Thursday, December 2, 2010

Parampara Part (4)

सुबह ही क्यों नहाते हैं?
सभी सुबह उठने के बाद सभी नित्य क्रियाओं के बाद नहाते भी हैं। नहाना एक आवश्यक क्रिया है जिसे प्रतिदिन किया जाना अनिवार्य माना गया है। वैसे तो हम दिन में कभी भी नहा सकते हैं परंतु नहाने का काम सुबह-सुबह ही क्यों किया जाता है।
शास्त्रों अनुसार प्रतिदिन नहाना जरूरी है ताकि हमारा शरीर पवित्र रहे और हम निरोगी बने रहे। सभी पूजनादि कार्य नहाने के बाद ही मान्य किए जाते हैं। बिना नहाए मंदिर में जाना भी वर्जित किया गया है। ऐसा माना जाता है इससे भगवान का अपमान होता है। नहाने की धार्मिक वजह यही है कि भगवान के सामने जाने पहले हम अपना तन और मन पूरी तरह साफ कर लें। तन की सफाई नहाने से ही होती है।
नहाने सुबह ही क्यों जरूरी है? इसका कारण यह है कि नींद से जागने के बाद हम आलस्य के अधीन ही रहते हैं। ऐसे में नहाने से ही हमारे शरीर में स्फूर्ति और ताजगी आती है। साथ ही नहाने से दिनभर में मन प्रसन्न रहता है और चेहरे पर चमक बनी रहती है। सुबह बिना नहाए रहने से पूरा दिन आलस्य के वश में ही गुजरता है। इसी वजह से सुबह नहाने के बाद ही अन्य सभी कार्य शुरू किए जाते हैं।
साथ ही नहाने से होने वाले स्वास्थ्य लाभ से सभी भलीभांति परिचित हैं। इससे हमारे शरीर की त्वचा के सभी सूक्ष्म छिद्रों पर जमी गंदगी साफ हो जाती है और शरीर स्वस्थ बना रहता है।

शनि को क्यों पूजें?
अधिकांश लोग अपना जीवन हमेशा सुखी और समृद्धशाली बनाए रखना चाहते हैं, इस मनोकामना के लिए वे कई प्रकार के जतन भी करते हैं। जो लोग भगवान में आस्था रखते हैं वे हमेशा उन्हें मनाने के लिए मंदिर-मंदिर दर्शन करने जाते हैं। वैसे तो सभी देवी-देवता सुख और धन आदि अपने भक्तों को प्रदान करते हैं परंतु शनि एक ऐसा देवता हैं जो किसी के भी सुख को दुख में बदल सकता हैं। इनके कोप से बचने के लिए शनिवार को शनि की आराधना की करनी चाहिए।
शनि देव को न्यायाधिश बताया गया है वे ही हमारे कर्मों का फल प्रदान करते हैं। किसी भी व्यक्ति के जैसे भी कार्य होंगे, सोच होगी वैसा ही फल शनि प्रदान करता है। इसी वजह से सभी देवी-देवताओं की पूजा के साथ इन्हें प्रसन्न रखना अति आवश्यक है। यह काफी क्रूर देवता माने जाते हैं। बुरे कर्मों का फल बुरा ही प्रदान करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिवार शनि का दिन माना गया है। इस दिन शनि देव के निमित्त दान करना चाहिए साथ ही शनि देव को तेल अर्पित करना चाहिए। कुंडली में शनि ग्रह का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है। शनि ही एक मात्र ऐसा ग्रह है तो एक साथ पांच राशियों को सीधे-सीधे प्रभावित करता है। तीन राशियों में एक साथ शनि की साढ़ेसाती रहती है वहीं दो राशियों में शनि की ढैय्या रहती है। साढ़ेसाती और ढैय्या में शनिदेव हमें हमारे बुरे कर्मों का बहुत बुरा फल प्रदान करते हैं और अच्छे कर्मों का अच्छा फल प्रदान करते हैं। इसी वजह से सभी राशि वाले लोगों शनि को सदैव प्रसन्न रखने की सलाह दी जाती है।

मुस्लिम महिलाओं के लिए बुर्का क्यों जरूरी?
इस्लाम में पुरुषों और महिलाओं के लिए कई नियम बनाए गए हैं। इन नियमों का पालन करना हर मुस्लिम व्यक्ति के अनिवार्य है। इन्हीं नियमों में से एक नियम है महिलाओं के लिए बुर्का या हिजाब।
हर मुस्लिम महिला या लड़की के लिए हिजाब या बुर्का धार्मिक अनिवार्यता है। इसके पीछे धार्मिक महत्व तो है साथ ही वैज्ञानिक कारण भी हैं।
भारत में बुर्का पहनने की परंपरा मुगल शासन काल के बाद बहुत ज्यादा प्रचलित हुई। यह परंपरा अरब देशों से शुरू हुई ऐसा माना जाता है। अरब देशों में वातावरण काफी गर्म रहता है जो कि त्वचा को झुलसा देने वाला होता है। साथ ही वहां तेज हवा के साथ रेत भी उड़ती रहती है। जिससे वातावरण रेतीला हो जाता है। ऐसे में सामान्य व्यक्ति के लिए वहां रहना में काफी परेशानियां रहती हैं।
अरब देशों के वातावरण में पुरुषों और महिलाओं को हमेशा अपने पूरे शरीर को ढंककर रखना बहुत जरूरी हो जाता है। यही वजह है कि वहां पर लड़कियों के लिए बुर्का या हिजाब का चलन बढ़ा। लड़कियों या महिलाओं की त्वचा बहुत कोमल रहती है और वहां अत्यधिक गर्मी की वजह से त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही तेज हवा चलने पर रेत भी हवा के साथ उड़ती है, ऐसे में कोमल त्वचा पर रेत का लगना त्वचा के लिए बहुत ही हानिकारक होता है। इस बुरे प्रभाव से बचने के लिए हिज़ाब या बुर्का पहनने की परंपरा शुरू की गई।
बुर्का या हिजाब के और भी कई फायदे हैं जैसे इसे पहनने से बुरी नजर से भी बचाव हो जाता है और लड़कियों की सुरक्षा की दृष्टि से हिजाब बहुत उपयोगी है। इन्हीं सारे फायदों की वजह से अरब देशों से शुरू हुई यह परंपरा धीरे-धीरे सभी जगह प्रचलन में आ गई।

घरों में पर्दें क्यों लगाते हैं?
आजकल पर्दें घरों की सजावट में काफी अहम भूमिका निभाते हैं। सभी घरों में पर्दें लगे देखे जा सकते हैं। वैसे तो पर्दें घर की गोपनियता बनाए रखने के काम आते हैं परंतु यह धर्म और वास्तु के अनुरूप भी कई बाधाओं को दूर करते हैं।
पर्दें लगाने की परंपरा भी अति प्राचीनकाल से चली आ रही है। राजा-महाराजा के महलों में कई परदे लगे होते थे। ऐसे कई प्रसंग पढऩे-सुनने में आते हैं जहां राज महलों में पर्दों का उल्लेख आता है। पुराने समय में बड़े-बड़े घर, राजमहल हुआ करते थे और हर कमरे में दरवाजे भी बड़े-बड़े लगाए जाते थे। जो कि वजन में काफी भारी होते थे। ऐसे में बार-बार दरवाजा बंद करना और खोलन काफी दिक्कतों वाला काम होता था। इससे बचने के लिए वहां पर्दें लगा दिए जाते थे ताकि कमरों की गोपनियता बनी रही।
आज भी पर्दों का इस्तेमाल गोपनियता बनाए रखने के लिए ही किया जाता है। आधुनिक युग में पर्दों को घर की सुंदरता बढ़ाने में भी उपयोग जाने लगा है। कई घरों में वास्तु अनुसार अलग-अलग रंगों और डिजाइन के पर्दें लगाए जाते हैं। जिनसे घर का वातावरण भी खुशनुमा और उत्साह बनाए रखने वाला होता है।
पर्दा लगाने से घर में हवा के साथ आने वाली धूल-मिट्टी और कचरा भी बाहर ही रुक जाता है। साथ ही पर्दें हमारे घर को बुरी नजर से बचाने का काम भी करते हैं। नेगेटिव एनर्जी को घर में आने से रोकते हैं और पॉजीटिव एनर्जी बनाए रखते हैं। इन्हीं सारे फायदों की वजह से घरों में पर्दें लगाए जाते हैं।

श्रीरामचरित मानस क्यों पढ़ें?
सभी विद्वानों द्वारा श्रीराम की जीवनगाथा श्रीरामचरित मानस पढऩे की सलाह दी जाती है। श्रीरामचरित मानस में जीवन प्रबंधन से जुड़े अमूल्य सूत्र हैं। राम का जीवन इस बात की प्रेरणा देता है कि आप समाज में कैसे रहें?
श्रीराम का संपूर्ण जीवन हमें आदर्श जीवन जीने के सूत्र ही बताता है। श्रीराम के चरित्र की कुछ ही बातों को जीवन में उतार लिया जाए तो कोई भी सामान्य व्यक्ति भी महान बन सकता है। रामायण में वह सभी बातों का समावेश हैं जो हमें परिवार में रहना सिखाती हैं, समाज में रहना सिखाती है। रामायण का सरल रूप है गोस्वामी तुसलीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस।
तुलसीदासजी ने श्रीरामचरित मानस को इतना सरल रूप में लिखा है कि आसानी से सभी को समझ आ जाती है। आज के युग में सभी को उच्च जीवन जीने के लिए सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है। बस यही मार्गदर्शन श्रीराम के जीवन से प्राप्त किया जा सकता है। जिस प्रकार श्रीराम पुत्र का कर्तव्य निभाते हैं ठीक उसी तरह आज सभी संतानों को अपने-अपने माता-पिता की हर बात को मानना चाहिए। जिस प्रकार उन्होंने पत्नी सीता के साथ जीवन बिताया वह इस बात की प्रेरणा देता है कि आज के युग में पति-पत्नी को किस प्रकार रहना चाहिए? किसी भी विषम परिस्थिति में पति-पत्नी को एक-दूसरे का साथ बिल्कुल नहीं छोडऩा चाहिए तभी हर समस्या का हल आसानी से निकाला जा सकता है। वहीं श्रीरामचरित मानस में भाइयों में कैसा प्रेम रहना चाहिए भी बताया गया है। मित्रता के संबंध में रामायण में कई प्रसंग दिए गए है जो आदर्श मित्रता की मिसाल है। ऐसे ही हमारे जीवन से जुड़े हर रिश्ते की मर्यादा, अधिकार और कर्तव्य आदि सभी बातों की जानकारी के लिए हमें श्रीरामचरित मानस पढऩे की सलाह दी जाती है।

चंद्रमा की पूजा क्यों की जाती है?
चांद एक सुंदर ग्रह, जो सभी की आंखों को सुकून प्रदान करता है। चंद्रमा को निहारने से ही हमारे मन प्रसन्न हो जाता है। चंद्रमा की असीम सुंदरता के कारण ही हर सुंदर लड़की को चांद की ही संज्ञा दी जाती है। हमारे धर्म ग्रंथों में इतने सुंदर और शांत दिखाई देने वाले चंद्र की पूजा का भी विधान बताया गया है। आखिर क्यों की जाती है चंद्रमा की पूजा?
चंद्रमा को भी देवता माना गया है। ज्योतिष में भी चंद्रमा का खास स्थान है। चंद्र को मन का देवता माना जाता है। कुंडली में चंद्रमा के आधार पर हमारी राशि का निर्धारण होता है। चंद्रमा एक राशि में मात्र ढाई दिन रुकता है।
चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से महत्व है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति चंद्रमा में की उपासना करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, किसी प्रकार का कष्टï जीवन में नहीं होता। उसे लंबी आयु प्राप्त होती है। चंद्रमा मन की चंचलता को नियंत्रित करता है। चंद्रमा को पराशक्ति का प्रतीक भी माना जाता है। चंद्रमा की प्रसन्नता से मन में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं। शुभ विचार ही अच्छे कर्म के कारक होते हैं। बड़ो के प्रति आदर भाव जैसे अच्छे विचार चंद्रमा की प्रसन्नता से ही आते हैं। यही कारण है कि इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है।

जन्मकुंडली क्यों बनवाएं?
हमारा जीवन अनिश्चिताओं से भरा हुआ है। कब क्या हो जाए कुछ कह पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। ऐसे में सभी की जिज्ञासा होती है अपना भविष्य जानने की। किसी का भी भविष्य मालुम करने के लिए ज्योतिष सर्वोत्तम उपाय है। ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की स्थिति के अनुसार किसी भी व्यक्ति का भूत-भविष्य और वर्तमान मालुम किया जा सकता है।
आमतौर पर सभी लोग अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की जन्म कुंडली अवश्य बनवाते हैं। इसकी वजह यही है कि कुंडली के आधार पर हमें भविष्य में होने वाली संभावित घटनाओं के बारे में जानकारियां प्राप्त हो जाए। कुंडली में स्थित नौ ग्रह आपके भाग्य का फैसला करते हैं। जन्म के समय जैसी भी ग्रह स्थिति होती है व्यक्ति का पूरा जीवन उसके आधार पर चलता है।
आधुनिकता के दौर में भी बड़ी संख्या में लोगों का विश्वास है कि कुंडली क माध्यम से भविष्य जाना जा सकता है। ज्योतिषाचार्य के सही परामर्श के आधार पर विवाह आदि मांगलिक कार्य किए जाते हैं।
यदि किसी व्यक्ति परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो उसकी कुंडली के अध्ययन से मालुम किया जा सकता है कि किस ग्रह वजह की वजह इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित हो रही हैं? इसी के आधार पर संबंधित ग्रह का उचित ज्योतिषीय उपचार करने से जीवन में खुशियां लौट आती हैं।
इन्हीं कारणों की वजह से जन्म के साथ जन्म कुंडलियां बनवा ली जाती है जिससे समय-समय पर आने वाली परेशानियां से निजात पाई जा सके।

गर्भवती स्त्री को केसर का दूध क्यों दिया जाता हैं?
किसी भी नवजात शिशु के जन्म से पूर्व उसकी माता के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कई नियम बनाए गए हैं। माता और उसके गर्भ में पल रहा शिशु दोनों की सुरक्षा और सेहत अच्छी बनी रहे, इसके लिए गर्भवती स्त्री के खाने-पीने का विशेष ध्यान रखा जाता है। सभी गर्भवती महिलाओं को अनिवार्य रूप से प्रतिदिन दूध में केसर घोलकर पीने को दिया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि केसर का दूध पीने से शिशु का रंग गोरा होता है परंतु इसके कई आयुर्वेदिक गुणों की वजह से यह परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है।
केसर एक औषधि है इसका अंग्रेजी नाम सेफरन है। इस स्वभाव गर्मी देने वाला होता है। आयुर्वेद के अनुसार इसके नियमित सेवन से पित्त, कफ, पेट संबंधित अनेक परेशानियों अपच, पेट में दर्द, वायु विकार आदि नहीं होते। गर्भवती स्त्री और उसके बच्चे को इन सभी बीमारियों के प्रभाव से बचाने के लिए उन्हें केसर का सेवन कराया जाता है। साथ ही केसर सामान्य महिलाओं के लिए भी बहुपयोगी है। इससे स्त्रियों में होने वाली अनियमित मासिक स्राव एवं इस दौरान होने वाले दर्द में लाभ मिलता है।
यदि किसी स्त्री के गर्भाशय की सूजन है तो उसके लिए केसर का सेवन फायदेमंद रहता है।

गुरुवार को साईं बाबा की विशेष पूजा क्यों?
साईं बाबा एक ऐसे फकीर हैं जिन्हें हर धर्म के लोग बड़ी श्रद्धा से पूजते हैं। सभी जाति और धर्म इनके प्रति पूर्ण विश्वास रखते हैं। इनकी आराधना किसी भी विशेष मुहूर्त या वार को किया जा सकती है परंतु गुरुवार को इनकी पूजा का विशेष महत्व माना गया है।
गुरुवार को इनकी आराधना का इतना महत्व क्यों हैं? इस संबंध में यही तथ्य है कि गुरुवार गुरु का दिन माना जाता है। सभी धर्मों में गुरु का खास स्थान माना जाता है, गुरु ही हमें आदर्श जीवन जीने के सूत्र बताता है। गुरु ही सही राह पर चलने की प्रेरणा देता है। साईं बाबा ने हमेशा सभी को आदर्श और उच्च जीवन जीने की प्रेरणा दी है। इसी वजह से इन्हें बड़ी संख्या श्रद्धालु अपना गुरु मानते हैं। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इनकी आराधना से जल्द ही हमारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। साईं के मंदिर में सभी धर्मों के लोगों के लिए समभाव रखा जाता है। गुरुवार गुरु का दिन होने की वजह से साईं बाबा को गुरु मानने वाले सभी भक्त इस दिन बाबा के मंदिर जाते हैं।
साईं बाबा के मंत्र सबका मालिक एक यही बताता है कि परमात्मा एक है और वही हम सभी का पालन-पोषण करता है। इसी मंत्र की वजह से वे सर्वधर्म के लोगों के लिए भगवान और गुरु के समान ही हैं।

धार्मिक स्थानों पर कामुक मुर्तियां या चित्र क्यों लगाते हैं?
भगवान की भक्ति के धार्मिक स्थान सबसे अधिक पवित्र माने जाते हैं। यहां किसी भी प्रकार की अधार्मिकता देखने को नहीं मिलती। मंदिरों में ऐसी सभी बातों का ध्यान रखा जाता है कि वहां आने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार की अधार्मिक और अश्लीलता दिखाई न दे। फिर भी हिंदुओं के कुछ धार्मिक स्थान और मंदिरों में कामुक मूर्तियां बनाई गई हैं।
हिंदुओं के प्रसिद्ध मंदिर खजुराहों में काम क्रीड़ा से ओतप्रोत कई मूर्तियां बनाई गई हैं। यह सभी मूर्तियां अश्लीलता से भरपूर हैं। यहां आने वाले लोगों के लिए यही मुख्य आकर्षक का केंद्र होती हैं। ऐसे में अधिकांश भक्तों के मन यह प्रश्न उठता है कि भगवान से संबंधित धार्मिक स्थान पर ऐसी अश्लीलता से परिपूर्ण मूर्तियां क्यों बनाई गई हैं?
सामान्यत: धर्म को जानने वाले हर व्यक्ति के मन यह प्रश्न अवश्य ही उठता है। इस प्रश्न का उत्तर यही है कि यह सभी मूर्तियां भक्तों के लिए एक परीक्षा के समान ही है। प्राचीनकाल से भगवान के भक्तों की परीक्षा लेने की परंपरा चली आ रही है। भगवान अपने श्रद्धालु की सच्ची भक्ति या तपस्या की परीक्षा अवश्य ही लेते हैं।
इस तरह की मूर्तियां इसी बात की ओर इशारा करती हैं कि यह ईश्वर के सच्चे भक्तों की परीक्षा ही है। जो भी भक्त यहां आते हैं वे यदि भगवान के सच्चे भक्त होते हैं तो वे इन अश्लीलता भरी मूर्तियों की ओर ध्यान नहीं देते बल्कि सीधे भगवान की शरण में चले जाते हैं। वहीं जिन लोगों के मन में पाप और अश्लीलता भरी होती है वे इन मूर्तियों में खो जाते हैं और भक्ति की परीक्षा में वे अयोग्य सिद्ध हो जाते हैं।
परीक्षा वाली बात से प्रेरित होकर कई अन्य धार्मिक स्थानों और मंदिरों में इस तरह की मूर्तियां या चित्र लगाए गए हैं। वहीं कुछ घरों में भी इस प्रकार की सामग्री रखी जाती है ताकि घर में आने वाले व्यक्तियों की परख हो सके।

पूजा के लिए सुबह का समय ही श्रेष्ठ क्यों?
भगवान की पूजा के लिए सुबह-सुबह का समय सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। वैसे तो दिन में कभी भी सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जा सकती है परंतु ब्रह्म मुहूर्त में पूजा-आराधना करने का विधान है।
शास्त्रों के अनुसार प्रभु भक्ति के लिए सुबह का समय श्रेष्ठ बताया गया है क्योंकि सुबह हमारा मन शांत रहता है। नींद से जागने के बाद हमारा एकदम शांत और स्थाई रहता है। इधर-उधर की बातों से हमारा दिमाग बचा रहता है। भगवान की भक्ति के लिए जरूरी है कि हमारा मन एकाग्र रहे ताकि प्रभु में हमारा पूरा ध्यान लग सके।दिन के दूसरे समय में हम कई कार्य करते हैं जो कि हमारे मस्तिष्क को पूरी तरह प्रभावित करते हैं। जिससे मन अशांत हो जाता है, कई बुरी और अधार्मिक बातों में भी मन उलझ जाता है और फिर भक्ति में ध्यान लगाना असंभव ही होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त को पूजादि कर्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
भगवान उसी भक्ति से प्रसन्न होते हैं जहां शांत हो और किसी भी प्रकार की अधार्मिक बातें ना हो। सुबह की गई पूजा के प्रभाव से हमारे मन को इतना बल मिलता है कि दिनभर के सारे तनाव आसानी से सहन कर सके। दिमाग तेजी से चलता है, हम एक साथ कई योजनाओं पर कार्य कर पाते हैं। इसी वजह से सुबह-सुबह पूजा करने की परंपरा लागू की गई है।

बुधवार को क्यों पूजें श्रीगणेश को?
बुधवार का दिन श्री गणेश की आराधना के सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। बुधवार को गणपति की पूजा कई विघ्न और परेशानियां तुरंत ही समाप्त करने वाली होती हैं लेकिन बुधवार के दिन श्री गणेश की विशेष पूजा क्यों की जाती हैं?
दरअसल श्रीगणेश बुद्धि के भगवान माने जाते हैं और बुधवार बुद्धि का ही दिन है। गणपतिजी की पूजा से भक्त की बुद्धि प्रखर होती है और उसे सभी समस्याओं को हल करने की शक्ति प्राप्त होती है। ज्योतिष के अनुसार बुधवार बुध ग्रह का भी दिन है। बुध भी बुद्धि देने वाला ग्रह है। जिस व्यक्ति की कुंडली में बुध अच्छी स्थिति में होता है वह तेज दिमाग वाला होता है। श्री गणेश की पूजा से बुध देव भी प्रसन्न होते हैं।
गणेशजी रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि के प्रदाता हैं। बुधवार को इनकी आराधना से आपके घर पर श्री गणेश उनकी पत्नियों रिद्धि-सिद्धि और पुत्र शुभ-लाभ सहित निवास करते हैं। जिस व्यक्ति की कुंडली में बुध ग्रह अशुभ स्थिति में हैं और इसकी वजह से कार्य में मन नहीं लगता या समस्याओं को हल नहीं कर पा रहे हैं तो उन्हें बुधवार के दिन श्री गणेश की आराधना करने की सलाह दी जाती है।

दूल्हे की ड्रेस राजा के जैसी क्यों होती है?
विवाह, एक ऐसा है अवसर जब सभी उत्साह और उमंग के माहौल में रंगे होते हैं। इस हुड़दंग और मस्ती में सभी के आकर्षण का केंद्र होता है दूल्हा। सभी नजरें दूल्हे के पहनावे की वजह से ही उसे निहारती रहती हैं।
हिंदू रीति-रिवाजों में दूल्हे का पहनावा किसी राजा के समान ही रखा जाता है। दूल्हे को राजा की संज्ञा भी दी जाती है। आखिर किसी भी वर का ऐसा पहनावा ही क्यों रखा जाता है?
यह प्रथा अति प्राचीन काल से ही चली आ रही है कि दूल्हा राजा के समान ही रहता है। दूल्हा चाहे जिस घर का हो, उसकी आर्थिक स्थिति चाहे जैसी भी हो, वह शादी में रहेगा तो राजा के जैसा ही। विवाह जीवन में एक ही बार होता है और उस समय वर के परिवार वाले भी लड़के को अच्छे से सजाते हैं।
वर के खास पहनावे की पीछे वजह है कि पुराने समय में स्वयंवर की प्रथा होती थी जहां सभी राजा-महाराजा पारंपरिक वेशभुषा में शामिल होते थे। स्वयंवर के समय ही वधु मनपसंद वर के साथ विवाह रचा लेती थी। उस समय भी दूल्हे का पहनावा वैसा ही होता था। धीरे-धीरे यह वेशभुषा प्रचलन में आ गई और अब इसी तरह दूल्हे का श्रंगार किया जाता है। वर को अन्य लोगों से अलग दिखाने के लिए भी इस तरह से उसे सजाया जाता है।

बजरंगबली को हनुमान क्यों कहते हैं?
सभी के कष्ट-क्लेश दूर करने वाले पवन कुमार श्री हनुमान सभी की आस्था और विश्वास के केंद्र हैं। वैसे तो अंजनीपुत्र के कई नाम है परंतु उनका नाम हनुमान सर्वाधिक प्रचलित है। इनका बचपन में नाम मारूति रखा गया था लेकिन बाद में इन्हें हनुमान के नाम जाना जाने लगा।
एक रोचक प्रसंग है जिसकी वजह से मारूति को हनुमान नाम मिला। श्रीराम चरित मानस के अनुसार हनुमानजी की माता का नाम अंजनी और पिता वानरराज केसरी है। हनुमानजी को पवन देव का पुत्र भी माना जाता है। केसरी नंदन जब काफी छोटे थे तब खेलते समय उन्होंने सूर्य को देखा। सूर्य को देखकर अजंनीपुत्र ने सोचा कि यह कोई खिलोना है और वे सूर्य की उड़ चले। जन्म से ही मारूति को दैवीय शक्तियां प्राप्त थी अत: वे कुछ ही समय में सूर्य के समीप पहुंच गए और अपना आकार बड़ा करके सूर्य को मुंह में निगल लिया। पवनपुत्र द्वारा जब सूर्य को निगल लिया गया तब सृष्टि में अंधकार व्याप्त हो गया इससे सभी देवी-देवता चिंतित हो गए। सभी देवी-देवता पवनपुत्र के पास विनति करने पहुंचे कि वे सूर्य को छोड़ दें लेकिन बालक मारूति ने किसी की बात नहीं मानी। इससे क्रोधित होकर इंद्र ने उनके मुंह पर वज्र से प्रहार कर दिया। इस वज्र प्रहार से उनकी ठुड्डी टूट गई। ठुड्डी को हनु भी कहा जाता है। जब मारूति की ठुड्डी टूट गई तब पवन देव ने अपने पुत्र की यह दशा देखकर अति क्रोधित हो गए और सृष्टि से वायु का प्रवाह रोक दिया। इससे और अधिक संकट बढ़ गया। तब भी देवी-देवताओं ने बालक मारूति को अपनी-अपनी शक्तियों उपहार स्वरूप दी। तब पवन देव का क्रोध शांत हुआ। तभी से मारूति की ठुड्डी अर्थात् हनु टूट जाने की वजह से सभी देवी-देवताओं ने इनका नाम हनुमान रखा।

घड़ी बाएं हाथ पर ही क्यों बांधते हैं?
दुनियाभर में अधिकांश लोग अपनी कलाई पर घड़ी बांधते हैं। अधिकतर पुरुष बाएं हाथ यानि लेफ्ट हैंड पर ही घड़ी बांधते हैं, जबकि बहुत कम पुरुष सीधे हाथ में घड़ी बांधते हैं। वहीं महिलाएं सीधे हाथ पर घड़ी बांधना अधिक पसंद करती हैं।
हालांकि यह परंपरा किसी धर्म से संबंधित नहीं फिर भी यह काफी प्रचलित है। आखिर इसकी क्या वजह है कि पुरुष लेफ्ट हैंड की कलाई पर ही घड़ी बांधते हैं। इसके पीछे का तर्क यह है कि हम अधिकांश कार्य सीधे हाथ से ही करते हैं (लेफ्ट हैंडेड को छोड़कर)। इन कार्यों में हर प्रकार का कार्य शामिल है। कुछ भारी कार्य होते हैं तो कुछ जोखिम भरे, तो कुछ कार्य झटके वाले होते हैं। यदि ऐसे में सीधे हाथ में घड़ी बांधी जाए और इस प्रकार के कार्य किए जाते हैं तो निश्चित ही घड़ी खराब हो जाएगी। यदि कोई व्यक्ति लेखन आदि कार्य भी सीधे हाथ से करता है तब भी सीधे हाथ में घड़ी बांधना काफी परेशानियों भरा ही होगा। बाएं हाथ में घड़ी हमेशा सुरक्षित ही रहती है और हर परिस्थिति में समय देखने के लिए सुविधाजनक है।
हिंदू धर्म में अधिकांश कार्य सीधे हाथ से ही करने का विधान है। पूजादि कार्यों में भी सीधा हाथ ही उपयोग किया जाता है। ऐसे में पूजनकर्म में घड़ी से किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो इस वजह से भी घड़ी सीधे हाथ में ही पहनना पसंद किया जाता है।

शिव को क्यों कहते हैं महादेव?
शिव, शंकर, भोलेनाथ, नीलकंठ, कैलाशपति आदि असंख्य नामों से पुकारे जाने वाले भगवान दीनानाथ का एक नाम महादेव भी है। हिंदू शास्त्रों में केवल शिवजी के लिए महादेव नाम का प्रयोग किया जाता है। अन्य किसी देवता को यह संज्ञा प्राप्त नहीं है।
शिवजी को महादेव क्यों कहते हैं? शिवपुराण के अनुसार शिवजी ही आदि और अनंत है। इस सृष्टि के निर्माण से पहले भी शिवजी हैं और अंत के बाद भी महादेव ही रहेंगे। हिंदूओं में ब्रह्मा, विष्णु और महेश यह तीन मुख्य देव बताए गए हैं। यह त्रिदेव एक ही माने जाते हैं।
शिवपुराण के अनुसार शिवजी से ही भगवान विष्णु की उत्पत्ति हुई और विष्णु की नाभि से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। तत्पश्चात शिवजी की आज्ञानुसार ब्रह्मा ने इस संपूर्ण सृष्टि का निर्माण किया और विष्णु इस ब्रह्मांड का पालन-पोषण करते हैं। त्रिदेव में महेश अर्थात् रुद्र कलयुग के बाद इस सृष्टि का संहार करेंगे। ऐसा पुराणों में उल्लेखित है। अत: शिवजी ही महाशक्तिशाली हैं, संपूर्ण ब्रह्मांंड इन्हीं के इशारे मात्र से संचालित हैं।

सोमवार को शिवजी का दिन क्यों हैं?
जीवन की हर समस्या का शिवजी की पूजा आसानी से हल हो सकती है। इनकी पूजा के लिए कोई विशेष दिन या मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती। फिर भी कई विद्वानों द्वारा शिव पूजा के लिए सोमवार का दिन श्रेष्ठ माना गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सोमवार चंद्र देव का दिन माना गया है। कुंडली में चंद्र का महत्वपूर्ण स्थान है। चंद्र के आधार पर ही हमारी जन्म राशि का निर्धारण होता है। यदि जन्म कुंडली में चंद्र से संबंधित कोई दोष हो तो सोमवार के दिन शिवजी के पूजन से वह दोष शांत हो जाता है। शिव को शशिधर भी कहा जाता है क्योंकि शिवजी ने चंद्र को अपने मस्तक पर धारण कर रखा है।
शास्त्रों के अनुसार सभी देवी-देवताओं की पूजा के लिए अलग-अलग विशेष दिन निर्धारित किए गए हैं। सोम शब्द का अर्थ होता है चंद्रमा। चंद्रमा को चंचल ग्रह माना गया है, साथ ही यह हमारे मन का नियंत्रक भी है। चंद्र को शिव ने मस्तक पर स्थान दिया है अर्थात् शिव सच्चे मन से उनकी आराधना करने वाले श्रद्धालु को अपने मस्तक पर चंद्र के समान सुशोभित करते हैं। इस बात का मतलब यही है वे भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। भगवान अपने भक्तों के अधिन माने गए हैं।
शिवजी का सोमवार से सीधा संबंध है। सोम शब्द में ऊँ शब्द भी विद्यमान है। ऊँ शिवजी का ही प्रतीक है। सोमवार, चंद्रमा और शिवजी इन तीनों का आपस में गहरा संबंध है। इसी वजह से प्राचीनकाल से ही सोमवार को शिवजी का दिन माना जाता है।

इस रात लड़कियों पर रहता है भूत-प्रेत का डर!
सामान्यत: ऐसी मान्यता है कि रात के समय किसी लड़की को अकेले घर से बाहर नहीं भेजना चाहिए। पुराने समय में इस बात का सख्ती से पालन कराया जाता था। साथ ही अमावस की रात को तो खासतौर पर लड़की को अकेले घर से बाहर निकलना मना किया जाता था।
ऐसा माना जाता है कि अमावस की रात को नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय रहती हैं जो कि लड़कियों को बहुत ही जल्द अपने प्रभाव में ले लेती हैं। यहां नकारात्मक शक्ति से अभिप्राय है कि आसुरी प्रवृत्तियां। अमावस की रात बुरी शक्तियां अपने पूरे बल में होती हैं। इन शक्तियों को लड़कियां पूरी तरह प्रभावित करती हैं। जिससे वे उन्हें अपने प्रभाव में लेने की कोशिश करती हैं। इन शक्तियों के प्रभाव में आने के बाद लड़कियों का मानसिक स्तर व्यवस्थित नहीं रह पाता और उनके पागल होने का खतरा बढ़ जाता है।
विज्ञान के अनुसार अमावस और हमारे शरीर का गहरा संबंध है। अमावस का संबंध चंद्रमा से है। हमारे शरीर में 70 प्रतिशत पानी है जिसे चंद्रमा सीधे-सीधे प्रभावित करता है। ज्योतिष में चंद्र को मन का देवता माना गया है। अमावस के दिन चंद्र दिखाई नहीं ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।
लड़कियां मन से बहुत ही भावुक होती है। जब चंद्र नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर के पानी में हलचल अधिक बढ़ जाती है। जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है। इन्हीं कारणों से अमावस की रात को लड़कियों को अकेले बाहर जाने के लिए मना किया जाता था।
चंद्रमा हमारे शरीर के जल को किस प्रकार प्रभावित करता है इस बात का प्रमाण है समुद्र का ज्वारभाटा। पूर्णिमा और अमावस के दिन ही समुद्र में सबसे अधिक हलचल दिखाई देती है क्योंकि चंद्रमा जल को शत-प्रतिशत प्रभावित करता है।

रविवार को ही छुट्टी क्यों मनाते है?
रविवार, सन डे यानि छुट्टी का दिन... मौज-मस्ती का दिन... आराम का दिन... इस दिन दुनियाभर में कोई भी इंसान काम करना पसंद नहीं करता। रविवार को ही छुट्टी क्यों मनाई जाती है? इसका कोई धार्मिक कारण नहीं है फिर भी रविवार को ही छुट्टी मनाई जाती है।
सप्ताह के सातों दिनों में सन डे सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार रविवार से सप्ताह की शुरुआत मानी जाती है। वहीं इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार रविवार सप्ताह का अंतिम दिन होता है। हिंदी पंचांग के अनुसार रविवार सूर्य का दिन है और इस दिन सूर्य सहित सभी देवी-देवताओं की आराधना का विधान है। हिंदुओं शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि रविवार सप्ताह का प्रथम दिन होता है और इस दिन पूजादि करने से पूरे सप्ताह मन शांत रहता है, सभी कार्य बिना किसी परेशानी के सफल हो जाते हैं। इस दिन सभी लोगों से धार्मिक कार्य आदि करने के उद्देश्य से ही रविवार को अवकाश घोषित किया गया। ताकि व्यक्ति के दिमाग पर कार्य का दबाव न रहे और वह ईश्वर में ध्यान लगा सके।
वहीं इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार सन डे सप्ताह का अंतिम दिन होता है। पूरे सप्ताह के कार्य करने के पश्चात वीकएंड में शरीर और दिमाग को आराम देने के उद्देश्य से रविवार को ऑफ रखा जाता है। ताकि व्यक्ति से काम का प्रेशर हट जाए और फिर से रिफ्रेश होकर नए सप्ताह में नई ऊर्जा के साथ कार्य कर सके। इसी उद्देश्य की वजह से दुनियाभर में रविवार को अवकाश रखा जाता है।

यमुना नदी काली क्यों है?
यमुना या कालिंदी नदी को गंगा की ही तरह पवित्र माना जाता है। यमुना को श्रीकृष्ण की परम भक्त माना जाता है। गंगा को ज्ञान की प्रतीक माना जाता है तो यमुना भक्ति की। कृष्ण की भक्ति में रंगी यमुना नदी का पानी काला दिखाई देता है।
यमुना नदी का उद्गम यमनोत्री से हुआ है। यमनोत्री उत्तरांचल में स्थित है। इस नदी को कालिंदी भी कहा जाता है क्योंकि यह कलिंद नामक पर्वत से निकलती है। गंगा के समानांतर बहते हुए यह नदी प्रयाग में गंगा में मिल जाती है।
प्रयाग में यमुना नदी का काला पानी गंगा में मिलते हुए साफ दिखाई देता है। शास्त्रों के अनुसार यमुना सरस्वती नदी की सहायक नदी रही है। जो बाद में गंगा में मिलने लगी। गंगा ज्ञान की प्रतीक है और यमुना भक्तिरस की धारा है। कृष्ण रंग में रंगी यमुना का जल प्रेम की गहनता लिए श्रीकृष्ण के श्याम वर्ण (काला) के समान ही दिखाई देता है।
शास्त्रों के अनुसार यमुना नदी को यमराज की बहन माना गया है। यमराज और यमुना दोनों का ही स्वरूप काला बताया जाता है जबकि यह दोनों ही परम तेजस्वी सूर्य की संतान है। फिर भी इनका स्वरूप काला है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य की एक पत्नी छाया थी, छाया दिखने में भयंकर काली थी इसी वजह से उनकी संतान यमराज और यमुना भी श्याम वर्ण पैदा हुए। यमुना से यमराज से वरदान ले रखा है कि जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करेगा उसे यमलोक नहीं जाना पड़ेगा। दीपावली के दूसरे दिन यम द्वितीया को यमुना और यमराज के मिलन बताया गया है। इसी वह से इस दिन भाई-बहन के लिए भाई दूज के रूप में मनाया जाता है।
यमुना श्रीकृष्ण की भक्ति में पूरी तरह लीन है। इस वजह से भी इसके पानी का रंग काला माना जाता है।
धार्मिक महत्व के अतिरिक्त प्राकृतिक कारण यह है कि यमुना जिन स्थानों से बहकर निकलती है वहां की मिट्टी और वातावरण यमुना के जल को श्याम वर्ण प्रदान करते है।

शनिवार को घर में लौहा न लेकर आए, क्योंकि...
शनिवार शनिदेव का दिन है। इस दिन किए जाने वाले कार्य के संबंध में विशेष रूप से कई नियम बनाए गए हैं। क्योंकि शनि को न्यायधिश माना गया है। यह काफी कठोर ग्रह है। इसकी क्रूरता से सभी भलीभांति परिचित हैं। इसी वजह से सभी का प्रयत्न रहता है कि शनि देव किसी भी प्रकार से रुष्ट ना हो।
शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है और यह किसी भी दशा में गलत कार्य करने वालों को मॉफ नहीं करता। जिसका जैसा कार्य होगा उसे शनि वैसा ही फल प्रदान करता है।
बुजूर्गों और विद्वानों द्वारा शनि के कोप से बचने के लिए ऐसे कई कार्य मना किए गए हैं जो शनिवार के दिन हमें नहीं करने चाहिए। इन्हीं कार्यों में से एक कार्य यह वर्जित है कि शनिवार को घर में नया लौहा लेकर नहीं आना चाहिए।
इस बात विशेष ध्यान रखना चाहिए कि शनिवार को किसी प्रकार की लौहे की कोई नई वस्तु घर में न लेकर आए। लौहे की वस्तु या जिसके निर्माण में लौहे का उपयोग होता है जैसे: बिल्डिंग मटेरियल में उपयोग होने वाला सरिया, मोटर बाइक, कार, कम्प्यूटर आदि वस्तुएं जिनमें लौहे का प्रयोग होता है। वे सभी शनिवार को घर नहीं लेकर आना चाहिए। लौहा शनि की धातु है और शनिवार को लौहा लेकर आने से हमारे घर पर शनि का प्रभाव बढ़ता है।
यदि घर के किसी सदस्य पर शनि की अशुभ दृष्टि हो तो उसके लिए यह बुरा फल देने वाला सिद्ध होगा। ऐसे उस सदस्य को कई प्रकार की असफलताएं तथा मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। इसी वजह से शनिवार को घर में लौहा के कोई भी नई वस्तु लेकर आना शुभ नहीं माना जाता।

महाभारत के गंगापुत्र को भीष्म क्यों कहते हैं?
महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है जिससे अधिकांश लोग भलीभांति परिचित हैं। इस ग्रंथ का एक-एक पात्र महान व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इन्हीं पात्रों में से एक पात्र है पितामह भीष्म। भीष्म महाभारत के सबसे अहम किरदार हैं।
भीष्म पितामह गंगा और शांतनु के पुत्र थे। इन्हें देवव्रत के नाम से जाना जाता था किंतु समय के साथ इनका नाम भीष्म पड़ गया। गंगापुत्र का नाम भीष्म क्यों पड़ा इसके पीछे एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसकी वजह से धर्म और अधर्म का भीषण महाभारत युद्ध हुआ।
घटना यह है कि भीष्म के जन्म के बाद देवी गंगा अपने पति शांतनु को छोड़कर चली गई, इसके कुछ वर्षों के बाद राजा शांतनु को सत्यवती नाम की कन्या से प्रेम हो गया। सत्यवती एक नाविक की कन्या थी। जब राजा शांतनु सत्यवती से विवाह के लिए उनके पिता के पास पहुंचे। इस विवाह प्रस्ताव से सत्यवती और उनके पिता निषाद राज अति प्रसन्न हुए। सत्यवती के पिता को जब यह मालुम हुआ कि राजा शांतनु का उत्तराधिकारी देवव्रत (भीष्म) है तब उन्होंने इस विवाह से इंकार कर दिया। जब यह बात देवव्रत को मालूम हुई तो पिता की खुशी के लिए उन्होंने सत्यवती के पिता के सामने प्रतिज्ञा कर ली कि वे सत्यवती की संतान को ही पिता शांतनु का उत्तराधिकारी नियुक्त करेंगे और स्वयं आजीवन अविवाहित रहकर उनकी सेवा करेंगे। इस प्रतिज्ञा को बहुत भीषण माना गया तभी से उनका नाम भीष्म पड़ गया।

हनुमान चालीसा का पाठ क्यों करते हैं?
कलयुग में हनुमानजी की भक्ति सबसे सरल और जल्द ही फल प्रदान करने वाली मानी गई है। श्रीराम के अनन्य भक्त श्री हनुमान अपने भक्तों और धर्म के मार्ग पर चलने वाले लोगों की हर कदम मदद करते हैं। सीता माता के दिए वरदान के प्रभाव से वे अमर हैं और किसी ना किसी रूप में अपने भक्तों के साथ रहते हैं।
हनुमानजी को मनाने के लिए सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। हनुमानजी की यह स्तुति का सबसे सरल और सुरीली है। इसके पाठ से भक्त को असीम आनंद की प्राप्ति होती है। तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा बहुत प्रभावकारी है। इसकी सभी चौपाइयां मंत्र ही हैं। जिनके निरंतर जप से ये सिद्ध हो जाती है और पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो जाती है।
यदि आप मानसिक अशांति झेल रहे हैं, कार्य की अधिकता से मन अस्थिर बना हुआ है, घर-परिवार की कोई समस्यां सता रही है तो ऐसे में सभी ज्ञानी विद्वानों द्वारा हनुमान चालीसा के पाठ की सलाह दी जाती है। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है, इसमें को शंका या संदेह नहीं है। यह बात लोगों ने साक्षात् अनुभव की होगी की हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति और कई समस्याओं के हल स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं किया गया है। भक्त कभी भी शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है।

सरस्वती का वाहन हंस क्यों?
अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कार के लिए मां सरस्वती की आराधना आवश्यक मानी गई है। इसके लिए विद्या की देवी सरस्वती की पूजा करते समय सभी ने देखा होगा कि मां हंस पर विराजित हैं। देवी के सभी चित्रों और प्रतिमाओं में उन्हें हंस पर आसीन भी दिखाया गया है। इसी वजह से इन्हें हंसवाहिनी भी कहा जाता है परंतु देवी सरस्वती हंस पर ही क्यों विराजित हैं?
मां सरस्वती का वाहन हंस है, इसके कई संदेश बताए गए हैं। शास्त्रों के अनुसार देवी सरस्वती विद्या की देवी हैं और उनका स्वरूप श्वेत वर्ण बताया गया है। उनका वाहन भी श्वेत हंस ही है। सफेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है। यह श्वेत वर्ण शिक्षा देता है कि अच्छी विद्या और संस्कार के लिए आवश्यक है कि आपका मन शांत और पवित्र हो। आज के समय में सभी को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करना होती है, मेहनत के साथ ही माता सरस्वती की कृपा भी उतनी आवश्यक है। यदि आपका मन शांत और पवित्र नहीं होगा तो देवी की कृपा प्राप्त नहीं और पढ़ाई में सफलता प्राप्त नहीं होगी।
देवी का वाहन हंस यही संदेश देता है कि मां सरस्वती की कृपा उसे ही प्राप्त होती है जो हंस के समान विवेक धारण करने वाला है। केवल हंस में ही वह विवेक होता है कि वह दूध और पानी को अलग-अलग कर सकता है। सभी जानते हैं कि हंस दूध ग्रहण और पानी छोड़ देता है। इसी तरह हमें भी बुरी सोच को छोड़कर अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए। साथ हंस का श्वेत रंग यह बताता है कि विद्या ग्रहण करने के लिए मन शांत और पवित्र रहे। इससे हमारा मन एकाग्र होता है, पढ़ाई में मन लगता है। आज अच्छे जीवन के लिए शिक्षा अति आवश्यक है और अच्छी के लिए हमें हंस की तरह विवेक रखने की जरूरत है।

घर में फूलों का गुलदस्ता क्यों रखते हैं?
फूल अपनी कोमलता और महक की वजह से सभी का दिल लुभा लेते हैं। फूलों की खुश्बू से वातावरण पवित्र होता है और इसी वजह से सामान्यत: सभी घरों में फूलों के गुलदस्ते रखे जाते हैं।
घरों में फूल रखने के पीछे कई कारण हैं। ऐसा माना जाता है फूलों की महक देवी-देवताओं को आकर्षित करती है। पूजा आदि कर्म में फूल की महत्ता से सभी भलीभांति परिचित है। पुष्प के बिना कोई पूजनादि कार्य पूर्ण नहीं माना जा सकता। जिस घर में फूल रखे जाते हैं वहां सकारात्मक शक्तियों का संचार होता है, पुष्प के संपर्क में आने वाली सभी चीजों पर इसका दैवीय प्रभाव पड़ता है। बुरी शक्तियां फूलों की खुश्बू की वजह से घर से दूर ही रहती हैं। दैवीय कृपा प्राप्त होने के बाद हमारी सभी मनोकामनाएं भी स्वत: ही पूर्ण होने लगती है और सफलताएं होती है।
फूलों की पवित्रता और सुगंध की घर का वातावरण खुशनुमा और ताजगीभरा बनाती है। हमारे घर का वातावरण जैसा होगा वैसा ही हमारा स्वभाव भी बनता है। घर का माहौल हमेशा महकता रहता है उसी तरह हम भी सदैव प्रसन्नचित और दूसरों को खुशी देने वाले बने रहते हैं।
फूल हमें जीवन का महत्वपूर्ण संदेश देते हैं। जिस प्रकार फूल अपने सुगंध रूपी स्वभाव और कोमलता से सभी का मन प्रसन्न रखते हैं ठीक उसी तरह हम भी अपने स्वभाव से सभी का मन मोह लें। फूलों की उम्र काफी कम होती है फिर भी वे मुरझाने तक आसपास का वातावरण महकाते रहते हैं।

घर में जूते-चप्पल क्यों न पहनें?
आधुनिकता के दौर में कई परिवारों में घर के अंदर भी जूते-चप्पल पहनने का चलन बढ़ गया है। इसे स्टेटस सिंबोल माना जाता है। जबकि प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों और विद्वानों द्वारा घर में चरण पादुकाएं अर्थात् जूते-चप्पल नहीं पहनने की बात कही गई है।
घर में जूते-चप्पल नहीं पहनना चाहिए इसकी वजह यह है कि जब हम कहीं बाहर से घर आते हैं तब जूते-चप्पल के साथ गंदगी में आती है। ऐसे में यदि हम वही जूते-चप्पल घर में लेकर जाते हैं तो वह गंदगी घर में फैलती है। जो कि परिवार के सदस्यों के लिए भी स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होती है। इस गंदगी में कई प्रकार के बीमारियां फैलाने वाले कीटाणु रहते हैं। इस वजह से भी घर में जूते-चप्पल पहनना उचित नहीं है।
साथ ही इस बात के पीछे धार्मिक कारण भी है। घर में ही देवी-देवताओं का स्थान भी होता है। जहां हम रहते हैं वहां सभी दैवीय शक्तियां भी निवास करती हैं। ऐसे में यदि हम जूते-चप्पल पहनकर घर में घुमते हैं तो भगवान का भी अपमान होता है। वैसे तो आजकल सभी अपने-अपने घरों में परमात्मा के लिए अलग कक्ष बनवाते हैं फिर भी घर में कई स्थानों पर भगवान से संबंधित वस्तुएं रखी रहती है जो कि ईश्वर का ही प्रतिनिधित्व करती हैं। उनके सामने चरण पादुका यानि जूते-चप्पल पहनकर जाना निश्चित ही अनुचित है। घर में नंगे पैर ही रहना चाहिए इससे घर की पवित्रता बनी रहती है और ऐसे परिवार में देवी-देवता भी स्थाई रूप से निवास करते हैं। भगवान की कृपा से उस घर में किसी भी प्रकार धन, सुख-समृद्धि की कोई कमी नहीं रहती। इन कारणों से घर में जूते-चप्पल नहीं पहनना चाहिए।

लड़कियां पायल क्यों पहनती हैं?
छम... छम... छम... पायल की ऐसी आवाज किसी के भी मन बरबस ही लुभा लेती है। जब कोई लड़की पायल पहनकर चलती है तो उससे निकलने वाला मधुर स्वर किसी संगीत से कम प्रतीत नहीं होता। सामान्यत: सभी लड़कियां पायल पहनती हैं। विवाहित महिलाओं के लिए तो यह आवश्यक होता है कि वे पायल पहनें।
महिलाओं के लिए पायल पहनना काफी महत्वपूर्ण माना गया है। इसके पीछे कई कारण मौजूद हैं।
पायल महिलाओं के सोलह श्रंगार में अहम भूमिका निभाती है। पायल पहनने के पीछे यह वजह है कि प्राचीन काल में महिलाओं को पायल एक संकेत मात्र के लिए पहनाई जाती थी। जब घर के सभी सदस्य एक साथ बैठे होते थे तब यदि कोई पायल पहनी स्त्री वहां आती थी तो उसकी छम-छम आवाज से सभी को अंदाजा हो जाता कि कोई महिला उनकी ओर आ रही है। जिससे वे सभी व्यवस्थित रूप से आने वाली महिला का स्वागत कर सके, उसे सम्मान दे सके।
पायल की छम-छम अन्य लोगों के लिए एक इशारा ही है, इसकी आवाज से सभी को यह एहसास हो जाता है कि कोई महिला उनके आसपास है अत: वे शालीन और सभ्य व्यवहार करें। स्त्री के सामने किसी तरह की कोई अभद्रता ना हो जाए। ऐसी सारी बातों को ध्यान में रखते हुए लड़कियों के पायल पहनने की परंपरा लागू की गई। साथ ही पायल की आवाज से घर में नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव कम हो जाता है और दैवीय शक्तियों सक्रीय रहती है।
पुराने समय में विवाह के बाद पति के घर में बहु के आने के लिए पूरी स्वतंत्रता नहीं रहती थी। साथ ही वह किसी से खुलकर बात नहीं कर पाती थी। ऐसे में जब वह घर में कही आती-जाती तो बिना उसके बताए भी पायल की छम-छम से सभी सदस्य समझ जाते थे कि उनकी बहु वहां आ रही है।
पायल की धातु हमेश पैरों से रगड़ाती रहती है जो स्त्रियों की हड्डियों के लिए काफी फायदेमंद है। इससे उनके पैरों की हड्डी को मजबूती मिलती है। साथ ही पायल पहनने से स्त्रियों का आकर्षण कहीं अधिक बढ़ जाता है।

दूल्हा-दुल्हन को पान क्यों खिलाते हैं?
विवाह में कई परंपराओं का निर्वहन किया जाता है। कुछ परंपराएं धर्म से जुड़ी हैं तो कुछ प्रथाएं धर्म और विज्ञान से। सामान्यत: दूल्हा-दुल्हन को विवाह के दिनों पान खिलाने की परंपरा प्रचलित है।यूं तो पान को मुख का आभूषण माना जाता है और काफी लोगों का शौक होता है पान खाना। सभी मांगलिक कार्यों में भोजन के बाद पान खिलाया जाता है। पान भगवान को भी अर्पित किया जाता है। पूजन आदि में पान भगवान के मुख शुद्धि कराने के लिए मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है।
पान एक औषधि भी है, इसे नियमित रूप से खाने पेट संबंधी कई बीमारियां आपसे दूर ही रहती है। इससे अपच, कब्ज, एसीडीटी जैसी समस्या नहीं होती।विवाह के दौरान दूल्हा और दुल्हन को कई तरह के व्यंजन खाने पड़ते हैं, कई बार कुछ भोज्य पदार्थ कब्ज या गैस की तकलीफ देना शुरू कर देता है, ऐसे में नियमित रूप से पान खाने से ऐसी कोई समस्या नहीं और नवयुगल का पेट ठीक रहता है और पान खाने से मुख की सुंदरता भी बढ़ती है। पान बनाने में उपयोग की जाने वाली सामग्री पेट को साफ रखने में अहम भूमिका निभाती है।इसी वजह से विवाह में दूल्हा-दुल्हन को अनिवार्य रूप से पान खिलाया जाता है।
तिरूपति बालाजी पर इतना धन क्यों चढ़ाते हैं?
आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में धन और वैभव के भगवान श्री तिरूपति बालाजी मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है यहां साक्षात् भगवान व्यंकटेश विराजमान हैं। यहां बालाजी की करीब 7 फीट ऊंची श्यामवर्ण की प्रतिमा स्थापित है।
तिरूपति बालाजी एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान को सबसे अधिक धन, सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात अर्पित किए जाते हैं। यहां दान करने की कोई सीमा नहीं है। भक्त यहां नि:स्वार्थ भाव से अपनी श्रद्धा के अनुसार धन अर्पित करते हैं। यह धन चढ़ाने के संबंध में एक कथा बहुप्रचलित है।
कथा के अनुसार एक बार सभी ऋषियों में यह बहस शुरू हुई कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे बड़ा देवता कौन हैं? त्रिदेव की परिक्षा के लिए ऋषि भृगु को नियुक्त किया गया। इस कार्य के लिए भृगु ऋषि भी तैयार हो गए। ऋषि सबसे पहले ब्रह्मा के समक्ष पहुंचे और उन्होंने परमपिता को प्रणाम तक नहीं करा, इस पर ब्रह्माजी भृगु ऋषि पर क्रोधित हो गए।
अब ऋषि शिवजी की परिक्षा लेने पहुंचे। कैलाश पहुंचकर भृगु बिना महादेव की आज्ञा के उनके सामने उपस्थित हो गए और शिव-पार्वती का अनादर कर दिया। इससे शिवजी अतिक्रोधित हो गए और भृगु ऋषि का अपमान कर दिया।
अंत में ऋषि भुगु भगवान विष्णु के सामने क्रोधित अवस्था में पहुंचे और श्रीहरि की छाती पर लात मार दी। इस भगवान विष्णु ने विनम्रता से पूर्वक पूछा कि मेरी छाती व्रज की तरह कठोर है अत: आपके पैर को चोट तो नहीं लगी? यह सुनकर भृगु ऋषि समझ गए कि श्रीहरि ही सबसे बड़े देवता यही है।
यह सब माता लक्ष्मी देख रही थीं और वे अपने पति का अपमान सहन नहीं कर सकी और विष्णु को छोड़कर दूर चले गईं और तपस्या में बैठ गई। लंबे समय के बाद देवी लक्ष्मी ने शरीर त्याग दिया और पुन: एक दरिद्र ब्राह्मण के यहां जन्म लिया। जब विष्णु को यह ज्ञात हुआ तो वे माता लक्ष्मी से विवाह करने पहुंचे परंतु देवी लक्ष्मी के गरीब पिता ने विवाह के लिए विष्णु से काफी धन मांगा। लक्ष्मी के जाने के बाद विष्णु के पास इतना धन नहीं था। तब देवी लक्ष्मी से विवाह के लिए उन्होंने देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेरदेव से धन उधार लिया। इस उधार लिए धन की वजह से विष्णु-लक्ष्मी का पुन: विवाह हो सका। कुबेर देव धन चुकाने के संबंध में यह शर्त रख दी कि जब तक मेरा कर्ज नहीं उतर जाता आप माता लक्ष्मी के साथ केरल में रहेंगे। बस तभी से तिरूपति अर्थात् भगवान विष्णु वहां विराजित हैं।
कुबेर से लिए गए उधार धन को उतारने के लिए भगवान के भक्तों द्वारा तिरूपति में धन चढ़ाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह कुबेर देव को प्राप्त होता है और भगवान विष्णु का कर्ज कम होता है।

रोज जरूरी है तेल मालिश भी...
अधिकांश लोगों की दैनिक दिनचर्या में नहाने से पहले या नहाने के बाद शरीर पर तेल मालिश भी शामिल है। प्रतिदिन तेल मालिश से लंबे समय तक हमारी त्वचा पर चमक बनी रहती है, बुढ़ापा दूर रहता है। शास्त्रों में भी हर दिन तेल मालिश करने की बात कही गई है। ग्रंथों में कई प्रसंग आते हैं जहां राजा-महाराजा तेल मालिश करवाते बताए गए हैं।
प्रतिदिन तेल मालिश एक ऐसा अचूक उपाय है जिससे त्वचा कांतिमय और सुंदर बनी रहती है। साथ ही त्वचा संबंधी बीमारियां से भी बचाव होता है। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक व्यक्ति की दिनचर्या इस तरह निर्धारित की गई है कि उनसे हमारा तन और मन दोनों प्रसन्न होते हैं जिनके बल पर धन भी खूब अर्जित कर सकते हैं। तेल से मालिश की दिनचर्या के पीछे भी यही दृष्टिïकोण है। ऐसा कहते है कि इससे हम युवा बने रहते हैं। शास्त्रों के अनुसार अगर इस दिनचर्या का पालन नियमित रूप से किया जाए तो बुढ़ापा समय से पहले नहीं आता और यह मनुष्य शरीर को निरोग रखने की एक वैज्ञानिक क्रिया है।
प्रतिदिन तेल मालिश करना चाहिए। इससे बुढ़ापा, थकान और वायुरोगों नहीं होते। आंखों की ज्योति तेज होती है और नींद भी अच्छी आती है। त्वचा भी सुन्दर होने से शरीर का सौन्दर्य खिरता है।
यह वैज्ञानिक क्रिया है...
विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर पर असंख्य छिद्र होते हैं। हमारी त्वचा जालीदार होती है। यह छिद्र शरीर से प्रदूषित वायु गैस के रूप में बाहर निकालते हैं। प्रतिदिन सफाई के अभाव में यह छिद्र बंद हो जाते हैं। यदि यह छिद्र बंद हो जाए तो हम कई बीमारियों की पकड़ में आ सकते हैं। इससे बचने के लिए हमें प्रतिदिन नहाना चाहिए और शरीर पर तेल मालिश करनी चाहिए। जिससे से छिद्र हमेशा खुले रहे सके। तेल मालिश से हमारे शरीर का रक्त संचार भी व्यवस्थित चलता रहता है।

हनुमानजी को सिंदूर का चोला क्यों चढ़ाते हैं?
श्रीराम के परमभक्त हनुमानजी आज सभी श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र हैं। हनुमानजी को माता सीता द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त है। ऐसा कहा जाता है कि जहां भी सुंदरकांड का पाठ विधि-विधान से किया जाता है वहां श्री हनुमान अवश्य पधारते हैं। वे जल्द ही अपने भक्तों की सभी परेशानियों का हरण कर लेते हैं। जब भक्त की परेशानियों दूर हो जाती है तब कई श्रद्धालु हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़वाते हैं।
हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़ाने की परंपरा काफी प्राचीन समय से चली आ रही है। इस प्रथा के पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि पवन पुत्र को सिंदूर अर्पित करने से वे अति प्रसन्न होते हैं। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है कि एक दिन हनुमानजी ने माता सीता को मांग में सिंदूर लगाते देखा। हनुमानजी ने माता सीता से पूछा कि वे मांग में सिंदूर क्यों लगाती हैं? इस पर देवी जानकी ने बताया कि इससे मेरे स्वामी श्रीराम की उम्र और सौभाग्य बढ़ता है। यह सुनकर हनुमानजी ने सोचा कि यदि इतने सिंदूर से श्रीराम की उम्र और सौभाग्य बढ़ता है ता मैं पूरे शरीर पर सिंदूर लगाऊंगा तो श्रीराम हमेशा के अमर हो जाएंगे और इनकी कृपा सदैव मुझ पर बनी रहेगी। इस विचार के बाद हनुमानजी अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगाने लगे।
हनुमानजी की प्रतिमा को सिंदूर का चोला चढ़ाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। हनुमानजी को सिंदूर लगाने से प्रतिमा का संरक्षण होता है। इससे प्रतिमा किसी प्रकार से खंडित नहीं होती और लंबे समय तक सुरक्षित रहती है। साथ ही चोला चढ़ाने से प्रतिमा की सुंदरता बढ़ती है, हनुमानजी का प्रतिबिंब साफ-साफ दिखाई देता है। जिससे भक्तों की आस्था और अधिक बढ़ती है तथा हनुमानजी का ध्यान लगाने में किसी भी श्रद्धालु को परेशानी नहीं होती।

बस यही बात हमें कमजोर बनाती है....
हम जितने अधीर होंगे उतने ही दीन होते जाएंगे। धैर्य की परीक्षा विपरीत समय पर होती है। अधीरता हमारी शक्ति को खा जाती है। यही शक्ति बल्कि इससे आधी ताकत भी हम समस्या को निपटाने में लगा दें तो परिणाम ज्यादा अच्छे मिल जाएंगे।

आदमी सर्वाधिक परेशान तीन तरह की स्थितियों से होता है। मृत्यु, वृद्धावस्था और विपत्ति। फकीरों ने कहा है इन सबको आना ही है, कोई नहीं बचेगा, लेकिन जो ज्ञानी होगा वो इन्हें ज्ञान के सहारे काट देगा और अज्ञानी ऐसे हालात में रोएगा, परेशान रहेगा। यहां ज्ञान का मतलब है कि हमें यह समझ होना चाहिए कि पूर्वजन्म के भोग तो भोगना ही पड़ते हैं। यह शरीर जाति, आयु और भोग के परिणाम पाता ही है। जिन्हें जीवन में धैर्य उतारना हो वे सबसे पहले समय के प्रति जागरुक हो जाएं। जब भी बुरा समय आए महसूस करें कि सुख में समय छोटा और दु:ख में बड़ा लगता है, जबकि समय होता उतना ही है। अध्यात्म ने एक नई स्थिति दी है। न दु:ख, न सुख इन दोनों से पार जाने की कोशिश करें। इसे महासुख कहा गया है। इस स्थिति में समय विलीन ही हो जाता है। यानी थोड़ा ध्यान में उतर जाएं।

जितना ध्यान में उतरेंगे उतना ही धैर्य के निकट जाएंगे। धैर्य यानी थोड़ा रूक जाना। हालात हिला रहे होंगे और धैर्य आपको थोड़ा स्थिर करेगा। फिर स्थितियों में समस्या स्पष्ट दिखने लगती है। उसके समाधान के उत्तर स्वयं से ही प्राप्त होने लगेंगे। जिनका अहंकार प्रबल है उन्हें धैर्य रखने में दिक्कत भी आएगी। ध्यान, अहंकार को गलाता है। अहंकार का एक स्वभाव यह भी होता है कि वह अपने ही सवाल उछालता रहता है। इस कारण सही उत्तर सामने होते हुए भी हम उन्हें पा नहीं पाते। इसलिए जब भी हालात विपरीत हो जीवन में धैर्य साधें और धैर्य पाने के लिए उस समय ध्यान में उतरने का अभ्यास बनाए रखें।

भगवान की परिक्रमा क्यों करते हैं?
भगवान की पूजा-आराधना के बाद हम उनकी परिक्रमा करते हैं। सामान्यत: यह बात सभी जानते हैं कि आरती आदि के होने के बाद देवी-देवताओं की परिक्रमा करनी है परंतु यह क्यों की जाती है और इसकी क्या वजह है?
इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप नष्ट होते है। सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं।
आरती के बाद मंदिर के क्षेत्र में काफी सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है जो वहां मौजूद श्रद्धालुओं पर चमत्कारिक प्रभाव डालती है। सभी का मन शांत और चिंताओं से मुक्त जो जाता है। सभी को ईश्वर के होने का अहसास होता है और उनकी भक्ति में ध्यान लग जाता है।
मंदिर के केंद्र में भगवान की प्रतिमा स्थित होती है अत: सकारात्मक ऊर्जा अथवा दैवीय शक्ति उसी प्रतिमा के आसपास सबसे अधिक एकत्र होती है। आरती के बाद उस शक्ति को ग्रहण करने के लिए परिक्रमा की परंपरा बनाई गई है। जिससे भक्तों की सोच भी सकारात्मक बने और बुरे विचारों से वह मुक्त हो जाए। प्रतिमा की परिक्रमा करने से हमारे मन को अचानक ही शांति मिलती है और उन क्षणों में हमारे मन को भटकाने वाली सोच समाप्त हो जाती है, भगवान में मन लगता है।

किस भगवान की कितनी परिक्रमा करें?
भगवान की भक्ति में एक महत्वपूण क्रिया है प्रतिमा की परिक्रमा। वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार आरती और पूजा-अर्चना आदि के बाद भगवान की मूर्ति के आसपास सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित हो जाती है, इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए परिक्रमा की जाती है। पं. शर्मा के अनुसार सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा की अलग-अलग संख्या है।
किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा:
- शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है।
- देवी मां की तीन परिक्रमा की जानी चाहिए।
- भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए।
- श्रीगणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है।
परिक्रमा के संबंध में नियम:
पं. शर्मा के अनुसार परिक्रमा शुरु करने के पश्चात बीच में रुकना नहीं चाहिए। साथ परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरु की गई थी। ध्यान रखें कि परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती। परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत कतई ना करें। जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करें। इस प्रकार परिक्रमा करने से पूर्ण लाभ की प्राप्ती होती है।

बुराईयों से बचाए गणेश गायत्री मंत्र
धार्मिक नजरिए से हर इंसान बोल या व्यवहार से किसी न किसी रूप में दोष या पाप का भागी बनता है। व्यावहारिक रूप से भी देखें तो रोजमर्रा की जि़दगी में परिवार, समाज या कार्यक्षेत्र में उठते-बैठते न चाहकर भी हम स्वभाव, विचार के न मिलने या स्वार्थ के चलते एक-दूसरों के हित प्रभावित करते हैं। इसके कारण अनचाहे ही एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या, द्वेष और बुराई का भाव पैदा होता है।
ऐसी भावनाओं से जहां व्यावहारिक जीवन बाधित होता है। वहीं धार्मिक नजरिए से दूसरों को दु:खी करने से व्यक्ति को अदृश्य दोष लगता है। जिसके बुरे फल किसी न किसी रूप में मिलते हैं।
हिन्दू धर्म में भगवान गणेश विघ्र विनाशक देवता माने जाते हैं। जिनकी उपासना से बुद्धि और विवेक के संतुलन से ऐसे ही अवांछित दु:खों से रक्षा और छुटकारा मिलता है। शास्त्रों में बुधवार का दिन भगवान गणेश की उपासना के लिए नियत है। वहीं अनचाही विघ्र, बाधाओं को दूर रखने के लिए गणेश गायत्री मंत्र का जप बहुत ही शुभ और प्रभावकारी माना गया है। यह गणेश गायत्री मंत्र है -
एकदंताय विद्महे।
वक्रतुंडाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात्।
बुधवार, चतुर्थी तिथि या संभव हो तो हर रोज भगवान श्री गणेश की कम से कम गंध, अक्षत, फूल, दुर्वा, सिंदूर अर्पित कर मोदक को भोग लगाएं और धूप, दीप से पूजा करें। इस पूजा के बाद इस गणेश गायत्री मंत्र की यथासंभव एक माला यानि १०८ बार जप न केवल अनचाहे कष्टों, संकट, विपत्ति, आपदाओं से रक्षा करता है, बल्कि शत्रु बाधा, भय और रोग से भी बचाव करता है।

बेखौफ बना दे यह हनुमान मंत्र
हिन्दू धर्म में संकट और भय के वक्त रुद्र अवतार श्री हनुमान का ध्यान व स्मरण जरूर किया जाता है। क्योंकि श्री हनुमान संकटमोचक और बल देने वाले देवता माने जाते हैं। श्री हनुमान चरित्र कर्म के प्रति समर्पण और कर्तव्य परायणता का संदेश देता है। व्यावहारिक जीवन में भी यही गुण और भाव स्वाभाविक रूप से ताकत बन संकट से हमेशा रक्षा करता है। श्री हनुमान भक्ति हर मुश्किल और कठिन हालात से बचाकर बाहर निकाल देती है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रची गई श्री हनुमान चालीसा में भी चौपाई है -
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
इस चौपाई का सरल शब्दों में यही सार है कि जब भी कोई परेशानी, कष्ट, अभाव हो श्री हनुमान के स्मरण से सभी भय, बाधा, चिंता, क्षोभ नष्ट हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं में श्री हनुमान शिव अवतार हैं। इसलिए शिव की तरह थोड़ी सी भक्ति से ही शीघ्र और आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं।
ऐसे ही कल्याणकारी देवता श्री हनुमान की उपासना के लिए शास्त्रों में मंगलवार महत्व बताया गया है। किंतु हनुमान साधना के लिए बताए गए अनेक स्तुति, चालीसा या मंत्रों में से एक मंत्र भय, परेशानियों और दु:खों को काटने वाला बताया गया है। यह सरल किंतु दिव्य मंत्र है हनुमान गायत्री मंत्र –
ऊँ आञ्जनेयाय विद्महे,
वायुपुत्राय धीमहि।
तन्नो हनुमत् प्रचोदयात्।
मंगलवार, शनिवार या हर रोज सुबह स्नान कर लाल वस्त्र पहनकर श्री हनुमान की मूर्ति या तस्वीर की पूजा करें। खासतौर पर श्री हनुमान को कुमकूम, अक्षत, लाल फूल के अलावा विशेष रूप से सिंदूर अर्पित करें। जिसके बाद इस हनुमान गायत्री मंत्र का पूरी श्रद्धा और भक्ति से करें। भोग में श्री हनुमान को गुड़, चने या गेहूं के आटे और घी से बना चूरमा चढ़ाएं। पूजा संभव न हो तो इस मंत्र का मानसिक स्मरण भी विपत्तियों को टालने में बहुत ही असरदार माना जाता है।

मंगलवार को हनुमानजी की विशेष पूजा क्यों?
आज हनुमानजी सभी की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं। सभी श्रद्धालु हनुमानजी की पूजा करना काफी पसंद हैं। इनकी पूजा करना जितनी सहज है उतना ही सुखद अहसास और जीवन में सफलता देने वाली होती है। वैसे तो इनकी पूजा किसी भी वार या समय पर की जा सकती है लेकिन ऐसा माना जाता है कि मंगलवार को की गई हनुमानजी पूजा विशेष फल देने वाली है। कुछ भक्त प्रतिदिन हनुमान चालिसा, सुंदरकांड का पाठ करते हैं लेकिन मंगलवार के दिन अधिकांश श्रद्धालु हनुमान चालिसा और सुंदरकांड का पाठ करते हैं।
मंगलवार को हनुमानजी की विशेष पूजा क्यों की जाती है? धर्म शास्त्रों में इस संबंध में बताया गया है कि मंगलवार पवन पुत्र के जन्म का वार है। मंगलवार को हनुमानजी का जन्म माना गया है। हनुमानजी को माता सीता ने अमरता का वरदान दिया है अत: वे हर युग में भगवान श्रीराम के भक्तों की रक्षा करते हैं। कलयुग में हनुमानजी की आराधना तुरंत ही शुभ फल देने वाली है। वे जल्द ही श्रद्धालु की भक्ति से प्रसन्न हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। मंगलवार भी हमारे जीवन में मंगल करने वाला गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार मंगलदेव का भी दिन माना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल अशुभ फल देने वाला हो वे इस दिन मंगल ग्रह की भी पूजा करते हैं। इस दिन हनुमानजी की पूजा से मंगल ग्रह के कुप्रभाव भी कम होते हैं।

कालभैरव से सीखें जीवन प्रबंधन

शिव के अवतार श्री कालभैरव अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही इनकी आराधना करने पर हमारे कई बुरे गुण स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं।
आदर्श और उच्च जीवन व्यतीत करने के लिए कालभैरव से भी शिक्षा ली जा सकती हैं। जीवन प्रबंधन से जुड़े कई संदेश श्री भैरव देते हैं-
भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप माना गया है। भगवान शंकर के इस अवतार से हमें अवगुणों को त्यागना सीखना चाहिए। भैरव के बारे में प्रचलित है कि ये अति क्रोधी, तामसिक गुणों वाले तथा मदिरा के सेवन करने वाले हैं। इस अवतार का मूल उद्देश्य है कि मनुष्य अपने सारे अवगुण जैसे- मदिरापान, तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव आदि भैरव को समर्पित कर पूर्णत: धर्ममय आचरण करें। भैरव अवतार हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हर कार्य सोच-विचार कर करना ही ठीक रहता है। बिना विचारे कार्य करने से पद व प्रतिष्ठा धूमिल होती है।
कालभैरव ने ब्रह्मा का पांचवा सिर काटा
धर्म शास्त्रों के अनुसार भैरव ने ब्रह्मा का पांचवा सिर काटा था। जहां वह सिर गिरा वह स्थान काशी में कपाल मोचन तीर्थ के नाम से विख्यात है। जो प्राणी इस तीर्थ का स्मरण करता है, उसके इस जन्म एवं पर जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं।
यहां आकर सविधि स्नानपूर्वक पितरों एवं देवताओं का तर्पण करके मानव ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। कपाल मोचन तीर्थ के समीप ही भक्तों के सुखदायक भगवान भैरव स्थित हैं। सज्जनों के प्रिय भैरव का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष की कृष्णाष्टमी को हुआ था। उसी दिन को उपवासपूर्वक जो प्राणी कालभैरव के समीप जागरण करता है, वह संपूर्ण महापापों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है। यदि कोई व्यक्ति भगवान विश्वेश्वर का भक्त होते हुए भी कालभैरव का भक्त नहीं है, तो उसे बड़े-बड़े दु:ख भोगने पड़ते हैं। यह बात काशी में विशेष रूप से चरितार्थ होती है। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।

शुभारंभ से पहले देखें, शनिवार तो नहीं...
किसी भी शुभ, मांगलिक या नए कार्य की शुरूआत से पहले यह अवश्य देखा जाता है कि कहीं उक्त दिन शनिवार तो नहीं है। शनिवार के लिए नए कार्यों का शुभारंभ नहीं किया जाता। ऐसा माना जाता है कि इस से शुरूआत करने पर कार्य बड़ी मुश्किल से पूरा होता है।

कौन है शनि?
शनिवार, शनिदेव का मुख्य दिवस माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह क्रूर दृष्टि वाला है और यह अधिकांश लोगों के लिए बुरे फल देने वाला ही है। शनि सूर्यपुत्र हैं और इन्हें न्यायधिश का पद प्राप्त है। सभी के अच्छे-बुरे कार्यों का फैसला यही करते हैं। हमारे जैसे कार्य होते हैं शनिदेव वैसे ही फल हमें प्रदान करते हैं। शनि को गरीबों का प्रतिनिधि माना जाता है। इसी वजह से गरीबों पर अत्याचार करने वाले लोगों को शनि कभी क्षमा नहीं करता है।
शनि का प्रभाव
हमारे पूर्वजों द्वारा इस बात पर जोर दिया जाता रहा है कि किसी नए कार्य की शुरूआत शनिवार से न करें। इसके पीछे यही वजह से है कि शनि की कृपा प्राप्ति के अभाव में यदि शनिवार से कार्य प्रारंभ किया जाए तो निश्चित ही वह कार्य ठीक से पूरा नहीं होगा, उसमें कई प्रकार की परेशानियां उत्पन्न होती रहेगी। साथ ही इस दिन कहीं बाहर यात्रा पर जाना भी वर्जित किया गया है।

नहाकर ही क्यों जाते हैं मंदिर?
जब भी हम किसी मुसीबत में फंस जाते हैं तब अवश्य ही सभी को भगवान याद आते हैं। ऐसे में ईश्वर की भक्ति के लिए मंदिर जाते हैं। सामान्यत: यह बात सभी जानते हैं कि बिना नहाए मंदिर नहीं जाना चाहिए लेकिन ऐसा क्यों अनिवार्य किया गया है?
नहाकर ही मंदिर जाना चाहिए, इस संबंध में शास्त्रों में बताया गया है तन और मन से पूरी तरह पवित्र होकर ही भगवान (मंदिर में) के सामने जाना चाहिए। मन की सफाई के लिए तो हमें बुरे विचारों और दुर्भावनाओं को त्यागना होता है। वहीं तन की सफाई के लिए नहाना आवश्यक है।
शास्त्रों के अनुसार भगवान के पास जाने से पहले हमें आंतरिक और बाहरी शुद्धता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए। बाहरी शुद्धता तो नहाने से हो जाती है, परंतु आंतरिक शुद्धता के लिए हमें लोभ, काम, मद, मोह जैसी बुराइयों को छोडना चाहिए।
मंदिर का वातावरण होता है प्रदूषित...
सभी जानते हैं यदि हम रोज नहीं नहाते तो हमारे शरीर से दुर्गंध आने लगती है। ऐसे में जो भी व्यक्ति संपर्क में आता है वह हमारे साथ खुद को बहुत असहज महसूस करता है। ऐसे में बिना नहाए मंदिर जाने से शरीर की दुर्गंध भी मंदिर में फैलती है। जिससे वहां आने वाले अन्य श्रद्धालुओं को भगवान का ध्यान करने में परेशानी महसूस होती है। बिना नहाए शरीर के आसपास कई बीमारियों के कीटाणु रहते हैं। जिससे अन्य भक्तों पर बुरा प्रभाव पड़ता है और भगवान का भी अनादर होता है। अत: बिना नहाए कभी मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए।

मंदिरों के शिखर पिरामिड जैसे क्यों हैं?
मंदिर, एक ऐसा स्थान जहां जाने के बाद हमारी सभी चिंताएं दूर हो जाती हैं, जहां हमारे मन की सारी अंशाति, आत्मिक शांति में बदल जाती है, मंदिर एक ऐसा स्थान है जहां से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही तुरंत ही सुखद अहसास होता है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि मंदिर में जाने के बाद मन को शांति मिलती है और किसी दैवीय शक्ति की अनुभूति होती है?
मंदिर की बनावट ही कुछ खास शैली में की जाती है। सभी मंदिरों का शिखर पिरामिड शैली में ही बनाए जाते हैं। अति प्राचीन मंदिरों के शिखर भी पिरामिड की तरह ही दिखाई देते हैं। हर मंदिर के शिखर पिरामिड की तरह ही क्यों बनाए जाते हैं? यही पिरामिड की वजह से मंदिर में शांति की अनुभूति होती है। पिरामिड की बनावट ऐसी होती है कि यह वातावरण से सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करता है। जहां पिरामिड होता है वहां नकारात्मक ऊर्जा यानि बुरी शक्तियां अपना प्रभाव नहीं दिखा पाती।
सभी मंदिरों के शिखर पिरामिड के अनुसार बनाने के पीछे वास्तु शास्त्र की मान्यताएं हैं। वास्तु के अनुसार पिरामिड का शाब्दिक अर्थ है अग्नि शिखा। अग्नि शिखा का मतलब है कि एक ऐसी अदृश्य ऊर्जा जो आग के समान होती है। यह शक्ति पिरामिड के प्रभाव में रहने वाले लोगों को मिलती है। पिरामिड प्रकृति से ऊर्जा एकत्रित करता है। पिरामिड की छोटी-छोटी प्रतिकृतियां अंदर से खाली होती हैं जो कि विद्युत चुंबकीय वर्ग आदि की ऊर्जा निर्मित करती है। इसी वजह से मंदिरों के शिखर पिरामिड की तरह बनाए जाते हैं जिससे वहां आने वाले व्यक्तियों को ऊर्जा मिल मिलती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पिरामिड बनाने से मंदिर में कोई वास्तु दोष भी नहीं रहता। मंदिर पर सभी ग्रहों पर शुभ दृष्टि रहती है। पिरामिड के नीचे बैठकर प्रार्थना करने पर मन को काफी शांति महसूस होती है, ऐसे में मंत्र जप का भी चमत्कारिक प्रभाव पड़ता है। इसी के प्रभाव से मंदिर में होने वाली आरती की गूंज भी हमारे शरीर को एक नई ऊर्जा प्रदान करती है।
इन्हीं कारणों की वजह से मंदिर के शिखर पिरामिड के आकार के बनाए जाते हैं। जिससे यहां आने वाले सभी श्रद्धालुओं को तुरंत ही आत्मीय शांति प्राप्त होती है और मन प्रसन्न होता है।

इस माह को क्यों कहते हैं मार्गशीर्ष
आज अधिकांश श्रद्धालुओं की आस्था श्रीकृष्ण में काफी अधिक है... सभी माखनचोर की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं... सभी भक्त अलग-अलग रूपों में इनकी आराधना करते हैं। कोई बाल कृष्ण की पूजा करता है तो कोई उनके पूर्ण स्वरूप की अर्चना करता है, ऐसे ही इनके असंख्य रूप हैं, असंख्य नाम हैं। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का ही रूप है।
मार्गशीर्ष मास को मार्गशीर्ष ही क्यों कहा जाता है? इस संबंध में शास्त्रों में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। ज्योतिष शास्त्र क अनुसार 27 नक्षत्र बताए गए हैं। इन्हीं 27 नक्षत्रों में से एक है मृगशिरा नक्षत्र। इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है। इसी वजह से इस मास को मार्गशीर्ष मास कहा गया है।
इस माह को मगसर, अगहन या अग्रहायण मास भी कहा जाता है। भागवत के अनुसार श्रीकृष्ण ने कहा है मासानां मार्गशीर्षोऽहम् अर्थात् सभी महिनों में मार्गशीर्ष श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है।
मार्गशीर्ष मास में श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त पुण्य के बल पर हमें सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह में नदी स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण के बाल्यकाल में जब गोपियां उन्हें प्राप्त करना ध्यान लगा रही थी तब श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की महत्ता बताई थी। उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष माह में यमुना स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा। तभी से इस माह में नदी स्नान का खास महत्व माना गया है।

शिवलिंग पर हल्दी क्यों नहीं चढ़ाएं?
शिवलिंग एक दैवीय शक्ति है, जो हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है। शिवलिंग शिवजी का ही साक्षात रूप माना जाता है। विधि-विधान से शिवलिंग का पूजन करने से शिवजी प्रसन्न होते हैं और साथ ही सभी देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है।
सामान्यत: देवी-देवताओं के विधिवत पूजन आदि कार्यों में बहुत सी सामग्रियां शामिल की जाती हैं। इन सामग्रियों में हल्दी भी शामिल की जाती है। हल्दी एक औषधि भी है और हम इसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन में भी किया जाता हैं। धार्मिक कार्यों में भी हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। कई पूजन कार्य हल्दी के बिना पूर्ण नहीं माने जाते।
पूजन में हल्दी गंध और औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। हल्दी शिवजी के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है। हल्दी का स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी इसीलिए नहीं चढ़ाई जाती है।जलाधारी पर चढ़ाते हैं हल्दीशिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए परंतु जलाधारी पर चढ़ाई जानी चाहिए। शिवलिंग दो भागों से मिलकर बनी होती है। एक भाग शिवजी का प्रतीक है और दूसरा हिस्सा माता पार्वती का। शिवलिंग चूंकि पुरुषत्व का प्रतिनिधित्व करता है अत: इस पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। हल्दी स्त्री सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री है और जलाधारी मां पार्वती से संबंधित है अत: इस पर हल्दी जाती है।

शनि से परेशान हनुमानजी को क्यों पूजें?
शनि, एक ऐसा ग्रह है जिसके प्रभाव से सभी भलीभांति परिचित हैं। ऐसा माना जाता है कि शनि अति क्रूर ग्रह है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में शनि अशुभ प्रभाव देने वाला होता है उसका जीवन काफी दुखों और असफलताओं से भरा होता है। शनि के बुरे प्रभाव से बचने के लिए श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी की आराधना करना ही श्रेष्ठ उपाय है।
शनि के बचने के लिए हनुमानजी को क्यों पूजते हैं? इस संबंध में हिंदू धर्म शास्त्रों में एक कथा बहुप्रचलित है। कथा के अनुसार हनुमानजी अपने इष्ट देव श्रीराम के ध्यान में लीन थे। तभी सूर्यपुत्र शनि उनके समक्ष आ पहुंचा। शनि घमंड भरे स्वर में हनुमानजी को युद्ध के लिए ललकारने लगा। शनि की चुनौति के जवाब में हनुमानजी ने विनम्रता पूर्वक कहा कि इस समय में प्रभु श्रीराम के ध्यान में लीन हूं अत: अभी आप मुझे क्षमा करें, मैं आपसे युद्ध नहीं कर सकता। यह सुनकर शनिदेव और अधिक क्रोधित हो गए। वे हनुमानजी से युद्ध करने की जिद पर अड़ गए। हनुमानजी द्वारा बहुत समझाने के बाद भी जब शनि युद्ध टालने के लिए नहीं माने तो हनुमान ने उन्हें अपनी पूंछ में लपेट लिया। शनि बहुत प्रयत्न के बाद भी खुद को आजाद नहीं करा पाएं और हनुमानजी पर प्रहार करने लगे। तब पवनपुत्र ने उन्हें पत्थरों पर पटकना शुरू कर दिया, जिससे शनिदेव का अहंकार चूर-चूर हो गया और वे हनुमानजी क्षमायाचना करने लगे।
केसरी नंदन ने क्षमायाचना के बाद उन्हें छोड़ दिया और उनसे निवेदन किया कि वे भगवान श्रीराम के किसी भी भक्त को परेशान ना करें। इस पर शनिदेव ने कहा कि अब से वे श्रीराम सहित आपके (हनुमानजी के) भक्तों को भी परेशान नहीं करेंगे। ऐसे श्रद्धालुओं पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस घटना के बाद से ही शनि से पीडि़त लोगों को हनुमानजी की भक्ति करने की सलाह दी जाती है।

मंगलवार को हनुमानजी की विशेष पूजा क्यों?
आज हनुमानजी सभी की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं। सभी श्रद्धालु हनुमानजी की पूजा करना काफी पसंद हैं। इनकी पूजा करना जितनी सहज है उतना ही सुखद अहसास और जीवन में सफलता देने वाली होती है। वैसे तो इनकी पूजा किसी भी वार या समय पर की जा सकती है लेकिन ऐसा माना जाता है कि मंगलवार को की गई हनुमानजी पूजा विशेष फल देने वाली है। कुछ भक्त प्रतिदिन हनुमान चालिसा, सुंदरकांड का पाठ करते हैं लेकिन मंगलवार के दिन अधिकांश श्रद्धालु हनुमान चालिसा और सुंदरकांड का पाठ करते हैं।मंगलवार को हनुमानजी की विशेष पूजा क्यों की जाती है? धर्म शास्त्रों में इस संबंध में बताया गया है कि मंगलवार पवन पुत्र के जन्म का वार है। मंगलवार को हनुमानजी का जन्म माना गया है। हनुमानजी को माता सीता ने अमरता का वरदान दिया है अत: वे हर युग में भगवान श्रीराम के भक्तों की रक्षा करते हैं। कलयुग में हनुमानजी की आराधना तुरंत ही शुभ फल देने वाली है। वे जल्द ही श्रद्धालु की भक्ति से प्रसन्न हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। मंगलवार भी हमारे जीवन में मंगल करने वाला गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार मंगलदेव का भी दिन माना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल अशुभ फल देने वाला हो वे इस दिन मंगल ग्रह की भी पूजा करते हैं। इस दिन हनुमानजी की पूजा से मंगल ग्रह के कुप्रभाव भी कम होते हैं।
क्रमश:...

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