Thursday, October 7, 2010

Buddhism(बौद्ध धर्म)

Buddhism(बौद्ध धर्म)

मूलत: बौद्ध धर्म जीवन का एक दृष्टिकोण अथवा दर्शन है। संसार के प्रमुख धर्मों में से एक है बौद्ध धर्म। अपने मूल रूप में बौद्ध धर्म बुद्ध के उपदेशों पर आधारित है। महात्मा बुद्ध ही बौद्ध धर्म के संस्थापक है। उनकी शिक्षाएं व उपदेश बौद्ध धर्म ग्रंथों में संकलित है। इनके उपदेश मुख्यत: 'सुत्रपिटक में संग्रहित है। उनका प्रथम उपदेश (धर्मचक्र-प्रवर्तन) सारनाथ में हुआ था। इसमें मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया गया है। अर्थात् अधिक भोग-विलास एवं अधिक तप-त्याग के बीच का मध्यम रास्ता अपनाना ही उचित है। ईश्वर और धर्मविज्ञान के लिए कोई स्थान नहीं था। भारत ही एक ऐसा अद्भूत देश है जहां ईश्वर के बिना भी धर्म चल सकता है। ईश्वर के बिना भी बौद्ध धर्म को सद्धर्म माना गया है।

बौद्ध धर्म का उद्भव एवं इतिहास
असल में बौद्ध धर्म और उसकी विचारधारा कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यह उस विचारधारा का स्वाभाविक परिणाम था। जो कर्मकांड, हिंसायुक्त यज्ञ, आडम्बर और पुरोहितवाद के विरुद्ध पहले से ही बहती आ रही थी। वेद और उपनिषद् पढऩे का अधिकार शुद्रों को नहीं दिया गया था। शुद्रों को यज्ञ आदि धार्मिक कर्मों का करना एवं शामिल होना वर्जित था। समाज में वैमनस्यता बढ़ रही थी। धीरे-धीरे समाज के सभी प्रमुख चिंतक यज्ञ के खिलाफ होते जा रहे थे। देश में विभिन्न मत-मतांतरों, मान्यताओं एवं विचारधाराओं के बवंडर उठ रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में सामान्य जनता कोई नया एवं सहज धर्म चाह रही थी। परिष्कृत धर्मकुछ लोग ऐसा धर्म चाहते थे जिसमें यज्ञ, पशुबलि एवं कठिन कर्मकांड न हो। जिसमें अतिभोग एवं अधिक कठोर तप-त्याग की अतियां न हो। लोग त्याग और भोग के बीच का ऐसा मध्यम मार्ग चाहते थे जिस पर सभी आसानी से चल सकें।

यह सिखाता है बौद्ध धर्म
गौतम बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं और उपदेशों में सार्थक एवं सफल जीवन का जो मार्ग बताया है, उसके आठ अंग है:

1. सम्यक दृष्टि: सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि जीवन में अपना दृष्टिकोण ऐसा रखना कि जीनव में सुख और दुख आते-जाते रहते हैं। यदि दुख है तो उसका कारण भी होगा तथा उसे दूर भी किया जा सकता है।

2. सम्यक संकल्प: इसका अर्थ है कि मनुष्य को जीवन में जो करने योग्य है उसे करने का और जो न करने योग्य है उसे नहीं करने का दृढ़ संकल्प लेना चाहिए।

3. सम्यक वचन: इसका अर्थ यह है कि मनुष्य को अपनी वाणी का सदैव सदुपयोग ही करना चाहिए। असत्य, निंदा और अनावश्यक बातों से बचना चाहिए।

4. सम्यक कर्मांत: किसी भी प्राणी के प्रति मन, कर्म या वचन से हिंसा न करना। जो दिया नहीं गया है उसे नहीं लेना। दुराचार और भोग विलास दूर रहना।

5. सम्यक आजीव: गलत, अनैतिक या अधार्मिक तरीकों से आजीविका प्राप्त नहीं करना।

6. सम्यक व्यायाम: बुरी और अनैतिक आदतों को छोडऩे का सच्चे मन से प्रयास करना। सदगुणों को ग्रहण करना व बढ़ाना।

7. सम्यक स्मृति: इसका अर्थ है कि यह सत्य सदैव याद रखना कि यह सांसारिक जीवन क्षणिक और नाशवान है।

8. सम्यक समाधि: ध्यान की वह अवस्था जिसमें मन की अस्थिरता, चंचलता, शांत होती है तथा विचारों का अनावश्यक भटकाव रुकता है।

बौद्ध धर्म और हिंदुत्व
महात्मा बुद्ध ने भारत के मूल वैदिक धर्म का विरोध नहीं किया बल्कि वैदिक धर्म में की कुरीतियां एवं कुप्रथाएं ही उनके निशाने पर रहीं। इसलिए यह कहना और मानना अनुचित नहीं होगा कि बौद्ध धर्म कोई धर्म नहीं है बल्कि 'हिंदुत्व' का ही नवीन संशोधित रूप है।

वास्तविकता यह है कि स्वयं अपनी ही कुरीतियों एवं खामियों से लडऩे के लिए हिंदुत्व ने ही बौद्ध धर्म का रूप लिया था। यही कारण है कि हिंदू आचार्यों ने महात्मा बुद्ध को भी दशावतारों में शामिल कर लिया। यह मान लिया गया कि जिस प्रकार 'विष्णुÓ- राम और कृष्ण बनकर आए थे। वैसे ही, पशु-हिंसा को रोकने के लिए इस बार वे बुद्ध बन कर आए हैं।

बौद्ध धर्म की मान्यताएं एवं सिद्धांत
गौतम बुद्ध ने अपने द्वारा नवीन धर्म या संप्रदाय स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने धार्मिक सिद्धांतों तथा रुढिय़ों के विषय में चर्चा नहीं की। नियमों एवं विधियों के विषय में भी उन्होंने कोई बात नहीं की। उन्होंने जीवन के एक ऐसे नीवन पथ की और संकेत किया जो सबके लिए समान रूप से सहज एवं सर्वोत्तम है। सद्गुणों के इस मार्ग पर चलने से प्रत्येक व्यक्ति जीवन तथा मरण के बंधन से मुक्ति पा सकता है। उनके उपदेशों का आधार आत्मा, कार्य तथा आचार-विचार की पवित्रता है।महात्मा बुद्ध के उपदेशों का आधार आत्मा, कार्य तथा आचार-विचार की पवित्रता है। उन्होंने वेदों की प्रामाणिकता और अपौरुषेयता (अर्थात् ईश्वर द्वारा रचित) को अस्वीकार किया। यज्ञों में पशु बलि जैसी हिंसात्मक प्रवृत्तियों की निंदा की तथा अर्थहीन धार्मिक विधियों एवं अनुष्ठानों का घोर विरोध किया। जाति-प्रथा तथा ब्राह्मणों के प्रभुत्व को चुनौती दी। उनके मतानुसार अपने स्वयं के विकास के लिए व्यक्तिगत श्रम और सात्विक जीवन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। जिस सात्विक तथा सदाचार पूर्ण मार्ग को उन्होंने सुझाया है, वह व्यावहारिक, नैतिक गुणों का एक समूह है। अतएव बौद्ध धर्म धार्मिक क्रांति की अपेक्षा सामाजिक क्रांति ही अधिक था।

बुद्ध के उपदेशगौतम बुद्ध के निम्नलिखित चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया। 1. इस संसार में दु:ख है। 2. इस दु:ख का एक कारण है। 3. यह कारण इच्छा या वासना है। 4. वासना को नष्ट करके इस दु:ख को दूर किया जा सकता है। आवागमन के बंधन से बचने तथा दु:खों को समाप्त करने के लिए मनुष्य को अष्टांगिक मार्ग का अनुकरण करना चाहिए।

अष्टांगिक मार्गइस अष्टांगिक मार्ग में निम्नलिखित 8 बातें सम्मिलित है:1. सम्यक् दृष्टि2. सम्यक् संकल्प3. सम्यक् वाक्4. सम्यक् कर्म5. सम्यक् आजीव6. सम्यक् व्यायाम या प्रयत्न 7. सम्यक् स्मृति और8. सम्यक् समाधि।महात्मा बुद्ध ने जीवन में सरलता एवं सादगी पर बल दिया। उनके अनुसार समाज में ऊंच-नीच की भावना का कोई महत्व नहीं है। उनका कहना था कि पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए किसी व्यक्ति का उच्च जाति में जन्म लेना आवश्यक नहीं है। इसीलिए उन्होंने बिना भेदभाव के उन सभी व्यक्तियों को बौद्ध संघ का सदस्य बनाया जो संघ में शामिल होना चाहते थे। महात्मा बुद्ध ने अपने सारे उपदेश जन-साधारण की भाषा में दिए। इसलिए वे बहुत लोकप्रिय हुए। इन सिद्धांतों को बुद्ध एवं महावीर दोनों ही मानते थे। किंतु बुद्ध और महावीर के उपदेशों में एक बहुत बड़ा अंतर भी है।

मध्यम मार्गमहात्मा बुद्ध ने मध्यम मार्ग पर बल दिया है। उनके अनुसार पवित्र और सफल जीवन बिताने के लिए मनुष्य को भोग और त्याग के क्षेत्र में अति करने से बचना चाहिए। अर्थात् मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। न तो उसे कठोर तप करना चाहिए और न ही सांसारिक भोग-विलास में पूरी तरह से डूब ही जाना चाहिए। जबकि इससे भिन्न भगवान महावीर ने कठोर तप और शारीरिक यातना पर अधिक बल दिया है। महावीर की भांति बुद्ध ने भी अहिंसा को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हुए उसका उपदेश दिया है।

धम्मपद: बौद्धधर्म की गीता
धम्मपद: यह बौद्ध साहित्य का सर्वोष्कृष्ट एवं लोकप्रिय ग्रंथ।

धम्मपद का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ है: धर्म विषयक कोई शब्द, पंक्ति या पद्यात्मक वचन।

धम्मपद में बुद्ध भगवान के नैतिक उपदेशों का संग्रह है।

धम्मपद में पालि भाषा की 123 गाथाएं शामिल है।

धम्मपद की रचना उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर 300 ई.पू. से 100 ई.पू. के बीच हुई है।

बौद्ध संघ में इस ग्रंथ का अत्यधिक एवं अद्वितीय प्रभाव है।

धम्मपद में पारंगतत होना बौद्ध संघ में परिपक्वता एवं उच्चता की कसौटी माना जाता है।

धम्मपद में स्वयं कहा गया है कि अनर्थ पदों से युक्त सहस्रों गाथाओं के भाषण से ऐसा एक मात्र अर्थपद या धम्मपद
अधिक श्रेष्ठ एवं श्रेयस्कर है।

बौद्ध साधु प्राय: इसी ग्रंथ की कोई गाथा या अंश लेकर अपने उपदेशों का प्रारंभ करते हैं।
धम्मपद में भाषा की सरलता, सहजता एवं ग्रणणशीलता देखने को मिलती है।
धम्मपद में गूढ़ एवं अति सूक्ष्म दार्शनिक एवं अध्यात्मिक तत्वों की व्याख्या एवं वर्णन सुंदर एवं ग्रहणशील रूप में हुआ है।

जीवनपथ की सुगमता के लिए धम्मपद में उतरें
धम्मपद: जीवनपथ की सुगमता के लिए हमसे कहते हैं....
शुभ कर्म करने वाला मनुष्य दोनों जगह प्रसन्न रहता है। यहां भी और परलोक में भी।
बुद्धिमान मनुष्य वही है जो उद्योग (परिश्रम, पुरुषार्थ), निरालस्यता, संयम और (मन पर नियंत्रण) आदि के द्वारा अपने जीवन को पूर्ण सुरक्षित एवं प्रगतिशील बना लेता है।

बुद्धिमान मनुष्य कठिनाई से वश में होने वाले मन को नियंत्रित एवं प्रशिक्षित करता है। नियंत्रित मन अत्यंत ही भला करने वाला तथा सुख देने वाला होता है।

राग, द्वेष और इंद्रिय भोगों में आसक्त मनुष्य को यमराज आहत अवस्था में ही अपने वश में कर लेता है।
यदि अच्छे चरित्र के श्रेष्ठ मनुष्यों का साथ न मिले तो अकेले ही रहना चाहिए। दुराचारी, अहंकारी, मूर्ख एवं व्यसनी मनुष्य का साथ एक क्षण के लिए भी नहीं करना चाहिए।

जो व्यक्ति दोष दिखाने वाले व्यक्ति को अत्यंत प्रिय एवं शुभचिंतक समझता है उसका कल्याण ही होता है।
लाखों व्यक्तियों को जीतने की अपेक्षा, स्वयं को जीतना अधिक कठिन एवं महान है।
व्यर्थ और अनावश्यक शब्दों से युक्त हजारों कथाओं, वाणियों एवं उपदेशों की बजाय वह एक शब्द ही अधिक श्रेष्ठ है जो शांति और सद्ज्ञान प्रदान करें।

मनुष्य अपने कर्मों के फल से कभी भी और कहीं भी बच नहीं सकता है।
जिन्होंने जवानी में ब्रह्मचर्य और धन का संग्रह नहीं किया वे शेष जीवनभर पछताते ही रहते हैं।


बौद्ध धर्म में ध्यान को ही सबसे ज्यादा महत्व क्यों(Why only the most important Buddhist meditation)
बौद्ध भिक्षुओं की ध्यान क्रियाओं को लेकर हमने अनेक अचरज भरी बातें सुनी होंगी। जब बौद्ध भिक्षु ध्यान में होते हैं तो वे बाहरी संसार से लगभग अलग हो जाते हैं। अपने आसपास घट रही घटनाओं से भी दूर, न तो शोर-शराबे का उन पर असर पड़ता है और न ही किसी प्रकार की गतिविधि का। आखिर बौद्ध भिक्षु ध्यान पर इतने केंद्रीत क्यों हैं? दरअसल बौद्ध धर्म की सबसे प्रमुख उपासना पद्धति ध्यान ही है। भगवान बुद्ध ने इस धर्म की नींव रखी और आज यह धर्म दुनिया के सबसे प्रमुख धर्मो में एक है।

ध्यान हमें अपने भीतर झांकने का मौका देता है। भगवान हमारे भीतर ही बसते हैं, लेकिन उन्हें देख पाना मुश्किल है क्योंकि हमारा मन इतना अधिक चंचल होता है कि उस परमात्मा को देख या महसूस कर पाना लगभग नामुमकीन होता है। बौद्ध धर्म खास ध्यान पर इसलिए जोर देता है क्योंकि पहले हम खुद को पहचाने की हम किसके अंश हैं, इसके बाद परमात्मा को खोजें। खुद को पहचान लिया तो परमात्मा समझना आसान होगा। भगवान बुद्ध की खोज भी पहले यही थी कि मैं कौन हूं। यह खोज पूरी हुई और उन्हें न केवल परमात्मा प्राप्त हुआ बल्कि वे खुद भी अवतार के रूप में स्वीकार किए गए।

जो भी इसमें अच्छा लगे वो मेरे गुरू का प्रसाद है,

और जो भी बुरा लगे वो मेरी न्यूनता है....MMK

6 comments:

  1. बौद्ध धर्म की व्याख्या बहुत अच्छी लगी। आभार!

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने का कष्ट करें

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  3. ब्लाग जगत की दुनिया में आपका स्वागत है। आप बहुत ही अच्छा लिख रहे है। इसी तरह लिखते रहिए और अपने ब्लॉग को आसमान की उचाईयों तक पहुंचाईये मेरी यही शुभकामनाएं है आपके साथ
    ‘‘ आदत यही बनानी है ज्यादा से ज्यादा(ब्लागों) लोगों तक ट्प्पिणीया अपनी पहुचानी है।’’
    हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    मालीगांव
    साया
    लक्ष्य

    हमारे नये एगरीकेटर में आप अपने ब्लाग् को नीचे के लिंको द्वारा जोड़ सकते है।
    अपने ब्लाग् पर लोगों लगाये यहां से
    अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से

    कृपया अपने ब्लॉग पर से वर्ड वैरिफ़िकेशन हटा देवे इससे टिप्पणी करने में दिक्कत और परेशानी होती है।

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  4. बौद्ध धर्म की व्याख्या बहुत अच्छी लगी|

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  5. इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  6. सार्थक लेखन के लिये आभार एवं “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।
    जीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव भी जीते हैं, लेकिन इस मसाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये यह मानव जीवन अभिशाप बन जाता है। आज मैं यह सब झेल रहा हूँ। जब तक मुझ जैसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यही बडा कारण है। भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस षडयन्त्र का शिकार हो सकता है!
    अत: यदि आपके पास केवल दो मिनट का समय हो तो कृपया मुझ उम्र-कैदी का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आप के अनुभवों से मुझे कोई मार्ग या दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये।
    http://umraquaidi.blogspot.com/
    आपका शुभचिन्तक
    “उम्र कैदी”

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