (भिक्षु) भी माना गया है,जिन्होनें आर्यावलिकिटेश्वर के नाम से पदमपवाणि का अवतार लिया। उनके कुछ लीला स्थल नेपाल राज्य से बाहर के भी है और कहा जाता है लि भगवान बुद्ध के निर्देश पर वो नेपाल आये थे। ऐसा माना जाता है कि आर्यावलिकिटेश्वर पद्मपाणि बोधिसत्व ने शिव को योग की शिक्षा दी थी। उनकी आज्ञानुसार घर वापस लौटते समय समुद्र के तट पर शिव पार्वती को इसका ज्ञान दिया था। शिव के कथन के बीच पार्वती को नींद आ गयी, परन्तु मछली (मत्स्य) रूप धारण किये हुये लोकेश्वर ने इसे सुना। बाद में वहीं मत्स्येंद्रनाथ के नाम से जाने गये।
6. एक अन्य मान्यता के अनुसार श्री गोरक्षनाथ के द्वारा आरोपित बारह वर्ष से चले आ रहे सूखे से नेपाल की रक्षा करने के लिये मत्स्येंद्रनाथ को असम के कपोतल पर्वत से बुलाया गया था।
7.एक मान्यता के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को हिंदू परंपरा का अंग माना गया है। सतयुग में उधोधर नामक एक परम सात्विक राजा थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनका दाह संस्कार किया गया परंतु उनकी नाभि अक्षत रही। उनके शरीर के उस अनजले अंग को नदी में प्रवाहित कर दिया गया, जिसे एक मछली ने अपना आहार बना लिया। तदोपरांत उसी मछ्ली के उदर से मत्स्येंद्रनाथ का जन्म हुआ। अपने पूर्व जन्म के पुण्य के फल के अनुसार वो इस जन्म में एक महान संत बने।
8.एक और मान्यता के अनुसार एक बार मत्स्येंद्रनाथ लंका गये और वहां की महारानी के प्रति आसक्त हो गये। जब गोरक्षनाथ जी ने अपने गुरु के इस अधोपतन के बारे में सुना तो वह उसकी तलाश मे लंका पहुँचे। उन्होंने मत्स्येंद्रनाथ को राज दरबार में पाया और उनसे जवाब मांगा । मत्स्येंद्रनाथ ने रानी को त्याग दिया,परंतु रानी से उत्पन्न अपने दोनों पुत्रों को साथ ले लिया। वही पुत्र आगे चलकर पारसनाथ और नीमनाथ के नाम से जाने गये,जिन्होंने जैन धर्म की स्थापना की।
9.एक नेपाली मान्यता के अनुसार, मत्स्येंद्रनाथ ने अपनी योग शक्ति के बल पर अपने शरीर का त्याग कर उसे अपने शिष्य गोरक्षनाथ की देखरेख में छोड़ दिया और तुरंत ही मृत्यु को प्राप्त हुए और एक राजा के शरीर में प्रवेश किया। इस अवस्था में मत्स्येंद्रनाथ को लोभ हो आया। भाग्यवश अपने गुरु के शरीर को देखरेख कर रहे गोरक्षनाथ जी उन्हें चेतन अवस्था में वापस लाये और उनके गुरु अपने शरीर में वापस लौट आयें।
10. संत कबीर पंद्रहवीं शताब्दी के भक्त कवि थे। इनके उपदेशों से गुरुनानक भी लाभान्वित हुए थे। संत कबीर को भी गोरक्षनाथ जी का समकालीन माना जाता हैं। "गोरक्षनाथ जी की गोष्ठी " में कबीर और गोरक्षनाथ के शास्त्रार्थ का भी वर्णन है। इस आधार पर इतिहासकर विल्सन गोरक्षनाथ जी को पंद्रहवीं शताब्दी का मानते हैं।
11. पंजाब में चली आ रही एक मान्यता के अनुसार राजा रसालु और उनके सौतेले भाई पुरान भगत भी गोरक्षनाथ से संबंधित थे। रसालु का यश अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था और पूर्ण भगत पंजाब के एक प्रसिद्ध संत थे। ये दोनों ही गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने और पुरान तो एक प्रसिद्ध योगी बने। जिस कुँए के पास पुरान वर्षो तक रहे, वह आज भी सियालकोट में विराजमान है। रसालु सियालकोट के प्रसिद्ध सालवाहन के पुत्र थे।
12. बंगाल से लेकर पश्चिमी भारत तक और सिंध से पंजाब में गोपीचंद, रानी पिंगला और भर्तृहरि से जुड़ी एक और मान्यता भी है। इसके अनुसार गोपीचंद की माता मानवती को भर्तृहरि की बहन माना जाता है। भर्तृहरि ने अपनी पत्नी रानी पिंगला की मृत्यु के पश्चात् अपनी राजगद्दी अपने भाई उज्जैन के विक्रमादित्य (चंन्द्रगुप्त द्वितीय) के नाम कर दी थी। भर्तृहरि बाद में गोरक्षनाथी बन गये थे।
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
सिद्धों की भोग-प्रधान योग-साधना की प्रतिक्रिया के रूप में आदिकाल में नाथपंथियों की हठयोग साधना आरम्भ हुई। इस पंथ को चलाने वाले मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) तथा गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) माने जाते हैं। इस पंथ के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है। कहा यह भी जाता है कि सिद्धमत और नाथमत एक ही हैं।
गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्मकाल 845 ई. की 13वीं सदी का मानते हैं। नाथ परम्परा की शुरुआत बहुत प्राचीन रही है, किंतु गोरखनाथ से इस परम्परा को सुव्यवस्थित विस्तार मिला। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे। दोनों को चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है।
गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर है। गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखपंथी साहित्य के अनुसार आदिनाथ स्वयं भगवान शिव को माना जाता है। शिव की परम्परा को सही रूप में आगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ हुए। ऐसा नाथ सम्प्रदाय में माना जाता है।
गोरखनाथ से पहले अनेक सम्प्रदाय थे, जिनका नाथ सम्प्रदाय में विलय हो गया। शैव एवं शाक्तों के अतिरिक्त बौद्ध, जैन तथा वैष्णव योग मार्गी भी उनके सम्प्रदाय में आ मिले थे।
गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे।
जनश्रुति अनुसार उन्होंने कई कठिन (आड़े-तिरछे) आसनों का आविष्कार भी किया। उनके अजूबे आसनों को देख लोग अचम्भित हो जाते थे। आगे चलकर कई कहावतें प्रचलन में आईं। जब भी कोई उल्टे-सीधे कार्य करता है तो कहा जाता है कि 'यह क्या गोरखधंधा लगा रखा है।'
गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।
सिद्ध योगी : गोरखनाथ के हठयोग की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले सिद्ध योगियों में प्रमुख हैं :- चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि। 13वीं सदी में इन्होंने गोरख वाणी का प्रचार-प्रसार किया था। यह एकेश्वरवाद पर बल देते थे, ब्रह्मवादी थे तथा ईश्वर के साकार रूप के सिवाय शिव के अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं मानते थे।
नाथ सम्प्रदाय गुरु गोरखनाथ से भी पुराना है। गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। पूर्व में इस समप्रदाय का विस्तार असम और उसके आसपास के इलाकों में ही ज्यादा रहा, बाद में समूचे प्राचीन भारत में इनके योग मठ स्थापित हुए। आगे चलकर यह सम्प्रदाय भी कई भागों में विभक्त होता चला गया।
महायोगी गुरु गोरखनाथ
महायोगी गोरखनाथ मध्ययुग (11वीं शताब्दी अनुमानित) के एक विशिष्ट महापुरुष थे। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे। इन दोनों ने नाथ सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित कर इसका विस्तार किया। इस सम्प्रदाय के साधक लोगों को योगी, अवधूत, सिद्ध, औघड़ कहा जाता है।
गुरु गोरखनाथ हठयोग के आचार्य थे। कहा जाता है कि एक बार गोरखनाथ समाधि में लीन थे। इन्हें गहन समाधि में देखकर माँ पार्वती ने भगवान शिव से उनके बारे में पूछा। शिवजी बोले, लोगों को योग शिक्षा देने के लिए ही उन्होंने गोरखनाथ के रूप में अवतार लिया है। इसलिए गोरखनाथ को शिव का अवतार भी माना जाता है। इन्हें चौरासी सिद्धों में प्रमुख माना जाता है। इनके उपदेशों में योग और शैव तंत्रों का सामंजस्य है। ये नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखनाथ की लिखी गद्य-पद्य की चालीस रचनाओं का परिचय प्राप्त है।
इनकी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात् तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को अधिक महत्व दिया है। गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात् समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। हठयोगी कुदरत को चुनौती देकर कुदरत के सारे नियमों से मुक्त हो जाता है और जो अदृश्य कुदरत है, उसे भी लाँघकर परम शुद्ध प्रकाश हो जाता है।
गोरखनाथ के जीवन से सम्बंधित एक रोचक कथा इस प्रकार है- एक राजा की प्रिय रानी का स्वर्गवास हो गया। शोक के मारे राजा का बुरा हाल था। जीने की उसकी इच्छा ही समाप्त हो गई। वह भी रानी की चिता में जलने की तैयारी करने लगा। लोग समझा-बुझाकर थक गए पर वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था। इतने में वहां गुरु गोरखनाथ आए। आते ही उन्होंने अपनी हांडी नीचे पटक दी और जोर-जोर से रोने लग गए। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि वह तो अपनी रानी के लिए रो रहा है, पर गोरखनाथ जी क्यों रो रहे हैं। उसने गोरखनाथ के पास आकर पूछा, 'महाराज, आप क्यों रो रहे हैं?' गोरखनाथ ने उसी तरह रोते हुए कहा, 'क्या करूं? मेरा सर्वनाश हो गया। मेरी हांडी टूट गई है। मैं इसी में भिक्षा मांगकर खाता था। हांडी रे हांडी।' इस पर राजा ने कहा, 'हांडी टूट गई तो इसमें रोने की क्या बात है? ये तो मिट्टी के बर्तन हैं। साधु होकर आप इसकी इतनी चिंता करते हैं।' गोरखनाथ बोले, 'तुम मुझे समझा रहे हो। मैं तो रोकर काम चला रहा हूं तुम तो मरने के लिए तैयार बैठे हो।' गोरखनाथ की बात का आशय समझकर राजा ने जान देने का विचार त्याग दिया।
कहा जाता है कि राजकुमार बप्पा रावल जब किशोर अवस्था में अपने साथियों के साथ राजस्थान के जंगलों में शिकार करने के लिए गए थे, तब उन्होंने जंगल में संत गुरू गोरखनाथ को ध्यान में बैठे हुए पाया। बप्पा रावल ने संत के नजदीक ही रहना शुरू कर दिया और उनकी सेवा करते रहे। गोरखनाथ जी जब ध्यान से जागे तो बप्पा की सेवा से खुश होकर उन्हें एक तलवार दी जिसके बल पर ही चित्तौड़ राज्य की स्थापना हुई।
गोरखनाथ जी ने नेपाल और पाकिस्तान में भी योग साधना की। पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित गोरख पर्वत का विकास एक पर्यटन स्थल के रूप में किया जा रहा है। इसके निकट ही झेलम नदी के किनारे राँझा ने गोरखनाथ से योग दीक्षा ली थी। नेपाल में भी गोरखनाथ से सम्बंधित कई तीर्थ स्थल हैं। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर शहर का नाम गोरखनाथ जी के नाम पर ही पड़ा है। यहाँ पर स्थित गोरखनाथ जी का मंदिर दर्शनीय है।
गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ 'गोगामेडी' के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा। गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा बने। गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया। यहाँ सभी धर्मो के भक्तगण गोगा मजार के दर्शनों हेतु भादौं (भाद्रपद) मास में उमड़ पडते हैं।
गोरखनाथ जी की जानकारी
Om Siva Goraksa Yogi
गोरक्षनाथ जी
नाथ सम्प्रदाय के प्रवर्तक गोरक्षनाथ जी के बारे में लिखित उल्लेख हमारे पुराणों में भी मिलते है। विभिन्न पुराणों में इससे संबंधित कथाएँ मिलती हैं। इसके साथ ही साथ बहुत सी पारंपरिक कथाएँ और किंवदंतियाँ भी समाज में प्रसारित है। उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, बंगाल, पश्चिमी भारत, सिंध तथा पंजाब में और भारत के बाहर नेपाल में भी ये कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसे ही कुछ आख्यानों का वर्णन यहाँ किया जा रहा हैं।
1. गोरक्षनाथ जी के आध्यात्मिक जीवन की शुरूआत से संबंधित कथाएँ विभिन्न स्थानों में पाई जाती हैं। इनके गुरू के संबंध में विभिन्न मान्यताएँ हैं। परंतु सभी मान्यताएँ उनके दो गुरूऑ के होने के बारे में एकमत हैं। ये थे-आदिनाथ और मत्स्येंद्रनाथ। चूंकि गोरक्षनाथ जी के अनुयायी इन्हें एक दैवी पुरूष मानते थे, इसीलिये उन्होनें इनके जन्म स्थान तथा समय के बारे में जानकारी देने से हमेशा इन्कार किया। किंतु गोरक्षनाथ जी के भ्रमण से संबंधित बहुत से कथन उपलब्ध हैं। नेपालवासियों का मानना हैं कि काठमांडु में गोरक्षनाथ का आगमन पंजाब से या कम से कम नेपाल की सीमा के बाहर से ही हुआ था। ऐसी भी मान्यता है कि काठमांडु में पशुपतिनाथ के मंदिर के पास ही उनका निवास था। कहीं-कहीं इन्हें अवध का संत भी माना गया है।
2. नाथ संप्रदाय के कुछ संतो का ये भी मानना है कि संसार के अस्तित्व में आने से पहले उनका संप्रदाय अस्तित्व में था।इस मान्यता के अनुसार संसार की उत्पत्ति होते समय जब विष्णु कमल से प्रकट हुए थे, तब गोरक्षनाथ जी पटल में थे। भगवान विष्णु जम के विनाश से भयभीत हुए और पटल पर गये और गोरक्षनाथ जी से सहायता मांगी। गोरक्षनाथ जी ने कृपा की और अपनी धूनी में से मुट्ठी भर भभूत देते हुए कहा कि जल के ऊपर इस भभूति का छिड़काव करें, इससे वह संसार की रचना करने में समर्थ होंगे। गोरक्षनाथ जी ने जैसा कहा, वैस ही हुआ और इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और महेश श्री गोर-नाथ जी के प्रथम शिष्य बने।
3. एक मानव-उपदेशक से भी ज्यादा श्री गोरक्षनाथ जी को काल के साधारण नियमों से परे एक ऐसे अवतार के रूप में देखा गया जो विभिन्न कालों में धरती के विभिन्न स्थानों पर प्रकट हुए।
सतयुग में वो लाहौर पार पंजाब के पेशावर में रहे, त्रेतायुग में गोरखपुर में निवास किया, द्वापरयुग में द्वारिका के पार हरभुज में और कलियुग में गोरखपुर के पश्चिमी काठियावाड़ के गोरखमढ़ी(गोरखमंडी) में तीन महीने तक यात्रा की।
4.वर्तमान मान्यता के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को श्री गोरक्षनाथ जी का गुरू कहा जाता है। कबीर गोरक्षनाथ की 'गोरक्षनाथ जी की गोष्ठी ' में उन्होनें अपने आपको मत्स्येंद्रनाथ से पूर्ववर्ती योगी थे, किन्तु अब उन्हें और शिव को एक ही माना जाता है और इस नाम का प्रयोग भगवान शिव अर्थात् सर्वश्रेष्ठ योगी के संप्रदाय को उद्गम के संधान की कोशिश के अंतर्गत किया जाता है।
5. गोरक्षनाथ के करीबी माने जाने वाले मत्स्येंद्रनाथ में मनुष्यों की दिलचस्पी ज्यादा रही हैं। उन्हें नेपाल के शासकों का अधिष्ठाता कुल गुरू माना जाता हैं। उन्हें बौद्ध संत (भिक्षु) भी माना गया है,जिन्होनें आर्यावलिकिटेश्वर के नाम से पदमपवाणि का अवतार लिया। उनके कुछ लीला स्थल नेपाल राज्य से बाहर के भी है और कहा जाता है लि भगवान बुद्ध के निर्देश पर वो नेपाल आये थे। ऐसा माना जाता है कि आर्यावलिकिटेश्वर पद्मपाणि बोधिसत्व ने शिव को योग की शिक्षा दी थी। उनकी आज्ञानुसार घर वापस लौटते समय समुद्र के तट पर शिव पार्वती को इसका ज्ञान दिया था। शिव के कथन के बीच पार्वती को नींद आ गयी, परन्तु मछली (मत्स्य) रूप धारण किये हुये लोकेश्वर ने इसे सुना। बाद में वहीं मत्स्येंद्रनाथ के नाम से जाने गये।
6. एक अन्य मान्यता के अनुसार श्री गोरक्षनाथ के द्वारा आरोपित बारह वर्ष से चले आ रहे सूखे से नेपाल की रक्षा करने के लिये मत्स्येंद्रनाथ को असम के कपोतल पर्वत से बुलाया गया था।
7.एक मान्यता के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को हिंदू परंपरा का अंग माना गया है। सतयुग में उधोधर नामक एक परम सात्विक राजा थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनका दाह संस्कार किया गया परंतु उनकी नाभि अक्षत रही। उनके शरीर के उस अनजले अंग को नदी में प्रवाहित कर दिया गया, जिसे एक मछली ने अपना आहार बना लिया। तदोपरांत उसी मछ्ली के उदर से मत्स्येंद्रनाथ का जन्म हुआ। अपने पूर्व जन्म के पुण्य के फल के अनुसार वो इस जन्म में एक महान संत बने।
8.एक और मान्यता के अनुसार एक बार मत्स्येंद्रनाथ लंका गये और वहां की महारानी के प्रति आसक्त हो गये। जब गोरक्षनाथ जी ने अपने गुरु के इस अधोपतन के बारे में सुना तो वह उसकी तलाश मे लंका पहुँचे। उन्होंने मत्स्येंद्रनाथ को राज दरबार में पाया और उनसे जवाब मांगा । मत्स्येंद्रनाथ ने रानी को त्याग दिया,परंतु रानी से उत्पन्न अपने दोनों पुत्रों को साथ ले लिया। वही पुत्र आगे चलकर पारसनाथ और नीमनाथ के नाम से जाने गये,जिन्होंने जैन धर्म की स्थापना की।
9.एक नेपाली मान्यता के अनुसार, मत्स्येंद्रनाथ ने अपनी योग शक्ति के बल पर अपने शरीर का त्याग कर उसे अपने शिष्य गोरक्षनाथ की देखरेख में छोड़ दिया और तुरंत ही मृत्यु को प्राप्त हुए और एक राजा के शरीर में प्रवेश किया। इस अवस्था में मत्स्येंद्रनाथ को लोभ हो आया। भाग्यवश अपने गुरु के शरीर को देखरेख कर रहे गोरक्षनाथ जी उन्हें चेतन अवस्था में वापस लाये और उनके गुरु अपने शरीर में वापस लौट आयें।
10. संत कबीर पंद्रहवीं शताब्दी के भक्त कवि थे। इनके उपदेशों से गुरुनानक भी लाभान्वित हुए थे। संत कबीर को भी गोरक्षनाथ जी का समकालीन माना जाता हैं। "गोरक्षनाथ जी की गोष्ठी " में कबीर और गोरक्षनाथ के शास्त्रार्थ का भी वर्णन है। इस आधार पर इतिहासकर विल्सन गोरक्षनाथ जी को पंद्रहवीं शताब्दी का मानते हैं।
11. पंजाब में चली आ रही एक मान्यता के अनुसार राजा रसालु और उनके सौतेले भाई पुरान भगत भी गोरक्षनाथ से संबंधित थे। रसालु का यश अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था और पूर्ण भगत पंजाब के एक प्रसिद्ध संत थे। ये दोनों ही गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने और पुरान तो एक प्रसिद्ध योगी बने। जिस कुँए के पास पुरान वर्षो तक रहे, वह आज भी सियालकोट में विराजमान है। रसालु सियालकोट के प्रसिद्ध सालवाहन के पुत्र थे।
12. बंगाल से लेकर पश्चिमी भारत तक और सिंध से पंजाब में गोपीचंद, रानी पिंगला और भर्तृहरि से जुड़ी एक और मान्यता भी है। इसके अनुसार गोपीचंद की माता मानवती को भर्तृहरि की बहन माना जाता है। भर्तृहरि ने अपनी पत्नी रानी पिंगला की मृत्यु के पश्चात् अपनी राजगद्दी अपने भाई उज्जैन के विक्रमादित्य (चंन्द्रगुप्त द्वितीय) के नाम कर दी थी। भर्तृहरि बाद में गोरक्षनाथी बन गये थे।
जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,
और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है......MMK
Superb information...
ReplyDeleteप्रिय प्रफुल्ल जोशी हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार स्नेह बनाये रखे..
ReplyDeleteVery interesting...pls give some info on puja vidhi if possible...thanks
ReplyDeleteVery interesting...pls give some info on puja vidhi if possible...thanks
ReplyDeleteडॉ जयदीप जी हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार...अभी हम व्यस्त है शीघ्र आपकी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करेगे...
ReplyDeleteSIR, IT IS VERY MUCH KNOWN THAT RAJA BHRTHARI OF UJJAIN AFTER THE DETH OF HIS RANI TOOK YOG DIKSHA FROM GURU GORAKH NATH JI , VIKRAMADITYA BECAME KING IN ROUND BC82 OR 65 GOGJI MAHARAJ'S TIME IS CONSIDERED AROUND11 THCENTURY SANT KABIR AND GURU NANAKJI TIME IS THAT OF13TH AND 14TH CENTURY, WHAT I WNTED TO SAY " GORAKH , DUTT YUG AADI YOGI" YOU CAN NOT DEFINE THERE TIME OR THERE PRESENCE EVEN TODAY THANKYOU
ReplyDeleteGURU GORAKH NATH JI IS OMNIPRESENT -SARVAVYAPI, SADASHIV ,i.e, beyond time frame .
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं, अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार स्नेह बनाये रखे.
Deletemanish g aapki di hui ye jankari bhumulay hai
Deleteiske liye dhanyvad
kya aap btaa sakte hai kisi book k baare me jo hindi me hoh or guru gorkahnath g k davara likhi gyi ho
अशोक जी हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार...अभी हम व्यस्त है शीघ्र आपकी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करेगे
DeleteBahut badhiya manish ji, saadar dhanyawad guru garakhnath ji ke baare mei itna detail dene ke liye,
ReplyDeletePar yah satya hai ki BABA Gorakhnath ji ko describe karna, unki pahchan karna aasan nhi, hme apse jitni jaankaari mili ek baar punah dhanyawad, unki daya se kripa se jitna unki marzi hogi utna hi jaan skte hai. Apse judna achha lgega mera saubhagya hoga. Shukriya
Bahut badhiya manish ji, saadar dhanyawad guru garakhnath ji ke baare mei itna detail dene ke liye,
ReplyDeletePar yah satya hai ki BABA Gorakhnath ji ko describe karna, unki pahchan karna aasan nhi, hme apse jitni jaankaari mili ek baar punah dhanyawad, unki daya se kripa se jitna unki marzi hogi utna hi jaan skte hai. Apse judna achha lgega mera saubhagya hoga. Shukriya
दुबे जी आपका हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं, अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार स्नेह बनाये रखे...
DeleteSir aapne jo guru gorkhnath ji ke vishay me jankari di hai bahut achcha hai mai is peeth se judana chahata hu kaise judo
DeleteManish jee aap ka dhanyawad aap ne guru gorakhnath jee ke bare me jo lekha hi. jai guru gorakhnath jee. aadesh aadesh aadesh .....................
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं.....
Deletemanish ji mai bhi guru ke charano mai jana chahta hu gyan parpt karna chahta hu. marg darshan kare. dhanyavad . manoj sharma
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार...अभी हम व्यस्त है शीघ्र आपकी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करेगे...
Deleteअभी आप इस गुरु -स्तोत्र का जाप करे:-
Delete॥ गुरु-स्तोत्र ॥
॥ ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥ ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥
दायें गुरु है, बायें गुरु है । आगे गुरु है, पीछे गुरु है ॥
ऊपर गुरु है, नीचे गुरु है । अंदर गुरु है, बाहर गुरु है ॥
ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥ ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥1॥
अंड में गुरु है, पिंड में गुरु है । जल में गुरु है, थल में गुरु है ॥
पवन में गुरु है, अनल में गुरु है । नभ में गुरु है, अंतर में गुरु है ॥
ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥ ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥2॥
तन में गुरु है, मन में गुरु है । घर में गुरु है, वन में गुरु है ॥
मंत्र में गुरु है, में यंत्र गुरु है । तंत्र में गुरु है, माला में गुरु है ॥
ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥ ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥3॥
धूप में गुरु है, दीप में गुरु है । फूल में गुरु है, फल में गुरु है ॥
भोग में गुरु है, पूजा में गुरु है । लोक में गुरु है, परलोक में गुरु है ॥
ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥ ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥4॥
जप में गुरु है, तप में गुरु है । हठ में गुरु है, यज्ञ में गुरु है ॥
जोग में गुरु है, में योग गुरु है । ज्ञान में गुरु है, ध्यान में गुरु है ॥
ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥ ॐ गुरु ॐ ॐ गुरु ॐ ॥5॥
॥ ॐ तत्सत् ॥
Dear Mr. Monu...Good to see the blog...but it is very important to feel the presence of lord within our heart in order to make people aware of Lord Guru Gorakhshnath Ji. Most of the points refers to bookish knowledge...I request to please visit once the blog" goraknathdisciple.blogspot.in" to have the real feel of Lord Guru Gorakshnath...Request to please remove points stating Guru Goraknath as 11 century yogi..This is akin to make insult of lord who is ageless and beyond time and space...Please contact if you would to share your thoughts on Vishva.pratap@gmail.com
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार...
Deleteaapka bahut bahut dhanyawad ,, aapne ye amulya gyan diya.. Jai guru Gorakhnath ki...
ReplyDeleteJai Guru Gorakhnath ji ki
Deleteआपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार..
Jai Guru Gorakhnath ji ki.....
ReplyDeleteJai Guru Gorakhnath ji ki
ReplyDeleteJai Shri Guru Gorakshnath ji!
ReplyDeleteKaushal ji. Ur writings about Gurugorakshnath ji is based on work of people which are contradictory. I urge u to read the blog gorakhnath disciple writen by Bhuwan Joshi , who has been a direct disciple of The universal truth -Guru Gorakshnath ji. HE writes from his direct learning of The Absolute . Since he is a living guru present on this Earth today , he is present to testify himself and answer all queries put to him directly. This is how we can protect &preserve our Indian culture and pay respect to our ancient civilisation that is beyond any time and beyond words of malicious intentions to tarnish our name and glory . Thank you , with regards.
Jai Guru Gorakhnath ji ki
Deleteआपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार..
Jai Shri Guru Gorakshnath ji ki!
ReplyDeleteSADA SHIV SWAROOPA, AJANMA, AVINASHI, ANADI, MAHAKAL, SARVAWYAPI. NARAYAN, thaa BRAHMA swaroop Shri Guru Gorakshnath, time to time HIS HIGHNESS HE APPEARS on the earth and goes into samadhi. He DOES NOT take Birth but his presence is for upliftment of humanity. He revives the lost techniques of yoga.
Ref. .disciple. Gorakhnath blog. By Bhuwan.
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DeleteJai Shri Guru Gorakshnath ji ki...
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार...
Dr.Monu ji aapka bahut bahut danyavad Jo aapne home guruji me baare me durlab gyan sikhaya
ReplyDeleteJai Guru Gorakhnath ji ki Jai Jahar Veer Goga ji (गोगा जी) आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार...
KaushaL ji ,as you muse hv read the blog on Gurugorakshnath, disciple but Bhuwan. And make necessary changes.
ReplyDeleteThanks
Regards.
आपका हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार...अभी हम व्यस्त है शीघ्र आपकी सलाह अनुसार प्रयास करेगे.
Deletem b.a history ka student hu m gorakhnath ji ke bare m jayada se jayada janna chahta hu
ReplyDeleteअभी हम व्यस्त है शीघ्र आपकी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करेगे..
DeleteKya gorkhnarh g ko apna guru man k me sadhna KR skte hai ??
Deleteआप ऐसा कर सकते है... अगर आप सिद्धांतों पर चल सकते हैं..तो...
DeleteManish Sir aapke guru kon hain.. Koi Nath baba hain kya... Hame bhi Nath baba se diksha do agar time ho to.
ReplyDeletevinod kokane
vinod.kokane@gmail.com
नमस्कार जी,मैंने दीक्षा ग्रहण की है,ब्रह्मलीन स्वामी कल्याणदेव महराज गुरू जी से...
Deletebhut hi acha lga ye sab dek manish kaushal ji dhaniyawad
ReplyDeletebhut hi acha lga ye sab dek manish kaushal ji dhaniyawad
ReplyDeleteJai Guru Gorakhnath ji ki Jai Jahar Veer Goga ji (गोगा जी) आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार...
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletejai guru gourakh nath ji baba ki
ReplyDeletejai guru gourakh nath ji baba ki
ReplyDeleteJai Guru Gorakhnath ji ki Jai Jahar Veer Goga ji (गोगा जी)
Deletehttps://m.facebook.com/Jaharveer-Goga-Ji-Chauhan-235840990099115/
Deletehttps://m.facebook.com/Jaharveer-Goga-Ji-Chauhan-235840990099115/
ReplyDeletejai Guru Gorkhnathh ki
ReplyDeletejai guru Gorkhnaath ki
ReplyDeleteshree jahaveer gogaji fathers name
ReplyDeleteबाबा जी के पिता का नाम राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह जी)
DeleteJai Guru Gorakhnath ji ki Jai Jahar Veer Goga ji (गोगा जी)
guru ji ko kon sa parsad lagta hai
ReplyDeleteJai Guru GorakshNath ji.!
ReplyDeleteWhat is the meaning of Gorakhdhandha.
If it is used in relation to Our Guru GorakshNath ji then .......and change its meaning.
Jai Guru GorakshNath ji.
Jai Guru GorakshNath ji.!
ReplyDeleteWhat is the meaning of Gorakhdhandha.
If it is used in relation to Our Guru GorakshNath ji then .......and change its meaning.
Jai Guru GorakshNath ji.
जय गुरु गोरखनाथ जी की.
Deleteगोरख धंधा शब्द गुरु गोरखनाथ के अबोधगम्य कारनामों की वजह से प्रचलन में आया था, इसका मतलब (कोई जटिल काम जिसका निराकरण करना सहज न हो)…लेकिन आजकल मीडिया में सामान्यतः किसी भी बुरे कार्य जैसे मिलावट, धोखा-धड़ी, छल-कपट, चोरी-छिपे भ्रष्ट कार्यों के लिए यह शब्द प्रयोग होता है…
CHET MATSYENDER GORAKH AAYA
ReplyDeleteDURING MY CHILDHOOD A STORY WAS TOLD BY MY UNCLE THAT GORAKHNATHJI ALERTED SHRI MATSYENDERNATHJI BY MAKING THIS SOUND FROM TABLA
CAN YOU GET SOME MORE DETAIL?
SUDHIR 09820191727
CHET MATSYENDER GORAKH AAYA
ReplyDeleteDURING MY CHILDHOOD A STORY WAS TOLD BY MY UNCLE THAT GORAKHNATHJI ALERTED SHRI MATSYENDERNATHJI BY MAKING THIS SOUND FROM TABLA
CAN YOU GET SOME MORE DETAIL?
SUDHIR 09820191727
सुधीर जी हार्दिक धन्यवाद आपकी टिप्पणि बहुमूल्य हैं,अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार...अभी हम व्यस्त है शीघ्र आपकी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करेगे...
Deleteगुरु गोरखनाथ और बजरंगबली का द्वंद्व युद्ध हुआ...
ReplyDeleteउत्तराखंड में जिस स्थान पर वर्तमान में सिद्धबली मंदिर स्थापित है वहां गुरु गोरखनाथ और बजरंगबली का द्वंद्व युद्ध हुआ था। इसके बाद यहां बजरंग बली प्रकट हुए और गुरु गोरखनाथ को दर्शन देकर उनको दिए वचनानुसार यहां पर प्रहरी के रूप में सदा के लिए विराजमान हो गए। यह स्थान गुरु गोरखनाथ का सिद्धि प्राप्त स्थान होने के साथ इसे सिद्धबली बाबा के नाम से जाना जाने लगा। स्कंद पुराण के केदारखंड में इस बात का जिक्र है। सिद्धबाबा को साक्षात गोरखनाथ मना जाता है। इनको कलयुग में शिव का अवतार माना जाता है।
दोनों में भयंकर युद्ध हुआ मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्रनाथ हनुमान जी की आज्ञानुसार त्रियाराज्य (वर्तमान में चीन के समीप) की रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे। जब इस बारे में उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ को पता चला तो वे दुखी हुए। उन्होंने प्रण किया कि वह गुरु को इससे मुक्त कराएंगे।
जैसे ही वह त्रियाराज्य की ओर प्रस्थान कर रहे थे हनुमान जी ने वन मनुष्य का रूप लेकर उनका स्थान रोक लिया। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन हनुमान जी गुरु गोरखनाथ को पराजित नहीं कर पाए। इससे हनुमान जी आश्चर्य में पड़ते हैं कि वह एक साधारण साधु को परास्त नहीं कर पा रहे हैं। जब उनको इस बात का पता चला कि यह कोई दिव्य पुरुष हैं तो वह अपने असली रूप में प्रकट हुए। उनके तप-बल से प्रसन्न होकर वह उनसे वरदान मांगने को कहते हैं।
गोरखनाथ हनुमान जी से अपने गुरु मछेंद्रनाथ को आज्ञामुक्त करने और इस स्थान पर प्रहरी की तरह रहने का वरदान मांगते हैं। कहा जाता है कि तब से यहां पर हनुमान जी उपस्थित रहते हैं। इन दो यतियों (बजरंग बली और गुरु गोरखनाथ) के कारण इसे सिद्धबली बाबा कहा जाता है।
Jy guru gorakhnath ri
ReplyDeleteजय गुरु मत्स्येन्द्रनाथजी की..जय गुरु गोरखनाथ जी की
Deleteअपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार..जय गुरु गोरखनाथ जी की.. जय गोगाजी महाराज( सिद्धनाथ वीर गोगादेव)जी की
ReplyDeleteगुरु जी प्रणाम
ReplyDeleteमुझे अपने परिवार की सुख शांति और रक्षा के लिए क्या आप मुझे दीक्षा प्रदान करेंगे .
जय गुरु गोरखनाथ ..
Jai Shiv Gorakhshnath ji ki jai.
ReplyDeleteJai Gogga Jahar Veer Ji Ki
अपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार..जय गुरु गोरखनाथ जी की.. जय गोगाजी महाराज( सिद्धनाथ वीर गोगादेव)जी की
ReplyDeleteAdhesh sabhi ko
ReplyDeleteअपने भाव प्रकट करने का बहुत बहुत आभार..जय गुरु गोरखनाथ जी की.. जय गोगाजी महाराज( सिद्धनाथ वीर गोगादेव)जी की
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